झारखंड के सरायकेला में मंगलवार (मई 28, 2019) की सुबह 4:53 पर नक्सलियों द्वारा आईडी ब्लास्ट किया गया। ताजा खबर के मुताबिक इस धमाके में 15 जवान घायल हुए हैं। इनमें सीआरपीएफ की 209 कोबरा यूनिट के जवान और झारखंड पुलिस के जवान शामिल हैं। गौरतलब है उस समय ये जवान किसी स्पेशल ऑपरेशन के लिए जा रहे थे जब इलाके में धमाके हुआ।
An Improvised Explosive Devices (IED) exploded at 4:53 am in Kuchai area of Saraikella on the troops of 209 CoBRA and Jharkhand police who were out on special operations. 8 CoBRA personnel & 3 Jharkhand police personnel injured. #Jharkhand
घायल जवानों को आज सुबह 6:50 पर राँची एयरलिफ्ट किया गया है। कुछ जवानों की स्थिति गंभीर बताई जा रही है। पूरे इलाके में घेराबंदी कर दी गई है। तलाशी अभियान जारी है। हालाँकि, अभी इसकी आधिकारिक रूप से पुष्टि नहीं हुई है लेकिन कहा जा रहा है कि धमाके के बाद नक्सलियों ने गोलीबारी भी की है। झारखंड पुलिस का कहना है कि इस घटना के लिए जो भी कोई जिम्मेदार होगा उसे बख्शा नहीं जाएगा।
8 anti- #Maoists CoBRA commandos and 3 JAP jawan injured during the operation in Saraikela Dist of #Jharkhand. Nambala Keshav Rao aka Basavraju, the supreme commander of the red rebel reportedly sighted In the dist shearing border with #Bengal#Odisha. pic.twitter.com/vsVl4SrMVU
बता दें कि सरायकेला को नक्सलियों का अड्डा माना जाता है। यहाँ हमेशा कोई न कोई ऐसी घटना सामने आती ही रहती है। इससे पहले 3 मई को नक्सलियों द्वारा झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के सरायकेला जिले में स्थित चुनाव कार्यालय को बम से उड़ा दिया गया था। हालांकि उस समय कोई हताहत नहीं हुआ था। इसके बाद 20 मई को सरायकेला जिले में एक नक्सली हमले में 3 पुलिसकर्मी घायल भी हो गए थे।
नक्सलियों द्वारा अंजाम दी गई घटनाओं को देखें तो से इससे पहले 1 मई को गढ़चिढौली में ब्लास्ट किया गया था, जिसमें 15 सुरक्षाकर्मी वीरगति को प्राप्त हुए थे। यह घटना तब हुई थी जब गढ़चिरौली के घने जंगलों के बीच से सी 60 कमांडो यूनिट का दस्ता गुजर रहा था। नक्सलियों ने जिस तरह से इस हमले को अंजाम दिया था, उससे जाहिर हो गया था कि इसके लिए लंबी प्लानिंग की गई होगी। पहले 1 मई को महाराष्ट्र दिवस पर 36 गाड़ियों को जलाकर नक्सलियों ने सुरक्षा बलों को अपनी ओर आने का एक तरह से लालच दिया था। और फिर जब घटना की सूचना मिलते ही क्विक एक्शन फोर्स घटनास्थल की ओर रवाना हुई तो इसी रूट पर नक्सली घात लगा कर बैठे थे। जैसे ही जंबुलखेड़ा गाँव से सी 60 कमांडो की टीम गुजर रही थी, नक्सलियों ने IED ब्लास्ट कर उनकी गाड़ी को निशाना बना लिया।
#UPDATE Exchange of fire underway between Police and Naxals at the site of blast in Gadchiroli, Maharashtra. https://t.co/KB3rT3Gdna
लोकसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस को राजस्थान में बुरी हार मिली और पिछली बार की तरह ही राज्य की सभी 25 सीटों पर भाजपा ने बड़ी जीत दर्ज की। सबसे बड़ी बात यह कि कुछ ही महीनों पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार हुई थी और अशोक गहलोत राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। हाल ही में राहुल गाँधी ने कहा भी था कि गहलोत जैसे नेताओं ने ‘पुत्र-प्रेम’ से पार्टी को नुकसान पहुँचाया। अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत ने जोधपुर से चुनाव लड़ा, जहाँ उन्हें बुरी हार का सामना करना पड़ा। ख़बरें आईं हैं कि राहुल गाँधी ने अपॉइंटमेंट देकर भी मुख्यमंत्री गहलोत से मिलने से मना कर दिया है।
रविवार को राज्य के कृषि मंत्री लालचंद कटारिया ने इस्तीफा दे दिया। वह अपना फोन बंद कर के नैनीताल रवाना हो गए, जिसके कारण उनके इस्तीफे पर संशय बना हुआ था। वहाँ उनके मंदिरों में दर्शन करने की ख़बरें आईं। मंत्री कटारिया की पत्नी गायत्री देवी ने दैनिक भास्कर से फोन पर बातचीत करते हुए अपने पति द्वारा इस्तीफा देने की बात की पुष्टि की। गायत्री देवी ने बताया कि कटारिया फिलहाल दिल्ली में हैं और वह कॉन्ग्रेस की हार के बाद लगातार दुःखी चल रहे थे। गायत्री देवी ने बताया कि इस्तीफा के बाद लोगों के फोन कॉल से बचने के लिए उन्होंने अपना फोन स्विच ऑफ रखा है।
राज्य के दो अन्य कैबिनेट मंत्रियों, सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना व खाद्य मंत्री रमेश मीणा ने कॉन्ग्रेस की हार की समीक्षा करने की सलाह दी है। जयपुर से कॉन्ग्रेस की लोकसभा प्रत्याशी ज्योति खंडेलवाल ने पार्टी की मीडिया प्रभारी अर्चना शर्मा की शिकायत पार्टी अध्यक्ष राहुल गाँधी से की है। दो कैबिनेट मंत्रियों द्वारा सरकार व संगठन में आत्ममंथन की सलाह और एक मंत्री के इस्तीफे के बाद राजस्थान कॉन्ग्रेस की कलह सतह पर आ गई है। मंत्री उदय लाल ने कहा कि उन्होंने पहले ही सीएम गहलोत को अपने बेटे को जोधपुर से न लड़ाने की सलाह दी थी। उदय लाल ने कहा कि अगर वैभव जोधपुर की जगह जालौर से लड़ते तो स्थिति अलग हो सकती थी।
आंजना ने कहा, “मैंने 2014 में जालौर से चुनाव लड़ा था और मुझे वहाँ के राजनीतिक, सामाजिक और जातिगत समीकरणों के बारे में पता है। उन स्थितियों में वैभव गहलोत एक अच्छे उम्मीदवार साबित होते।” हालाँकि, सवाल पर आंजना ने कहा कि उन्हें बड़ी मुश्किल से मंत्रीपद मिला है। मंत्री रमेश मीणा ने कहा कि इस हार का मंथन होना चाहिए और इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। ताज़ा लोकसभा चुनाव में राज्य की 200 में से 185 विधानसभा सीटों पर भाजपा आगे रही। ख़ुद अशोक गहलोत के बेटे को उनके ही विधानसभा क्षेत्र सरदारपुर में भाजपा उम्मीदवार से 18,000 कम वोट मिले। उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की सीट टोंक में कॉन्ग्रेस उम्मीदवार 22,000 मतों से पीछे रहे।
दिल्ली पहुँचे अशोक गहलोत ने कहा कि राहुल सही बोलते हैं और वो जो कुछ बोल रहे हैं, ऐसा कहने का उनका हक़ है। राहुल द्वारा मिलने से इनकार किए जाने के बाद गहलोत ने कॉन्ग्रेस नेता वेणुगोपाल से मुलाक़ात की। गहलोत के साथ सचिन पायलट और प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे भी राहुल से मिलने वाले थे लेकिन अब ये बैठक कब होगी, इस पर संशय बना हुआ है।
लोकसभा में 17 नवंबर, 1972 को एक संविधान संशोधन विधेयक पर चर्चा हो रही थी। उस दिन अंडमान और निकोबार द्वीप का नाम बदलकर ‘शहीद और स्वराज द्वीप’ किया जाना प्रस्तावित था। चर्चा के दौरान कॉन्ग्रेस (आई) के सांसद राम गोपाल रेड्डी ने सुभाष चन्द्र बोस, श्री अरविन्द और विनायक दामोदर सावरकर को ‘आतंकवादी’ कहकर संबोधित किया। जब इसका विरोध हुआ तो रेड्डी ने कहा कि मुझे यह कहने में कोई आपत्ति नहीं है। प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने शर्मसार करने वाले इस शब्द पर कोई प्रतिक्रिया तक नहीं दी। ऐसा लगता है कि क्रांतिकारियों के अपमान को उन्होंने अपनी मौन स्वीकृति दी थी।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को ‘आतंकवादी’ बताने पर कॉन्ग्रेस की आलोचना होनी तय थी। अपने बचाव में सरकार ने 7 मार्च, 1973 को सावरकर को स्वतंत्रता सेनानी घोषित करने का निर्णय लिया। यह ब्रिटिश सरकार से भारत की आज़ादी का 26वां और सावरकर के निधन का 7वां साल था। ऐसा भी नहीं है कि यह पहला और आखिरी मौका था जब सावरकर सहित अन्य सेनानियों को बेइज्जत किया गया हो। साल 1957 में राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने एक विधेयक पेश किया था, जिसमें सावरकर के साथ वीरेन्द्र कुमार घोष (श्री अरविन्द के भाई), डॉ. भूपेंद्र नाथ दत्ता (स्वामी विवेकानंद के भाई) के बलिदान को मान्यता दी जानी थी। चर्चा के आखिर में मतदान किया गया, चूँकि कॉन्ग्रेस बहुमत में थी तो विधेयक भी पारित न हो सका।
अगर सिर्फ सावरकर का अध्ययन करें तो पता चलता है कि उनका अनादर हर मौके पर किया गया। कई दफा तो उनके साथ जबरन अमानवीय सलूक किये गए। जैसे 1950 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नई दिल्ली के दौरे पर थे। सावरकर उस समय 1,400 किलोमीटर दूर मुंबई में थे। हालाँकि वे नेहरू-लियाकत पैक्ट का शांतिपूर्ण विरोध जरुर कर रहे थे, जो उनका लोकतांत्रिक अधिकार था। लियाकत अली खान की यात्रा को ध्यान में रखते हुए अचानक सावरकर को नज़रबंद कर दिया गया था।
भारत सरकार द्वारा इस कदर मनमर्जी वाला रवैया पूर्णतः अलोकतांत्रिक था। असल में सावरकर की राजनैतिक सूझबूझ, विचारों के प्रति सटीक नजरिया और लेखनी जनता में लोकप्रिय थी। इसलिए एक ज़माने में ब्रिटिश सरकार उन्हें जनता के बीच बोलने से रोकती थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कॉन्ग्रेस सरकार अंग्रेजों के समान ही समान बर्ताव कर रही थी। सावरकर का कद इतना विशाल था कि जिन्ना भी उन्हें असाधारण व्यक्ति मानते थे। यह 1941 में मुस्लिम लीग के मद्रास अधिवेशन की बात है। जिन्ना ने अपने उस अध्यक्षीय भाषण में सावरकर को चार बार याद किया। वैसे जिन्ना का स्मरण किए जाने का कोई विशेष प्रयोजन नहीं था, बस यह किस्सा स्पष्ट करता है कि सावरकर अपने विरोधियों में भी व्यापक रूप से असरदार थे।
उसी शहर में उसी साल नेशनल लिबरल फेडरेशन ऑफ इंडिया का 41वां अधिवेशन बुलाया गया था। आर.पी. परांजपे ने हिन्दू महासभा के संबंध में एक प्रस्ताव पेश किया। सावरकर की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा, “यहाँ मौजूद सभी उदारवादियों को विभिन्न सामाजिक प्रश्नों पर सावरकर के रुख का पूरी तरह से और अधिकतम समर्थन करना चाहिए।” परांजपे पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज के प्रिंसिपल रह चुके थे। उस समय उन्होंने ही सावरकर को उनके राष्ट्रवादी विचारों के चलते कॉलेज से निष्कासित किया था। अब एक समय ऐसा भी आया जब वे सावरकर की सराहना करने से अपने आप को रोक नहीं पाए।
सावरकर में इतनी कुशलता और क्षमताएँ होने के बावजूद उन्हें अपने जीवन में कोई ख़ास सम्मान नहीं मिला। उन्हें पहली और आखिरी प्रतिष्ठा फरवरी 2003 में मिली। एनडीए सरकार ने सावरकर की तस्वीर को संसद भवन में लगाने का निर्णय लिया और उसका लोकार्पण भारत के राष्ट्रपति ने किया। हालाँकि यह निर्णय इतना भी आसान नहीं था। इससे दो साल पहले वाजपेयी सरकार पोर्ट ब्लयेर एअरपोर्ट को सावरकर के नाम पर बदलने का प्रस्ताव लेकर आई। इस कदम का तीव्र विरोध कम्युनिस्ट दलों की तरफ से आया। वैसे 21वीं सदी के कम्युनिस्ट भूल गए कि पिछली सदी में सावरकर के समर्थकों में उन्हीं के सर्वोच्च नेता एच एन मुखर्जी शामिल थे।
सावरकर के देहांत के बाद एच एन मुखर्जी ही वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सरकार को याद दिलाया कि सावरकर पर शोक संवेदनाएँ प्रकट करनी चाहिए। कॉन्ग्रेस के कद्दावर नेता रहे और तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष हुकुम सिंह ने इस माँग को सिरे से ख़ारिज कर दिया। इससे पहले सावरकर जब बीमार हुए तो सरकार से माँग की गई कि उनके इलाज के लिए उन्हें भत्ता दिया जाना चाहिए। एक खानापूर्ति के तहत उन्हें मात्र 1,000 रुपए की सरकारी सहायता उपलब्ध कराई गई थी।
सावरकर का तिरस्कार यहाँ भी नहीं थमा। उनकी मृत्यु के तुरंत बाद कॉन्ग्रेस सरकार ने भरोसा दिलाया कि उन पर स्मरणीय डाक टिकट जारी किया जायेगा। साल बीत जाने के बाद भी ऐसा नहीं किया गया। संसद में जब इस पर जवाब माँगा गया तो सरकार ने बेशर्मी से कह दिया कि पिछले साल से अब तक 8 डाक टिकट जारी किए गए हैं। सावरकर पर टिकट जारी न होने पर मंत्री आई के गुजराल ने बहाना कर दिया कि टिकट में लगने वाला कागज उपलब्ध नहीं है। आख़िरकार तीन साल के लंबे इंतज़ार के बाद 28 मई, 1970 को उन पर साधारण डाक टिकट जारी कर दिया गया।
एनडीए सरकार में पेट्रोलियम मंत्री राम नाइक ने सेल्युलर जेल में एक स्वतंत्रता ज्योति लगाए जाने का विचार पेश किया। इसमें सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, मदनलाल धींगरा सहित वीर सावरकर के विचारों को भी वहाँ लगाया जाना था। तभी दिल्ली की सत्ता में परिवर्तन हो गया और यूपीए ने अपनी सरकार बनाई। विवादास्पद नेता मणिशंकर अय्यर पेट्रोलियम मंत्री बनाए गए। मंत्री बनते ही उन्होंने सावरकार के उद्धरण को वहाँ से हटवा दिया। विरोध न हो इसके लिए अनूठा तरीका निकला गया। सावरकर के स्थान पर महात्मा गाँधी को शामिल कर दिया गया।
जबकि सावरकर और महात्मा गाँधी के विचारों को एक साथ वहाँ लगाया जा सकता था। इससे भी अधिक दुखद यह था कि अपनी इस हरकत पर सदन में अय्यर ने कभी एक शब्द नहीं बोला। पूरी यूपीए सरकार उनके बचाव में पीछे खड़ी हो गयी। उनका पक्ष लगातार प्रणब मुखर्जी लेते रहे। इस सरकार ने सत्ता के अपने अंतिम दिनों में भी सावरकर के साथ अन्याय किया। फ़्रांस के मर्सोलिस शहर के मेयर ने वहाँ सावरकर का स्मारक बनाए जाने का प्रस्ताव बनाया। इसी शहर के बंदरगाह पर सावरकर ने भूमध्यसागर में ऐतिहासिक छलांग लगाई थी। इस सन्दर्भ में मेयर ने तत्कालीन सरकार को एक पत्र लिखकर अनुमति भी माँगी। दुर्भाग्य से सरकार ने इस पर चुप्पी साध ली और कोई जवाब नहीं दिया।
यह एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी की दास्ताँ है, जिसे उसका वास्तविक हक कभी नहीं मिला। वर्तमान कॉन्ग्रेस को शायद जानकारी नहीं है। साल 1923-24 में कॉन्ग्रेस अधिवेशन की महात्मा गाँधी अध्यक्षता कर रहे थे, तो सावरकर के सम्मान में कविता पाठ किया गया था। डॉ अम्बेदकर के जीवनी लेखक धनजंय कीर ने सावरकर के जीवन पर पुस्तक लिखी है। वे लिखते हैं, “समाज को बेहतर बनाने में दो तरह के महान व्यक्तियों का योगदान होता है। पहले जो समाज की समृद्धि का चिंतन करते है, उनमें गाँधी थे। जबकि दूसरे प्रकार के लोग समाज में अनुशासन के जरिए उन्नति लाते हैं, जिनका प्रतिनिधित्व सावरकर करते हैं। जन समुदाय को प्रेरित करने की क्षमता, एक राजनेता की अंतर्दृष्टि और एक राजनीतिक भविष्यवक्ता की दूरदर्शिता सावरकर के पास थी।”
भारतीय वायुसेना की तीन महिलाओं ने एमआई-17 हेलिकॉप्टर उड़ा कर इतिहास रचा। फ्लाइट लेफ्टिनेंट पारुल भारद्वाज (पायलट), फ्लाइंग ऑफिसर अमन निधि (सह-पायलट) और फ्लाइट लेफ्टिनेंट हिना जायसवाल (फ्लाइट इंजीनियर) दक्षिण पश्चिमी वायु कमान से हेलिकॉप्टर उड़ाने वाली पहली ऑल-वीमेन टीम की सदस्य बन गईं। इन तीनों ने भारतीय वायुसेना के इतिहास में एक नई उपलब्धि हासिल की। इन में से दो महिलाएँ पंजाब की हैं। एमआई-17 V5 हेलीकॉप्टर से इन महिलाओं की उड़ान युद्ध प्रशिक्षण के तहत की गई और उन्होंने दक्षिण पश्चिमी वायु कमान में प्रतिबंधित क्षेत्र से आगे हेलीकॉप्टर उतारने में सफलता हासिल की।
झारखण्ड की बिटिया फ्लाइंग ऑफिसर अमन निधि को इस उपलब्धि पर ढेर सारी बधाई। Mi-17 उड़ाने वाली देश की पहली महिला क्रू ने आज इतिहास रच दिया। आप सभी को शुभकामनाएं। https://t.co/2z7kumLFzg
बता दें कि यह देश की पहली ऑल-वुमन क्रू है। एमआई-17 V5 एक मध्यम लिफ्ट हेलिकॉप्टर है। फ्लाइट लेफ्टिनेंट भारद्वाज पंजाब के मुकेरियां से हैं और साथ ही वे एमआई 17 V5 उड़ाने वाली पहिला महिला पायलट भी हैं। फ्लाइंग ऑफिसर निधि राँची से हैं और वे झारखंड से भारतीय वायु सेना की पहली महिला पायलट हैं। चंडीगढ़ की फ्लाइट लेफ्टिनेंट जायसवाल भारतीय वायु सेना की पहली महिला फ्लाइट इंजीनियर हैं।
इन तीनों ने वायु सेना स्टेशन हाकिमपेठ में ‘हेलिकॉप्टर ट्रेनिंग स्कूल’ में अपने फ्लाइंग ट्रेनिंग शुरू की। इसके बाद वायु सेना स्टेशन येलहंका में उच्च स्तर की ट्रेनिंग ली। यह भारतीय वायुसेना में महिला अधिकारियों की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने ट्वीट करते हुए कहा, “झारखण्ड की बिटिया फ्लाइंग ऑफिसर अमन निधि को इस उपलब्धि पर ढेर सारी बधाई। MI-17 उड़ाने वाली देश की पहली महिला क्रू ने आज इतिहास रच दिया। आप सभी को शुभकामनाएँ।“
चुनाव हो गया, जीत हो गई, विश्लेषण हो गए। पार्टियों के विश्लेषण, जीत के फ़ैक्टर (जो आम तौर पर परिणाम के बाद सबको समझ में आ जाते हैं!), महत्वपूर्ण सीटों पर चर्चा, किसकी योजना कहाँ सफल रही आदि हर बात कर दी गई। उसके बाद की कुछ अपेक्षित घटनाएँ जारी हैं जिसमें राहुल का इस्तीफा देना, ममता का इस्तीफा देना, किसी का इस्तीफा लेने वाला न मिलना… ये सब भी हो रहा है। बस बिहार में निर्लज्ज तेजस्वी यादव बपौती संपत्ति से प्रतीकात्मक इस्तीफा भी नहीं देना चाह रहा!
खैर, इन्हीं सब के बीच मेरे एक सहयोगी ने एक अलग विषय की तरफ ध्यान आकर्षित कराया कि मीडिया का गिरोह और पत्रकारिता का समुदाय विशेष जो चुनावों से पहले, चुनावों के दौरान, और चुनावों के बाद परिणाम तक जिस तरह के लेख लिख रहा था, क्यों न उसको देखा जाए। चूँकि ये सारे चोर चचेरे-मौसेरे भाई-बहन ही हैं, जो अपनी विलक्षण कल्पनाशीलता और गमले छूकर बिहार के गेहूँ की फ़सल के दानों का स्वास्थ्य बता देते हैं, तो सिर्फ एक प्रोपेगेंडा पोर्टल की बात करूँगा और आप वही तर्क बाक़ियों पर लगा सकते हैं।
जिस तरह के हेडलाइन और लेख प्रोपेगेंडा पोर्टल ‘द वायर’ पर पिछले कुछ महीनों में लिखे गए हैं, और जिस हिसाब से शत-प्रतिशत गलत साबित हुए हैं, उन्हें राहुल गाँधी से सीखते हुए एडिटर्स गिल्ड वाले गुप्ता जी के लौंडे शेखर गुप्ता को राजनैतिक पत्रकारिता से इस्तीफा देने की पेशकश कर देनी चाहिए जिसे गुप्ता जी, अपने आकाओं का अनुकरण करते हुए, नकार दें।
लेकिन सिद्धार्थ वरदराजन को ये पता नहीं होगा क्या? जिसके नाम का आधा हिस्सा वरदराज है, वो एक बात तो बिलकुल सही तरीके से जानता होगा कि ‘रसरी आवत जात ते सिल पर परत निशान’। वो ये बख़ूबी जानता होगा कि ये सारे विश्लेषण जो छप रहे हैं, वो गलत हैं, लेकिन विचारधारा की बुझती लौ को प्रज्ज्वलित भी तो रखना है! इसीलिए, चुनावों को प्रभावित करने के लिए एक से एक झूठ लगातार लिखे गए क्योंकि रस्सी के निशान छोड़ने के लिए फर्जीवाड़ा करते रहना बहुत ज़रूरी है।
चूँकि नाम का पहला हिस्सा सिद्धार्थ है तो ‘जड़मति होत सुजान’ से पहले के ही चरण में रह गए। ज्ञान हो जाता तो नाम शायद गौतम होता, लेकिन वो बात फिर कभी क्योंकि वो वैसे भी सिड हैं, सिद्धार्थ तो काफी पहले ही पीछे रह गया। जब ज्ञान अधकचरा हो, मंशा गलत हो, पत्रकारिता की जगह प्रोपेगेंडा करना हो, तो वही होता है जो इस पूरे चुनावी मौसम में ‘द वायर’ के साथ हुआ- मक़सद में पूर्ण असफलता।
चुनाव आयोग की मजबूरी है कि वो ओपिनियन पोल, एग्जिट पोल आदि चुनावों के दौरान दिखाने पर प्रतिबंध लगा देते हैं, लेकिन वो सबसे बड़े प्रोपेगेंडा मशीनरी को, मीडिया को, सत्ता के समर्थन या विरोध में सामग्री बनाने से नहीं रोक सकते। यही कारण है कि राहुल गाँधी की जमीनी हक़ीक़त यह है कि अमेठी से वो उखड़ गए लेकिन मीडिया के एक हिस्से ने उन्हें भगवान गणेश जैसे बुद्धिमान बताने में कसर नहीं छोड़ी। प्रधानमंत्री मोदी ने भी लगातार कई साक्षात्कार दिए जिसमें अपने सरकार की योजनाओं की बात की।
चूँकि राहुल इंटरव्यू देने में ‘दे दे प्यार दे’ से लेकर ‘नफ़रत करने वालों के सीने में प्यार भर दूँ’ जैसे गीतों के भाव में उलझे रह गए तो, मीडिया गिरोह के पत्रकारों ने सोचा कि इस महामूर्ख की दो उँगलियों से आँख फोड़ने की धमकी को आत्मा और परमात्मा वाले दर्शन के स्तर तक उठा दिया जाए। वही हुआ कि ‘चौकीदार चोर है’ का नारा लेकर घूमने राहुल गाँधी को गरिमा की मूर्ति बताया जाने लगा। लेकिन राहुल का दुर्भाग्य कि न तो वो बारिश में मंदिर में दिया जलाने जाते हैं, न ही मंदिर के पास पुस्तकालय है जिस पर हाथ फेर कर वो मोदी के ‘अस्ति कश्चिद् वाग्विशेषः’ सुन कर तीन ग्रंथों की रचना कर दें।
पत्रकारिता के समुदाय विशेष ने वैचारिक स्तर पर खूब क्रांतिकारी पत्रकारिता की। उन्होंने यह माहौल बनाने की कोशिश की कि भाजपा हर जगह हार जाएगी। लिखा गया कि बंगाल में भाजपा की जितनी औक़ात नहीं है, उससे ज्यादा का लक्ष्य रखा है। लिखा गया कि उत्तर प्रदेश में चालीस सीटें जानीं तय हैं। लिखा गया कि भाजपा हिन्दीभाषी राज्यों में 75 सीट गँवा सकती है। लिखा गया कि झारखंड में भाजपा कुछ सीटें हार जाएगी। दूसरे लेख में बताया गया कि कई सांसद विद्रोह कर रहे हैं और राज्य में सत्ताविरोधी लहर है। परिणाम आया तो भाजपा ने 12 की संख्या बचा ली।
इसके पीछे के तर्क आपको जानने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि कई बार पत्रकारिता में हेडलाइन लिखने के बाद लेख लिखे जाते हैं। बंगाल की बात करें तो बिना बंगाल गए ही, ‘द वायर’ का पत्रकार यह सोच लेगा कि वहाँ तो पंचायत चुनावों में भाजपा को करारी शिकस्त मिली थी। वो यह भूल जाएगा कि वहाँ बैलट से चुनाव हुए थे, और पूरा चुनाव धाँधली और हिंसा के बल पर संपन्न हुआ जहाँ एक तिहाई सीटों पर तृणमूल निर्विरोध जीती। जी, आज के समय में निर्विरोध जीती जहाँ छः लोगों की क्लास में तीन आदमी क्लास मॉनीटर बनना चाहता है।
बंगाल में ही विद्यासागर की मूर्ति तोड़ने के विवाद में वायर ने अपने निजी वरदराजन उच्च न्यायालय का प्रयोग करते हुए पता कर लिया कि भाजपा वालों ने ही मूर्ति तोड़ी और उनको इसका ख़ामियाज़ा चुनावों में भुगतना पड़ेगा। ये बात और है कि आज का वोटर ऐसी घटनाओं पर हमेशा दूसरा दृष्टिकोण लेकर चलता है कि केजरीवाल ने खुद ही थप्पड़ मरवाए होंगे, आतिशी ने ही पैंफलेट छपवाए होंगे, तृणमूल ने ही मूर्ति तोड़ी होगी ताकि लोगों का सेंटिमेंट उनकी तरफ हो जाए। लेकिन ऐसा होता नहीं, और लोग अपना ज़मानत तक नहीं बचा पाते।
आखिर वायर का शॉर्ट सर्किट पत्रकार फिर ऐसे क्यों लिखेगा? इसके पीछे कारण है। कारण यह है कि ये ग्राउंड रियालिटी ‘रिपोर्ट’ करने से कहीं ज्यादा ‘क्रिएट’ करने की कोशिश है। ये बंगाल के वोटरों को डराने की कोशिश है कि भाजपा का आना मुश्किल है, तुम घरों में रहो या तृणमूल को वोट दो। वही हाल उत्तर प्रदेश को लेकर हुआ कि चालीस सीटें जाएँगी। क्यों! क्योंकि सीधा गणित है सपा और बसपा का ब्ला-ब्ला-ब्ला! इस फ़ैक्टर को कौन काउंट करेगा कि जिस मायावती ने अपनी पहचान ही गेस्ट हाउस कांड को लेकर बनाई, और खुद को दलितों का मसीहा बताया, वही दलित कार्यकर्ता उसके निजी पॉलिटिक्स के कारण अपनी अस्मिता से समझौता कर लेगा?
वायर के पत्रकारों ने ये सब करने की ज़रूरत नहीं समझी। चूँकि तर्क और वास्तविकता से इनका कोई वास्ता है नहीं इसलिए वायर के पिक्सल को काला करते हुए लिख दिया गया कि कन्हैया बेगूसराय में आगे है। कारण बताया गया कि बेगूसराय को सिर्फ जाति और मज़हब के चश्मे से नहीं देखना चाहिए, वहाँ विचारधारा भी एक महत्वपूर्ण फ़ैक्टर रहा है। इस पत्रकार ने तो बाक़ायदा ‘ग्राउंड रियालिटी’ नामक मुहावरे का प्रयोग भी किया है।
जबकि, जमीनी हक़ीक़त से जितना दूर यह वाक्य है, उतनी ही दूरी से कन्हैया गिरिराज से हारा। बेगूसराय में जाति और मज़हब से कहीं ज़्यादा पार्टी की बात चलती है, लेकिन सिर्फ भाजपा के मामले में। ये मैंने दो महीने पहले लिखा था कि बेगूसराय का भूमिहार दूसरे मजहब के आदमी को सांसद बनाता है बशर्ते वो भाजपा का हो। वामपंथियों को लगातार बेगूसराय में नकारा जाता रहा है और कई चुनावों से वो विधानसभा में भी नहीं पहुँच पा रहे। लेकिन वायर का क्या है, वो तो वही लिखेगा जो उसे लिखना है। रिपोर्ट में ‘ग्राउंड रियालिटी’ लिख दो, वो रिपोर्ट तार्किक हो जाती है!
पहले फर्जी विश्लेषण किया गया कि हिन्दीभाषी राज्यों में भारी नुकसान होगा, फिर उसको आधार बना कर कहा गया कि बंगाल इस नुकसान की भरपाई नहीं करेगा। गणना का आधार 2014 का चुनाव था। ये कोई मूर्ख पत्रकार ही कर सकता है कि बीच में हुए विधानसभा चुनावों से लेकर, पंचायत चुनावों तक, बंगाल के दंगों ये त्रस्त हिंदुओं की स्थिति से रामनवमी, दुर्गा विसर्जन में सरकार की नौटंकी तक, वहाँ की वस्तुस्थिति को नकार दिया जाए। पाँच साल में बहुत कुछ बदल जाता है। एक एयर स्ट्राइक से कोई नेता पूरे देश में अपने पक्ष में लाखों वोटरों को कर लेता है। और वायर का पत्रकार 2014 के आधार पर 2019 के चुनावों का विश्लेषण करता है!
वैसे ही उत्तर प्रदेश का ‘अंडरकरेंट’ नापने वाले वायर ने भाजपा के विरोध में एक प्रचंड भूकंप की बात कही कि लोगों में उदासी है, क्रोध है और निराशा है। जब भी कोई पत्रकार ऐसे शब्दों का प्रयोग करता है इसका सीधा मतलब है कि उसने तथ्यों से दुश्मनी पाल ली है और भावुक होकर, या धूर्तता से एक विचार को तथ्य बना कर रख रहा है। यहाँ इसी पत्रकार ने कह दिया कि भाजपा 15 से 25 सीटों में सिमट जाएगी। आप यह देखिए कि इनको अंदाज़ा लगाने में भी प्रतिशत का ख़्याल नहीं रहता। 80 सीटों में दस सीटों का रेंज लेकर ये अंदाज़ा लगाते हैं, फिर तो 542 में ये 90 सीटों का रेंज बना लेते कि भाजपा को 120-210 सीटें मिल सकती हैं! ऐसे ही लोग अपने पेशे में असफल होने पर सड़क किनारे नकली पत्थरों वाली अँगूठियाँ बेचते पाए जाते हैं और वो आपको देख कर बताते हैं कि एक बार आपके जीवन में संकट तो आया था।
उत्तर प्रदेश पर तो इन्होंने इतने लेख लिखे हैं, और इतने गलत हुए हैं मानो इनको टार्गेट मिला हो कि यूपी पर लगातार छापते रहो, जो मन में आए। लिखा गया है कि सवर्णों के भीतर उनके नेताओं को टिकट न मिलने के कारण क्षोभ है जो कि भाजपा के लिए मारक संकट पैदा कर सकती है। जानकार पत्रकार ने यहाँ तक लिख दिया कि किसी ने इस बात पर गौर नहीं किया जिस पर उसने किया। जबकि, समझदार व्यक्ति को समझना चाहिए कि कोई तो कारण रहा होगा कि किसी ने गौर नहीं किया!
बिहार के बारे में भी ये बुरी तरह से गलत हुए जहाँ भाजपा गठबंधन ने 40 में से 39 सीटों पर जीत पाई। इनके हिसाब से पिछले किसी भी चुनाव के हिसाब से भाजपा-जदयू-लोजपा गठबंधन के लिए जीत हासिल करना आसान नहीं होना था। महाराष्ट्र में भी इन्होंने शिवसेना-भाजपा गठबंधन पर सवाल उठाए और कॉन्ग्रेस को वापस आता दिखाया।
एक लेख में, जिस संगठन और कार्यकर्ताओं की हर बूथ तक की पहुँच की वजह से नवंबर 2018 से भाजपा के केन्द्रीय मंत्री और अध्यक्ष बार-बार भाजपा द्वारा अपने बूते पर 300 की संख्या पार करने की बात कर रहे थे, उस संगठन और भाजपा के कार्यकर्ताओं को ताल-मेल पर ‘द वायर’ के पत्रकार को संदेह होने लगा। वो लिखने लगे कि इनके बीच सब-कुछ ठीक नहीं है और इस चुनाव में वो सब खुल कर बाहर आने लगा है। ऐसा क्या देख लिया पत्रकार ने, यह तो नहीं पता लेकिन इनके फेफड़ों में कौन-सा पदार्थ है इसका मैं थोड़ा-बहुत अंदाज़ा लगा पा रहा हूँ। बेचारे दुःखी है कि संघ चाहता है कि भारत एक तानाशाही हिन्दू राष्ट्र बन जाए, लेकिन मोदी ऐसा होने नहीं देगा। ये तानाशाही हिन्दू राष्ट्र वाली बात मोहन भागवत ने इन्हें स्वयं फोन करके बताया होगा, ऐसा माना जा सकता है।
जैसे-जैसे चुनाव बढ़ते गए, इनका प्रोपेगेंडा फैलता गया। बीच में ‘अगर भाजपा को 220 सीटें मिलीं तो नितिन गडकरी बन सकते हैं प्रधानमंत्री’ से लेकर तमाम तरह की बातें की गईं। ये भाजपा को भीतर से तोड़ने की एक टुटपुँजिया कोशिश थी। इसके बाद ‘द वायर’ ने बताया कि कैसे विरोधी दल कर्नाटक की तरह राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा को सत्ता से बाहर रखने की कोशि करेंगे। यहाँ पत्रकार आशावादी दिखा जबकि ऐसा होने की आज़ादी उसे उसका पेशा देता नहीं। आप किस तरह के पत्रकार हैं अगर आप कर्नाटक की अभी की हालत देख कर उसी तरह की राजनीति राष्ट्रीय स्तर पर देखना चाहते हैं?
फिर ज्ञान की बातें भी लिखी गईं कि मोदी हर वो चीज है जो आपके माँ-बाप ने कहा होगा कि वैसा मत बनो। ये वाहियात बातें उसी स्तर का लीचड़पना है जिस स्तर में आपको राहुल गाँधी में भारत का भविष्य दिखता है और वो गरिमामय हो जाता है। ये वैचारिक स्तम्भ नहीं है, ये कुंठा है। ये घृणा है जिसे वायर का पत्रकार खुन्नस में लिख रहा है और फिर परिवार और वैल्यू सिस्टम को ले आता है। मेरी सलाह है कि ये पत्रकार अपना माता-पिता बदल ले, इसके जीवन में अच्छे दिन ज़रूर आएँगे।
हर तर्क गलत, हर भाव गलत, भावना और मंशा गलत, हर लेख गलत। ये है आपके ऑल्टरनेटिव जर्नलिज़्म के प्रकाश के तार। लेकिन ये रुकेंगे नहीं। ये इसी तरह के ‘हिट जॉब’ वाले विश्लेषण करते रहेंगे जिसका मक़सद बाउंड्री लाइन पर बैठे वोटरों को प्रभावित करना है। इनके वश में सब कुछ है। ये हर क्षेत्र में जा सकते हैं, ग्राउंड रिपोर्ट कर सकते हैं, बड़े सैम्पल साइज के साथ सर्वेक्षण कर सकते हैं, लेकिन करते नहीं।
वो इसलिए कि प्रोपेगेंडा लिखने के लिए बाहर जाना ज़रूरी नहीं है। समझदार पत्रकार पहले आँकड़े, तथ्य, विचार और सूचनाएँ इकट्ठा करता है, तब हेडलाइन बनाता है, ‘द वायर’ के कर्मचारी पहले कमोड पर बैठकर आइडिया सोचते हैं, और उसके हिसाब से तथ्य बनाते हैं, तर्क गढ़ते हैं, सूचनाएँ रचते हैं और विचार लिखते हैं।
सिद्धार्थ वरदराजन की नौटंकी चलती रहेगी क्योंकि पत्रकारिता के नाम पर यही हो ही रहा है। इनका गैंग एक वेल ऑयल्ड मशीन की तरह, बिना किसी अवरोध के लगातार प्रोपेगेंडा छापता रहेगा। इनको पता है कि सूचनाओं का एक नाम के साथ बाहर जाना ज़रूरी है, न कि उनका सत्य होना। सत्य और असत्य तो दृष्टिकोण भर हैं जो वायर के पत्रकार ऑन डिमांड मैनुफ़ैक्चर करते हैं। और यही लोग कहते हैं कि भारत मैंनुफैक्चरिंग सेक्टर में कुछ नहीं कर रहा!
कॉन्ग्रेस इस समय बड़े ही विचित्र और हास्यास्पद ऊहापोह में फँसी दिख रही है। खबरों के मुताबिक अपने ख़राब और लगातार गिरते हुए (बीच में तीन राज्यों के अपवाद को छोड़कर) प्रदर्शन के चलते राहुल गाँधी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना चाहते हैं, लेकिन पार्टी है कि उनके अलावा समूची टीम का इस्तीफा करा देने के लिए उत्सुक दिख रही है। इस तरह कॉन्ग्रेस अध्यक्ष और कार्यसमिति के बीच पहला ‘लोकतान्त्रिक’ मतभेद दिख भी रहा है तो वह ऐसे अजीब किस्म का कि पार्टी अपने अध्यक्ष को जबरदस्ती अध्यक्ष बनाए रखना चाहती है, जबकि अध्यक्ष ‘जी’ इस्तीफा वापस लेने को तैयार नहीं हैं।
Rahul Gandhi tells top Congress leaders that he is not taking back his resignation. Tells them they will have to find a new President, reports NDTV’s Sunil Prabhu.
— Sreenivasan Jain (@SreenivasanJain) May 27, 2019
लोकसभा निर्वाचन में दुर्गति के बाद दिया इस्तीफा
लोकसभा में न केवल कॉन्ग्रेस 2019 में सरकार बनाने में असफल हुई है बल्कि लगातार दूसरी बार लोकसभा की 10% (55) से कम सीटें पाने से वह नेता विपक्ष के पद से भी वंचित रह जाएगी। भाजपा के 303 के सामने कॉन्ग्रेस के महज 52 सांसद निर्वाचित हुए हैं। कई-कई राज्यों में तो उसका सूपड़ा ही साफ हो गया है। अध्यक्ष राहुल गाँधी खुद अपने परिवार और पार्टी के पारंपरिक गढ़ अमेठी में स्मृति ईरानी से पराजित हुए हैं। इन्हीं सब कारणों और हर ओर से अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता पर उठ रहे सवालों के चलते ही राहुल गाँधी ने कॉन्ग्रेस की कार्यकारिणी समिति में अपना इस्तीफा रख कर उनसे नए अध्यक्ष के चयन का आग्रह किया। कॉन्ग्रेस कार्यकारिणी समिति ने उनके इस्तीफे को नामंजूर कर दिया, पर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उन्होंने इस्तीफा वापस लेने से मना कर दिया है।
‘राहुल न दें, बाकी सब दे दें इस्तीफा’
इस बीच कॉन्ग्रेस नेता एमएस रेड्डी ने राहुल को अध्यक्ष बनाए रखने के लिए बड़ा ही ‘अनोखा’ फार्मूला सुझाया है। उन्होंने ‘पूर्ण पुनर्गठन’ के कार्यकारिणी समिति के प्रस्ताव की विवेचना इस प्रकार की है कि राहुल गाँधी की बजाय पूरी ऑल इंडिया कॉन्ग्रेस वर्किंग कमिटी व कार्यकारिणी समिति, सभी पदाधिकारी और राज्य कॉन्ग्रेस प्रभारी इस्तीफा दे दें।
MS Reddy,Cong: Congress Pres resignation was rejected by CWC. I welcome it.CWC resolution also said thorough re-structuring of the party at all levels. I think in order to set this in motion,I’ll call upon all CWC members & AICC office bearers specially state in-charges to resign pic.twitter.com/sRWhzGOzKT
लोकसभा की हार और अध्यक्ष पद को लेकर उत्पन्न गतिरोध के बीच ऐसा लग रहा है कि कॉन्ग्रेस को पिछले साल हासिल हुए तीन महत्वपूर्ण राज्यों में से दो राज्य – राजस्थान और कर्नाटक भी उसके हाथ से सरक जाएँगे। कर्नाटक में सबसे बड़े दल भाजपा को दरकिनार कर जद (एस) के साथ चल रही उसकी सरकार के कई विधायकों के कॉन्ग्रेस से भाजपा में जा चुके राज्य के नेता एसएम कृष्णा के संपर्क में होने की खबर आ रही है। वहीं राजस्थान में गुटबाजी के चलते ‘हार की जिम्मेदारी तय करने’ के नाम पर एक-दूसरे के गुट पर गाज गिराने की कोशिश हो रही है। ऐसे में 101 के बहुमत के आँकड़े से जरा ही ऊपर 112 पर बैठी राजस्थान की सरकार भी अस्थिर हो सकती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह का औपचारिक समय 30 मई को शाम 7 बजे तय किया गया है। इस बार SAARC नेताओं की जगह BIMSTEC (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation) में शामिल देशों को इस समारोह में आमंत्रित किया गया है। बता दें कि 2014 में नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में सार्क नेताओं ने शिरकत की थी, जिनमें पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ भी शामिल थे। इस बार बिम्सटेक नेताओं को आमंत्रित किया गया है। बिम्सटेक राष्ट्रों के समूह में बांग्लादेश, म्यांमार, श्री लंका, थाईलैंड, म्यांमार, नेपाल और भूटान आते हैं।
भारत सरकार ने नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के लिए विदेशी नेताओं को भेजे गए निमंत्रण के सम्बन्ध में जवाब देते हुए कहा, “भारत सरकार ने बिम्सटेक समूह में शामिल राष्ट्रों के नेताओं को इस शपथ ग्रहण समारोह में सम्मिलित होने के लिए निमंत्रित किया है। ये सरकार की ”पड़ोसी सर्वप्रथम” वाली नीतियों के अनुरूप है। ‘संघाई कोऑपरेशन आर्गेनाईजेशन’ के अध्यक्ष किर्गिस्तान के राष्ट्रपति को भी आमंत्रित किया गया है। इसके अलावा बीते प्रवासी भारतीय दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करने वाले मॉरीशस के प्रधानमंत्री को भी निमंत्रण भेजा गया है। बाकि विवरण जैसे ही आएँगे, मीडिया को उनसे अवगत कराया जाएगा।“
No #SAARC till Pak takes action against #HafizSaeed & #MasoodAzhar both @UN designated terrorists. The #FATF will also focus on Pak (in) action against terrorist organisations, entities & individuals. So clearly no #achchedin for Pakistan with India walking the talk on Pak terror
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को पिछले शपथ ग्रहण समारोह में भी आमंत्रित किया गया था लेकिन वह विदेशी दौरों पर होने के कारण नहीं आ पाईं थीं। इस बार भी उनके आने के आसार कम हैं क्योंकि वह तीन देशों के दौरे पर निकल रही हैं। उनके प्रतिनिधि के रूप में बांग्लादेश के लिबरेशन वॉर मंत्री मोज़म्मेल हक समारोह में शिरकत करेंगे। महामहिम रामनाथ कोविंद के प्रेस सचिव अशोक मलिक ने कहा कि राष्ट्रपति गुरुवार (मई 30, 2019) को शाम 7 बजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व अन्य केंद्रीय मंत्रियों को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाएँगे।
अभी पाकिस्तान व अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्र प्रमुखों द्वारा इस समारोह में शिरकत करने को लेकर संशय बरकरार है, क्योंकि अभी तक उन्हें निमंत्रण नहीं भेजा गया है। कई मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया है कि तमिल सिनेमा के दोनों बड़े अभिनेताओं रजनीकांत व कमल हासन को भी समारोह में शिरकत करने के लिए आमंत्रित किया गया है, लेकिन अधिकारिक रूप से अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है।
लोकसभा निर्वाचन के नतीजों की घोषणा के बाद से अब तक छह भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है, अन्य कई पर हमले हो रहे हैं और इतने के बाद भी मीडिया लगातार भाजपा को ही फासीवादी, लोकतंत्र-विरोधी और गुंडा पार्टी बताने में व्यस्त है। इससे पहले भी लोकसभा की निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं की बंगाल, कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक में हत्या हुई थी। उस समय भी और इस समय भी न केवल इन हत्याओं पर पत्रकारिता के समुदाय विशेष की आँखें फिरी हुईं हैं, बल्कि अभी भी नैरेटिव यही चलाया जा रहा है कि भाजपा के फिर से आने का मतलब कितने दिन में देश में दंगे शुरू होने वाले हैं।
ब्राह्मण, दलित, मुस्लिम, महिला: कोई भी (भाजपा समर्थक) नहीं सुरक्षित
हालात यह है कि भाजपा की केंद्र और अधिकाँश राज्यों में सरकारें होते हुए भी सबसे ज्यादा असुरक्षित और ‘डर का माहौल’ भाजपाईयों के लिए ही है। जिन 14 घटनाओं (जिनमें से 6 हत्या की हैं) का जिक्र हम नीचे करने जा रहे हैं, उनमें से अधिकाँश भाजपा-शासित प्रदेशों में ही हुईं हैं। यही नहीं, “जाति-वर्ग-मज़हब की दीवारों को तोड़ते हुए” यह पीड़ित ब्राह्मण, मुस्लिम, महिला, दलित यानी की समाज के हर वर्ग से हैं। यानी भाजपा की जीत के बाद सबसे ज्यादा जिसे डर के, संभल के रहने की जरूरत है वह न मुस्लिम है न दलित, और न ही महिला- वह भाजपा का ही समर्थक वर्ग है।
यूपी में दो हत्याएँ नतीजों के बाद की, एक पहले की, कुल 8 वारदातें
यह विडंबना ही कही जाएगी कि एक तरफ योगी सरकार बनने के बाद से यूपी में आम जनता के लिए कानून व्यवस्था में भारी सुधार हुआ है, दूसरी तरफ इस संकलन में भाजपाईयों या भाजपा-वोटरों पर हुए 14 में से 8 हमले भी केवल उत्तर प्रदेश के ही हैं। नतीजे आने के बाद से अमेठी की नवनिर्वाचित सांसद स्मृति ईरानी के सहयोगी सुरेंद्र सिंह के अलावा हापुड़ में भाजपा के पन्ना प्रमुख चंद्रपाल सिंह की भी सोते में गोली मारकर हत्या कर दी गई है। इन दोनों के अलावा निर्वाचन प्रक्रिया जब चल रही थी, तब भी गाजीपुर के तरवनियाँ गाँव में एक बसपा समर्थक ने अपनी ही पत्नी को भाजपा को वोट देने के लिए काट डाला था।
यही नहीं, प्रदेश के मुरादाबाद में दो मुस्लिम भाईयों को भी उनके ही रिश्तेदारों की गोलियों का शिकार इसलिए होना पड़ा क्योंकि वे दोनों भाजपा के समर्थक थे और उनके परिवार ने भाजपा को वोट दिया था। लेकिन अब चूँकि वे भाजपा-समर्थक मुस्लिम थे और उनकी हत्या का प्रयास करने वाले भाजपा विरोधी ‘समुदाय विशेष’, इसलिए न ही उन दोनों भाइयों के लिए जुनैद और अखलाक जैसा हंगामा हुआ, न ही ₹50 लाख का पिटारा खुला। इसके अलावा एक दूसरे मुस्लिम को उसके ही बेटे ने जान से मारने की धमकी दी, क्योंकि उसने भी मोदी को वोट दिया था।
लोकसभा निर्वाचन के नतीजे आने के बाद प्रयागराज में पवन द्विवेदी के परिवार को सपा-समर्थक रामचंद्र यादव, शिवम यादव, दिनेश यादव, जुगल किशोर और रवि शंकर यादव ने घर में घुस कर पीटा क्योंकि हिदायत दिए जाने के बावजूद 12 मई के मतदान में इस परिवार ने भाजपा को वोट देने की हिमाकत की थी। द्विवेदी परिवार द्वारा दर्ज प्राथमिकी के मुताबिक न केवल इन पाँचों ने पवन द्विवेदी, मनीष द्विवेदी और कल्लू द्विवेदी को लाठी-डंडे से पीटा बल्कि घर की महिलाओं से भी अभद्रता की। इसी तरह बुलंदशहर के मुस्तफागढ़ी में रहने वाली रहसार को भी उनके रिश्तेदारों ने इसीलिए पीटा क्योंकि उन्होंने बसपा को वोट देने के खानदानी ‘फतवे’ को नज़रअंदाज़ कर भाजपा को वोट दिया था।
दलितों और मुस्लिमों के लिए हर ओर ‘भय का माहौल’ देख-देख चिंतित होने वाले वामपंथी मीडिया गिरोह के लोग उस दलित परिवार की दुर्दशा पर चुप हैं, जिसे भोलू पुत्र कल्लू खां, गुड्डू पुत्र कल्लू खां, चिंटू पुत्र इम्तियाज खां, साबिर, सूरज और इम्तियाज खां पुत्र सकूर खां के हाथों, प्राथमिकी के अनुसार, मारपीट, छेड़छाड़, अनुसूचित जाति उत्पीड़न समेत कई तरह की प्रताड़नाएँ सहनी पड़ीं। मुलायम के ‘गढ़’ रहे इटावा में इकदिल कस्बे की शशिबाला ने जब अपने आसपास के लोगों को बताया कि उन्होंने भाजपा को वोट दिया था तो भोलू ने 40-50 समर्थकों सहित उनके घर पर धावा बोल दिया। शशिबाला के बेटों बजरंगी और दीपक को भी मारा गया। महिलाओं के साथ भी अभद्रता की। इसलिए कि इस दलित परिवार ने भाजपा को वोट दिया था।
महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेसियों के हाथों हलाक भाजपाई
महाराष्ट्र में न केवल एक बार फिर खुद भाजपा की सरकार है बल्कि महाराष्ट्र में वह नागपुर भी है जहाँ से पत्रकारिता के समुदाय विशेष को यह देश चलता हुआ लगता है। उसके बावजूद भाजपा के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के कार्यकर्ता मतीन पटेल की हत्या आरोपी कॉन्ग्रेस नेता हिदायत पटेल कथित तौर पर 8-10 लोगों के साथ मिलकर कर देते हैं। कॉन्ग्रेस के राज वाले मध्य प्रदेश में भी भाजपा कार्यकर्ता नेमीचंद तंवर को कॉन्ग्रेस नेता अरुण शर्मा कथित तौर पर मार देते हैं। खबरों के अनुसार जब शर्मा ने तंवर को गोली मारी तो तंवर का बेटा उनके साथ ही था।
झारखंड-हरियाणा में भाजपा समर्थक मुस्लिम घर में ज्यादा असुरक्षित या बाहर?
झारखंड में सहाना खातून का भाजपा को वोट देना उनके शौहर कुदुस अंसारी को इतना नागवार गुजरा कि उसने अपनी पत्नी को पीट दिया। मजबूरी में बेगम को शौहर के खिलाफ प्राथमिकी करानी पड़ी। प्राथमिकी में उन्होंने दावा किया कि शौहर ही नहीं, पहले पड़ोसी के लड़के ओसामा ने भी पीटा। उसके बाद शौहर ने ओसामा के साथ मिलकर पीटा– अपनी ही बेगम को।
हरियाणा के फजरू ने भाजपा को वोट क्या दिया, उनका समुदाय ही उनका दुश्मन बन बैठा। पिटने और लुटने के बाद फजरू द्वारा दर्ज प्राथमिकी के मुताबिक तौफीक, नसीम, राकिब ने अन्य गुंडों के साथ मिलकर न केवल उनके ₹30 हजार लूट लिए बल्कि कॉन्ग्रेस की बजाय भाजपा को वोट देने का ‘मजा भी चखाया’।
बंगाल बेहाल, त्रिपुरा में दंगे जैसी स्थिति
बंगाल में तृणमूल द्वारा शुरू किया गया हिंसा और हत्या का बवंडर लोकसभा के नतीजों के बाद भी नहीं थमा है। महज 25 साल के सन्तु घोष को तृणमूल छोड़ भाजपा में जाने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी है। वह नादिया के चकदाह इलाके का निवासी था। वहीं भाजपा का परचम वाम का किला तोड़ लहराने वाले त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब उस परचम के नीचे अपने लोगों को महफूज़ रखने के लिए संघर्षरत दिख रहे हैं। चार दिन से, यानी नतीजों के ठीक बाद से जारी हिंसा में भाजपा कार्यकर्ता शिबु दास (20) और मछली-विक्रेता अपू दास (56) को जान गँवानी पड़ी है। इसके पहले भाजपा कार्यकर्ता मिथु भौमिक भी इसी हिंसा की भेंट चढ़ गए थे। बिप्लब देब की चेतावनी और पुलिस द्वारा 23 प्राथमिकियों और 64 गिरफ्तारियों के बाद देखना है भाजपा के लोग कितने महफूज़ रहते हैं।
गैरों पे करम तो ठीक, पर अपनों को ही न बिसरा दे भाजपा!
दूसरे राज्यों में तो यह तर्क समझा जा सकता है कि पुलिस का नियंत्रण अपने हाथों में न होने से भाजपा अपने कार्यकर्ताओं की जान नहीं बचा पा रही लेकिन भाजपा-शासित राज्यों में उसके पास क्या जवाब है? वह भी उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहाँ योगी आदित्यनाथ के शासन सँभालने के बाद पुलिस के खौफ से अपराधी खुद को गोली मार ले रहे हैं? दूसरे दलों के लोगों को भी न्याय और नीति से परिपूर्ण, भेदभाव-रहित शासन उपलब्ध कराने की भाजपा की नीति अच्छी है, लेकिन इस चक्कर में अपने कार्यकर्ताओं और विपरीत परिस्थितियों में अपना समर्थन करने वालों को भी सुरक्षा मुहैया कराना भी भाजपा का ही धर्म होगा- राजनीतिक भी, और प्रशासनिक रूप से भी।
इसके अलावा मीडिया गिरोहों और फर्जी लिबरलों को भी इस बात का जवाब देना चाहिए कि अगर भाजपा सही में नफरती और फासिस्ट पार्टी है उनके आरोप के मुताबिक, तो आखिर इतने सारे भाजपाई अपनी ही पार्टी के राज में क्यों असुरक्षित हैं?
‘द क्विंट’ के संस्थापक राघव बहल के खिलाफ़ प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने रिपोर्ट माँगी है। BTVI के अनुसार, प्रवर्तन निदेशालय ने मीडिया इंडस्ट्री में लम्बे समय से सक्रिय राघव बहल के ख़िलाफ़ इनकम टैक्स विभाग द्वारा दर्ज की गई शिकायत का विवरण माँगा है। प्रवर्तन निदेशालय राघव बहल के ख़िलाफ़ जाँच भी शुरू करेगा, ऐसा BTVI ने अपनी रिपोर्ट में बताया है। इसके लिए इडी को आयकर विभाग से सर्टिफाइड कॉपी चाहिए, जिसके लिए ज़रूरी प्रक्रिया पूरी की जा रही है।
लन्दन में राघव बहल द्वारा खरीदी गई संपत्ति को लेकर हुई अनियमितताओं की जाँच के लिए इडी ने यह एक्शन लिया है। उनके ख़िलाफ़ “कालाधन (अन्य विदेशी आय तथा परिसंपत्ति) तथा कर अधिनियम 2015” के तहत जाँच की प्रक्रिया चलाई जाएगी। BTVI ने आगे बताया कि इस अधिनियम के सेक्शन 50 के तहत जाँच होगी क्योंकि राघव बहल ने अपनी विदेशी संपत्तियों के बारे में जानकारी छिपाई है।
चौंकाने वाली बात यह है कि राघव बहल के ख़िलाफ़ लन्दन में लगभग 273 करोड़ रुपए (31 मिलियन पाउंड) की संपत्ति ख़रीदने को लेकर आरोप है, जिस पर सरकारी जाँच एजेंसियों की तलवार लटक रही है (मई 27, 2019 को पाउंड से भारतीय रुपए में कन्वर्जन के बाद, साभार: गूगल)। बहल ने अपने ख़िलाफ़ लगे आरोपों को फैक्चुअली ग़लत बताया है। इससे पहले टैक्स में हेराफेरी करने के आरोपों को लेकर अक्टूबर 2018 में इनकम टैक्स विभाग ने राघव बहल के ठिकानों की तलाशी ली थी।
मथुरा के चौक बाजार में लस्सी विक्रेता से विवाद के बाद मुस्लिम समुदाय के दर्जन भर गुंडों की मारपीट से घायल युवक ने उपचार के दौरान शनिवार (मई 25, 2019) देर रात दम तोड़ दिया। इसकी सूचना जैसे ही चौक बाजार क्षेत्र में पहुँची, व्यापारियों में आक्रोश फैल गया। व्यापारियों ने दुकानें बंद कर सड़क पर जाम लगा दिया। बड़ी संख्या में इकट्ठे हुए व्यापारी आरोपितों की गिरफ्तारी की माँग कर रहे हैं। मौके पर बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया है।
An FIR has been registered against Mohammad Hanif, Mohammad Shahrukh and 15 othershttps://t.co/5HIUqvcx2B
गौरतलब है कि शनिवार (मई 18, 2019) की रात करीब आठ बजे चौक बाजार में नत्थो लस्सी भंडार पर मुस्लिम समुदाय के कुछ युवक लस्सी पीने आए। लस्सी पीने के बाद जब दुकान पर बैठे भारत और पंकज ने उनसे पैसे माँगे तो उन लोगों ने झगड़ा करना शुरू कर दिया। हालाँकि, ये मामला कुछ देर में शांत हो गया। ये लोग उस समय तो चले गए मगर कुछ समय बाद हनीफ और शाहरुख अपने दर्जन भर साथियों (गुंडों) के साथ लौटकर आए। सभी के हाथ में लोहे की रॉड, डंडा और तमंचा आदि थे। फिर इन युवकों ने दोनों भाईयों को बुरी तरह पीटा। जिसमें भारत गंभीर रूप से घायल हो गया। घायल भारत को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहाँ इलाज के दौरान शनिवार को भारत की मौत हो गई।
पुलिस ने भारत के भाई पंकज की तहरीर पर हनीफ और मोहम्मद शाहरुख समेत 15 अज्ञात के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया है। पुलिस ने कहा कि जाँच जारी है। वैसे, अगर कहीं भी किसी के साथ मारपीट होती है, या फिर किसी की भी हत्या होती है, तो वो निंदनीय है और आरोपियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन ऐसा देखा गया है कि कुछ बड़े मीडिया वर्ग तभी न्याय का झंडा बुलंद करते हैं, जब पीड़ित मुस्लिम या दलित होता है। अल्पसंख्यकों के पीड़ित होने पर बड़े-बड़े अक्षरों में उनके नाम के साथ प्रकाशित किया जाता है, लेकिन जब वही घटना बहुसंख्यक समुदाय के साथ होती है, तो हेडलाइन में बस ‘दूसरे समुदाय’ की बात लिख कर खानापूर्ति की जाती है। आरोपी के नाम को हाइलाइट नहीं किया जाता, क्योंकि वो मजहब विशेष से होते हैं।