Thursday, May 2, 2024
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‘दलित’ महामंडलेश्वर कन्हैया प्रभुनंद गिरि ने धर्मान्तरित दलितों से घर वापसी की अपील की

भारत वह देश है जहाँ मीरा के गुरु संत रविदास हो सकते हैं। ये भी भारत ही है जहाँ बनारस जैसे पारम्परिक शहर में कबीर अपनी उलटबासियों में हिन्दू-मुस्लिम दोनों की कुरीतियों पर लताड़ते हैं।

आज कुम्भ अपने आप में समरसता की मिसाल है। और इसी समरसता की बानगी पेश करते हुए, संत कन्हैया प्रभुनंद गिरि को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने पहले दलित महामंडलेश्वर की उपाधि दी है। कन्हैया प्रभु ने कुम्भ के पहले दिन मकर संक्रांति के शाही स्नान के दौरान संगम में डुबकी लगाई।

इस दौरान उन्होंने ऐसे दलित, एसटी और ओबीसी व्यक्तियों से घर वापसी की इच्छा जताई जिन्होंने शोषण के डर से सनातन धर्म छोड़कर बौद्ध, ईसाई या इस्लाम धर्म अपना लिया है, “वे वापस सनातन धर्म से जुड़ जाएँ। मैं उन्हें दिखाना चाहता हूँ कि कैसे जूना अखाड़े ने, न सिर्फ़ मुझे शामिल किया बल्कि महामंडलेश्वर की उपाधि भी दी है। कन्हैया प्रभुनंद को पिछले साल परम्परा के अनुसार जूना अखाड़े में शामिल किया गया था।”

बता दें कि, जूना अखाड़े में बड़ी संख्या में दलित जाति के पुरुष और महिला संत पहले से हैं। इनमें से आठ को महामंडलेश्वर की उपाधि भी दी गई है। जिनमें पाँच पुरुष और तीन महिला महामंडलेश्वर हैं।

महंत हरि गिरि के अनुसार, देश के अलग-अलग हिस्सों में जूना अखाड़े के लाखों संत हैं। हिमाचल प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, कनार्टक, महाराष्ट्र और नेपाल में सभी वर्गों को मिलाकर लगभग सवा लाख महिला संत हैं। इनमें से दलित और महादलित महिलाओं की संख्या पाँच सौ के आसपास है। कुम्भ में दलित महिला संतों की संख्या और बढ़ी है।

महामंडलेश्वर कन्हैया प्रभु ने एक दुखद घटना को याद करते हुए बताया, “साल 1999 में मैं उस वक्त चंडीगढ़ में था जहाँ सिख गुरुओं का एक समागम हो रहा था। जब उन्हें मेरी जाति मालूम चली तो उन्होंने मुझे प्रवेश द्वार पर ही खड़े रहने को कहा। मैं गुरुओं के पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहता था लेकिन उन्होंने कहा कि एक शूद्र को ऐसा करने की अनुमति नहीं है।”

“लेकिन जूना अखाड़े ने आज मुझे जो सम्मान दिया है मैं उससे अभिभूत हूँ। अब मैं ऐसे पद पर हूँ। आज मेरे सम्मान में सभी जातियों के लोग मेरे आगे झुकते हैं। एक तरह से मैं अब एक धार्मिक नेता हूँ और अपने ही समुदाय की इस जातिगत मानसिकता के खिलाफ लड़ता रहूँगा।”

उन्होंने कहा, “मेरे लिए उस पल को बयाँ कर पाना बहुत मुश्किल है जब मुझे शाही स्नान के लिए रथ पर बिठाया जा रहा था। मेरे आसपास सभी श्रद्धालु ढोल की धुन पर नाच रहे थे। मस्त-मगन थे। मेरा समुदाय काफी समय तक ऐसे सम्मान से दूर रहा है। और आज जूना अखाड़ा ने मुझे जो गौरव दिया है वो इस परंपरा में ही संभव है। उन्होंने बताया कि कभी दसवीं के बाद वह संस्कृत पढ़ना चाहते हैं लेकिन अनुसूचित जाति से होने की वजह से उन्हें इजाज़त नहीं मिली। तब मैं अपने गुरु जगतगुरु पंचनंदी महाराज की शरण में आया। जिन्होंने मुझे शिक्षा दी और मंदिर का पुजारी बनाया।”

अब बियर की बोतल पर भगवान गणेश की तस्वीर हुई वायरल

हिंदू धर्म में जहाँ देवी-देवताओं का महत्व किसी गुणगान का मोहताज़ नहीं है, वहीं दूसरी ओर कुछ विदेशी कंपनियाँ देवी-देवाओं के फोटो का गलत प्रयोग करके हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने का काम कर रही हैं।

दरअसल आज-कल सोशल मीडिया पर ‘ब्रुकवेल यूनियन’ नाम की ऑस्ट्रेलियन कंपनी का कारनामा सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। सोशल मीडिया पर भगवान गणेश की तस्वीर के साथ एक बियर की बोतल शेयर की जा रही है। वायरल विज्ञापन के अनुसार ये कंपनी कोई नया ड्रिंक लाने जा रही है, जिसपर भगवान गणेश की फोटो है।

इससे पहले भी 2013 में एक ऐसा ही मामला सामने आया था, जिसमें ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स (सिडनी) की ये कंपनी बियर की बोतलों पर गणेश और लक्ष्मी की तस्वीर इस्तेमाल करने को लेकर विवादों में रह चुकी है। बता दें कि उस समय कंपनी ने बोतल पर देवी लक्ष्मी की तस्वीर में सिर गणेश का कर दिया था। बोतल पर गाय और ‘माता के शेर’ को भी छापा गया था। 

वहीं मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ऑस्ट्रेलिया में रह रहे भारतीय समुदाय के लोगों ने कंपनी के खिलाफ नाराज़गी ज़ाहिर की है। जिसके बाद विवाद बढ़ता देख बियर कंपनी ने एक बयान एक बयान जारी करके भारतीय समुदाय के लोगों से माफ़ी माँगी है। और जल्द बोतलों की नई डिज़ाइन तैयार करने की बात कही है।

कॉन्ग्रेस के कार्यक्रम में पहली पंक्ति में दिखे सिख दंगों के आरोपित जगदीश टाइटलर

सिख दंगों में आरोपित कॉन्ग्रेस नेता जगदीश टाइटलर को दिल्ली में कॉन्ग्रेस के एक कार्यक्रम में पहली पंक्ति में बैठे देखा गया। इस कार्यक्रम की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही लोगों ने कॉन्ग्रेस को कटघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया। बता दें कि टाइटलर 1984 सिख दंगों के प्रमुख आरोपितों में से एक हैं। फरवरी 2018 में दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति ने एक वीडियो जारी किया था, जिसमें टाइटलर 100 सिखों की हत्या करने की बात कबूलते नजर आ रहे हैं। हाल ही में अदालत ने 1984 सिख दंगों के मामले में एक अन्य कॉन्ग्रेस नेता सज्जन कुमार को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई है।

जगदीष टाइटलर हाल के दिनों में कॉन्ग्रेस के औपचारिक समारोहों से गायब रहे हैं और सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी बहुत कम दिखते हैं। लेकिन आज (जनवरी 16, 2019) वह दिल्ली कॉन्ग्रेस की नवनियुक्त अध्यक्षा शीला दीक्षित के पद संभालने के औपचारिक कार्यक्रम में उपस्थित रहे। केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर ने कॉन्ग्रेस के कार्यक्रम में टाइटलर की मौज़ूदगी को लेकर राहुल गाँधी पर निशाना साधते हुए कहा:

“पहले उनके परिवार ने जो किया, राहुल गाँधी उसी परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं। यह साफ़ तौर पर दर्शाता है कि उनके मन में सिखों की भावनाओं के लिए कोई क़द्र नहीं है।”

दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता तेजिंदर बग्गा ने भी कड़ा विरोध दर्ज़ कराते हुए कहा कि कॉन्ग्रेस पार्टी ने जगदीश टाइटलर को इस कार्यक्रम में बुला कर सिखों के घावों पर नमक रगड़ने का काम किया है।

समाचार एजेंसी ANI ने जब जगदीश टाइटलर से सज्जन कुमार की सज़ा के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि जब अदालत ने फ़ैसला दे ही दिया है तो अब कोई क्या कह सकता है? उन्होंने आगे कहा:

“आपलोग इस दंगे को लेकर मेरा नाम भी लेते हैं। क्यों? क्या कोई FIR है? क्या कोई केस है? नहीं। फिर आप मेरा नाम क्यों लेते हैं? बस किसी ने कुछ कह दिया और आपने इसे मान लिया?”

वहीं शिरोमणि अकाली दल के नेता और दिल्ली के विधायक मनजिंदर सिरसा ने एक वीडियो ट्वीट करते हुए लिखा कि 1984 सिख नरसंहार के गवाहों को डराने के लिए कॉन्ग्रेस द्वारा यह एक बड़ा और स्पष्ट संदेश है।

बता दें कि भारत सरकार द्वारा गठित नानावती आयोग की रिपोर्ट में यह कहा गया था कि 1984 सिख दंगों में जगदीश टाइटलर के ख़िलाफ़ ‘विश्वसनीय सबूत’ मिले हैं। दिसंबर 2008 में सीबीआई की दो सदस्यीय टीम को दो प्रत्यक्षदर्शी, जसबीर सिंह और सुरिंदर सिंह के बयान दर्ज करने के लिए न्यूयॉर्क भेजा गया था। दोनों गवाहों ने कहा था कि उन्होंने दंगों के दौरान जगदीश टाइटलर को एक भीड़ का नेतृत्व करते देखा। हालाँकि सुरक्षा कारणों का हवाला देकर दोनों प्रत्यक्षदर्शियों ने भारत आने से इनकार कर दिया था।

प्रिय प्रोपेगेंडाबाज़ो! तेरी जली न? उरी और हैदर फ़िल्मों के राष्ट्रवाद में थोड़ा फ़र्क है

चार वर्ष पहले हम सबने शहीद कर्नल एमएन रॉय की आँसुओं में भीगी हुई बेटी को पुलवामा में आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हुए पिता को ‘सैल्युट’ कर पुष्प अर्पित करते हुए देखा था। 11 वर्ष की अल्का रॉय ने इसे ‘वॉर क्राई’ कहा था। पिता को आख़िरी विदाई देती और रो रही बिटिया के इन शब्दों ने वहाँ मौजूद सैनिकों और देशभर के लोगों को झकझोरने के साथ लोगों के अंदर जुनून का पैदा कर दिया था। सेना एक ऐसी संस्था है जिसके लिए पूरा देश एक साथ उठ खड़ा हो जाता है।

शहीद एमएन रॉय को श्रद्धांजलि देते हुए उनकी बेटी अल्का रॉय

कश्मीर में पाकिस्तानी और लोकल आतंकियों द्वारा सेना और सुरक्षा बलों पर हमले होते रहे हैं। ऐसा ही एक हमला उरी में हुआ था। 2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा भारतीय सेना के स्थानीय मुख्यालय पर हुए हमले पर आधारित यह फ़िल्म अब सिनेमाघरों में दर्शकों के सामने है। आदित्य धर के निर्देशन में बनी वार फ़िल्म ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ महज़ एक आम वॉर फ़िल्म नहीं बल्कि भारतीय सेना के शौर्य और साहस की अमर गाथा के रूप में उभरकर सामने आई है। जिसे देशभर के दर्शकों का बहुत प्यार और स्नेह मिल रहा है।

एक आम नागरिक होने के नाते दर्शक सिर्फ सेना के प्रयासों को सराह सकता है, उनके भाव को महसूस कर उसके ज़ेहन में सिहरन पैदा हो सकती है। लेकिन इस देश का दुर्भाग्य है कि यहीं पर मौज़ूद एक ऐसा बड़ा वर्ग पैदा हो चुका है जिसे भारतीय सेना के जज़्बों में भी राजनीति ढूँढ लेने में में गर्व महसूस होता है।

सोशल मीडिया से लेकर कुछ मीडिया समूहों में चर्चा हैं कि फ़िल्म राजनीति से प्रेरित है और इसकी रिलीज़ की टाइमिंग पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। जबकि दर्शकों का एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि यदि मीडिया का यह गिरोह भारतीय सेना द्वारा आतंकवादियों को उनके घरों में घुसकर सबक सिखाने के इस हौसले की सराहना नहीं कर सकता है, तो कम से कम वह इतना तो कर ही सकता है कि सेना के जज़्बे को ‘प्रोपेगेंडा’ ठहराने की मशक्कत ना करे।

पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया पर देखा गया कि यही माओवंशियों का गिरोह “आर्मी वहाँ बॉर्डर पर है और तुम यहाँ…” जैसे मुहावरे बनाकर भारतीय सेना का उपहास करता है।

माओवंशियों के इस गिरोह को समझने के लिए अगर थोड़ा ‘फ्लैशबैक’ में जाएँ तो हमें देखने को मिलता है कि वर्ष 2014 में रिलीज़ हुई विशाल भरद्वाज के निर्देशन में बनी ‘हैदर’ फ़िल्म ने चर्चा के बाज़ार को गर्म किया था। यदि हम इस फ़िल्म के बारे में इन्हीं लोगों का मत देखें तो उन्हें यह फ़िल्म कश्मीर में ‘सेना द्वारा पीड़ित समाज’ की वास्तविक तस्वीर नज़र आती है, जबकि ‘उरी’ फ़िल्म उन्हें एक राजनीतिक प्रोपेगेंडा मात्र नज़र आ रही है।

हैदर फ़िल्म पर इस तथाकथित ‘लिबरल’ वर्ग के विश्लेषकों का मानना था कि कश्मीर पर ज़्यादातर फ़िल्में वहाँ के असल मुद्दों को दिखाने में विफल रही हैं जबकि हैदर फ़िल्म ने इस खालीपन को भरा है। अंग्रेज़ी अख़बार ‘द हिन्दू’ ने हैदर फ़िल्म पर लिखा था, “फ़िल्म में इससे कोई इनकार नहीं है कि कश्मीर में लापता लोगों की सामूहिक कब्रें मिली हैं।”

द गार्डियन में जैसन बर्क ने लिखा था कि ‘हैदर’ में भारतीय सेना के कैंपों में प्रताड़ित करने और भारतीय अधिकारियों द्वारा मानवाधिकारों के हनन के दूसरे तरह के मामलों को दिखाया गया है। भारद्वाज के साहसिक चित्रण को आलोचकों एवं उनके प्रशंसकों ने काफ़ी पसंद किया है। वहीं ‘फ़र्स्टपोस्ट’ ने लिखा था, “कश्मीर की असुविधाजनक राजनीति को दिखाना एक बड़ी चुनौती है, और वो भी तब जब यह मुद्दा कश्मीर की जनता और भारत के बीच तनाव के केंद्र में रहा है।”

सवाल यह है कि जब यही सिनेमा भारतीय सेना पर मानवाधिकारों के हनन का दोषारोपण करता है तब इस विशेष वर्ग को सिनेमा में ‘निर्वाण’ और ‘देशभक्ति’ नज़र आती है, लेकिन जब यही सिनेमा उरी जैसी फ़िल्म बनाकर भारतीय सेना के साहस और शौर्य का चित्रण करता है, तब इस वर्ग पर मानो तुषारापात हो जाता है और ये वर्ग बदहवास स्थिति में बयान देना शुरू कर देता है। यह देखना भी एक मज़ेदार पहलू है कि इस गिरोह को कब और किन विषयों पर आपत्ति और सहानुभूति होती है।

भारतीय सेना द्वारा ‘आतंकवादियों के मानवाधिकारों का हनन’ करने पर इस गिरोह को पीड़ा होती है, इनके हिमायती वकील रात 12 बजे इनकी फाँसी रुकवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं। जम्मू-कश्मीर में जब एक अलगाववादी पत्थरबाज़ फारूक अहमद डार, जिसके नाम में उसका मज़हब नहीं खोजा जाना चाहिए, को मेजर गोगोई जीप के आगे बाँधकर सबक सिखाते हैं तब इन्हें कष्ट होता है।

यही समूह इसके बाद मेजर गोगोई को अपमानित करने के लिए एक ऐसा वाकया बनाकर पेश करते हैं, जिसकी जाँच होने से पहले ही यह वर्ग न्यायाधीश की भूमिका निभाकर उनके व्यक्तिगत मामले में टाँग अड़ाकर उनके चरित्र पर सवाल लगाना शुरू कर देता है। वामपंथी मीडिया समूह ने भी भरसक प्रयास किए ताकि मेजर गोगोई के चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लगया जा सके। हालाँकि, बाद में Opindia द्वारा इस मामले की समीक्षा से पता चला था कि यह मेजर गोगोई का बेहद व्यक्तिगत मामला था।

इसी बीच कारगिल शहीद कैप्टन मनदीप सिंह की बेटी और लेडी श्रीराम कॉलेज की 20 वर्षीय छात्रा गुरमेहर कौर को इसी प्रोपेगेंडा-परस्त मीडिया द्वारा राष्ट्रीय सनसनी बनाकर पेश किया गया। इस गिरोह ने गुरमेहर  कौर के पिता की शहादत को भुनाने तक का प्रयास किया। कुछ समय पहले ही गुरमेहर कौर एक तख्ती लिए नज़र आई थीं, जिस पर लिखा था, “मेरे पिता को पाकिस्तान ने नहीं बल्कि युद्ध ने मारा”।

इस पर पूर्व क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग समेत कई लोगों ने उनके इस नज़रिये को लेकर उन पर कटाक्ष किया था। सहवाग ने ट्वीटर पर एक तख्ती पकड़े हुए अपनी एक तस्वीर साझा की थी, जिस पर उन्होंने लिखा था, “मैंने दो तिहरे शतक नहीं मारे, मेरे बल्ले ने मारे”। इस बुद्धिजीवी वर्ग ने इसके बाद वीरेंद्र सहवाग को सोशल मीडिया पर ‘ट्रोल’ किया और सहवाग को अपनी बात रखने के लिए माफ़ी माँगने तक के लिए मज़बूर किया। प्रश्न यह है कि क्या इस देश में इस वर्ग के लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी, मानवाधिकार और स्वतंत्रता सिर्फ इकतरफ़ा काम करते हैं?

जब बात सैनिकों के मानवाधिकारों की आती है, जिन्हें रोजाना जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी पत्थरबाज़ों, उग्रवादियों, चरमपंथियों की हिंसा, आतंकवाद की आती है, तब यह वर्ग तख्तियाँ नहीं पकड़ता।

जब आतंकवादियों ने जम्मू के अखनूर में राजपुताना राइफल्स में तैनात 22 साल के लेफ्टिनेंट फ़ैयाज़ का अपहरण कर उनकी हत्या कर दी थी, तब यही समूह कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करता है और ना ही भारतीय सेना के मानवाधिकारों और सुरक्षा को लेकर चिंतित नज़र आता है।

जब भी किसी  फ़िल्म पर कोई विवाद होता है तो बचाव पक्ष बयान देकर पल्ला झाड़ लेता है कि फ़िल्म सिर्फ मनोरंजन के लिए बनाई गई है और फ़िल्मों का काम समाज-सुधार करना नहीं है। वहीं जब फ़िल्म को हिट करवाना हो तो आप समाज सुधारक की भूमिका में आ जाते हैं। कुछ ‘विचारक’ कहते हैं, फ़िल्म का मुद्दा समाज से नहीं उठाया गया था, जैसा कि हैदर फ़िल्म के विवाद के वक़्त बताया जाने लगा था कि यह मात्र शेक्सपीयर के ‘हेमलेट’ से प्रेरित है।

अपनी फ़िल्मों से अधिक से अधिक कमाई लेकर आने के लिए प्रसिद्द ‘मिस्टर परफ़ेक्शनिस्ट ख़ान’ यानि आमिर ख़ान जब ‘तारे ज़मीन पर’ जैसी फ़िल्म बनाते हैं, तब वो यह कहते हैं कि फ़िल्में समाज को प्रभावित करती हैं और यह बदलाव भी लाती हैं, लेकिन ‘PK’ फ़िल्म के बाद बयान देते हैं कि फ़िल्म का उद्देश्य सिर्फ मनोरंजन होता है।

इस मामले सवाल यह है कि जब फ़िल्म समाज के लिए नहीं है या यह हमारे समाज से नहीं उठाई गई है तो फिर मनोरंजन के लिए आप मंगल ग्रह का विषय क्यों नहीं उठाते या फिर अगर हमारे समाज के लिए यह फ़िल्म नहीं है तो क्या यह फ़िल्म मंगल ग्रह के प्राणियों के लिए बनाई जा रही है?

उरी फ़िल्म में भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम को जब कुछ मीडिया समूह झुठला पाने में असफल हुए तो उन्होंने फ़िल्म की समीक्षा कर अपनी तसल्ली कर डाली है, लेकिन ऑप-इंडिया के साथ पढ़िए उरी फ़िल्म की समीक्षा, जो है एकदम ‘राइट’।

उरी फ़िल्म की एकदम ‘राइट’ समीक्षा

ख़ैर, भारतीय सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर बनी उरी फ़िल्म देखते वक़्त आप उसी जज़्बात और रोमाँच का अनुभव करते हैं। फ़िल्म में डायरेक्टर आदित्य धर दर्शकों को रोमांचित करने में सफल रहते हैं। फ़िल्म की कहानी पर अधिक लिखना ठीक नहीं है, क्योंकि सभी जानते हैं कि फ़िल्म में क्या देखने को मिलने वाला है। यहीं पर डायरेक्टर की चुनौती शुरू होती है। एक ऐसी कहानी जिससे ‘सरप्राइज़ एलिमेंट’ गायब हो, उससे दर्शकों को बाँधे रखने में आदित्य कामयाब रहे हैं।

फ़िल्म का मजबूत पक्ष इसका अलग-अलग भागों में बँटा होना है। इससे दर्शक समझ सकता है कि सर्जिकल स्ट्राइक कोई खेल नहीं था जिसे आसानी से अंजाम दिया गया हो। इसके पीछे पुराने ऑपरेशन में शामिल सेना के जवान, ख़ुफ़िया एजेंसियों के बीच का तालमेल और जबरदस्त रणनीतिक सूझबूझ, शामिल रहे हैं। सेना के जवानों के परिवारों की सुरक्षा भी सरकार और ख़ुफ़िया एजेंसियों की जिम्मेदारी होती है, ये भी देखने को मिलता है।

फ़िल्म के सभी किरदार अपने रोल में फिट हैं। टीवी धारावाहिक ‘देवों के देव महादेव’ से चर्चित मोहित रैना के किरदार से दर्शक ‘कनेक्टेड’ फील करते हैं और चाहते हैं कि वे स्क्रीन पर और अधिक दिखें। NSA अजीत डोभाल के किरदार में परेश रावल खूब जमे हैं, और साबित किया है कि ‘बाबुभैया’ गुजरात में जितने परेश ‘भाई’ रावल हैं, उतने ही वो पहाड़ी अजीत डोभाल ‘भैजी’ का किरदार भी बखूबी निभा सकते हैं। यामी गौतम के कैरियर में उनका यह अभिनय ‘निख़ार’ लेकर आ सकता है।

विकी कौशल के कंधों पर फ़िल्म टिकी है और एक जाँबाज़ भारतीय सैनिक के रूप में जँचते हैं। मसान फ़िल्म में उनके अभिनय ने ही बता दिया था कि वे बॉलीवुड में लंबी पारी खेलने आए हैं। फ़िल्म में मौजूद अन्य राजनीतिक चरित्रों को पहचानना दर्शकों के लिए अधिक मुश्किल नहीं है।

फ़िल्म में लड़ाई के दृश्य हों या भावुकता के क्षण, दर्शक स्क्रीन से अपनी नजरें हटाना नहीं चाहते हैं। फ़िल्म की कसावट का ही कमाल है कि आप इंटरवल में भी थिएटर से बाहर नहीं निकलना चाहते। लड़ाई के दृश्य और VFX लाजवाब हैं। विशेष रूप से अंत में भारतीय वायु सेना का जवाबी हमला रोमांचित करता है।

फ़िल्म का संगीत इसका मजबूत पक्ष है। लड़ाई के दृश्यों में संगीत का आरोह-अवरोह और कभी अचानक से छा जाने वाली ख़ामोशी आपके रोमांच को बनाए रखती है। गोलियों के चलने की आवाजें तो सब ने बहुत सुनी होंगी, लेकिन खाली होती राइफलों के खाली कारतूसों के गिरने की आवाजें आपको अपने पैरों के पास महसूस होती हैं।

अभी तक यदि आपने फ़िल्म नहीं देखी है, तो ज़रूर देखने जाइए। बॉलीवुड में सार्थक और तकनीकी रूप से सुदृढ़ फिल्में (विशेषतः वॉर आधारित) बहुत कम बनती हैं। शहीदों की याद में ही सही, सिनेमा तक हो आइए। आप निराश नहीं होंगे।

तो मित्रो! बात सिर्फ़ इतनी-सी है कि उरी फ़िल्म को लेकर जिनमें खलबली मची है, उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक के होने पर भी सवाल उठाए थे और साक्ष्य माँगे थे। तो अपना दिन बनाइए, सिनेमा हॉल पहुँचिए, बुलंद आवाज में राष्ट्रगान गा कर अपने और पड़ोसी के रोंगटे खड़े कर आइए और फ़िल्म देख कर हमें बताइएगा जरूर कि, ‘हाऊ इज़ द जोश?’

LOC पर शहीद हुए मेजर शशिधरन की प्रेम कहानी एक मिसाल है

जम्मू-कश्मीर के राजोरी जिले में लाम बटालियन 2/1 जीआर में तैनात जवान मेजर शशिधरन को आज देश उनकी वीरता के लिए याद कर रहा है। शशिधरन बीते दिनों एलओसी पर गश्त के दौरान आतंकियों के IED ब्लास्ट में शहीद हो गए थे। शशिधरन न सिर्फ़ एक सच्चे देशभक्त थे बल्कि, इनसानियत के धनी और वादे के पक्के भी। एक तरफ देश जहाँ उनकी देशभक्ति को याद कर रहा है, वहीं दूसरी ओर उनकी प्रेम कहानी को लेकर भी खूब चर्चा हो रही है।

30 जुलाई 1985 को पुणे के पास खड़गवासला गाँव में जन्मे मेजर शशिधरन का बचपन से सपना था, सेना की वर्दी में देश की रक्षा करना। वो एनसीसी में जाने के लिए रोजाना दोस्त की साइकिल से 15 किलोमीटर का सफ़र तय करते थे। केंद्रीय विद्यालय से पढ़ाई करने के बाद वो एनडीए में गए और फिर सेना में शामिल हुए।

प्रेमिका को नौकरी मिलने के बाद किया था शादी का वादा

मेजर नायर तृप्ति नाम की लड़की से प्रेम करते थे। सेना में नौकरी मिलने के बाद उन्होंने तृप्ति से शादी करने का फ़ैसला लिया था। और वादे के मुताबिक दोनों ने सगाई भी कर ली थी। लेकिन शादी से ठीक पहले तृप्ति बीमार हो गईं, बीमारी बढ़ती गई और एक दिन तृप्ति को लकवा मार गया। दोस्त-रिश्तेदार सब शादी न करने की सलाह दी। तृप्ति ने खुद भी यही समझाया मेजर नायर को। लेकिन मेजर नायर मेजर थे, उन्होंने शादी करने का फ़ैसला किया। शादी के बाद दोनों बहुत खुश थे। मेजर नायर हर पार्टी और फ़ंक्शन में तृप्ति को अपने साथ ले जाते थे।

मेजर शशिधरन के एक करीबी मित्र रोहित कहते है, ”मुझे उम्रभर इस बात का अफ़सोस रहेगा कि मैं उनके आखिरी व्हाट्सएप संदेश का जवाब नहीं दे पाया। मुझे बहुत बुरा लग रहा है। वो पूरी तरह से एक सज्जन और विनम्र व्यक्ति थे।”

को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ: प्रयागराज की महिमा भला कौन कह सकता है

तीर्थराज प्रयागराज की महिमा जानने से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि ‘तीर्थयात्री’ कौन होता है। तीर्थ शब्द ‘तृ’ धातु से निर्मित हुआ है, जिसका अर्थ है तैरना। यात्रा शब्द की उत्पत्ति ‘या’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है कहीं गमन करना या जाना। इस प्रकार तीर्थयात्री वह है जो जीवन रूपी भवसागर को तैरकर पार कर जाता है।

प्रयाग शब्द ‘प्र’ और ‘यज्’ धातु के योग से बना है। यज् धातु से निर्मित याग शब्द के कई अर्थ निकलते हैं जैसे- यज्ञ के द्वारा देवता की पूजा करना, संगति करना या दान देना। ऐसा स्थान जहाँ कोई वृहद यज्ञ किया गया हो, वह प्रयाग है। पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी ने यहाँ यज्ञ किया था।

प्रयागराज को तीर्थों का राजा कई कारणों से कहा गया है। पद्म पुराण के अनुसार: “ग्रहाणां च यथा सूर्यो नक्षत्राणां यथा शशी। तीर्थानामुत्तमं तीर्थे प्रयागाख्यमनुत्तमम्।” अर्थात- जैसे ग्रहों में सूर्य तथा नक्षत्रों में चन्द्रमा हैं, वैसे ही तीर्थों में प्रयाग सर्वोत्तम है।”

कुछ दिनों पहले शासन ने इलाहाबाद कहे जाने वाले नगर का नाम आधिकारिक रूप से प्रयागराज कर दिया। इसे नाम का परिवर्तन नहीं कहा जा सकता। नगर का नाम बदला नहीं गया है। कुछ सौ वर्षों से लोगों में जो भ्रम था, बस वही दूर किया गया है।

नगर का नाम प्रयाग तो आदिकाल से है। पुराणों में प्रयाग नगरी के नामकरण और माहात्म्य के वर्णन तो हैं ही, तीर्थराज प्रयाग की महिमा गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड में भी बताई है। गोस्वामी जी ने प्रयागराज को परमार्थ प्रदान करने वाले एक राजपुरुष के रूप में चित्रित किया है।

अयोध्याकाण्ड का प्रसंग इस प्रकार है कि जब भगवान राम सीताजी और लक्ष्मण जी सहित वनवास के लिए निकले तो सुमंत्र को विदा करने के पश्चात् उन्होंने नाव से गंगा पार की, केवट को भक्ति का वरदान दिया, गंगा जी से आशीर्वाद लिया और प्रयाग पहुँचे।

गोस्वामी जी कहते हैं: “तेहि दिन भयउ बिटप तर बासू, लखन सखाँ सब कीन्ह सुपासू, प्रात प्रातकृत करि रघुराई। तीरथराजु दीख प्रभु जाई” अर्थात्- उस दिन सभी ने वृक्ष के नीचे विश्राम किया, जिसकी पूरी व्यवस्था लक्ष्मण जी और सखा गुह ने कर दी। प्रातःकाल नित्यक्रिया से निवृत्त होने के पश्चात् प्रभु ने ‘तीर्थराज’ के दर्शन किए।

अभी वे नगर के भीतर नहीं गए हैं, बाहर से ही वर्णन किया जा रहा है। प्रयाग का वर्णन करते हुए गोस्वामी जी लिखते हैं: “सचिव सत्य श्रद्धा प्रिय नारी, माधव सरिस मीतु हितकारी।“ अर्थात्- यह जो तीर्थों का राजा है, इसके सचिव (मंत्री आदि) का नाम सत्य है। यहाँ नगर को ही राजा मान लिया गया है, जिसके मंत्रीगण सत्यनिष्ठा से सुशोभित हैं।

ऐसी उपमा देकर गोस्वामी जी यह बता रहे हैं कि मृत्यु और मोक्ष ही परम सत्य नहीं है (जो काशी में आकर सिद्ध होता है), अपितु तीर्थों के दर्शन से पापों का निवारण होता है यह भी अटल सत्य है, इसीलिए तो ‘तीर्थों के राजा’ के मंत्री ‘सत्य’ हैं।

यहाँ गोस्वामी जी कर्म करने की प्रेरणा देते हैं। व्यक्ति पापों का नाश तभी करना चाहेगा जब या तो उसे पुनर्जन्म लेना होगा अथवा इसी जन्म में सत्कर्म करने होंगे। इस प्रकार तीर्थराज प्रयाग कर्मों का वह मार्ग प्रशस्त करते हैं जिसका अनुगमन कर व्यक्ति काशी पहुँचता है और यहाँ देहत्याग कर मोक्ष की प्राप्ति करता है।

आज भी देखिए तो प्रयाग और काशी को जोड़ने वाला राजमार्ग एकदम सीधा है। यही नहीं गोस्वामी जी के अनुसार तीर्थराज की अर्धांगिनी ‘श्रद्धा’ हैं क्योंकि श्रद्धा के बिना किसी भी तीर्थ के दर्शन का फल नहीं मिलता। तीर्थ तो छोड़िए दैनिक पूजा भी यदि आप श्रद्धा के बिना करते हैं तो वह व्यर्थ ही है।

आजकल लोग श्रद्धाविहीन होकर तीर्थस्थलों पर पिकनिक मनाने, एडवेंचर करने चले जाते हैं फिर जब प्राकृतिक आपदा के शिकार होते हैं तब भगवान् से रोष प्रकट करते हैं। यह बड़ी विचित्र बात है! जब यात्रा प्रारंभ करने से पूर्व मन में श्रद्धा नहीं थी तो गिरने पड़ने पर रोष कैसा? इसीलिए गोस्वामी जी ने सैकड़ों वर्ष पूर्व ही बता दिया था कि तीर्थ यात्रा पर जाओ तो मन में श्रद्धा अवश्य होनी चाहिए।

यह तो बात हुई कि राजा के मंत्री, रानी और मित्र सलाहकार आदि कैसे हैं। आगे गोस्वामी जी तीर्थराज की संपन्नता के बारे में बताते हैं: “चारि पदारथ भरा भँडारू। पुन्य प्रदेस देस अति चारू।“ अर्थात्- यह ऐसा पुण्य प्रदेश है, जो चारों पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) से परिपूर्ण है। यहाँ पदारथ का अर्थ पुरुषार्थ है।

ये चारों पुरुषार्थ मनुष्य के जीवन का लक्ष्य निर्धारित करते हैं। धर्म का अनुसरण हमें किसी भी काल परिस्थिति में कर्तव्यनिष्ठ बनाता है। आर्थिक संपन्नता हमें दैहिक सौष्ठव, पारिवारिक स्थिरता तथा सामाजिक स्वीकार्यता प्रदान करती है। काम हमें जीवन में आगे बढ़ने को प्रेरित करता है। इन तीनों की सिद्धि के पश्चात् मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं।

तीर्थराज प्रयाग ऐसे राजा हैं, जिनके दर्शन से इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। सूक्ष्म दृष्टि डाली जाए तो देश की उन्नति में भी ये चारों पुरुषार्थ सहायक हैं क्योंकि व्यक्ति का मन यदि इन पुरुषार्थों को साध ले तो अच्छा नागरिक बन सकता है। मन से मानव बनता है, मानव से समाज और देश का उत्कर्ष समाज के उत्थान में निहित है।

तीर्थराज की संपन्नता का बखान करने के पश्चात् गोस्वामी जी यह बताते हैं कि प्रयागराज का सुरक्षा घेरा कैसा था: “छेत्र अगम गढ़ु गाढ़ सुहावा। सपनेहुँ नहिं प्रतिपच्छिन्ह पावा, सेन सकल तीरथ बर बीरा। कलुष अनीक दलन रनधीरा।“ अर्थात्- यह किले जैसा क्षेत्र अतीव दुर्गम है। यह ऐसा गढ़ (दुर्ग) है, जिसे स्वप्न में भी शत्रु जीत नहीं सकते। यहाँ शत्रु का अभिप्राय पाप से है।

प्रयागराज को कोई विधर्मी पापी दीर्घकाल तक जीत कर नहीं रख सकता। इसका प्रमाण तो उत्तर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री योगी जी ने ही दे दिया। चार सौ वर्षों से अधिक समय तक अकबर ने प्रयागराज की आभा पर ‘इलाही’ पर्दा डाल रखा था। आज वह भ्रम दूर हुआ और स्वयं गोरक्षपीठाधीश्वर ने आधिकारिक रूप से प्रयागराज का नामकरण कर जनमानस को आलोकित किया।

प्रयाग के भीतर जितने भी तीर्थ हैं, वे इसके वीर सैनिक हैं जो बड़े रणधीर हैं और पाप की सेना को पराजित करने में सक्षम हैं। प्रयागराज का कुछ ऐसा ही वर्णन मत्स्य पुराण में मार्कण्डेय ऋषि युधिष्ठिर से करते हैं। वे कहते हैं कि प्रयाग में साठ हजार वीर धनुर्धर गंगा की रक्षा करते हैं तथा सात घोड़ों से जुते हुए रथ पर चलने वाले सूर्य यमुना की देखभाल करते हैं।

इसके अतिरिक्त इंद्र, भगवान विष्णु और महेश्वर भी इसकी रक्षा करते हैं। यह ऐसा तीर्थ है, जहाँ पापी या अधर्मी व्यक्ति घुस ही नहीं सकता। प्रयागराज को कोई विधर्मी पापी दीर्घकाल तक जीत कर नहीं रख सकता।

इसका प्रमाण तो उत्तर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री योगी जी ने ही दे दिया। चार सौ वर्षों से अधिक समय तक अकबर ने प्रयागराज की आभा पर ‘इलाही’ पर्दा डाल रखा था। आज वह भ्रम दूर हुआ और स्वयं गोरक्षपीठाधीश्वर ने आधिकारिक रूप से प्रयागराज का नामकरण कर जनमानस को आलोकित किया।

आगे गोस्वामी जी बताते हैं कि गंगा यमुना सरस्वती का संगम ही तीर्थराज का सिंहासन है, अक्षयवट वृक्ष उनका छत्र है, गंगा जी और जमुना जी की तरंगे (लहरें) चँवर हैं, जिन्हें देखकर ही दुःख दरिद्रता का नाश हो जाता है: “संगमु सिंहासनु सुठि सोहा। छत्रु अखयबटु मुनि मनु मोहा।। चवँर जमुन अरु गंग तरंगा। देखि होहिं दुख दारिद भंगा।“

इसके आगे है: “सेवहिं सुकृति साधु सुचि पावहिं सब मनकाम। बंदी बेद पुरान गन कहहिं बिमल गुन ग्राम।।“ अर्थात् पुण्यात्मा साधू प्रयागराज की महिमा गाते हैं और वेद पुराण सब मिलकर उसके निर्मल गुणों का बखान करते हैं।

अंत में गोस्वामी जी कहते हैं: “को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ। कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ।। अस तीरथपति देखि सुहावा। सुख सागर रघुबर सुखु पावा।।“ अर्थात्- प्रयागराज की महिमा कौन कह सकता है भला? यदि पाप रूपी मदमस्त हाथियों का समूह सब कुछ नष्ट करने पर तुला हो तो सिंह रूपी तीर्थराज प्रयाग उनका वध कर सकता है। ऐसे तीर्थराज का दर्शन कर स्वयं प्रभु श्रीरामचन्द्रजी ने भी सुख पाया।

देशद्रोह क़ानून: थूक कर चाटने का नाम है कपिल सिब्बल

महान गीतकार सिब्बल के बोल

2016 की एक सुपर डुपर फ्लॉप फ़िल्म है- शोरगुल। ₹1 करोड़ की कमाई को भी तरस गई इस फ़िल्म के निर्माण के दौरान कपिल सिब्बल से इसके गाने लिखने का अनुरोध किया गया। खाली बैठे बेरोज़गार सिब्बल के पास जब यह प्रस्ताव आया, तब वो अपने काले कोट के साथ घर की एक खूँटी से टंगे हुए थे। चूँकि काम-धाम तो कोई था नहीं, कॉन्ग्रेस की सत्ता जा चुकी थी, अवॉर्ड वापसी का दौर भी जा चुका था और भारतीय राजनीति के साथ-साथ उनके घर में भी उनके लायक ऐसा कोई कार्य नहीं बचा था, तो उन्होंने ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। नरेंद्र मोदी रोज़गार गारंटी योजना के अंतर्गत भी वह अपने साप्ताहिक अवकाश पर थे। ऐसे में, मोदी के बारे में सोचते-सोचते कपिल सिब्बल ने गाने के बोल कुछ यूं लिखे-

तेरे बिना जी ना लगे, नजरों में भी तू ही दिखे…

कपिल सिब्बल के लिखे ये बोल आज भी उन पर फिट बैठते हैं। नरेंद्र मोदी के बिना उनका दिल नहीं लगता क्योंकि जब तक मोदी से जुड़ा कोई मुद्दा हाथ न आए, अपने काले कोट के साथ खूँटी पर टंगे होने के अलावे उनके पास कोई चारा नहीं बचता है। और उनकी नजरों में तो लगातार मोदी हैं ही, क्योंकि उनकी घड़ियाँ हमेशा इसी इन्तजार में बीतती हैं कि काश कोई ऐसा मुद्दा हाथ आ जाए, जिस पर खड़े-खड़े कुछ भी ABCD बोल कर 10 जनपथ की वफ़ादारी साबित कर सकें।

एक दशक पहले थूका, अब चाटा

ताजा मामला सिब्बल के थूक कर चाटने जैसा है। इस मामले में वो प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव जैसे महारथियों से सीधी टक्कर ले रहे हैं। उन्होंने इस बार कुछ अलग करने की सोच रखी है। इसी क्रम में सिब्बल ने ख़ुद को मीडिया के सामने खड़ा पाया। ये कॉन्ग्रेस नेताओं की विशेषता है। जैसे पीकू फिल्म में अमिताभ बच्चन किसी भी बात को पेट और कब्ज़ से जोड़ देते हैं, ठीक वैसे ही, कॉन्ग्रेस के नेतागण भी अपने घर में बिल्ली द्वारा फोड़े गए छीके के लिए भी मोदी को ही दोष देते हैं। बीवी से साधारण झगड़े के बाद भी वे खुद को कैमरे के सामने खड़ा हो कर मोदी को गाली देते हुए पाते हैं।

कॉन्ग्रेस के नेता कैमरे के सामने आते हैं या फिर कैमरा उनके पास आ जाता है- यह भी एक विवादित तथ्य है। भाजपा नेताओं की दिक्कत यह है कि कल को अगर कॉन्ग्रेस का कोई नेता यह बोल दे कि मोदीजी ने उनके घर की खिड़की का काँच तोड़ दिया है- तो भी मीडिया उसे इतना हाईलाइट करता है कि 10 भाजपा नेताओं को इसे झूठा साबित करने के लिए सबूतों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आना पड़ता है।

राम मंदिर मुद्दे पर सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के वकील सिब्बल और उनके बाकी के प्रतिद्वंदियों के बीच अंतर यह है कि बाकी आज थूकते हैं तो कल चाट लेते हैं, कपिल बाबू थोड़ा समय लेते हैं, लेकिन चाटते जरूर हैं। जैसे कि प्रशांत भूषण ने पहले आलोक वर्मा का विरोध किया और बाद में समर्थन में उतर आए। बाकी लोग इतना ज्यादा गैप नहीं रखते। कपिल सिब्बल ने 2011-12 में थूका और उस थूक को भलीभाँति सड़ाया और सात सालों बाद उसे चाट लिया। ताजा ख़बरों के अनुसार प्रशांत भूषण ने भी यह बयान ज़ारी कर दिया है कि सिब्बल इस थूक कर चाटने वाली इंडस्ट्री के अगले युवा सुपरस्टार हैं।

कार्टून बनाने पर सिब्बल के क़ानून के तहत जेल

असीम त्रिवेदी याद होंगे आपको। कॉन्ग्रेस के एक से एक भ्रष्टाचार के मामलों पर उन्होंने कई कार्टून बनाए थे। कॉन्ग्रेस नेताओं को ‘कार्टून’ हमेशा से पसंद नहीं रहे हैं, सिवाय एक के जिसका वो हुकूम बजाते हैं। ऐसे में त्रिवेदी के इस कृत्य को दिल पर लेते हुए उस समय देशद्रोह सहित तीन चार्ज लगा दिए गए। इसमें कपिल सिब्बल या कॉन्ग्रेस नेताओं की गलती नहीं है क्योंकि उनके लिए उनका देश, राज्य, जिला और पंचायत- सब उनकी पार्टी ही है और एक ही परिवार दशकों से वहाँ का प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, डीएम और मुखिया- सब है। आलम यह है कि कभी-कभी वो अपने नेताओं के असली फोटो को भी कार्टून समझ कर देशद्रोह के चार्ज ठोक दिया करते थे।

असीम त्रिवेदी की वेबसाइट को भी सिब्बल के क़ानून का प्रयोग करते हुए बंद कर दिया गया था। इसके अलावा कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता पूरे अन्ना हज़ारे आंदोलन, जिनसे असीम जुड़े थे, को देशद्रोह के तहत घसीटने को आतुर थे। आज अगर सिब्बल का क़ानून होता तो शायद वह ख़ुद भी जेल की हवा खा रहे होते क्योंकि कई लोग उनके चेहरे से ही ऑफेण्डेड हैं।

IT से IT तक का सफ़र

तत्कालीन IT मिनिस्टर कपिल सिब्बल ने 2010 में एक क़ानून (IT एक्ट, सेक्शन 66A) बनवाया, जिसमें इंटरनेट पर पोस्ट किए गए किसी भी कंटेंट से अगर कोई नेता ‘ऑफेंड’ हो जाता है, तो पुलिस उस पोस्टकर्ता को सलाख़ों के पीछे भेज सकती है। सालों तक इस क़ानून के खूब दुरुपयोग हुए लेकिन सिब्बल मिर्ज़ापुर के उस ‘*#@वाले चचा’ की तरह नाचते रहे। कुछ लोगों ने तो यहाँ तक दावा किया कि ममता बनर्जी ने एक बार खुद की असली फोटो को ही कार्टून समझ लिया था और इसे पोस्ट करने वाले बेचारे तृणमूल कार्यकर्ता को जेल जाना पड़ा था।

पहले सिब्बल का नाता IT डिपार्टमेंट से था, आज भी उनका नाता IT से ही जुड़ा हुआ है। वो अलग बात है कि वो IT इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी थी और ये वाली IT इनकम टैक्स है। सिब्बल के इस IT से IT तक के सफ़र में फ़र्क सिर्फ इतना है कि उस वाले IT में वो अकेले थे जबकि इस वाली IT में उनका पूरा परिवार भी शामिल है।

जब सिब्बल से 66A के बारे में सवाल पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि मैंने नहीं, संसद ने ये क़ानून बनाया है। उसके बाद से पत्रकार कैमरा और माइक लिए ‘संसद भवन’ की प्रतिक्रया का इंतज़ार कर रहे हैं लेकिन संसद भवन ने पत्रकारों से बातचीत करने से साफ़ इनकार कर दिया है। वैसे कॉन्ग्रेस का निर्जीव चीजों पर ठीकरा फोड़ने का पुराना इतिहास रहा है। दस सालों तक तो ऐसा समय चला था, जब सरकार के अच्छे कार्यों का श्रेय 10 जनपथ में बैठीं मोहतरमा के पास जाता था और जहाँ भी सरकार निष्फल साबित होती थी- उस मुद्दे का ठीकरा एक न बोलने वाले ‘जीव’ पर फोड़ दिया जाता था।

ताज़ा ख़बरों के अनुसार 66A को सिब्बल का क़ानून कहने से उनकी अपनी ही पार्टी उनसे ऑफेंड हो गई है और उन पर सिडिशन का चार्ज ठोकने वाली है। कॉन्ग्रेस का कहना है कि जिस देशद्रोह का चार्ज लगा कर उसने 45 साल पहले ही उत्पल दत्त जैसे महान कलाकार को जेल में ठूँस दिया था, उसके साथ आजकल के लड़के सिब्बल का नाम कैसे जोड़ा सकता है! कॉन्ग्रेस का कहना है कि देशद्रोह का चार्ज लगा कर लोगों को जेल भेजने के पुरोधा तो हम हैं, सिब्बल तो बस उसके IT सेल का हेड रहा है।

येक पे रहना, या घोड़ा बोलो या चतुर बोलो

अब उसी सिब्बल ने नरेंद्र मोदी रोज़गार गारंटी योजना के तहत देशद्रोह वाले क़ानून को हटाने की वकालत की है। उन्होंने इसे अंग्रेजों का क़ानून बताया है। महान गीतकार ने ANI को बयान देते हुए कहा कि इस क़ानून को हटा देना चाहिए। उनका बयान जायज है क्योंकि अगर ऐसा नहीं होगा तो वो ‘हार्डिक’ जैसों को डिफेंड कैसे कर पाएंगे। वैसे भी कॉन्ग्रेस में राजद्रोह का मतलब है उनके आकाओं का विरोध, देश का नहीं।

देशद्रोह को अंग्रेजों का क़ानून बताने वाले सिब्बल ने 2012 के एक इंटरव्यू में IT एक्ट के सेक्शन 66A का बचाव करते हुए कहा था कि ये कानून सही है क्योंकि ये UK, USA जैसे देशों के क़ानून पर आधारित है और उन्होंने उन देशों से ‘सटीक शब्द’ उधार लिए हैं।

सिब्बल के इस क़ानून का ख़ूब दुरुपयोग हुआ। एक बार कुछ यूँ हुआ कि किसी ने सोनिया गाँधी के ख़िलाफ़ इंटरनेट पर कुछ पोस्ट कर दिया। इसके बाद घबराए सिब्बल ने माइक्रोसॉफ्ट, फेसबुक, गूगल सहित पूरे इंटरनेट जगत को तलब कर लिया। सोनिया के ख़िलाफ़ कुछ लिखना अपराध है। कॉन्ग्रेस सरकारों के अनगिनत भ्रष्टाचारों पर कार्टून बनाना अपराध है। लेकिन जब ‘हार्डिक’ जैसा कोई भटका हुआ युवा अपनी खोटी क्रांति शुरू करता है और उसमें 12 युवकों की मृत्यु हो जाती है, तब सिब्बल और उनका काला कोट- दोनों ही खूँटी से उतर आते हैं और अपने-आप को अदालत की दहलीज पर पाते हैं

12 हत्याओं पर बैठ कर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने वाले ‘हार्डिक’ के लिए पैरवी करने सुप्रीम कोर्ट जाते समय सिब्बल यह भूल जाते हैं कि इसी कोर्ट ने उनके मंत्रालय द्वारा बनाए गए IT एक्ट के सेक्शन 66A को 2015 में ख़त्म कर दिया था। अब इस बात पर सिब्बल टिप्पणी करते हुए अपने संसद वाले बयान की तरह यह बात भी कह सकते हैं: “हार्डिक को मैं नहीं, मेरी काली कोट डिफेंड कर रही है।” उनके इस बयान का अगर कोई नहीं तो गुरमेहर कौर तो जरूर समर्थन करेगी।

फ़ैक्ट चेक: PM मोदी के हेलीपैड के लिए हज़ारों पेड़ काटे जाने की ख़बर का सच

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुर्दा-बलांगिर रेलवे लाइन को हरी झंडी दिखाने के लिए 15 जनवरी को ओडिशा के बलांगिर पहुँचे थे। प्रधानमंत्री का यह दौरा हेलिपेड निर्माण के लिए हजारों पेड़ काटे जाने की ख़बर के बाद विवाद में आ गया था। दरअसल 14 जनवरी को पीटीआई ने एक ख़बर अपडेट किया, जिसके बाद इस ख़बर को आधार बनाकर कई सारे मुख्यधारा की मीडिया वेबसाइट ने प्रधानमंत्री के हेलीपेड के लिए 1000-1200 पेड़ काटे जाने की ख़बर को प्रमुखता से वेबसाइट पर अपडेट किया।

पीटीआई ने डिविजनल फ़ॉरेस्ट ऑफिसर (बलांगिर) समीर सतपथी के स्टेटमेंट को आधार बनाकर यह रिपोर्ट तैयार कर दिया। अपने स्टेटमेंट में सतपथी ने कहा कि फ़ॉरेस्ट विभाग से अनुमति लिए बग़ैर हेलीपेड बनाने के लिए पेड़ों को काटा गया, इस मामले में जाँच का आदेश दे दिया गया है। फ़ॉरेस्ट विभाग के एक अधिकारी के बयान के बाद पीटीआई जैसी संस्थान में काम करने वाले रिपोर्टर ने ग्राउंड पर जाकर सच जानने की कोशिश नहीं की। हालाँकि, PTI की ख़बर में ‘alleged’ शब्द का इस्तेमाल हो रहा है, फिर भी देश के इतने बड़े संस्थान के द्वारा ऐसी ख़बर को ‘कथित’ (alleged) कहकर आगे बढ़ा देना आलस्य ही कहा जा सकता है।

इसका परिणाम यह हुआ कि प्रधानमंत्री से जुड़ी गलत ख़बर को लगभग सभी संस्थानों ने अपनी वेबसाइट पर अपडेट किया। इसके बाद हमने देखा कि 13 जनवरी 2019 को द हिन्दू ने अपने वेबसाइट पर एक ख़बर पब्लिश की है। इस ख़बर में इस बात का जिक़्र है कि ‘अर्बन प्लांटेशन प्रोग्राम’ के अंतर्गत 2.25 हेक्टेयर जमीन रेलवे विभाग ने 2016 में अपने अधीन लिया था। हेलीपेड बनाने के लिए कुछ खाली जमीन की ज़रूरत थी, जिसके के लिए 1.25 हेक्टेयर ज़मीन को साफ़ किया गया।

द हिंदू अपने 14 जनवरी के रिपोर्ट में स्टेट फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट की तरफ़ से समीर कुमार सतपती के हवाले से लिखा कि इस मामले में एक जाँच कमेटी गठित कर दी गई है। द हिंदू ने अपने रिपोर्ट में 1,000 से 1,200 पेडों के काटे जाने की पुष्टि की। उसके बाद, द हिंदू के रिपोर्ट को आधार बनाकर कई सारे मेन स्ट्रीम मीडिया ने इस गलत ख़बर को पब्लिश किया।

यह है ख़बर की सच्चाई

ऑपइंडिया टीम ने इस ख़बर की सच्चाई को ज़ानने के लिए ईस्ट कोस्ट रेलवे के मुख्य जनसूचना पदाधिकारी जेपी मिश्रा से संपर्क किया। जेपी मिश्रा ने हमारी टीम को बताया कि हेलीपेड बनाने का काम राज्य सरकार की पीडब्लूडी डिपार्टमेंट देख रही है।

इसके बाद थोड़ा रिसर्च करने के बाद हमने देखा कि TOI भुवनेश्वर ने एक ट्वीट के ज़रिए यह बताया है कि प्रधानमंत्री के ओडीशा दौरे में हजारों पेड़ काटे जाने की ख़बर गलत है। TOI ने, जहाँ हेलीपेड बनाई गई है, वहाँ से कई सारे वीडियो को ट्वीट किया।

यही नहीं अपने ट्वीट में TOI भुवनेश्वर ने यह दावा किया है कि ईस्ट कोस्ट रेलवे प्रवक्ता के मुताबिक हेलीपेड बनाए जाने के लिए बड़े पेड़ को नहीं काटा गया है। हालाँकि ट्वीट में यह बात लिखा है कि मौके पर करीब 40 के आस-पास पेड़ व झाड़ियों को हेलीपेड बनाने के लिए काटा गया है। इस तरह TOI भुवनेश्वर के इस रिपोर्ट से यह ज़ाहिर हो गया कि इंडियन एक्सप्रेस व द हिंदू जैसी मुख्यधारा की मीडिया ने गलत ख़बर को वेबसाइट पर अपडेट किया है।

यही नहीं PTI जैसी बड़ी न्यूज़ एजेंसी भी किसी ख़बर के तह में पहुँचे बगैर ख़बर को वेबसाइट पर अपडेट कर देती है। इससे भ्रामकता की स्थिति बनती है और कई लोग सच्चाई को नहीं जान पाते क्योंकि गलत ख़बर चलाने वाले संस्थान कभी भी अपनी गलती स्वीकार कर सच्ची ख़बर नहीं बताते।

पंजाब के ‘आप’ विधायक ने दिया पार्टी से इस्तीफ़ा, कहा- भटक गई है पार्टी की विचारधारा !

लोकसभा चुनावों के आते-आते राजनैतिक पार्टियों में उठा-पठक चालू हो रखी है। कहीं एक पार्टी के साथ दूसरी पार्टी की जुड़ने की खबरें आ रही हैं, तो कहीं पर विधायकों के पार्टी के छोड़ने की।

आने वाले लोकसभा के चुनावों से पहले अरविंद केजरीवाल की पार्टी को एक नया झटका लगा है। पंजाब में ‘आप’ पार्टी के विधायक बलदेव सिंह ने बुधवार यानि आज (जनवरी 16, 2019) पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया है। बता दें कि आप पार्टी के बलदेव सिंह पंजाब में ‘जैतो’ से विधायक थे।

पार्टी को छोड़ने से पहले बलदेव सिंह ने अरविंद केजरीवाल को भेजे ई-मेल में लिखा है कि वो बेहद दुखी मन के साथ आम आदमी पार्टी की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे रहे हैं। उन्होंने अपने पत्र में शिकायत भी की, कि आम आदमी पार्टी अपनी तय हुई विचारधारा से बिलकुल भटक चुकी है।

उन्होंने कहा कि वो अन्ना हजारे द्वारा शुरू किए गए आंदोलन से काफ़ी प्रेरित होकर ही ‘आप’ के साथ जुड़ने का फैसला किया था, जिसके लिए उन्होनें बतौर प्रधान शिक्षक अपनी सरकारी नौकरी छोड़ने का फैसला लिया था। इसका पीछे उनका उद्देश्य देश की (खासकर पंजाब की) सामाजिक-राजनीतिक स्थिति को सुधारने का था। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने ये फ़ैसला लिया था तब उनके पूरे परिवार में खलबली सी मच गई थी। लेकिन, फिर भी उन्होंने ‘आप’ के बुलंद इरादों और वायदों पर ये जोखिम लेना जरूरी समझा।

बलदेव सिंह के अलावा पंजाब के ही एक और विधायक सुख़पाल खैरा ने आम आदमी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दिया था। इन्होंने भी अपने इस्तीफ़े में केजरीवाल की पार्टी पर कई आरोप लगाए थे, कि पार्टी अपने निर्धारित किए हुए सिद्धांतों और विचारधारा से भटक चुकी है। जिस समय खैरा ने इस्तीफ़ा दिया उस समय वो पार्टी से निलंबित चल रहे थे, क्योंकि उन्होंने पार्टी के ख़िलाफ़ बगावत शुरू कर दी थी। जिसके कारण ही उनका पार्टी से निलंबन किया गया था। अब खबरें हैं कि अब बलदेव, सुखपाल खैरा की ‘पंजाबी एकता पार्टी’ से जुड़ सकते हैं।

इन दो विधायकों के अलावा हरविंदर सिंह फुलका जो पंजाब आदमी पार्टी के नेता और सिख़ विरोधी दंगे के वकील हैं, वो भी पार्टी को लेकर अपनी शिकायतों की वजह से सदस्यता छोड़ चुके हैं।

पाकिस्तान में ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ को मिली हरी झंडी

अनुपम खेर की फ़िल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ जिसमें वो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के किरदार में दिख रहे हैं, अब पाकिस्तान में भी पर्दों पर दिखाई जाएगी। पाकिस्तान के सेंसर बोर्ड ने इसे मंजूरी दे दी है।

फ़िल्म के निर्माता जयन्तीलाल गड़ा ने इस बात की जानकारी दी कि फ़िल्म पाकिस्तान में 18 जनवरी को रिलीज़ की जाएगी।

उन्होंने अपने बयान में कहा, “पेन स्टूडियो को इस बात को बताते हुए बेहद खुशी हो रही है, कि एक तरह की राजनीति से जुड़ी फ़िल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ को हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में हरी झंडी दिखा दी गई है। अब पाकिस्तान के सिनेमा प्रेमी भी इस फ़िल्म का आनंद उठा पाएँगे।”

उन्होंने अपने दिए बयान में कहा – “मैं हमेशा से ही इमरान खान को एक बहादुर क्रिकेटर होने के लिए सराहता था, लेकिन अब उनकी प्रधानमंत्री होने की भी इज़्ज़त करता हूँ। मैं बहुत शुक्रगुज़ार हूँ। पाकिस्तान के सेंसर बोर्ड अध्यक्ष ने हमारी फ़िल्म को रिलीज़ की अनुमति दी।”

‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ भारत में 11 जनवरी को रिलीज़ हो चुकी है। ट्रेलर के आने के साथ ही फ़िल्म कई विवादों से घिर गई थी। जिसकी वज़ह से इसे कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। बता दें कि ‘बॉलीवुड हंगामा’ के अनुसार फ़िल्म ने 5 दिनों में केवल ₹13.90 करोड़ की कमाई की है।

यह फ़िल्म संजय बारू की किताब के आधार पर बनी है। संजय, मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार भी रहे हैं। इस फ़िल्म में संजय बारू का किरदार अक्षय खन्ना द्वारा निभाया जा रहा है। फ़िल्म की ओवर-ऑल रेटिंग चाहे कुछ भी रही हो, लेकिन कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि मुख्य किरदार में दिख रहे, सभी कलाकारों ने किरदारों को सटीक तरह से निभाने का पूरा प्रयास किया, जिसके लिए वो सराहना योग्य हैं।