Wednesday, November 20, 2024
Home Blog Page 5190

कॉन्ग्रेस की घटिया राजनीति: आज़ाद ने की हिन्दुओं और दलितों को अलग-अलग दिखाने की कोशिश

राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आज़ाद ने अपने भाषण के दौरान हिन्दुओं व दलितों को अलग-अलग दिखाने की कोशिश की। आज़ाद बार-बार ‘हिन्दू और दलित’ बोलते रहे, ताकि ऐसा प्रतीत हो कि हिन्दू और दलित अलग-अलग हैं। गुलाम नबी आज़ाद ने अपने भाषण के दौरान कहा, “मुस्लिम और दलित के पाँव में काँटा चुभता था तो चुभन हिन्दू भाई के दिल में लगती थी, और अगर हिन्दू भाई की आँख में घास का छिलका (तिनका) जाता था तो आँसू मुस्लिम और दलित भाई की आँखों से निकलता था।” नीचे संलग्न किए गए वीडियो में आप आज़ाद के भाषण के उस अंश को देख सकते हैं।

यह पहली बार नहीं है जब कॉन्ग्रेस ने हिन्दू धर्म के अंतर्गत आने वाले समुदायों को अलग-अलग दिखाने या अलग करने की चेष्टा की हो। इससे पहले कर्नाटक में कॉन्ग्रेस ने लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देकर उनका वोट लेने की कोशिश की थी लेकिन लिंगायत समुदाय के ही कई नेताओं व धर्मगुरुओं ने इसका विरोध किया था। हालाँकि, कॉन्ग्रेस पार्टी की यह चाल कामयाब नहीं हो पाई थी।

कई लोगों ने गुलाम नबी को ही क़ानून की याद दिलाई। लोगों ने कहा कि संविधान के अनुसार भी जाति और जनजाति हों या फिर सामान्य वर्ग के लोग, ये सभी हिन्दू धर्म के अंतर्गत ही आते हैं। सोशल मीडिया पर लोगों ने यह भी पूछा कि क्या आज़ाद हिन्दू-मुस्लिम करने से पहले भारत के संविधान से चीजें भूल गए हैं?

रद हो सकती है मेहुल चोकसी की एंटीगुआ की नागरिकता, भारत लाने का रास्ता साफ

पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) को करोड़ों रुपए का चूना लगाकर विदेश फरार होने वाले हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी पर शिकंजा कस गया है। भारत के दवाब में एंटीगुआ सरकार ने मेहुल चोकसी की नागरिकता को खारिज करने का फैसला करने की खबर आ रही है। चोकसी को भारत वापस लाने के लिए प्रत्यर्पण प्रक्रिया मार्च में शुरू हुई थी। इसके लिए भारत की तरफ से लगातार दबाव बनाया जा रहा था। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एंटीगुआ के प्रधानमंत्री गैस्टन ब्राउन ने कहा कि मेहुल चोकसी को पहले एंटीगुआ की नागरिकता मिली थी, लेकिन अब इसे रद्द किया जा रहा है और भारत को प्रत्यर्पित किया जा रहा है। उन्होंने साफ-साफ कहा कि वो अपने देश को अपराधियों के लिए सुरक्षित ठिकाना नहीं बनने देंगे। 

गैस्टन ब्राउन ने कहा कि कानूनी प्रक्रिया जल्द से जल्द पूरा करके वो चोकसी को भारत भेजेंगे। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार चोकसी को भारत प्रत्यर्पित करने से पहले उसके हर कानूनी रास्ते आजमाने का इंतजार कर रही है। एंटीगुआ की एक कोर्ट अगले महीने चोकसी से जुड़े मामले की सुनवाई करेगा। उस समय तक काफी हद तक स्थिति साफ होने की उम्मीद है। हालाँकि, केंद्रीय विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर ने इस मामले पर किसी भी तरह की टिप्पणी करने से मना कर दिया है। उनका कहना है कि उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी है।

गौरतलब है कि, चोकसी पिछले साल से ही एंटीगुआ में है। कुछ दिन पहले उसने एक स्थानीय टीवी चैनल से कहा था कि उसके डॉक्टर ने उसे यात्रा नहीं करने की सलाह दी है। उसने दावा किया था वह भारत से भागा नहीं था बल्कि हॉर्ट सर्जरी के लिए देश छोड़ा था। चोकसी ने कहा था कि वो जाँच में सहयोग करने के लिए तैयार है, लेकिन स्वास्थ्य कारणों की वजह से भारत की यात्रा नहीं कर सकता है। जिसके बाद भारतीय जाँच एजेंसियों ने एंबुलेंस के जरिए वापस लाने का प्रस्ताव भी दिया था।

ताजा जानकारी के मुताबिक, एंटीगुआ की तरफ से अभी तक मेहुल चोकसी की नागरिकता को रद्द करने की आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। विदेश मंत्रालय के अनुसार अभी एंटीगुआ की सरकार द्वारा मेहुल की नागरिकता छीन लिए जाने की आधिकारिक पुष्टि होना बाकी है।

सोमवार (जून 24, 2019) को हाईकोर्ट ने मेहुल चोकसी के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए कहा था कि वो अपना स्वास्थ्य संबंधी जाँच के रिपोर्ट्स मुंबई के जेजे हॉस्पिटल को भेजे। अदालत ने कहा कि अस्पताल के मुख्य कॉर्डियोलॉजिस्ट रिपोर्ट की स्टडी और एनालिसिस करने के बाद अदालत को बताएंगे कि वह भारत की यात्रा करने के लिए फिट है या नहीं।

सरकारी बस में गए और चटाई पर सोए, फिर भी कुमारस्वामी ने ख़र्च किए ₹1 करोड़

कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी अपने बयानों व गठबंधन सरकार का मुखिया रहते हुए अपनी मजबूरियाँ गिनाने के लिए जाने जाते हैं। अब कुमारस्वामी एक अन्य वजह से विवादों में हैं। दरअसल, एक गाँव में एक रात बिताने के दौरान मुख्यमंत्री ने 1 करोड़ रुपए ख़र्च कर डाले। सीएम कुमारस्वामी अपने ‘विलेज स्टे’ कार्यक्रम के तहत कलबुर्गी के चंदरकी गाँव में ठहरे थे। वहाँ वे सरकारी विद्यालय में रुके, गद्दे को ठुकरा कर चटाई पर रात व्यतीत की और किसी महँगे रेस्टोरेंट से खाना भी नहीं मँगाया- फिर भी उनके इस कार्यक्रम का बजट 1 करोड़ रुपए के पार हो गया। इस ख़बर को सुन कर लोग हैरान हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है!

सबसे बड़ी बात कि गाँव पहुँचने के लिए उन्होंने स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन की बस का प्रयोग किया। कहा जा रहा है कि इन रुपयों में से ज्यादातर उनसे मिलने आने वाले महत्वपूर्ण लोगों व उनके साथ गए लोगों पर ख़र्च किया गया। ‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ के सूत्रों के अनुसार, 25 लाख रुपए सिर्फ़ उन लोगों के भोजन पर ख़र्च किए गए, जो यादगीर ज़िले के विभिन्न इलाक़ों से चंदरकी पहुँचे थे। इसके अलावा इतनी ही रक़म अधिकारियों द्वारा काउंटर बनाने व अन्य व्यवस्थाएँ करने पर ख़र्च की गई। ये काउंटर लोगों द्वारा याचिकाएँ लेने के लिए बनाए गए थे।

कुल 25,000 लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था की गई थी, जिनमें से 10,000 लोग पहुँचे ही नहीं। क़रीब 500 विद्यार्थियों, शिक्षकों, नेताओं व अधिकारियों को खाना खिलाया गया। इसके अलावा उन्हें अगली सुबह के लिए टिफिन में भोजन दिया गया। अब सबसे प्रमुख ख़र्चे पर आते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, 50 लाख रुपए सिर्फ़ स्टेज बनाने और मंच सम्बंधित अन्य व्यवस्थाएँ करने में ख़र्च की गईं। अपने ‘जनता दर्शन’ कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री ने कुल 4000 लोगों से मुलाक़ात की जबकि 1800 लोगों ने अपनी याचिकाएँ भेजने के लिए ऑनलाइन माध्यम का सहारा लिया।

मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने अधिकारियों को निर्देश दिया था कि उनके इस कार्यक्रम को एकदम सिम्पल रखा जाए और कोई तामझाम न किए जाएँ। लेकिन, कुमारस्वामी के साथ कई मंत्रियों, विधायकों और अधिकारियों का हुजूम भी चलता है, जिनके लिए व्यवस्थाएँ करनी होती है। तमाम सिम्पल व्यवस्था के दावों के बावजूद ज़मीनी स्तर पर कुछ और ही हुआ। कुमारस्वामी ने कहा कि ‘ग्राम वास्तव्य’ कार्यक्रम के दौरान मिल रही शिकायत याचिकाओं के निवारण के लिए एक अलग सेल का गठन किया गया है। इससे पहले 2006 में मुख्यमंत्रित्व काल के दौरान भी कुमारस्वामी इस तरह के कार्यक्रम कर चुके हैं।

कर्नाटक में नेता प्रतिपक्ष बीएस येदियुरप्पा ने कहा कि कुमारस्वामी ने 24 घंटे में कुल 1.22 करोड़ रुपए ख़र्च कर दिए। उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री ने रायचूर के एक गाँव में रुकने के दौरान भी 1 करोड़ रुपए ख़र्च किए थे। कर्नाटक भाजपा के अध्यक्ष येदियुरप्पा ने कुमारस्वामी से पूछा कि किसानों का लोन माफ़ करने वाले दावों की वास्तविकता क्या है? उन्होंने पूछा कि 1500 किसानों की आत्महत्या के बारे में सीएम का क्या कहना है? पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने कहा कि मुख्यमंत्री कुमारस्वामी को अपने लाइफस्टाइल के लिए गाँवों में रुकने के बहाने इतने रुपए ख़र्च करने पर शर्म आनी चाहिए। वहीं अधिकारियों ने इन आरोपों का खंडन किया है।

ज़िया उर रहमान समेत 4 संदिग्ध गिरफ्तार, ISIS और JuD से हो सकता है संबंध

पश्चिम बंगाल में आतंकवाद से संबंधित एक बड़ा मामला सामने आया है। खबर के अनुसार प्रदेश में कोलकाता पुलिस ने 4 संदिग्धों को गिरफ्तार किया है, जिनमें 3 बांग्लादेशी और 1 भारतीय शामिल हैं। कोलकाता के STF ने दावा किया है कि इन चारों का संबंध इस्लामिक स्टेट (ISIS) और बांग्लादेश के जमात-उद-दावा से है।

इनमें से 2 संदिग्धों को कोलकाता पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स ने सीलदा रेलवे स्टेशन से देर रात गिरफ्तार किया, जहाँ पुलिस को एक फोन भी मिला। इस फोन में कई तरह की फोटो, वीडियो, जिहाद टेक्स्ट और जिहाद से संबंधित किताबें मिली। इन दोनों के नाम मोहम्मद ज़ियाउर रहमान उर्फ मोहसिन उर्फ जाहिर अब्बास और मोमुनर राशिद है। इनके 2 अन्य साथियों को हावड़ा रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार किया गया, जिनमें मोहम्मद सहीन आलम उर्फ अलामिन अपने साथियों की तरह बांग्लादेश का ही है जबकि रोबिउल इस्लाम बंगाल के बीरभूम का रहने वाला है।

दैनिक जागरण में प्रकाशित खबर के मुताबिक गिरफ्तार हुए तीनों बांग्लादेशी भारत में अपने संगठन के लिए धन जुटाने और बाकी लोगों को अपने संगठन में भर्ती करने के इरादे से आए थे और चौथा संदिग्ध इनकी इस काम में मदद कर रहा था। फिलहाल ये चारों पुलिस की हिरासत में हैं और कोलकाता पुलिस इनसे पूछताछ कर रही है।

BSNL की हालत खराब, कर्मचारियों को सैलरी देने के लिए नहीं है पैसे

सरकारी टेलीकॉम कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) फिलहाल आर्थिक संकट से जूझ रही है। कंपनी के हालात इतने बुरे हैं कि कर्मचारियों को जून माह की सैलरी देने में भी असमर्थ है। BSNL में तकरीबन 1.7 लाख कर्मचारी काम करते हैं और जून महीने के इनके वेतन की राशि ₹850 करोड़ है। कंपनी ने सरकार से तत्काल फंड की सुविधा माँगी है। बीएसएनएल ने सरकार से ऑपरेशन जारी रखने में अक्षमता जताते हुए कहा कि कंपनी के पास कामकाज जारी रखने के लिए पैसे नहीं हैं। कंपनी के पास लगभग ₹13,000 करोड़ की आउटस्टैंडिंग लायबिलिटी है जिसने कारोबार चलाना मुश्किल बना दिया है।

इस मामले को लेकर बीएसएनएल के कॉर्पोरेट बजट एंड बैंकिंग डिविजन के सीनियर जनरल मैनेजर पूरन चंद्र ने टेलिकॉम मंत्रालय में ज्‍वाइंट सेक्रटरी को पत्र लिखकर कहा कि हर महीने के रेवेन्यू और खर्चों में अंतर की वजह से अब कंपनी का संचालन जारी रखना चिंता का विषय बन गया है। उन्‍होंने आगे कहा कि अब यह एक ऐसे लेवल पर पहुँच चुका है, जहाँ बिना किसी पर्याप्त इक्विटी को शामिल किए बीएसएनएल के ऑपरेशंस जारी रखना लगभग नामुमकिन होगा।

BSNL के साथ-साथ MTNL भी आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। दोनों कंपनियाँ 2010 से घाटे में चल रही हैं। MTNL दिल्ली और मुंबई में तथा BSNL शेष 20 दूरसंचार सर्किलों में परिचालन करती है। बीएसएनएल का घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। वित्त वर्ष 2017 में कंपनी को ₹4,786 करोड़ का घाटा हुआ था। वहीं, 2018 में यह बढ़कर ₹8,000 करोड़ हो गया। 2019 में इसके और ज्यादा बढ़ने की आशंका है।

बीएसएनएल के इंजीनियरों और अकाउंटिंग प्रोफेशनल्स के एक संघ ने रविवार (जून 23, 2019) को पीएम नरेंद्र मोदी से कंपनी को मुसीबत से उबारने का आग्रह किया था। उन्होंने बताया कि कंपनी पर किसी तरह का कर्ज नहीं है, साथ ही कंपनी की मार्केटिंग पार्टनरशिप में भी लगातार इजाफा हो रहा है। ऐसे में कंपनी को फिर से खड़ा किया जाना चाहिए। कंपनी में उन कर्मचारियों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए जो अपना काम ठीक से नहीं कर रहे हैं। वहीं, कंपनी के इस हालात के पीछे उसका तकनीकी रुप से पिछड़ना भी शामिल है। देश जहाँ 5जी की तैयारी में जुटा है, तो वहीं BSNL अभी भी 4 जी के लिए संघर्ष कर रहा है।

आसाराम को ठगने वाले दंपति आपस में ही ठगे गए: कहानी पूरी फ़िल्मी है

केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के सलाहकार मंडल की सदस्या होने का दावा करने वाली एक महिला शिखा गुप्ता को उसके पति नितिन गुप्ता के साथ शनिवार को दिल्ली के प्रीत विहार से राजस्थान पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन्स ग्रुप (एसओजी) ने गिरफ्तार किया था। टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने एसओजी के अतिरिक्त अधीक्षक करण शर्मा के हवाले से बताया है कि दम्पति के पास से पहचान पत्र और प्रवेश पत्र (एंट्री पास) मिले हैं। नितिन गुप्ता की सारी पहचान झूठी निकली है, जबकि शिखा गुप्ता के दावों का सत्यापन हो रहा है।

शिखा गुप्ता ने हजारों लोगों से पैसे ठगे हैं। हजारों लोगों से करोड़ों ठगने की आरोपित शिखा गुप्ता को पुलिस हिरासत में बड़ा झटका तब लगा जब उसके पतिदेव ने ही पुलिस के सामने अपनी एक और पत्नी होने की बात कबूली। कानून मंत्रालय में प्रधान सलाहकार होने का नकली दावा करने के आरोपी नितिन गुप्ता ने बताया कि उनकी पहले भी शादी हो चुकी है, और पहली पत्नी जयपुर के जगतपुरा में एक किराए के फ्लैट में रहती है।

एसओजी का दावा है कि दम्पति ने राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और नई दिल्ली के भोले-भाले लोगों को चोटी के मेडिकल कॉलेजों में दाखिला, बैंक, रेलवे जैसे ‘मलाईदार’ विभागों में नौकरी जैसे प्रलोभन देकर लगभग ₹2 करोड़ ऐंठे हैं। पुलिस ने यह भी दावा किया कि आरोपित दिल्ली के वरिष्ठ नेताओं और नौकरशाहों के सम्पर्क में भी हैं, और लोगों को ठगने के लिए अपने फर्जी प्रभाव का इस्तेमाल करते हैं।

लोगों को ठगने के लिए उन्हें रेलवे, राष्ट्रीयकृत बैंकों में नौकरी का लालच देते थे और सीबीएफसी की सदस्यता का प्रलोभन दे भी वसूली करते थे। उन्होंने यह भी बताया कि शुरुआती जाँच में नितिन मूल रूप से अलीगढ़ का रहने वाला है और दिल्ली आने से पहले मेरठ में कंस्ट्रक्शन कम्पनी में काम करता था। एक मैरिज ब्यूरो में काम करने वाली शिखा से शादी के बाद वह पत्नी सहित दिल्ली आ गया और कई केंद्र सरकार के विभागों के कई नौकरशाहों के साथ उसने संबंध कायम किए।

एसपी करण शर्मा के मुताबिक, “नितिन अपने नेटवर्क का इस्तेमाल केंद्र सरकार में राजनीतिक नियुक्तियों के लिए करता था। 2014 में उसने खुद ही कानून मंत्रालय में सलाहकार बनने की पुरज़ोर कोशिश की लेकिन असफल रहा। इसके बावजूद उसने नकली पहचान पत्र और विजिटिंग कार्ड बनवा कर खुद को सलाहकार बताना शुरू कर दिया।”

उसके ‘पीड़ितों’ में केवल आम लोग ही नहीं, बलात्कार के मामले में जेल में बंद आसाराम बापू का भी नाम आया है। पुलिस ने बताया कि पैरोल पर जेल से छुड़वाने के एवज में नितिन ने आसाराम से भी ₹50 लाख वसूले थे। बताया जा रहा है कि वह कुल 4 बार जेल में जाकर आसाराम से मिला था। एसपी करण शर्मा ने बताया कि दम्पति के कॉल डिटेल और 8 खातों की जाँच जारी है

‘आपातकाल से जनता नाराज़ नहीं थी’: रेंगने का सपना पाले Scroll के पत्रकार शोएब के दावे का सच

आज हम 1977 के उस चुनाव को याद करने जा रहे हैं, जिसमें जनता ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को देश पर आपातकाल थोपने की सज़ा दी थी। एक ऐसा चुनाव, जिसकी पटकथा में एक 75 वर्षीय बूढ़े की क्रांति का ज़िक्र आता है। स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी जयप्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई की जुगलबंदी को जनता ने सर-आँखों पर बिठाया और जनता पार्टी ने कॉन्ग्रेस को चारो खाने चित कर दिया था। आपातकाल के दौरान हुए अत्याचारों से त्रस्त जनता ने पिछले चुनाव में 352 सीटें जीतने वाली कॉन्ग्रेस को 189 पर समेट दिया। कॉन्ग्रेस को 217 सीटों का भारी नुक़सान हुआ। आपातकाल के दौरान विपक्षी नेताओं और उनके समर्थकों के साथ जैसा व्यवहार किया गया, उससे समझा जा सकता है कि जनता के गुस्से का कारण क्या था?

लेकिन आज मीडिया में कुछ ऐसे कुकुरमुत्ते पैदा हो गए हैं, जो भारतीय लोकतंत्र के सबसे काले अध्याय को जायज ठहराने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। जैसे, हमारी नज़र स्क्रॉल के एक लेख पर पड़ी, जिसमें महज वोट प्रतिशत के आधार पर यह साबित करने की कोशिश की गई है कि लोग आपातकाल से नाराज़ नहीं थे। स्क्रॉल के प्रोपेगंडा को हम यहाँ बिंदु दर बिंदु काटते चलेंगे और उसे सच्चाई का एक ऐसा आइना पेश करेंगे, ताकि उन्हें एक तानाशाही रवैये को जायज ठहराने के लिए शर्मिंदगी महसूस हो। शोएब दानियाल द्वारा लिखे गए इस आर्टिकल में दावा किया गया है कि एक ऐसा ‘नैरेटिव तैयार कर दिया गया’ कि आपातकाल का समय बहुत बुरा था जबकि ऐसा कुछ नहीं था। प्रोपेगंडा पोर्टल पर प्रकाशित प्रोपेगंडा आर्टिकल के प्रोपेगंडा लेखक का प्रोपेगंडा ट्वीट:

शोएब ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लालकृष्ण आडवाणी के बयानों का ज़िक्र किया है। नरेंद्र मोदी ने लिखा था कि आपातकाल भारतीय इतिहास के सबसे अंधकारमय काल में से एक था। हालाँकि, शोएब दावा करते हैं कि 3000 वर्षों के इतिहास में ऐसा अंधकारमय समय कई बार आया। शोएब का कहना सही है। बख्तियार ख़िलजी द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय व लाखों पुस्तकों को जला देना, मुस्लिम शासकों द्वारा विजयनगर साम्राज्य को जीत कर थोक में महिलाओं का बलात्कार करना, अकबर के जीतने के बाद मुग़लों द्वारा दिल्ली में नरमुंडों का पहाड़ खड़ा किया जाना, ब्रिटिश शासन, औरंगजेब द्वारा हिन्दुओं पर अत्याचार और तैमूर की क्रूरता जैसे कई काले अध्याय हमारे इतिहास में भरे पड़े हैं।

आख़िर पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ब्रिटिश राज से आपातकाल की तुलना करते हुए क्यों न कहें कि वो देश की स्वायत्तता पर निर्मम हमला था? आडवाणी ने उस विभीषिका को झेला है। जो व्यक्ति 19 महीनों तक सिर्फ़ इसीलिए जेल में रहा क्योंकि उसने भारतीय लोकतंत्र के अंतर्गत विपक्ष का हिस्सा रहना पसंद किया था, क्या उसे अपनी पीड़ा व्यक्त करने का अधिकार नहीं? आडवाणी ने 2010 में लिखा था कि आपातकाल को भूल जाना लोकतंत्र को क्षति पहुँचाने जैसा होगा। नेहरू द्वारा स्थापित समाचारपत्र नेशनल हेराल्ड में तंजानिया के ‘एक पार्टी सिस्टम’ को ‘मल्टी पार्टी सिस्टम’ जितना ही ताक़तवर बताया गया। आपातकाल के दौरान उन अत्याचारों के प्रत्यक्ष गवाह व पीड़ित रहे आडवाणी कहते हैं:

“आपातकाल के ख़िलाफ़ लड़ने वाले सभी लोग लोकतंत्र के सेनानी थे। आज और भविष्य की पीढ़ियों को लोकतंत्र की रक्षा हेतु उनके योगदानों को पढ़ाया जाना चाहिए। आपातकाल वाले दौर को सिलेबस में शामिल किया जाना चाहिए। उस दौरान प्रेस को पूरी तरह सेंसर किया जाता था। आपातकाल या सरकार की आलोचना की किसी को भी अनुमति नहीं थी। इंदिरा ने मीडिया को झुकने को कहा तो वो रेंगने ही लगा।”

स्क्रॉल के आर्टिकल में आगे बताया गया कि कॉन्ग्रेस को मिलने वाले मतों की संख्या में वृद्धि हुई। आगे इसी लेख में बता दिया जाता है कि ऐसा जनसंख्या वृद्धि के कारण हुआ। 1971 और 1977 में हुए चुनावों में कुल मतों की तुलना करना बेहूदगी ही होगी क्योंकि 6 वर्षों में भारत जैसे देश में जनसंख्या काफ़ी तेज़ी से बढ़ती है और यहाँ चुनाव में मत प्रतिशत देखे जाते हैं। 1971 के मुक़ाबले 1977 में कॉन्ग्रेस को 9.3% कम वोट मिले, जो 2014 में कॉन्ग्रेस के ख़राब प्रदर्शन के ही सामान हैं। लेकिन अब हम आपको बताते हैं कि स्क्रॉल के इस दावे में खोत (गलती) कहाँ है। दरअसल, स्क्रॉल इस लेख में यह ज़िक्र करना भूल गया कि इंदिरा गाँधी ख़ुद लोकसभा चुनाव हार गई थीं।

1977 में रायबरेली से इंदिरा गाँधी को राज नारायण ने 55,000 से भी अधिक मतों से हरा दिया था। इंदिरा अपने ख़ुद के ही संसदीय क्षेत्र में 16% से भी अधिक मतों से पिछड़ गई थीं। क्या यह जनता का गुस्सा नहीं दिखाता है? जब देश का सबसे ताक़तवर नेता मानी जाने वाली शख़्सियत ख़ुद की लोकसभा सीट भी न बचा पाए? इसकी तुलना 2014 से इसीलिए नहीं की जा सकती क्योंकि 2014 में राहुल गाँधी मोदी लहर के बावजूद अमेठी से जीत दर्ज करने में कामयाब रहे थे। अगर राजनीतिक शक्ति की बात करें तो इंदिरा के सामने राहुल कहाँ ठहरते हैं, ये कोई बच्चा भी बता दे। अर्थात, देश के लोकतान्त्रिक इतिहास में सबसे ताक़तवर नेताओं में से एक का खुद की सीट भी न बचा पाना स्क्रॉल के लिए जनता के गुस्से को नहीं दिखाता।

एक और बात गौर करने लायक यह है कि आज़ादी के पहले से पूरे देश में स्थापित रहने के कारण कॉन्ग्रेस का ज़मीनी संगठन उस समय इतना मजबूत था, जिसे हिला पाना और उसके समांनातर संगठन खड़ा करना एक समय लेने वाली लम्बी और जटिल प्रक्रिया थी। यह इंदिरा गाँधी और संजय गाँधी के प्रति लोगों का भारी आक्रोश ही था कि चुनाव से ऐन पहले जनता मोर्चा के नाम से एक छतरी के तले आए कुछ दलों को जनता ने पूर्ण बहुमत दे दिया। स्क्रॉल ने दक्षिण भारत में कॉन्ग्रेस के बढ़े वोट शेयर को लेकर पूरे भारत का रुख बता दिया जबकि यह ज़िक्र तक नहीं किया कि बाकी राज्यों में पार्टी का क्या हाल हुआ था।

कुछेक क्षेत्रों के आँकड़े गिना कर आपातकाल को जायज ठहराने की कोशिश की जा रही है, ये वही मीडिया है जो इंदिरा द्वारा झुकने की बात कहने पर रेंगने लगा था। शायद मीडिया के इस गिरोह विशेष को इंदिरा जैसी ही किसी शख़्सियत का फिर से इन्तजार है, ताकि उस दौरान में अस्तित्व में नहीं रहे ये प्रोपेगंडा पोर्टल्स अपनी रेंगने की फंतासी को आज पूरी कर सकें। स्क्रॉल ने आगे कॉन्ग्रेस के वोट प्रतिशत में आई कमी का कारण जगजीवन राम का पार्टी छोड़ना बताया है। स्क्रॉल का मानना है कि सिर्फ़ जगजीवन राम के चले जाने से ही कॉन्ग्रेस को दलित वोटों का नुकसान हुआ था।

2014 और 1977 की तुलना करने वाले शोएब ने यह लेख 2015 में लिखा था। तब 1980 चुनाव में इंदिरा की वापसी की याद दिलाने वाले शोएब या स्क्रॉल को यह अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि 2019 में क्या होने वाला है। अब जब 2019 लोकसभा चुनाव का परिणाम आ चुका है, शोएब को पता चल ही गया होगा कि 1977 और 2014 में उतना ही अंतर है, जितना 1980 और 2019 में। यह भी जानने लायक बात है कि 1977 में लोगों का गुस्सा कॉन्ग्रेस पार्टी से ज्यादा इंदिरा और संजय के अत्याचारों से था, उन दोनों से लोग आक्रोशित थे। उनका गुस्सा इंदिरा गाँधी के प्रति ज्यादा था, जिसकी सज़ा उन्हें मिली। प्रोपेगंडा पोर्टल्स हो सकता है कि कल अंडमान निकोबार द्वीप समूह से आँकड़े लाकर यह भी साबित करने की कोशिश करें कि आपातकाल के दौरान कोई भी विपक्षी नेता जेल में नहीं था।

इतिहास को अपने हिसाब से लिखते आए इतिहासकारों, पत्रकारों और कथित विशेषज्ञों को पता होना चाहिए कि अब उनका ज़माना लद गया है। अब लक्षद्वीप के आँकड़े लाकर पूरे भारत का रुख बताने की कोशिश नहीं चलेगी। आज आपातकाल को लेकर जनता के आक्रोश को कम कर दिखाने की कोशिश करने वाले स्क्रॉल और तब तंजानिया की ‘एक पार्टी सिस्टम’ का गुण गाने वाले नेशनल हेराल्ड में कोई अंतर नहीं है। आज का स्क्रॉल नेहरू-इंदिरा के युग का नेशनल हेराल्ड ही है, बस इनकी रेंगने की फैंटसी पूरी नहीं हुई है। आज आपातकाल को वाइटवाश करने वाले लोग कल को ये भी कहने लग जाएँ कि नालंदा में शिक्षकों को मौत के घात उतार कर लाखों पुस्तकों को जला देने वाला ख़िलजी महान था, तो आश्चर्य मत कीजिएगा।

Army Intelligence ने अधिकारियों को किया आगाह: ‘ओए सौम्या’ से रहें सावधान

आर्मी इंटेलीजेंस ने सेना के सभी जवानों और अफसरों को एडवाइजरी जारी करके आगाह किया है कि वे इंस्टाग्राम पर सक्रिय प्रोफाइल ‘ओए सौम्या’ से सावधान रहें। दरअसल, सेना के साइबर एक्सपर्ट का मानना है कि यह एक फर्जी प्रोफाइल है जिसे जासूसी के लिए तैयार किया गया है।

आर्मी इंटेलीजेंस की ओर से जारी एडवाइजरी में बताया गया है कि यह प्रोफाइल भारत के सैन्य संस्थानों को निशाना बनाने के लिए तैयार किया गया है। इंटेलिजेंस को संदेह है कि ‘ओए सौम्या’ नाम का अकॉउंट दुश्मनों के जासूस का है जो सेना अधिकारियों एवं स्पेशल फोर्स के जवानों को निशाना बनाने की कोशिश में हैं लेकिन, फिलहाल ये अकाउंट सेवा में नहीं है।

गौरतलब है पिछले दिनों फर्जी अकॉउंट के ऐसे बहुत से मामले सामने आए हैं, जिनमें सेना की जानकारियाँ लीक कर दी गईं। दुश्मन पक्ष के जासूस अक्सर ऐसी आकर्षक प्रोफाइल बनाकर सोशल मीडिया पर सैन्य कर्मियों से दोस्ती करके उनसे संपर्क साध लेते हैं और कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ हासिल कर लेते हैं। इसीलिए, सैन्य कर्मियों को सोशल मीडिया से दूर रहने की सलाह दी जाती है लेकिन बावजूद मनाही के कई अफसर फर्जी प्रोफाइल से सोशल मीडिया पर सक्रिय पाए गए हैं।

बता दें अभी बीती 16 मई को ऐसा ही एक मामला सामने आया था, जिसमें महू में तैनात बिहार के रहने वाले एक आर्मी क्लर्क पर पाकिस्तान को भारतीय सेना की ख़ुफ़िया जानकारी लीक करने के मामले में हिरासत में लिया गया था। खबरों के मुताबिक इस मामले में पाकिस्तान के एक फर्जी अकॉउंट के जरिए आर्मी क्लर्क को हनी ट्रैप में फंसाया गया था और बाद में उन्हें इंडियन आर्मी की लोकेशन, मूवमेंट और एक्सरसाइज से जुड़ी जानकारी हासिल करने का काम दे दिया था।

टास्क मिलने के बाद वह (आर्मी क्लर्क) अपने सूत्रों से जानकारी हासिल करते और वॉट्सऐप के जरिए सारी जानकारी पाकिस्तान को भेज देते। जवान की इन हरकतों से इंटेलिजेंस को उनपर शक हुआ और उन्हें फिजीकल और इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस में रख दिया गया, उनकी हरकतों को लगातार ट्रैक किया गया। एक महीने बाद जब उनके ख़िलाफ़ सबूत मिले तो मध्यप्रदेश पुलिस की एटीएस ने उन्हें हिरासत में ले लिया।

झारखंड मॉब लिंचिंग में 11 आरोपित गिरफ्तार, 2 पुलिस अधिकारी सस्पेंड, जाँच जारी

झारखंड के सरायकेला में मॉब लिंचिंग का शिकार हुए 24 वर्षीय तबरेज अंसारी की मौत के मामले में पुलिस ने कार्रवाई करते हुए 11 आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने बताया कि कथित चोरी को लेकर इस युवक के साथ भीड़ ने मारपीट की थी। इसके साथ ही पुलिस अधीक्षक (एसपी) कार्तिक एस ने दो पुलिस पदाधिकारियों- खरसावां थाना प्रभारी चंद्रमोहन उरांव व सीनी ओपी प्रभारी विपिन बिहारी सिंह को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर दिया। दोनों पर लापरवाही बरतने व अपने वरीय पदाधिकारी को सूचना नहीं देने का आरोप है।

जानकारी के मुताबिक, मामले पर पुलिस प्रशासन ने संज्ञान लेते हुए एसडीपीओ अविनाश कुमार के नेतृत्व में विशेष जाँच दल (एसआईटी) का गठन किया गया है। एसआईटी में आरआईटी के थाना प्रभारी सह इंस्पेक्टर, आदित्यपुर के थाना प्रभारी सह इंस्पेक्टर, सरायकेला थाना प्रभारी व नए खरसावां थाना प्रभारी को रखा गया है। एसपी के निर्देश पर एसआईटी ने जाँच शुरू कर दी है।

पुलिस अधीक्षक कार्तिक एस ने बताया कि 17 जून को अंसारी अपने दो अन्य साथियों के साथ चोरी की नीयत से रात में सरायकेला के एक गाँव में घुसा था। इस दौरान घर के लोग जाग गए और शोर मचा दिया। जिसके बाद हंगामा होने पर अंसारी के दोनों साथी भाग निकले, जबकि तबरेज अंसारी को ग्रामीणों ने पकड़ कर बिजली पोल से बाँध कर पिटाई की। एसपी ने कहा कि अंसारी के पास से कुछ बेशकीमती सामान बरामद हुए, जो उसने और उसके साथियों ने अन्य गाँवों से कथित तौर पर चुराए थे।

ग्रामीणों की सूचना पर पहुँची पुलिस ने ग्रामीणों की पिटाई से घायल तबरेज अंसारी को हिरासत में लिया। पुलिस ने इलाज कराने के बाद उसे जेल भेज दिया। 22 जून की सुबह तबरेज अंसारी की तबीयत जेल में अचानक बिगड़ गई। जिसके बाद जेल प्रशासन ने उसे इलाज के लिए सदर अस्पताल भेजा, जहाँ पता चला कि उसे बहुत चोटें आईं हैं। बाद में, अंसारी को जमशेदपुर के टाटा मेन अस्पताल ले जाया गया, जहाँ चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया। लेकिन, परिजनों ने तबरेज के जिंदा होने की बात कह अस्पताल में हंगामा शुरू कर दिया। हंगामा बढ़ते देख चिकित्सकों ने उसके परिजनों की डिमांड पर टाटा मुख्य अस्पताल रेफर कर दिया, लेकिन वहाँ भी जाँच कर तबरेज को मृत घोषित कर दिया गया।

इस घटना का एक कथित वीडियो सामने आया है जिसमें कुछ लोग पीड़ित को ‘जय श्री राम’ और ‘जय हनुमान’ बोलने के लिए विवश करते हुए दिख रहे हैं। एसपी ने बताया कि जो वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ है, उसकी जाँच की जा रही है। जाँच पूरी होने पर सारी सच्चाई सामने आ जाएगी। वहीं, झारखंड प्रदेश कॉन्ग्रेस के एक नेता ने मृतक के परिवार को ₹25 लाख मुआवजा और उसकी पत्नी को नौकरी दिए जाने की माँग की है।

भारत से हारने के बाद मैं आत्महत्या करना चाहता था: पाकिस्तानी क्रिकेट कोच

पाकिस्तान टीम के कोच मिकी ऑर्थर ने कहा है कि वो 16 जून को भारत से मिली हार के बाद आत्महत्या करना चाहते थे। मिकी ने मीडिया से हुई बातचीत में बताया, “सब कुछ बहुत जल्दी-जल्दी हुआ, हम लगातार मैच हारे, ये विश्वकप है, मीडिया और लोगों का दबाव रहता है। पिछले रविवार हार के बाद तो इतना ज्यादा दबाव था कि मैंने आत्महत्या का मन बना लिया था, लेकिन फिर मैंने टीम से कहा कि सिर्फ एक अच्छा प्रदर्शन सब बदल देगा।”

ऑर्थर ने बताया कि 16 जून को मिली हार के बाद पाकिस्तानी क्रिकेटर्स को सोशल मीडिया के साथ-साथ सार्वजनिक रूप से इतना आहत किया गया कि वे सोए भी नहीं।

साउथ अफ्रीका को हराने के बाद हुई इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में मिकी से एक पत्रकार ने पूछा कि क्या आखिरी ओवर तक हारिस सोहेल थक गए थे, क्योंकि वे शतक नहीं लगा पाए? पत्रकार के इस सवाल पर मिकी काफ़ी भड़क गए और कहा, “हारिस ने 59 ने गेंद में 89 रन बनाए, ऐसी पारी बहुत लंबे समय बाद देखने को मिली, आप लोग अच्छी बातें क्यों नहीं लिखते हैं?”

गौरतलब है 23 जून को साउथ अफ्रीका को विश्व कप 2019 के 30वें मैच में 49 रनों से हराने के बाद पाकिस्तान टीम अंक तालिका में सातवें स्थान पर पहुँच गई है। इस हार के बाद जहाँ साउथ अफ्रीका की टीम सेमीफाइनल की रेस से पूरी तरह बाहर हो गई। अब सेमीफाइनल में जगह बनाने के लिए पाकिस्तान टीम को बाकी बचे तीनों मैचों में जीत हासिल करनी जरूरी है।