Sunday, May 5, 2024
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बच्चों पर कोरोना वैक्सीन के ट्रायल के खिलाफ दिल्ली HC में याचिका, नया नहीं है वैक्सीन के खिलाफ प्रोपेगेंडा का ये ‘खेल’

याचिकाकर्ता संजीव ने कहा है कि वैक्सीन का ट्रायल बच्चों पर किए जाने से उनकी सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इससे उनकी मानसिक सेहत पर भी असर पड़ सकता है।

पटना स्थित अयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में बच्चों पर कोरोना वैक्सीन का ट्रायल मंगलवार (1 जून) को शुरू हो गया था। इसके तहत तीन बच्चों को कोवैक्सिन की पहली डोज दी गई। टीका दिए जाने के बाद ये तीनों बच्चे स्वस्थ हैं। एम्स को कुल 80 बच्चों के ट्रायल का लक्ष्य दिया गया है।

2 से 18 वर्ष के उम्र के बच्चों पर कोरोना वैक्सीन का यह ट्रायल ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) द्वारा भारत बायोटेक को बच्चों पर फेज 2 और 3 के कोवैक्सिन के ट्रायल को मंजूरी दिए जाने के बाद किया जा रहा है।

बच्चों पर वैक्सीन के ट्रायल के खिलाफ कोर्ट में याचिका

वहीं 2 से 18 साल के बच्चों पर किए जा रहे वैक्सीन ट्रायल के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में शुक्रवार (4 जून) को सुनवाई है। याचिका में कोविड वैक्सीन के बच्चों पर ट्रायल को नरसंहार जैसा बताते हुए इसे तुरंत रोकने की माँग की गई है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, याचिकाकर्ता संजीव कुमार ने कहा कि यह याचिका हाईकोर्ट के सामने हैं इसे लेकर केंद्र और भारत बायोटेक को नोटिस भी भेजा जा चुका है। इसके बावजूद जून से ही बच्चों पर वैक्सीन के ट्रायल शुरू किए जा चुके हैं।

याचिकाकर्ता संजीव ने कहा है कि वैक्सीन का ट्रायल बच्चों पर किए जाने से उनकी सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इससे उनकी मानसिक सेहत पर भी असर पड़ सकता है। संजीव ने ये भी कहा है कि जिन बच्चों पर वैक्सीन का ट्रायल किया जा रहा है, उन्हें वॉलंटियर्स नहीं कहा जा सकता है। ये बच्चे इस ट्रायल के नतीजों को समझने की क्षमता नहीं रखते हैं। स्वस्थ बच्चों पर वैक्सीन का ट्रायल नरसंहार जैसा होगा।

स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, 525 स्वस्थ्य वॉलंटियर्स पर इस वैक्सीन का ट्रायल किया जाएगा। उन्हें वैक्सीन की दो डोज दी जाएगी। पहली डोज देने के 28 दिन बाद दूसरी डोज दी जाएगी।

तीसरी लहर में बच्चों के सर्वाधिक प्रभावित होने की संभावना

सरकार ने बच्चों पर कोरोना वैक्सीन का ट्रायल उन आशंकाओं को देखते हुए शुरू किया है, जिसमें कोरोना की तीसरी लहर से सबसे अधिक बच्चों के प्रभावित होने का अनुमान जताया गया है।

कोरोना की तीसरी लहर से निपटने के लिए ही सरकार 2 से 18 साल के बच्चों पर वैक्सीन का ट्रायल शुरू कर चुकी है। लेकिन बच्चों को सुरक्षित रखने के उपायों के तहत सरकार द्वारा शुरू इस वैक्सीन ट्रायल को बच्चों का नरसंहार और उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए घातक बताते हुए याचिका दायर कर दी गई है।

वैक्सीन विरोध के खेल में कॉन्ग्रेस, लेफ्ट समेत पूरा विपक्ष शामिल

कोरोना वैक्सीन का विरोध देश में नया नहीं है और कॉन्ग्रेस, लेफ्ट समेत तमाम विपक्षी दल पहले दिन से ही कोरोना वैक्सीन का विरोध करते आए हैं। ये बात और है कि शुरू में कोरोना वैक्सीन का विरोध करने वाले विपक्षी नेताओं, तथाकथित बुद्धजीवियों और कई पत्रकार बाद में खुद मुफ्त वैक्सीन की माँग की लाइन में सबसे आगे भी खड़े नजर आए हैं। ये वे लोग हैं जो आम जनता को वैक्सीन को घातक बताते हुए उसके खिलाफ भ्रम और अफवाह फैला रहे हैं, लेकिन खुद वैक्सीन लगवाने के मामले में प्राथमिकता माँग ही नहीं रहे हैं, बल्कि वैक्सीन लगवा भी रहे हैं।

कोरोना वैक्सीन के जरिए मोदी सरकार के विरोध का अवसर तलाशने वाले इन नेताओं, पत्रकारों और तथाकथित बुद्धजीवियों की लिस्ट बहुत लँबी है। फिर चाहे वो इसे भाजपा की वैक्सीन बतान वाले अखिलेश यादव हों, या कॉन्ग्रेस के रणदीप सुरजेवाला, या इसी पार्टी के मनीष तिवारी। प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए चर्चित शशि थरूर वैक्सीन को लेकर भी भ्रम फैलाने में पीछे नहीं रहे। वहीं AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी हों या एनसीपी नेता नवाब मालिक, वैक्सीन पर राजनीति करने में पीछे नहीं रहे।

कई पत्रकारों ने भी वैक्सीन पर दुष्प्रचार के जरिए अपना एजेंडा खूब चलाया, जिनमें पत्रकार संदीप चौधरी, स्वाति चतुर्वेदी जैसे नाम भी शामिल हैं। वैक्सीन का कार्टून के जरिए खूब मजाक उड़ाने वाले कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य खुद सबसे पहले वैक्सीन लेने वालों में शामिल रहे।

यानी, कोरोना के खिलाफ सुरक्षा के लिए इन विपक्षी नेताओं को वैक्सीन तो चाहिए, लेकिन अपनी राजनीति चमकाने और मोदी सरकार के विरोध के लिए वैक्सीन के खिलाफ दुष्प्रचार और भ्रम फैलाने का खेल भी जारी रखना है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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