Sunday, November 17, 2024
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The Quint के संस्थापक राघव बहल के खिलाफ ED ने दर्ज किया मनी लांड्रिंग का मामला

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने प्रोपगैंडा न्यूज़ वेबसाइट ‘द क्विंट’ के संस्थापक राघव बहल के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया है। उन पर विदेश में अघोषित संपत्ति खरीदने के लिए मनी लांड्रिंग का आरोप है।

मीडिया के अनुसार, अधिकारियों ने शुक्रवार को बताया कि राघव बहल के खिलाफ आयकर विभाग की शिकायत और आरोपपत्र पर संज्ञान लेते हुए ईडी ने इसी हफ्ते की शुरुआत में उनके खिलाफ इंफोर्समेंट केस इंफॉरमेशन रिपोर्ट (ईसीआइआर) दर्ज की है। यह पुलिस की एफआइआर के समकक्ष होती है। उनके खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत मामला दर्ज किया गया है। आयकर विभाग ने हाल ही में राघव बहल के खिलाफ मेरठ की अदालत में कालाधन निरोधी कानून के तहत आरोपपत्र दाखिल किया था।

ईडी की कार्रवाई की पुष्टि करते हुए राघव बहल ने आरोप लगाया कि सभी करों का ईमानदारी और तत्परतापूर्वक भुगतान करने के बावजूद बिना कोई गलत काम किए उन्हें उनका शिकार किए जाने का एहसास हो रहा है। उन्होंने इस संबंध में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अलावा केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) और ईडी के प्रमुखों को ईमेल के जरिए पत्र भेजे हैं। उनके संगठन ने यह पत्र पीटीआई के साथ साझा किया है।

कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया: कश्मीरी आतंकियों की तरह कार-चोर शाहरुख़ भी पकड़ा गया गर्लफ्रेंड की वजह से

"वो लोग बहुत ख़ुशक़िस्मत थे 
जो इश्क़ को काम समझते थे 
या काम से आशिक़ी करते थे 
हम जीते जी मसरूफ़ रहे 
कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया
काम इश्क़ के आड़े आता रहा
और इश्क़ से काम उलझता रहा 
फिर आख़िर तंग आकर हम ने 
दोनों को अधूरा छोड़ दिया"

मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की ये पंक्तियाँ हाल ही में घटी कुछ घटनाओं के बाद खुद ही जुबान पर आ रही हैं। लेकिन इस किस्से को अगर आप भी पढ़ेंगे तो हो सकता है आप कुछ और शायरों को भी गुनगुनाने लगें। ऐसा ही एक किस्सा कुछ दिन पहले तब प्रासंगिक हुआ जब जाने-माने आतंकवादी ज़ाकिर मूसा को सेना ने कुत्ते की मौत मारा था। अपने ‘मिशन’ के दौरान प्रेमरोग के चक्कर में बुरहान वनी और जाकिर मूसा को अपनी जान गँवानी पड़ी, इस तरह प्रेम कहानियाँ ही उन दिलजले आशिक़ों की मौत का जरिया बनीं। अब ऐसा ही एक नया प्रकरण जो सामने आया है वो है, कार चोर शाहरुख़ का।

कुछ दिन पहले ही दिल्ली में नशे की हालत में बेतरतीब तरीके से तेज रफ्तार में कार चलाकर लोगों को टक्कर मारने वाले शख्स कार-चोर शाहरूख़ को पुलिस ने पकड़ लिया है। वह अपनी गर्लफ्रेंड की गलती के कारण पकड़ा गया। दरअसल, ईद के अवसर पर, एक तेज़ रफ़्तार से कार गुज़रने के बाद भड़के नमाजियों ने अपना आक्रोश व्यक्त करते हुए डीटीसी की बस सहित कई सार्वजनिक संपत्ति को भारी क्षति पहुँचाई थी। इस हादसे में 17 नमाज़ियों के घायल होने की अफ़वाह भी फैलाई गई थी, जो कि पूरी तरह से झूठी थी। घटना के बाद से ही पुलिस कार चालक की तलाश में जुट गई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कार-चोर शाहरुख़ पर करीब दो दर्जन आपराधिक मामले पहले से दर्ज हैं।

ईद के अवसर पर दिल्ली के जगतपुरी इलाके में लोग नमाज पढ़कर लौट रहे थे, तभी एक तेज रफ्तार होंडा सिटी कार ने कुछ गाड़ियों को टक्कर मारने के बाद खुरंजी गाँव की एक गली में घुस गई। वहाँ भी कई लोग कार की चपेट में आने से बाल-बाल बचे।

गर्लफ्रेंड की वजह से पकड़ा गया ‘आशिक़ शाहरुख़

पुलिस ने बताया कि कि कार-चोर शाहरुख अपनी गर्लफ्रेंड के साथ था। मंगलवार (4 जून) को दोनों ने यमुना बाजार इलाके से ड्रग्स खरीदी और नशे की हालत में ही दोनों रानी गार्डन इलाके में कार खड़ी कर के सो गए। इसके बाद दोनों आनंद विहार से होते हुए डासना के पास गंगनहर पहुँचे। वहाँ नहाने के बाद खाना खाया और फिर दिल्ली की तरफ लौटे। वहाँ आनंद विहार के पास कार में सीएनजी खत्म हो गई। दोनों ने कार को वहीं खड़ा किया और एक स्कूटी चुराकर उससे यमुना बाजार पहुँच गए। इसी बीच पुलिस को मुखबिरों ने सूचना दी कि शाहरुख के साथ उसकी प्रेमिका याशिका भी है। इसके बाद पुलिस ने याशिका के मोबाइल को ट्रैक किया और उसके सहारे दोनों तक पहुँच गई। शाहरुख ने अपने सभी नंबर बंद कर रखे थे।

जब AltNews ने 3 वर्षीय बच्ची की निर्मम हत्या के आरोपित ज़ाहिद, असलम के पापों को धोने की कोशिश की

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जाहिद नाम के व्यक्ति ने अपने साथी असलम के साथ मिलकर एक 3 साल की बच्ची की निर्मम हत्या कर डाली। बताया जा रहा है कि इस बर्बर हत्या के पीछे का कारण बच्ची के परिवार से हुई एक बहस थी, जो 10,000 रुपए के लोन के कारण हुई थी।

2 जून को बच्ची का शव बरामद करने के बाद अलीगढ़ पुलिस ने जाहिद और उसके दोस्त असलम को गिरफ्तार कर लिया है। बच्ची का अपहरण 31 मई 2019 को किया गया था। और उसी दिन अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) के टप्पल पुलिस थाने में FIR भी दर्ज की गई थी। हालाँकि, पुलिस का पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के आधार पर यह भी कहना है कि रेप की पुष्टि नहीं हो पाई है यहाँ ध्यान रखने वाली बात है कि इसका यह मतलब नहीं है कि रेप हुआ ही नहीं है।

एक तरफ जहाँ आज कुछ संवेदनशील लोग इस घटना से स्तब्ध और आक्रोशित हैं वहीं तमाम वामपंथी इस पर मौन हैं या न्याय के लिए दबे-छुपे स्वरों में अपील तो कर रहे हैं लेकिन साथ ही यह सलाह भी कि इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। क्योंकि यहाँ आरोपित ज़ाहिद और असलम है और पीड़ित बच्ची हिन्दू, यहाँ कोई नारेबाजी नहीं हो रही और न ही विरोध के स्वर अभी मुखर हुए हैं।

यहाँ तक कि गिरोह के कई सदस्य लीपा-पोती में जुट गए हैं जबकि आरोपित पकड़ में हैं। स्वघोषित फैक्ट-चेकर AltNews ने ज़ाहिद और असलम के अपराधों को धोने-सुखाने के कुछ ज़्यादा तेजी से प्रयास किए और क्लेम कर दिया कि कोई रेप नहीं हुआ है। इसे साबित करने का आधार इन्होनें यह निकाला कि ऐसा उत्तर-प्रदेश पुलिस के कुछ अधिकारियों का कहना है।

“AltNews ने एसएसपी अलीगढ़ का जिक्र करते हुए कहा कि पीड़ित का रेप नहीं हुआ है पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के अनुसार गला घोंटने से उसकी हत्या हुई है। सोशल मीडिया पर जो दावा किया जा रहा है कि उसकी आँखें बाहर आ गई थी और उसकी बाँह उखड़ी हुई थी, भी गलत है। उसके शरीर पर एसिड डाला गया था यह भी गलत है, ऐसा कुछ नहीं हुआ था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट पीड़ित के परिवार से भी साझा किया गया है।”

यहाँ गौरतलब है कि ऐसे स्वघोषित एक्टिविस्ट के लिए पुलिस का स्टेटमेंट ही अंतिम सत्य की तरह है क्योंकि यह इनके एजेंडे और नैरेटिव को आगे बढ़ा रहा है। यदि इनके एजेंडे को शूट नहीं कर रहा है तो यह गिरोह कोर्ट के निर्णय को भी मानने से इनकार कर देगा। AltNews के इसी तर्क से सवाल यहाँ यह भी है कि क्या AltNews के संस्थापक इशरत जहाँ के मामले में यह स्वीकार सकते हैं कि वह एक आतंकी थी क्योंकि कई पुलिस वालों ने ऐसा कहा है। हम सब को उनका जवाब पता है।

चलिए, इनके पाखंड से आगे बढ़ते हैं, इस मामले में पर्याप्त सबूत हैं या तो उस बच्ची का रेप हुआ है या नहीं दोनों वैलिड या इनवैलिड साबित हो सकते हैं।

अलीगढ़ मामले की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट (image courtesy: journalist @anjanaomkashyap on Twitter)

ऑपइंडिया ने इस पोस्टमार्टम रिपोर्ट को कई डॉक्टरों को दिखाया। उन्होंने बताया कि बच्ची की मौत उसे लगने वाली कई गंभीर चोटों की वजह से हुई है। एक डॉक्टर ने यह भी स्पष्ट किया, “जख्म इतने गहरे और घातक हैं कि उससे शॉक और मौत निश्चित है। शॉक की पुष्टि वेसल्स के कोलैप्स होने से हो जाती है (ऐंटेमार्टम साइन) मृत्यु से पहले बहुत ज़्यादा ब्लड लॉस भी हुआ था।”

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर डॉक्टर्स का कहना है, “सबसे महत्पूर्ण बात यहाँ यह है कि उस बच्ची के गर्भाशय और जेनिटल सहित एब्डॉमिनल ऑर्गन भी गायब हैं। जो इस बात का सबूत है कि उसे वीभत्स तरीके से टार्चर किया गया था जिससे उसकी शरीर से अत्यधिक रक्तस्राव हुआ हो और जो उसके ब्लड वेसेल्स के कोलैप्स होने की वजह भी हो। बाकी दूसरे घातक जख्म, जैसे पाँव का घुटने के नीचे से फैक्चर होना और हाथ की एक हड्डी ह्यूमरस का उखड़ जाना, का वर्णन ही बर्बरता की पूरी कहानी कह रहा है। रेप की पुष्टि के लिए हालाँकि वेजाइनल स्वैब जाँच के लिए भेजा गया है लेकिन बॉडी डिकम्पोज होने की वजह से शायद ही इस जाँच के लिए उपयोगी हो। वैसे यहाँ यह जानना ज़रूरी है कि स्वैब का परिणाम नेगेटिव आना सेक्सुअल एक्ट के न होने का सबूत होता है।”

डॉक्टर ने आगे कहा, “उसकी दाहिने भुजा की हड्डी का उखड़ना और बाएँ पाँव का फ्रैक्चर निश्चित रूप से उसके मौत के पहले की घटना है। उसके एब्डॉमिनल अंगों का गायब होना भी उसके साथ हुई बर्बरता का सबूत है।”

एक दूसरे डॉक्टर ने यह भी कहा, “अब ऐसा लग रहा है कि बहुत ज़्यादा शरीर के नष्ट और सड़ जाने से रेप की अब न पुष्टि हो सकती है और न ही उसे ख़ारिज किया जा सकता है। हालाँकि, कंडीशन देखते हुए यह भी कहा कि जिस तरह से आईबॉल ग़ायब है, पाँव टूटा हुआ है, हाथ उखाड़ा हुआ है, सभी एब्डॉमिनल ऑर्गन गायब हैं, ऐसा किसी जानवर के खा जाने की वजह से भी हो सकता है।”

ऐसे जख्म तब भी उभरते हैं जब जानवर अटैक करते या शरीर का क्षरण हो जाता हैं तब। हालाँकि, ऐसा कहना भी पूरी तरह से सही नहीं है क्योंकि बच्ची का शरीर जंगल या ऐसी किसी जगह न मिलकर कथित रूप से एक डंपिंग ग्राउंड के पास पाया गया है।

डॉक्टर के कमेंट बच्ची के पोस्टमार्टम पर

पोस्टमार्टम में डॉक्टर के कमेंट में यह बात साफ-साफ मेंशन है कि गर्भाशय और दूसरे जेनाइटल ऑर्गन गायब हैं। ऑपइंडिया से बात करते हुए डॉक्टर ने बताया, “जानवर खा गए वाली संभावना को रूल आउट नहीं किया जा सकता है, यह सभी अंग पहले गायब हुए या मृत्यु के बाद में यह पता लगाना बहुत मुश्किल है इसके लिए एडवांस्ड फोरेंसिक परीक्षण की आवश्यकता है।”

हालाँकि, एक डॉक्टर ने जानवर वाली संभावना को बहुत ही क्षीण बताया। उन्होंने कहा, “मैं नहीं समझता कि यह किसी जानवर की हरक़त है क्योंकि जब कोई जानवर हमला करता है तो कटे-फटे या आधा-अधूरा खाए गए मांस के टुकड़े आस-पास मौजूद होते हैं। जानवर के दांतों के निशान भी शरीर पर ज़रूर मौजूद होते। यहाँ तक कि छाती की पसलियों पर भी जानवर द्वारा फाड़े जाने के निशान होते।”

जब यह सवाल किया गया कि कितनी संभावना है अब रेप की पुष्टि के लिए तो डॉक्टर ने कहा, “मेरे हिसाब से अब रेप की पुष्टि और मना करना दोनों मुश्किल है। अब एक संभावना केवल वेजाइनल स्वैब की बचती है अगर वहाँ कोई ह्यूमन फ्लूइड पाया जाता है या उसके ट्रेसेस मिलते हैं तभी इस तरह के सेक्सुअल असॉल्ट पुष्टि हो सकती है।”

इसलिए, अब पोस्टमार्टम रिपोर्ट की विस्तृत छानबीन, ज़रूरी शारीरिक अंगों का गायब होना, उसकी बाँह का उखड़ा होना और बच्ची का रेप हो भी सकता है और नहीं भी। AltNews के उस तथाकथित ‘फेक न्यूज़ के पर्दाफाश’ वाली रिपोर्ट की धज्जियाँ उड़ा देता है।

AltNews ने यहाँ तक दावा कर दिया था कि Opindia की इस घटना पर पहली रिपोर्ट जिसमें बच्ची के शरीर के क्षत होने और बर्बरता की बात कही गई थी ‘फेक’ है। यहाँ उनका पूरा दावा इस आधार पर था कि आँख बाहर नहीं आई थी। जिसके बारे में हमनें डॉक्टर से बात की जिन्हे हमने पोस्टमार्टम रिपोर्ट दिखाया था। उन्होंने साफ कहा और यहाँ तक कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी यही कह रही है कि आँखे भी क्षतिग्रस्त थी।

अलीगढ़ मामले में AltNews की रिपोर्ट से

संक्षेप में कहा जाए तो, AltNews ने सीधे-सीधे इनकार कर दिया जबकि उत्तर प्रदेश पुलिस का साफ स्टेटमेंट है “पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर ‘अभी तक’ रेप की पुष्टि नहीं हुई है।” यहाँ ‘अभी तक’ जिसकी पूरी तरह अवहेलना करते हुए AltNews के स्वघोषित जज ने फैसला सुना दिया कि रेप हुआ ही नहीं है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बच्ची के ऊपर जिस तरह की बर्बरता की पुष्टि की गई है, उसकी गंभीरता को भी AltNews ने बेहद हल्का कर हवा में उड़ा देने की कोशिश की।

अरुंधति राय द्वारा वित्तपोषित AltNews के संस्थापक प्रतीक सिन्हा क्या बिलकुल ही दिमाग से पैदल है या पूरी तरह सेंसलेस और संवेदनहीन है कि यदि कोई डेड बॉडी को भी बाहर सड़ने या जानवरों के खाने के लिए फेंक दे तो यह बर्बरता भी उसकी क्रूर और घृणित मानसिकता का स्पष्ट दस्तावेज नहीं कहा जा सकता? यहाँ तक कि ऐसे मामलों में कोर्ट खुद स्वतः संज्ञान लेते हुए ऐसे कार्यों को निर्दयतापूर्ण और रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर अपराध की श्रेणी में रखते हुए कठोर से कठोर सजा का प्रावधान करती है।

आरोपित ज़ाहिद और असलम

लेकिन, स्वघोषित ‘फैक्ट चेकर’ और ‘जज’ AltNews के लिए एक हत्यारे का रोल वहीं ख़त्म हो जाता है जहाँ पीड़ित की मृत्यु हो जाती है। यह न केवल असंवेदनशीलता की चरमावस्था है बल्कि एक जघन्य अपराध की वाइटवाशिंग में सभी सीमाएँ लाँघ दी गई हैं क्योंकि यहाँ अपराधी मुस्लिम है और पीड़ित 3 साल से भी कम उम्र की एक मासूम हिन्दू बच्ची।

क्या रोजगार-शिक्षा में नैतिकता और मूल्य पिछले जमाने की बात हो चुकी हैं?

किसी देश को अगर अपंग बनाना हो तो उसकी शिक्षा प्रणाली को खोखला कर दो। भारत में तो पहले ही सौ प्रतिशत शिक्षा का आंकड़ा नहीं है, तिस पर आए दिन आती धाँधली की ख़बरें यही सोचने पर मजबूर करती हैं कि यह देश कैसी बुनियाद पर खड़ा है? ईमानदारी की बातें करता कौन सा ऐसा व्यक्ति है जो पूर्णतः ईमानदार है? शिक्षक, डॉक्टर, इंजीनियरिंग, कलेक्टर कौन रिश्वत देकर बना है या मेहनत से? कैसे पता लगाएँगे? किस पैमाने से जाँचेंगे?

करीब आठ साल पहले मैं बतौर शिक्षक, शिक्षा व्यवस्था का हिस्सा बनना चाहती थी। इसी उद्देश्य के साथ पुणे से भोपाल आई थी। हाथ में थी बनस्थली यूनिवर्सिटी से एम.टेक की डिग्री और सीडेक से आर्टिफीसियल इंटेलीजेंस में एक वर्ष का अनुभव।

वरन नौकरी पाने के लिए यह काफी नहीं, इस बात का एहसास भोपाल पहुँचकर हुआ। भोपाल, जहाँ सौ से ज़्यादा इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, जिनमें सैकड़ों में शिक्षक हैं; वहाँ नौकरी मिलना आपकी डिग्री, आपके कार्य अनुभव या आपके ज्ञान से ज़्यादा जुगाड़ और पहचान पर निर्भर था। कुछेक कॉलेजों में अप्लाई करने के बाद जब यह एहसास हुआ तो मन डूबने लगा। कोशिश करती रही और एक दिन एक कॉलेज में भर्ती हुई। उसके बाद प्रिंसिपल से हर दूसरे दिन होने वाली उसूलों की लड़ाई ने सात माह बाद ही कॉलेज छोड़ने पर मजबूर कर दिया। वे चाहते थे मैं रटंत विद्या को आधार बनाऊँ, जबकि मेरा पढ़ाने का तरीका समझ पर आधारित था। यह अलग बात है कि जब रिजल्ट आया तो उन्हें अपना उत्तर मिल गया लेकिन, मैं हर दिन की लड़ाई से थक चुकी थी और नौकरी छोड़ दी।

शिक्षा स्तर पर यह धाँधली सिर्फ जुगाड़ और पहचान तक नहीं सिमटी थी। यह आँखों देखी बात है कि इंजीनियरिंग कॉलेजों में पढ़ाने वाले कई शिक्षक इस लायक ही नहीं थे। शिवानी (कुंजी) आधारित उनका ज्ञान जाने बच्चों को क्या सिखाता होगा? इसी बीच एक और धाँधली के बारे में पता लगा, एम.टेक की थीसिस पैसे देकर लिखवाने की धाँधली। पूरा व्यापार था। बीई करके नीम-हकीम ज्ञान वाले बच्चे शिक्षक बन रहे थे और साथ में एमटेक कर रहे थे। अपनी थीसिस पैसे देकर लिखवा रहे थे और उस थीसिस के आधार पर नौकरी को पक्का करवा रहे थे। पढ़ाई और परीक्षाओं में जुगाड़ से पास हो रहे थे। यह देखना मेरे लिए शिक्षा व्यवस्था में बिखरे उस ज़हर को छू लेने जैसा था जिससे मैं पूर्णतः अनभिज्ञ थी।

शिक्षक के अलावा छात्र स्तर पर भी गजब धाँधली थी। इंजीनियरिंग कॉलेजों में 60 विद्यार्थियों वाली कक्षाओं में पैसे लेकर 120 तक छात्र ठूँसे जा रहे थे। शिक्षकों को भी भर्ती के इस काम में लगाया जाता था और जो जितने बच्चे लाता था, उसे उतना मुनाफा मिलता था। मुख्य ब्रांच भी पैसों के दम पर बाँटी जा रही थीं। यह ऐसी धाँधली थी, जिसमें सरकार से ज़्यादा वे लोग दोषी हैं जो इस गधा दौड़ में अपने बच्चे की काबिलियत और विषयिक रुझान दरकिनार करके बढ़िया से बढ़िया कॉलेज से उसके माथे पर इंजीनियरिंग का ठप्पा देखना चाहते हैं।

यह परतों में दबा-छुपा ऐसा घोटाला है जिसे कोई ‘बड़ी-बात’ नहीं मानता। न करने वाले, न करवाने वाले और न ही शिकार होने वाले। मध्यप्रदेश में हुए व्यापम घोटाले के सामने इसे कौन बड़ा मानेगा। जिस देश के अधिकन श व्यक्ति छोटे-बड़े रूप में बेईमान हों, वहाँ छोटे-मोटे घोटाले बात करने लायक नहीं माने जाते।

मध्य प्रदेश व्यापम घोटाले में 2000 से अधिक लोग गिरफ्तार हुए थे। लगभग 40 मौतें हुई थीं। कितने ही बच्चों का भविष्य दाव पर लगा। वे बच्चे, जिन्होंने दिन-रात मेहनत की होगी, जिनके माता-पिता ने पैसे जोड़-जोड़कर कोचिंग की फीस भरी होगी, उन बच्चों के स्थान पर सीट उसको मिलती है जो अपने ज्ञान से नहीं वरन पैसों के दम पर दाखिला पाता है। इस घोटाले में नेताओं, उच्च अधिकारियों से लेकर व्यवसायी भी शामिल थे।

माँ बचपन में सिखाती थीं कि ज्ञान प्राप्त करो, स्वयं को शिक्षित करो क्योंकि शिक्षा ही ऐसा हथियार है जो तुमसे कोई नहीं छीन सकता। लेकिन, वर्तमान में माँ की यह बात थोड़ी ‘अ-प्रैक्टिकल’ लगती है। जिस ज्ञान के आधार पर कोई छात्र अपने लिए उच्च शिक्षा के सपने देखता हो उसका वह अधिकार तो कोई भारी-जेब वाला मार जाता है।

पिछले दिनों संज्ञान में आए उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के घोटाले ने एक बार फिर यही सोचने पर मजबूर किया कि नौकरी और बेरोजगारी की मारा-मारी में परीक्षा देने वाला, परीक्षा लेने वाला और परीक्षा करवाने वाला तीनों ही अपने-अपने स्तर पर मौके का फायदा उठाने से नहीं चूक रहे। इन घोटालों में सिर्फ नेता या अधिकारी दोषी नहीं हैं बल्कि वे लोग भी उतने ही दोषी हैं जो चोरी हुए पेपर्स का इस्तेमाल करते हैं, अपनी जगह दूसरे लोगों को परीक्षा देने भेजते हैं या किसी होनहार की सीट मारकर उसकी जगह पैसों से सीट पाते हैं। ये वही लोग हैं जो अपना मामला फिट होते ही ईमानदारी की बातें करते या बेईमानी की शिकायत करते अगले ही चौराहे पर हमसे टकरा जाएँगे।

मुझे बीते साल का एक मामला याद आता है। एक महोदय जिन्होंने जाने कैसे माध्यमिक विद्यालय में सरकारी शिक्षक की नौकरी प्राप्त कर ली। उनका मुख्य व्यवसाय एक फर्नीचर की दुकान है और साइड व्यवसाय शिक्षक की वह नौकरी जो उन्हें जुगाड़ से मिली। मैंने उन्हें कभी विद्यालय पढ़ाने जाते नहीं देखा। वे प्रिंसिपल के पद पर हैं और यदा-कदा जब दुकान का सीजन न हो, बाजार मंदा हो तो विद्यालय तक टहल आते हैं। अब सोचिए कि उस गाँव के सरकारी विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य कैसा होगा?

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग वाले घोटाले में दोषी सिर्फ अंजू लता कटियार नहीं हैं, जिन्होंने ₹2 करोड़ में विद्यार्थियों का भविष्य बेच दिया, बल्कि वे विद्यार्थी भी हैं जिन्होंने नौकरी पाने के लिए गलत रास्ता अपनाया। जो विद्यार्थी गलत तरीके से पैसे देकर शिक्षक की नौकरी पा भी लें तो वे क्या पढ़ाएँगे और क्या नीति की बातें सिखाएँगे? बात सिर्फ शिक्षकों की नहीं है। धाँधली करके प्राप्त की गई किसी भी नौकरी के किसी भी पर पहुँचा अधिकारी क्या उस पद के साथ ईमानदार रह पाएगा? क्या वह आगे भी रिश्वतखोरी नहीं करेगा?

कल एक और ख़बर इसी तरह की धाँधली की पढ़ी। जिसके मुताबिक़ तेलंगाना स्टेट बोर्ड ऑफ इंटरमीडिएट एजुकेशन द्वारा होने वाले इंटरमीडिएट के सप्लीमेंट्री पेपर्स उस पुलिस स्टेशन से ही गायब हो गए जहाँ वे सुरक्षा हेतु रखे गए थे।

यह ख़बर पढ़कर पहली बार तो हँसी आई। जो पुलिस स्टेशन में ही सुरक्षित नहीं वह कहाँ सुरक्षित होगा। फिर लगा कि पास होने की होड़ और अगली कक्षा में पहुँचने की बेकरारी को किसी व्यवसायी ने भाँप लिया और अपना शिकार ढूँढ लिया।

मेरी नज़र में इस तरह के घोटाले नेताओं, सुरक्षा अधिकारियों, शिक्षा से जुड़े उच्च अधिकारियों को तो दोषी ठहराती ही है, साथ-साथ उन माता-पिता को भी दोषी ठहराती है जो कुनीति के रास्ते सफलता हासिल करने का मंत्र अपने बच्चों के कानों में फूँकते हैं।

इस तरह के घोटाले देश और सरकार के साथ दग़ाबाज़ी तो हैं ही साथ ही उन चंद ईमानदार विद्यार्थियों के साथ भी अन्याय है जो इस बेईमानी की दुनिया में आज भी ईमानदारी, मेहनत और ज्ञान के बूते पर कहीं पहुँचने की चाहत रखते हैं। उन गरीब माता-पिता के साथ भी अन्याय है जो एक-एक पैसा जोड़कर अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए, कुछ बनाने के लिए संस्थानों में दाखिला दिलवाते हैं। और उस मानसिकता और विचार के प्रति भी अन्याय है जो यह मानती है कि शिक्षा ही किसी देश को आगे बढ़ा सकती है। खोखली शिक्षा, धांधली से पाई गई सीटें और रिश्वत से पाई गई नौकरी क्या सच में देश को आगे बढ़ाएगी?

मेरी भारत सरकार से विशेष गुज़ारिश है कि इस तरह के घोटालों के विरुद्ध विशेष नीतियाँ और जाँच बैठाएँ। कड़े कानून और सज़ा मुकर्रर करें, ताकि देश मजबूत बुनियाद पर खड़ा हो, न कि खोखली-चरमराती शिक्षा प्रणाली पर आधारित।

यह लेखिका के निजी अनुभव और विचार हैं।

Video: ‘अब हम कमजोर हो रहे हैं, हमें समर्थन की जरूरत है’: ईद के दिन मस्जिद में लश्कर के आतंकी

ईद के दिन यानी बुधवार (जून 05, 2019) को जम्मू-कश्मीर के कुलगाम की जामिया मस्जिद में लश्कर-ए-
तैय्यबा के दो आतंकियों ने न केवल ईद की नमाज में घुसपैठ की बल्कि उसके बाद वहाँ मौजूद लोगों को संबोधित किया और लश्कर के समर्थन में नारेबाजी भी की। इस पूरी घटना के दौरान किसी ने भी उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की।

लश्कर-ए-तैय्यबा के खूंखार आतंकवादी कश्मीर घाटी में अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। अब लश्कर आतंकियों ने अपनी हरकतों को जारी रखने के लिए लोगों से समर्थन की ‘भीख’ माँगने का नया तरीका निकाला है। जब पूरे हिंदुस्तान में मुस्लिम समुदाय के लोग ईद-उल-फितर की नमाज अदा कर रहे थे और खुशियाँ मना रहे थे, तब लश्कर के आतंकी लोगों को भारत के खिलाफ भड़काने और टेरर फंडिंग करने में जुटे थे।

सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया जा रहा है, जिसमें जम्मू-कश्मीर के कुलगाम के तारिगाम में मस्जिद में ईद की नमाज के दौरान लश्कर के आतंकियों को मस्जिद में घुसकर भारत के खिलाफ जहर उगलते और लोगों को गुमराह करते देखा जा सकता है। आतंकियों के हाथ में पिस्टल भी थीं। इस दौरान आतंकियों में सेना का खौफ भी दिख रहा था, लिहाजा वो अपनी जान बचाने और आतंक की दुकान चलाने के लिए लोगों से समर्थन माँग रहे थे। इतना ही नहीं, ये आतंकी अपने संगठन लश्कर के लिए फंड भी माँग रहे थे।

‘पाकिस्तान से रिश्ता क्या?’ ‘भाई-भाई इलल्लाह’

इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वीडियो में साफ-साफ दिख रहा है कि लश्कर के दोनों आतंकी एक और शख्स के साथ खड़े हैं। तीसरा शख्स शायद मस्जिद का इमाम हो सकता है। ये दोनों आतंकी नारेबाजी कर रहे हैं और चीख-चीखकर लोगों से वीडियो नहीं बनाने को कह रहा है। कैमरा बंद करने की धमकी भी दे रहे है। इस बीच हवा में हथियार लहराते हुए नारेबाजी भी कर रहे हैं। लश्कर के आतंकी कह रहे हैं, “आप क्या चाहते हैं” तो भीड़ नारे लगाती है, “आजादी”। दूसरे और तीसरे नारे में आतंकी पूछता है, “पाकिस्तान से रिश्ता क्या?” तो भीड़ से आवाज आ रही है “भाई-भाई इलल्लाह”। इसके बाद आतंकी कहता है, “तैयबा-तैयबा” तो भीड़ कहती है- “लश्कर-ए तैय्यबा ।”

इस वीडियो को शेयर करते हुए टीवी एंकर और पत्रकार रोहित सरदाना लिखा है, “कुलगाम की जामिया मस्जिद में ईद के दिन लश्कर का कमांडर बंदूक़ लहरा-लहरा कर तक़रीर करता रहा, किसी मौलाना, किसी इमाम ने रोकने की कोशिश नहीं की?”

मस्जिद में आम लोगों से आतंकी कह रहे थे, “अब हम कमजोर हो रहे हैं और आप लोगों के समर्थन की जरूरत है।” इस बीच आतंकियों ने ईद की नमाज अदा करने आए लोगों से फंड देने को कहा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ईद की नमाज के दौरान लश्कर के आतंकियों ने आम लोगों से खूब फंड जुटाया।

जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना आतंकियों के खिलाफ अभियान चला रही है और आतंकियों को चुन-चुनकर मारा जा रहा है। पिछले कुछ महीनों में कई बड़े आतंकी कमांडरों को ढेर करने में कामयाबी मिली है। गृह मंत्री अमित शाह के कार्य संभालने के बाद घाटी में आतंकवादियों में डर का माहौल है।

साजिद, आबिद और तौफीक़ ने किया बजरंग दल के कार्यकर्ताओं पर हमला, पुलिस की वर्दी भी फाड़ी

उत्तर प्रदेश के श्यामली में अजुध्या चौक बाजार में गुरुवार (जून 6, 2019) को 3 मुस्लिम युवकों ने मोमोज़ खाने को लेकर बजरंग दल के 2 कार्यकर्ताओं पर हमला किया। हमले में दोनों कार्यकर्ता घायल हो गए। आरोपितों में से एक को पुलिस ने गिरफ्तार किया लेकिन मुस्लिमों की भीड़ ने इकट्ठा होकर पुलिस से हाथापाई शुरू कर दी और अपने साथी को भगा ले गए।

खबरों के अनुसार इन मुस्लिम युवकों का नाम साजिद, आबिद और तौफिक बताया जा रहा है। ये लोग अजुध्या चौक पर मोमोस खाने आए थे जहाँ पहले से बजरंग दल के कार्यकर्ता हिमांशु और हर्ष मौजूद थे। थोड़ी देर बाद बातों ही बातों में झगड़ा शुरू हो गया, और फिर इस झगड़े ने हिंसक झड़प का रूप ले लिया। मुस्लिम युवकों ने अपने साथियों को बुलवाया और हिमांशु और हर्ष की जमकर पिटाई की।

चूँकि घटना बीच बाजार हुई थी, तो बाजार में मौजूद लोग हिमांशु और हर्ष के समर्थन आ खड़े हुए। उन्होंने कार्यकर्ताओं को बचाया और घटना की जानकारी पुलिस को दी। स्थानीय पुलिस वहाँ पहुँची तो आरोपितों में से एक को गिरफ्तार किया। लेकिन कुछ देर बाद ही वहाँ कुछ और मुस्लिमों लोगों की भीड़ आई। उन्होंने गिरफ्तार युवक को छुड़ाने के लिए पुलिस से हाथापाई की और उनकी वर्दी तक फाड़ दी।

स्थानीय व्यापारियों और हिंदू संगठन द्वारा इस मामले पर सख्त जाँच की माँग की जा रही है। पुलिस ने बताया है कि श्यामली पुलिस ने साजिद,आबिद और तौफ़िक के अलावा 50 अन्य लोगों पर भी शिकायत दर्ज की गई है। साथ ही अन्य हमलावरों को पकड़ने के लिए तलाश शुरू कर दी है।

कठुआ और अलीगढ़ का अंतर हमारे कथित लिबरल बिना बोले बताते हैं, इन्हें छोड़िए मत

ऐसा नहीं है कि ढाई साल की सोनम (बदला हुआ नाम, अलीगढ़ घटना की पीड़िता बच्ची) की हत्या पहली बार हुई है। ऐसा भी नहीं हुआ है कि पहली बार आपसी रंजिश के कारण इस तरह का अपराध हुआ हो। ऐसा भी तो नहीं है कि ये साम्प्रदायिक एंगल पहली बार आया हो। ये देश इतना व्यापक है, और यहाँ नकारात्मक तौर पर भी इतनी विविधताएँ हैं कि आप अपने मन से भी कुछ बना कर बोल देंगे कि ‘राह चलते मुस्लिम को हिन्दू ने धक्का मारा’, या ‘मुस्लिमों ने की आगजनी’, तो वो घटना आपको सही में किसी ख़बर की शक्ल में मिल जाएगी।

इस देश में कुछ और भी चीज़ें हैं जो बहुत सामान्य हो गई हैं। हर साल पाँच से सात चुनाव होते हैं। हर साल देश में विचारधाराओं की जंग होती रहती है। हर समय आपको, हर अपराध को हमारे देश का लिबरल हिन्दू-मुस्लिम के चश्मे से देखता हुआ मिल जाएगा। आखिर आप सोचिए कि लिबरल जैसे शब्द गाली क्यों बन गए हैं जबकि ये तो सकारात्मक शब्द हैं? क्योंकि, हमारे देश में ऐसे लोग हद दर्जे के नंगे और दोगले क़िस्म के हैं। मुझे ‘दोगला’ शब्द इस्तेमाल करना पड़ रहा है क्योंकि इससे बेहतर कुछ मिला नहीं जो इनकी सोच का प्रतिनिधित्व कर सके। ये गाली नहीं है, विशेषण है जो हमारे देश के छद्मबुद्धिजीवियों ने बहुत मेहनत से कमाया है।

हम उस समय में जी रहे हैं जब हमारे ही देश का वो हिस्सा जिसने केंकड़े-सी प्रवृत्ति के कारण, सिर्फ टाँग खींचने के (अव)गुण के बल पर अपनी पहचान अंतरराष्ट्रीय मीडिया में बना ली है। हम उस समय में जी रहे हैं जब बेकार हो चुके अभिनेता और अभिनेत्रियाँ, फुँक कर मंद हो चुके तथाकथित निर्देशक अपनी कला के एकमात्र स्रोत के रूप में अपने बापों या माँओं के उस उद्योग में होने को ही बता सकते हैं। हमारा दौर वह है जहाँ अपनी बातों को वजन देने के लिए 300 तथाकथित कलाकार चिट्ठी लिख कर सिग्नेचर कैम्पेन चलाते हैं कि फ़लाँ को वोट मत दो।

जब आपका प्रतिनिधित्व करने वाला साहित्यकार, कलाकार, या लम्बे समय तक सत्ता में पैठ बना चुका नेता ही खोखला निकले तो आपकी छवि सही हो भी नहीं सकती। साथ ही, जब भारत जैसे फ़ाइनल फ़्रंटियर को सपाट करने का सपना बाहर के समुदाय विशेष और ईसाईयों के लिए सतत प्रयास वाला कार्य हो जाए, तो आपकी छवि सही नहीं हो पाएगी। जब आपके मीडिया के सम्मानित लोग दस डॉलर लेकर वाशिंगटन पोस्ट में लेख लिखते हैं, और उस वाशिंगटन पोस्ट को भारतीय समाज पर लिखे गए रिपोर्ट का सत्यापनकर्ता मान कर भारतीय मीडिया स्खलित होने लगता है, तब आपकी छवि बर्बाद ही हो पाएगी, अच्छी नहीं।

आप जरा सोचिए कि क्या मंगलयान छोड़ने पर भारत को भैंसपालक बता कर उपहास करने की धृष्टता करने वाला न्यूयॉर्क टाइम्स भारतीय समाज को लेकर कभी सकारात्मक रिपोर्टिंग कर पाएगा? आप जरा सोचिए कि लगातार फेक न्यूज छाप कर, फेक न्यूज पर फर्जी रिसर्च छाप कर, टुटपँजिए लौंडों के ब्लॉग को लीड ख़बर बनाने वाला, नस्लभेदी, कॉलोनियल मानसिकता से सना हुआ, पत्रकारिता का बेहूदा मापदंड बीबीसी, या बिग बीसी, कभी भारत को लेकर नकारात्मक बातों को हवा देने से बाज़ आएगा? जी नहीं, नहीं आएगा। इसलिए आप उनकी तरफ देखना बंद कीजिए।

आप उनकी तरफ देखना बंद इसलिए कीजिए क्योंकि सत्ता के खिलाफ लिखने से लेकर, नकारात्मक बातों को उस पूरे समाज का नमूना बता कर पेश करना पत्रकारिता नहीं है। पत्रकारिता यह नहीं है कि कठुआ की पीड़िता नाम की मासूम बच्ची की हत्या आठ लोगों ने कर दी तो उसे ऐसे दिखाया गया कि यहाँ का हर हिन्दू, दूसरे मजहब की हर बच्ची की हत्या या बलात्कार करने की फ़िराक़ में रहता है। पत्रकारिता यह नहीं है कि जुनैद सीट के झगड़े में मरता है और बताया जाता है कि हिन्दुओं में असहिष्णुता है। पत्रकारिता यह नहीं है कि प्रकाश मेशराम नामक पुलिस वाले के ऊपर समुदाय विशेष के गौतस्कर भागते हुए गाड़ी चढ़ा कर मार देते हैं, और वो ख़बर होमपेज तक नहीं पहुँच पाती।

फिर आप कहाँ देखेंगे जब सोनम की हत्या कोई जाहिद कर देगा? आपको लगता है कि साड़ी और ब्लाउज़ सिलवाने पर ध्यान देने वाली, फ़िल्मों के पास होने पर तख्ती लगवाने वाली, खास नेताओं की गोद में कूदने वाले, भेड़ चाल में शरीक होने वाले लोग आपकी आवाज बनेंगे? वो नहीं बनेंगे क्योंकि पीड़ित बच्ची, जो ढाई साल की थी, उसका नाम सोनम शर्मा है, शबनम, सलमा, या जाहिदा नहीं, और उसे मारने वाले का नाम राजेश, सुरेश, रमेश या गौतम नहीं है।

अब ये दोगले लोग, जो वैश्विक स्तर तक भारत जैसे देश को दुनिया का रेप कैपिटल बना आए, जबकि भारत बलात्कार के मामले में शीर्ष दस देशों में भी कहीं नहीं आता, चुप हैं क्योंकि यहाँ हिन्दू और दूसरा मजहब तो है, लेकिन पात्रों के संदर्भ बदल गए हैं। इससिए इनसे उम्मीदें मत पालिए। हाँ, उनके नाम लेकर बुलाइए इन्हें क्योंकि इन्हें याद दिलाना ज़रूरी है कि तुम्हें आम जनता अब कैसे देखती है।

अब यह कहा जा रहा है कि पुलिस स्टेटमेंट में तो सोनम के रेप की पुष्टि नहीं हुई है। पुलिस स्टेटमेंट और डॉक्टर की टिप्पणी में तो उस बच्ची के उन अंगों का भी गायब होना लिखा हुआ है। पुलिस के स्टेटमेण्ट का इंतजार तो इशरत जहाँ से लेकर अमित शाह और मोदी तक के किसी भी मामले में नहीं किया गया था। पुलिस स्टेटमेण्ट का इंतजार तो कठुआ की पीड़िता के भी रेप कन्फर्म होने तक नहीं किया गया था।

यहाँ पर दूसरी बात और है कि समुदाय विशेष के व्यक्ति का आरोपित होना ही इन दोगलों की पूरी जमात के लिए चुप्पी साधने के लिए काफी होता है। इन्हें जब गाली पड़ती है तो ये बाहर आकर कहते हैं कि इसका राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए। ये बहुत ही गम्भीर मुद्रा में बताते हैं कि बच्ची को इंसाफ़ मिलना चाहिए, मजहब तलाश करने से कुछ नहीं मिलने वाला।

जबकि सत्य यह है कि जब पहली बार हिन्दू-मुस्लिम हुआ, और तुमने लिख कर हमें बताया कि अपराधी का हिन्दू होना भर ही उसमें धर्म और मज़हब का एंगल ले आता है, तो फिर यहाँ भी वही तर्क क्यों न इस्तेमाल किया जाए? अपराधी के अपराध करने के पीछे की मंशा अगर यह रही हो कि वो मजहब विशेष का है इसलिए उसका बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या कर दी जाए, तो समझ में आता है कि उस अपराधी ने धर्म को आधार बना कर अपराध को अंजाम दिया।

हालाँकि, इसके बाद भी वो एक धार्मिक अपराध नहीं है। इसके बाद भी आप यह नहीं कह सकते कि हिन्दू ने दूसरे समुदाय वाले का रेप किया। नैतिकता, सामाजिकता, विवेक और न्यायसंगत बात यह है कि आप लिखें और बोलें कि बच्ची का बलात्कार हुआ और अपराधी ने धर्म को आधार बना कर ऐसा किया। आप इस अपवाद सदृश अपराध को उदाहरण जैसा बना कर नहीं लिख सकते।

लेकिन, आपने पहले कठुआ की पीड़िता को इंसाफ़ दिलाने के नाम पर दोगलई दिखाते हुए, अपनी सफ़ेद तख़्तियों पर ‘हिन्दू’, ‘देवीस्थान’, ‘हिन्दुस्तान’ जैसे शाब्दिक प्रतीकों का इस्तेमाल किया है तो फिर आपको विपरीत विचारधारा वाले तो याद दिलाएँगे ही कि दोगलो, अब किस बिल में छुपे हुए हो। आपको तो गालियाँ पड़ेंगी ही कि जब कठुआ की पीड़िता के समय पूरा हिन्दू समाज पर ही शर्मिंदगी का बोझ डाला जा रहा था तो फिर आज समुदाय विशेष पर वही कृपा क्यों नहीं की जा रही?

यहाँ बात किसी सोनम या कठुआ की पीड़िता की नहीं है। मैं यह जानता हूँ कि सामाजिक अपराध का बोझ किसी भी धर्म या मज़हब पर तब तक नहीं डाला जा सकता जब तक सामूहिक रूप से, व्यवस्थित तरीक़ों से ऐसी घटनाओं को वृहद् स्तर पर अंजाम दिया जाए। मजहबी दंगों का भी बोझ हर जगह के हिन्दू या दूसरे मजहब वाले नहीं उठा सकते क्योंकि वो एक छोटे से इलाके के कुछ लोग करते हैं। इसलिए अख़लाक़ की मौत पर मैं संवेदनशील हो सकता हूँ कि ऐसा नहीं होना चाहिए, लेकिन मैं एक भारतीय या हिन्दू के तौर पर शर्मिंदा नहीं हो सकता।

इन बलात्कार या मौतों पर मेरे धर्म या राष्ट्र की धार्मिक किताब या संविधान की सहमति नहीं है। अगर ऐसा होता तो बेशक मैं कहता कि हम किस धर्म या राष्ट्र का हिस्सा हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। ठीक उसके विपरीत, ये जो नौटंकीबाज़ कलाकार और साहित्यकार जब किसी भी वैश्विक या सामाजिक मंच पर हमारे समाज या देश की छवि बर्बाद करते हैं, तब हर भारतीय नागरिक का यह संवैधानिक कर्तव्य बनता है कि इनका मुँह बंद किया जाए। इनका मुँह बंद करना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि ये एक सामाजिक अपराध को राजनैतिक बनाते हुए पूरे धर्म और देश की छवि को नुकसान पहुँचा रहे हैं।

दूसरी बात यह है कि इन निर्लज्ज लम्पटों को छोड़ना या इग्नोर करना भी गलत है। गलत बात को देख कर चुप रहना भी अपराध ही है। इसलिए, इनकी बिलों में हाथ डालना पड़े तो बेशक डालिए, ये चिंचियाते रहें, इन्हें पूँछ पकड़ कर बाहर निकालिए और इनसे पूछिए कि वो जो ट्वीट तुमने लिखा है कि हमें इसका राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए, वो तुम्हारे उसी बाप ने लिख कर दिया है जिसके नाम के कारण तुम हीरो और हीरोईन बने फिरते हो, या किसी पेड़ के नीचे नया ज्ञान प्राप्त हुआ है।

जब युद्ध वैचारिक होते हैं और सामने वाला सेलेक्टिव रूप से आप पर हमले बोलता है, तो आपको नैतिकता त्यागनी होगी। आप यह कह कर बैठे नहीं रह सकते कि ‘रहने दो, ये लोग तो अभी चुप हैं’। जी नहीं, इनको राजनैतिक रूप से धूल चटाने के बाद इनको तोड़ना जरूरी है, इनको मसलना जरूरी है, इनको इतना गिराना है कि ये उठने लायक न रहें।

ये सारी बातें फर्जी हैं कि विरोध का स्वर होना चाहिए, लोकतंत्र में विरोधियों का होना आवश्यक है। ये बेकार की बातें भी इन्हीं लिबरलों और वामपंथियों ने चलाई हैं। जब विरोधी इस घटिया स्तर के हों तो उनका समूल नाश अत्यावश्यक है। और हाँ, ये हम तय करेंगे कि इनका स्तर घटिया है कि नहीं। क्योंकि हमने इन्हें लगातार झेला है, हमने इन्हें दीमकों में बदलते देखा है, हमने इन्हें कुतरते देखा है, हमने इन्हें ठोस जगहों को धीरे-धीरे धूल बनाते देखा है। इसलिए हम यह जानते हैं कि इनके विरोध का स्तर घटिया और सेलेक्टिव है।

अतः, बात सोनम की तो है ही नहीं। बात कठुआ की पीड़िता की तो थी ही नहीं। बात तो हिन्दुओं को बदनाम करने की थी। बात राष्ट्र की छवि बर्बाद करने की थी कि दूसरे देश को लोग अपने देश की कम्पनियों पर दबाव बना सकें, अपने नेताओं पर दबाव बना सकें कि भारत के साथ संबंध मत रखो। आज के दौर में जब बात ग्लोबल विलेज की होती है, वैश्विक मंचों पर आपसी संबंधों की होती है, तो राष्ट्र की छवि का असर पड़ता है।

सत्ता की मलाई से दूर हो चुके लोग, किसी भी हद तक गिर कर सरकारों को हिलाने की कोशिश में लगे हुए हैं। ये लोगों में डर पैदा करना चाहते हैं कि फ़लाँ सरकार तो हिन्दुओं को कह रही है कि अल्पसंख्यकों को काट दो, दंगे करा दो। लेकिन लोगों को इन पर अब विश्वास होना बंद हो चुका है। आप कभी इन लोगों के सोशल मीडिया पोस्ट के नीचे के कमेंट पढ़िए। आपको पता चलेगा कि इनकी स्वीकार्यता कितनी गिर चुकी है।

हर जगह ये गाली सुनते रहते हैं। हर पोस्ट पर लोग इन्हें घेर कर याद दिलाते हैं कि इन्होंने मुद्दों को चुन-चुन कर, उसमें जाति और धर्म देखने के बाद, राज्य में किसकी सरकार है, यह गूगल से पता लगाने के बाद अपनी भावनाओं को भाड़े के शब्दों की अभिव्यक्ति दी है।

इन घटनाओं को देख कर लगता है कि सिर्फ अपने मतलब की सरकार के आ जाने से वैचारिक युद्ध ख़त्म नहीं होता। वैचारिक युद्ध बाँस की जड़ों पर कन्सन्ट्रेटेड एसिड डाल कर, इनके दोबारा पनपने की शक्ति को ही ख़त्म करके जीते जाते हैं। इन्होंने समाज को धर्म और जाति के आधार पर बाँटा है। लोगों में भय फैलाने की कोशिश की है। इन लोगों को तब तक इनके कुकृत्यों की याद दिलाते रहना ज़रूरी है जब तक ये अपना अँगूठा उठाने से पहले अच्छी तरह से सोचने न लगें कि जो ये नौटंकी रचने जा रहे हैं, उस पर क्या प्रतिक्रिया आएगी।

सोनम या कठुआ की पीड़िता की लड़ाई प्रतीकों की लड़ाई है। इसके लिए आप सरकार का मुँह मत देखिए। इसमें आप घृणा मत लाइए क्योंकि फिर आपको दूसरी विचारधारा के लोग ख़ारिज करने लगेंगे। इसमें इनके पुराने पोस्ट और ट्वीट निकालिए, इन्हें याद दिलाइए कि घृणा फैलाने का काम तो इन्होंने किया है। इनकी पूरी खेती ही घृणा की है, हम तो बस आईना लेकर खड़े हो गए हैं।

असलम कर चुका है अपनी 4 साल की बेटी का भी बलात्कार: ‘सोनम’ की माँ का आरोप

अलीगढ़ में ढाई साल की सोनम (बदला हुआ नाम) शर्मा के साथ बलात्कार के बाद दरिंदगी से मार देने की घटना के बीच एक हैरान कर देने वाला तथ्य भी सामने आया है। अलीगढ़ में ढाई साल की जिस बच्ची को दरिंदगी से मार दिया गया, उस बच्ची की माँ ने उनमें से एक आरोपित असलम पर बड़ा ‘आरोप’ लगाया है।

सोनम शर्मा की माँ ने कहा है कि असलम नाम के आरोपित ने अपनी 4 साल की बेटी के साथ भी बलात्कार किया था और उसकी पत्नी अपनी बेटी को लेकर अपने पिता के घर चली गई थी। बच्ची की माँ ने कहा कि आरोपितों के खिलाफ अगर कार्रवाई नहीं की गई, तो उन्हें आगे भी अपराध करने का बढ़ावा मिलेगा।

मृतक बच्ची की माँ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से निवेदन किया है कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए और दोषियों के लिए मौत की सजा की माँग रखी है। बच्ची की माँ ने कहा कि दोषी अगर 7 साल में ही छूटकर आ जाते हैं तो वे अपराध करने के लिए और प्रोत्साहित होंगे।

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में ढाई साल की बच्ची सोनम शर्मा के साथ हुई दरिंदगी से पूरा देश सदमे में है। ढाई साल की बच्ची जो अभी ठीक से खड़ी भी नहीं हो पाती होगी, उसके साथ जाहिद और असलम ने जो हैवानियत की है उसे सुनकर किसी की भी रूह काँप जाएगी। हालाँकि मीडिया का एक बड़ा ‘सेक्युलर’ और ‘निष्पक्ष’ वर्ग ऐसा है, जो अभी भी जाहिद और असलम के पक्ष को मजबूत साबित करने का प्रयास कर रहा है। जाहिद और असलम ने महज़ ₹5000 के लिए ढाई साल की बच्ची को बेरहमी से मार डाला। बच्ची को इंसाफ दिलाने के लिए अब पूरे देश से आवाज उठ रही है।

ढाई साल की बच्ची 30 मई को अचानक लापता हो गई थी और 2 जून को उसका शव मिला। पुलिस के मुताबिक
बेइज्जती का बदला लेने के लिए मोहल्ले के ही जाहिद और असलम ने बच्ची की हत्या कर दी। बच्ची के घरवालों ने जाहिद को 40 हजार रुपये उधार दिए थे, जिनमें 35 हजार रुपये तो उसने वापस कर दिए थे लेकिन बाकी पांच हजार रुपये मांगने पर जाहिद ने अपनी बेइज्जती की बात कही थी। ₹5000 के लिए ढाई साल की बच्ची को बेरहमी से मार डाला। बच्ची को इंसाफ दिलाने के लिए अब पूरे देश से आवाज उठ रही है।

मासूम ‘सोनम’ की नृशंस हत्या मामले की जाँच के लिए SIT गठित

अलीगढ़ के टप्पल में ढाई वर्षीय सोनम (बदला हुआ नाम) की नृशंस हत्या मामले की जाँच के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा एक विशेष जाँच दल (SIT) का गठन किया गया है।

पुलिस के अनुसार, इस मामले में POCSO (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण) अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी। डीजी (लॉ एंड ऑर्डर) आनंद कुमार के अनुसार, ‘अलीगढ़ एसएसपी ने मामले को तेजी से ट्रैक करने के लिए एक SIT का गठन किया है जिससे अपराधियों को जल्द से जल्द सज़ा दिलाई जा सके। उन्होंने कहा कि साइंटिफ़िक सबूतों के आधार पर जाँच आगे बढ़ाई जा रही है।’

इसके आगे उन्होंने कहा कि माता-पिता के बयानों के आधार पर दो मुख्य दोषियों को गिरफ़्तार कर लिया गया है और संबंधित SHO के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई की गई है। उन्होंने कहा कि अगर कोई अन्य पुलिस कर्मी भी इस मामले में लापरवाही का दोषी पाया गया तो उसके ख़िलाफ़ भी कार्रवाई की जाएगी।

इससे पहले हमने एक ख़बर की थी जिसमें आरोपी ज़ाहिद और असलम के अपराधों पर पर्दा डालने का प्रयास किया गया था, जिसमें यह दावा किया गया कि बच्ची का बलात्कार नहीं किया गया, जबकि सच्चाई यह है कि अभी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ऐसा कोई तथ्य निकलकर सामने नहीं आया। फ़िलहाल, POCSO अधिनियम भी जाँच में शामिल कर लिया गया है। इस मामले की पूरी सच्चाई बाहर आना अभी बाक़ी है, फिर कोई यह कैसे कह सकता है कि बच्ची का यौन शोषण हुआ ही नहीं था। इसलिए, जाँच में यौन शोषण के एंगल को ख़ारिज नहीं करना चाहिए।

इसके अलावा, पुलिस अधिकारियों द्वारा बरती गई लापरवाही पर डीजी ने टिप्पणी करते हुए कहा कि पुलिस के बयानों को अंतिम सत्य के रूप में नहीं लिया जा सकता है। ख़ासकर तब, जब साइंटिफ़िक सबूत कुछ और ही हक़ीकत बयाँ करते हों।

इलाज से नाखुश रफीक ने डॉक्टर की पत्नी को मार डाला, बेटे को भी किया घायल

इंदौर में डॉक्टर के इलाज से नाखुश रफीक राशिद नाम के व्यक्ति ने गुरुवार (जून 6, 2019) को गुस्से में डॉक्टर की पत्नी की हत्या कर दी। खबरों के अनुसार राशिद डॉक्टर से मिलने मालवा हिल्स पर मौजूद उनके क्लिनिक पर गया था। लेकिन वहाँ डॉक्टर राम कृष्ण मौजूद नहीं थे बल्कि उनकी पत्नी लता वर्मा थीं जो अपने पति को क्लिनिक के काम में मदद करती थीं।

लता ने रफीक को बताया कि उनके पति शहर से बाहर गए हुए हैं। इस पर रफीक ने लता से बहस करनी शुरु कर दी। थोड़ी देर में ये बहस इतनी ज्यादा बढ़ गई कि रफीक ने महिला को चाकू मारना शुरू कर दिया। जब डॉक्टर का बेटा अभिषेक अपनी माँ को बचाने के लिए बीच में आया तो रफीक़ ने लड़के पर भी चाकू से वार किए। अस्पताल पहुँचने के बाद लता को मृत घोषित कर दिया गया, जबकि अभिषेक अभी खतरे से बाहर बताया जा रहा है।

तुकोगंज के सीएसपी बीपीएस परिहार ने हिन्दुतान टाइम्स से हुई बातचीत में बताया कि 45 वर्षीय रफीक राशिद त्वचा सम्बंधी रोग से पीड़ित था। उसका इलाज पिछले 6 महीने से डॉक्टर रामकृष्ण वर्मा कर रहे थे, लेकिन उसे इससे कोई फायदा नहीं हो रहा था। गुरुवार को सुबह 11 बजे जब रफीक डॉक्टर के पास पहुँचा तो लता ने उसे बताया कि डॉक्टर दिल्ली गए हुए हैं।

जिसके बाद रफीक को गुस्सा आ गया और उसने 50 वर्षीय महिला पर लगातार चाकू से वार किए। पुलिस ने बताया कि आरोपित चाकू को अपने साथ लेकर आया था। मदद के लिए माँ की आवाज सुनते ही जब डॉक्टर का बेटा अभिषेक अपनी माँ को बचाने आया तो रफीक ने उसे भी चाकू मारे और भाग निकला। कुछ लोगों ने चीखने चिल्लाने की आवाज सुनी और रफीक को धर पकड़ा। बाद में उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया।

फ़िलहाल, पुलिस रफीक से पूछताछ कर रही है। पुलिस पता करने की कोशिश कर रही है कि डॉक्टर की गैर मौजूदगी में कहीं रफीक ने महिला के साथ शारीरिक सम्बंध बनाने का प्रयास तो नहीं किया। पुलिस के मुताबिक आरोपित 2015 में भी एक मर्डर के केस में शामिल था, अभी वो बेल पर बाहर है। रफीक हमेशा अपने पास चाकू रखता है।