Monday, November 18, 2024
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NSA अजीत डोभाल को मिलेगा कैबिनेट मंत्री का दर्जा, बने रहेंगे NSA

देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (National Security Advisor ) अजीत डोभाल को केंद्र सरकार से बड़ा तोहफा मिला है। सरकार ने अजीत डोभाल को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही अजीत डोभाल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी बने रहेंगे।

अजीत डोभाल को राष्ट्रीय सुरक्षा क्षेत्र में उनके अच्छे काम के लिए मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला है। उनकी नियुक्ति पाँच साल के लिए हुई है। NSA अजीत डोभाल की गिनती देश के सबसे ताकतवार नौकरशाहों में होती है।

मई 30, 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अजीत डोभाल को देश के 5वें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में नियुक्त किया था। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उन्हें NSA के अलावा रणनीतिक नीति समूह (स्ट्रैटिजिक पॉलिसी ग्रुप, SPG) का सचिव भी बनाया गया था। पुलवामा आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों पर एयर स्ट्राइक अजीत डोभाल की निगरानी में ही हुई थी। उन्होंने खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसकी जानकारी दी थी। वह पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान भी सबसे ज्यादा चर्चा में आए थे।

सितंबर 2016 में पीओके में किए गए सर्जिकल स्ट्राइक में भी अजीत डोभाल की बड़ी भूमिका रही थी। उन्होंने इस मिशन से पहले सेना के तीनों चीफ और खुफिया एजेंसियों के हेड के साथ आखिरी मीटिंग ली थी। मीटिंग में तय हुआ था कि मिशन के तहत एलओसी के उस पार आठ आतंकी कैंपों पर हमला किया जाएगा।

DTC बसों, Cluster बसों व Metro में महिलाओं के लिए यात्रा निःशुल्क: केजरीवाल की बड़ी घोषणा

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली की बसों व मेट्रो में महिलाओं की यात्रा मुफ्त करने का निर्णय लिया है। केजरीवाल ने कहा कि सभी डीटीसी बस, क्लस्टर बस और मेट्रो ट्रेन में महिलाओं को मुफ्त में यात्रा करने की अनुमति दी जाएगी ताकि वे ख़ुद को सुरक्षित महसूस कर सकें। केजरीवाल ने कहा कि इस निर्णय से महिलाओं को यात्रा के लिए अपना मनपसंद माध्यम चुनने की स्वतन्त्रता मिलेगी, जो वे ज्यादा यात्रा शुल्क होने की वजह से नहीं कर पा रही थीं। अरविन्द केजरीवाल ने कहा:

“किसी भी प्रकार की सब्सिडी थोपी नहीं जाएगी। कई सारी ऐसी महिलाएँ हैं जो इन यात्रा माध्यमों का प्रयोग कर सकती हैं। जो सक्षम हैं, वे टिकट ख़रीद कर यात्रा कर सकती हैं, उन्हें सब्सिडी की ज़रूरत नहीं है। हम उन महिलाओं को प्रोत्साहित करेंगे, जो टिकट ख़रीद कर यात्रा करने में सक्षम हैं क्योंकि इससे बाकियों को मदद मिलेगी।”

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए कहा:

“आम परिवारों की बेटियाँ जब कॉलेज के लिए निकलती हैं, महिलाएँ नौकरी के लिए निकलती हैं तो लोगों का दिल धक-धक करता रहता है। उनकी सुरक्षा की चिंता बनी रहती है। उसको ध्यान में रखते हुए दिल्ली सरकार ने निर्णय लिया है कि सभी डीटीसी बसों, मेट्रो और क्लस्टर बसों में महिलाओं का किराया फ्री किया जाएगा। हमारा उद्देश्य है कि महिलाएँ ज्यादा से ज्यादा पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल कर सकें। “

विशेष अदालत ने वाड्रा को दी विदेश जाने की छूट, ED ने पूछा ‘अगर वह लौटे ही नहीं तो?’

सीबीआई की विशेष अदालत ने यूपीए अध्यक्ष सोनिया गाँधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को इलाज कराने के लिए विदेश जाने की अनुमति दे दी है। विवादित कारोबारी वाड्रा को मेडिकल ट्रीटमेंट हेतु 6 सप्ताह के लिए विदेश जाने की अनुमति दी गई है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) के विरोध के बावजूद विशेष अदालत ने वाड्रा को ये अनुमति दे दी। ईडी ने वाड्रा की उस याचिका का विरोध किया, जिसमें उन्होंने मेडिकल आधार पर ब्रिटेन सहित अन्य देशों की यात्रा की अनुमति माँगी थी। वाड्रा ने 29 मई को हुई पिछली सुनवाई में अदालत को बताया था कि सर गंगा राम अस्पताल के अनुसार ‘उनकी बड़ी आँत में एक छोटा ट्यूमर है’।

ईडी ने कहा कि वाड्रा जानबूझ कर लन्दन जाना चाहते हैं क्योंकि वहाँ इस मामले से जुडी कई चीजें हैं। अदालत ने यह भी कहा कि वाड्रा के ख़िलाफ़ जारी किया गया ‘लुक आउट सर्कुलर’ भी इस अवधि के दौरान लागू नहीं होगा। इससे पहले वाड्रा से सरकारी जाँच एजेंसियों द्वारा 7 घंटे तक पूछताछ की गई थी। वाड्रा पर विदेश में संपत्ति अर्जित कर उसका विवरण छिपाने और टैक्स से बचने का आरोप है।

हालाँकि, कोर्ट ने वाड्रा को नीदरलैंड और अमेरिका जाने की अनुमति तो दे दी लेकिन लन्दन जाने की अनुमति नहीं दी क्योंकि उनकी लन्दन की संपत्ति को लेकर ही मामला चल रहा है और वह वहाँ जाकर जाँच में गड़बड़ी कर सकते हैं। वहीं ईडी ने याचिका पर विरोध जताते हुए अदालत को बताया था कि मामले की जांच बेहद गंभीर पड़ाव पर है और ऐसा हो सकता है कि वाड्रा लंदन से लौटे ही नहीं?

इसके अलावा सरकारी एजेंसी ने वाड्रा द्वारा साक्ष्य से छेड़छाड़ करने की भी आशंका जताई है। वाड्रा पर बीकानेर में जमीन खरीद में अनियमितता और दिल्ली एनसीआर में जमीन हथियाने सहित कई मामले चल रहे हैं, जिसमें उनसे पूछताछ होती रहती है। शुक्रवार को भी उन्हें समन जारी किया गया था, लेकिन उन्होंने अपनी जगह वकीलों को भेज दिया। वाड्रा के विदेश जाने की ख़बर सामने आते ही सोशल मीडिया यूजरों ने पूछा कि कहीं अगर वो विदेश से लौटते ही नहीं हैं, तो क्या होगा?

रॉबर्ट वाड्रा ने अपनी याचिका में कहा था कि उनकी बड़ी आँत में ट्यूमर है। उन्होंने इसकी पुष्‍ट‍ि के लिए सर गंगाराम अस्पताल का एक प्रमाण पत्र भी अदालत में दाखिल किया था। याचिका में कहा गया था कि डॉक्टर ने दूसरा सुझाव लेने की सलाह दी है। उन्होंने दलील दी थी कि वह चिकित्सकीय परामर्श लेने के लिए विदेश जाना चाहते हैं। ईडी ने अदालत के सामने गंभीर मसला उठाते हुए सम्भावना जताई थी कि ऐसा हो सकता है कि वाड्रा विदेश से लौटे ही नहीं।

BJP विधायक ने NCP की नेता को लात-घूँसों से पीटा, Video वायरल

गुजरात के नरोदा में भाजपा विधायक बलराम थावनी ने पानी कनेक्शन को लेकर शिकायत करने पहुँची एनसीपी की नेता नीतू तेजस्विनी के साथ मारपीट की। ये पूरा वाकया कैमरे में कैद हुआ और इसका वीडियो भी तेजी से वायरल हो रहा है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार एनसीपी नेता ने बताया है कि शिकायत का समाधान करने की बजाय विधायक और उसके सहयोगियों ने उनके साथ बदतमीजी की और बीच सड़क पर गिराकर उन्हें खूब पीटा। उन्हें लात, घूसे, थप्पड़ मारे गए। उनके चेहरे पर जूता रख दिया गया। इस दौरान वे चीखती-चिल्लाती रहीं, मगर वहाँ मौजूद किसी शख्स को उसपर रहम नहीं आया। नीतू का कहना है कि उनके साथ-साथ उसके पति को भी पीटा गया है।

वीडियो वायरल होने बाद सोशल मीडिया पर लोग बलराम की खूब आलोचना कर रहे हैं। बलराम की तुलना गुंडे से की जा रही है। कॉन्ग्रेस ने आरोपित विधायक के ख़िलाफ़ तुरंत कार्रवाई की माँग की है। विपक्षी पार्टी ने माँग की है कि भाजपा विधायक की तुरंत सदस्यता खत्म की जाए। इसके अलावा वड़गाम से निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी ने भी विधायक की गिरफ्तारी की माँग की है।

अपनी वाहियात हरकत पर बलराम ने सफाई देते हुए बयान दिया है कि ऐसा उन्होंने जानबूझकर नहीं किया है। विधायक का कहना है कि वो 22 सालों से राजनीति में हैं इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। उन्होंने अपनी गलती स्वीकार ली है और एनसीपी नेता से माफ़ी माँगने की भी बात की है। लेकिन, सोशल मीडिया यूजर्स की नाराज़ प्रतिक्रिया को देखकर लग रहा है कि अब बलराम के ऐसे बयान से उन्हें जनता माफ़ नहीं करने वाली है।

आतंक से लड़ने के नाम पर 50 हज़ार निर्दोषों को मार चुकी है पाकिस्तानी फ़ौज

पाकिस्तान में आतंकवाद से निपटने के नाम पर आम नागरिकों के मानवाधिकारों के हनन की ख़बर सामने आती रहती हैं। अमेरिका में 9/11 आतंकी हमले के बाद शुरू हुए ‘वॉर ऑन टैरर’ के दौरान हज़ारों निर्दोष नागरिक मारे जा चुके हैं। पाकिस्तान के सैनिकों और विद्रोहियों के आपसी युद्ध में यातना देने और मारने के सबूत अब धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं।

ख़बर के अनुसार, इस बात की पुष्टि सरकारी आंकड़े तो नहीं करते, लेकिन स्वतंत्र शोध संगठनों, स्थानीय अधिकारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के आँकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि 2002 से अब तक कम से कम 50 हज़ार लोग के इस लड़ाई में मारे गए हैं और 50 लाख से अधिक के बेघर होकर इधर-उधर भटकने को मजबूर हुए हैं।

एक ब्रिटिश मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 20 जनवरी, 2014 की शुरुआत में अफ़गान सीमा के क़रीबी उत्तरी वजीरिस्तान के कबीलाई क्षेत्र के हमजोनी एरिया में रात को हुए हवाई हमले में पाकिस्तानी तालिबान के सबसे बड़े कमांडर अदनान राशीद और उसके पाँच परिजनों के मारे जाने का दावा पाक सेना ने किया।

पाकिस्तानी एयरफोर्स का पूर्व तकनीशियन रशीद उस समय चर्चा में आया था, जब उसने एक स्कूली लड़की मलाला यूसुफ़जई को पत्र लिखा था। नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला को 2012 में एक तालिबानी हमलावर ने सिर में गोली मार दी थी। पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ पर हमला की कोशिश के आरोप में जेल में बंद रह चुके रशीद ने पत्र में मलाला को गोली मारने का कारण समझाने की कोशिश की थी।

ख़बर में यह भी कहा गया है कि एक ही साल बाद रशीद ने एक वीडियो में पेश होकर पाकिस्तानी सेना के दावे को झूठा करार दिया था। उस समय यह बात सामने आई थी कि पाकिस्तानी सेना के विमान ने रशीद के ठिकाने के बजाय दो घर छोड़कर एक निर्दोष परिवार पर बम गिरा दिया था। इस परिवार में जिन लोगों की मृत्यु हुई थी उनमें एक तीन साल की बच्ची भी थी। पाक सेना ने अब तक अपनी इस ग़लती को नहीं स्वीकार किया।

पाक सेना ने वजीरीस्तान क्षेत्र में मानवाधिकार के हनन और यातना व आतंकी झड़पों के कारण मारे जाने वाले निर्दोष नागरिकों का आंकड़ा कभी पेश नहीं किया। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने तो यहाँ तक दावा किया कि इन मामलों के सबूत जुटाने वालों को भी पाक सेना मार देती है। पश्तून तहाफुज मूवमेंट (पीटीएम) के 13 कार्यकर्ताओं की 26 मई को हुई मौत इसका उदाहरण है। इनकी मौत उस समय हुई थी, जब शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे संगठन के लोगों पर सेना की तरफ से हमले का आरोप लगाकर सीधी फायरिंग कर दी थी। साथ ही पीटीएम के दोनों संस्थापकों को भी गिरफ़्तार कर लिया गया था।

सपा विधायक और UP सरकार में पूर्व मंत्री को गैंगरेप में हुई जेल

बिजनौर के नगीना से समाजवादी पार्टी के विधायक और पूर्व मंत्री मनोज पारस को गैंगरेप मामले में एमपी-एमएलए कोर्ट ने जेल भेज दिया है। 13 जून 2007 को दर्ज हुई रिपोर्ट के मुताबिक आरोपित विधायक ने पीड़ित महिला को राशन की दुकान दिलाने का भरोसा दिलाकर अपने घर बुलाया था। यहाँ उसने जयपाल, अस्सू और कुंवर सैनी के साथ मिलकर महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया था।

इस मामले में अन्य आरोपित जयपाल, अस्सू, कुंवर सैनी कोर्ट में सरेंडर करने के बाद से जेल में हैं, लेकिन विधायक न तो खुद कोर्ट में पेश हुए थे और न ही जमानत कराई थी। ऐसे में जब शनिवार को सपा विधायक एम-एमएलए कोर्ट में पेश हुए तो उन्हें न्यायिक हिरासत में लेकर जेल भेजने का आदेश दे दिया गया। उनकी ओर से दी गई जमानत अर्जी पर सुनवाई 4 जून को होनी है, तब तक मनोज पारस को जेल में ही रहना होगा।

बता दें अभी हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सपा विधायक द्वारा याचिका को खारिज किया था जिसमें मनोज पारस द्वारा मामले को बंद करने की गुहार लगाई गई थी। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के निर्देश पर मामला साल 2007 में आईपीसी के तहत नगीना थाने में दर्ज हुआ था। इस मामले में आरोपितों के खिलाफ गैर जमानती वारंट भी जारी किया गया था। हालाँकि बाद में आरोपितों की गिरफ्तारी पर उच्च न्यायालय रोक लगा दी थी।

इसके बाद एक जाँच अधिकारी ने आरोपित के ख़िलाफ़ 2011 में हलफनामा दर्ज करवाया था, लेकिन सही प्रक्रिया फॉलो न करने के कारण उसे प्रारंभिक स्तर पर ही खारिज कर दिया गया था। इसके बाद ये मामला उस समय सुर्खियों में आया जब दोबारा मनोज को 2012 में सपा से टिकट मिला और साथ ही उन्हें मंत्री भी बनाया गया।

टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक प्रवीण देशवाल का कहना है कि इस समय स्थानीय कोर्ट में पारस के ख़िलाफ़ कोई मामला पेंडिंग नहीं हैं क्योंकि 2017 में यूपी सरकार ने प्रावधान बनाया था कि एमपी और एमएलए से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई इलाहाबाद की स्पेशल कोर्ट करेगी, तब से ये मामला एमपी-एमएलए कोर्ट में पेंडिंग था।

साइबर ठगों ने देश के भूतपूर्व सबसे बड़े जज को लूटा, जानिए क्या है मामला

साइबर ठगों ने इस बार भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश को ही निशाना बनाया है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस आरएम लोढ़ा से एक लाख रुपए की ठगी का मामला सामने आया है। जालसाजों ने उनकी ईमेल आईडी हैक करने के बाद उनसे एक लाख रुपए ठग लिए। इस मामले में दिल्ली के मालवीय नगर थाना पुलिस ने शिकायत दर्ज कर जाँच शुरू कर दी है। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि मामले की शुरुआती जाँच के बाद आगे की कार्रवाई के लिए इसे साइबर सेल को सौंप दिया जाएगा। पूर्व सीजेआइ फिलहाल अपने परिवार के साथ एस-ब्लॉक, पंचशील पार्क में रहते हैं।

दरअसल, हुआ यूँ की रिटायर्ड जस्टिस लोढ़ा की आधिकारिक मेल आईडी पर 19 अप्रैल को दोपहर करीब 1:40 बजे सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त उनके एक परिचित जस्टिस बीपी सिंह की आधिकारिक मेल आईडी से एक ई-मेल आया। इस मेल में लिखा था कि रिटायर्ड जस्टिस सिंह के भतीजे को खून से सम्बंधित गंभीर बीमारी है और इलाज के लिए एक लाख रुपयों से अधिक की ज़रूरत है। राशि भेजने के लिए एक बैंक अकाउंट के विवरण भी भेजे गए, जिसे किसी सर्जन का बताया गया।

इसके बाद स्थिति को गंभीर समझते हुए रिटायर्ड सीजेआइ लोढ़ा ने एक लाख रुपए तुरंत उस बैंक खाते पर भेज दिए। इसके बाद 30 मई को जब जस्टिस बीपी सिंह से उनकी बात हुई तो पता चला कि उन्होंने ऐसा कोई मेल भेजा ही नहीं था। इसके बाद उन्हें एहसास हुआ कि उनके साथ ठगी हुई है। दरअसल, बदमाशों ने जस्टिस बीपी सिंह की आईडी हैक कर ली थी और उससे पूर्व सीजेआइ को मेल भेजा गया, जिसपर विश्वास करते हुए उन्होंने बताई गई राशि जमा करा दी। पुलिस के अनुसार, जिस व्यक्ति के खाते में रुपए ट्रान्सफर किए गए थे, उसका नाम दिनेश माली है।

बता दें कि लगातार डिजिटल हो रहे भारत में साइबर ठगी से निपटने के लिए पर्याप्त निगरानी व्यवस्था न होने के कारण बड़े से बड़े पदों पर बैठे लोगों से लेकर आम जनों तक, सभी इसके चपेट में आ जाया करते हैं। थानों में अक्सर शिकायतें आती हैं कि लोगों से इंटरनेट द्वारा रुपए ठग लिए गए और पुलिस के पास इससे निपटने के लिए संसाधन और स्किल नहीं होते। एक व्यापक व्यवस्था के रूप में स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक, सामान्य आपराधिक घटनाओं वाले हर थाने में साइबर पुलिस की मौजूदगी अब भारत की ज़रूरत बन गई है।

11 साल की शिवभक्त भारत में रहना चाहती है, कहती है- मोदी जी हमें आने दो

11 वर्षीय एलिजा वानात्को नामक पोलिश लड़की ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नए विदेश मंत्री एस जयशंकर को अपने हाथ से लिखा एक पत्र भेजा है, जिसमें एलिजा ने प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री से अपनी माँ के साथ भारत में रहने की इजाजत माँगी है। साथ ही इस पत्र में बच्ची ने भगवान शिव के प्रति अपने प्रेम, नंदा देवी की पहाड़ियों और गौ सेवा की खूबसूरत यादों के बारे में भी चर्चा की है।

बच्ची ने लिखा है कि वीजा की अवधि खत्म होने के बाद भी भारत में लंबे वक्त तक रहने के कारण उसे और उसकी माँ को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है। एलिजा ने पत्र में बताया है कि वो 6 साल की उम्र में भारत आई थी और तब से वह गोवा में ही रह रही थी। भारतीय न होने के बावजूद भी वो भारत को ही अपना घर मानती है। वो यहाँ वापस आना चाहती है। लेकिन, पिछले एक महीने से उनकी सुनवाई नहीं हो रही है।

पत्र में बच्ची ने लिखा है कि वो और उसकी माँ मार्था (जो एक फोटोग्रॉफर और कलाकर दोनों हैं) अपने वीजा को नवीनीकृत करवाने के लिए श्री लंका गए थे, लेकिन इसके बाद उन्हें भारत नहीं आने दिया गया। उनकी माँ
भारत में बी 2 बी वीजा पर लंबे समय से भारत में रह रहीं थी।

अब जब उन्हें ब्लैकलिस्ट होने के कारण भारत आने की अनुमति नहीं है तो ऐसे में मार्था को एलिजा के साथ थायलैंड में रहकर इंतजार करना पड़ रहा है। एलिजा और उनकी माँ इस समय कंबोडिया में हैं। उन्हें उम्मीद है कि उन्हें भारत आने की इजाजत जरूर दी जाएगी। एलिजा का कहना है कि वो अब हिंदू धर्म और उसकी मान्यताओं से पूरी तरह जुड़ चुकी है। इसलिए उसे इन सब चीज़ों की बहुत याद आती है।

अपने पत्र में बच्ची ने इस बात का जिक्र भी किया है कि वो भले ही अभी अपनी माँ के साथ है लेकिन फिर भी वो अपने पसंदीदा देश में बिताई अपनी पुरानी जिंदगी को बहुत याद करती है। वो कहती है कि वो जिन पशुओं की सेवा करती थी, वो उनके बगैर बहुत परेशान होंगे और वो खुद भी उनके बिना हर रात गुस्से और निराशा के साथ गुजार रही है।

एलिजा को भारत न आ पाने के कारण लगता है कि सब कुछ बर्बाद हो चुका है। वो रोज़ भगवान शिव और नंदा देवी से मदद के लिए प्रार्थना करती है। वो लिखती है कि उसने नरेंद्र मोदी और जयशंकर को पत्र इसलिए लिखा है क्योंकि ये लोग भारत के सबसे शक्तिशाली लोगों में से एक हैं, जो उसकी और उसकी माँ की मदद कर सकते हैं। बच्ची विनती करती है कि उसे भारत में आने की अनुमति दी जाए और साथ ही उन्हें ब्लैकलिस्ट की सूची से हटाया जाए।

इसके अलावा बता दें ट्विटर के जरिए मार्था भी लगातार नरेंद्र मोदी और एस जयशंकर से मदद की गुहार लगा रही हैं। उन्होंने अप्रैल महीने में इसी तरह सुषमा स्वराज से भारत लौटने के लिए निवेदन किया था। इस दौरान उन्होंने दावा किया था कि ‘गलतफहमी के कारण’ उनके साथ ऐसा हो रहा है।

‘MP में बहुत अन्धकार है क्या, पता करो वहाँ कॉन्ग्रेस की सरकार है क्या’

मध्य प्रदेश में बिजली जाना आम हो गया है। इससे पहले ख़बर आई थी कि लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री कमलनाथ जब मतदान करने पहुँचे, तब अचानक से बिजली गुल हो गई। इसके बाद उन्हें वहाँ मौजूद मीडियाकर्मियों के कैमरे के प्रकाश में मतदान करना पड़ा था। नाराज़ मुख्यमंत्री ने इस मामले की जाँच तक बिठाने की बात कर दी। फ़्लैशलाइट में मतदान करने को मजबूर कमलनाथ के मतदान केंद्र पर पहुँचते ही लगभग आधे घंटे के लिए बिजली चली गई थी। अब मशहूर शायर राहत इन्दौरी ने भी राज्य में बिजली की समस्या से परेशान होकर अपना दर्द बयाँ किया है। राहत इन्दौरी ने ट्विटर के माध्यम से सीधा मुख्यमंत्री को टैग कर अपनी समस्या से अवगत कराया।

राहत इन्दौरी ने ट्विटर पर मुख्यमंत्री कमलनाथ, बिजली विभाग व विधायक प्रियव्रत सिंह को टैग करते हुए लिखा, “आजकल बिजली जाना आम हो गया है। आज भी पिछले 3 घंटों से बिजली नहीं है। गर्मी है, रमजान भी है‘मध्य प्रदेश पश्चिम क्षेत्र विद्युत् वितरण कम्पनी लिमिटेड’ के इंदौर दफ्तर में कोई फोन नहीं उठा रहा है। कुछ मदद करें।” लोकप्रिय शायर की इस ट्वीट के बाद लोगों ने ख़ूब मज़े लिए। कई दिनों से वैसे भी सोशल मीडिया पर ये बात ख़ूब फ़ैल रही है कि कमलनाथ सरकार के सत्ता संभालने के बाद से मध्य प्रदेश में अचानक से इन्वर्टर की बिक्री बढ़ गई है।

अधिकतर यूजरों ने रहत इंदौरी के लोकप्रिय शेर “सरहदों पर बहुत तनाव है क्या, कुछ पता तो करो चुनाव है क्या” को लेकर उनपर निशाना साधा। बता दें कि रहत इंदौर अपने कार्यक्रमों में अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा को आड़े हाथों लेते रहे हैं। हाल ही में एक शेर उन्होंने पढ़ा था:

ज़मीर बोलता है ऐतबार बोलता है 
मेरी ज़ुबान से परवरदिगार बोलता है
मैं मन की बात बहुत मन लगा के सुनता हूँ 
ये तू नही है तेरा इश्तेहार बोलता है
कुछ और काम उसे याद ही नही शायद 
मगर वो झूठ बहुत शानदार बोलता है
तेरी ज़ुबान कतरना बहुत ज़रूरी है 
तुझे ये मर्ज़ है तू बार बार बोलता है

राहत इंदौरी ने यह शायरी अप्रत्यक्ष रूप से पीएम मोदी के लिए कही थी। कॉन्ग्रेस राज में बिजली की समस्या को लेकर लोगों ने रहत इंदौरी को शिवराज सरकार के ‘अच्छे दिन’ याद दिलाए।

‘यो यो फनी सिंह’ नाम के एक यूजर ने लिखा “प्रदेश में बहुत अंधकार है क्या, कुछ पता तो करो, वहाँ कॉन्ग्रेस की सरकार है क्या ..!!” इसके बाद एक अन्य यूजर ने राहत इंदौरी का नामकरण ‘आहत इंदौरी’ करते हुए लिखा, “भीषण गर्मी में पॉवर कट से अंधकार है क्या पता करो ताऊ, सूबे में कॉन्ग्रेस की सरकार है क्या“। एक अन्य यूजर ने सलाह दी कि अगर सेक्युलर सरकार बनाना है तो 3-4 घंटे बिजली की क़ुर्बानी देनी पड़ेगी।

प्रिय होम मिनिस्टर, आतंकियों की लाशें परिवार को सौंप कर उन्हें हीरो बनाना कब बंद होगा?

एक तरफ मजहबी उन्माद है जो मानता है कि एक पीढ़ी खप जाए, दो पीढ़ी खप जाए, तीन खपे, चार हो जाए, दो सौ साल लगें लेकिन हम अपना झंडा गाड़ेंगे। और दूसरी तरफ आपकी लड़ाई है कि कभी आप उन्हें बच्चा समझ कर छोड़ देते हैं, कभी रमज़ान में सीजफायर करके उन्हें फिर से संगठित होने का मौका देते हैं, कभी उनके आतंकी बच्चों की लाशों को सौंपते हैं परिवारों को ताकि आतंकियों को समर्थन देने वाला पूरा समुदाय 20-30 हज़ार की भीड़ बन कर आपको यह संदेश देता रहे कि एक पीढ़ी खप जाए, दो पीढ़ी खप जाए, तीन खपे, चार हो जाए, दो सौ साल लगें लेकिन हम अपना झंडा गाड़ेंगे।

अगर भारतीय सुरक्षा नीति इस हिसाब से चलती रही तो इसी तरह की खबरें हम पढ़ते रहेंगे कि इस साल 101 आतंकी मारे जा चुके हैं लेकिन नई भर्तियों से सुरक्षा बल चिंतित है। ये सुरक्षा नीति नहीं, ये तो प्रोटेक्शन देना है एक क़ातिल, आतंकी विचारधारा को जिसे आप मानवतावाद का पाठ पढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, और वहीं, उसी के मज़हब के तमाम नेता उसे ‘साहब’ कह कर बुलाने से लेकर ‘माटी के सपूत’ और पता नहीं क्या-क्या कहते फिरते हैं।

पहले पाँच साल समझ सकता हूँ कि प्राथमिकताएँ अलग थीं क्योंकि फर्जी मानवाधिकारों की लॉबी को भी देखना था, उनके नैरेटिव को भी काटना था, आतंकियों को रोकना भी था और उन लोगों को मौका भी नहीं देना था जो एक सामाजिक अपराध को राजनीति का रंग देकर वैश्विक मंच पर राष्ट्र की छवि बर्बाद करते हैं। यहाँ तक तो समझा जा सकता है, और उन पाँच सालों तक लोगों ने इंतजार किया, और आपको फिर से वोट देकर सत्ता दी कि कुछ घावों को कैंसर बनने से पहले ही सही दवाई दे दी जाए।

आतंकियों को लगातार मारते रहना, घर में घुस कर ब्लैकमेल करे तो घर को ही आग लगा देना, पैलेट गन से पत्थरबाज़ों को तितर-बितर करना, आफ्स्पा में ढिलाई न बरतना आदि वो नीतियाँ थीं जो पहले पाँच सालों में दिखीं, और काफी हद तक आतंकी गतिविधियों में कमी आई जिसके कारण कई बार बम विस्फोट से लेकर कई आतंकी घटनाएँ आम हुआ करती थीं। इसका भी क्रेडिट इसी सरकार को जाता है।

लेकिन, इस दूसरे कार्यकाल में इन आतंकियों को हीरो बनाने से रोकना एक प्राथमिकता होनी चाहिए। जिसने निर्दोषों को क़त्ल के लिए बंदूक उठा ली, वो मानव नहीं है। जो मानव नहीं है, उसके न तो अधिकार हैं, न परिवार। ऐसे दरिंदों को न सिर्फ बहुत क्रूर सजा मिलनी चाहिए, बल्कि अगर वो मुठभेड़ में मारा जाए तो उसकी लाशों को परिवार को सौंपने की जगह अनाम जगहों पर फेंक दिया जाना चाहिए। हाँ, यह भी ध्यान रहे कि उस आतंकी की लाश का एक टुकड़ा भी किसी जीव के मुँह में न जाए, क्योंकि वो उस जीव के अधिकारों का हनन होगा। उस लाश को नष्ट कर दिया जाना चाहिए। पूरी तरह से जला देना भी एक उचित तरीके हो सकता है।

मेरे इन विचारों से कुछ लोग असहमत हो जाएँगे कि मैं लाशों को जलाने कह रहा हूँ। मुझे इसमें कोई समस्या नहीं दिखती क्योंकि आतंकियों का कोई मज़हब नहीं होता, तो उनकी लाशों को नष्ट करने के लिए जलाना, पानी में डुबाना या किसी निर्जन जगह पर फेंक देना भी एक बेहतर विकल्प है।

प्रश्न यह है कि आखिर ऐसा करना ज़रूरी क्यों है? ज़रूरी इसलिए है कि ये आतंकी रक्तबीज साबित हो रहे हैं। बुरहान वनी को मारोगे तो ज़ाकिर मूसा आ जाएगा, मूसा को मारोगे तो कोई बिल्ला आ जाएगा, बिल्ला को मारोगे तो कोई टाइगर आ जाएगा। ये अनवरत चलता रहेगा। ये अनवरत इसलिए चलता रहेगा क्योंकि इनकी लाशों को, इनकी क़ब्रों को हमारी मानवीय नीतियों ने पर्यटन स्थल और हीरो का दर्जा दे दिया है।

जब एक राष्ट्र के तौर पर हमारी नीति साफ है कि कश्मीर जो हो रहा है वो आतंकी गतिविधि है, हमारे देश की अखंडता पर प्रहार की कोशिश है, तो फिर उसी नीति का हिस्सा नए आतंकियों को पैदा करने में मदद कैसे कर रहा है? आखिर हम इस बात को कैसे नकार रहे हैं कि इनकी लड़ाई कश्मीर या कश्मीरियत की नहीं, बल्कि इस्लामी ख़िलाफ़त की है? क्या इनकी लाशों के साथ चलने वाली भीड़ में आईसिस का काला झंडा नहीं दिखता?

पिछले पाँच सालों में जबसे सेना और सशस्त्र बलों ने, जम्मू-कश्मीर पुलिस के साथ, ऑपरेशन किए हैं, और लगातार आतंकियों को ढेर किया है, तब से इन आतंकियों की योजना बदल गई है। पहले ये कश्मीरी लोगों को नहीं मारते थे। लेकिन, जब इनके पास कुछ और करने को नहीं बचा तो इन्होंने न सिर्फ कश्मीरी सैनिकों को मारा, बल्कि जम्मू-कश्मीर पुलिस के अफ़सरों को भी मारने लगे।

ज़ाहिर है कि ये लड़ाई कश्मीर के नाम तो नहीं ही लड़ी जा रही। ये लड़ाई तो सांकेतिक जीत के लिए है कि भारत के एक हिस्से पर इस्लाम का ‘अल्लाहु अकबर’ लिखा काला झंडा लहराया जा सकता है, बाकी भारत भी तैयार रहे। कश्मीर के आतंकी तो इसलिए लगातार अपनी जान दे रहे हैं ताकि इनके तथाकथित आंदोलन को बाकी लोग, जो दिल में भारत को इस्लामी ख़िलाफ़त के अंदर होते देखना चाहते हैं, एक उदाहरण के तौर पर देखें।

आप कश्मीरी हिन्दुओं को तो कश्मीर दे नहीं सके, कश्मीर को उसके अपने संविधान और दंड विधान से बाहर लाकर भारतीय संविधान और इंडियन पीनल कोड के नीचे तो ला नहीं सके, लेकिन हर वो काम किया है जिससे भारत-विरोधी भावना भड़कती रहे। जब हमारी नीति स्पष्ट है कि कश्मीर में जो हथियार के साथ आंदोलन कर रहे हैं, वो आतंकी हैं, तो फिर उनकी लाशों को परिवारों को किस हिसाब से दिया जाता है?

अब भारत की जनता ने दोबारा बहुमत देकर मोदी सरकार को कुछ वैसे वायदे पूरे करने की उम्मीद जताई है जो किन्हीं कारणों से पिछले पाँच सालों में पूरी नहीं हो सकी। 370 एक बेकार और मरी हुई चर्चा है, उसे ख़त्म करना आवश्यक है। 35A कई मायनों में राष्ट्रीयता और ‘एक भारत’ के विचार से बुनियादी तौर पर ही उल्टा है। इन्हें ख़त्म करके कश्मीरियों को मुख्यधारा में लाया जाए। अगर ऐसे कानून वहाँ रहेंगे तो आप खूब आईआईटी और आईआईएम खोल दीजिए, सेंट्रल यूनिवर्सिटी बना दीजिए, वहाँ जाएगा कौन?

आशा है कि नई सरकार, अपने इरादे स्पष्ट करते हुए, आतंकी को आतंकी कहे और उनके साथ वही व्यवहार करे जिससे वो जनमानस में कुछ भी बन जाएँ, हीरो तो न बनें। आज विरोध में खड़ी मीडिया पर से लोगों का विश्वास उठ चुका है और उनके नैरेटिव को अब कोई सीरियसली लेता नहीं। उन्हें पढ़ने और देखने वालों में से भी एक बड़ा हिस्सा उन्हें या तो बरनॉल देने जाता है, या फिर वहाँ दिल खोल कर उन्हें लताड़ता है।

इस लिहाज से भी यह मौका उचित है कि इस तरह की मीडिया की पूर्ण उपेक्षा करते हुए, मजबूत क़दम उठाए जाएँ ताकि लोकतांत्रिक भारत का लोकतंत्र सही मायनों में हर जगह स्थापित हो सके और इसकी अखंडता सुनिश्चित रहे। इसके लिए आतंकियों को आयकॉनिफाय करने की जगह, उन्हें लगातार गायब किया जाए। बस एक संख्या बता दी जाए कि इतने लोग आज मारे गए। वो लोग कौन थे, यह बात कम से कम तीन दशक तक क्लासिफाइड सूचना बन कर रहे। उनकी लाश कहाँ है, उसके साथ क्या किया जाए, ये सारी सूचना सार्वजनिक न की जाए।

इससे ‘गजवा-ए-हिंद’ का नारा लगाती, आतंकियों के जनाजों के चारों तरफ सफ़ेद टोपियों की मातमी भीड़ चिल्लाते हुए भारत-विरोधी नारे लगाने की बजाए सफ़ेद तख़्तियों पर गायब आतंकियों की फोटो के साथ किसी चौक पर कभी-कभार इकट्ठे दिखेंगे। वो दृश्य उन परिवारों का, उन समुदायों का, उन गाँवों का मनोबल तोड़ेगा जिसके लोग यह सोचते हैं कि एके सैंतालीस उठा कर किसी की हत्या कर देना नेक काम है। ये उनका मनोबल नीचे करेगा जो सोचते हैं कि आतंकियों के मानवाधिकार होते हैं, जो कॉलम लिखते हैं, जो इनके हिमायती बन कर कोरस में विलाप करते हैं।

अगर इन आतंकियों को सिर्फ एक संख्या के रूप में, साल के अंत में जारी किया जाएगा, और इनकी लाशों को ऊपर बताए तरीक़ों से निपटा जाएगा, तो रक्तबीज का रक्त ज़मीन पर नहीं गिरेगा। वो सेना के खप्पर में ही रहेगा, जिसे सेना जैसे चाहे निपट लेगी। हमारी सेना दुश्मनों की भी लाशों का सम्मान करती है, कश्मीरी तो फिर भी अपने हैं। उनके परिवारों को बता देगी आपका लड़का आतंकी था, वो अपनी तय जगह पहुँचा दिया गया है, आप अपने आप को संभालिए।