उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव भी पीएम मोदी के फैन निकले! लोकसभा चुनाव से पहले मुलायम सिंह ने बड़ा बयान दिया है। पूर्व सपा सुप्रीमो ने नरेंद्र मोदी के फिर से प्रधानमंत्री बनने की कामना की है। बजट सत्र के आखिरी दिन मुलायम ने पीएम मोदी की उपस्थिति में सदन में कहा:
“मेरी कामना है कि यहाँ जितने भी सदस्य हैं, वे फिर से चुनकर आएँ। हम इतना बहुमत हासिल नहीं कर सकते हैं, इसलिए प्रधानमंत्री जी आप फिर प्रधानमंत्री बनकर आएँ।”
मुलायम सिंह के इस बयान का सदन ने ठहाकों और तालियों की गड़गड़ाहट से स्वागत किया। संसद में यूपीए अध्यक्षा सोनिया गाँधी के साथ बैठे मुलायम ने जैसे ही पीएम मोदी के बारे में ऐसा कहा, लोकसभा में ‘जय श्री राम’ के नारे गूँजने लगे। उनके बगल में बैठीं सोनिया गाँधी इस दौरान इधर-उधर देखने लगीं।
Mulayam Singh Yadav says he wants PM Modi to come back as PM !!
मुलायम सिंह के इस बयान के कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। उनके बेटे और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने यूपी में मोदी के रथ को रोकने के लिए नेताजी की पुरानी राजनीतिक दुश्मन मायावती से गठबंधन कर लिया है। अखिलेश आए दिन मोदी पर हमला करते रहते हैं। ऐसे वक़्त पर मुलायम के इस बयान को अहम माना जा रहा है। क्या नेताजी ने देश का मूड पहले ही भाँप लिया है?
प्रधानमंत्री मोदी की प्रसंशा करते हुए मुलायम सिंह यादव ने कहा:
“मैं प्रधानमंत्री जी को बधाई देना चाहता हूँ। आपने सबसे मिल जुल करके सबका काम किया है। हम जब-जब मिले, किसी काम के लिए कहा, आपने उसी वक्त ऑर्डर किया। मैं आपका आदर करता हूं, सम्मान करता हूँ।”
Ravidas Mehrotra, Samajwadi Party, on Mulayam Singh Yadav’s remark in Lok Sabha, ‘I wish you (PM Modi) become PM again’: I don’t have knowledge about the context in which Neta Ji said it. But we want change of government at center. PM himself will lose from his constituency pic.twitter.com/R29Kl6wBj0
राहुल गाँधी ने मुलायम के इस बयान से असहमति जताई है। उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह का राजनीति में अहम योगदान है और वे उनका सम्मान करते हैं। पीएम मोदी ने भी सदन में अपने भाषण के दौरान मुलायम के इस बयान का ज़िक्र करते हुए कहा- “मुझे मुलायम सिंह जी ने आशीर्वाद दे दिया है। मैं उनका सम्मान करता हूँ।“
मुलायम सिंह ने लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन की भी तारीफ़ की। उन्होंने कहा कि सुमित्रा महाजन अच्छी तरह से सदन चलाने में क़ामयाब हुईं हैं। समाजवादी पार्टी के नेताओं ने कहा कि उन्हें मुलायम सिंह के बयान की जानकारी नहीं है।
प्रयागराज में कुम्भ चल रहा है। आस्था और उत्साह का सैलाब चरम पर है। कुम्भ मेले की व्यापकता का ही प्रभाव है कि हिन्दुओं के साथ-साथ अन्य आस्था, मत, सम्प्रदाय और धर्म के लोग हर तरह से प्रयागराज में चल रहे कुम्भ मेले का आनंद ले रहे हैं।
सनातन हिन्दू धर्म के इस त्यौहार की सबसे बड़ी खूबी है कि इसके विस्तार में सिर्फ हिन्दू ही नहीं बल्कि बड़े स्तर पर यह लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ हुआ है। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण प्रयागराज से आने वाली ये तस्वीरें हैं जिसमें सद्गुरु यीशु आपको अपने से जोड़ने की प्रार्थना कर रहे हैं।
हिन्दू धर्म की सहिष्णुता का ये एक बहुत बड़ा उदाहरण है। त्यौहार हिन्दुओं का, डुबकी हिन्दुओं की, ताम-झाम हिन्दुओं का और हाथ धो रहे हैं ईश्वर के पुत्र पवित्र यीशु! धर्म परवर्तन और प्रचार के मकसद से डाले गए ईसाई धर्म के कैंप प्रयागराज तक भी पहुँच चुके हैं। और इसके लिए विकसित देशों से उपजी धर्म परिवर्तन की सभ्यताएँ हर तरह के हथकंडे अपना रही है। कुम्भ मेले में ईसाई मिशनरियों के पंडाल का प्रमुख उद्देश्य यही है।
प्रयागराज में चल रहे कुम्भ में जो पर्चे बाँटे जा रहे हैं उनमें बहुत ही आसानी से यीशु (ईसा मसीह) को ‘सद्गुरु यीशु’ बनाकर जनता के सामने रखा जा रहा है। हिन्दू धर्म के पवित्र उपनिषदों के श्लोकों में ईसा मसीह को ठूँसकर परोसा जा रहा है। धर्म परिवर्तन का यह वाकया धर्म परिवर्तन के लिए अपनाए जा रहे सभी हथकंडों में सबसे ज्यादा ‘क्रिएटिव’ और हास्यास्पद तो है ही, साथ ही यह ईसाइयत के विस्तार की पराकाष्ठा को भी दर्शाता है।
भारत देश में कश्मीर से कन्याकुमारी और JNU से सरकारी विद्यालय तक अपनी पैठ बना रहे ये ‘धर्म परिवर्तक घातक टुकड़ियाँ’ बढ़िया कारोबार कर रही हैं।
इन पर्चों में ईसाई धर्म के प्रचार के लिए हिन्दू धर्म-ग्रंथों और ब्राह्मण साहित्यों के साथ ‘मिलावट का कारोबार’ चल रहा है। इनमें दावा किया गया है कि यीशु ईश्वर के इकलौते पुत्र थे और वो सनातन सद्गुरु हैं, अगर किसी को सत्य जानना है तो उसे सद्गुरु यीशु के पास जाना चाहिए।
असतो मा सद्गमय
ब्राह्मण साहित्यों के श्लोकों की भोंडी नक़ल करते हुए श्लोंको के बीच लिखा गया है, “असतो मा सद्गमय अर्थात यीशु ही हमें असत्य से पूर्ण सत्य पर ले चलते हैं, क्योंकि वे स्वयं सत्य हैं, वो अहमेव सत्यः का दवा करते हैं जिसका मतलब होता है सत्य मैं ही हूँ।”
इसके साथ ही प्रयागराज में बाँटे जा रहे इन किताबों में लिखा गया है, “यीशु ग्रन्थ हमें सिखाता है कि अनंत जीवन पाने के लिए हमें केवल सद्गुरु यीशु पर अपनी आस्था रखनी चाहिए।” इन पर्चों में बड़ी ही सावधानी से लिखा गया है कि सद्गुरु यीशु ही ज्योति हैं।
मृत्योर्मा अमृतं गमय
एक और पर्चे में लिखा गया है, “जो मेरा सन्देश सुनता और भेजने वाले पर भरोसा करता है, उसे दंड नहीं मिलता और अंतिम न्याय के दिन मैं उसे फिर जीवित कर दूँगा।”
क्या है असल सन्देश
हमारे पूर्वग्रह हमें इस बात पर यकीन करने से रोकते हैं लेकिन हिन्दू धर्म विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता रही है। सदियों बाद भी अगर यह हिन्दू धर्म बिना किसी धर्म प्रचार, धर्म परिवर्तन और हिंसा के, वैश्विक और अडिग है तो इसकी वजह इसके मूल में निहित इसकी सहिष्णुता है।
हिन्दू धर्म में मौजूद आध्यात्म, शान्ति और शालीनता आसानी से हर किसी के आकर्षण का केंद्र बन जाती है। यही कारण है कि निरंतर वैश्विक स्तर पर लोग हिन्दू धर्म से जुड़ रहे हैं। ईसाई धर्म प्रचार में जुटी हुई ये ‘घातक टुकड़ियाँ’ भी इस मर्म को समझती हैं। बढ़ते हुए भौतिकवाद के बीच हर इंसान जिस शांति की तालाश करता है, उसे हिन्दू धर्म में वह आध्यात्म आसानी से मिल जाता है। शायद यही वजह है कि ‘हिन्दू गरीबों को गुड़ और चना’ की विफल नीति के बाद अब ईसाई मिशनरी भी आध्यात्म और सत्संग के जरिए लोगों को रिझा कर बहुसंख्यक बनने की ओर अग्रसर हैं।
आज कैग रिपोर्ट भी आ गई, बताया कि राफ़ेल विमान मोदी सरकार ने मनमोहन काल से 2.86% सस्ते में लिया है। ये डील सस्ती कैसे हुई, उसके सारे कारण आप यहाँ पढ़ सकते हैं। लेकिन गुणियों में श्रेष्ठ, घोटालों को सूँघकर जान लेने वाले, घोटालों की गोद में पल कर बड़े हुए राहुल गाँधी ने एक लाइन में नकार दिया है इस रिपोर्ट को।
‘मेरे पास कोई सबूत नहीं है, लेकिन मैं जानता हूँ कि मोदी चोर है’ जैसे कालजयी संवादों के जन्मदाता राहुल गाँधी ने ज़माने को दिखा दिया है कि अगर आप प्रेम करते हैं किसी से तो उसे पागलपन की हद तक चाहना पड़ता है। राफ़ेल राहुल की वही प्रेमिका है, जिसके बारे में व्यंग्यकार नीरज बधवार जी ने लिखा है कि ‘राफ़ेल मामला राहुल गाँधी के लिए उस रिश्ते की तरह है, जिसमें वो इतना इन्वेस्ट कर चुके हैं कि धोखा मिलने के बाद भी, उससे बाहर आने को तैयार नहीं।’
ये बात बिलकुल सही है। हर जिले में प्रेस कॉन्फ़्रेंस से लेकर, हर शाम काग़ज़ के टुकड़े दिखा कर केजरीवाल ब्रांड के ‘सबूत’ लहराने वाले राहुल गाँधी ने जिस राफ़ेल को इतनी शिद्दत से चूमा था, उसे मोदी ने इतना ठंढा कर दिया है कि उनके होंठ चिपक गए हैं, और वो अगर वहाँ से खींचना चाहें तो चेहरा लहुलुहान हो जाएगा।
राहुल गाँधी और पत्रकारिता के समुदाय विशेष गिरोह के तथाकथित पत्रकारों ने पहले ही साल से ये लाइन पकड़ रखी थी कि सरकार है तो घोटाले भी होंगे ही। वो लोग धैर्य के साथ आगे बढ़ रहे थे, कि अब होगा घोटाला, तब होगा घोटाला। घोटाला नहीं हुआ। फिर लांछन लगाने में गिरोह सक्रिय हुआ। गडकरी को घेरा, अमित शाह को घेरा, अजित डोभाल को घेरा, लेकिन हर बार मामला फुस्स हो गया।
फिर नई योजना बनी कि गडकरी को प्रधानमंत्री के लिए प्रमोट किया जाए, उनके बयान को काट-छाँट कर दिखाया गया। दरार पैदा हुई नहीं, गडकरी ने दो लाइन में खंडन किया और फ्लायओवर बनाने लगे।
अब कुछ नहीं रह गया, तो फिर गोएबल्स को याद कर भाजपा को घेरने वाले गोएबल्स से सीख लेकर राफ़ेल मुद्दे को पीटना शुरु किया कि ये एक पब्लिक डिबेट का मामला बन जाए। मामला बन भी गया। लगातार, हर दूसरे दिन ‘मैं नहीं मानता’, ‘चौकीदार चोर है’, ‘सब को मैनेज किया हुआ है’, ‘कैग पर दबाव है’ आदि कह-कह कर एक नॉनइशू को इशू बनाया गया।
मुद्दा बना और लोग इस पर बातें करने लगे कि कोई इतनी बार एक ही बात क्यों बोल रहा है, इस पर सरकार कुछ बोलती क्यों नहीं? सरकार ने बताना शुरु किया तो तर्क आया कि जाँच होनी चाहिए। जाँच भी सुप्रीम कोर्ट या सीबीआई से नहीं, ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमिटी से जिसमें कॉन्ग्रेस के भी लोग हैं। यानी, निष्पक्ष जाँच नहीं, बल्कि जहाँ उनके नेता फ़ैसले पर प्रभाव बना सकें, रिपोर्ट लीक कर सकें, ऐसी जाँच।
इसमें एक बात यह भी है कि दो देशों के साथ हुए रक्षा समझौतों पर, जिसमें गोपनीय तकनीक आदि का इस्तेमाल हो रहा हो, उसे पब्लिक डोमेन में नहीं लाया जा सकता है। इससे दो देशों के संबंध खराब होते हैं, और देश की छवि धूमिल होने से आगे से कोई भी देश आपको इस तरह के समझौतों में शामिल करने से हिचकिचाता है।
ऐसा नहीं है कि इस बात को राहुल गाँधी या उनकी पार्टी के लोग नहीं जानते। इसके उलट, बात यह है कि वो जानते हैं, ऐसा नहीं हो सकता इसीलिए इस बात पर अटके हुए हैं क्योंकि आम जनता को ये बातें समझानी मुश्किल है। आम जनता का तर्क यही होता है कि ‘जाँच करा लो, क्या दिक्कत है?’ फिर, पत्रकारों के गिरोह, जो अच्छे से जानते हैं कि क्या हो सकता है, क्या नहीं, वो भी इसी लाइन पर कहने लगते हैं, “नहीं, क्या समस्या है जाँच कराने में? एक बार सरकार करा क्यों नहीं लेती?”
ये पूरा गिरोह एक वेल-ऑयल्ड मशीन की तरह काम करता है। अंधेरा होते ही एक सियार ‘हुआँ’ करता है, तो बाकी भी करने लगते हैं। लोकसभा में चर्चा हो गई, सवालों का जवाब दे दिया गया, सुप्रीम कोर्ट ने संतुष्टि जता दी, बिंदुवार आँकड़े दे दिए गए, कैग की रिपोर्ट आ गई, लेकिन राहुल का लिप-लॉक टूट ही नहीं रहा!
मीडिया के समुदाय विशेष की असहनीय पीड़ा तो देखिए कि बेचारों की मति इतनी भ्रष्ट हो चुकी है कि ‘मेरे पास कोई सबूत नहीं, लेकिन मैं जानता हूँ मोदी चोर है’ जैसे कुतर्कों को सुनने के बाद भी एक मतछिन्नू आदमी के पीछे खड़ा है। ये बात अपने आप में विचित्र है कि ऐसी बहकी-बहकी बातें करने वाले कुलदीपक को हवाओं से बचाने में लगे पड़े हैं। आज कल इसी को निष्पक्ष पत्रकारिता भी कहा जाता है।
कैग की रिपोर्ट में हर बिंदु पर बताया गया है कि किस हिस्से में सरकार ने ज़्यादा पैसे दिए, किस हिस्से में कम, और कुल मिलाकर डील सस्ती ही मिली। अब, कल कॉन्ग्रेस द्वारा कैग को ही ख़ारिज किए जाने के बाद, राहुल आज मोदी को घेर रहे हैं कि उसने कहा था कि नौ प्रतिशत सस्ता है, ये तो कम ही सस्ता हुआ है। मतलब, मोदी ने किस आधार पर इसे सस्ता कहा था, उसका ज़िक्र नहीं।
और तो और, अब मुद्दा यह नहीं है कि राफ़ेल में घोटाला हुआ है, बल्कि यह है कि मोदी ने जितना पैसा बताया था, उतना तो नहीं बचा है! अब कैग की रिपोर्ट की वो लाइन उठकर नृत्य चालू आहे! जबकि उसी कैग की रिपोर्ट में यह अच्छे से समझाया गया है कि नौ प्रतिशत वाली बात किस संदर्भ में कही गई थी।
हाल ही में, पता चला कि रक्षा सौदों का दलाल क्रिश्चियन मिशेल जो कि कॉन्ग्रेस के ही समय हुए अगस्टा वैस्टलैंड घोटाले में अभियुक्त है, वो राफ़ेल डील रोकने को लिए उसके प्रतिस्पर्धी यूरोफाइटर के लिए लॉबी कर रहा था। अब राहुल जी अपनी पार्टी की गंदगी पर मिट्टी डालने के लिए राफ़ेल को अपनी प्रेमिका बनाकर उसके गीतों को नहीं गाएँगे तो और क्या करेंगे?
अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद से लेकर सत्ता पाने की हर संभव कोशिश करने में जी-जान से जुटा गिरोह राफ़ेल को पीट-पीट कर चपटा करने के बाद, उसे पिघला कर तार बना चुका है, लेकिन मिलावट के कण मिले नहीं। हाँ, अब ये जंजाल इतना बड़ा बन चुका है कि कॉन्ग्रेस इससे बाहर आना ही नहीं चाहती। अब यही एक सहारा है जिससे मोदी को चोर और भ्रष्ट साबित किया जा सके।
वैलेंटाइन सप्ताह चल रहा है और, राहुल गाँधी की बातों को भी गंभीरता से लेने लायक बनाने वाले राफ़ेल को राहुल गाँधी ऐसे समय में छोड़ दें, यह संभव नहीं दिखता। अभी तो फ़िज़ाओं में प्रेम है, और आनेवाले समय में राजनीति होगी। राहुल जी दोनों ही विषयों में, एक ही प्रेमिका के साथ उतरना चाह रहे हैं, लेकिन बेवफ़ा राफ़ेल बिदक कर भाग जाती है।
16 वीं लोकसभा का अंतिम बजट सत्र खत्म हो गया है। विपक्ष के हो-हंगामे की वजह से संसद के दोनों ही सदनों को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया है। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के मुताबिक 16 वीं लोकसभा कार्यकाल के दौरान सदन में राहुल गाँधी की उपस्थिति 52% रही है।
यही नहीं राहुल ने सदन के अंदर महज 14 चर्चाओं में ही हिस्सा लिया है। भले ही राहुल गाँधी प्रधानमंत्री मोदी को सामने आकर 15 मिनट डिबेट के लिए चुनौती पेश करते हों, लेकिन सच्चाई यह है कि सदन में पूरे कार्यकाल के दौरान राहुल ने सरकार से एक भी धारदार सवाल पूछने की हिम्मत नहीं की। यही नहीं, राहुल गाँधी सदन के अंदर एक भी प्राइवेट मेंबर बिल लेकर नहीं आए।
16 वीं लोकसभा के इस सत्र की समाप्ति के बाद सरकार के कामकाज और विपक्ष के सवाल के बारे में आकलन शुरू हो गया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार के दूसरे कार्यकाल की तुलना में भाजपा नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार के कार्यकाल में प्रोडक्टिविटी अधिक रही है।
विपक्ष के विरोध के बावजूद सरकार ने जनता के हित में कई बिल को सदन में पास कराकर कानून का रूप दिया है। सरकार के प्रयास की वजह से लोकसभा में 156 और राज्यसभा में 118 बिल पास हुए। विपक्ष के विरोध के चलते लोकसभा में 46 व राज्यसभा में 33 बिल अटक गए।
भाजपा सांसद निशिकांत दूबे ने सदन के अंदर सबसे अधिक 48 प्राइवेट मेंबर बिल पेश किए। यही नहीं, उत्तर प्रदेश भाजपा के सांसद भैरो प्रसाद मिश्रा और मुंबई नॉर्थ से भाजपा के सांसद गोपाल शेट्टी ने सदन में 100% उपस्थिति दर्ज कराई है।
रक्षा मंत्रालय ने एक उच्च स्तरीय बैठक में भारतीय वायु सेना की मानवरहित युद्ध क्षमता को और मजबूत बनाने के लिए 54 इजरायली HAROP किलर ड्रोन की खरीद को मंजूरी दी गई है। ये किलर ड्रोन दुश्मन के हाई-वैल्यू मिलिट्री टारगेट को पूरी तरह से ध्वस्त कर सकता है। इन घातक ड्रोनों को चीन और पाकिस्तान की सीमा पर तैनात किया जाएगा।
बता दें कि इजरायल के ये ड्रोन इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर से लैस हैं। ये हाई वैल्यू वाले सैन्य ठिकानों जैसे निगरानी के ठिकाने और रडार स्टेशनों की भी निगरानी कर सकते हैं। इजराइल के HAROP किलर ड्रोन दुश्मन के ठिकानों पर क्रैश होकर उन्हें पूरी तरह से तबाह कर देने में भी सक्षम हैं। इससे आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करना और भी आसान हो जाएगा। सर्जिकल स्ट्राइक जैसे ऑपरेशन भी आसानी से अंजाम देने में सक्षम होगी हमारी सेना। मौजूदा समय में वायुसेना के पास 110 ड्रोन हैं।
बता दें कि मोदी सरकार पड़ोसी देशों पर बढ़त बनाए रखने के लिए सेना के तीनो विंग के उन्नयन के लिए प्रयासरत है। न केवल वायुसेना बल्कि मोदी सरकार ने नौसेना के लिए 111 हेलिकॉप्टर खरीदने का फैसला भी किया है। ये सभी हेलिकॉप्टर रणनीतिगत साझेदारी मॉडल के तहत खरीदे जाएँगे। इतना ही नहीं, हाल ही में आर्मी के लिए भी 73,000 अमेरिकी सिग सॉअर असॉल्ट राइफल्स (Sig Sauer Assault Rifles) की खरीद को भी मंजूरी दी है।
बता दें कि भारत सरकार ने 111 अत्याधुनिक नेवल हेलिकॉप्टर्स के निर्माण के लिए बोली लगाने को अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को आमंत्रित किया है। रक्षा मंत्रालय के अनुसार यह डील लगभग 3 बिलियन डॉलर की है।
रक्षा मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि लॉकहीड मार्टिन, एयरबस हेलिकॉप्टर्स और बेल हेलिकॉप्टर्स भी संभावित बोली में भाग लेने वालों में से हैं। चीन की बढ़ती ताकत के साथ संतुलन बनाने के लिए भारत निरंतर अपनी सेना का आधुनिकीकरण करने के लिए प्रयासरत है। इस कड़ी में नेवी के सोवियत रूस के समय के पुराने हेलिकॉप्टर्स को बदलने के लिए यह बिडिंग की जाएगी।
रक्षा मंत्रालय ने कहा कि बिड में शामिल भारतीय कंपनियों में टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स (Tata Advanced Systems), महिंद्रा डिफेंस (Mahindra Defence), अदानी डिफेंस (Adani Defence), एल एंड टी (L&T), भारत फोर्ज (Bharat Forge) और रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर (Reliance Infrastructure) शामिल हैं।
पिछले दिनों रक्षा मंत्रालय ने सेना में आधुनिकीकरण को लेकर एक और अहम फै़सला लिया है। सरकार ने अमेरिका से करीब 73,000 अत्याधुनिक राइफ़लें ख़रीदने को मंजू़री दे दी है। बता दें कि राइफ़लों की ख़रीद का ये प्रस्ताव लंबे समय से अटका हुआ था। रिपोर्ट की मानें तो इसका इस्तेमाल क़रीब 3,600 किलोमीटर लंबी सीमा पर तैनात जवान करेंगे।
भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (फरवरी 13, 2019) को बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्णय को पलट दिया। बता दें कि ट्रायल कोर्ट ने ग़ैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के मामले में पाँचों आरोपितों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल करने के लिए पुणे पुलिस को 90 दिनों का अतिरिक्त समय दिया था। बॉम्बे हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस फ़ैसले को रद्द कर दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा बॉम्बे हाईकोर्ट के इस निर्णय को रद्द करने के बाद सुरेंद्र गडलिंग सहित अन्य आरोपितों को डिफ़ॉल्ट ज़मानत मिलने की राह बंद हो गई है।
भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले में चार्जशीट फ़ाइल करने के लिए SC ने 90 दिन की समय-सीमा बढ़ाई….पाँचों “ऐक्टिविस्ट” के लिए एक और झटका….डिफ़ॉल्ट बेल पाने की कोशिश नाकाम
फ़ैसला सुनाते हुए जस्टिस एसके कौल ने कहा कि इस मामले में पुलिस अपनी चार्जशीट दाख़िल कर चुकी है। हालाँकि, उन्होंने कहा कि आरोपित नियमित ज़मानत पाने लिए आवेदन देने को स्वतंत्र हैं। ज्ञात हो कि महाराष्ट्र सरकार की अर्जी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने 10 जनवरी को ही अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुआई वाली पीठ में जस्टिस संजय किशन कॉल और जस्टिस एल नागेश्वर शामिल थे।
क्या था घटनाक्रम?
29 अक्टूबर 2008 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फ़ैसले को पलटते हुए गडवील को नोटिस जारी किया था। महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश वकील मुकुल रोहतगी ने चार्जशीट समय पर दाख़िल न होने के पीछे तकनीकी कारणों का हवाला दिया था। 10 दिनों का समय मिलने के बाद पुलिस ने चार्जशीट दाख़िल कर दी थी।
भीमा- कोरेगांव हिंसा : SC ने चार्जशीट दाखिल करने की मोहलत रद्द करने वाले बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को रद्द किया https://t.co/rSqf9wVK7H
अर्बन नक्सलियों की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने महाराष्ट्र सरकार की दलीलों का विरोध किया था। निचली अदालत के फ़ैसले को रद्द करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था:
“आरोप-पत्र दाखिल करने के लिए अतिरिक्त समय देना और गिरफ्तार लोगों की हिरासत की अवधि बढ़ाने का निचली कोर्ट का आदेश गैरकानूनी है।”
#BreakingNews Supreme Court sets aside the Bombay High Court order of granting default bail to the five #UrbanNaxals involved in the #KoregaonBhima violence case. Huge victory for the Maharashtra police.
आज बुधवार को हुई सुनवाई में आरोपितों की तरफ से कॉन्ग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी पेश हुए। इन अर्बन नक्सलियों को पुणे में भड़की हिंसा के संबंध में गिरफ़्तार किया गया था। भीमा कोरेगाँव युद्ध की 200वीं बरसी मनाने के दौरान हिंसा भड़क गई थी।
झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने सोमवार (फ़रवरी 11, 2019) को राँची के हरमू मैदान में आयोजित भाजपा शक्ति कार्यकर्ता सम्मलेन में महागठबंधन पर जम कर निशाना साधा। मुख्यमंत्री दास ने सोरेन परिवार को भी आड़े हाथों लिया और कहा कि हेमंत सोरेन सत्ता के लिए उन्ही के पाले में चले गए हैं ,जिन्होंने उनके पिता शिबू सोरेन को प्रताड़ित किया था। सम्मलेन में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह ने भी शिरकत की। सम्मलेन में खूँटी, राँची और हजारीबाग से कार्यकर्ता आए हुए थे।
झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री और झामुमो नेता हेमंत सोरेन पर निशाना साधते हुए हुए रघुवर दास ने कहा:
“झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन को प्रताड़ित करनेवालों के साथ उनके पुत्र हेमंत सोरेन सत्ता के लिए महागठबंधन कर रहे हैं। कॉन्ग्रेस ने शिबू सोरेन को कोयला मंत्री पद से हटाया। कोयला घोटाला में उन्हें जेल भेजा। झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी ने चिरूडीह कांड में शिबू सोरेन को जेल भिजवाया। यह सब भूल कर सत्ता के लिए हेमंत सोरेन कॉन्ग्रेस, झाविमो और राजद के साथ महागठबंधन कर रहे हैं।”
सोरेन परिवार की संपत्ति और ज़मीन को लेकर भी रघुवर ने उन्हें आड़े हाथों लिया। मुख्यमंत्री ने सोरेन परिवार पर आदिवासियों की ज़मीन लूटने का आरोप लगाते हुए कहा:
“झामुमो के सोरेन परिवार ने झारखंड के आदिवासियों की ज़मीन लूटी है। जल, जंगल व जमीन का नारा देने वाले झामुमो का सोरेन परिवार रामगढ़ के गोला पंचायत से निकलकर बोकारो, धनबाद, दुमका, रांची, साहेबगंज समेत कई जगहों पर ज़मीन ख़रीदा है। सोरेन परिवार ने सीएनटी व एसपीटी एक्ट का उल्लंघन कर आदिवासियों की ज़मीन लूटी है। सोरेन परिवार को बताना चाहिए कि ज़मीन खरीदने के लिए पैसा कहाँ से आया, क्या उनके पास कोई नोट छापने की मशीन है। इस परिवार ने भाेलेभाले आदिवासियों को लूटने का काम किया है। मगर अब आदिवासी सजग हो गए है, उन्हें सब समझ में आता है। वे संथाल में अधिक विकास पर जोर दे रहे हैं।”
सभा को सम्बोधित करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमन सिंह ने रघुवर सरकार की योजनाओं की जम कर तारीफ़ की। उन्होंने कहा कि मात्र ₹1 में रजिस्ट्री कराना उपलब्धि है, ऐसा किसी भी भारतीय राज्य में नहीं होता है। उन्होंने कहा कि अगर रघुवर सरकार की कुछ योजनाएँ छत्तीसगढ़ में लागू की जाती तो शायद वहाँ लगातार चौथी बार भाजपा की सरकार होती।
नवंबर 2016 में जम्मू-कश्मीर के नागरोटा में आतंकवादियों के हमले में देश के 7 जवान शहीद हो गए थे। सेना के इन 7 शहीद जवानों में से एक का नाम मेजर अक्षय गिरीश कुमार था।
31 वर्षीय अक्षय की शादी 4 साल पहले संगीता रवींद्रन से हुई थी। शहीद मेजर अक्षय अपनी पत्नी की गोद में तीन साल की बेटी और ढेर सारी यादें छोड़ गए। मेजर अक्षय की इसी बेटी नैना का एक वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वीडियो को शहीद की पत्नी और नैना की माँ ने ट्वीटर के जरिए शेयर किया है।
अपने इमोशनल वीडियो में नैना अपने पिता को याद करती हैं। नैना वीडियो में पिता से हुई बातचीत के बारे में कहती है- सेना का मतलब हम लोगों को प्यार करना होता है। आर्मी बुरे अंकल से लड़ने के लिए होती है। आर्मी हमारे डर को दूर करने के लिए होती है। आर्मी वाले वे होते हैं, जो सभी को जय हिंद कहते हैं।
A year after Akshay’s martyrdom, Naina recollects conversations with her papa.
Here she teaches us what ‘Army is…’
This random video captures innocence and faith.
Love is an emotion.
Her papa’s love for the Army and Countrymen also stays within her.
राफेल डील पर कॉन्ग्रेस के आरोपों के बीच मोदी सरकार ने मंगलवार को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट संसद में पेश की। इस दौरान विपक्ष ने जेपीसी से जांच के लिए हंगामा किया। रिपोर्ट के मुताबिक यूपीए के मुकाबले NDA के शासनकाल में 2.86% सस्ती डील फाइनल की गई है।
कैग की रिपोर्ट में 2007 और 2015 की बोलियों का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट में लिखा है:
“आईएनटी द्वारा गणना किए गए संरेखित मूल्य ‘यू 1’ मिलियन यूरो था जबकि लेखापरीक्षा द्वारा आंकलित की गई संरेखित कीमत ‘सीवी’ मिलियन यूरो थी जो आईएनटी संरेखित लागत से लगभग 1.23 प्रतिशत कम थी। यह वह मूल्य था जिस पर 2015 में अनुबंध पर हस्ताक्षर किए जाने चाहिए थे यदि 2007 और 2015 की कीमतों को बराबर माना जाता। लेकिन इसके जगह 2016 में ‘यू’ मिलियन यूरो के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए थे, जो लेखापरीक्षा के संरेखित कीमत से 2.86 प्रतिशत कम थी।”
CAG report, tabled before Rajya Sabha today, says compared to the 126 aircraft deal, India managed to save 17.08% money for the India Specific Enhancements in the 36 Rafale contract. #RafaleDealpic.twitter.com/mFydI83Led
कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने कैग रिपोर्ट को बकवास बताया और इसे चौकीदार ऑडिट जनरल रिपोर्ट नाम दिया। भारत ने पहले प्रस्तावित 126 विमान सौदे की तुलना में 36 राफेल विमान अनुबंध में ‘इंडिया स्पेसिफिक एनहांसमेंट (India Specific Enhancement)’ के मामले में 17.08% बचाने में कामयाबी हासिल की।
कोलंबिया का एक अखबार था “एल एस्पक्टाडोर”, जिसमें 1955 में चौदह दिनों की एक सीरीज छपनी शुरू हुई। ये सीरीज एक सत्य घटना पर लिखी जा रही थी। सीरीज का हीरो करीब बीस साल का एक नौजवान लुइस अलेक्सान्द्रो वेल्साको, होता है। ये कहानी इसलिए महत्वपूर्ण हो गई थी क्योंकि ये सरकारी बयानों से बहुत अलग थी। सरकारी बयानों में एक ऐसा तूफ़ान गढ़ा गया था, जो कि कभी आया ही नहीं था। सच्चाई ये थी कि जहाज पर तस्करी का इतना माल लाद दिया गया था कि वो डूब गया।
असली कहानी ये थी कि वेल्साको अमेरिका से अपने जहाज पर लौट रहे थे। कई दिनों बाद अपने देश लौटने की सब नाविकों को जल्दी भी थी। जहाज पर औकात से ऊपर तस्करी का माल लादकर जहाज को रवाना किया गया था। कैरिबियन में लहरें ऊँची होती हैं, और जहाज पर वजन ज्यादा था। संभालने की कोशिश में वेल्साको के आठ साथी बह गए और आखिर जहाज डूब गया। कोलंबिया की नौसेना ने चार दिन तलाश की और सभी लापता नाविकों को मृत मानकर खोज बंद कर दी। मगर लुइस वेल्सांको के हाथ कुछ टूटी-फूटी सी एक लाइफबोट आ गई थी और वो बच गया था।
चार दिन तक जो तलाश करने का बहाना हुआ, उसमें भी कुछ किया नहीं गया था! ऐसे में वेल्साको भूखा-प्यासा अपनी टूटी नाव पर बहता रहा। किसी तरह दस दिन बाद वो जिस किनारे पर पहुंचा, किस्मत से वो कोलंबिया था। समंदर से जिन्दा बच निकले इसी नाविक की असली कहानी लिखकर लेखक ने छाप दी थी। जाहिर है सरकार की पोल खोल देने वाली इस कहानी के छपते ही उन्हें स्थानीय पत्रकार से विदेशी संवाददाता हो जाना पड़ा। तथाकथित समाजवादी-साम्यवादी सरकारों को भी अपनी पोल खोलने वाले पसंद नहीं आते।
खैर ये कहानी पहले तो स्पैनिश में ही छपी थी, मगर कई साल बाद (1970 में) इसे एक किताब की शक्ल दी गई। कुछ साल और बीतने पर रैन्डोल्फ होगन ने (1986 में) इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया। नोबल पुरस्कार से सम्मानित गैब्रिअल ग्रेसिया मार्क्वेज़ की ये किताब थी “द स्टोरी ऑफ़ अ शिपरेक्ड सेलर (The Story of a Shipwrecked Sailor)” जो पहले कभी अखबार के लेखों का सीरीज थी। मार्क्वेज़ ने किताब के अधिकार भी उस नाविक लुइस वेल्साको को दे दिए थे। खुद किताब की रॉयल्टी नहीं ली।
बाद में किताब का अंग्रेजी अनुवाद जब खूब चला तो इस नाविक ने मार्क्वेज़ पर उसके अधिकार के लिए भी मुकदमा ठोक दिया। मतलब जिसे उसने ना लिखा, ना अनुवाद किया, ना कुछ योगदान दिया, उसे उसके भी पैसे चाहिए थे। वैसे तो जहाज डूबने की कहानी डेनियल डेफो के रोबिनसन क्रुसो के दौर से ही प्रसिद्ध हैं। वोल्टायर ने कैंडिड, उम्बरटो एको की द आइलैंड ऑफ़ द डे बिफोर, जेएम कोट्जी की फो भी इसी विषय पर हैं। लेकिन मार्क्वेज़ ने एक सत्य घटना को एक किस्से की तरह सुनाया और वो उनकी किताब को ख़ास बनाता है।
भारत की बहुसंख्यक आबादी को देखेंगे तो ये “द स्टोरी ऑफ़ अ शिपरेक्ड सेलर” की कहानी काम की कहानी लगेगी। अच्छा किस्सा गढ़ने वाला – जैसे रविश कुमार, जैसे देवदत्त पटनायक – कितने हैं, जो भारत की “बहुसंख्यक”, बोले तो हिन्दुओं की ओर से कहानी सुना सकें? कोई नाम याद आता है क्या? अब ये तो जाहिर बात है कि हमलावर मजहब और रिलिजन जहाँ-जहाँ गए, वहां से उन्होंने स्थानीय धर्मों को समूल ख़त्म कर दिया। अगर भारत के एक छोटे से हिस्से में हिन्दू बहुसंख्यक हैं (सात राज्यों में नहीं हैं) तो जाहिर है, हमने लड़ाइयाँ जीती भी होंगी।
सभी हारे होते तो निपटा दिए गए होते। गोवा इनक्वीजिशन के फ्रांसिस ज़ेवियर जैसे सरगना पानी पी-पी कर ब्राह्मणों को कोसते पाए जाते हैं, क्योंकि उनके होते वो लोगों को इसाई नहीं बना पा रहे थे। रानी पद्मावती पर चित्तौड़ वाला हमला आखिरी तो नहीं था। भंसाली ‘द मुग़ल’ ने तो हाल में ही किला घेरने की कोशिश की है। चमचों के लिए हम-आप सब बरसों “चारण-भाट” जुमले का इस्तेमाल करते रहे हैं। एक बार इतिहास पलटते ही पता चल जाता है कि चारण-भाट तो गला कटने की स्थिति में भी बिलकुल झूठ ना बोलने वाले लोग थे! उनके कॉन्ग्रेसी टाइप होने की तो संभावना ही नहीं है?
सवाल ये है कि हम अपने पक्ष के किस्से सुनाने वाले कब ढूँढेंगे? हज़ार वर्षों से हमलों के सामने प्रतिरोध की क्षमता ना छोड़ने वाले हिन्दुओं की कहानी लिखने वालों को पब्लिक कब ढूँढेगी? शिकार की कहानियों में शिकारी का महिमामंडन तो खूब पढ़ लिया। हे महामूर्ख, हिन्दुओं! आप अपने पक्ष की कहनी सुनाने वालों को कब ढूँढेंगे?