मीडिया में यह चलाया जा रहा है कि बिहार सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों को लेकर नया कानून बनाया है, जिसमें पुत्र-पुत्री द्वारा उनका भरण-पोषण या देखरेख ठीक से न करने की स्थिति में उन पर कार्रवाई की जा सकेगी। आपको बता दें कि तकनीकी रूप से यह कोई नया कानून नहीं है। केंद्र सरकार द्वारा 2007 में लागू किए गए अधिनियम को ही नीतीश सरकार ने कुछ बदलावों के साथ लागू किया है। जैसे, पूर्व में बेटे या बेटियों द्वारा प्रताड़ित किए जाने वाले माता-पिता को न्याय के लिए जिलों के परिवार न्यायालय में अपील करने जाना होता था। वहाँ पर सुनवाई प्रधान न्यायाधीश के स्तर पर होती थी। नए नियमों के मुताबिक, अब माता-पिता जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित अपील अधिकरण में अपील करेंगे। इसका अर्थ यह हुआ कि अब से डीएम ही मामले की सुनवाई करेंगे।
वर्ष 2007 में “माता–पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण तथा कल्याण अधिनियम 2007” को संसद में पारित किया गया था और उसी वर्ष दिसम्बर में राष्ट्रपति की मंज़ूरी के बाद इसे “भारत का राजपत्र (गैजेट ऑफ इंडिया)” में शामिल किया गया था। बिहार सरकार के अंतर्गत आने वाले राज्य समाज कल्याण विभाग ने इसमें कुछ संशोधन सुझाए थे, जिस पर अमल करने के बाद नीतीश कुमार ने इसे लागू करने की घोषणा की है। इससे पहले सितम्बर 2012 में बिहार सरकार ने अधिसूचना जारी करते हुए इस अधिनियम को लेकर बनाई गई नियमावली को राज्यपाल की मंज़ूरी के बाद लागू किया था।
इस अधिनियम के अंतर्गत अगर पुत्र या पुत्री अपने माता-पिता की देखरेख नहीं करते हैं तो शिकायत के बाद उन पर कार्रवाई की जा सकती है। अगर वो अपना पक्ष रखने के लिए उपस्थित नहीं होते हैं तो सम्बंधित अधिकारी एकपक्षीय कार्रवाई के लिए स्वतंत्र होंगे। इस अवसर पर नीतीश कुमार ने कहा, “आज के बदले सामाजिक परिवेश में अपने बच्चों को परवरिश देने वाले माता-पिता को सामाजिक के साथ-साथ क़ानूनी संरक्षण देना सरकार का भी कर्तव्य है। पूरे देश में बिहार संभवत: ऐसा पहला राज्य होगा जहाँ यह क़ानून लागू किया जा रहा है।“
Bihar Cabinet-led by CM Nitish Kumar yesterday approved a proposal to punish with a jail term sons & daughters who abandon their elderly parents. The proposal has provisions of punishments which could go up to imprisonment if wards don’t look after their aged parents properly pic.twitter.com/y7z65AOTOD
— ANI (@ANI) June 12, 2019
इसीलिए, जैसा कि मीडिया द्वारा कहा जा रहा है कि सज़ा का प्रावधान नया क़ानून बना कर किया गया है, ऐसा कुछ भी नहीं है। इस अधिनियम में कार्रवाई का प्रावधान पहले से ही था और यह अधिनियम 2007 से ही मौजूद है। नीतीश सरकार ने बस इसमें संशोधन किया है, जो समाज कल्याण विभाग द्वारा सुझाया गया था। अतः, इस अधिनियम की नियमावली में बिहार सरकार की तरफ़ से बदलाव किया गया है, इसे बिहार सरकार द्वारा नए सिरे से नहीं तैयार किया गया है। सामाजिक सुधार की दिशा में कार्य कर रहे नीतीश कुमार के लिए शराबबंदी, बाल विवाह रोकथाम, दहेज़ प्रथा पर प्रहार के बाद यह अगला क़दम है।