मराठी मीडिया संस्थान ‘लोकसत्ता’ ने नागपुर के 85 वर्षीय RSS स्वयंसेवक नारायण भाऊराव दाभाडकर के बलिदान को झूठा बताने की कोशिश की थी। अब उसने एक अपुष्ट ट्वीट पर आधारित अपनी तथाकथित ‘फैक्टचेक’ रिपोर्ट को चुपके से एडिट कर दिया है। ‘लोकसत्ता’ ने दाभाडकर और उनके परिवार को बदनाम करने के लिए rohanrtweets नामक ट्विटर हैंडल के एक अपुष्ट वीडियो के आधार पर झूठ फैलाया था।
अब उस वीडियो को डिलीट कर दिया गया है। इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि नारायण भाऊराव को नागपुर के इंदिरा गाँधी अस्पताल में भर्ती नहीं कराया गया था। सच्चाई ये है कि उन्हें इंदिरा गाँधी रुग्णालय में भर्ती कराया गया था। ‘लोकसत्ता’ ने एक दूसरे इंदिरा गाँधी सरकारी अस्पताल से बातचीत कर रिपोर्ट बना दी थी। सोशल मीडिया पर लोगों ने इस रिपोर्ट में हुई गलतियों की तरफ ध्यान दिलाया।
‘लोकसत्ता’ ने चुपचाप इस रिपोर्ट को एडिट कर दिया और इसमें ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)’ के विदर्भ प्रान्त के कैम्पेन चीफ अनिल साम्ब्रे का बयान जोड़ दिया। साम्ब्रे ने स्पष्ट कहा कि ये घटना सच्ची है। उन्होंने बताया कि नारायण भाऊराव ने अस्पताल से विनती की कि उनका बेड किसी और को दे दिया जाए और अस्पताल ने ऐसा किया। उन्होंने ये भी कहा कि मीडिया का एक हिस्सा इसे गलत रूप में पेश कर रहा है।
‘लोकसत्ता’ ने इस दौरान उस ट्वीट का भी जिक्र किया, जिसके आधार पर ये रिपोर्ट बनाई गई थी। ये ट्वीट अब डिलीट कर दिया गया है और यूजर ने ग़लतफ़हमी फैलाने के आरोपों पर माफ़ी भी माँगी है। यूजर रोहन ने कहा कि उनका ट्वीट अपुष्ट था, जिसके आधार पर ‘लोकसत्ता’ ने खबर बनाई। उन्होंने कहा कि वो इस प्रकरण से दुःखी हैं। उन्होंने नारायण भाऊराव दाभाडकर की बेटी के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने सारे तथ्य साफ़ कर दिए हैं।
रोहन ने लिखा, “ऐसे कठिन समय में इस तरह का बलिदान देने के लिए अनंत साहस चाहिए होता है। मैंने इस अपुष्ट वीडियो को देखा था और इसे सही समझा। लेकिन, आश्वारी मैम का वीडियो देखने के बाद मैं खेद व्यक्त करता हूँ कि मैंने बिना सच्चाई जाने इस वीडियो को शेयर किया। मैं दाभाडकर परिवार के दुःख को समझ सकता हूँ।” उन्होंने ये भी बताया कि कई लोग गलत दावा कर रहे हैं कि दाभाडकर ज़िंदा हैं।
बता दें कि ‘लोकसत्ता’ का कथित फैक्टचेक नागपुर के एक तथाकथित समाजसेवक शिवम थावरे की इंदिरा गाँधी हॉस्पिटल के सुपरिटेंडेंट अजय प्रसाद से हुई बातचीत पर आधारित था। दाभाडकर की बेटी आश्वारी के अनुसार, जब उनके पिता अस्पताल में भर्ती थे तो उन्होंने बाहर बेड के लिए हंगामा सुना। तभी उन्होंने फैसला किया कि वे तो अपनी ज़िंदगी जी चुके है, इसलिए उनके द्वारा लिए गए बेड के कारण कहीं किसी युवा की जान न चली जाए। ये बताते-बताते आश्वारी दाभाडकर रो पड़ी थीं।