Friday, November 15, 2024
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दिल्ली दंगों में कट्टर मुस्लिम भीड़ ने जिन विनोद कुमार को मार डाला, उन्हें कोर्ट की सुनवाई भी नसीब नहीं: आर्थिक तंगी में 2 छोटे बच्चे

कई मुस्लिम भी उनके पास डीजे के लिए आते हैं। हालाँकि, नितिन मुस्लिमों को डीजे नहीं देते, न ही उनके इलाकों में डीजे लगाते हैं। उन्होंने कहा कि कमाने वाले वो घर में अकेले ही हैं और उन्हें अपनी जान का डर रहता है, ऐसे में मुस्लिमों को डीजे देना उनके लिए खतरे से खाली नहीं है।

फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों को आप भूले नहीं होंगे, जब हिन्दुओं को चुन-चुन कर मारा गया था। कट्टर मुस्लिमों की भीड़ हथियारों के साथ सड़क पर थी। तब AAP का पार्षद रहा ताहिर हुसैन दंगाइयों का नेतृत्व कर रहा था। उसने अपने घर को दंगाइयों के लिए लॉन्चिंग पैड बना दिया था। JNU वाले उमर खालिद जैसों ने CAA-NRC के नाम पर हिन्दू घृणा फैलाई। इन दंगों में मरने वालों में एक विनोद कुमार भी थे।

विनोद कुमार की जब हत्या की गई, उस समय उनके बेटे नितिन उर्फ़ मोनू भी उनके साथ थे। पिता की बेरहमी से हुई हत्या के बाद परिवार चलाने की पूरी जिम्मेदारी अब नितिन के कंधों पर आ टिकी है। 3 साल बीतने के बावजूद ये घाव अब तक भरा नहीं है। परिवार को खासा दुःख होता है, जब उन्हें पता चलता है कि फलाँ आरोपित जमानत पर छूट गया है। परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है। उनका एक बेटा 7 साल का है, तो दूसरा 2 साल का।

ऑपइंडिया ने परिवार की स्थिति को समझने के लिए दिवंगत विनोद कुमार के बेटे मोनू से बातचीत की। उन्होंने बताया कि उनका डीजे वाला काम पहले जैसा ही चल रहा है, सब कुछ लगभग सामान्य ही है। हालाँकि, उन्होंने कहा कि महीने में इस काम से 5-7 हजार रुपए से ज़्यादा नहीं निकल पाते हैं। नितिन के घर में आय का कोई और स्रोत नहीं है। उन्होंने बताया कि उनके पिता जब ज़िंदा थे तो इनकम को लेकर उतनी दिक्कत नहीं थी, लेकिन अब सारी जिम्मेदारियाँ उन पर आन पड़ी हैं।

नितिन का बड़ा बेटा पहली कक्षा में पढ़ता है। छोटे बेटे की पढ़ाई-लिखाई अभी घर पर ही चल रही है। घर में 4 लोग हैं, जो नितिन पर निर्भर हैं। नितिन ने ये भी बताया कि अदालत में उनके पिता के हत्याकांड से संबंधित सुनवाइयों में भी उन्हें नहीं बुलाया जाता है। उन्हें कहा जाता है कि हम कॉल करेंगे और आप उस दिन कोर्ट आना, लेकिन फिर किसी का फोन कॉल उन्हें आता ही नहीं। पिछले 3 वर्षों में वो एक भी सुनवाई में अदालत नहीं गए हैं।

उन्होंने बताया कि शुरुआत में थाने में उन्हें बुलाया गया था और कुछ पुलिस वाले घर पर भी आए थे, लेकिन पिछले 1 साल से कोई नहीं आया। उन्हें ये तक नहीं पता है कि उनके पिता के हत्यारों में से कितने लोग जमानत पर बाहर हैं और कितने लोग जेल में। कोरोना के दौरान पुलिस ने उन्हें आरोपितों की गिरफ़्तारी की बात बताई थी। नितिन को एक आरोपित की जमानत की सूचना है। नितिन के परिवार को उस कांड के बाद से धमकी वगैरह तो नहीं मिली, लेकिन वो कहते हैं कि अभी भी डर बना हुआ है।

दिवंगत विनोद कुमार के बेटे ने कहा कि उनका डीजे का कारोबार होने के कारण स्थानीय स्तर कई लोग उन्हें जानते हैं और मुस्लिमों की जनसंख्या वहाँ ज्यादा है। कई मुस्लिम भी उनके पास डीजे के लिए आते हैं। हालाँकि, नितिन मुस्लिमों को डीजे नहीं देते, न ही उनके इलाकों में डीजे लगाते हैं। उन्होंने कहा कि कमाने वाले वो घर में अकेले ही हैं और उन्हें अपनी जान का डर रहता है, ऐसे में मुस्लिमों को डीजे देना उनके लिए खतरे से खाली नहीं है।

दिल्ली के ब्रह्मपुरी में विनोद कुमार की मुस्लिम भीड़ ने पीट-पीट कर की थी हत्या

जब उनके पिता की हत्या हुई थी, तब नितिन को भी 5 दिन अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती रहना पड़ा था। चूँकि उनके सिर में जख्म आए थे, इसीलिए कई टाँके लगे थे। नितिन इस चीज के लिए ईश्वर का धन्यवाद करते हैं कि घर में किसी की तबीयत ख़राब नहीं हुई और अस्पतालों के चक्कर नहीं लगाने पड़े। पिछले 1 साल से कोई नेता-अधिकारी उन्हें पूछने तक नहीं आया। मृत्यु के बाद जो मुआवजा मिला, उसके बाद से रक रुपया भी नहीं मिला।

नितिन ने सरकार से माँग की है कि उन्हें पैसे नहीं चाहिए, बल्कि अपने लिए नौकरी चाहिए और बच्चों की शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था की जाए। उन्होंने बताया कि एक फॉर्म उनसे भरवाया गया था, लेकिन उसके बाद कोई पैसे नहीं मिले। MCD चुनाव के दौरान भी किसी भी पार्टी का नेता उन्हें पूछने तक नहीं आया। नितिन को अपने बच्चों के अच्छे स्कूल में एडमिशन की चिंता है। उन्होंने बताया कि उनके पिता की हत्या करने वालों में अधिकतर ऐसे मुस्लिम थे जो बाहर से आए थे।

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भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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