एक व्यक्ति अपनी पत्नी की ‘क्रूरता’ की बात करते हुए तलाक के लिए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट पहुँचा लेकिन उसे राहत नहीं मिली। पीड़ित पति ने कहा कि जब ऑफिस से आने में उसे देर हो जाती है तो उसकी पत्नी घर का दरवाजा तक नहीं खोलती, जिस कारण उसे बाहर ही सोना पड़ता है। हालाँकि, पंजाब एवं हरियाणा उच्च-न्यायालय ने कहा कि ये सब छोटी बातें हैं और क्रूरता की श्रेणी में नहीं आती। साथ ही टिप्पणी की कि दुर्व्यवहार एक पर्यापत और लंबे समय तक होना चाहिए, तभी मामला बनता है।
पीड़ित पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी उसके खिलाफ झूठे आरोप लगाती है और उसके कैरेक्टर पर सवाल खड़े करती है। जस्टिस ऋतू बहरी और जस्टिस करमजीत सिंह की खंडपीठ ने इस मामले पर सुनवाई की। इससे पहले 24 दिसंबर, 2013 को ‘हिन्दू मैरिज एक्ट’ की धारा-13 के तहत क्रूरता और परित्याग के अंतर्गत तलाक की उसकी माँग को अस्वीकार कर दिया गया था। बता दें कि मतभेद होने के कारण पति-पत्नी अब अलग-अलग रह रहे हैं। पति ने बताया कि उसकी पत्नी उस पर उसकी बहन व ऑफिस की महिला सहकर्मियों के साथ अवैध सम्बन्ध के आरोप भी लगाती है।
उच्च-न्यायालय ने कहा, “क्रूरता की घटनाएँ उचित तारीख, समय और स्थान के साथ साबित की जानी चाहिए। साथ ही ये बताया जाना चाहिए कि किन हालात में किस तरह से ये घटनाएँ हुईं। हमारा विचार ये है कि बिना तारीख़-महीने बताए क्रूरता के सामान्य आरोप याचिकाकर्ता के पक्ष में मामला नहीं बनाते।” मई 2005 में उक्त व्यक्ति की शादी हुई थी और नवंबर 2007 में उनका एक बेटा हुआ। नवंबर 2009 से ही दोनों अलग-अलग रह रहे हैं।
हिसार के फैमिली कोर्ट ने उक्त व्यक्ति द्वारा दायर की गई तलाक की याचिका को रद्द कर दिया था। फैमिली कोर्ट के आदेश से व्यथित व्यक्ति ने इसके बाद उच्च-न्यायालय का रुख किया। याचिका में उसने बताया कि कैसे उसकी पत्नी रात भर दरवाजा नहीं खोलती थी और वो सुबह तक बाहर खड़ा रहता था। सम्बन्धियों, परिजनों और मित्रों की उपस्थिति में उसे बेइज्जत किया जाता था। व्यक्ति ने बताया कि उसे शराबी और व्यभिचारी बता कर उसकी पत्नी अपमानित करती है।
उसने दलील दी कि 12 वर्षों से दोनों अलग-अलग रह रहे हैं। जबकि महिला ने कहा कि 2009 में नवंबर 2009 में ही उसे ससुराल से निकाल दिया गया था और उसके बाद समझौते की कोई कोशिश किए बिना ही अगले दो महीनों के भीतर तलाक की याचिका दाखिल कर दी गई। महिला ने कहा कि उसके खिलाफ झूठे आरोप लगा कर उसका पति पीछा छुड़ाना पाना चाहता है। अदालत में याचिका ख़ारिज हो गई और कहा गया कि क्रूरता का आधार साबित करने के लिए यहाँ पर्याप्त कारण नहीं हैं।