Wednesday, November 20, 2024
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शामली: मोमोज़-विवाद में नामजद लोगों के घर लगे ‘पलायन’ के बोर्ड, पुलिस ने कहा स्टंट

शामली में कुछ दिन पहले मोमोज़ खाने को लेकर हुए दो समुदायों के विवाद के नामजदों की जब पुलिस ने धरपकड़ शुरू की तो समुदाय विशेष के बहुत से लोगों के घर ‘पलायन’, ‘मकान बिकाऊ है’ आदि लिखा जाने लगा है। जहाँ मीडिया इसे ‘डरा हुआ मजहब’ के अपने नैरेटिव के लिए ‘कच्चा माल’ मान रहा है, वहीं पुलिस ने इसे महज़ स्टंट और पुलिस पर दबाव बनाने का हथकंडा करार दिया है।

मोमोज़ खाने को लेकर हुई मारपीट, पुलिस पर हमला

मोमोज़ खाने को लेकर उत्तर प्रदेश के शामली में अजुध्या चौक बाजार में गुरुवार (जून 6, 2019) को 3 युवकों ने मोमोज़ खाने को लेकर बजरंग दल के 2 कार्यकर्ताओं पर हमला किया। हमले में दोनों कार्यकर्ता घायल हो गए। आरोपितों में से एक को पुलिस ने गिरफ्तार किया लेकिन मजहबी भीड़ ने इकट्ठा होकर पुलिस से हाथापाई शुरू कर दी और अपने साथी को भगा ले गए।

साजिद, आबिद और तौफिक नामक इन युवकों के भाग निकलने के बाद पुलिस ने 7-8 नामजदों और लगभग 25 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया। नामजदों को पकड़ने के लिए दबिश शुरू हुई, और मामले की फुटेज इकठ्ठा होने लगी ताकि अज्ञातों की शिनाख्त हो सके। इसी के बाद ‘पलायन’, ‘मकान बिकाऊ है’ आदि लोगों के घरों के बाहर लिखा मिलने लगा।

पत्रकारिता के समुदाय विशेष का दोगलापन

वहीं दूसरी ओर पत्रकारिता के समुदाय विशेष ने इस मामले को भी ‘डरा हुआ मजहबी’ के अपने नैरेटिव में बुनते हुए हिन्दुओं के माथे ही मढ़ना शुरू कर दिया है। नवभारत टाइम्स (गाज़ियाबाद संस्करण, 29 जून) को लिखता है:

वहीं जब स्थानीय पुलिस अधिकारी से इस बाबत मीडिया ने बात की तो उन्होंने दो-टूक बताया कि पुलिस को दबाव में लेने, प्रशासन का ध्यान भटकाने और खुद को हिंसा करने के बाद पीड़ित दिखाए जाने की कोशिश हो रही है, और इसी के अंतर्गत पलायन और मकान बेचने का नाटक किया जा रहा है।

पहले भी हो चुका है

ऐसा पहले भी हो चुका है कि सामान्य घटनाओं में शामिल संदिग्धों के बचाव और/या फिर हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए मामलों को बेवजह साम्प्रदायिक रूप दे दिया जाता है। लगभग साढ़े तीन साल पहले मणिपुर में यही हुआ था जब एक अध्यापक मोहम्मद हसमद अली की ज़मीन विवाद में हुई हत्या को मीडिया गिरोह ने गौरक्षकों का कृत्य दिखाने की कोशिश की थी। लेकिन उनका भांडा फोड़ते हुए खुद अली के बेटे ने अपने रिश्तेदार पर आरोप लगाया था

कुख्यात ट्रोल ध्रुव राठी ने उड़ाया भारतीय क्रिकेट टीम का मजाक, नाराज प्रशंसकों ने दिखा दी औकात

आईसीसी ने एक जैसे रंग वाली जर्सी पहनने वाली टीमों को अलग कलर वाली जर्सी पहनने के लिए कहा है, ताकि मैच के दौरान सभी खिलाड़ी एक जैसे न दिखें। आईसीसी ने भारत की जर्सी का रंग भी बदलने को कहा और कलर चुनने के लिए बीसीसीआई को छूट दी। बीसीसीआई ने फाइनली केसरिया रंग की जर्सी का चयन किया है। अब इस रविवार, यानी 30 जून को होने वाले मैच में भारत इंग्‍लैंड के खिलाफ अपनी नियमित नीली जर्सी की जगह केसरिया जर्सी पहनकर उतरेगा। लेकिन कुछ लोगों को इस रंग से भी आपत्ति हुई है और उनमें से ही एक नाम झूठे आँकड़ों की मदद से सरकार विरोधी प्रोपेगैंडा चलाने वाले ध्रुव राठी का भी है।

इंटरनेट पर बैठकर भ्रामक तथ्य बताकर लोगों को गुमराह करने वाले ध्रुव राठी को भारतीय क्रिकेट टीम की जर्सी का केसरिया (भगवा) रंग शायद पसंद नहीं आया और उन्होंने अपने जहर को ट्विटर पर उढ़ेल ही दिया। ध्रुव राठी ने नई जर्सी पहने हुए इंडियन क्रिकेट टीम के खिलाडियों को ट्वीट करते हुए लिखा, “ये तो पेट्रोल पम्प वालों की तरह दिख रहे हैं।” लेकिन भगवा रंग से उनकी यह नफरत ट्विटर यूज़र्स को ख़ास पसंद नहीं आई और उन्होंने तुरंत ध्रुव राठी को याद दिलाया कि उसका खुद का स्तर पेट्रोल पम्प वालों के आसपास भी नहीं ठहरती है और इस वजह से उसे उनका मजाक बनाने का अधिकार नहीं है।

हैरानी की बात यह है कि क्रिकेट टीम में इस नए रंग से आपत्ति सिर्फ ध्रुव राठी को ही नहीं है, बल्कि जर्सी में भगवा तलाश लेने वाले लगभग हर दूसरे व्यक्ति को है। मजाक बनाने वाले लोगों में से अधिकांश पाकिस्तान के नागरिक हैं, लेकिन वो कम से कम ध्रुव राठी की तरह इस देश का अनाज तो नहीं खाते हैं। खेल में भी अपनी विषैली मानसिकता का परिचय देकर इन लोगों ने कम से कम यह तो साबित कर दिया है कि इनकी नफरत का कारोबार अब इनकी नसों में बहने लगा है।

ध्रुव राठी की इस घटिया हरकत पर ट्विटर यूज़र्स ने भी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उसे जमकर लताड़ लगाई। साथ ही, ध्रुव राठी को यह याद दिलाया कि पेट्रोल पम्प पर काम करने वाले व्यक्तियों की भी अन्य लोगों के ही समान इज्जत होती है।

हालाँकि, कुछ क्रिकेट प्रेमी ध्रुव राठी की आलोचना करने में भावनाओं में बहकर कुछ ऐसी टिप्पणी भी कर बैठे जिनसे हमें बचना चाहिए। हमें प्रतिक्रिया व्यक्त करते समय अपनी भाषा का ध्यान रखना चाहिए।

सलीके से हुई आलोचना से जलील होकर ध्रुव राठी ने सफाई देने का प्रयास करते हुए कहा कि वो सिर्फ मजाक कर रहा था।

यह देखना दुखद है कि सरकार, समुदाय और किसी विशेष राजनीतिक दल से घृणा के कारण कुछ लोग खेल तक को नहीं छोड़ रहे हैं और उसमें भी अपनी घृणा को नहीं छुपा पाते हैं। पेट्रोल पम्प पर काम करने वाले हर हाल में राजनीतिक दलों से रिश्वत लेकर यूट्यूब पर फर्जी आँकड़ों के जरिए लोगों को गुमराह करने और अफवाह फैलाने वाले ध्रुव राठी से लाख बेहतर हैं। क्योंकि वो समाज में एलिटिज्म और उन्माद फैलाने वाले षड्यंत्र रचकर उसे तोड़ने का प्रयास नहीं कर रहे होते हैं।

‘मोदी ने विज्ञापन रोका’ वाली फ़र्ज़ी खबर ‘सूत्रों के हवाले से’ फैला रहा है पत्रकारिता का समुदाय विशेष

‘सूत्रों के हवाले से’ हमेशा से पत्रकारिता में विवादास्पद विषय रहा है- एक ओर कुछ लोग इसे ज़रूरी मानते हैं ताकि सरकारों और सार्वजनिक पद पर बैठे, टैक्स के पैसे का लाभ ले रहे अधिकारियों की जवाबदेही बनी रहे, और वह किसी भी जनहित की सूचना को आधिकारिक गोपनीयता के आवरण में न दबा लें, वहीं दूसरी ओर यही वाक्यांश पत्रकारों को किसी भी जवाबदेही, सबूत की अनिवार्यता की जिम्मेदारी से मुक्त कर देता है। इसीलिए पत्रकारों को यह सिखाया जाता है कि ‘सूत्रों के हवाले से’ रिपोर्टिंग कम-से-कम और विशेष परिस्थितियों में ही हो। खासकर कि राजनीतिक बीट पर इसके इस्तेमाल के लिए पत्रकारिता के और व्यक्तियों के खुद के कई सारे नैतिक ‘फ़िल्टर’ होते हैं।

लेकिन नैतिक मानदंडों से कभी कोई लेना-देना न पत्रकार से पत्तलकार बने सिद्धार्थ वरदराजन का रहा है, न उनके ‘द वायर’ का। रॉयटर्स की जिस खबर को वायर ने कॉपी-पेस्ट मारकर ऐसा दिखाने की कोशिश की कि मोदी सरकार विज्ञापन न देकर टाइम्स ऑफ़ इंडिया ग्रुप, द हिन्दू और टेलीग्राफ़ का गला घोंटे दे रही है, वह न केवल तथ्यहीन और केवल ‘सूत्रों के हवाले से’ पर आधारित है, बल्कि अंदर की खबर खुद ही कई जगहों पर हेडलाइन का खंडन करती है। इसके अलावा यह ‘द वायर’ के पिछले प्रोपेगंडे कि टाइम्स ऑफ़ इंडिया मोदी सरकार का पिट्ठू है, के भी विपरीत दिशा में है।

किसने कहा? कब कहा? सबूत कहाँ है?

सबसे पहले तो यह खबर किस आधार पर है? केवल ‘गुप्त सूत्रों’ से बातचीत के आधार पर। ऐसे कैसे ‘गुप्त सूत्र’ हैं जो इतने बड़े तो हैं कि उन पर विश्वास कर लिया जाए, लेकिन वे न केवल खुद सामने नहीं आ सकते बल्कि कोई ऐसा दस्तावेज भी नहीं दे सकते जिससे उनकी बात सही होने का सबूत मिल जाए? विनीत जैन (टाइम्स ऑफ़ इंडिया), राजगोपाल (टेलिग्राफ) या एन राम (हिन्दू) सब अधिकारियों के whatsapp और फेसबुक चेक करते हैं क्या?

इसके अलावा वायर/रॉयटर्स का यह भी दावा है कि इन तीनों समाचारपत्रों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (सीईओ) ने रॉयटर्स के इस बाबत ईमेल का जवाब नहीं दिया है। भला ऐसा वह क्यों करेंगे, जब तक कि खबर फ़र्ज़ी न हो? अगर उनका काम-धंधा सरकार के इस कदम से पहले से ही चौपट है, तो वह भला ईमेल का जवाब क्यों नहीं देंगे? कायदे से तो उन्हें ईमेल का जवाब देकर अपना मुद्दा उठा रहे अन्य क्रांतिकारी पत्रकारों की सहायता करनी चाहिए।

15% का क्या चक्कर है?

खबर की हैडलाइन के मुताबिक तो मोदी सरकार ने तीनों अख़बारों में विज्ञापन एकदम रोक दिए हैं। पढ़कर कोई भी विवेकशील इंसान नाराज हो जाए। यही बात खबर के पहले वाक्य में भी कही गई है। लेकिन और अंदर जाकर पता चलता है कि नहीं, नहीं, बंद केवल पूरी तरह टाइम्स ऑफ़ इंडिया का विज्ञापन हुआ है, बाकी टेलीग्राफ़ और द हिन्दू का केवल कम हुआ है।

उसमें भी ‘दिलचस्प’ बात यह है कि जहाँ टाइम्स ग्रुप की कुल विज्ञापन आय का 15% केंद्र के सरकारी विज्ञापन से है (जो कि कथित तौर पर बंद हो गई है), वहीं टेलीग्राफ़ ने इसी आँकड़े (15%) बराबर कमी केंद्र सरकार से मिलने वाले विज्ञापन में दर्ज की है। यह एक संयोग है, या पूरा आँकड़ा फ़र्ज़ी है, और एक ही संख्या को बार-बार दिखाकर ‘इम्पैक्ट’ बनाने की कोशिश हो रही है? द हिन्दू का तो कोई आँकड़ा भी नहीं है कि बंद हुआ है विज्ञापन, या फिर केवल कमी हुई है। बस एक दावा है- मोदी सरकार हमारे राफेल ‘कवरेज’ (जिसे ऑपइंडिया ने महज़ फोटोशॉप साबित किया था) से नाराज़ होकर विज्ञापन रोक दिए हैं।

कोबरापोस्ट भूल गए?

रॉयटर्स ने यह लेख लिखा तो लिखा, लेकिन इसे चेपने से पहले वायर वालों को अपनी आर्काइव तो देख लेनी चाहिए थी। अभी खाली साल भर पहले कोबरापोस्ट के एक तथाकथित ‘स्टिंग’ के भरोसे वायर वालों ने टाइम्स ग्रुप को मोदी का ‘पिट्ठू’ घोषित कर दिया था। और अब उसी टाइम्स ग्रुप, जो आपकी खबर के हिसाब से मोदी की जेब में था, का मोदी ने ‘जेब खर्च’ रोक दिया? ऐसे तो अभी तक खुद मोदी को अम्बानी की जेब में बताने के बाद क्या कल वायर यह भी छाप देगा कि अंबानी ने मोदी को “10 लाख का सूट” पहनने के लिए भी पैसा देना बंद कर दिया है? कम-से-कम प्रोपेगंडे में तो निरंतरता बनाए रखते!

पत्रकारिता के समुदाय विशेष, और उसमें भी खास कर कि वायर वालों, को यह समझने में और कितना समय लगेगा कि जनता उनके ‘हिट जॉब’ को पत्रकारिता और नहीं मानेगी? प्रोपेगेंडा-पर-प्रोपेगेंडा फैलाते रहना, बार-बार पकड़े जाते रहना, शर्मिंदा होना- अगर यही बिज़नेस मॉडल है तो बात दूसरी है, वरना वायर वालों को बाज आ जाना चाहिए।

14 साल के लड़के के मुँह में डाला तेज़ाब, तीन आरोपितों में से नूर गिरफ़्तार

उत्तर प्रदेश के लखनऊ में एक 14 साल के लड़के के मुँह में ज़बरदस्ती तेज़ाब डालने की ख़ौफ़नाक वारदात को अंजाम दिया गया। तेज़ाब मुँह में जाने से उसकी बोलने की क्षमता अभी के लिए ख़तम हो गई है। फ़िलहाल, नाबालिग को लखनऊ के बलरामपुर अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

दरअसल, यह दर्दनाक घटना गुरुवार (27 जून) की है, जब पीड़ित के परिजन शिक़ायत दर्ज कराने पुलिस स्टेशन पहुँचे। बुधवार (26 जून) की सुबह वो नाबालिग किसी काम के लिए सुबह घर से निकला था। लेकिन, जब वो दोपहर को घर वापस आया तो वो दर्द से तड़प रहा था। उसने चेहरे को एक कपड़े से ढका हुआ था। ऐसी गंभीर हालत में परिजन उसे तुरंत अस्पताल ले गए, जहाँ डॉक्टर्स ने बताया कि तेज़ाब की वजह से उसके चेहरे पर जलने के कई घाव हो गए हैं। डॉक्टर्स ने नाबालिग को ख़तरे से बाहर तो बता दिया, लेकिन उसकी वोकल कॉर्ड और बात करने की क्षमता को किस हद तक हानि पहुँची है, इस पर वो कुछ नहीं बता सके। 

जब यह मामला पुलिस तक पहुँचा तो पीड़ित ने इशारे से तीन बदमाशों की हरक़त के बारे में बताया कि कैसे उन्होंने उसके मुँह में ज़बरदस्ती तेज़ाब डाल दिया। काफ़ी प्रयास करने पर पीड़ित ने उनमें एक का नाम नूर बताया। फ़िलहाल वो पुलिस की हिरासत में है। पुलिस ने बताया, “हम अभी भी हमले के मक़सद को नहीं जानते हैं क्योंकि नूर इसमें शामिल होने से इनकार कर रहा है।” 

ख़बर के अनुसार, पीड़ित की माँ ने आरोप लगाया कि उनके बेटे पर यह हमला उस वक़्त हुआ जब उसने बदमाशों को नशीले पदार्थों की आपूर्ति करने से मना कर दिया था। उन्होंने दावा किया कि इस काम को करने के लिए कई अन्य युवाओं ने भी उनके बेटे पर दबाव बनाया था।

‘भगवाकरण’ से परेशान मोदी-शाह ने लिया ऐतिहासिक निर्णय: इंद्रधनुष, तिरंगे से हटाया जाएगा भगवा

विपक्ष के पास आजकल मुद्दों की इतनी कमी हो गई है कि उनका पूरा विमर्श अब ‘सेफ्रनाइजेशन’, यानी भगवाकरण, पर आ कर ठहर गया है। अब गाजर के हलवे को ‘सॉफ्ट शेड ऑफ सैफ्रन’ कहने से ले कर भारतीय क्रिकेट टीम की जर्सी तक में भाजपा और संघ का हस्तक्षेप बताने की बातें अत्यंत गंभीर और ‘डर का माहौल’ वाले चेहरे के साथ की जा रही है।

हाल ही में कॉन्ग्रेस ने, जो आजकल इस्तीफों की बारात बना कर, चूहों की तरह अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा डूबते जहाज को छोड़ने के कारण पार्टी में व्याप्त अराजकता संभालने में व्यस्त है, देश को नया विमर्श देने की कोशिश की जब उन्हें पता चला कि भारतीय क्रिकेट टीम इंग्लैंड के खिलाफ नारंगी रंग की जर्सी पहन कर खेलने उतरेगी। उसके बाद उन्होंने खूब बवाल काटा कि क्रिकेट टीम में भी अब भगवा घुस रहा है।

इनके समर्थक, जी, आज के डेट में भी कॉन्ग्रेस के समर्थक धरती पर हैं, सोशल मीडिया पर पिल पड़े कि ‘हाँ, सब कुछ सैफ्रन हो रहा है। देश को बर्बाद किया जा रहा है। ये सब नहीं चलेगा। मोदी हर चीज को भगवा बनाने के चक्कर में है।’ चूँकि, समर्थक कॉन्ग्रेस के हैं तो उनसे यह आशा करना गलत है, और शायद असंवैधानिक भी, कि वो आईसीसी के नए नियम पढ़ें, या नीली जर्सी को गौर से देखें कि उसमें देश का नाम, खिलाड़ी का नाम और उनके नंबर सहित कॉलर आदि का रंग क्या है। आम तौर पर जो कलर स्कीम होती है, उसी को उलट दिया जाता है, अगर आपको दो जर्सी रखनी हो तो।

उच्चस्तरीय बैठक में हुआ ऐतिहासिक फैसला

यह बात अब छिपी हुई नहीं है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, जो कि अब गृह मंत्री भी हैं, और नरेन्द्र मोदी, जो कि आजकल 2.0 में चल रहे हैं, उनका एकसूत्री अजेंडा देश ही नहीं कॉन्ग्रेस तक को कॉन्ग्रेस मुक्त करने का है। इसी संदर्भ में गुप्त सूत्रों के अनुसार, जो कि हमारे पास बहुतायत हैं, पता चला है कि कल शाम एक उच्चस्तरीय बैठक में भाजपा के आलाकमान ने एक निर्णय लिया है। हमारे सूत्रों ने बहुत देर तक यह नहीं बताया कि निर्णय क्या लिया गया है क्योंकि मोदी जी ने कहा कि वो खुद ही अनाउंस करेंगे, फेसबुक लाइव के जरिए।

मीटिंग में कॉन्ग्रेस समेत, तमाम विपक्ष आजकल जिस शब्द के पीछे छिप कर भाजपा पर वार करना चाहता है, उस शब्द और संदर्भ को ही गायब करने की बात हुई। इन विचारकों, उठौना लगा कर पाव भर आउटरेज हर दिन करने वाले फेसबुकिया बुद्धिजीवियों, और मोदी विरोधियों को एस साथ पटकने के लिए मोदी जी ने, इन असोसिएशन विद अमित शाह, यह फैसला लिया कि भारत से भगवा रंग को ही गायब कर दिया जाएगा।

मोदी जी ने ऑपइंडिया को दिए गए एक अप्रकाशित एवम् अप्रचारित इंटरव्यू में बताया, “जब मीटिंग चल रही थी तो मैंने बीच में ही कहा अगर भगवा रंग ही खत्म कर दिया जाए तो ये लोग किस बात पर घेरेंगे? फिर मैंने मीटिंग में मौजूद लोगों को कहा कि ये तो देशहित का सवाल है क्योंकि अगर भगवा वाला मुद्दा गायब हो जाएगा तो हो सकता है विपक्ष अपनी जिम्मेदारी भी निभाने लगे। तो राजनाथ सिंह जी ने बिना कड़ी निंदा किए कहा, ‘वाह मोदी जी वाह, एक ही दिल है कितनी बार जीतोगे।’ फिर मैंने उनको बताया कि डिफेंस से आगे आपके लिए जगह नहीं है, चिल कीजिए। आप बताइए, उन्हें चिल करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए।”

कैसे हटाया जाएगा भगवा रंग

उच्चस्तरीय बैठक में यह निर्णय लिया गया कि शुरुआत तो अजय देवगन से की जाएगी क्योंकि उन्होंने देश के हर व्यक्ति की जुबाँ केसरी करने की कसम खा रखी है। गुप्त सूत्रों ने बताया है कि अब से विमल गुटखा (सॉरी, पान मसाला -एक आँख वाली स्माइली) अपने विज्ञापनों में ‘जुबाँ हरी हरी’ कहेंगे और अजय देवगन के मुँह से हरे रंग का द्रव गिरता नजर आएगा। साथ ही, राजस्थानियों का ‘केसरिया बालम’ अब ‘हरिया बालम’ या ‘करिया बालम’ के नाम से पधारने को कहा जाएगा। ऐसी सारी ग़ज़लों को उनके गायकों की कब्रों पर बैठ कर कोक स्टुडिओ वालों से रिकॉर्ड कराया जायेगा।

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि पूरे देश में पुलिस को कहा गया है कि आने वाले दिनों में रातों-रात छापे मार कर केसरिया, भगवा, नारंगी, हल्का भगवा, बहुत हल्का भगवा, एकदम हल्का भगवा, गहरा भगवा, बहुत ज़्यादा गहरा भगवा आदि रंग बनाने वाले कारखानों से रंग जब्त कर लें। उन्हें या तो फेंक दिया जाएगा या फिर उनमें काला रंग मिला कर कोई और रंग बनाया जाएगा ताकि यह न कहा जाए कि मोदी सरकार ने गरीब फैक्ट्री वाले का काम खराब कर दिया।

आगे बताया गया कि नारंगी के फलों को पकने से पहले ही तोड़ लिया जाएगा ताकि वो बाहर से हरे और भीतर से सफेद ही दिखें और देश की सेकुलर फैब्रिक टाइट बनी रहे। नागपुर से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय शिफ्ट करके वायनाड कर दिया जाएगा और उनके झंडे का रंग गहरा हरा होगा जो देश की हरियाली और किसानों की फसलों से प्रेरित होगा। साथ ही, संघ की एक शाखा देवबंद में भी स्थापित की जाएगी।

इन्द्रधनुष देखने के लिए दिए जाएँगे इसरो प्रदत्त चश्मे

मीटिंग के दौरान किसी ने याद दिलाया कि इन्द्रधनुष के ‘बैनीआहपिनाला’ में जो ‘ना’ है, वो तो नारंगी के लिए है, उससे कैसे निजात पाई जाएगी। इस पर गिरिराज सिंह जी ने कहा कि बारिश बंद करा दी जाएगी, तो इन्द्रधनुष बनेगा ही नहीं। लोगों ने देर तक उन्हें देखा और किसी ने कुछ नहीं कहा। फिर किसी ने सुझाया कि सरकार इसरो से कह कर ऐसे चश्मे बनवाए जिसे पहनने के बाद नारंगी रंग हरे जैसा दिखे। उसके बाद पाठ्यक्रम में भी बदलाव किए जाएँगे ताकि बच्चों को पता ही न चले कि इन्द्रधुनष में छठा रंग कौन सा होता है।

तिरंगा अब होगा दोरंगा

इसी बात पर जब भाजपा का थिंकटैंक, जो आप मानें या न मानें, अस्तित्व में है, विचार करते-करते इस बात पर आया कि भारत का झंडा भी तो एक तिहाई केसरिया है, उसका क्या किया जाए! बात देशहित की थी क्योंकि विरोधियों को सिवाय सैफ्रनायजेशन के कुछ सूझ नहीं रहा था तो सुझाव दिया गया कि संविधान संशोधन के ज़रिए झंडा बदल दिया जाएगा।

किसी ने कहा कि झंडे में से केसरिया हटा दिया जाएगा तो झंडा पतला हो जाएगा, फिर सुझाव दिया गया कि नीचे के हरे रंग को ही ऊपर भी रख लिया जाएगा ताकि सिमेट्री भी बरकरार रहे। साथ ही, हरा तो वैसे भी सेकुलर कलर है, तो आसानी से राज्यसभा और लोकसभा में भी विरोधी पार्टयों के सासंदों से स्वीकृति मिल जाएगी, ऐसा माना गया।

भाजपा समर्थकों ने कहा ‘ये होती है असली राष्ट्रवादी सरकार’

भाजपा के समर्थकों ने लोकसभा चुनाव के बाद इस कदम को नोटबंदी और जीएसटी सदृश राष्ट्रवादी कदम बताते हुए खुशी की लहर का संचार फील किया और मुख्यालय के बाहर लड्डू बाँटते एवं डीजे पर नाचते दिखाई दिए। इसकी विशेष कवरेज एनडीटीवी के महान पत्रकार रवीश कुमार ने की लेकिन वो आदतानुसार बहुत ही नाखुश दिखे। हमने उनसे बिना पूछे ही अंदाजा लगा लिया कि वो इस बात से नाराज होंगे कि भाजपा नेता तो छोड़िए, भाजपा समर्थक भी उनके मुँह नहीं लगना चाहते।

देवलसारी, गढ़वाल, से पैदल चल कर नाचने आए आशीष नौटियाल नामक एक समर्थक ने मुझसे निजी बातचीत करते हुए चुपके से बताया, “देखिए अजीत जी, मोदी जी जो हैं वो एक विजनरी आदमी हैं। विजनरी का मतलब होता है दूरद्रष्टा। उन्हें पता है कि राष्ट्रीय झंडे से तो कॉन्ग्रेसियों को वैसे भी कुछ लेना-देना है नहीं, उन्होंने बस झंडे के नाम पर देश को लूटा ही है। लोगों को पागल बनाने के लिए इन्होंने पार्टी के झंडे तक में तिरंगा घुसा दिया और कालांतर में बैलों से लेकर गाय-बछड़ा तक करते रहे हैं। इसलिए अमित चाणक्य शाह ने ये मास्टरस्ट्रोक खेला है कि ये जो भगवाकरण-सैफ्रनाइजेशन चिल्लाते हैं, इनसे ये भी छीन लिया जाए।”

एक लड्डू मेरी तरफ बढ़ा कर, मेरे लेने से पहले ही खुद खाते हुए, नौटियाल जी ने बात जारी रखी, “विरोधी बस किसी भी बात से विरोध करना चाहते हैं। इसलिए, इनके बेकार वाले मुद्दों को खत्म कर दिया जाए तो क्या पता ये पानी, सड़क, बिजली जैसे मुद्दों पर बात करने लगें। इसी कारण मुझे मोदी जी बहुत प्रिय हैं।”

जल्द ही लागू हो जाएगी यह योजना

सूत्र बताते हैं कि यह योजना जल्द ही लागू की जाएगी ताकि विपक्षी पार्टियों की नौटंकी बंद हो और राष्ट्रीय मुद्दों पर बात हो सके। कपड़ों की मिलों के मालिकों को कहा गया है कि या तो रंग फेंक दें या फिर अमित शाह पर्सनली उनके रंग के हौज में काला रंग फेंक कर भाग जाएँगे। बच्चों की किताबों पर अब भगवा से मिलते जुलते रंग की जिल्द नहीं लग सकेगी और टैंग से लेकर ऑरेंज फ्लेवर के ग्लूकोन-डी टाइप के पेय पदार्थ नींबू फ्लेवर में ही आएँगे।

आगे जैसे-जैसे हमें सूचना मिलेगी, हम आप तक पहुँचाते रहेंगे।

जय हिन्द, जय भारत, जय भारती

₹50 हजार-1 लाख में बेचे गए राहुल गाँधी की प्रेस मीट के पास: कॉन्ग्रेस नेता ने लगाया गंभीर आरोप

कॉन्ग्रेस पार्टी से निलंबित नेता कराते आर त्यागराजन ने एक सनसनीखेज खुलासा किया है। त्यागराजन ने तमिलनाडु कॉन्ग्रेस कमिटी के मीडिया कोऑर्डिनेटर गोपन पर राहुल गाँधी के प्रेस मीट को 50,000 रुपए से 1,00,000 रुपए में बेचने का गंभीर आरोप लगाया है। उनका कहना है कि ऐसा कैसे हो सकता है? ये सुरक्षा व्यवस्था में बड़ी चूक है और वो इसकी शिकायत पुलिस आयुक्त से करेंगे।

त्यागराजन को पार्टी में पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री पी चिदंबरम का करीबी माना जाता था। उन्हें गुरुवार (जून 27, 2019) को पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहने के आरोप में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। पार्टी से निष्कासन पर कराते ने सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने पार्टी के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला। उन्होंने बताया कि आंतरिक बैठक में 7 लोग थे, सभी ने डीएमके के खिलाफ अपनी अस्वीकृति व्यक्त की, लेकिन केवल उन्हें बलि का बकरा बनाया गया और उनके शब्दों को मीडिया में प्रकाशित किया गया। साथ ही त्यागराजन ने ये भी आरोप लगाया कि उन्हें बिना किसी नोटिस के पार्टी से सस्पेंड कर दिया गया।

कॉन्ग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने त्यागराजन के पार्टी से निष्कासन पर कहा कि अखिल भारतीय कॉन्ग्रेस समिति ने तमिलनाडु कॉन्ग्रेस के महासचिव द्वारा त्यागराजन के खिलाफ पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने और अनुशासन भंग करने के कारण अनुशासनात्मक कार्रवाई के प्रस्ताव को मंजूरी दी। इसके आधार पर उन्हें तुरंत प्रभाव से पार्टी से निलंबित कर दिया गया। आंतरिक बैठक में कराते त्यागराजन ने प्रस्ताव दिया था कि कॉग्रेस पार्टी को अपने गठबंधन सहयोगी डीएमके के बिना आगामी स्थानीय निकाय चुनाव अपने दम पर लड़ना चाहिए।

‘सासंद नुसरत सिंदूर-मंगलसूत्र पहने तो हराम, लेकिन हिन्दू महिलाओं का बुर्का उचित कैसे’

तृणमूल कॉन्ग्रेस सांसद नुसरत जहां रूही के हिंदू से विवाह करने पर देवबंद को ऐतराज है। यह कहते हुए कि मुस्लिम लड़कियों को केवल मुस्लिम लड़कों से ही शादी करनी चाहिए, देवबंद के मौलवियों ने नवनिर्वाचित सांसद नुसरत जहां के ख़िलाफ़ फ़तवा जारी कर दिया है। 

मौलवी मुफ़्ती असद कासमी ने कहा, “जाँच के बाद, हमें पता चला कि उसने जैन धर्म में शादी की है, इस्लाम कहता है कि एक मुस्लिम केवल एक मुस्लिम से शादी कर सकता है। दूसरा, मैं यह कहना चाहता हूँ कि नुसरत जहां एक एक्टर हैं और ये सभी एक्टर धर्म की परवाह नहीं करते। वे वही करते हैं जो उन्हें करने का मन करता है। जैसा कि उन्होंने संसद में दिखा दिया।”

कासमी ने आगे कहा, “वो सिंदूर और मंगलसूत्र के साथ संसद में आईं, इसलिए इस बारे में बात करना समय की बर्बादी है। हम उनके जीवन में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। मैंने बस मीडिया की मदद से उन्हें बताया कि शरीयत क्या कहती है।”

देवबंद के इस फ़तवे के ख़िलाफ़ बीजेपी नेता साध्वी प्राची नुसरत के बचाव में आई हैं। उन्होंने मौलवी से कहा:

”अगर कोई मुस्लिम महिला हिंदू से शादी करती है और बिंदी, बिछिया, मंगलसूत्र पहनती है, तो मुस्लिम मौलवी उसे हराम कहते हैं। मुझे उनकी बुद्धि पर तरस आता है, लेकिन कई मुस्लिम पुरुष हमारी हिंदू बेटियों को लव जिहाद के नाम पर फँसाते हैं और उनसे बुर्का पहनने को कहते हैं, तो यह हराम नहीं है। यह उनके लिए उचित है।”

बीजेपी नेता की टिप्पणी पर मुस्लिम मौलवियों ने उन्हें बेलगाम करार दिया। उन्होंने कहा कि ऐसी महिलाएँ नियंत्रण (बेलागम) में नहीं रहतीं, वे देश में आग लगाने की कोशिश करती हैं। वे इस तरह के बयान से सिर्फ़ ज़हर उगलती हैं। वे इस राष्ट्र को विभाजित करना चाहती हैं। ऐसी महिलाओं को किसी भी धर्म का ज्ञान नहीं होता। साध्वी प्राची को सख़्त हिदायत देते हुए मौलवी ने कहा कि इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो प्रेम और शांति का संदेश देता है। जो कुछ नहीं जानता, उसे पहले उलेमा को पढ़ना चाहिए और फिर उसके बारे में बोलना चाहिए।

सांसद नुसरत जहां 25 जून को पहली बार संसद पहुँची थीं। उस दौरान उन्होंने सफेद और बैंगनी रंग की साड़ी पहनी थी, हाथों में मेहंदी, माँग में सिंदूर और माथे पर बिंदी थी। उन्होंने 19 जून को तुर्की के बोडरम शहर में निखिल जैन से शादी की। नुसरत जहां पश्चिम बंगाल के बसीरहाट से तृणमूल कॉन्ग्रेस के टिकट पर निर्वाचित हुई हैं।

‘370 और 35-A पर मतदान करा लो, गद्दारों की पहचान हो जाएगी’

यूथ कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और बेअंत सिंह की पंजाब सरकार में मंत्री रहे मनिंदरजीत सिंह बिट्टा ने मोदी सरकार से माँग की है कि चालू संसदीय सत्र में संविधान के अनुच्छेदों 370 और 35-A पर मतदान करा लिया जाए। इससे देश के गद्दारों की पहचान हो जाएगी। पाकिस्तान में फिर सर उठा रहे खालिस्तान मूवमेंट को लेकर उन्होंने कहा कि यह विदेश में बैठे मुट्ठी भर लोगों की साजिश है। बिट्टा आतंक-विरोधी संगठन ऑल इंडिया एंटी-टेररिस्ट फ्रंट के अध्यक्ष हैं।

‘कश्मीर को स्वर्ग बनाना है तो समूचे हिन्दुस्तानियों को वहाँ जमीन खरीदनी होगी’

बिट्टा ने 370 और 35-A के खात्मे की माँग करते हुए कहा कि जब संसद इन्हें रद्द कर दे तो उसके बाद कश्मीर घाटी को दोबारा जन्नत बनाने के लिए समूचे देश के लोगों को वहाँ जमीन खरीदनी चाहिए। बिट्टा ने कहा, “संसद का सत्र चल रहा है और सरकार को यह जानने के लिए मतदान कराना चाहिए कि संविधान के अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35-A को कौन-कौन रद्द कराना चाहते हैं। इससे राष्ट्र को राष्ट्रवादियों और गद्दारों के बारे में जानकारी मिलेगी।”

पीडीपी अध्यक्षा और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती पर निशाना साधते हुए बिट्टा ने कहा, “कुछ समय पहले एक ‘बड़ी’ कश्मीरी नेता ने कहा था कि अगर 370 को हटा दिया गया तो कश्मीर में भारतीय तिरंगे को उठाने वाला एक कंधा तक नहीं मिलेगा। एक बार कश्मीर को (370/35-A के प्रावधानों से) ‘आज़ादी’ मिल जाए तो हम घाटी में तिरंगा फहराएँगे। मैं अपनी (पंजाब में) ज़मीन बेच दूँगा और कश्मीर में बस जाऊँगा।”

बिट्टा ने कश्मीर में दहशतगर्दी के जल्दी ही खत्म हो जाने का भी विश्वास जताया। “पिछले चार सालों में पठानकोट पर वायु सेना के बेस पर हमले के अलावा देश में कोई दहशतगर्दी की घटना नहीं हुई है। कश्मीर के ज़मीनी हालत देख कर मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि कश्मीर से आतंकवाद एक वर्ष के भीतर ख़त्म हो जाएगा।”

‘पार्टियाँ विचारधारा के परे जाकर साथ आईं’

पंजाब के खालिस्तानी आतंकवाद की वापसी पर बिट्टा का कहना है कि यह केवल विदेश में बैठे मुट्ठी-भर लोगों की साजिश है, जिसे पंजाब के लोग ही कभी परवान नहीं चढ़ने देंगे। इसमें पाकिस्तान और आईएसआई का भी उन्होंने हाथ बताया। उन्होंने कहा, “हम कटिबद्ध हैं पाकिस्तान और आईएसआई के इस मामले में किसी भी प्रयास को निष्फल करने के लिए।” उन्होंने यह भी कहा कि पंजाब में शांति इसलिए है कि अपनी विचारधाराओं के विरोधों को परे रखकर राजनीतिक दल दहशतगर्दी को हराने के लिए साथ आए थे।

चंद्रबाबू नायडू को अब सिर्फ 2 हवलदार से ही चलाना होगा काम, 2019 में PM बनने का देखा था सपना

आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और तेलगु देशम पार्टी (टीडीपी) के अध्यक्ष एन चंद्रबाबू नायडू की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है। पहले तो मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने उनके आलीशान बंगले को तोड़ने का आदेश दिया और अब उनके परिवार की सुरक्षा कम करने का फैसला लिया है। जगन मोहन रेड्डी ने शुक्रवार (जून 28, 2019) को नायडू की सुरक्षा में कटौती की है।

राज्य सरकार ने नायडू की सुरक्षा में तैनात मौजूदा दो मुख्य सुरक्षा अधिकारियों को हटा दिया है और साथ ही दो सशस्त्र रिजर्व निरीक्षकों के नेतृत्व में 15 सदस्यीय विशेष पुलिस दल को भी हटा दिया गया है। खबर के मुताबिक, नायडू को अब 4 कांस्टेबलों द्वारा सुरक्षा प्रदान की जाएगी। हर शिफ्ट में 2 कांस्टेबल होंगे। हालाँकि, नायडू को अक्टूबर 2003 में तिरुमाला की तलहटी अलीपुरी में माओवादी हमले के बाद केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) कमांडो समेत जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा जारी रहेगी।

इसके साथ ही राज्य सरकार द्वारा अमरावती में नायडू के आवास और चित्तूर जिले में उनके मूल स्थान नरवरिपल्ले में सुरक्षा वापस ले ली गई है। उनके परिवार के सदस्यों के लिए सुरक्षा भी हाल ही में वापस ले लिया गया था और उनके बेटे नारा लोकेश को सुरक्षा के लिए सिर्फ दो कांस्टेबल दिए गए हैं। राज्य के गृह मंत्री मेकाथोती सुचरिता ने इस बारे में बात करते हुए कहा कि इस तरह के फैसले में सरकार की कोई भूमिका नहीं है। नायडू की सुरक्षा कम करने का निर्णय राज्य पुलिस विभाग की सुरक्षा समीक्षा समिति द्वारा लिया गया है।

टीडीपी के एक नेता ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है कि राज्य सरकार ने नायडू की सुरक्षा में कमी की है। उन्होंने कहा कि जब वो 2004 और 2014 के बीच विपक्ष की भूमिका में थे, तब भी तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार ने उन्हें एक अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, एक पुलिस उपाधीक्षक और तीन आरक्षी निरीक्षकों के साथ सुरक्षा प्रदान की थी।

तेलुगु देशम पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य यनामला रामकृष्णुडु ने आरोप लगाया कि नायडू की सुरक्षा में कटौती करना स्पष्ट रुप से जगन की प्रतिशोध वाली राजनीति को दर्शाता है। रामकृष्णुडु ने कहा कि उनके पास बीज की कमी और सूखे की स्थिति की समीक्षा करने का कोई समय नहीं है। वो लोगों की समस्याओं पर फोकस करने की बजाए नायडू को अपमानित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

UP में 17 OBC जातियाँ SC में शामिल: आरक्षण देकर योगी सरकार ने बिगाड़ा सपा-बसपा का गणित

योगी आदित्यनाथ सरकार ने पिछड़े वर्ग (ओबीसी) की 17 जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने का आधिकारिक आदेश दे दिया है। इस तरह से इन जातियों को आरक्षण देकर यूपी में सपा-बसपा के गणित को योगी आदित्यनाथ ने बिगाड़ दिया है।

बता दें कि बीते दो दशक से 17 अति पिछड़ी जातियों- कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोडिया, मांझी और मछुआ को अनुसूचित जाति में शामिल करने की कोशिशें जारी थीं। सपा और बसपा सरकार में इसे चुनावी फायदे के लिए अनुसूचित जाति में शामिल करने की कोशिश तो शुरू हुई पर उनका यह फैसला अंजाम तक नहीं पहुँचा। इनकी सरकारों में यह मुद्दा महज एक चुनावी हथकंडा बन कर रह जाता था।


यूपी की 17 जातियों के बारे में जारी शासनादेश

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यूपी के डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने कहा कि योगी सरकार हमेशा सबका साथ सबका विकास को ध्येय बना कर और हर वर्ग को साथ लेकर चल रही है। केशव प्रसाद मौर्य ने शनिवार को कहा कि 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने का फैसला सिर्फ बीजेपी ही कर सकती है। यह अखिलेश और मायावती के बस की बात नहीं थी। मौर्य ने यह भी कहा कि समाज में इन वर्गों को सहायता की जरूरत थी, यह समाज में पिछड़े लोग हैं। योगी सरकार का यह कदम उन्हें आगे ले जाने की दिशा में एक बड़ा मिल का पत्थर साबित होगी।

बता दें कि यूपी में योगी सरकार के इस कदम का बड़ा असर आने वाले चुनावों में देखने को मिलेगा। यूपी में अनुसूचित जातियों के लिए 17 लोकसभा और 403 विधानसभाओं में से 86 सीटें रिजर्व हैं। इनमें इन जातियों को चुनाव लड़ने का अवसर मिलेगा। जबकि, ओबीसी के लिए सीटें रिजर्व नहीं हैं। इसका दुष्परिणाम जातिगत राजनीति करने वाली सपा-बसपा जैसी पार्टियों को भुगतना पड़ेगा। जो अभी तक मायावती या अखिलेश से उम्मीद लगाए बैठे थे लेकिन बाजी योगी सरकार ने अपने नाम कर ली।

ज़ाहिर सी बात है कि ऐसे में बीजेपी को इसका राजनीतिक लाभ मिलना स्वाभाविक है। जहाँ एक तरफ महागठबंधन या सपा-बसपा के गठजोड़ के बाद जो नाटक देखने को मिला उससे भी जनता के मन में सपा-बसपा के खिलाफ अविश्वास बढ़ा है। वहीं योगी सरकार के इस फैसले के बाद जनता का विश्वास बीजेपी की तरफ और भी बढ़ेगा।

गौरतलब है कि योगी सरकार ने अपने इस फैसले के बाद सभी जिलाधिकारियों को इन जातियों के परिवारों को प्रमाण दिए जाने का आदेश जारी कर दिया है। राज्यपाल राम नाइक ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा अधिनियम 1994 की धारा 13 के अधीन शक्ति का प्रयोग कर के इसमें संशोधन किया है।

इसके लागू होते ही ये सभी जातियाँ अब अनुसूचित जातियों को मिलने वाली सभी लाभों की हक़दार होंगी। योगी सरकार के इस कदम के बड़े दूरगामी परिणाम सामने आने वाले हैं। जहाँ इससे इन जातियों के विकास को बल मिलेगा वहीं यूपी में बीजेपी आसानी से जातिगत राजनीति में सेंध लगाकर अपने जनाधार को और मजबूत करने में कामयाब होगी।