देश की राजनीति अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोबारा के इर्द-गिर्द घूम रही है और वे दोबारा शपथ लेने के लिए तैयार हैं। ताज़ा लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के बाद भाजपा का उत्साह चरम पर है और मोदी के भाषणों की तमाम व्याख्याएँ की जा रही हैं। पत्रकारों, विश्लेषकों और मीडिया द्वारा पीएम मोदी द्वारा कही गई हर बातों की काफ़ी जाँच-परख करके उनके कई अर्थ निकाले जा रहे हैं, जिससे पता चले कि उनके अगले कार्यकाल के दौरान 5 वर्षों के लिए भारत आकार का रुख़ क्या रहेगा? नेताओं के बयानों से हवा का रुख़ भाँपने वाली मीडिया ने पीएम मोदी की गतिविधियों को नज़रअंदाज़ कर दिया। चुनाव के समापन के बाद से ही मोदी के क्रियाकलापों पर हम यहाँ एक एक नज़र डालेंगे।
यहाँ हम ये बात नहीं करेंगे कि मोदी क्या खाते, पहनते और ओढ़ते हैं बल्कि यहाँ हम प्रधानमंत्री के ताज़ा दौरों व स्थलों के चुनाव का विश्लेषण करेंगे। प्रधानमंत्री का व्यक्तिगत जीवन भी है और उन्होंने ख़ुद अपनी माँ से आशीर्वाद लेते हुए फोटो सोशल मीडिया पर साझा की, इसीलिए हम उस पर भी बात करेंगे। सबसे पहले शुरू करते हैं केदारनाथ से। प्रधानमंत्री ने समुद्र तल से क़रीब 12000 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित केदारनाथ में जाकर पूजा-अर्चना की। क्या आपको पता है, जिस दिन पीएम मोदी ने रुद्राभिषेक किया और ध्यान धरा, उस दिन का क्या महत्व था?
दरअसल, उस दिन बौद्धों का सबसे बड़ा त्यौहार यानि बुद्ध पूर्णिमा का दिन था। क़रीब 2 दर्जन देशों में बौद्धों द्वारा मनाए जाने वाले इस त्यौहार के दिन चीन और कोरिया सहित दुनिया भर के कई देशों के लोग छुट्टियाँ भी मनाते हैं। पीएम मोदी ने 18 मई को जब केदारनाथ का दौरा किया, उस दिन प्राचीन भारत के सबसे बड़े आध्यात्मिक पुरोधा भगवान बुद्ध की जयंती थी। भगवान बुद्ध ध्यान के लिए जाने जाते थे, यही कारण है कि बौद्ध धर्म में मैडिटेशन यानि ध्यान का बड़ा महत्त्व है। हिन्दू धर्म में भगवान शिव को अधिकतर ध्यानावस्था में दिखाया जाता रहा है। यही वो क्रिया है जो भगवान बुद्ध और शिव को जोड़ती है। एक पीपल के पेड़ के नीचे ध्यानमग्न दिखाए जाते हैं तो दुसरे कैलाश पर्वत के एकांत में ध्यानमग्न होते हैं।
बुद्ध पूर्णिमा के दिन प्रधानमंत्री द्वारा केदारनाथ की गुफा में ध्यान धरना इन्हीं सांकेतिक पहलुओं का मिलन था, बुद्ध और शिव को एक साथ देखने की चेष्टा के अलावा उनके द्वारा दिखाए गए ध्यान के मार्ग पर चलने के लिए एक तत्परता थी। जब प्रधानमंत्री के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा होने के बाद भारत सहित दुनिया भर में योग के प्रति लोगों की खोई जागृत हो सकती है, आयुर्वेदिक उत्पादों की बिक्री में अभूतपूर्व वृद्धि हो सकती है, योग प्रशिक्षकों को नौकरी के नए अवसर मिल सकते हैं, तो ध्यान करना और मैडिटेशन का अभ्यास करना भी जनता के लिए एक नए सन्देश लेकर आ सकता है। ये थी केदारनाथ की बात।
इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में जनता ने फिर से विश्वास जताया और मोदी के नेतृत्व में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला। पिछली बार की तरह इस बार भी गुजरात में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया और कॉन्ग्रेस का राज्य में खाता तक नहीं खुला। संसद भवन में राजग की बैठक हुई, जिसमें भाजपा के दोनों पुरोधाओं, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की उपस्थिति में मोदी को सर्वसम्मति से राजग संसदीय दाल का नेता चुना गया, जिसके बाद उनके फिर से प्रधानमंत्री बनने का औपचारिक मार्ग प्रशस्त हो गया। इससे एक दिन पहले भाजपा के दोनों पूर्व अध्यक्षों, जोशी और अडवाणी के यहाँ मोदी और शाह ने जाकर उनसे आशीर्वाद लिया।
जोशी ने बाद में कहा कि भाजपा में जीत के बाद बड़ों की शुभकामनाएँ व आशीर्वाद लेने का चलन रहा है, और मोदी ने उसे बखूबी निभाया। राजग की तरफ से सबसे पहले प्रकाश सिंह बादल ने मोदी को संसदीय दल का नेता घोषित किए जाने का प्रस्ताव पेश किया, जिसका अन्य नेताओं ने अनुमोदन किया। वाराणसी में नामांकन के दौरान भी मोदी ने बादल के पाँव छू कर आशीर्वाद लिया था। अडवाणी, जोशी और बादल- तीनों ही भाजपा व राजग के सबसे बड़े नेताओं में से रहे हैं, और मोदी-शाह ने इनका सम्मान करते हुए यह दिखाया कि भाजपा आज भी वही संस्कार लेकर चल रही है, जो इसमें दशकों से समाहित है।
लेकिन, संसद भवन में मोदी को नेता चुने जाने के दौरान एक और चीज हुई, जिसकी ख़ूब चर्चा हुई। पिछली बार 2014 में मोदी ने जीत के बाद पहली बार संसद में कदम रखते हुए संसद भवन की सीढ़ियों पर झुक कर प्रणाम किया था। संसद भवन को लोकतंत्र का मंदिर बताने वाले मोदी ने सदन के भीतर भी कई बार सांसदों को उनकी ज़िम्मेदारियाँ याद दिलाई। इस बार मोदी अपने भाषण से पहले माइक की तरफ जाने की बजाए किसी अन्य तरफ चल निकले। दरअसल, उन्होंने भारतीय संविधान के पास जाकर अपना सर झुकाया और उसे प्रणाम किया। संविधान को सर नवाने वाले मोदी ने कोशिश की कि लोकतंत्र में यही सबसे बड़ा है और शासन-प्रशासन इसके अनुरूप होना चाहिए।
भगवान शिव और महात्मा बुद्ध के संगम को प्रदर्शित करने के बाद मोदी ने पार्टी के अभिभावकों का आशीर्वाद लिया और फिर वे गुजरात अपनी माँ से मिलने पहुँचे। पीएम मोदी ने अपनी माँ के चरणों में शीश झुका कर उनका आशीर्वाद लिया और अन्य परिवारजनों से मुलाक़ात की। अपने घर गए मोदी ने गुजरात की जनता का अभिनन्दन किया और सरदार पटेल की प्रतिमा को पुष्पहार पहनाया। पीएम मोदी जानते हैं कि आज वह जो भी हैं, उसके मूल में कहीं न कहीं गुजरात ही है, जिसनें उन्हें तीन चुनावों में जीत दिलाई। दंगों के बाद हुए चुनावों में जब उनकी प्रतिष्ठा दाँव पर थी, गुजरात ने मोदी को फिर से सीएम बनाया। इसके बाद मोदी की छवि बदल गई। अब वह सिर्फ़ पार्टी आलाकमान द्वारा चुने गए मुख्यमंत्री ही नहीं थे, अपितु जनता का भी विश्वास जीत चुके थे।
2007 विधानसभा चुनाव में उनकी जीत के बाद यह विश्वास और पक्का हुआ। 2012 में मोदी के प्रधानमंत्री मटेरियल होने की चर्चा ज़ोर हुई और यही वो विधानसभा चुनाव था, जिसनें मोदी को सीधा राष्ट्रीय पटल पर मजबूती से लाकर रख दिया। गुजरात की जनता ने 2012 में मोदी को जीता कर उनका क़द बढ़ा दिया। 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी के गृह राज्य में भाजपा ने सारी सीटें जीत ली। इसके बाद 2017 में भाजपा को गुजरात में हार दिख रही थी, तब मोदी ने इतनी मेहनत की कि बोलते-बोलते उनका गला तक बैठ गया। ताज़ा लोकसभा चुनाव में पार्टी ने अपना 2014 वाला प्रदर्शन दोहराया। हारती हुई भाजपा को गुजरात में जीत मिली। प्रधानमंत्री उसी एहसान के लिए धन्यवाद देने गुजरात पहुँचे और जनता को सम्बोधित किया।
गुजरात के बाद पीएम मोदी अपनी नई राजनीतिक कर्मभूमि वाराणसी पहुँचे, जहाँ वह नामांकन के बाद नहीं गए थे। मोदी ने वाराणसी में रोड शो के अलावा कोई चुनाव-प्रचार नहीं किया और उन्हें भारी जीत मिली। वाराणसी पहुँचे मोदी ने काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना की। इस दौरान मंदिर में रुद्राष्टकम का भी पाठ होता रहा, जिसे गोस्वामी तुलसीदास द्वारा शिव की स्तुति करते हुए रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में लिखा गया है। केदारनाथ में शिव और बुद्ध के संगम को प्रदर्शित करने वाले मोदी ने द्वारकाधीश श्रीकृष्ण की धरती से लौट कर महादेव की धरती पर राम और शिव के संगम को प्रदर्शित किया। इनमें से अधिकतर दौरों में अमित शाह उनके साथ रहे।
कुल मिलाकर देखें तो मोदी ने बुद्ध पूर्णिमा के दिन केदारनाथ जाकर गुफा में ध्यान किया। फिर उन्होंने भाजपा के अभिभावकों से आशीर्वाद लिया। उसके बाद वह अपनी माँ के चरणों में थे, परिवारजनों से मुलाक़ात की। फिर उन्होंने अपने गृह राज्य की जनता को धन्यवाद करते हुए सरदार पटेल को याद किया और मूर्ति पर माल्यार्पण किया। तत्पश्चात मोदी वापस बाबा की नगरी काशी पहुँचे। सरदार पटेल की मूर्ति को लेकर काफ़ी विवाद भी हुआ था लेकिन मोदी को शायद पता है कि प्रतीक चिह्नों का राजनीति व संस्कृति में क्या महत्व है। संविधान को शीश नवाने वाले मोदी काशी विश्वनाथ में महादेव की पूजा अर्चना करते हैं, यानी अगले पाँच वर्ष जो भी काम होंगे, लोकतंत्र के अनुरूप होंगे और भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक आस्था का सम्मान करते हुए होंगे।