देश-समाज
माघी अमावस्या पर मौन साधना का महत्व, कुम्भ का दूसरा शाही स्नान
आप प्रयागराज कुम्भ में हैं तो बहुत अच्छा, नहीं तो कहीं भी गंगा स्नान कर इस दिन के माहात्म्य का स्वतः अनुभव करें। हो सके तो मौन रहें और ख़ुद अनुभव करें कि क्यों मौन को नाद से भी प्रभावशाली माना गया है।
देश-समाज
बजट 2019: ग़रीब, अति पिछड़े, घुमंतू, अर्ध-घुमंतू जातियों के लिए भी खुले विकास के द्वार
सबसे पहले रेनके आयोग और आईडेट आयोग ने इन समुदायों की पहचान का काम किया और इन समुदायों की सूची बनाई है।
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न्यूनतम आमदनी योजना: क्या मोदी सरकार बजट में लेगी यह रिस्क?
हो सकता है कि मोदी सरकार भी इस बजट सत्र में यूनिवर्सल बेसिक इनकम से जुड़ा कोई बड़ा ऐलान कर दे। माहौल भाँपते हुए राहुल गाँधी भी एक रैली में बेसिक इनकम से जुड़ी योजना की घोषणा को हवा दे चुके हैं।
देश-समाज
यूनिवर्सल बेसिक इनकम: क्या हैं इसके मायने, क्या कहीं पर लागू हुआ है? जानिए सब कुछ
अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के वंचित परिवारों में यह देखा गया कि बेहतर वित्तीय स्थिति में उन्होंने राशन की दुकानों की बजाय बाज़ार से सामान ख़रीद अपने पोषण स्तर में सुधार किया और स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति और प्रदर्शन दोनों बेहतर हुई।
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क्या गाँधी की हत्या को रोका जा सकता था? कौन से लूपहोल्स थे? क्यों हो गए थे अपने ही लोग लापरवाह?
26 जनवरी 1948 की रात को थाने स्टेशन पर नाथूराम, आप्टे और करकरे मिले, जहाँ गोडसे ने पाहवा द्वारा उनके नाम उजागर कर देने की बात भी कही। उसके विचार में अब 9-10 के ग्रुप में चलने की मूल योजना ग़लत थी। अतः गोडसे अब बार-बार कहने लगा कि गाँधी की हत्या वही करेगा।
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PM मोदी के कार्यकाल में चौचक है भारत की वैश्विक चमक, 3 ग्लोबल रिपोर्ट के आँकड़ों ने लगाई मुहर
वैश्विक अर्थव्यवस्था निगरानी (ग्लोबल इकोनॉमी वॉच) रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि इस वर्ष (2019 में) ब्रिटेन की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर 1.6%, फ्रांस की 1.7% जबकि भारत की 7.6% रहने की सम्भावना है।
धर्म और संस्कृति
कुम्भ 2019: ख़ास आकर्षण, जो जीवन भर नहीं भूलेंगे आप!
'पेशवाई' प्रवेशाई का देशज़ शब्द है, जिसका अर्थ है शोभायात्रा, जो विश्व भर से आने वाले लोगों का स्वागत कर कुम्भ मेले के आयोजन को विश्व पटल पर सूचित करने के उद्देश्य से निकाली जाती है
देश-समाज
जानिए कुम्भ को: शंकराचार्य ने संगठित किया, सम्राट हर्षवर्धन ने प्रचारित
कुम्भ मेला का मूल को 8वीं सदी के महान दार्शनिक शंकर से जुड़ती है। जिन्होंने वाद विवाद एवं विवेचना हेतु विद्वान सन्यासीगण की नियमित सभा परम्परा की शुरुआत की थी।