Monday, November 25, 2024
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जिन्होंने रखी राम मंदिर की पहली ईंट, उनसे जानिए कैसे बदला मिथिला के मुस्लिमों का ‘कैरेक्टर’: क्यों बात दरभंगा में शव के साथ अमानवीयता तक पहुँची

"आज आप देखिए मुस्लिम मैथिली नहीं बोलते हैं। कुछ दशक पहले तक उनकी बोली हमारी तरह थी। हमारी तरह वे कपड़े पहनते थे। आज उनका बच्चा पैदा होते ही टखने से ऊपर उठे पायजामे और सिर पर टोपी डाले दिखने लगता है।"

बिहार के कमतौल थाना क्षेत्र के धर्मपुर गाँव में बुजुर्ग श्रीकांत पासवान के शव के साथ अमानवीयता ने पहले लोगों को चौंकाया। फिर मोहर्रम से पहले दरभंगा जिले में 27 जुलाई से 30 जुलाई 2023 की शाम तक सोशल साइट्स की सेवाओं पर लगी पाबंदी ने। सोशल मीडिया में लोग बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बिहार पुलिस से इसका कारण पूछ रहे हैं। लेकिन जवाब मिल नहीं रहे। विश्व हिंदू परिषद (दक्षिण बिहार) के प्रांतीय अध्यक्ष कामेश्वर चौपाल (Kameshwar Choupal) के अनुसार यह स्थिति ‘तुष्टिकरण’ से बिहार खासकर मिथिला क्षेत्र के मुस्लिमों के कैरेक्टर में आए बदलाव और जाति में बँटे हिंदुओं की कमजोरी के कारण आई है। वे कहते हैं,

जो स्थिति है उसमें एक दिन कश्मीर की तरह मिथिला जलते हुआ अंगारे पर खड़ा मिलेगा।

बिहार विधान परिषद के सदस्य रह चुके चौपाल श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य भी हैं। उन्होंने ही अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के नींव की पहली ईंट 9 नवंबर 1989 को रखी थी। ऑपइंडिया से बातचीत में उन्होंने कहा, “यह अचानक नहीं हुआ है। यह स्थिति पिछले कुछ दिनों में दरभंगा में हुई घटनाओं के कारण भी नहीं है। यह उस सेकुलर राजनीति का नतीजा है जो मुस्लिमों को पोषित होने के लिए खाद-पानी देने और हिंदुओं को जाति में बाँटकर कमजोर करने का काम करती है।”

मिथिला की डेमोग्राफी भी बदली, मुस्लिमों का कैरेक्टर भी

चौपाल के अनुसार बिहार के मिथिला क्षेत्र में न केवल डेमाग्राफी तेजी से बदल रही है, बल्कि मुस्लिमों का कैरेक्टर भी बदला है। गाँव-गाँव में धर्मांतरण हो रहा है। यह है कॉन्ग्रेस की पुरानी प्लानिंग का नतीजा। अपनी बात आगे बढ़ाते हुए वे कहते हैं, “80 के दशक में जब मैथिली को संविधान की अष्टम अनुसू​ची में शामिल करवाने का संघर्ष चल रहा था, तब अचानक से एक कॉन्ग्रेसी मुख्यमंत्री (डॉ. जगन्नाथ मिश्रा) ने उर्दू को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दे दिया। त्रि भाषा सूत्र से संस्कृत को बाहर कर उर्दू को शामिल कर दिया। मि​थिला के नौ जिलों को मुस्लिम प्रभावी बताकर इसकी शुरुआत की गई। नतीजा जिस स्कूल में दो भी उर्दू पढ़ने वाले बच्चे थे, उर्दू शिक्षक की बहाली हुई। लेकिन मैथिली की स्कूलों में पढ़ाई की कोई व्यवस्था नहीं थी। इस तुष्टिकरण ने एक तरफ मैथिल हिंदुओं को अपनी भाषा से काट दिया, दूसरी तरफ गैर मैथिली भाषी मुस्लिमों का बीज बो दिया।” वे कहते हैं,

आज आप देखिए मुस्लिम मैथिली नहीं बोलते हैं। कुछ दशक पहले तक उनकी बोली हमारी तरह थी। हमारी तरह वे कपड़े पहनते थे। आज उनका बच्चा पैदा होते ही टखने से ऊपर उठे पायजामे और सिर पर टोपी डाले दिखने लगता है।

तुष्टिकरण का चरम- MY समीकरण

चौपाल के अनुसार जो बीजारोपण कॉन्ग्रेस ने किया उसे लालू प्रसाद यादव ने खुलमखुल्ला MY (मुस्लिम+यादव) से फलने-फूलने दिया। यह राजनीतिक समीकरण तुष्टिकरण का चरम था। जब नीतीश कुमार आए तो उन्होंने भी जोड़ने का नहीं, तोड़ने का काम किया। उन्होंने देखा कि यादव जातीय तौर पर प्रबल है और उसके साथ मुस्लिम खड़ा है तो अपना राजनीतिक वर्चस्च स्थापित करने के लिए हिंदुओं की पिछड़ी, ​अति पिछड़ी जातियों को तोड़ने का काम किया। महादलित का झुनझुना उसकी ही उपज है। इन दोनों ने एक तरफ हिंदुओं के भीतर जाति विद्वेष भरा। जातीय आधार पर राजनीतिक गोलबंदी को हवा दी। दूसरी तरफ मुस्लिम तुष्टिकरण करते रहे। इस तुष्टिकरण की वजह से बिहार में तबलीगी जमात का असर बढ़ता गया। मुस्लिमों में कट्टरपंथ बढ़ता गया।

तबलीगी जमात ने सोच बदली, घुसपैठियों ने डेमोग्राफी

कामेश्वर चौपाल के अनुसार तबलीगी जमात और इस्लामिक मुल्कों से आए पैसों से मुस्लिमों की सोच बदली गई तो रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों ने डेमोग्राफी चेंज करने में भूमिका निभाई। आज कोसी से पूरब और पश्चिम का जो भाग है, उनमें किशनगंज में करीब 78, कटिहार में 65, पूर्णिया में 50 और मधुबनी-दरभंगा में 32 परसेंट मुस्लिम हैं। यह 2011 की जनसंख्या के आँकड़े हैं। यदि उसके बाद उनकी आबादी में हुए इजाफे को जोड़ दीजिए तो मिथिला क्षेत्र में मुस्लिमों की आबादी अब करीब 39 प्रतिशत होगी। आबादी में बहुत कम फासला रहने पर यह हाल है। जैसे ही उनकी आबादी बढ़ी तो मिथिला की हालत कश्मीर जैसी हो जाएगी। चौपाल के मुताबिक खुद को धर्मनिरपेक्ष कहने वाली पार्टियाँ इसकी जमीन तैयार कर रही हैं। असल में ये पार्टियाँ इस्लामी कट्टरपंथ के लिए स्लीपर सेल का काम कर रही हैं।

इस्लामी कट्टरपंथियों के लिए मिथिला आसान टारगेट क्यों

चौपाल के अनुसार मिथिला इस्लामी कट्टरपंथियों को आसान टारगेट इसलिए भी लगता है कि स्वतंत्रता के बाद से जाति का टैबलेट इस इलाके में काफी कारगर रहा है। वे कहते हैं, “पंडित को जगन्नाथ/ललित मिश्र ने खिलाया, यादव को लालू ने खिलाया, कुर्मी को नीतीश ने। आज कोई (मुकेश सहनी) मल्लाह को टैबलेट खिला रहा है तो वे पागल हो रहे हैं। इस टैबलेट का सब खुलमखुल्ला उपयोग कर रहे हैं। इस जाति के पॉलिटिक्स ने हिंदुओं को कमजोर कर दिया है। इसलिए मिथिला में अब कोई हिंदू नहीं दिखता। जिनको मुस्लिम का भय है, वही हिंदू है। बाकी अपनी जातीय पहचान के साथ जी रहे हैं। दूसरी तरफ 72 फिरके होने के बावजूद कोई मुस्लिम जातीय पहचान के साथ नहीं जी रहा। वो एक ही बात कहेगा हम मियां हैं।”

अल्पसंख्यक संस्थानों ने तैयार किया आर्थिक आधार

मुस्लिमों के कैरेक्टर में बदलाव की एक बड़ी वजह चौपाल कॉन्ग्रेस के उस ‘कुकृत्य’ को भी बताते हैं, जिसने अल्पसंख्यकों के नाम पर मुस्लिमों को सुविधा से इतर ऐसी संवैधानिक व्यवस्था भी दी जिससे अल्पसंख्यक संस्थान के लिए ग्रांट का जुगाड़ हो सके। वे कहते हैं, “आप अपने किसी भी संस्थान में हिंदू धर्म-संस्कृति के बारे में नहीं पढ़ा सकते। लेकिन वहाँ कलमा और बाइबिल से ही पढ़ाई शुरू होती है। उनका काम है केवल संस्थान खड़ा कर देना। उनका संपोषण करना सरकार का संवैधानिक दायित्व है। इसके कारण इतने अल्पसंख्यक संस्थान खुले, जिससे उनका एक आर्थिक आधार तैयार हो गया है। मिथिला के ही इलाकों में आज देखिए अल्पसंख्यक के नाम पर कितने मेडिकल, डेंटल और टीचर ट्रेनिंग कॉलेज खुले हुए हैं। ये सारे संस्थान पैसा उगाही का केंद्र हैं।”

चौपाल की माने तो अल्पसंख्यक संस्थानों के नाम पर हो रही उगाही हो या इस्लामिक मुल्कों से आ रहा पेट्रो पैसा हो, घुसपैठिए हों या गाँव-गाँव हो रहा धर्मांतरण, इन सबका ही असर है कि हिंदुओं के धार्मिक आयोजनों पर पत्थर फेंकते-फेंकते बात अब शव के साथ अमानवीयता तक पहुँच गई है। उनके मजहबी जुलूसों से पहले नेटबंदी हो रही है।

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अजीत झा
अजीत झा
देसिल बयना सब जन मिट्ठा

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