Wednesday, June 26, 2024
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क्यों है वाराणसी का यह स्टेशन चर्चा में? तस्वीरें देखिए और स्वयं जानिए

रेलमंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में अपने ट्विटर हैंडल से एक विडियो शेयर करते हुए लिखा था, “वाराणसी का मंडुआडीह स्टेशन विश्वस्तरीय सुविधाओं के साथ अपनी स्वच्छता और सौंदर्यीकरण से यात्रियों को एक नया अनुभव प्रदान कर रहा है। काशी के प्राचीन वैभव को पुनः जीवित करता यह स्टेशन देश के सबसे सुंदर स्टेशनों में से एक बनने जा रहा है।”

आइए एक नज़र दौड़ाते हैं स्टेशन की कुछ तस्वीरों पर


खत्म किया जा सकता है 35A, श्रीनगर क़िले में तब्दील

श्रीनगर की सड़कों पर अचानक से हलचल बढ़ गई है और अर्ध सैनिक बलों की 100 टुकड़ियों को जम्मू-कश्मीर में उतारने का आदेश गृह मंत्रालय ने दे दिया है। इसमें CRPF की 45, BSF की 35, SSB की 10 and ITBP की 10 टुकड़ियाँ बुलाई गई हैं। लोग इसे सोमवार को धारा 35A पर होने वाली सुनवाई से जोड़ कर देख रहे हैं। कई ख़बरों में सरकार द्वारा इस पर अध्यादेश लानेवाले की बातें भी हो रही हैं।

शनिवार (फरवरी 23, 2019) को घाटी से लगभग 150 अलगाववादियों को गिरफ़्तार कर लिया गया। इसमें से अधिकतर जमात-ए-इस्लामी जम्मू-कश्मीर से संबंध रखते थे। इस पर महबूबा मुफ़्ती समेत कई नेताओं ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि सरकार का यह फ़ैसला गलत है। 

मुफ़्ती ने ट्वीट करते हुए पूछा है कि सरकार ने किस कानून के तहत हुर्रियत नेताओं और जमात के कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया है? उन्होंने यह भी कहा कि आप विचारों को क़ैद नहीं कर सकते। 

पुलिस ने इसे एक सामान्य कार्रवाई कहा है। पुलिस का कहना है कि आने वाले समय में राज्य में पत्थरबाज़ी की घटना न हो, इसके लिए कदम उठाए जा रहे हैं। 

क्या है 35-ए, जिस पर सुप्रीम कोर्ट में शुरू होगी सुनवाई?

  • दूसरे राज्य का कोई भी व्यक्ति जम्मू-कश्मीर का स्थाई निवासी नहीं बन सकता है।
  • जम्मू-कश्मीर के बाहर का कोई भी व्यक्ति यहाँ पर अचल संपत्ति नहीं खरीद सकता।
  • इस राज्य की लड़की अगर किसी बाहरी लड़के से शादी करती है, तो उसके सारे प्राप्त अधिकार समाप्त कर दिए जाएँगे।
  • राज्य में रहते हुए जिनके पास स्थायी निवास प्रमाणपत्र नहीं हैं, वे लोकसभा चुनाव में मतदान कर सकते हैं लेकिन स्थानीय निकाय चुनाव में वोट नहीं कर सकते हैं।
  • इस अनुच्छेद के तहत यहाँ का नागरिक सिर्फ़ वहीं माना जाता है जो 14 मई 1954 से पहले के 10 वर्षों से राज्य में रह रहा हो या फिर इस बीच में यहाँ उसकी पहले से कोई संपत्ति हो।

इससे पहले जम्मू-कश्मीर लिबरल फ्रंट के अध्यक्ष यासीन मलिक को बीते शुक्रवार (फरवरी 22, 2019) की रात मायसूमा स्थित आवास से हिरासत में लिया । इसके बाद यासीन को पहले कोठीबाग ले जाया गया और फिर वहाँ से सेंट्रल जेल में भेज दिया गया।

पुलिस को आशंका है कि पुलवामा हमले के बाद अलगाववादी कश्मीर के माहौल को और भी खराब कर सकते हैं। इसलिए एहतियात बरतते हुए यासीन को गिरफ्तार किया गया है। हालाँकि अभी किसी अन्य नेता को हिरासत में लिए जाने की ख़बर सामने नहीं आई है।

वामपंथी मानसिकता में जकड़े बॉलीवुड के विरुद्ध राष्ट्रवाद की जलती हुई मशाल है कंगना रानौत

ख़ान लॉबी, तथाकथित प्रगतिशील वामपंथी निर्देशकों का समूह जो कॉन्ग्रेस के पालने में झूला झूलता है एवं वंशवाद की मजबूत पकड़ में जकड़े बॉलीवुड में यकायक ऐसी अभिनेत्री का बोलबाला हो जाता है, जो उपरोक्त तीनों योग्यताओं में तो फिट नहीं नज़र आती है, किंतु उसे अदाकारी भरपूर आती है। इस अभिनेत्री का नाम है कंगना रानौत।

कंगना रानौत आज किसी परिचय की मोहताज़ नहीं हैं। सदियों से बॉलीवुड में विद्ध्यमान ‘नेपोटिज़्म’ की परंपरा को नकारते हुए, अपने दम पर फ़िल्म को सुपरहिट कराने का दमखम रखने वाली चंद अभिनेत्रियों के समूह में वो शीर्ष पर हैं। ‘क्वीन’ फ़िल्म में की गई अपनी अदाकारी से कंगना ने साबित कर दिया कि बॉलीवुड में सफलता के लिए ‘धर्मा प्रोडक्शन’ जैसे बड़े बैनर या ख़ान बंधुओ की दुमछल्ली बनने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि परदे पर जीवंत और दर्शकों को बाँधकर रखने वाले शाहकार अभिनय की जरूरत है।

‘तनु वेड्स मनु’ और इसकी सीक्वल फ़िल्म ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ में की गई कंगना रानौत की अदाकारी ने उन्हें भारत के आम सिनेमा प्रेमी के दिलों की धड़कन बना दिया। उनका निभाया गया ‘तनु’ का क़िरदार मानस में इतना मानीखेज़ है कि लोगबाग उसके 3-3 मिनट के वीडियोज़ को यूट्यूब पर जब-तब स्व-स्थिति की तरोताजगी के बनिस्बत देखा करते है।

पर्दे से इतर आम ज़िंदगी में भी कंगना अतिविद्रोही स्वभाव की है, जो एकदम मुँहफट होकर वो सब कुछ कह देती है, जिसने कभी उनको क्षुब्ध किया है। फिर चाहे वो इंडिया टीवी के शो में ऋतिक रोशन के ख़िलाफ़ अपने गुस्से का इज़हार हो या फ़िर वंशवाद की बेल पर बुलंदी छूने वाले धर्मा प्रोडक्शन के सर्वे-सर्वा करण जौहर के खिलाफ़ यलगार करना हो।

मणिकर्णिका फ़िल्म के रिलीज़ के समय दर्शक इसकी सफलता को लेकर बेहद सशंकित थे। तथाकथित फ़िल्मी समालोचकों ने भी इसे ख़राब रेटिंग दी थी और फ़िल्म को न देखने की सलाह दी थी। लेकिन कंगना ने अपने जबरदस्त अभिनय, व्यक्तिगत प्रचार के दम पर और दर्शकों के अपार स्नेह के दम पर इसे भी सुपरहिट करवा दिया।

आज वहीं कंगना रानौत जब राष्ट्रवाद पर एकदम खुलकर बोलती है और पाकिस्तान को जोरदार तरीके से धकियाती है तो फ़िर तथाकथित वामी-प्रगतिशील समूह के पेट में मरोड़ उठने लगती है। उनको लगता है कि नायिका की स्थिति तो फिल्मों में सिर्फ़ शो-पीस सरीखी होती है, उसे नायक की दुमछल्ली ही होना चाहिए, यहाँ तक कि उसे किसी मुद्दे पर अपने विचार रखने से बचना भी चाहिए। अग़र वो ट्वीट करें या फ़िर मुँह खोले तो सिर्फ़ और सिर्फ़ सौंदर्य उत्पादों के लिए।

पुलवामा हमले के बाद कंगना ने पाकिस्तान की ज़ोरदार मुख़ालफ़त करते हुए कहा कि इस समय पर जो भी लोग शांति और अहिंसा की बात करें उनका मुँह काला करके उन्हें गधे पर बिठाकर सरेआम सड़क पर घुमाना चाहिए। अब ये बात वामपंथियों को इतना नागवार गुजरी कि वो कंगना के मणिकर्णिका फ़िल्म में इस्तेमाल किए गए नक़ली घोड़े पर सवाल उठाने लगे कि जो नकली घोड़े पर बैठकर शूटिंग करता है, उसका राष्ट्रवाद नकली है।

अरे मियाँ जुम्मन! फ़िल्म में नकली घोड़े का न इस्तेमाल किया जाएगा तो क्या अरब के घोड़े मँगाकर उन पर ‘टिगड़ीक-टिगड़ीक’ किया जाएगा। फ़िल्मो के अधिकांश दृश्य विजुअल ग्राफ़िक के जरिए ही फ़िल्माए जाते हैं। अब कल को साँप के किसी दृश्य में किंग कोबरा या फ़िर एनाकोंडा का उपयोग न किए जाने पर भी ये खंडित मस्तिष्क वाले लोग सवाल उठा सकते हैं। कैफ़ी आज़मी की याद में कराची में होने वाले शो के लिए शबाना आज़मी की देशभक्ति पर सवाल उठाने वाली कंगना को ट्रोल करने से पहले जावेद अख़्तर-शबाना आज़मी से वहाँ होने वाले शो के लिए हामी भरने के बरक्स भी सवाल पूछा जाना चाहिए।

आज, जब कि तथाकथित उदारवाद की ओढ़नी पहने बहुसंख्यक बॉलीवुडिया समाज बैठा है, ऐसे में कंगना रानौत का मुखर होकर देशहित और राष्ट्रवाद के पक्ष में अपनी आवाज़ उठाना इस बात का शुभ संकेत है कि अब कला और संस्कृति से जुड़े लोग भी घनघोर राष्ट्र्वादी हो गए हैं, जिनको अभी तक वामपंथी अपनी बपौती मानते थे।

पाकिस्तान ने जिस मंच से भारत का किया अपमान उसमें अब गेस्ट ऑफ़ ऑनर होंगी सुषमा स्वराज

मुस्लिम बहुल देशों के संगठन Organisation of Islamic Cooperation के कार्यक्रम में भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज गेस्ट ऑफ़ ऑनर बनेंगी। इस बात की पुष्टि विदेश मंत्रालय द्वारा शनिवार (23 फरवरी, 2019) को की। जानकारी के मुताबिक़, ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक कॉपरेशन (ओआईसी) में भारत को गेस्ट ऑफ़ ऑनर बनने के लिए आमंत्रित किया गया है।

भारत को इसके लिए आमंत्रित करना सम्मान की बात तो है ही साथ में यह पाकिस्तान को झटका देने का काम भी करेगा। यह पहला अवसर होगा जब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इस कार्यक्रम में देश का प्रतिनिधित्व करेंगी। बता दें कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज 1 मार्च 2019 को इस कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह में भाषण देंगी।

भारत इस आमंत्रण को इस नज़रिए से भी देख रहा है कि इससे भारत और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के द्विपक्षीय रिश्तों को मज़बूती मिलेगी। ख़बर के अनुसार OIC की पहचान मुस्लिम देशों की आवाज़ और उनके हितों की रक्षा करने के लिए दुनिया भर में विख्यात है। इसके अलावा बता दें कि संयुक्त राष्ट्र (यूएन) और यूरोपीय संघ (ईयू) में इसके स्थाई सदस्य भी हैं।

पूर्व राजनयिक तलमीज अहमद ने बताया कि इस कार्यक्रम पर भारत को बतौर गेस्ट ऑफ़ ऑनर के रूप में आमंत्रित करना, पाकिस्तान के लिए किसी तगड़े झटके से कम नहीं है। इससे पहले पाकिस्तान ने अनेकों बार भारत का अपमान करने के लिए इस मंच का दुरुपयोग किया है। पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान की छवि देश और दुनिया में धूमिल हो चुकी है और सऊदी अरब समेत अन्य मुस्लिम देश भी पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों को अच्छी तरह से जान चुके हैं। इसलिए उन्होंने पाकिस्तान को दरकिनार करने का पूरा मन बना लिया है।

‘तेरे प्यार में क्या-क्या न बना मीना..’ राहुल गाँधी का नया नारा

राहुल गाँधी की हार न मानने की क़ाबिलियत का मैं व्यक्तिगत रूप से फ़ैन होता जा रहा हूँ। आप ख़ुद देखिए कि मोदी सरकार को घेरने के लिए वो दिन-रात एक कर के सबूत जुटाने के प्रयास कर रहे हैं। उनका जब हर किस्सा झूठा साबित होता है तब भी राहुल गाँधी राफ़ेल डील पर अड़े रहते हैं। लेकिन लगातार अपने भगीरथ प्रयासों के बावजूद भी राफ़ेल डील को घोटाला साबित न कर पाने की निराशा राहुल गाँधी के चेहरे से कहीं भी नहीं झलकती है।

अब राहुल गाँधी को आख़िरकार आठ महीने बाद ये पता चल गया है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसद में गले आख़िर क्यों लगाया था। दुनिया के सामने यह खुलासा करने के लिए उन्होंने जो देश, काल और वातावरण चुना, वो है JNU!

राहुल गाँधी ने कल ही JNU में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गले लगाने वाले क़िस्से का ज़िक्र करते हुए कहा, “जब मैंने संसद में पीएम मोदी को गले लगाया, तो मैं महसूस कर सकता था कि वह हैरान हैं, वह समझ नहीं पाए कि क्या हुआ। मुझे लगा कि उनके जीवन में प्यार की कमी है।”

इसके साथ ही राहुल गाँधी ने लगे हाथ एक बार फिर याद दिलाते हुए कहा कि उन्होंने परिवार के 2 लोगों को खोया है, जिस वजह से वो प्यार का महत्त्व समझते हैं। चुनाव जीतने के लिए फोटोशॉप से लेकर कॉन्ग्रेसी आई टी सेल के कुकर्मों पर निर्भर हो चुके राहुल गाँधी ने अब परिवार के दिवंगत सदस्यों को भी मैदान में उतार लिया है।

‘विक्टिम कार्ड’ खेलकर चुनाव जीतना और मुद्दों को भुनाना कॉन्ग्रेस पार्टी का बहुत पुराना शौक रहा है। अब प्रियंका गाँधी के बयान आते हैं कि वो अपने पति रॉबर्ट वाड्रा के साथ हर समय खड़ी रहेंगी।

वोटर से ज़्यादा ‘डेली सोप’ अब कॉन्ग्रेस के नेता देखने और समझने लगे हैं। लेकिन वर्तमान में हालात बदल चुके हैं। अब जनता के हाथों में वो कम्प्यूटर नहीं है जो राजीव गाँधी उनको सौंप कर गए थे, ना ही अब भावनाओं को बेचकर वोट कमा लेने का समय है। फिर भी राष्ट्रवाद और मानवीय भावनाओं में वोट बैंक तलाशने वाली कॉन्ग्रेस पार्टी अब ऐसे तथ्य मीडिया के सामने लाती है जिनसे वोटर की भावनाओं से खिलवाड़ किया जा सके।

गाय की पूजा करने वाले लोगों की भावनाओं को आहत करने के लिए सड़कों पर खुले आम गाय काटकर जश्न मनाने वाली पार्टी के अध्यक्ष कल ही लटकती धोती सँभालते-सँभालते तिरुमला में भगवान वेंकटेश्वर के मंदिर भी पहुँच गए।

राफ़ेल डील पर सस्ते और घटिया सबूत जुटाकर रोजाना मीडिया को इकठ्ठा कर लेने वाले राहुल गाँधी अब पहले से ज़्यादा आत्मविश्वास में नज़र आ रहे हैं। ये राहुल गाँधी आस्तीन चढ़ाकर एक ‘महान अर्थशास्त्री’ के सुझाए अध्यादेश को गुस्से में जनता के सामने फाड़कर फेंकने वाले से अलग है।

ये वो गाँधी है, जो नफ़रत को मोहब्बत से जीतने का सन्देश देता नज़र आ रहा है। ये राहुल गाँधी जनेऊ पहनता है, धोती पहनने लगा है, मंदिर में पूजा-पाठ करने लगा है, चाहे स्वप्न में ही सही, लेकिन अमरनाथ यात्रा भी करने लगा है, इससे पता चलता है कि राहुल गाँधी की नई PR टीम उन्हें सही दिशा में ट्रेनिंग दे रही है। लेकिन धोती पहनना और उसे पहनकर चलना सीखना अभी भी बाक़ी है। धोती पहनना सीखना और फिर पहनकर चलना, ये सब इतना कठिन कार्य होता है कि इतने में कम से कम 2 पंचवर्षीय योजनाएँ निकल जाएँगी।  

अब जब राहुल गाँधी और कॉन्ग्रेस गौमाता, हिंदुत्व और भगवान की शरण में पहुँचकर वोट बैंक तलाश रही है, तो वो ख़ुद अपने कट्टर वोट बैंक के लिए पहेली बनते जा रहे हैं। ख़ैर जो भी है, ये राहुल गाँधी का प्यार बाँटने और धोती में लिपटने का क़िस्सा श्री सत्यनारायण कथा के उस हिस्से की ही तरह है, जिसमें तमाम ज़िन्दगी भगवान का नाम ना लेने वाले व्यक्ति के मरते समय सिर्फ़ एक बार ‘नारायण’ जप लेने मात्र से उसे नरक के बदले बैकुंठ लोक प्राप्त हो जाता है।  

मैं तो यही सलाह दूँगा कि राहुल गाँधी अभी धोती और त्रिपुण्ड पर ध्यान न देकर प्यार मोहब्बत वाले भाषण देकर जनता का दिल जीतने पर फोकस करें। वरना अभी धोती सँभालते रह गए तो बाद में EVM से छेड़छाड़ वाले बयानों का ही सहारा बाक़ी रह जाएगा।

आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में पूर्व कॉन्ग्रेसी CM वीरभद्र सिंह के ख़िलाफ़ चलेगा मुक़दमा

हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की मुसीबतें बढ़ गई हैं। दिल्ली की एक अदालत ने सीबीआई द्वारा सौंपी गई 500 पन्नों की चार्जशीट के आधार पर उनके ख़िलाफ़ आरोप तय किए हैं। इसके साथ ही प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने भी मनी लॉन्ड्रिंग मामले में अदालत में उनके ख़िलाफ़ चार्जशीट पेश की है।

सीबीआई की चार्जशीट में 9 लोगों के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 109 और धारा 465 के तहत आरोप लगाए गए थे। यह सभी आरोप 225 गवाहों द्वारा दिए गए बयानों और 442 दस्तावेज़ों के सबूतों पर आधारित थे।

बता दें कि अदालत ने पिछले साल 10 दिसंबर को कॉन्ग्रेस नेता के ख़िलाफ़ आपराधिक कसूरवार और 10 करोड़ रुपये की अप्रमाणित सम्पत्ति इकट्ठा करने के आरोप तय करने का आदेश दिया था। जालसाज़ी के आरोपों के लिए अदालत ने कहा कि सिंह को कसूरवार ठहराने के लिए धारा 13 (2) और धारा 13 (ई) के तहत उनकी कुल आय से 192% अधिक सम्पत्ति पर कार्रवाई की जा सकती है।

विशेष जज अरुण भारद्वाज ने आरोप तय करने के बाद मुक़दमे में अभियोजन की गवाही के लिए 3, 4 और 5 अप्रैल की तारीख तय की है। वहीं अदालत ने वीरभद्र और उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह की अर्ज़ी पर सीबीआई से जवाब माँगा है। 

दोनों ने मुक़दमे की सुनवाई के दौरान पेशी से स्थायी छूट माँगी है। दूसरी तरफ, ED ने इसी मामले में वीरभद्र के ख़िलाफ़ मनी लॉन्ड्रिंग क़ानून के तहत पूरक आरोप दाखिल कर दिया। जाँच एजेंसी का कहना है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री ने काले धन का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग में किया था। इस पर अदालत 18 मार्च को इस पर सुनवाई करेगी।

दूसरों के दान और आतंक की खेती पर ज़िंदा पाकिस्तान युद्ध की बात करे तो तुग़लक़ याद आता है!

जैश-ए-मोहम्मद, तालिबान, अलक़ायदा, लश्कर-ए-तैयबा, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, लश्कर-ए-झंग्वी, हिज़्ब-उल-मुज़ाहिदीन के अलावा और भी नमूने हैं जो पहले से ही पाकिस्तान के युवाओं की एक बड़ी संख्या को जन्नत का लालच देकर कश्मीर भेज रहें और भारतीय सेना उन्हें सीधा जहन्नुम। अब पाकिस्तान के नए वज़ीरे आला जनाब इमरान खान साहब नए पाकिस्तान का वादा कर अपने ही युवाओं की खाल में RDX भरवा रहें हैं और वो भी सरकारी तंज़ीमों के साए में।

एक ऐसा देश जो दूसरों के दान और आतंक की खेती पर ज़िंदा है, जहाँ सामान्य जीवन जीना भी दूभर है। जहाँ अगर भारत पानी रोक दे तो लोग प्यास से तड़प उठें। खाने-पीने के सामानों और व्यापार पर आयात शुल्क बढ़ा देने से ही पाकिस्तान की जनता विद्रोह और गृहयुद्ध छेड़ने के मूड में है। वह पाकिस्तान हर बात पर युद्ध की बात करे तो तुग़लक़ याद आता है। इमरान खान साहब फ़िलहाल पाकिस्तान के नए तुग़लक़ ही है।

एक तरफ़ आतंकवाद, चापलूसी, फ़िरकापरस्ती और भिखमंगई का अफ़ीम पीकर पाकिस्तान युद्ध की तैयारियों में व्यस्त नज़र आ रहा है। इसके लिए कहीं अस्पताल खाली करवा रहा है तो कहीं क़मर बाजवा से लम्बी-लम्बी युद्ध की धमकियाँ दिलवा रहा है। ये काफी नहीं लगा तो वहाँ के पत्रकारों को भी स्टूडियो से मोर्चा संभालने के लिए चने की झाड़ पर बैठा दिया गया है। माशाअल्लाह! एक मोहतरमा तो इतनी उतावली हो गई कि स्टूडियों से ही मिसाइल छोड़ने लगीं। पूरे जी जान से पिछली तबाही और इंडियन आर्मी के घर में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक को भूलाकर उन्माद का नया पोस्ता बो रहीं हैं।

अब इन मोहतरमा को कौन याद दिलाए कि 1965, 1971 और 1999 में क्या हुआ था। भूल गई कि कैसे उनके लख्ते-जिगर मुल्क के दो टुकड़े हुए थे। कैसे एक लाख पाकिस्तानी घुटने टेक धूल चाट रहे थे। वो घाव लगे थे कि आज भी जब हवाएँ पाकिस्तान के ख़िलाफ़ चलती हैं तो साँसे फूलने लगती हैं पाकिस्तान की। जिस पाकिस्तान में ज़म्हूरियत कभी-कभार ही कुछ दिनों के लिए ठहरती हो, वो पाकिस्तान अगर लोकतंत्र और ज़म्हूरियत की बात करे तो मुर्दे को भी हँसी आ जाए। पर जहाँ गधों की फ़ौज़ ज़्यादा हो वहाँ ‘लादी’ से ज़्यादा कुछ नज़र भी नहीं आता।

खैर, अब पाकिस्तान का रायता इतना फ़ैल चुका है कि उसके कारनामों पर अब केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया सवाल कर रही है, सबूत बोल रहे हैं कि उरी से लेकर पुलवामा तक, संसद से लेकर पठानकोट तक सबका ज़िम्मेदार सिर्फ़ पाकिस्तान ही है।

लेकिन, अगर बात समझ आ जाए तो तुग़लक़ काहें का, भुखमरी की शिकार जनता को युद्ध का चरस बेचना उनका नया शगल नहीं है। जो दाने-दाने को तरस रहा वो पाकिस्तान करे भी तो क्या?

वैसे पाकिस्तान की सर्जिकल स्ट्राइक से इस कदर जली है कि अभी तक भभा रहा होगा। और अब पुलवामा के बाद इमरान को फिर ये डर सताने लगा कि कहीं भारतीय सेना उनकी लंका न लगा दे। बाहरहाल, ख़ौफ़ इस क़दर हाई है कि बाजवा ख़ुद सीमाओं का दौरा कर रहे हैं और सर्जिकल स्ट्राइक के बाद की तबाही के बाद पाकिस्तान आतंकी संगठनों को कब्ज़े में लेने के नाम पर उन्हें सुरक्षा मुहैया करा रहा है, यहाँ तक कि अपने हाकिमों को वहाँ नियुक्त कर रहा है ताकि किसी तरह से बस ये माहौल ठंडा हो जाए वरना पता नहीं अब उसे और क्या-क्या बेचना पड़े, देश तो पहले से ही गिरवी है चीन के यहाँ।

महाशय इमरान ख़ान आए तो थे ‘नया पाकिस्तान’ का नारा लेकर। चुनाव के दौरान उन्होंने पाकिस्तान द्वारा विदेशी देशों से आर्थिक मदद माँगे जाने को भी मुद्दा बनाया पर कमबख़्त चुनाव बाद ख़ुद ‘कटोरा लेकर भीख माँगने’ तक की नौबत आ गई। हालत तो इतनी पतली हो गई कि रोजमर्रा के ख़र्चे के लिए भी बर्तन-भाड़े, कार-वार, भैंस-बकरी और यहाँ तक कि बालों (हेयर) के साथ गधे भी बेचने पड़े।

और अब गधों की बिक्री से आतंक का पेट भरने वाला पाकिस्तान युद्ध-युद्ध की चिपों-चिपों लगाए हुए है। बात कुछ पच नहीं रही। अमां मियाँ पाकिस्तान युद्ध की सोचने से पहले एक बार अपनी पतलून तो ठीक कर लेते, तुम्हारी नंगई जब पूरे विश्व में साफ दिखने लगी तो बिलबिलाहट और खिसियाहट लाज़मी है पर इसे दूरदर्शिता का नाम दे देश को युद्ध के मोर्चे पर खड़ा कर देना बेवकूफी है।

वैसे इमरान साहब की दूर की नज़र बहुत तेज़ है, जनाब इतने दूरदर्शी हैं कि सत्ता में आते ही पहले लक्ज़री कारें बेच दी और कमाया 15 करोड़, ख़र्च कर दिए आतंकी लॉन्च पैड बनाने में और अब जब सऊदी अरब के सुल्तान आए तो मियाँ उनके सत्कार के लिए चार दिन के कारों के किराए के रूप में ही 7 करोड़ देने पड़ गए। अब नंगा नहाए क्या निचोड़े क्या, आमदनी अठन्नी ख़र्चा रुपइया वाली बात हे गई। भाई जान इमरान की दूरदर्शिता के कायल तो लोग उसी दिन हो गए थे जब इमरान ने तीन शादियों के बाद भी शादी का मुद्दा उलझाए ही रखा।

मन्ने तो लग रिया, जैसे-जैसे भारत एक-एक कर कड़े क़दम उठाते हुए पाकिस्तान को घेर रहा है- चाहे पहले पाकिस्तान से ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन‘ का दर्जा वापस ले लेना हो या अब सरकार ने अपने हिस्से का रावी, ब्यास और सतलुज के पानी को पाकिस्तान को देने की बजाय उस से यमुना को सींचने की योजना या उसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में घुटने टेकने को मजबूर करना। बेचारा जो पाकिस्तान पहले से ही आर्थिक संकट के दौर से गुज़र रहा हो, कोई उसकी पूँछ के साथ टेटुआ भी दबा दे तो वह अपनी कराहटों को भी चीत्कार न बनाए तो क्या करे!

कहते हैं ना कुत्ते की पूंछ आसानी से सीधी नहीं होती तो भला पाकिस्तान इतनी आसानी से कैसे सुधर जाए उम्मीद करना भी बेमानी है। पर भारतीय होते बड़े आशावादी हैं पहले हम किसी पर वार नहीं करते पर अगर किसी ने गुस्ताख़ी करने की ज़ुर्रत की तो घर में घुसकर भी ठोक आते हैं। अब पाकिस्तान को सर्जिकल स्ट्राइक के बाद इस बात का कोई सबूत भी नहीं चाहिए।

दोष इसमें पाकिस्तान का नहीं वहाँ के नेताओं का ज़्यादा है जो अभी तक फिदाइन और आतंक पर ही अटके हुए हैं जबकि दुनिया चाँद पर पहुँच गई है। जैसे ही नई पीढ़ी जवान हो शिक्षा, रोज़गार की बात करे, उसे शिक्षा के नाम पर जेहादी तालीम दे, बम बाँधकर जहन्नुम भेज दो उन 72 काल्पनिक हूरों के पास, सिसकने दो उनके परिवारों को, और उन्हें भी ज़ख्म दो यतीम करो जिनका इस पूरे जेहादी व्यापार और आतंक से कुछ लेना-देना नहीं है।

पुलवामा इसी बात का ताज़ा दस्तावेज़ है। जैश-ए-मुहम्मद के सीधे क़बूलनामे के बाद भी, उसके सरगना मसूद अज़हर को संरक्षण जारी है। पहले तो पाकिस्तान ने सोचा की शायद इस बार भी मामला यूँ ही टल जाए तो पहले आनाकानी करता रहा और अब जब लगा कि अब आका चीन भी इस बार कुछ नहीं कर सकता तो पहले से ही हुँआ-हुँआ शुरू कर दिया।

भारतीय शेरों का खौफ़ इतना ज़्यादा है कि उधर पाकिस्तान अपनी भूखी प्यासी जनता में भी हवा भर युद्ध का गुलदस्ता बाँट रहा। शायद भूल गया है कि भारत अगर युद्ध पर आया तो इस बार उसके चड्ढी बनियान भी बिक जाने हैं।

फिर भी जहाँ बचपन से ही जन्नत और ज़ेहाद का बीज बोया जा रहा हो वहाँ यूँ बार-बार खुलेआम युद्ध का उन्माद छेड़ अपनी आवाम की रगों में युद्ध का अफ़ीम बोना कोई नई बात नहीं। आख़िर कब तक 72 हूरों की कहानी और काफ़िरों के गुनाहों की शिक्षा देकर पाकिस्तान में आतंक का खेल यूँ ही चलता रहेगा? कब तक शांति को बनाए रखने वाला इस्लाम लगभग हर आतंकी संगठन का मज़हब होगा? सवाल बड़ा तो है पर सवाल ही रहेगा। युद्ध तो छोड़िए अभी भारत ने कुछ दिनों के लिए मात्र व्यापार रोक दिया तो उधर टमाटर के भी लाले पड़ गए।

जहाँ सेना सत्ता पर हावी हो वहाँ जहन्नम सी ज़िन्दगी को जन्नत के रैपर में ज़्यादा दिन तक बेच पाना संभव नहीं है। फसलों की जगह बंदूके बोने वाला पाकिस्तान कब तक यूँ ही अपने यहाँ के मासूमों की नशों में ज़ेहाद और छद्म युद्ध का ज़हर फूँककर उनकी ज़िन्दगी स्वाहा करता रहेगा, ये उसे कौन समझाए। उम्मीद है कि पाकिस्तान केवल ख़ुद को गीदड़ भभकियों तक ही सीमित रखे वरना इस बार किसी तुग़लक़ की वज़ह से पाकिस्तान कहीं दुनिया के नक्शे से ही न मिट जाए। इंशाल्लाह पाकिस्तान के हुक्मरानों को खुदा इतनी सद्बुद्धि दे। वरना भारत अब एक ऐसे मजबूत हाथों में है जो सेना के मनोबल को टूटने नहीं देगा, खदेड़ के मारेगा और गिनेगा भी नहीं।

‘पुलवामा के वीरों’ का मजाक: कॉन्ग्रेस के पूर्व CM के बेटे पर उड़ाए गए नोट, श्रद्धांजलि सभा का वीडियो Viral

पुलवामा आत्मघाती हमले की निंदा दुनिया भर में हो रही है। भारत इस ग़म से उबर भी नहीं पाया है कि कॉन्ग्रेस पार्टी की एक के बाद एक ओछी हरक़तें सामने आ रही हैं। कभी वो प्रधानमंत्री मोदी की फ़ोटों को ग़लत तरीक़े से प्रचारित और प्रसारित करते हैं तो कभी ग़लत संदेशों के माध्यम से केंद्र को घेरने की कोशिश करते हैं।

अगर बात करें ख़ुद कॉन्ग्रेस पार्टी की तो वो ख़ुद ऐसे कृत्यों को अंजाम देती है जिस पर कोई भी शर्मिंदा हो जाए। मामला उत्तराखंड का है जहाँ रुड़की में पुलवामा के वीरों को श्रद्धांजलि देने के कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम के दौरान एक वीडियो बनाया गया जो अब वायरल हो रहा है। इस वीडियो के वायरल होने के पीछे वजह है कि इसमें उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत के बेटे वीरेंद्र रावत पर नोटों की बरसात हो रही थी।

इस वीडियो के देखने के बाद आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि कॉन्ग्रेस देश की जनता के साथ किस तरह का खिलवाड़ कर रही है। एक तरफ तो पीएम मोदी पर बेवजह तंज कसती नज़र आती है और दूसरी ही तरफ श्रद्धांजलि के लिए इकट्ठे हुए कॉन्ग्रेसी नोटों की बारिश कर रहे हैं।

बेहयाई की हद तो तब पार हो गई जब वीरेंद्र रावत ने कहा कि यह एक श्रद्धांजलि सभा है और इस सभा के माध्यम से 56 इंच वाले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जगाना चाहते हैं।

बता दें कि श्रद्धांजलि के नाम पर इकट्ठे हुए इस वीडियो के वायरल होते ही लोगों ने इस पर तीखी प्रतिक्रियाएँ दर्ज की। कई लोग कॉन्ग्रेस के इस रवैये से आहत हैं। भले ही देश की जनता भोली-भाली हो लेकिन दु:ख की इस घड़ी में वो इस बात को बख़ूबी समझती है कि राजनीतिक गलियारे में कौन कितना पानी में है।

कॉन्ग्रेस की मनगढ़ंत अफ़वाहों और वास्तविकता के बीच जनता फ़र्क़ करना जान चुकी है। कॉन्ग्रेस के कई ऐसे दावे बेबुनियादी सिद्ध हो चुके हैं जहाँ अलग-अलग मुद्दों पर पीएम मोदी को घेरने की कोशिश की गई।

‘भारत माता की जय’ हमारा नारा, देश को सबसे आगे पहुँचाना लक्ष्य हमारा: नित्यानंद राय

नित्यानंद राय लोकसभा सांसद हैं। 2014 के चुनावों में इन्होंने बिहार की उजियारपुर संसदीय सीट से जीत हासिल की थी। बिहार की राजनीति में यह साल 2000 से ही विधायक के रूप में अपनी सशक्त भूमिका निभाते आए हैं। वर्तमान में यह बिहार भाजपा के अध्यक्ष हैं। राजनैतिक रूप से हमेशा सजग रहने वाले इस राज्य के मुखिया (सत्ताधारी पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर) से ऑपइंडिया ने की बातचीत। आइए जानते हैं लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र पार्टी की अपेक्षाएँ और विश्वास:

सवाल- आपके मुख्य प्रतिद्वंद्वी कौन हैं?
जवाब- कोई नहीं है, टक्कर में। मोदीजी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने और यहाँ नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने इतना काम किया है कि जनता हमें 40 की 40 सीटें जितवाएगी। यहाँ कोई हमारे आसपास भी नहीं है।

सवाल-फिर भी, राजद का तो दावा है ही!
जवाब- राजद का क्या दावा है? वहाँ तो कुनबे में ही घमासान है। आप देखिए, तेजप्रताप किस तरह की भाषा बोल रहे हैं। उनके माताजी-पिताजी के राज में ही बिहार अंधकार युग में चला गया। बड़ी मुश्किल से एनडीए इसे विकास के रास्ते पर लौटा कर लाया है।

तेजस्वी यादव जी पर क्या राय देनी है?
जवाब- अभी-अभी तो सारी दुनिया ने देखा ही कि उनके बंगले का हाल कितना न्यारा है। गुंडागर्दी और कानून से खिलवाड़ राजद के लिए नई बात नहीं है और तेजस्वी यादव इसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। अभी देखा न आपने, आरजेडी के एक विधायक को नई दिल्ली के हवाई अड्डे पर ज़िंदा कारतूस के साथ पकड़ा गया है। उनको बताना चाहिए कि आखिर बिहार की जनता के पैसों की यह बर्बादी उन्होंने क्या सोच कर की है?

लालूजी ने अपनी यात्रा वेटनरी कॉलेज के चपरासी क्वार्टर से शुरू की और महलों तक पहुँच गए, फिलहाल जेल भुगत रहे हैं। तेजस्वी तो 26 वर्षों में 26 संपत्तियों के मालिक बन चुके थे, वह भी तब जबकि उनका कोई ज्ञात-अज्ञात धंधा भी नहीं है। यही बात जब मीडिया ने दिखा दी, तो वे उल्टा पत्रकार बंधुओं पर ही बरस पड़े कि वे उनके बेतुके बयान क्यों नहीं छापते हैं, उनके हसीन बंगले की तस्वीरें क्यों दिखा रहे हैं?

सवाल-कीर्ति आज़ाद, शत्रुघ्न सिन्हा और जीतनराम मांझी पर आपकी राय?
जवाब- (हंसते हैं)। देखिए, कीर्ति जी ने तो खुद ही अपना ढोल पीट दिया है। उन्होंने कांग्रेसी संस्कृति का सच भी सबको बताया है कि बूथ लूटने और लुटवाने वाले लोग हैं ये। साथ ही वे उन भाजपा कार्यकर्ताओं का भी अपमान कर रहे हैं, जिन्होंने पूरी मेहनत कर उनको जितवाया, उनके लिए काम किया।

जहाँ तक शत्रुघ्न सिन्हा जी की बात है, तो वे अब अप्रासंगिक हो चुके हैं। वे अब यू-टर्न लें या वी-टर्न, भाजपा किसी को भी मात्र टिकट के लिए इंटरटेन नहीं करती है। वे अगर सोच रहे हैं कि वापस आकर उनको टिकट मिल जाएगा, तो उनकी भूल है।

जीतनराम मांझी को राजद और कांग्रेस वाले समुचित सम्मान नहीं दे रहे हैं और इस वजह से मांझीजी की नाराजगी वाजिब है। उनको एनडीए में लौट जाना चाहिए।

सवाल-भाजपा ही क्यों?
जवाब- मैं इतिहास का छात्र रहा हूँ मेरा कॉलेज जीवन करीब-करीब ख़त्म हो रहा था और मैं इतिहास की दृष्टि से ना भी देखता तो मुझे चीज़ें अलग दिखती थीं। भारतीय जनता पार्टी की बैठकें जहाँ “भारत माता की जय” से शुरू होती थीं, वहीं दूसरी पार्टियों में कोई अपने वंश-परिवार का तो कोई व्यक्ति का नारा लगा रहा होता था।

भारत के प्रति पार्टी के दृष्टिकोण ने ही मुझे सबसे ज्यादा आकृष्ट किया। पुराने जनसंघ के दौर का चिंतन ही कहता है कि कोई घर बना है पक्के का और सामने झोपड़ी बनी है, तो महल का सम्मान हो और झोपड़ी को भी अवसर मिले। हम महल को तोड़ने की बात नहीं करते बल्कि झोपड़े को अवसर देने की बात करते हैं।

सवाल- बिहार में चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ा जाएगा?
जवाब- हम देश में चुनाव आदरणीय मोदी जी को लेकर लड़ रहे हैं और बिहार में हमारे नेता नीतीश कुमार जी हैं। देश भर के चुनावों के लिए हमारे पास नरेंद्र मोदी जी का नाम और काम है तो बिहार में नीतीश कुमार जी का विकास और भ्रष्टाचार मुक्त बिहार का नारा और उनका नेतृत्व है। राष्ट्रीय नेतृत्व के साथ-साथ हम बिहार में नीतीश कुमार जी के नेतृत्व में भी हैं।

सवाल- पुलवामा हमले पर पूरे देश में अभी आक्रोश का माहौल है, इस पर आप क्या कहना चाहेंगे?
जवाब- अभी हाल में जो घटना हुई पुलवामा में उसे लेकर बिहार में और पूरे देश में आक्रोश का माहौल है जो जायज़ भी है। भारत सबकुछ बर्दाश्त कर सकता है लेकिन जब भारत की सेना पर, देश के सम्मान, देश की संप्रभुता पर हमला होता है तो हर हिन्दुस्तानी अपनी पूरी शक्ति समेटकर एकजुट होकर सामने आता है। हमारे प्रधानमंत्री जी ने ये स्पष्ट कह दिया है कि सेना समय, तिथि और स्थान चुन ले और दोषियों पर उन्हें कार्रवाई करने की पूरी छूट है।

सवाल- बिहार में अगर देखें तो गठबंधन में भाजपा की सीटें पिछली बार की जीती हुई सीटों से भी 5 कम हैं| क्या इसका कोई नुकसान झेलना पड़ेगा?
जवाब- राजनीति में जब व्यक्ति आता है तो कभी-कभी उसकी कुछ महत्वाकांक्षाएँ भी होती हैं। इच्छाएँ अगर पूरी ना हो तो थोड़ा कष्ट तो होता है, लेकिन भाजपा का कार्यकर्त्ता एक लक्ष्य के लिए काम करता है। हमारा लक्ष्य एक है, भारत को सबसे आगे पहुँचाना।

पैगंबर मुहम्मद पर विचार रखना नहीं है ईशनिंदा: मद्रास हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

मद्रास हाईकोर्ट ने शुक्रवार (फरवरी 22, 2019) को ईशनिंदा और किसी व्यक्ति के ज्ञान के आधार पर की गई धार्मिक विषयों पर टिप्पणी, के बीच फर्क को बताते हुए भारतीय जनता पार्टी के एक कार्यकर्ता को जमानत दे दी। कार्यकर्ता रंगास्वामी ने अपने एक फेसबुक पोस्ट में पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ पिछले साल कथित रूप से ‘ईशनिंदा’ सम्बंधित लेख लिखा था।

49 वर्षीय भाजपा कार्यकर्ता को चेन्नई में चितलपक्कम पुलिस ने सोशल मीडिया के माध्यम से ‘घृणा’ फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया था। कल्याणसुंदरम रंगास्वामी पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने एक फेसबुक पोस्ट के द्वारा मुस्लिमों की भावनाओं को आहत किया है। रंगास्वामी पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने पैगंबर मुहम्मद पर कुछ टिप्पणी की थी। जैसे ही वह अहमदाबाद से चेन्नई पहुँचे, उन्हें ‘साइबर पुलिस’ ने पूछताछ के लिए पकड़ा और बाद में अदालत में पेश किया गया जहाँ से रंगास्वामी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश ने रंगास्वामी द्वारा किए गए फेसबुक पोस्ट की समीक्षा करने के बाद कहा, “इस अदालत के विचार में, जमानत याचिकाकर्ता ने पैगंबर मुहम्मद और उनके परिवार के बारे में अपनी समझ के अनुसार प्रासंगिक इतिहास पढ़ने के बाद ही लिखा है। इसलिए वो इस शर्त पर जमानत के हकदार हैं कि वह जाँच में सहयोग करेंगे।”

ज्ञात हो कि यह ‘आपत्तिजनक पोस्ट’ वर्ष 2015 में लिखा गया था। यह मामला इस वजह से भी दिलचस्प है क्योंकि चितलपक्कम के उप-निरीक्षक डी सेल्वमणि ने इस ‘फेसबुक पोस्ट’ को संज्ञान में लिया था और अपने वरिष्ठ अधिकारियों को जानकारी दी थी। सेल्वमणि ने ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ को बताया, “मैंने फेसबुक पर उसकी खोज की और अपमानजनक टिप्पणियाँ पाईं, जो मैंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दिखाई, उन्होंने ही मुझे इस मामले में शिकायतकर्ता बनने के लिए कहा।”

इस बीच, MMK नेता एमएच जवाहिरुल्लाह ने कहा कि रंगास्वामी को 30 दिसंबर को पुलिस आयुक्त ने उनकी शिकायत के बाद गिरफ्तार किया था। जबकि सेल्वमणि और MMK नेता एमएच जवाहिरुल्लाह के बीच इस ‘आपत्तिजनक पोस्ट को संज्ञान’ में लिए जाने के ‘क्रेडिट’ को लेकर विवाद भी हुआ कि आखिर किसकी सक्रियता ने रंगास्वामी को एक फेसबुक पोस्ट के लिए गिरफ्तार कर जेल में बंद करवाया।

भाजपा कार्यकर्त्ता के खिलाफ मामला यह था कि पैगंबर मुहम्मद पर उनकी टिप्पणी से धार्मिक तनाव पैदा होगा और इस कारण दो धर्मों के बीच घृणा और दुर्भावना पैदा होगी। 21 फरवरी 2019 को, लगभग 19 दिनों तक कैद में रहने के बाद, रंगास्वामी को जमानत मिली।

रंगास्वामी के वकील ने अदालत में कहा कि भाजपा कार्यकर्ता ने पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ कोई अपमानजनक या निंदनीय टिप्पणी नहीं की है। बल्कि उनका फेसबुक पोस्ट इतिहास पढ़ने, पैगंबर मुहम्मद और उनके परिवार की राय और समझ देने के बारे में था। उन्होंने तर्क दिया कि रंगास्वामी के ऐसा करने का अधिकार भारत के संविधान द्वारा दी गई स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के तहत सुरक्षित है।

यह ऐतिहासिक निर्णय रंगास्वामी का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता प्रभाकरण के निम्न तर्कों पर कसा गया:

  • “धार्मिक विश्वास की बातों पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को हमेशा से चुनौती मिलती रही है। लेकिन ऐसे भी मौके आए हैं जब ‘दा विंची कोड’ पुस्तक में ईसा मसीह पर सवाल उठाया गया है। ठीक इसी तरह से रामायण में सीता के ऊपर भी सवालिया लेख लिखे गए हैं। धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ लापरवाही भरा और अपमानजनक टिप्पणी करना गलत है लेकिन उससे संबंधित पूरे साहित्य / इतिहास को पढ़ने के बाद अपनी राय व्यक्त करना कहीं से भी गलत नहीं है।”
  • रंगास्वामी की ओर से पेश अधिवक्ता प्रभाकरण ने बहुत ही शानदार और धारदार ढंग अपने तर्क रखे। उन्होंने कोर्ट के सामने तर्क रखा कि अल्पसंख्यक समुदायों और उनसे संबंधित धर्मों (इस्लाम या ईसाई धर्म) की आलोचना पर सरकार हमेशा से कड़े रुख अपनाती रही है। जबकि हिंदू धर्म की आलोचना ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के तहत स्वीकार्य मानी जाती रही है।
  • अधिवक्ता प्रभाकरण ने स्पष्ट किया कि उनका तर्क हिंदू धर्म की आलोचना करने वालों को दंडित करने के लिए नहीं है। बल्कि भारत के संविधान में निहित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कानून समानता के सिद्धांत पर होनी चाहिए। इसलिए किसी एक धर्म की आलोचना ‘ईशनिंदा’ नहीं होनी चाहिए, ठीक वैसे ही किसी दूसरे धर्म की आलोचना को भी क्रांतिकारी नहीं माना जाना चाहिए।

कोर्ट ने वरिष्ठ वकील की दलीलों से सहमति जताई और रंगास्वामी को जमानत दे दी। अदालत ने कहा कि रंगास्वामी ने प्रासंगिक इतिहास पढ़ने के बाद ही पैगंबर मुहम्मद और उनके परिवार पर अपने विचार व्यक्त किए थे। न की उनके ख़िलाफ़ कोई अपमानजनक टिप्पणी की थी।

मद्रास हाई कोर्ट का यह निर्णय आज शायद कानून के नज़रिए से छोटा प्रतीत हो लेकिन ‘ईशनिंदा’ मामले या ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में समानता’ के नज़रिए से यह शायद भविष्य के लिए एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।