Friday, November 22, 2024
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औरंगजेब मंदिर विध्वंस का चैंपियन, जमीन आज भी देवता के नाम: सुप्रीम कोर्ट को बताया क्यों ज्ञानवापी हिंदुओं का, कैसे लागू नहीं होता वर्शिप एक्ट

30 दिसंबर 1810 को वाराणसी के तत्कालीन जिलाधिकारी वॉटसन ने अध्यक्ष परिषद को एक पत्र भेजकर ज्ञानवापी क्षेत्र को हमेशा के लिए हिंदुओं को सौंपने का सुझाव दिया था।

उत्तर प्रदेश के वाराणसी (Varanasi, Uttar Pradesh) में ज्ञानवापी विवादित ढाँचे (Gyanvapi Controversial Structure) में वीडियोग्राफिक सर्वे के बाद सामने आए साक्ष्यों के बाद हिंदू पक्ष ने अपना दावा और मजबूती से पेश करना शुरू कर दिया है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जवाबी याचिका दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि मुगल आक्रांता औरंगजेब (Aurangzeb) ने फरमान जारी कर भगवान आदि विश्वेश्वर के मंदिर को गिराने का आदेश दिया था।

इस जवाबी याचिका में कहा गया है कि मुगल आक्रांता औरंगजेब मंदिरों का विध्वंस करने में चैंपियन था और उसके आदेश पर काशी और मथुरा सहित देश के मंदिरों का विध्वंस किया गया। इसके साथ ही इसमें यह भी कहा गया है कि मंदिर के हिस्से को ध्वस्त तो कर दिया गया था और उसी क्षेत्र में ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण भी किया गया, लेकिन वे हिंदू धार्मिक प्रतीकों और देवताओं की मूर्तियों को बदलने में विफल रहे। इसलिए देवी श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश और अन्य देवता आज भी परिसर में मौजूद हैं।

याचिका में कहा गया है कि औरंगजेब ने अपने फरमान में और मुगल इतिहासकारों के रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि औरंगजेब या उसके बाद के शासकों ने विवादित भूमि पर वक्फ बनाने या किसी मुस्लिम या मुस्लिम निकाय को जमीन सौंपने का आदेश दिया था। हिंदू पक्ष की ओर कोर्ट में शामिल अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने याचिका में अदालत को बताया कि फरमान की कॉपी कोलकाता के एशियाटिक लाइब्रेरी रखे होनी की जानकारी मिली है।

याचिका में कहा गया है कि इतिहासकार इस बात की पुष्टि करते हैं कि इस्लामी शासक औरंगजेब ने 9 अप्रैल 1669 को एक आदेश जारी किया था, जिसमें उसके प्रशासन को वाराणसी में स्थित भगवान आदि विश्वेश्वर के मंदिर को ध्वस्त करने का निर्देश दिया गया था। आदि विश्वेश्वर के मंदिर पर 1193 ईस्वी से 1669 ईस्वी तक हमला किया गया, लूटा गया और ध्वस्त किया गया।

हिंदू पक्ष ने कहा कि मस्जिद सिर्फ वक्फ की भूमि पर बनाई जा सकती है। इस मामले में मंदिर की भूमि और संपत्ति अनादि काल से देवता की है। तर्क दिया गया कि किसी मुस्लिम शासक या किसी मुस्लिम के आदेश के तहत मंदिर की भूमि पर किए गए निर्माण को मस्जिद नहीं माना जा सकता है।

याचिका में कहा गया है कि काशी में आदि विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग ‘स्वयंभू देवता’ हैं और यह ‘तपोभूमि’ भारतवर्ष के विभिन्न हिस्सों में स्थापित 12 ज्योतिर्लिंगों में से सबसे प्राचीन है। हिंदू पौराणिक कथाओं के तहत ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व है और इसका वर्णन वेदों, पुराणों, उपनिषदों और अन्य शास्त्रों में किया गया है।

याचिका में यह भी कहा गया है कि ज्ञानवापी विवादित ढाँचे पर पूजास्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 लागू नहीं होता, क्योंकि वहाँ की संरचना के धार्मिक चरित्र को बदलने को लेकर कोई सवाल ही नहीं है। वहाँ अभी भी भगवान की पूजा होती है और श्रद्धालुओं द्वारा पंचकोशी परिक्रमा किया जाता है। याचिका में कहा गया है कि हिंदू कानून भी कहता है कि देवता की भूमि हमेशा देवता के नाम पर रहती है। विदेशी शासन आने के बाद भी देवता का अधिकार खत्म

याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम पक्ष भी इस बात को मानते हैं कि 30 दिसंबर 1810 को तत्कालीन जिलाधिकारी वॉटसन ने अध्यक्ष परिषद को एक पत्र भेजकर ज्ञानवापी क्षेत्र को हमेशा के लिए हिंदुओं को सौंपने का सुझाव दिया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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