Wednesday, November 20, 2024
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भारत की हत्या, मथुरा में बवाल: हनीफ और शाहरूख संग 15 गुंडों पर FIR

मथुरा के चौक बाजार में लस्सी विक्रेता से विवाद के बाद मुस्लिम समुदाय के दर्जन भर गुंडों की मारपीट से घायल युवक ने उपचार के दौरान शनिवार (मई 25, 2019) देर रात दम तोड़ दिया। इसकी सूचना जैसे ही चौक बाजार क्षेत्र में पहुँची, व्यापारियों में आक्रोश फैल गया। व्यापारियों ने दुकानें बंद कर सड़क पर जाम लगा दिया। बड़ी संख्या में इकट्ठे हुए व्यापारी आरोपितों की गिरफ्तारी की माँग कर रहे हैं। मौके पर बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया है।

गौरतलब है कि शनिवार (मई 18, 2019) की रात करीब आठ बजे चौक बाजार में नत्थो लस्सी भंडार पर मुस्लिम समुदाय के कुछ युवक लस्सी पीने आए। लस्सी पीने के बाद जब दुकान पर बैठे भारत और पंकज ने उनसे पैसे माँगे तो उन लोगों ने झगड़ा करना शुरू कर दिया। हालाँकि, ये मामला कुछ देर में शांत हो गया। ये लोग उस समय तो चले गए मगर कुछ समय बाद हनीफ और शाहरुख अपने दर्जन भर साथियों (गुंडों) के साथ लौटकर आए। सभी के हाथ में लोहे की रॉड, डंडा और तमंचा आदि थे। फिर इन युवकों ने दोनों भाईयों को बुरी तरह पीटा। जिसमें भारत गंभीर रूप से घायल हो गया। घायल भारत को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहाँ इलाज के दौरान शनिवार को भारत की मौत हो गई।

हेडलाइन अगर मृतक कोई हिंदू हो

पुलिस ने भारत के भाई पंकज की तहरीर पर हनीफ और मोहम्मद शाहरुख समेत 15 अज्ञात के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया है। पुलिस ने कहा कि जाँच जारी है। वैसे, अगर कहीं भी किसी के साथ मारपीट होती है, या फिर किसी की भी हत्या होती है, तो वो निंदनीय है और आरोपियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन ऐसा देखा गया है कि कुछ बड़े मीडिया वर्ग तभी न्याय का झंडा बुलंद करते हैं, जब पीड़ित मुस्लिम या दलित होता है। अल्पसंख्यकों के पीड़ित होने पर बड़े-बड़े अक्षरों में उनके नाम के साथ प्रकाशित किया जाता है, लेकिन जब वही घटना बहुसंख्यक समुदाय के साथ होती है, तो हेडलाइन में बस ‘दूसरे समुदाय’ की बात लिख कर खानापूर्ति की जाती है। आरोपी के नाम को हाइलाइट नहीं किया जाता, क्योंकि वो मजहब विशेष से होते हैं।

हेडलाइन अगर मृतक कोई समुदाय विशेष हो
HT भी पीछे नहीं हेडलाइन के मामले में

‘हार के बाद अपने दादा देवगौड़ा पर चिल्लाए निखिल’, छापने पर संपादक के ख़िलाफ़ FIR

कर्नाटक में एक कन्नड़ समाचारपत्र के संपादक के ख़िलाफ़ सिर्फ़ इसीलिए मामला दर्ज किया गया है, क्योंकि अख़बार में मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के बेटे निखिल के बारे में लेख छपा था। ‘विश्ववाणी’ के मुख्य संपादक विश्वेश्वर भट्ट के ख़िलाफ़ अख़बार के पहले पेज पर मुख्यमंत्री के बेटे के लिए ‘आपत्तिजनक शब्दों’ के प्रयोग का मामला दर्ज किया गया। ये लेख शनिवार (मई 25, 2019) को प्रकाशित हुआ था। राज्य में सत्ताधारी पार्टी जेडीएस के लीगल सेल के पदाधिकारी प्रदीप कुमार द्वारा श्रीरामपुरा पुलिस स्टेशन में रविवार को शिकायत दर्ज कराई गई।

पुलिस ने बताया कि मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के बेटे निखिल कुमारस्वामी के बारे में अख़बार के पहले पेज पर लेख छाप कर उसमें ‘आपत्तिनजक शब्दों’ का प्रयोग करने के लिए विश्ववाणी के मुख्य संपादक के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया है। उस लेख के टाइटल के हिंदी अनुवाद कुछ इस प्रकार है- “निखिल कुमारस्वामी द्वारा रात में उपद्रव”। इसमें कहा गया है कि निखिल ने गुरुवार (मई 23, 2019) की रात को मैसूर स्थित रैडिसन ब्लू होटल में हंगामा किया।

बता दें कि निखिल कुमारस्वामी ने मांड्या से लोकसभा चुनाव लड़ा था। उन्हें निर्दलीय चुनाव लड़ रहीं अभिनेत्री सुमलता ने सवा लाख से भी अधिक मतों से मात दी। सुमलता को हराने के लिए तीन अन्य सुमलता नाम की उम्मीदवार भी चुनाव लड़ रही थीं ताकि मतदाताओं में संशय और कंफ्यूजन पैदा हो, लेकिन सुमलता अम्बरीश ने निखिल को मात देकर यह चुनाव जीत लिया। राज्य में कॉन्ग्रेस की बुरी हालत हुई और जेडीएस के अध्यक्ष देवेगौड़ा अपनी ख़ुद की ही सीट हार गए। विश्ववाणी के लेख में कहा गया है कि निखिल अपने दादा पर चिल्लाए।

विश्ववाणी अख़बार के अनुसार, निखिल ने हंगामा करते हुए कहा कि उन्हें मांड्या में एक महिला के हाथों हार मिली है, जो उनके लिए अपमानजनक बात है। निखिल ने अपने दादा और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा पर आरोप लगाते हुए कहा कि पार्टी अध्यक्ष ने उन्हें मांड्या की भूलभुलैया में उलझा दिया और वहाँ आठ अपने विधायक होने की बावजूद उनका सांसद बनने का सपना चूर-चूर हो गया। उन्होंने कहा कि एचडी रेवन्ना को जैसे कॉन्ग्रेस का समर्थन मिला, वैसे ही उनके लिए कॉन्ग्रेस के बागियों का समर्थन नहीं जुटाया गया।

लेख में लिखा है कि परिचित व होटल के अधिकारी निखिल को मनाने की कोशिश करते रहे लेकिन वे हंगामा करते रहे। इस दौरान वह नशे में थे और उनकी हालत सही नहीं थी। रैडिसन ब्लू होटल ने भी बताया है कि निखिल कुमारस्वामी गुरुवार की रात वहाँ रुके थे। हालाँकि, होटल ने अख़बार में छपी घटना के सत्य होने की बात से इनकार किया है। होटल के मैनेजर ने कहा कि उन्हें ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली है। ‘द न्यूज़ मिनट‘ के अनुसार, होटल मैनेजर का बयान सत्य हो या दबाव में दिया गया हो, जेडीएस द्वारा अख़बार के संपादक के ख़िलाफ़ सूत्रों पर आधारित लेख को लेकर मामला दर्ज कराना चौंकाने वाला है।

जेडीएस ने कहा कि इस लेख में न सिर्फ़ पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा और उनके पोते निखिल की मानहानि की गई है, बल्कि ये पूरा लेख ही काल्पनिक है। वैसे, कई अन्य अख़बारों ने भी इस रिपोर्ट को छापा है लेकिन जेडीएस ने विश्ववाणी के ख़िलाफ़ ही मामला दर्ज कराया। इससे पहले निखिल 2006 में एक होटल में हंगामा कर चुके हैं, जब रात के साढ़े तीन बजे होटल ने उन्हें सर्विस देने से इनकार कर दिया था। उस समय भी उनके पिता कुमारस्वामी ही राज्य के मुख्यमंत्री थे।

सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं ‘प्रभावशाली’ वाड्रा: अग्रिम ज़मानत रद्द हो, हाई कोर्ट में ED

दिल्ली हाईकोर्ट ने कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के जीजा रॉबर्ट वाड्रा और उनके क़रीबी मनोज अरोड़ा को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस प्रवर्तन निदेशालय (ED) की उस याचिका पर जारी किया गया है जिसमें ट्रायल कोर्ट द्वारा उन्हें दी गई अग्रिम ज़मानत याचिका को चुनौती दी गई है। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, वित्तीय अपराधों की जाँच के संबंध में वाड्रा पर लंदन स्थित 1.9 मिलियन पाउंड की सम्पत्ति ख़रीदने के मामले में मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया गया था। वाड्रा को अपनी प्रतिक्रिया दाखिल करने के लिए 17 जुलाई तक का समय दिया गया है।

दरअसल, मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दिल्ली की निचली अदालत ने रॉबर्ट वाड्रा को ज़मानत दे दी थी। निचली अदालत के फ़ैसले के ख़िलाफ़ ED ने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी।

अपनी याचिका में, ED ने आशंका व्यक्त की थी कि वाड्रा सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं क्योंकि वह एक ‘प्रभावशाली व्यक्ति’ हैं। याचिका में कहा गया था कि अगर वाड्रा को ज़मानत दी गई, तो वो सबूतों के साथ छेड़छाड़ और गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं। एजेंसी ने तर्क दिया था कि गिरफ़्तारी से छूट मिलने पर कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर हो रही जाँच को नुक़सान हो सकता है, जिसमें कथित रूप से अवैध सम्पत्ति का सटीक स्रोत और धन के अंतिम इस्तेमाल का पता लगाना शामिल है।

फ़िलहाल, रॉबर्ट वाड्रा ने अदालत के नोटिस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन इससे पहले उन्होंने दावा किया था कि एजेंसी की जाँच राजनीति से प्रेरित थी। वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी, जिन्होंने ट्रायल कोर्ट में वाड्रा का प्रतिनिधित्व किया था, उन्होंने कहा था कि ED ने वाड्रा से 70 घंटे से अधिक समय तक पूछताछ की थी और अगर इसके बाद भी उन्हें अपने सवालों का जवाब नहीं मिल पाया है, तो इसका मतलब है कि वास्तव में उनके पास कोई मुद्दा था ही नहीं।

वहीं, ED के अनुसार, रॉबर्ट वाड्रा जाँच में सहयोग नहीं कर रहे थे। इस मामले में अपनी कथित भूमिका पर वाड्रा को अपनी सफाई देने के कई मौके मिले थे, लेकिन वो टालमटोल करते रहे। ED का आरोप है कि लंदन में खरीदी गई प्रॉपर्टी को ग़लत तरीके से ख़रीदा गया है और इसमें ब्लैक मनी का इस्तेमाल किया गया है। लिहाज़ा, इस मामले में ED वाड्रा से कई बार पूछताछ भी कर चुकी है। वाड्रा के अलावा इस मामले में ED ने कई और लोगों से भी पूछताछ की थी। ED का दावा है कि मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े इस मामले में रॉबर्ट वाड्रा के ख़िलाफ़ उनके पास दस्तावेज़ और ई-मेल की शक्ल में कई ठोस सबूत मौजूद हैं।

‘मुर्गे के खून’ से लिखा दर्द भरा खत – हमें छोड़कर मत जाओ राहुल गाँधी!

उत्तर प्रदेश के जौनपुर में कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी को ख़ून से चिट्ठी लिखने की बात सामने आई है। इन कार्यकर्ताओं ने ख़ून से लिखी चिट्ठी में राहुल गाँधी से इस्तीफ़ा न देने की अपील की। बता दें कि लोकसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस की बुरी हार के बाद राहुल गाँधी ने इस्तीफ़े की पेशकश की थी, जिसे कॉन्ग्रेस वर्किंग कमेटी ने नकार दिया। पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह और पार्टी महासचिव प्रियंका गाँधी ने राहुल से इस्तीफ़ा न देने का निवेदन किया। पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि अगर राहुल इस्तीफ़ा देते हैं तो कार्यकर्ता आत्महत्या कर लेंगे।

टाइम्स नाउ की ख़बर के मुताबिक़, कॉन्ग्रेस के युवा नेताओं ने “राहुल गाँधी, इस्तीफ़ा मत दीजिए” सहित कई बातें ख़ून से लिखीं, ताकि राहुल को इस्तीफ़ा न देने के लिए मना सकें। इसके बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने तरह-तरह के सवाल पूछने शुरू कर दिए। एक व्यक्ति ने पूछा कि इन पत्रों को लिखने के लिए किसका ख़ून प्रयोग किया गया था? एक अन्य यूजर ने मोदी-शाह की फोटो पोस्ट की, जिसमें दोनों बातें कर रहे हैं कि ये पत्र लिखने वाले अपने ही लोग हैं।

अधिकतर ट्विटर यूजर्स ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि ज़रूर ये भाजपा के ही लोग हैं, क्योंकि वे नहीं चाहते कि राहुल गाँधी कॉन्ग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दें। ट्विटर यूजर्स ने लिखा कि भाजपा तब तक एकदम निश्चिंत है, जब तक राहुल कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष हैं।

फ़िलहाल, कॉन्ग्रेस में लगातार इस्तीफ़ों की झड़ी लगी है और कई प्रदेश अध्यक्षों समेत पार्टी के एक दर्जन से भी अधिक बड़े नेता अपने पद से इस्तीफ़ा दे चुके हैं। उत्तर प्रदेश में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर से लेकर महाराष्ट्र में प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण तक, कई नेताओं ने नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए अपना इस्तीफ़ा पार्टी हाईकमान को भेज दिया है।

मेरे पिता का पूरा जीवन दुश्मनों से लड़ते हुए बीता: कारवाँ के ‘प्रोपेगेंडा’ लेख पर अदालत में विवेक डोभाल

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजित डोभाल के बेटे विवेक डोभाल द्वारा कारवाँ मैगज़ीन और कॉन्ग्रेस नेता जयराम रमेश के ख़िलाफ़ आपराधिक मानहानि मामले पर सुनवाई पटियाला हाउस में हुई। इस मामले की सुनवाई अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट समर विशाल द्वारा की गई। विवेक डोभाल का प्रतिनिधित्व एडवोकेट डीपी सिंह ने किया। सुनवाई के दौरान विवेक डोभाल ने कहा कि यह मामला आने वाले वर्षों में उनके करियर पर एक धब्बे की तरह है। अपने पिता को लेकर उन्होंने कहा कि उनका पूरा जीवन इस देश के दुश्मनों से लड़ते बीता है, ऐसा कैसे हो सकता है कि वो अपने बेटे को अवैध गतिविधियों को अंजाम देने की अनुमति दे दें।

फ़िलहाल, अदालत ने सुनवाई के लिए 10 जुलाई का दिन मुक़र्रर कर दिया है। विवेक डोभाल को सुनवाई की अगली तारीख पर जिरह करनी होगी।

विवेक ने कहा कि कारवाँ के लेख से ऐसा लगता है जैसे कि डोभाल परिवार काले धन और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद में शामिल हो। यह लेख बहुत ही व्यवस्थित तरीके से लिखा गया लेख था जिसे पढ़कर पाठकों को सच में ऐसा लग सकता था कि विवेक डोभाल, और उनका परिवार अवैध गतिविधियों में शामिल था। इस लेख में मनी लॉन्ड्रिंग, वित्तीय विनियमन और विदेशी शाही परिवारों से कनेक्शन जैसे मुद्दों को शामिल किया गया।

ध्यान देने वाली बात यह है कि इस लेख में ‘डोभाल परिवार’ को ‘डी कंपनी’ का नाम दिया गया, जिसका इस्तेमाल 1993 मुंबई बम धमाकों के आरोपी और कुख्यात आतंकवादी दाऊद इब्राहिम के गैंग के लिए किया जाता है। विवेक ने कहा कि यह सर्वविदित है कि दाऊद एक अंतरराष्ट्रीय आंतकवादी है। इस लेख का शीर्षक सबसे अधिक तकलीफ़ देने वाला था।

विवेक डोभाल ने कहा, “मेरे पिता (अजित डोभाल ) मेरे हीरो हैं। जब मैं दिल्ली वापस आया, तो मुझे इन कथनों की सत्यता पर अपने पिता का सामना करना पड़ा। मैं टूट गया। मैं असहाय महसूस कर रहा था, मेरा जीवन और करियर सालों की मेहनत से बनाया गया है। यहाँ तक पहुँचने के लिए मैंने केवल अपनी क्षमताओं पर भरोसा किया है। एक फंड मैनेजर के रूप में मेरे लिए जो महत्वपूर्ण है, वह मेरी प्रतिष्ठा है।”

डोभाल ने कहा, “मैंने यूट्यूब पर प्रेस कॉन्फ्रेंस का वीडियो देखा जिसमें कमेंट्स भीतर मेरे परिवार के ख़िलाफ़ बहुत ही अभद्र और अपमानजनक टिप्पणियाँ थीं ।” भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस वेबसाइट ने साक्षात्कार और इसकी ट्रांसस्क्रिप्ट भी जारी की। उन्होंने बताया कि इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन यूपीए काल में केंद्रीय मंत्री रहे जयराम रमेश द्वारा किया गया था।

विवेक डोभाल ने हैरानी जताते हुए कहा कि ग़लत तथ्यों और जानकारी के ज़रिए उनके और उनके परिवार की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया गया। उन्होंने कहा कि वो 16 जनवरी को किसी काम से क़तर के दोहा यात्रा पर थे, तब उनके पास उनके भाई का फोन आया कि कारवाँ मैगज़ीन ने आरोप लगाते हुए एक झूठा और भ्रामक लेख लिखा है।

जस्टिस समर विशाल ने 22 जनवरी को द कारवाँ, जयराम रमेश और लेख के लेखक कौशल श्रॉफ के ख़िलाफ़ विवेक डोभाल की आपराधिक मानहानि की शिकायत का संज्ञान लिया था। कारवां मैगज़ीन में लेख प्रकाशित होने के बाद डोभाल ने अदालत का रुख़ किया था। डोभाल ने अदालत का रुख़ इसलिए किया था, क्योंकि लेख में यह आरोप लगाया गया था कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजित डोभाल के बेटे विवेक डोभाल केमैन आइलैंड, जो कि टैक्स-हेवन के रूप में जाना जाता है, में हेज फंड (निवेश निधि) चलाते हैं। रवीश कुमार ने यहाँ तक लिखा था कि “डी-कंपनी का अभी तक दाऊद का गैंग ही होता था और भारत में एक और डी कंपनी आ गई है”। इस पत्रिका के अनुसार यह हेज फंड 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नोटबंदी की घोषणा के 13 दिन बाद रजिस्टर्ड किया गया था।

विवेक डोभाल ने अपनी नागरिकता की स्थिति, शैक्षिक योग्यता और पेशेवर स्थिति के विस्तृत वर्णन से शुरुआत कर के इस लेख के ख़िलाफ़ शिक़ायत दर्ज कराई। इसमें उन्होंने पूछा था कि क्या ‘डी कंपनी’ शीर्षक से लिखा गया लेख उन्हें वास्तव में परेशान करने के लिए लिखा गया था?

…एक सरकारी मास्टर जो बना CM, 24 साल 163 दिन (भारत का रिकॉर्ड) वाले मुख्यमंत्री को हराया

पीएस गोले के नाम से पहचाने जाने वाले सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के अध्यक्ष प्रेम सिंह तमांग ने सोमवार (मई 27, 2019) को बतौर सिक्किम मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। राज्यपाल गंगा प्रसाद ने गंगटोक के पलजोर स्टेडियम में उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। इस मौक़े पर उनके साथ 11 विधायकों ने भी शपथ ली।

साभार: सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा का फेसबुक

गोले ने 24 साल से अधिक सत्ता में बनी रहने वाली चामलिंग सरकार को हराया, इस कारण से उनकी ये जीत और खास हो गई। प्रेम सिंह तमांग ने नेपाली भाषा में शपथ ली। इस समारोह में पवन कुमार चामलिंग और सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट का कोई वरिष्ठ नेता शामिल नहीं हुआ। इन चुनावों में पार्टी ने 32 सदस्यीय सिक्किम विधानसभा में 17 सीटों पर जीत हासिल करके स्पष्ट बहुत प्राप्त किया। एसडीएफ को केवल 15 सीटें मिलीं।

बता दें कि प्रेम सिंह तमंग (पीएस गोले) ने 5 फरवरी, 1968 को एक नेपाली परिवार में जन्म लिया था। कालू सिंह तमंग और धनमाया तमंग उनके माता-पिता का नाम है। गोले ने अपनी स्कूली शिक्षा सोरेंग सीनियर सेकंडरी स्कूल से की और बाद में डार्जिलिंग के सरकारी कॉलेज में उन्होंने स्नातक पूरा किया। राजनीति में कदम रखने से पहले वो सरकारी टीचर थे। बाद में उन्होंने चामलिंग की एसडीएफ ज्वाइन कर ली। 1994 में वो सिक्किम विधानसभा के लिए चुने गए। लेकिन बाद में उन्होंने पार्टी से खुद को अलग कर लिया। 2013 में एसकेएम का गठन हुआ और अगले ही साल पार्टी ने चुनावों में 10 सीटें जीतीं।

राजनीतिक रिकॉर्ड की बात करें तो पवन कुमार चामलिंग के नाम देश में सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड है। पवन कुमार चामलिंग 24 साल 163 दिनों तक सिक्किम के मुख्यमंत्री रहे। 23 साल 137 दिनों के साथ ज्योति बासु इस रिकॉर्ड में दूसरे स्थान पर हैं। इन दोंनों के साथ खासियत यह रही कि ये दोनों नेता लगातार इतने दिनों तक मुख्यमंत्री बने रहे।

चुनाव परिणाम के बाद RJD में बगावत, विधायक ने तेजस्वी से माँगा इस्तीफा

लोकसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों को करारी शिकस्त मिली। चुनाव परिणाम के बाद कॉन्ग्रेस में जहाँ इस्तीफों का दौर जारी है, वहीं अब बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) में भी बगावत के सुर तेज हो गए हैं। गायघाट से विधायक महेश्वर यादव ने तेजस्वी यादव को निशाने पर लिया है। महेश्वर यादव ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए इस्तीफा माँगा है। उन्होंने कहा कि अगर तेजस्वी इस्तीफा नहीं देते हैं, तो पार्टी टूट जाएगी। महेश्वर यादव ने तो यहाँ तक कह दिया कि यदि उनकी बात नहीं मानी गई, तो वो पार्टी छोड़कर जदयू में शामिल हो जाएँगे और उनके साथ ही कई और राजद विधायक पार्टी छोड़ देंगे।

सोमवार (मई 27, 2019) को मीडिया से बात करते हुए महेश्वर यादव ने राजद सुप्रीमो लालू यादव को भी निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि राजद परिवारवाद के चक्कर में उलझी हुई है। इसी वजह से पार्टी की इतनी दुर्गति हुई। उनका कहना है कि 1997 में जब लालू जेल जा रहे थे, तब भी उन्होंने लालू से कहा था कि राबड़ी को मुख्यमंत्री न बनाकर अपने पसंद के किसी विधायक को सीएम बनाइए। उस वक्त भी परिवार के मोह में राबड़ी को सीएम बनाया गया और तब परिवारवाद की वजह से राजद विधानसभा में 22 सीट और लोकसभा में 4 सीट पर सिमट गई थी।

इसके साथ ही राजद विधायक ने कहा कि पार्टी ने अब्दुल बारी सिद्दीकी जैसे वरिष्ठ नेता को दरकिनार कर तेजस्वी को विधायक दल का नेता बना दिया। विधानसभा में तेजस्वी को नेता प्रतिपक्ष और विधान परिषद में राबड़ी को विपक्ष का नेता बनाया। नतीजा यह निकला कि पार्टी लोकसभा चुनाव में जीरो पर आ गई। राजद की इतनी दुर्गति कभी नहीं हुई और यह सब परिवारवाद की वजह से ही हुआ है।

महेश्वर यादव द्वारा इस्तीफे की माँग पर जदयू और भाजपा ने भी टिप्पणी करते हुए कहा कि तेजस्वी यादव को इस हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे देना चाहिए। गौरतलब है कि, हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में बिहार में कुल 40 सीटों में से एनडीए ने 39 सीटों पर जीत दर्ज की है। एक सीट पर कॉन्ग्रेस की जीत हुई है, तो वहीं आरजेडी खाता भी नहीं खोल पाई।

हार के बाद उत्तर-पूर्व से दक्षिण तक कॉन्ग्रेस में भगदड़, 13 बड़े नेताओं का इस्तीफा

लोकसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी में इस्तीफों का दौर शुरू हो गया है। ख़बर आई थी कि राहुल गाँधी ने भी अपने इस्तीफे की पेशकश की, जिसे कॉन्ग्रेस वर्किंग कमिटी ने नकार दिया। राहुल गाँधी द्वारा इस्तीफा देने की ख़बरों के बीच पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि अगर ऐसा हुआ तो कार्यकर्ता आत्महत्या कर लेंगे। कॉन्ग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी व पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने भी राहुल को इस्तीफा न देने के लिए मनाया। इसके बाद तो जैसे कई राज्यों से इस्तीफों की झड़ी लग गई है। अलग-अलग राज्यों में कॉन्ग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष से लेकर अन्य पदाधिकारी तक, अपना इस्तीफा आलाकमान को भेज रहे हैं।

नवभारत टाइम्स की ख़बर के मुताबिक, अब तक 13 बड़े कॉन्ग्रेस नेता इस्तीफे की पेशकश कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर को 5 लाख के क़रीब मतों के अंतर से बुरी हार का सामना करना पड़ा। वह अपनी जमानत भी नहीं बचा सके। अपने शहर की बेरुखी और राज्य में कॉन्ग्रेस के ख़राब प्रदर्शन से नाराज़ बब्बर ने आलाकामन को अपना इस्तीफा भेज दिया। महाराष्ट्र में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने भी प्रदेश अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया है। उधर पंजाब में पार्टी के अध्यक्ष सुनील जाखड़ से भी अपना इस्तीफा भेज दिया है। गुरदासपुर में सनी देवल ने जाखड़ को 82,459 मतों से हराया।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ भी नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देने की बात कह चुके हैं। उनके ख़िलाफ़ राज्य में बाग़ी स्वर उठने भी शुरू हो गए हैं। झारखण्ड में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार ने भी इस्तीफा दे दिया है। राज्य में पार्टी को सिर्फ़ 1 सीट पर जीत मिली। जमशेदपुर के सांसद रह चुके अजय कुमार ने झारखण्ड में कॉन्ग्रेस की हार की ज़िम्मेदारी स्वीकार की है। असम में कॉन्ग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रिपुन बोरा ने भी पार्टी हाईकमान को इस्तीफा भेज दिया है। बता दें कि 21 ऐसे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं, जहाँ ताज़ा लोकसभा चुनाव में पार्टी का खाता तक नहीं खुला।

ओडिशा कॉन्ग्रेस कमेटी के अध्यक्ष निरंजन पटनायक, ओडिशा कॉन्ग्रेस कैंपेन कमिटी के अध्यक्ष भक्त चरण दास और कर्नाटक कॉन्ग्रेस कैंपेन कमिटी के अध्यक्ष एच के पाटिल समेत कई छोटे-बड़े नेताओं ने भी अपने पद से इस्तीफा दिया है। अमेठी में स्मृति ईरानी के हाथों राहुल गाँधी की हुई हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए जिलाध्यक्ष योगेंद्र मिश्र ने अपने इस्तीफा सौंप दिया है। अमेठी में कई अन्य कॉन्ग्रेस पदाधिकारियों ने भी इस्तीफे की पेशकश की है। पूर्वोत्तर में असम से लेकर दक्षिण में कर्णाटक तक, कॉन्ग्रेस पार्टी में लगी इस्तीफों की झड़ी से कार्यकर्ताओं में भगदड़ की स्थिति है।

आज सोमवार (मई 27, 2019) कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता के सी वेणुगोपाल और अहमद पटेल ने पार्टी अध्यक्ष राहुल गाँधी से मुलाक़ात की। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कॉन्ग्रेस अध्यक्ष जल्द ही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ भी बैठक कर सकते हैं। कॉन्ग्रेस में मंथन का दौर चालू है और आने वाले दिनों में संगठनात्मक बदलाव होना तय लग रहा है। अब देखना यह है कि राहुल गाँधी किन नेताओं पर भरोसा जताते हैं और किनका पत्ता कटता है।

माँ और महादेव से लेकर आडवाणी और पटेल तक: PM मोदी के ताज़ा दौरों से मिल रहे संकेत

देश की राजनीति अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोबारा के इर्द-गिर्द घूम रही है और वे दोबारा शपथ लेने के लिए तैयार हैं। ताज़ा लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के बाद भाजपा का उत्साह चरम पर है और मोदी के भाषणों की तमाम व्याख्याएँ की जा रही हैं। पत्रकारों, विश्लेषकों और मीडिया द्वारा पीएम मोदी द्वारा कही गई हर बातों की काफ़ी जाँच-परख करके उनके कई अर्थ निकाले जा रहे हैं, जिससे पता चले कि उनके अगले कार्यकाल के दौरान 5 वर्षों के लिए भारत आकार का रुख़ क्या रहेगा? नेताओं के बयानों से हवा का रुख़ भाँपने वाली मीडिया ने पीएम मोदी की गतिविधियों को नज़रअंदाज़ कर दिया। चुनाव के समापन के बाद से ही मोदी के क्रियाकलापों पर हम यहाँ एक एक नज़र डालेंगे।

यहाँ हम ये बात नहीं करेंगे कि मोदी क्या खाते, पहनते और ओढ़ते हैं बल्कि यहाँ हम प्रधानमंत्री के ताज़ा दौरों व स्थलों के चुनाव का विश्लेषण करेंगे। प्रधानमंत्री का व्यक्तिगत जीवन भी है और उन्होंने ख़ुद अपनी माँ से आशीर्वाद लेते हुए फोटो सोशल मीडिया पर साझा की, इसीलिए हम उस पर भी बात करेंगे। सबसे पहले शुरू करते हैं केदारनाथ से। प्रधानमंत्री ने समुद्र तल से क़रीब 12000 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित केदारनाथ में जाकर पूजा-अर्चना की। क्या आपको पता है, जिस दिन पीएम मोदी ने रुद्राभिषेक किया और ध्यान धरा, उस दिन का क्या महत्व था?

दरअसल, उस दिन बौद्धों का सबसे बड़ा त्यौहार यानि बुद्ध पूर्णिमा का दिन था। क़रीब 2 दर्जन देशों में बौद्धों द्वारा मनाए जाने वाले इस त्यौहार के दिन चीन और कोरिया सहित दुनिया भर के कई देशों के लोग छुट्टियाँ भी मनाते हैं। पीएम मोदी ने 18 मई को जब केदारनाथ का दौरा किया, उस दिन प्राचीन भारत के सबसे बड़े आध्यात्मिक पुरोधा भगवान बुद्ध की जयंती थी। भगवान बुद्ध ध्यान के लिए जाने जाते थे, यही कारण है कि बौद्ध धर्म में मैडिटेशन यानि ध्यान का बड़ा महत्त्व है। हिन्दू धर्म में भगवान शिव को अधिकतर ध्यानावस्था में दिखाया जाता रहा है। यही वो क्रिया है जो भगवान बुद्ध और शिव को जोड़ती है। एक पीपल के पेड़ के नीचे ध्यानमग्न दिखाए जाते हैं तो दुसरे कैलाश पर्वत के एकांत में ध्यानमग्न होते हैं।

बुद्ध पूर्णिमा के दिन प्रधानमंत्री द्वारा केदारनाथ की गुफा में ध्यान धरना इन्हीं सांकेतिक पहलुओं का मिलन था, बुद्ध और शिव को एक साथ देखने की चेष्टा के अलावा उनके द्वारा दिखाए गए ध्यान के मार्ग पर चलने के लिए एक तत्परता थी। जब प्रधानमंत्री के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा होने के बाद भारत सहित दुनिया भर में योग के प्रति लोगों की खोई जागृत हो सकती है, आयुर्वेदिक उत्पादों की बिक्री में अभूतपूर्व वृद्धि हो सकती है, योग प्रशिक्षकों को नौकरी के नए अवसर मिल सकते हैं, तो ध्यान करना और मैडिटेशन का अभ्यास करना भी जनता के लिए एक नए सन्देश लेकर आ सकता है। ये थी केदारनाथ की बात।

इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में जनता ने फिर से विश्वास जताया और मोदी के नेतृत्व में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला। पिछली बार की तरह इस बार भी गुजरात में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया और कॉन्ग्रेस का राज्य में खाता तक नहीं खुला। संसद भवन में राजग की बैठक हुई, जिसमें भाजपा के दोनों पुरोधाओं, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की उपस्थिति में मोदी को सर्वसम्मति से राजग संसदीय दाल का नेता चुना गया, जिसके बाद उनके फिर से प्रधानमंत्री बनने का औपचारिक मार्ग प्रशस्त हो गया। इससे एक दिन पहले भाजपा के दोनों पूर्व अध्यक्षों, जोशी और अडवाणी के यहाँ मोदी और शाह ने जाकर उनसे आशीर्वाद लिया।

जोशी ने बाद में कहा कि भाजपा में जीत के बाद बड़ों की शुभकामनाएँ व आशीर्वाद लेने का चलन रहा है, और मोदी ने उसे बखूबी निभाया। राजग की तरफ से सबसे पहले प्रकाश सिंह बादल ने मोदी को संसदीय दल का नेता घोषित किए जाने का प्रस्ताव पेश किया, जिसका अन्य नेताओं ने अनुमोदन किया। वाराणसी में नामांकन के दौरान भी मोदी ने बादल के पाँव छू कर आशीर्वाद लिया था। अडवाणी, जोशी और बादल- तीनों ही भाजपा व राजग के सबसे बड़े नेताओं में से रहे हैं, और मोदी-शाह ने इनका सम्मान करते हुए यह दिखाया कि भाजपा आज भी वही संस्कार लेकर चल रही है, जो इसमें दशकों से समाहित है।

लेकिन, संसद भवन में मोदी को नेता चुने जाने के दौरान एक और चीज हुई, जिसकी ख़ूब चर्चा हुई। पिछली बार 2014 में मोदी ने जीत के बाद पहली बार संसद में कदम रखते हुए संसद भवन की सीढ़ियों पर झुक कर प्रणाम किया था। संसद भवन को लोकतंत्र का मंदिर बताने वाले मोदी ने सदन के भीतर भी कई बार सांसदों को उनकी ज़िम्मेदारियाँ याद दिलाई। इस बार मोदी अपने भाषण से पहले माइक की तरफ जाने की बजाए किसी अन्य तरफ चल निकले। दरअसल, उन्होंने भारतीय संविधान के पास जाकर अपना सर झुकाया और उसे प्रणाम किया। संविधान को सर नवाने वाले मोदी ने कोशिश की कि लोकतंत्र में यही सबसे बड़ा है और शासन-प्रशासन इसके अनुरूप होना चाहिए।

भगवान शिव और महात्मा बुद्ध के संगम को प्रदर्शित करने के बाद मोदी ने पार्टी के अभिभावकों का आशीर्वाद लिया और फिर वे गुजरात अपनी माँ से मिलने पहुँचे। पीएम मोदी ने अपनी माँ के चरणों में शीश झुका कर उनका आशीर्वाद लिया और अन्य परिवारजनों से मुलाक़ात की। अपने घर गए मोदी ने गुजरात की जनता का अभिनन्दन किया और सरदार पटेल की प्रतिमा को पुष्पहार पहनाया। पीएम मोदी जानते हैं कि आज वह जो भी हैं, उसके मूल में कहीं न कहीं गुजरात ही है, जिसनें उन्हें तीन चुनावों में जीत दिलाई। दंगों के बाद हुए चुनावों में जब उनकी प्रतिष्ठा दाँव पर थी, गुजरात ने मोदी को फिर से सीएम बनाया। इसके बाद मोदी की छवि बदल गई। अब वह सिर्फ़ पार्टी आलाकमान द्वारा चुने गए मुख्यमंत्री ही नहीं थे, अपितु जनता का भी विश्वास जीत चुके थे।

2007 विधानसभा चुनाव में उनकी जीत के बाद यह विश्वास और पक्का हुआ। 2012 में मोदी के प्रधानमंत्री मटेरियल होने की चर्चा ज़ोर हुई और यही वो विधानसभा चुनाव था, जिसनें मोदी को सीधा राष्ट्रीय पटल पर मजबूती से लाकर रख दिया। गुजरात की जनता ने 2012 में मोदी को जीता कर उनका क़द बढ़ा दिया। 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी के गृह राज्य में भाजपा ने सारी सीटें जीत ली। इसके बाद 2017 में भाजपा को गुजरात में हार दिख रही थी, तब मोदी ने इतनी मेहनत की कि बोलते-बोलते उनका गला तक बैठ गया। ताज़ा लोकसभा चुनाव में पार्टी ने अपना 2014 वाला प्रदर्शन दोहराया। हारती हुई भाजपा को गुजरात में जीत मिली। प्रधानमंत्री उसी एहसान के लिए धन्यवाद देने गुजरात पहुँचे और जनता को सम्बोधित किया।

गुजरात के बाद पीएम मोदी अपनी नई राजनीतिक कर्मभूमि वाराणसी पहुँचे, जहाँ वह नामांकन के बाद नहीं गए थे। मोदी ने वाराणसी में रोड शो के अलावा कोई चुनाव-प्रचार नहीं किया और उन्हें भारी जीत मिली। वाराणसी पहुँचे मोदी ने काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना की। इस दौरान मंदिर में रुद्राष्टकम का भी पाठ होता रहा, जिसे गोस्वामी तुलसीदास द्वारा शिव की स्तुति करते हुए रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में लिखा गया है। केदारनाथ में शिव और बुद्ध के संगम को प्रदर्शित करने वाले मोदी ने द्वारकाधीश श्रीकृष्ण की धरती से लौट कर महादेव की धरती पर राम और शिव के संगम को प्रदर्शित किया। इनमें से अधिकतर दौरों में अमित शाह उनके साथ रहे।

कुल मिलाकर देखें तो मोदी ने बुद्ध पूर्णिमा के दिन केदारनाथ जाकर गुफा में ध्यान किया। फिर उन्होंने भाजपा के अभिभावकों से आशीर्वाद लिया। उसके बाद वह अपनी माँ के चरणों में थे, परिवारजनों से मुलाक़ात की। फिर उन्होंने अपने गृह राज्य की जनता को धन्यवाद करते हुए सरदार पटेल को याद किया और मूर्ति पर माल्यार्पण किया। तत्पश्चात मोदी वापस बाबा की नगरी काशी पहुँचे। सरदार पटेल की मूर्ति को लेकर काफ़ी विवाद भी हुआ था लेकिन मोदी को शायद पता है कि प्रतीक चिह्नों का राजनीति व संस्कृति में क्या महत्व है। संविधान को शीश नवाने वाले मोदी काशी विश्वनाथ में महादेव की पूजा अर्चना करते हैं, यानी अगले पाँच वर्ष जो भी काम होंगे, लोकतंत्र के अनुरूप होंगे और भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक आस्था का सम्मान करते हुए होंगे।

3 मासूमों की हत्या, 3 मुस्लिम अभियुक्त… फिर भी मोदी के नाम पर सोशल मीडिया पर फैलाया जा रहा जहर

बुलन्दशहर में तीन मासूम बच्चों की हत्या के मामले में जहाँ एक तरफ पुलिस ने तीन में से दो आरोपियों इमरान और बिलाल को गिरफ्तार कर लिया है और यह बात खुल कर सामने आ रही है कि हत्याकांड को मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ही आपसी रंजिश के चलते अंजाम दिया, उसके बाद भी कुछ लोग इसे जबरदस्ती हिन्दू-मुस्लिम विवाद का रूप देने से लेकर ‘मोदी का न्यू इंडिया’ तक को घसीटने से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे में क्षेत्र और प्रदेश में बेवजह का साम्प्रदायिक तनाव फैलने का खतरा मंडरा रहा है।

सोशल मीडिया पर फैलाया जा रहा जहर

सोशल मीडिया पर आधे सच का भ्रामक झूठ बोला जा रहा है। मारे गए बच्चों की तो मजहबी पहचान बताई जा रही है लेकिन हत्यारोपियों की छिपाई जा रही है।

कुछ लोग तो इसे भोपाल और गुरुग्राम (गुड़गाँव) में प्रकाश में आए तथाकथित साम्प्रदायिक दुर्भावना से की गई हिंसा के मामलों से जोड़ रहे हैं, जबकि न केवल इस मामले की प्रकृति न केवल उन मामलों के कथित परिप्रेक्ष्य से अलग है बल्कि उन मामलों की तो अभी जाँच भी नहीं पूरी हुई है।

बुलंदशहर पुलिस भी ट्विटर पर लगातार मामले के अपडेट्स यथाशीघ्र दे रही  है, ताकि भ्रम न फैले।

रोजा इफ्तार में न बुलाया जाना आ रहा है कारण के तौर पर

रोजा इफ्तार में न बुलाए जाने के कारण बुलंदशहर, मेरठ (उत्तर प्रदेश) के सलेमपुर क्षेत्र में मेज़बान परिवार के तीन बच्चों की गोली मार कर निर्ममता से हत्या कर दी गई थी। मृतक बच्चे अब्दुल, आसमा और अलीबा क्रमशः 8, 7 और 8 वर्ष के थे। हत्या के बाद बच्चों के शव घटनास्थल से 15 किलोमीटर दूर ले जाकर सलेमपुर थाने के अंतर्गत आने वाले धतूरी गाँव के एक कुएँ में फेंक दिए गए। हत्या का खुलासा तब हुआ जब बच्चों की लाशों को शनिवार सुबह पुलिस ने कुएँ से बरामद किया।

पुलिस हालाँकि यह दावा कर रही है कि मामले की सूचना ही पुलिस को देर से दी गई, पर प्रथम दृष्टया पुलिस की ओर से भी कुछ ढिलाई हुई देखते हुए एसएसपी एन कोलांचि ने त्वरित कार्रवाई की- नगर कोतवाल ध्रुव भूषण दूबे और मुंशी अशोक कुमार शर्मा को निलंबित कर दिया। कुछ मीडिया रिपोर्टों  में यह भी कहा जा रहा था कि मुख्य आरोपी सलमान मलिक ने कुछ दिन पहले भी पिस्तौल दिखाकर पीड़ित परिवार को धमकी दी थी। मलिक पीड़ित परिवार का ही रिश्तेदार भी बताया जा रहा है