Friday, November 15, 2024
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जवाहर, राजीव, राहुल: नेहरू-गाँधी परिवार के पुरुष-स्त्री विदेश की, ये करीबी ‘निजी’ या देश को पड़ी भारी

बाल ठाकरे ने अप्रैल 2009 में दावा किया था कि नेहरू-एडविना के रिश्ते के कारण देश का विभाजन हुआ। उनका मानना था कि लुइस माउंटबेटन ने अपनी बीवी के साथ नेहरू के रिश्ते का फायदा उठाया और देश को धोखा मिला।

राहुल गाँधी का एक वीडियो वायरल हुआ है, जो खासा चर्चा का विषय बन रहा है। कॉन्ग्रेस पार्टी भले ही सफाई देते हुए इसे उनके निजी जीवन का हिस्सा बता रही हो, लेकिन साफ़ है कि विदेश जाकर अगर कोई भारत के खिलाफ षड़यंत्र रचने वाले देश के राजनयिक से मिलता है और उसके साथ करीब होता है तो मामला यहाँ निजी नहीं रह जाता, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ हो जाता है। राहुल गाँधी के साथ भी यही हो रहा है।

इससे पहले भी राहुल गाँधी की चीनी अधिकारियों के साथ तस्वीरें वायरल होती रही हैं। सोशल मीडिया पर तो वो चीन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरते रहते हैं और भारतीय सेना के विरुद्ध एजेंडा चलाते हैं, वहीं विदेश में जाकर वो चीनी महिला अधिकारी के साथ पार्टी करते हुए दिखते हैं। आम जनता माँग कर रही है कि राहुल गाँधी के इस दौरे का पूरा विवरण भारतीय गृह मंत्रालय तलब करे। आखिर विदेशी महिलाओं को लेकर नेहरू-गाँधी परिवार की ये कैसी सनक है?

नेपाल में राहुल गाँधी: भारत विरोधी ‘दोस्त’ की शादी, चीनी अधिकारी के साथ पार्टी

सबसे पहले जानकारी दे दें कि राहुल गाँधी अपने एक पत्रकार मित्र की शादी में हिस्सा लेने काठमांडू गए हैं, जिनके पिता म्यांमार में नेपाल के राजदूत रहे हैं। इस दोस्त का नाम है सुमनिमा उदास, जो लंबे समय तक CNN में कार्यरत थीं। जहाँ तक सुमनिमा उदास का सवाल है, वो अक्सर भारत विरोधी एजेंडे के कारण सुर्ख़ियों में रहती हैं। जब नेपाल और भारत के बीच नक़्शे को लेकर तनाव चल रहा था, तब भी उन्होंने उस दौरान भड़काऊ बातें की थीं।

सुमनिमा उदास ने कोरोना महामारी के दौरान भी वैक्सीन को लेकर भारत सरकार के खिलाफ अफवाह फैलाया था। सुमनिमा ने कॉन्ग्रेस नेता जयराम रमेश के ट्वीट को रीट्वीट किया था। उन्होंने ‘द वायर’ के उस लेख को शेयर किया था, जिसमें लिखा था कि पीएम मोदी वास्तविकता से दूर हैं और उन्होंने सभी संस्थाओं को ख़त्म कर दिया है। उन्होंने भारत विरोधी वामपंथन अरुंधति रॉय के उस लेख को भी शेयर किया था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘खतरनाक’ बताते हुए कहा गया था कि भारत सरकार लोगों को महामारी से बाहर निकालने में असफल रही है।

जब केंद्रीय विदेशी मंत्री एस जयशंकर ने गौतम बुद्ध को भारत के महान व्यक्तित्वों में गिना था, तब सुमनिमा उदास ने इस पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने जामिया के उपद्रवियों का भी समर्थन किया था। साथ ही वो भारत में महिलाओं के साथ भेदभाव का दावा करने वाले आर्टिकल को भी आगे बढ़ा चुकी हैं। इसी तरह इस शादी कार्यक्रम में चीन की जिस राजदूत के साथ राहुल गाँधी को देखा गया, उस होउ यांकी पर हनीट्रैप के माध्यम से अपने देश का काम निकलवाने के आरोप लगते रहे हैं।

होऊ यांकी 2018 से नेपाल में चीन की राजदूत हैं। उनके लिए दावा किया जाता है कि नेपाल की सत्ता के गलियारों से लेकर सेना के मुख्यालय तक उनकी घुसपैठ है। जुलाई 2020 में नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को हनी ट्रैप में फँसाने की खबरें सामने आई थी। कहा गया था कि यांकी कहने पर ही ओली ने एक नक्शा पास करवाया था, जिसमें उत्तराखंड के तीन जगह कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख को अपना हिस्सा बताया था। इसके अलावा नेपाल के कुछ इलाकों पर चीन द्वारा अतिक्रमण करने की भी खबरें आई थी।

ऐसे में भला क्यों राहुल गाँधी के इस दौरे को निजी माना जाए, जहाँ उनके इर्दगिर्द भारत के विरोधियों का जमावड़ा हो? क्या अगर भारत के किसी अधिकारी को विदेश में देश विरोधी महिलाओं के साथ देखा जाता, तो उस पर कार्रवाई नहीं होती? फिर नेताओं पर क्यों नहीं? राहुल गाँधी भले विपक्ष में हैं, लेकिन 2004-14 तक पूरे देश में उनके परिवार का राज था और वो खुद भी सक्रिय थे। देश के 5 राज्यों में कॉन्ग्रेस सत्ता में है या सत्ताधारी गठबंधन में है। ऐसे में ये दलील नहीं चल सकती कि राहुल गाँधी विपक्ष में हैं, इसीलिए उनकी कोई जवाबदेही नहीं बनती।

जवाहरलाल नेहरू और एडविना माउंटबेटन: एक कहानी यह भी

जवाहरलाल नेहरू के साथ एडविना माउंटबेटन का नाम अक्सर जुड़ता रहा है। चाहे एडविना के क़दमों में बैठना हो, उनके होठों में दबाया हुआ सिगरेट सुलगना हो या फिर किसी चुटकुले पर उनके आगे मुँह कर के हँसना हो – इससे जुड़ी तस्वीरें और कहानियाँ अक्सर लोगों के सामने आती रहती हैं। लुइस माउंटबेटन भारत के अंतिम ब्रिटिश वायसराय थे और एडविना उनकी पत्नी। भारत-पाकिस्तान विभाजन उनके ही कार्यकाल में हुआ।

जवाहरलाल नेहरू और एडविना माउंटबेटन के रिश्ते के कई पहलू आज भी राज ही हैं। UK की एक संस्था ने दोनों के बीच हुए पत्राचार और एडविना की पर्सनल डायरी के कंटेंट्स को रिलीज करने की माँग हाल ही में ठुकरा दिया। इसमें आखिर ऐसा क्या है, जिसे छिपाया जा रहा है? कई रिपोर्ट्स में कहा जाता है कि भारत की आज़ादी के बाद भी दोनों के रिश्ते चलते रहे। एडविना ज्यादा किसी से बात नहीं करती थीं, लेकिन नेहरू से उनके करीबी रिश्ते थे।

एडविना की बेटी पामेला ने बताया था कि दोनों एक-दूसरे को पसंद करते थे। नेहरू उनसे मिलने ब्रिटेन भी गए थे, जब वो हैम्पशायर में एक होटल में रुके थे। एक लेखक ने दावा किया था कि नेहरू को ‘बुद्धिमान महिलाएँ’ पसंद थीं। सरोजिनी नायडू की बेटी पद्मजा से भी नेहरू क्लोज थे और गुस्से में पद्मजा ने एक बार गुस्से में एडविना पर फोटो फ्रेम फेंका था, लेकिन बाद में दोनों अच्छे दोस्त बन गए – ऐसा लेखकों ने दावा किया है। सवाल उठते रहते हैं कि क्या एडविना को नेहरू ने गोपनीय सूचनाएँ दी?

यहाँ फिर निजी ज़िन्दगी से अलग हट कर सवाल उठता है कि जिस तरह सार्वजनिक जगहों पर भी नेहरू एडविना के सामने नतमस्तक रहते थे, ऐसे में भारत जैसे गौरवशाली देश के प्रधानमंत्री होने के कारण क्या उन्हें इन चीजों का ध्यान नहीं रखना चाहिए था? शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने अप्रैल 2009 में दावा किया था कि नेहरू-एडविना के रिश्ते के कारण देश का विभाजन हुआ। उनका मानना था कि लुइस माउंटबेटन ने अपनी बीवी के साथ नेहरू के रिश्ते का फायदा उठाया और देश को धोखा मिला।

राजीव गाँधी और सोनिया गाँधी के रिश्ते पर भी कई बार उठे हैं सवाल

राहुल गाँधी की माँ सोनिया गाँधी भी मूल रूप से इटली की हैं। 1956 में अपने दोस्तों के साथ लंदन के वर्सिटी रेस्टॉरेंट में पार्टी करते हुए राजीव गाँधी की नजर सोनिया पर पड़ी, जिनका नाम तब एंटोनियो माइनो हुआ करता था। तब कैम्ब्रिज में पढ़ रहीं सोनिया गाँधी उस होटल में पार्ट टाइम वेट्रेस का काम करती थीं। रेस्टॉरेंट का मालिक राजीव का दोस्त था, जिसे पैसे देकर उन्होंने सोनिया के करीब आने की व्यवस्था कराई और राजीव गाँधी द्वारा सूचित किए जाने के बाद उनकी माँ इंदिरा गाँधी भी अपने होने वाले बहू से मिलने लंदन पहुँचीं।

1967 में राजीव गाँधी भारत लौटे और अगले साल सोनिया गाँधी, जिनके रहने की व्यवस्था अमिताभ बच्चन के घर में की गई थी। कहा जाता है कि राजीव गाँधी राजनीति में नहीं आना चाहते थे, लेकिन संजय गाँधी की प्लेन क्रैश में मौत और इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद उन्हें भारत का प्रधानमंत्री बनना पड़ा। सोनिया गाँधी के कॉन्ग्रेस नेतृत्व संभालने के बाद कई नेताओं ने पार्टी तोड़ दी। 2004 में उन्हें प्रधानमंत्री न बनने देने के लिए कई नेताओं ने विरोध जताया था।

सोशल मीडिया में लोक अक्सर ये बातें करते रहते हैं कि क्या सोनिया गाँधी विदेशी एजेंट हैं? इन बातों की भले ही कहीं कोई पुष्टि नहीं हुई हो, लेकिन जब बात उठती है तो पीछे कोई न कोई कारण होता ही है। इन चर्चाओं में कभी रूसी एजेंड़ी KGB के साथ सोनिया गाँधी का नाम जोड़ा जाता है तो कभी अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी CIA के साथ। गाँधी परिवार के करीबी और UPA काल में विदेश मंत्री रहे नटवर सिंह ने ही कहा था कि CIA ने यूपीए शासनकाल में अच्छा दबदबा बना कर रखा हुआ था।

विदेशी महिलाएँ और नेहरू-गाँधी परिवार: उठते रहते हैं देशहित से समझौते के सवाल

विदेशी महिलाएँ किस तरह कहीं दखल देकर काम बिगाड़ सकती हैं, इसका उदाहरण हम भारत में देख सकते हैं। 14 अप्रैल, 1975 में सिक्किम की 97.55% जनता ने मिल कर इसे भारतीय गणराज्य का हिस्सा बनाने के लिए वोट दिया। उस समय चोग्याल वंश का सिक्किम पर शासन था और चीन हिमालय पर बसे इस राज्य को हथियाने की फ़िराक़ में था। पाल्डेन थोंडुप नामग्याल तब सिक्किम का राजा था। वो गंगटोक स्थित महल में ही भारतीय सेना से घिरा हुआ था। उसकी पत्नी तब 2 बच्चों के साथ न्यूयॉर्क में रहती थी।

51 वर्षीय नामग्याल की पत्नी होप कुक अमेरिकन थी और और उन्होंने उस वक़्त इस मतसंग्रह को अवैध और असंवैधानिक करार दिया था। नामग्याल सिक्किम को भारत से लगातार दूर कर रहा था और अपनी अमेरिकन पत्नी के कहने अनुसार भारत के लिए लगातार समस्याएँ खड़ा कर रहा था। क्या इसकी कोई गारंटी है कि लॉर्ड माउंटबेटन या फिर राहुल गाँधी की जिन लड़कियों के साथ तस्वीरें अक्सर वायरल होती रहती हैं, उन्हें किसी खास मकसद के लिए नहीं भेजा गया हो?

राहुल गाँधी को भी अपना निजी जीवन जीने का पूरा अधिकार है देश के बाकी नागरिकों की तरह, लेकिन जहाँ सवाल उठते हैं वहाँ जवाब भी दिया जाना चाहिए। जवाब सुमनिमा उदास के भारत विरोधी रवैयों को लेकर दिया जाना चाहिए। भारत विरोधी चीनी राजदूत के साथ उनकी नजदीकी पर दिया जाना चाहिए। खासकर तब, जब उनके विदेश दौरे अक्सर गुप्त रहते हैं और कोई भी बात खुलने पर कॉन्ग्रेस के प्रवक्तागण उनका बचाव करने के लिए मीडिया में बैठे रहते हैं।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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