कॉन्ग्रेस पार्टी में रार बढ़ती ही जा रही है और इसका सबसे बड़ा कारण है राहुल गाँधी की अध्यक्षता पर संशय के बादल का छाना। मीडिया में आई कई ख़बरों का न तो अब तक राहुल ने खंडन ही किया है और न ही हामी भरी है। जहाँ कई दिनों तक वह पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मिलने से आनाकानी करते रहे, वहीं अब वह अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड के दौरे पर हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में पार्टी का आंतरिक संगठन बड़े कलह के दौर से गुजर रहा है और पार्टी अध्यक्ष राहुल पद पर बने रहेंगे या नहीं, इसकी अनिश्चितता के कारण नेतागण आपस में ही सिर-फुटव्वल कर रहे हैं।
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि अगर राहुल गाँधी अपना इस्तीफ़ा वापस नहीं लेते हैं तो स्थिति और विकट हो सकती है। वहीं दूसरा धरा ऐसा भी है, जिसके मानना है कि पार्टी में बड़े बदलाव ज़रूरी हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली ने सार्वजनिक रूप से साफ़-साफ़ कहा है कि राहुल को अपने इस्तीफ़े को लेकर अनिश्चितता ख़त्म करनी चाहिए। वरिष्ठ नेतागण राहुल को पार्टी के राज्यस्तरीय संगठन में बदलाव करने की सलाह दे रहे हैं। वीरप्पा मोइली ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा:
“राहुल गाँधी को अब फ़ैसला लेना चाहिए। यह पार्टी के अध्यक्ष पद को छोड़ने का समय नहीं है। उन्हें यह याद रखना चाहिए कि इंदिरा को भी 1977 में ऐसे वक़्त का सामना करना पड़ा था, लेकिन उन्होंने आगे बढ़ने का फ़ैसला लिया। उन्हें पार्टी की कमान संभालनी चाहिए, राज्यों की यूनिटों के विवादों के निपटारे करते हुए संगठन की दिशा तय करनी चाहिए।”
17 जून से संसद का सत्र शुरू हो रहा है। ऐसे में, अगर तब तक पार्टी अध्यक्ष को लेकर संशय समाप्त नहीं होता है, तो संसद में विपक्ष की एकता को गहरा धक्का लगेगा। एक बैठक के दौरान वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद की मौजूदगी में हरियाणा के कॉन्ग्रेस नेताओं के बीच आपस में तू तू-मैं मैं हुई। महाराष्ट्र में कई कॉन्ग्रेस नेताओं ने भाजपा में शामिल होने का निर्णय लिया है। कर्नाटक में कॉन्ग्रेस-जेडीएस गठबंधन के ख़राब प्रदर्शन के बाद राज्य के सत्ताधारी गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं है। निर्दलियों को अहम पद देकर डैमेज कण्ट्रोल की कोशिश हो रही है।
M Veerappa Moily: Even if Rahul Gandhi wants to leave the presidentship,he has to do it only after party is properly restructured because he alone can do it. He has that kind of leadership quality. Even if he wants to leave,he has to hand it over to the right person,right hands.
पंजाब में कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू के पर कतरना शुरू कर दिया है और उनका मंत्रालय बदलने के बाद उन्हें मंत्रिमंडलीय समितियों में भी जगह नहीं दी गई। भोपाल में ख़ुद पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की बुरी हार हुई और मुख्यमंत्री कमलनाथ के सहयोगियों के ठिकानों पर आईटी विभाग की छापेमारी के बाद कॉन्ग्रेस की राज्य यूनिट में संकट का माहौल है।
असम में शर्मसार कर देने वाली घटना में ईद के जश्न में नृत्य प्रस्तुत करने के लिए बुलाई गईं लड़कियों को गुंडों द्वारा नग्न होकर नाचने के लिए मजबूर करने का वाकया सामने आ रहा है। हालाँकि, लड़कियाँ वहाँ से भागने में सफल रहीं और उन्होंने पुलिस में एफआईआर भी दर्ज करवा दी है, जिसके बाद पुलिस ने दो आरोपितों को गिरफ्तार भी कर लिया है।
700-800 की भीड़ ने घेरा, कपड़े नोंचे, खंजर से धमकाया
डांस ग्रुप के डायरेक्टर अरूप डी राभा की एफआईआर के मुताबिक बोको, असम के ‘रेनबो डांस ग्रुप’ को कामरूप जिले के चायगाँव इलाके में असोलपोरा गाँव में ईद के जश्न में नाचने के लिए बुलाया गया था। बताया गया था कि यह एक ‘सांस्कृतिक कार्यक्रम’ है। सह-आयोजक कुद्दुस अली ने ग्रुप को ₹37,000 देने का वादा किया था और इसके भुगतान के लिए 7 जून की तारीख तय की थी।
तय दिन-तारीख-समय पर जब 42-सदस्यीय ग्रुप वहाँ पहुँचा तो वहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसा कोई माहौल नहीं था। जब उन्होंने कुद्दुस अली से इस बारे में बात की तो वह उन्हें एक संदेहास्पद स्थान पर ले गया जो हर तरफ से लोहे की चादरों से घिरा हुआ था। जब डांस ग्रुप ने अपना पारंपरिक नृत्य शुरू किया तो वहाँ जमा 700-800 लड़कों की भीड़ ने उत्पात शुरू कर दिया, और लड़कियों के कपड़े खींचने लगे। आयोजकों ने भी लड़कियों को बचाने की बजाय उनका साथ देना शुरू कर दिया। उन्होंने लड़कियों से कहा कि सभी कपड़े उतार कर अश्लील गानों पर नाचें। इसके लिए उन्हें खंजर दिखाकर धमकाया भी गया।
भीड़ की बातों से डांस ग्रुप को यह समझ में आया कि आयोजकों ने भीड़ से झूठ बोला था कि नग्न नृत्य करने वाली लड़कियों का ग्रुप कूच बिहार से मँगाया जाएगा, और इसके लिए उन्होंने भीड़ से मोटी रकम भी ऐंठी थी। एफआईआर के अनुसार भीड़ और आयोजकों ने लड़कियों को अभद्र तरीके से छू कर उनके कपड़े उतरवाने की कोशिश की थी। नग्न अवस्था में नाचने से इनकार करने पर उन्हें गन्दी गालियाँ भी दी गईं।
पुलिस और दोस्तों को किया फोन, एफआईआर दर्ज
ग्रुप के लोग किसी तरह वहाँ से निकल भागने में सफल रहे। भागते हुए उनके वाहन पर भी कुल्हाड़ियों और लोहे की सलाखों से हमला हुआ जिससे उनका वाहन गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गया। उन्होंने मदद के लिए अपने दोस्तों और बोको पुलिस स्टेशन को फोन किया। बाद में रात में, डांस ग्रुप पुलिस एस्कॉर्ट के साथ बोको पहुँचा। बोको पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर में ग्रुप के डायरेक्टर अरूप डी राहा ने कुद्दुस अली, सैय्यद खान, अतीकुल असलम, समाजुद्दीन, जहरुल असलम और अब्बास अली को नामजद किया गया है। उपरोक्त सभी व्यक्ति आयोजक समिति के सदस्य हैं। पुलिस की जाँच में अब तक सुभान खान और शाहरुख़ खान की गिरफ़्तारी हो पाई है।
दिल्ली के प्रसिद्ध जामा मस्जिद में टिक-टॉक वीडियो बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इन दिनों सोशल मीडिया पर वीडियो मेकिंग ऐप टिक-टॉक की काफी चर्चा में है। टिक-टॉक पर वीडियो बनाना एक ट्रेंड की तरह लगातार बढ़ता ही जा रहा है। युवा लड़के-लड़कियों में इसका ज्यादा क्रेज देखने को मिल रहा है।
इसी कड़ी में टिक-टॉक वीडियो बनाने से जुड़ा दिल्ली के जामा मस्जिद का एक मामला सामने आया है। जहाँ दो विदेशी लड़कियाँ टिक-टॉक पर वीडियो शूट करती नज़र आईं। दरअसल, जामा मस्जिद के नमाज़ कक्ष के पास दो विदेशी लड़कियाँ डांस करते हुए टिक-टॉक पर वीडियो बना रही थीं। विदेशी लड़कियों द्वारा बनाया गया यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।
इस बारे में मस्जिद के इमाम का कहना है कि चाहे वह मस्जिद हो, मंदिर हो, या फिर गुरुद्वारा, ये स्थान पूजा के लिए हैं, गायन और नृत्य के लिए नहीं। उनका कहना है कि उन्होंने नमाज़ पढ़ने वाली जगह पर लड़कियों के डांस का वीडियो देख लिया था। जिसके बाद उन्होंने ये फैसला लिया। वहीं, मस्जिद में बैन के बाद टिक-टॉक ने कहा कि इससे किसी की भावना, धार्मिक आस्था आहत हो सकती है। इसलिए इस वीडियो को हटा दिया गया है।
इस नए नियम के बाद जामा मस्जिद के अंदर जाकर वीडियो नहीं बना पाएँगे। इसके लिए मस्जिद परिसर में एक बोर्ड लगा दिया गया है जिस पर साफ लिखा है कि जामा मस्जिद में टिक टॉक बनाना सख्त मना है। इमाम ने कहा कि उन्होंने टिक-टॉक वीडियो बनाने वालों पर नज़र रखने के लिए एक टीम बनाई है, जो मस्जिद के अंदर दो ई-रिक्शा में चक्कर लगाते हैं। उनका कहना है कि शुरुआत में इस ऐप का उपयोग करते हुए कई लोगों को पकड़ा गया था, लेकिन अब ये न के बराबर है। उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति टिक-टॉक का उपयोग करता हुआ पाया जाता है, तो उस व्यक्ति को तुरंत वीडियो डिलीट करने के लिए कहा जाता है।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में शामिल तीन-भाषा के फार्मूले ने तमिलनाडु में राजनीतिक तल्ख़ियाँ भले ही बढ़ा दी हों, लेकिन राज्य में जैसे-जैसे CBSE बोर्ड से जुड़े स्कूलों की संख्या में इज़ाफ़ा हो रहा है, वैसे-वैसे हिन्दी सीखने वाले छात्रों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। इससे पता चलता है कि लोगों को हिन्दी से नहीं बल्कि उसे छात्रों पर ज़बरदस्ती थोपे जाने से दिक्कत है।
दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के ज़रिए स्वेच्छा से हिन्दी सीखने वाले स्टूडेंट्स की संख्या 2009-10 के बाद से बढ़ रही है। दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा एक प्रमुख हिन्दीसेवी संस्था है, जिसकी स्थापना 1918 में हिन्दी के प्रचार के लिए की गई थी। इसी साल राज्य में एक समान सिलेबस को अनिवार्य कर दिया गया था। इसका फ़ायदा CBSE स्कूलों को मिला और वे ख़ूब फले-फूले क्योंकि उनका सिलेबस बेहतर था। 10 साल पहले राज्य में केवल 98 CBSE स्कूल थे। अब CBSE की स्थायी मान्यता वाले 950 और अस्थायी मान्यता वाले हज़ारों स्कूल हैं।
दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा द्वारा आयोजित परीक्षा में शामिल होने वाले उम्मीदवारों की संख्या दो लाख से बढ़कर 5.7 लाख हो गई है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इनमें से 80% स्कूली छात्र-छात्राएँ हैं। तमिलनाडु के अलावा और किसी अन्य दक्षिणी राज्य में इतनी बढ़ोतरी दर्ज नहीं की।
दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के महासचिव एस जयराज ने कहा:
“चेन्नै में जिन स्टूडेंट्स के सिलेबस में हिन्दी है वे इन परीक्षाओं के ज़रिए हिन्दी सीखने के लिए बहुत उत्सुक रहते हैं। इसकी प्राथमिक परीक्षा ‘परिचय’ कहलाती है, यह साल में दो बार आयोजित की जाती है। फ़रवरी में आयोजित परीक्षा में 30 हज़ार से ज़्यादा परीक्षार्थी बैठते हैं वहीं जुलाई में होने वाली परीक्षा में 10 हज़ार से भी कम परीक्षार्थी शामिल होते हैं। इसका कारण यह बताया जाता है कि अधिकांश लोग शैक्षिक सत्र की शुरुआत में ही यह परीक्षा नहीं देना चाहते।”
उन्होंने कहा, “इससे यह भी पता चलता है कि माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे हिन्दी सीखें, क्योंकि वे इंग्लिश और तमिल भाषा को पर्याप्त नहीं समझते और तमिलनाडु में लोग हिन्दी भाषा से नफ़रत नहीं करते हैं।”
द्रविड़ विदुथलाई काजगम नेता कोलाथुर मनि इस बात से सहमत हैं और कहते हैं:
“पेरियार और उनके अनुयायियों ने लोगों को हिन्दी सीखने से कभी रोका नहीं। उन्होंने उसका विरोध तभी किया जब हिन्दी को स्कूलों में अनिवार्य किया जाने लगा। बहुत से लोगों ने, ख़ासकर शिक्षकों ने हिन्दी सीखनी इसलिए शुरू की होगी क्योंकि यह उनके रोज़गार से जुड़ी है। इसके अलावा हिन्दी सीखने वाले अधिकांश बच्चे अगड़े वर्ग से हैं।”
पी कन्नन का बेटा CBSE स्कूल में पढ़ता है। उन्होंने कहा, “मैं नहीं चाहता कि जब मेरा बेटा रोज़गार के लिए दूसरे राज्यों में जाए तो उसे शर्मिंदा होना पड़े। एक से अधिक भाषाओं को जानना हमेशा बेहतर होता है क्योंकि इससे उनके रोज़गार की संभावना बढ़ जाती है।”
देश, काल और वातावरण कोई भी क्यों न हो, सोशल मीडिया अपने हीरो तलाश ही लेता है। ख़ास बात यह कि व्यक्ति जितना बड़ा लम्पट, धूर्त और मक्कार है, उसके उतने ही ज्यादा भाव यहाँ पर मिलने के चांस रहते हैं। सोशल मीडिया द्वारा पैदा किए गए JNU के कुछ क्रांतिजीवों की कहानी अभी थमी नहीं थी कि हिन्दूफ़ोबिया से ग्रस्त एक और मीडिया ट्रोल को दोबारा सोशल मीडिया पर ‘कम्बल पिटाई’ के लिए चुन लिया गया।
इस बार प्रकरण है बीबीसी, और द वायर जैसे मीडिया गिरोहों के एक स्वतंत्र मीडिया ट्रोल और पार्ट टाइम पत्रकार का, जिसे कल ही उत्तर प्रदेश पुलिस पकड़ कर ले गई है। प्रशांत कनोजिया नाम के इस स्वतंत्र और मनचले पत्रकार की एक और उपलब्धि यह भी है कि इसे IIMC से निकाला गया था। यह खुलासा ट्विटर पर वरिष्ठ पत्रकार और आइआइएमसी के महानिदेशक केजी सुरेश ने खुद किया है। उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा हिरासत में लिए गए इस स्वतंत्र पत्रकार प्रशांत कनोजिया को IIMC में एक वरिष्ठ प्रोफेसर को गाली देने के कारण बाहर निकाला गया था।
चर्चा में बने रहना एक क्रांतिकारी का पहला लक्ष्य होता है। इसी शौक के चलते द वायर के इस स्वतंत्र पत्रकार ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से जुड़े एक ऐसे वीडियो को शेयर कर उनकी शादी करवा देने तक का आश्वासन दिया। यह भी बताना आवश्यक है कि इस वीडियो की प्रामाणिकता अभी तक शून्य है।
हमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लोकसभा चुनाव से पहले दिए एक इंटरव्यू को याद करना चाहिए, जिसमें वो कह रहे थे कि मोदी सरकार या भाजपा पर यदि कोई भी XYZ आदमी भारतवर्ष से लेकर किसी अन्य महाद्वीप पर बैठा बिना सर-पैर का कुछ आरोप लगा देता है, तो हमारी मीडिया उसकी और दौड़ पड़ता है, लेकिन जिन मीडिया पोर्टल्स ने गाँधी परिवार के घोटालों का बाकायदा सबूत के साथ भंडाफोड़ किया है, यही मीडिया उसे नजरअंदाज कर देना चाहती है।
इतना सब के बावजुद देखा जाए तो द वायर के इस पत्रकार को सोशल मीडिया पर अपने विचार रखने के लिए गिरफ्तार कर लेना बिलकुल भी तार्किक नहीं है। इसके 3 प्रमुख कारण हैं – पहला तो यह कि पुलिस विभाग के पास सोशल मीडिया को इतनी गंभीरता से लेने से पहले अन्य भी बहुत से काम होने चाहिए। दूसरा कारण यह है कि सोशल मीडिया जैसे प्लेटफॉर्म का उदय हुआ ही अपने विचार और मत रखने के लिए था। तीसरा और सबसे प्रमुख कारण यहाँ पर ये भी है कि इस गिरफ़्तारी के बाद इस प्रकार के मीडिया ट्रोल्स का अपना पहला लक्ष्य सफल हो जाता है, वो है अटेंशन और सस्ती लोकप्रियता।
प्रशासन पहले भी बना चुका है चन्दा-चोरों को हीरो
टैक्सपेयर्स के रुपयों से मिलने वाली सब्सिडी से JNU में फ्रीलांस प्रोटेस्टर का काम करने वाले उमर खालिद और कन्हैया कुमार का उदाहरण लें तो सरकार द्वारा उन्हें रातों-रात देश के ऐसे वर्ग का नायक बना दिया गया, जो बेवजह यहाँ-वहाँ बिखरा पड़ा था। इसका नतीजा ये हुआ कि वो लोग तुरंत राजनीति का चेहरा बनने का सपना देखने लगे और बेगूसराय की सड़कों पर अपनी राजनीति की जमीन बनाने के लिए लोगों से चंदा माँगते नजर आने लगे। मानो यह सब किसी पूर्व नियोजित प्रक्रम का हिस्सा हो। हालाँकि, फायदा यह भी हुआ कि इस प्रकरण के बाद ऐसे लोगों को पहचानने में सहायता भी हुई।
लेकिन इस बार भी यही होना है। दलितों की तुलना जानवरों से करने वाले द वायर के इस पत्रकार को जनता फिर से अपना नायक बना देगी और उसके लिए यही उपलब्धि काफी होगी। हो सकता है कि अगले चुनाव में प्रशांत कनोजिया भी किसी सड़क पर चंदा माँगता हुआ नजर आए।
शासन-प्रशासन का नजरिया इस मामले में बेहद स्पष्ट होना चाहिए। या तो उसे पता होना चाहिए कि यह व्यक्ति इस कारण अपराधी है, या फिर उन्हें बेवजह किसी भी राह चलते मीडिया ट्रोल को सनसनी बनाने से बाज आना होगा।
हिन्दुओं से नफरत से जन्मा पत्रकार है प्रशांत कनोजिया
घृणा और अराजकता के नाम पर खुद को पत्रकार कहने वाले प्रशांत कनोजिया का इतिहास बहुत अच्छा नहीं है। हालाँकि, एक समुदाय विशेष की बुराइयों को छुपाकर हिन्दुओं और उनकी आस्थाओं को अपमानित करने वाले पत्रकार बुद्धिजीवी कहलाए जाते हैं। पहली बात तो यह कि गिरफ्तार किया गया यह पत्रकार यदि खुद को पत्रकार मानता है तो कम से कम उसके सोशल मीडिया के इतिहास से तो यह नहीं झलकता है। वो भी तब जब आपको पता है कि आप पत्रकार हैं, और खुलकर अपने संस्थानों का नाम लिखकर बताते हैं कि आप उनसे सम्बंधित रहे हैं। प्रशांत कनोजिया का सोशल मीडिया इतिहास बताता है कि उनका लेनादेना किसी पत्रकारिता से नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ सस्ती लोकप्रियता से है। इस सस्ती लोकप्रियता के लिए उसने भी वही सबसे आसान तरीका अपनाया है, जैसा कि उन संस्थानों ने अपनाया था, जिनसे वो सम्बन्धित रहा है यानी, हिन्दूफ़ोबिया।
प्रशांत कनोजिया का सोशल मीडिया इतिहास बताता है कि उसकी भाषा भी हिन्दुओं के खिलाफ वही है जो पुलवामा आतंकी हमले से पहले वीडियो बनाने वाले फिदायीन की थी। वो भी गौमूत्र और गाय से नफरत करता था और द वायर का मीडिया ट्रोल प्रशांत कनोजिया भी गाय और गोमूत्र से नफरत करता है।
मोदी सरकार और हिंदुत्व विरोधी नैरेटिव लिखने वाले मीडिया गिरोह के इस दल यानी द वायर के प्रशांत कनोजिया नाम के इस पत्रकार के निशाने पर हिंदुत्व और उसकी आस्थाएँ रही हैं। जब आप एक नामी संस्था से निकलकर जर्नलिस्ट बनते हैं तब आपकी यह जिम्मेदारी ज्यादा बन जाती है कि आप अपने शब्दों के प्रति संवेदनशील रहें। इसका कारण यह है कि आप जानते हैं कि सोशल मीडिया पर एक बड़ा वर्ग आपको सिर्फ इसलिए पढ़ रहा होता है ताकि उसकी विचारधारा को एक दिशा मिल सके।
प्रशांत कनोजिया की गिरफ़्तारी एक तरह से सबक भी है, पत्रकारिता के नाम पर अपनी विषैली मानसिकता के प्रमोशन में लगे उन तमाम क्षद्म लिबरल पत्रकारों के लिए, जिनके लिए लिबरल होने का मतलब सिर्फ हिन्दुओं से घृणा और अकारण ही मनुस्मृति को कोसना है। ये लिबरल तो नहीं हैं लेकिन इन्हें अपना वर्ग पता होता है कि इनकी विचारधारा को खाद-पानी देकर आगे फैलाने वाले लोग मौजूद हैं, इसलिए ये लिबरल होने का अभिनय सलीके से निभाते हैं।
आप चाहे सोशल मीडिया पर हों या फिर किसी चाय की दुकान पर बैठे मनुस्मृति और संविधान पर चर्चा कर रहे हों, आपकी एक जिम्मेदारी बन जाती है कि आप सिर्फ चुनिंदा और तार्किक शब्दों का प्रयोग करें। जब आप ऐसा ना कर के सिर्फ अपनी व्यक्तिगत कुंठा की अभिव्यक्ति को ही सर्वोपरि बना बैठते हैं, ऐसे में आप तुरंत बेनकाब हो जाते हैं और आप हर दायरे को लाँघ चुके होते हैं। यह कल्चर आए दिन सोशल मीडिया के बढ़ते वर्चस्व के कारण बढ़ता ही जा रहा है। भारत जैसे देश में जहाँ पर सूचना का तंत्र बहुत ज्यादा जिम्मेदाराना और विकसित नहीं हैं, सोशल मीडिया एक बड़ा रोल अदा कर रहा है। ऐसे में द वायर के इस पत्रकार को मुख्यमंत्री के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी कर उनकी छवि धूमिल करने का प्रयास करने और नियमों का उलंघन करने के कारण हर हाल में सबक सिखाया जाना जरूरी है।
हमने देखा है हर दिन सोशल मीडिया के माध्यम से NDTV के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार जैसे लोग TV की कसर को अपने ब्लॉग और फेसबुक एकाउंट्स के द्वारा निकालते हैं, वहीं ध्रुव राठी जैसे प्रोफेशनल ‘प्रोपगैंडिस्ट’ को मोदी सरकार विरोधियों ने पूरी शरण देकर एजेंडा चलाने के लिए पर्याप्त साधन देकर यूट्यूब और फेसबुक पर बिठाया हुआ है। यदि व्यक्तिगत कारणों से फेक न्यूज़ और आपत्तिजनक टिप्पणी करने वालों के खिलाफ सरकार इस बार कोई कड़ा निर्णय ले पाती है तो यह एक बड़ा बदलाव होगा। हो सकता है कि सरकार का इस बार लिया गया कोई निर्णय भविष्य के लिए कोई ऐसा बेंचमार्क तैयार कर दे, जिससे कि सोशल मीडिया की विश्वसनीयता को मजबूत किया जा सके। वरना यह कॉन्सपिरेसी थ्योरी एक्टिविस्ट्स का एक सेफ अड्डा बनता जा रहा है।
इस तरह से प्रशांत कनोजिया की गिरफ्तारी के बाद गेंद अब पूरी तरह से उत्तर प्रदेश प्रशासन के पाले में ही है। यदि गिरफ़्तार करना मात्र इस प्रसंग का उद्देश्य रह जाता है तो इस प्रकार से हिन्दुओं के खिलाफ जहर उगलकर नायक बनने वालों की बाढ़ आती ही रहेगी। हालाँकि, इस सबके बीच लोकतंत्र सुरक्षित रहना चाहिए।
यह भी देखना दिलचस्प है कि योगी आदित्यनाथ की छवि को ख़राब करने का प्रयास करने वाले इस पत्रकार के समर्थन में ऐसे लोग खड़े हैं, जो खुद दूसरों के ट्वीट्स पर आपत्ति जताकर लोगों पर मानहानि का केस दायर कर चुके हैं। यह दोहरापन इस प्रकार की मानसिकता वालों में बहुत कॉमन चीज है और सवालों के दायरे से बाहर होकर मात्र मनोरंजन पर सिमटकर रह चुके हैं।
परमादरणीय झाबड़ी के, @vinodkapri जी जो कुछ दिन पहले एक अमुक ट्वीट के ऊपर अपनी पत्नी के साथ मिल कर एक दूसरे पत्रकार को मानहानि व जेल में डालने की धमकी दे रहे थे, वो आज कह रहे हैं कि बिना लाइसेंस के अवैध चैनल चला कर एक महन्त के वर्षों के तप को कीचड़ उछाल कर गन्दा करना जायज़ है। pic.twitter.com/fpkFlTueUq
अलीगढ़ के टप्पल में ढाई साल की बच्ची की निर्मम हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। रोंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना को लेकर आज (जून 9, 2019) टप्पल में विरोध प्रदर्शन हो रहा है। लोग सड़कों पर उतर आए हैं। इसके मद्देनज़र टप्पल में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है। भारी सुरक्षा बलों के बावजूद भी लोग सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। विरोध प्रदर्शन करने वाले लोग आरोपितों के लिए फाँसी की सजा की माँग कर रहे हैं।
Aligarh: Protest underway in Tappal demanding justice in the murder case of 2.5-year-old girl. Security forces in large number have also been deployed to maintain law and order in the area. pic.twitter.com/lDOFRXG6ox
अलीगढ़ हत्याकांड की जाँच SIT कर रही है। शनिवार (जून 8, 2019) को अलीगढ़ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने कहा, “आरोपी जाहिद की पत्नी समेत चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है। बच्ची का शव जिस कपड़े में लिपटा हुआ था, वो जाहिद की पत्नी का दुपट्टा था। हम पीड़ित परिवार से मिले हैं। उन्होंने माँग की है कि आरोपितों को फाँसी की सजा मिले। मामले में चार्जशीट बनानी है।”
SSP #Aligarh on murder of 2.5 years old girl: 4 people including main accused Zahid & his wife arrested. Body was wrapped in a cloth belonging to Zahid’s wife. We’ve met victim family and they’ve demanded that the accused should be hanged till death. Charge-sheet to be filed pic.twitter.com/hGek7wrQLe
जानकारी के मुताबिक, इस मामले में अब तक चार आरोपी गिरफ्तार हो चुके हैं और दो फिलहाल फरार हैं। गिरफ्तार चार लोगों में एक महिला भी शामिल है। पुलिस ने इस मामले में अब तक जाहिद, असलम, जाहिद के भाई मेहंदी और जाहिद की पत्नी शाहिस्ता को हिरासत में लिया है। वहीं, 5 पुलिसकर्मियों को भी सस्पेंड कर दिया गया है। इन पर आरोप है कि बच्ची जब गायब हुई थी तो इन्होंने रिपोर्ट नहीं लिखी और जाँच में भी लापरवाही दिखाई।
अलीगढ़ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक आकाश कुलहरि ने बताया कि पुलिस आरोपितों के खिलाफ मजबूत मामला बना रही है, ताकि यह सभी कानूनी प्रक्रियाओं पर खरा उतरे और फास्ट ट्रैक कोर्ट के जरिए तेजी से न्याय सुनिश्चित हो सके। सभी संदिग्धों के फोन रिकॉर्ड खंगाले जा रहे हैं। बच्ची को इंसाफ दिलाने के लिए कहीं कैंडल मार्च निकाला जा रहा है, तो कहीं पुलता फूँका जा रहा है। कहीं लोग अनशन पर बैठे हैं, तो कहीं प्रतीकात्मक फाँसी लगाकर लोग अपना गुस्सा जाहिर कर रहे हैं। वहीं, यूपी के लखीमपुर में लोग अन्न त्याग कर धरने पर बैठकर बच्ची की इंसाफ की माँग कर रहे हैं।
गौरतलब है कि बच्ची 30 मई को अपने घर के बाहर से गायब हो गई थी। 2 जून को उसकी क्षत-विक्षत लाश कूड़े के ढेर में मिली थी। बच्ची के पिता ने पहले ही दिन हत्या का शक मुहल्ले के जाहिद पर जताया था। वहीं वकीलों ने भी आरोपितों के खिलाफ मोर्चा खोल लिया है। अलीगढ़ बार एसोसिएशन ने आरोपितों की तरफ से केस न लड़ने का फैसला किया है। बार एसोसिएशन की माँग है कि आरोपितों को कड़ी से कड़ी सज़ा मिले।
26 मई को बिहार के जमुई जिले में एक 15 वर्षीय नाबालिग लड़की मीना (बदला हुआ नाम) के साथ बलात्कार करने और फिर बेरहमी से उसकी हत्या करने की ख़बर सामने आई थी। दिल दहला देने वाला मामला झाझा-प्रखंड के जामोखरेया गाँव का है। गाँव से कुछ दूरी पर बदमाशों ने मिलकर एक 15 वर्षीय नाबलिग लड़की के मुँह में गमछा बाँधकर बड़ी बेरहमी से उसकी हत्या कर दी। इसके अलावा हमलावरों ने लड़की के चेहरे पर पत्थर से कई प्रहार भी किए।
जामुखरैया गाँव के शत्रुघ्न सिंह की पुत्री मीना अपने घर से शौच करने के लिए सुबह 8 बजे निकली और जब वो घंटो बाद भी वापस नहीं आई तो घरवालों ने उसकी खोजबीन शुरू कर दी। लगभग दो घंटे बाद ग्रामीणों द्वारा सूचना मिली कि इस्लामनगर और जामोखरेया गाँव के बीच बने जोना अहरा (पोखर) मे एक लड़की का शव पड़ा हुआ है। शव देखने के बाद लोगो को आशंका था कि नाबालिग के साथ पहले दुष्कर्म किया गया है, उसके बाद उसकी हत्या कर दी गई। इसके बाद परिजन एवं ग्रामीण घटना-स्थल पर पहुँचे, जहाँ उसकी पहचान हो गई। घटना की जानकारी पूरे गाँव मे आग तरह फैल गई और गाँव वालों ने इसकी सूचना तुरंत झाझा थाने को दी।
इसके बाद, थानाध्यक्ष दलजीत झा, एसआई पंकज कुमार दल-बल के साथ घटना-स्थल पर पहुँचे और शव को क़ब्ज़े में ले लिया। पुलिस ने घटना-स्थल पर मौजूद लोगों से भी पूछताछ की। पूछताछ के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिये जमुई भेज दिया। मृतका की माँ और बड़ी बहन का रो-रो कर बुरा हाल है और इस वजह से वो बार-बार बेहोश हो जाती हैं। फ़िलहाल, गाँव में दहशत का माहौल बना हुआ है।
पीड़ित परिवार को लगातार केस वापस लेने की धमकी मिल रही है। मीना (बदला हुआ नाम) की माँ ममता सिंह ने बताया कि उनके परिवार पर केस उठाने के लिए लगातार दबाव बनाया जा रहा है। क्षत्रिय महासभा के प्रदेश महामंत्री विशाल सिंह तथा विनोद यादव के अनुसार, दुष्कर्म एवं हत्या के इस मामले में पीड़ित परिवार की सुरक्षा पुलिस के लिए प्राथमिकता है जिससे मृतका का परिवार सुरक्षित रह सके। उन्होंने पीड़ित परिजन को डालसा के तहत तीन लाख रुपए मुआवजा देने की भी माँग की।
मृतका की माँ और उसकी बड़ी बहन शबनम कुमारी ने बताया कि उसकी छोटी बहन (मृतका) घर की कामकाज करने के बाद सुबह 8 बजे घर के बगल से दूध लेकर घर आई और पेट दर्द की बात करते हुए शौच के लिए बाहर चली गई। काफ़ी समय गुज़रने के बाद जब वो घर नहीं लौटी तो उन्होंने अपने रिश्तेदार से मीना के घर वापस न लौटने की बात कही। इसके बाद परिजनों ने उसकी खोजबीन शुरू कर दी। लड़की के पिता पानीपत में अपने भाई कैलाश के साथ एक कपडे़ की दुकान मे काम करते हैं। मृतका केशापुर विधालय में दसवीं कक्षा की छात्रा थी जो अगले वर्ष परीक्षा देनी वाली थी।
पुलिस को घटना-स्थल से ख़ून से सना एक पत्थर, ठंडे पेय पदार्थ की दो बोतल और एक प्लास्टिक का गिलास मिला है। थानाध्यक्ष ने बताया कि पुलिस मामले की जाँच में जुटी हुई है, जल्द ही मामले को सुलझा लिया जाएगा और अपराधी पुलिस की हिरासत में होगा।
भाजपा नेत्री जय प्रदा ने निर्वाचन आयोग से रामपुर के लोकसभा सांसद आजम खान का लोकसभा निर्वाचन रद्द करने की माँग की है। उनका तर्क है कि आजम खान ने लोकसभा सांसद होते हुए भी ‘लाभ के पद’ जौहर विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर के तौर पर इस्तीफा नहीं दिया है। इसलिए वह लोकसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य हैं और उन्हें लोकसभा से निलंबित किया जाना चाहिए। उन्होंने सपा नेत्री जया बच्चन के ऐसे ही लाभ के पद विवाद के चलते राज्यसभा से इस्तीफा देने का उदाहरण दिया।
BJP leader Jaya Prada: I have written to the Election Commission that after being elected a member of Parliament from Rampur, Md Azam Khan cannot hold an ‘office of profit’ (He is Chancellor of Mohammad Ali Jauhar University). It is illegal. He should be suspended as MP. pic.twitter.com/jAk9XhzB74
जया प्रदा ने ANI से बात करते हुए कहा कि सांसद या विधायक होते हुए भी लाभ के पद पर काबिज रहना गलत है, और वह निर्वाचन आयोग से अपील करती हैं कि आजम खान को माफ़ न किया जाए। उन्होंने साथ में यह भी जोड़ा कि रामपुर के लोगों से उन्होंने वादा किया है कि (इस मामले में) न्याय होगा। उन्होंने कहा कि अगर निर्वाचन आयोग ने उनकी बात अनसुनी कर दी तो वे हाई कोर्ट जाएँगी।
जया बच्चन, सोनिया गाँधी गँवा चुकी हैं सांसदी
अगर इस मामले में आजम खान की सांसदी जाती है तो वे ऐसे पहले सांसद नहीं होंगे। उनसे पहले सपा नेत्री और बॉलीवुड अभिनेत्री जया बच्चन और कॉन्ग्रेस की पूर्व अध्यक्षा सोनिया गाँधी भी इस विवाद में क्रमशः राज्यसभा और लोकसभा सीटें गँवा चुकी हैं। जया बच्चन को उत्तर प्रदेश फिल्म विकास निगम की अध्यक्षा होने के चलते राज्यसभा और सोनिया गाँधी को राष्ट्रीय सलाहकार समूह के नेतृत्व के कारण लोकसभा छोड़नी पड़ी थी। हालाँकि सोनिया गाँधी ने अपना इस्तीफा अपने मामले में निर्णय आने से पहले ही दे दिया था, और दोबारा उसी लोकसभा क्षेत्र रायबरेली में उतर कर विजयी हुईं थीं, जबकि जया बच्चन ने निर्वाचन आयोग की अनुशंसा पर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. कलाम द्वारा राज्यसभा से बर्खास्त किए जाने को सुप्रीम कोर्ट तक चुनौती दी थी, लेकिन फैसला नहीं बदला।
बरेली में एक किशोरी को अपनों द्वारा ही प्यार करने की ऐसी सज़ा दी गई, जिसे सुन कर कोई भी काँप जाए। 16 वर्षीय किशोरी पर हुए अत्याचार की जानकारी जब पुलिस को मिली, तो अधिकारी भी इस दर्द भरी दास्तान को सुन कर सिहर गए। मामला उत्तर प्रदेश के बरेली स्थित इज्ज़त नगर का है। मदरसे में पढ़ी किशोरी पड़ोस के एक दुकानदार से प्यार करती है। जब यह बात उसके अब्बू, अम्मी व भाई को पता चली, तो तीनों ने मिल कर उसकी चोटी काट दी। इसके बाद उसे एक कमरे में बंद कर के लाठी-डंडों से इतना पीटा गया कि उसका हाथ टूट गया। जब इतने पर से भी परिजनों का मन नहीं भरा तो पीड़िता के दोनों पैरों में कील ठोक कर लहूलुहान कर दिया।
इस घटना का खुलासा शनिवार (जून 8, 2019) की सुबह तब हुआ, जब उक्त किशोरी अपने घर से किसी तरह भाग निकली। उसकी हालत इतनी ख़राब थी कि वह ज्यादा दूर भाग भी नहीं पाई और सड़क पर ही बेहोश होकर गिर पड़ी। दर्द से कराहती किशोरी को यास्मीन जहाँ नामक एक समाजसेविका ने देखा, जिसके बाद पुलिस को मामले की जानकारी दी गई। ‘नारी सम्मान सेवा समिति’ के सदस्यों ने पुलिस को मौके पर बुलाया। पुलिस ने परिजनों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कर किशोरी को इलाज के लिए जिला अस्पताल में भर्ती करा दिया है। पुलिस ने आरोपितों की जल्द गिरफ़्तारी का आश्वासन भी दिया।
पीड़िता ने बताया कि इससे पहले उसके परिजन उसे नहीं मारते थे। इसीलिए जब उन्होंने उसे पीटना शुरू किया तो वह काफ़ी डर गई। वह अपने अम्मी व अब्बू से अल्लाह के नाम पर रहम माँगती रही लेकिन उन लोगों ने उसे पीटना जारी रखा। बार-बार गिड़गिड़ाने के बावजूद परिजनों ने अपनी बेरहमी जारी रखी। पीड़िता ने कहा कि वह अपनी प्रेमी से प्यार करती है और उससे ही निकाह करेगी, भले ही उसकी जान ही क्यों न चली जाए। परिजन उस पर कड़ी नज़र रखते थे। एक दिन जब वो अपनी प्रेमी से मिल कर घर पहुँची, तब से परिजन उसे कहीं भी फोन पर बात तक नहीं करने देते थे पर वो छिप कर किसी तरह बात कर लिया करती थी।
Bareilly: Parents smash legs of girl for talking to lover on cellphone https://t.co/9EzKXieJpT
शनिवार को उसके छोटे भाई ने उसे फोन पर बात करते पकड़ लिया, जिसके बाद उसे कमरे में बंद कर पीटा गया। उसकी चोटी काटने के लिए चाकू व कैंची का इस्तेमाल किया गया। वहीं उसके पैरों में कील ठोकने के लिए हथौड़े का प्रयोग किया गया।
मुरादनगर के 600 लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया है। इन सभी ने पुलिस पर हमला बोला था। दरअसल, ईद के दिन गंगा कनाल में आसिफ़ नामक व्यक्ति की डूबने से मृत्यु हो गई थी। ज़रूरी प्रक्रिया पूरी करने के बाद पुलिस जब आसिफ़ के परिवार को उसका शव सौंपने आई, तब वहाँ उपस्थित लोगों ने भारी संख्या में पुलिस पर ही हमला बोल दिया। शनिवार (जून 8, 2019) को इन सभी के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया। शुक्रवार की रात को आसिफ़ के परिवार वालों व पड़ोसियों सहित कई अन्य लोगों ने जम कर हंगामा बरपाया।
इन लोगों ने आसिफ़ के दोस्तों को गिरफ्तार करने की माँग की। इनका आरोप था कि आसिफ़ के दोस्तों ने ही साजिश के तहत उसकी हत्या कर दी है। मुरादनगर थाना के एसएचओ ओम प्रकाश सिंह ने अधिक जानकारी देते हुए बताया, “जब पुलिस आसिफ़ का शव उसके परिवार वालों को सौंपने पहुँची, तो उसके परिवार वालों व पड़ोसियों ने पत्थरबाज़ी शुरू कर दी। उन्होंने एक घंटे से भी अधिक समय तक दिल्ली-मेरठ हाइवे को जाम रखा व कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया। उन्होंने सार्वजनिक संपत्ति को जम कर नुकसान पहुँचाया, तोड़फोड़ मचाया और कानून व्यवस्था को धता बताया।“
लोगों ने इस कदर कानून व्यवस्था को अपने हाथ में लिया कि कई पुलिस स्टेशन से सैंकड़ों जवानों को इलाक़े में तैनात किया गया। एक सीनियर पुलिस अधिकारी के अनुसार, कई जवानों को चोटें भी आई हैं। कुछ पुलिस बलों के जवानों को स्टैंडबाई पर रखा गया है और किसी भी प्रकार की आपात स्थिति में उनकी मदद ली जाएगी। 15 ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया है, जिनके नाम पुलिस को पता हैं। वहीं 600 अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ भी मामला दर्ज किया गया है।
आरोपितों के ख़िलाफ़ लगभग 2 दर्जन धाराओं में मामला दर्ज किया गया है। इनमें दंगे जैसे हालात पैदा करना, सरकारी अधिकारियों को उनका काम करने से रोकना और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने सहित कई मामले शामिल हैं। आसिफ़ के भाई रियाज़ ने बताया कि उनके मृत भाई के पैरों व हाथ पर निशान थे, जिससे पता चलता है कि उसका अपहरण किया गया और फिर डूबो कर मार डाला गया। रियाज़ के अनुसार कनाल में डूब कर मरने की ख़बर बस एक अफवाह है।