Wednesday, November 20, 2024
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30 मई को दोबारा प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे नरेंद्र मोदी, कई केंद्रीय मंत्री भी लेंगे शपथ

बीजेपी संसदीय दल के नेता चुने जाने के बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नई सरकार का शपथ ग्रहण समारोह 30 मई को राष्ट्रपति भवन में आयोजित किया जाएगा।

राष्ट्रपति भवन ने ट्वीट कर जानकारी देते हुए बताया, “राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 30 मई को शाम 7 बजे राष्ट्रपति भवन में प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्यों को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाएँगे।”

इससे पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भाजपा और राजग संसदीय दल नेता नरेंद्र मोदी को शनिवार (मई 25, 2019) को केंद्र में नई सरकार बनाने का न्यौता दिया था।

बता दें कि भारतीय जनता पार्टी और इसकी अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की ओर से नरेंद्र मोदी को सर्वसम्मति से अपना नेता चुने जाने के बाद मोदी सरकार बनाने का दावा पेश करने शनिवार रात राष्ट्रपति भवन गए।

मोदी ने बाद में राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में संवाददाताओं को बताया कि राष्ट्रपति ने उन्हें प्रधानमंत्री नियुक्त करते हुए नई सरकार का गठन करने को कहा है। उन्होंने कहा, “भारत के लिए विश्व में काफी अवसर हैं, सरकार उनका पूरा इस्तेमाल करने के लिए काम करेगी और एक पल के लिए भी आराम नहीं करेगी।”

मिलिए ओडिशा के उस BJP सांसद से जो साधु बनना चाहते थे, सादगी के कायल हो रहे लोग

सोशल मीडिया पर एक तस्वीर ख़ूब वायरल हो रही है। ये तस्वीर देखने पर तो किसी ग़रीब किसान की लगती है लेकिन आप यह जान कर चौंक जाएँगे कि धोती और गमछे में लिपटा यह व्यक्ति सांसद है। ये तस्वीर है भाजपा सांसद प्रताप चंद्र सारंगी की। सारंगी ने ओडिशा के बालासोर से जीत दर्ज की है। ओडिशा में भाजपा ने 8 सीटों पर जीत दर्ज की है, वहीं राज्य की सत्ताधारी पार्टी बीजद ने 12 सीटों पर जीत दर्ज किया। बालासोर में प्रताप सारंगी का मुक़ाबला बीजद के रविंद्र कुमार जेना और कॉन्ग्रेस के नवज्योति पटनायक से था। सारंगी ने सर्वाधिक 4,83,858 मत पाकर जेना को 12,000 से भी अधिक मतों से हराया।

ओडिशा और बंगाल में भाजपा का प्रदर्शन काफ़ी शानदार रहा और पार्टी ने पिछले चुनाव के मुक़ाबले अच्छी बढ़त दर्ज की। सांसद चुने जाने से पहले प्रताप चंद्र सारंगी ओडिशा के नीलगिरी विधानसभा से 2004 और 2009 में विधायक चुने जा चुके हैं। इससे पहले वह 2014 के लोकसभा चुनाव में भी खड़े हुए थे, लेकिन तब उन्‍हें हार मिली थी। प्रताप सारंगी को नरेंद्र मोदी का करीबी माना जाता है। ख़बरों के अनुसार, मोदी जब भी ओडिशा आते हैं, तो सारंगी से मुलाकात जरूर करते हैं।

नीलगिरि के गोपीनाथपुर में जन्मे सारंगी बचपन से आध्यात्मिक हैं और रामकृष्ण मठ में साधु बनना चाहते थे। मठ ने उन्हें उनकी विधवा माँ की सेवा करने का सुझाव दिया। सारंगी ने बालासोर और मयूरभंज के आदिवासी इलाकों में कई स्‍कूल बनवाए हैं। सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरों को काफ़ी सम्मान के साथ शेयर किया जा रहा है।

समुदाय विशेष के ‘लिबरल’ पत्रकार ने मोदी की जीत पर मसूद अजहर को कहा: Thank You!

मोदी पर कालिख पोत-पोत कर उससे अपना कैरियर चमकाने वाले राजदीप सरदेसाई ने एक बार फिर मोदी के खिलाफ मीठा जहर उगला है। उनके अनुसार मोदी को अपनी जीत के लिए अमित शाह जैसे मित्रों और राहुल गाँधी जैसे कमजोर विपक्ष के साथ-साथ जैश-ए-मोहम्मद के सरगना और पुलवामा के षड्यंत्रकर्ता मौलाना मसूद अजहर का भी शुक्रगुज़ार हो उन्हें शुक्रिया करना चाहिए। राजदीप का यह बेतुका ज़हरीला सोच एक वीडियो के जरिए बाहर आया है।

ऊपरी तौर पर यह सामान्य सा व्यंग या हँसी-मजाक लग सकता है, लेकिन राजदीप सरदेसाई की बात को परिप्रेक्ष्य में समझा जाए तो मामला कुछ और ही हो जाता है। फर्जी लिबरल बन घूमने वाले पत्रकारिता के समुदाय विशेष के लोगों को यह तो बहुत दिनों से समझ में आ गया था कि ‘अमन की आशा’ का उनका पाकिस्तान-प्रेम वाला तमाशा जनता अब और नहीं झेलने वाली। तो उन्होंने दूसरा ही पैंतरा चलना शुरू कर दिया और भाजपा पर आतंकवाद के मुद्दे को, सेना के मुद्दे को ‘भुनाने’ का आरोप लगाने लगे। राजदीप का यह कथ्य भी उसी कथानक में है कि मोदी पुलवामा हमले और बालाकोट में दिए गए मुँहतोड़ जवाब के चलते ‘उभरे’ राष्ट्रवाद से जीत गए, वरना न जीतते।

राजदीप ने अपना 30 साल का कैरियर जिस तरह के प्रोपेगेंडा से बनाया है उसे देखते हुए यह बहुत आश्चर्यजनक नहीं है। एक तरफ वह खुद बार-बार मोदी को 2002 में नाहक लपेटते रहे और उसके बाद मनु जोसेफ के साथ साक्षात्कार में यह मानना पड़ा कि मोदी को दंगों के लिए दोषी ठहराना गलत था। इसके अलावा वह कॉन्ग्रेस नेता चिदंबरम के साथ भी अफस्पा के खिलाफ भ्रम पैदा करते पकड़े गए थे

रोजा इफ्तार में न बुलाए जाने के कारण तीन मासूम बच्चों की गोली मारकर हत्या

रोजा इफ्तार में न बुलाए जाने के कारण बुलंदशहर, मेरठ (उत्तर प्रदेश) के सलेमपुर क्षेत्र में होस्ट परिवार के तीन बच्चों की गोली मार कर निर्ममता से हत्या कर दी गई। मृतकों में अब्दुल (8), आसमा (7) और अलीबा (8) वर्ष उम्र के तीन बच्चे शामिल हैं। जिनमें से दो लड़कियाँ और एक लड़का है। इतना ही नहीं बल्कि हत्या के बाद बच्चों के शव घटनास्थल से 15 किलोमीटर दूर ले जाकर सलेमपुर ठाणे के अंतर्गत आने वाले धतूरी गाँव एक कुएँ में फेंक दिए गए। हत्या का खुलासा तब हुआ जब बच्चों की लाश शनिवार सुबह पुलिस ने कुएँ से बरामद किया।

मीडिया में खबरों के अनुसार परिवार को शक है कि रोजा इफ्तार पर न बुलाए जाने से नाराज एक रिश्तेदार मलिक ने दो अन्य लोगों बिलाल और इमरान के साथ घटना को अंजाम दिया है। पुलिस की छानबीन जारी है। इसके बाद ही घटना की सही तस्वीर सामने आ पाएगी।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पूरा मामला कुछ यूँ है कि तीनों बच्चों की हत्या कर शव दूर ले जाकर सलेमपुर धतूरी में फेंक दिया जाता है और पुलिस को भनक तक नहीं लगती है। यहाँ सवाल यह भी है कि अगर स्थानीय लोग शवों की सूचना नहीं देते तो क्या पुलिस उन्हें बरामद कर पाती।

कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह भी कहा जा रहा है कि आरोपित ने कुछ दिन पहले भी पिस्टल दिखाकर पीड़ित परिवार को धमकी भी दी थी। खैर, आरोपित जो भी हो उसे जल्द से जल्द सलाखों के पीछे होना चाहिए जो मात्र रोजा इफ्तार पार्टी में न बुलाए जाने से आहत होकर तीन मासूमों की जान लेने जैसा जघन्य अपराध कर सकता हो। पुलिस ने मामले की छानबीन शुरू कर दी है।

हालाँकि, पुलिस का यह भी कहना है कि उन्हें इस मामले में सूचना देर से दी गई। और थोड़ी लापरवाही पुलिस की तरफ से भी हुई है। फिर भी, तीन बच्चों के मर्डर के मामले में एसएसपी एन कोलांचि ने कहा कि हमने लापरवाही बरतने के ज़िम्मेदार लोगों पर त्वरित कार्रवाई की है। एसएसपी ने नगर कोतवाल ध्रुव भूषण दूबे और मुंशी अशोक कुमार शर्मा को इस मामले में लापरवाही बरतने के कारण निलंबित कर दिया है।

MP कॉन्ग्रेस में बगावत: कमलनाथ के मंत्री ने कहा ‘महाराज’ सिंधिया को बनाया जाए CM

मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस की करारी हार के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ के ख़िलाफ़ बग़ावत के स्वर उठ रहे हैं। इसमें अब राज्य की एक कैबिनेट मंत्री का नाम भी शामिल हो गया है। मध्य प्रदेश की बाल विकास मंत्री इमरती देवी ने कहा कि अब ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाने का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि अपने छोटे से कार्यकाल में राज्य सरकार ने विकास के लिए बहुत कुछ करने का प्रयास किया लेकिन लोकसभा चुनावों के बाद लगता है कि कहीं न कहीं कुछ कमी रह गई है। माना जा रहा है कि राज्य में सत्ता के दो केंद्र होने से बचने के कारण सिंधिया को यूपी का प्रभार दिया गया था।

इमरती देवी के बयान के बाद पार्टी में हलचल तेज़ हो गई। उन्होंने कहा कि पार्टी के नेतृत्व को अब सिंधिया को कमान देने के विषय में सोचना चाहिए। उन्होंने राहुल गाँधी से ‘महाराज’ को प्रदेश की कमान देने की माँग की। सिंधिया के समर्थन में उन्होंने आगे कहा, “मैं महाराज सिंधिया से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही हूँ। गुना-शिवपुरी सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार की वजह ईवीएम में गड़बड़ी भी हो सकती है।” इमरती देवी के बाद कई अन्य नेताओं ने भी बग़ावती तेवर दिखाए।

कमलनाथ मध्य प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी हैं, ऐसे में राज्य में कॉन्ग्रेस के कोषाध्यक्ष गोविन्द गोयल ने भी उन्हें हार की ज़िम्मेदारी लेने को कहा है। उन्होंने कहा कि कमलनाथ ने पहले ही कहा था कि मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके पास पार्टी के लिए समय नहीं रहेगा। बता दें कि कमलनाथ ने चुनाव से पहले राज्य कैबिनेट के मंत्रियों को अपने-अपने क्षेत्रों में कॉन्ग्रेस को बढ़त दिलाने को कहा था। मुख्यमंत्री ने पार्टी को घाटा होने की स्थिति में मंत्रियों पर कार्रवाई करने की बात भी कही थी।

विधानसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस के बाग़ी हुए नेता निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह ठाकुर ने भी कहा कि पार्टी का कमजोर संगठन और ग़लत प्रत्याशी चयन हार का बड़ा कारण रहा। उन्होंने कहा कि खंडवा सीट पर अरुण यादव और भोपाल सीट पर दिग्विजय सिंह को उतारना पार्टी का ग़लत फैसला था। अन्य कॉन्ग्रेस नेताओं जैसे लक्ष्मण सिंह और पीसी शर्मा ने भी बग़ावती तेवर दिखाते हुए बयान दिए। बता दें कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ख़ुद लगभग सवा एक लाख मतों से गुना लोकसभा सीट से हार चुके हैं।

Padm Shri से सम्मानित गोसेवा करने वाली जर्मन महिला को सुषमा दिलाएँगी वीसा

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित फ्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग के वीजा की अवधि को बढ़ाने से इनकार करने पर अपने अधिकारियों से रिपोर्ट माँगी है। फ्रेडरिक का वीजा अगले महीने की 25 तारीख को समाप्त होने वाला है। 61 वर्षीय फ्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग जर्मनी की रहने वाली है और वो पिछले 42 वर्षों से भारत में रहकर गौसेवा कर रही हैं। इन्हें सुदेवी दासी गोवर्धन के रुप में भी जाना जाता है। गौसेवा करने के लिए फ्रेडरिक को इसी साल 16 मार्च को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के हाथों पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।

दरअसल, फ्रेडरिक भारत में ही रहना चाहती है और गौसेवा करना चाहती है। इसलिए उन्होंने वीजा बढ़ाने का आवेदन किया था, लेकिन विदेश मंत्रालय के लखनऊ ऑफिस में बिना कोई कारण बताए उनका आवेदन खारिज कर दिया गया है। जिसके बाद फ्रेडरिक एरीना ने कहा कि वो अपना पद्म श्री सम्मान वापस करना चाहती है। पुरस्कार लौटाने की बात पर एरिना का कहना है कि जब वो भारत में रहकर गायों की देखभाल नहीं कर सकती, तो फिर इसे रखने का क्या मतलब है? वो कहती हैं कि उन्‍हें पद्म श्री लौटाकर बहुत दुख होगा लेकिन अगर वीजा आवेदन को खारिज किया जाता रहा तो उनके पास इसे लौटाने के अलावा और कोई विकल्प भी नहीं है।

पाँच बीघा क्षेत्र में फैले सुरभि गौशाला का संचालन कर रही सुदेवी ने 1,500 से भी अधिक गायों को पाल रखा है, जिनकी वह लगातार देखभाल करती हैं। इन गायों में से अधिकतर बीमार, नेत्रहीन या अपाहिज हैं। इनमें से 52 गायें नेत्रहीन है जबकि 350 पैरों से अपाहिज है। उनके पैरों की नियमित मरहम-पट्टी की जाती है।

BJP की 250 सीटें आती तो आंध्र को विशेष दर्जे की शर्त पर ही देते समर्थन: जगन रेड्डी

आंध्रा प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने भाजपा को बहुमत मिलने पर अफ़सोस जताया है। हालाँकि, उन्होंने पीएम मोदी से मिल कर उन्हें शुभकामनाएँ दी और अपने शपथ ग्रहण समारोह में आने का निमंत्रण भी दिया। आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू को हरा कर मुख्यमंत्री बनने के लिए तैयार जगन मोहन रेड्डी वाईएसआर कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष हैं। उन्होंने अपनी पार्टी का नामकरण अपने पिता के नाम पर किया था। प्रधानमंत्री मोदी से मिलने के बाद रेड्डी ने कहा कि अगर भाजपा को 250 सीटें मिली होती तो वह आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा दिए जाने सम्बन्धी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कराए बिना समर्थन नहीं देते।

जगन रेड्डी ने कहा कि अगर भाजपा को 205 से कम सीटें आती तो उन्हें केंद्र सरकार पर निर्भर नहीं रहना होता। जगन ने कहा कि अब भाजपा को अन्य दलों की ज़रूरत नहीं है, इसीलिए उनसे जो हो सकता था वह कर रहे हैं और उन्होंने पीएम से मिल कर आंध्र की स्थिति से उन्हें अवगत कराया।

जगन मोहन रेड्डी ने कहा कि वह प्रधानमन्त्री से पहली बार मिल रहे हैं लेकिन अगले पाँच वर्षों में वह पीएम से 30, 40 या 50 बार भी मिल सकते हैं, ताकि वह आंध्र को विशेष दर्जा दिए जाने की माँग से उन्हें लगातार अवगत कराते रहें। रेड्डी ने कहा कि वह पूरे कार्यकाल के दौरान पीएम को ये बात याद दिलाते रहेंगे। बता दें कि 175 सदस्यीय विधानसभा में 151 सीटें लाकर वाईएसआर कॉन्ग्रेस ने चंद्रबाबू नायडू की पार्टी का लगभग सूपड़ा साफ़ कर दिया है।

चंद्रबाबू नायडू विपक्षी दलों की गोलबंदी के लिए लगातार दौरे कर रहे थे और अहम विपक्षी नेताओं से मुकलाकत कर रहे थे। अब उनकी सीएम की कुर्सी भी नहीं बची है। जगन मोहन रेड्डी जब आज रविवार (मई 26, 2019) को पीएम से मिलने पहुँचे, तब दोनों नेताओं के बीच काफ़ी गर्मजोशी देखने को मिली। पीएम ने उन्हें गले लगा कर शुभकामना दी। वाईएसआर कॉन्ग्रेस के अन्य नेताओं के साथ दिल्ली पहुँचे जगन ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से भी मुलाक़ात की।

विजयवाड़ा में हुई बैठक में सर्वसम्मति से पार्टी के विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद जगन मोहन ने राज्यपाल से मिल कर सरकार बनाने का दावा भी पेश कर दिया। नवंबर 2010 में कॉन्ग्रेस से नाराज़गी के कारण गठित पार्टी को मुख्य विपक्षी दल से लेकर सत्तारूढ़ दल तक के सफर में जगन ने आंध्र का गहन दौरा किया और कई जनसभाएँ सम्बोधित की।

लिबरल गिरोह, जले पर स्नेहलेप लगाओ, मोदी के भाषण पर पूर्वग्रहों का ज़हर मत डालो

कल मोदी ने स्पीच दी। ऐसा भाषण जिसमें आप विरोधी होकर भी ख़ामियाँ नहीं निकाल सकते। ज्ञानी आदमी तो ज्ञानी होता है। ज्ञानी आदमी चुप रहता है। उसे पता है कि किस स्पीच की क्या अहमियत है। उसे पता होता है कि संदर्भ, काल और परिस्थिति क्या है। उसे पता होता है कि सत्य क्या है, असत्य क्या है। इसलिए वो सकारात्मक और नकारात्मक, दोनों ही स्थिति में शांत रहना पसंद करता है। ज्ञानी व्यक्ति को पता होता है कि दोनों ही विपरीत परिस्थितियों में, एक सी स्थिति बना कर रहना ही सर्वोपयुक्त अवस्था है। वो जब बोलता है तब भी उसकी बातों में तार्किकता होती है, सिर्फ भावनाएँ नहीं जो कि परिस्थितिजन्य होती हैं, और कई बार तथ्यों से परे।

इसके विपरीत, जो स्वयं को ज्ञानी समझते हैं, वो लोग, जो सामने है, उसके परे जाकर, अपने पूर्वग्रहों के साथ, अपने तथ्य और अपने आँकड़ों के साथ संवाद करते हैं, जबकि उनकी शुरुआत किसी दूसरे व्यक्ति को विषय बना कर होती है। वो शुरु करेंगे कि ‘मोदी ने स्पीच तो बहुत अच्छी दी’ और एक ही पैराग्राफ़ तक उतरते हुए वो अपना प्रोपेगेंडा, फ़रेब और प्रेज्यूडिस (पूर्वग्रह) का वमन कर देंगे।

वो तुरंत ही उसी भविष्य में चले जाएँगे जिसे उन्होंने 2014 की मई में देख कर कहा था कि अब तो सड़कों पर हिन्दू नंगी तलवारें लिए दौड़ेंगे, समुदाय विशेष को तो काट दिया जाएगा, गली-गली में दंगे होंगे, मस्जिदों का तोड़ दिया जाएगा, समुदाय विशेष की बस्तियों पर बम गिराए जाएँगे…

याद कीजिए, क्या ऐसी बातें लिबरलों के गिरोह और इस देश के पढ़े लिखे लोगों ने नहीं उठाई थीं? याद कीजिए कि पाँच साल क्या इस गिरोह के लोगों और फेसबुकिया समर्थकों ने प्रपंच के सच होने के इंतजार में जीभों नहीं लपलपाई? क्या इन रक्तपिपासु बुद्धिजीवियों की आँखों में बिल्लौरी चमक नहीं आई जब कोई समुदाय विशेष का इंसान किसी भीड़ का शिकार बना?

क्या ये लोग उस हत्या या सामाजिक अपराध पर संवेदना दिखा रहे थे? जी नहीं! ये अपने भीतर की कुंठा को सेलिब्रेट कर रहे थे। ये चाहते थे, और आज भी चाहते हैं कि कोई मजहब विशेष का व्यक्ति मरे और ये सरकार को घेरें। ये चाहते हैं कि नजीब अहमद कहीं से कटे सर के साथ, किसी जंगल में किसी को मिले और उसकी जेब में एक पत्र हो कि उसे भाजपा वालों ने मार दिया। फिर नजीब का गायब होना, मुद्दा नहीं रह जाएगा। मुद्दा वो पत्र हो जाएगा जिसकी ऑथेन्टिसिटी संदिग्ध होगी लेकिन माहौल बना कर कोई चुनाव प्रभावित कर दिया जाएगा।

आपको लगता है कि इन लिबरलों को, इन वामपंथियों को, कॉन्ग्रेसियों को, पत्रकारों के समुदाय विशेष को, इन सारे तरह के दोगलों को कोई फ़र्क़ पड़ता है कि अखलाक़ जैसे व्यक्ति की हत्या कर दी गई या कोई जुनैद सीट के झगड़े में मारा गया, या किसी वेमुला ने आत्महत्या कर ली? आप ग़लतफ़हमी में है। ये सारी मौतें, आपको इसलिए याद नहीं कि आप संवेदनशील हैं, ये सारी मौतें आपको सिर्फ इसलिए याद हैं कि इन्हें जलाने-दफ़नाने के बाद भी लेखों, भाषणों, एंकरों के शुरुआती एकालापों में इन्हें कुत्सित विचारों के फॉर्मेलिन लेप में, ठंढी उदासीन संवेदना के बर्फ़ की सिल्लियों पर इन्हें ज़िंदा रखा गया।

आप इन चेहरों को पहचान लीजिए। ये शब्दों की समुराय तलवार भाँजते हुए छद्म-बुद्धिजीवी चाहते हैं कि रक्त बहे और उसे रंगा जाए। ये चाहते हैं कि समाज में कोई हिन्दू भीड़ किसी समुदाय विशेष के व्यक्ति की हत्या करे। उन्हें बस हेडलाइन ही चाहिए, भीतर में ज़मीन का झगड़ा हो, या बेटी को छेड़ने की बात, उससे फ़र्क़ नहीं पड़ता। उसे शब्दों से ये ऐसे रच देंगे कि वहाँ लाशों का रंग निखर जाएगा और भीड़ के सर पर एक विचारधारा की बात पटक दी जाएगी।

ये हुआ है, और ये आगे भी होगा। जब वेटिकन और मक्का आज तक भारत को ईसाई और इस्लामी बनाने के लिए आक्रमण से लेकर उपनिवेश बनाने तक, और वैचारिक से लेकर राजनैतिक तक, हर तरह के तंत्र का प्रयोग कर रहा है, तो ऐसे लोग गायब कैसे हो जाएँगे। इसलिए, ये तो भूल कर भी मत सोचिए कि इन वैचारिक दोगलों की जमात साँस लेने के लिए भी रुकेगी। इनका ज़हर और तेज होगा।

मोदी के भाषण के बाद जिस तरह की लाइन इन लोगों ने ली है, उससे एक दुर्गंध आप सूँघ सकते हैं। इनकी बदबू आप तक न चाहते हुए भी पहुँच जाएगी। ये इतने नीच लोग हैं, ये इतने गिरे हुए इन्सान हैं, कि पाँच सालों के कार्यकाल के बाद, पहले से भी अधिक बहुमत, अधिक वोट शेयर पाने वाली सरकार को, अपनी अभिजात्यता के घमंड से आँकने में कसर नहीं छोड़ रहे।

इन्हें लगता है कि देश के कुछ लोगों के वोट का मूल्य बाक़ियों के वोट को मूल्य से करोड़ गुणा ज्यादा होना चाहिए। ये चाहते हैं कि इनके जैसे लोगों के पास सत्ता को चुनने की शक्ति होनी चाहिए। इसीलिए ये सड़ाँध मारते छद्मबुद्धिजीवी यह शेयर करते पाए जाते हैं कि लोकतंत्र को जनता के हाथों में छोड़ देना गलत है क्योंकि ये बहुत ज़्यादा मूल्यवान है। इस पंक्ति में घमंड है। इस पंक्ति में असफल लोगों के लिए, हारी हुई विचारधाराओं के लिए, और सामान्य मानव को लेकर एक घृणा है कि वो ज्यादा पढ़े-लिखे हैं, अतः उनके विचारों की अहमियत, उन 25 करोड़ मतदाताओं से ज्यादा है जिसने मोदी को वोट दिया है।

जबकि वो लोग यह बात भूल जाते हैं कि उन 25 करोड़ में, 25 लाख लोग ऐसे होंगे जिनकी मानसिक अवस्था और अकादमिक क्वालिफ़िकेशन इन गिरोह के सरगनाओं से बेहतर होगी। यही कारण है कि ये अपनी विचारधारा, या जिसका भी ये समर्थन करते हैं, उसकी बुरी हार के बाद भी, किसी प्रधानमंत्री के आशावादी भाषण को अपनी घृणा के चश्मे से देखने में संकोच नहीं करते।

इन्होंने मोदी के भाषण के बाद, बिना किसी तथ्य के, सिर्फ अपनी फैंटसी और फेटिश को आधार बना कर यह लिख दिया कि भाषण तो ठीक है लेकिन अल्पसंख्यकों के मन में भय है उस पर मोदी को काम करना होगा। जबकि, यह भय पूरी तरह से, मीडिया का बनाया हुआ एक वाहियात-सा ग़ुब्बारा है जहाँ समुदाय विशेष को हर रात, स्टूडियो से, डराने की कोशिश की गई है। आपसी रंजिश की घटनाओं को धर्म से जोड़ा गया, मजहब विशेष द्वारा किए गए अपराधों पर चुप्पी साध ली गई, बंगाल के दंगों की मीडिया कवरेज यह कह कर नहीं हुई कि मीडिया को हवा नहीं देनी चाहिए वरना दूसरे इलाकों में भी भय फैल जाएगा…

लेकिन क्या बात इतनी सीधी है? क्या देश में अल्पसंख्यक सच में डरा हुआ है? किस आधार पर? क्योंकि कहीं किसी गौतस्कर को दस लोगों ने घेर कर पीटा? फिर हिंदुओं को भी तो यह कहने का अधिकार है कि वो समुदाय विशेष से डर कर जीते हैं कि कैराना से, कश्मीर से, बंगाल के कई गाँवों से उन्हें घेर कर निकाल रहे हैं। उन्हें भी तो हर ‘अल्लाहु अकबर’ के नारे के साथ बम धमाके करने वाले मज़हब के लोगों से डरना चाहिए। उन्हें भी तो यह हक़ मिले कि वो यह कह सके कि तुम तथाकथित गौरक्षकों द्वारा की गई भीड़ हत्याओं के सही आँकड़े रखो, और हम हर आतंकी घटना के आँकड़े रखते हैं, फिर तय करेंगे कि डर कौन फैला रहा है।

वहाँ आप भटके हुए नौजवान और पता नहीं कौन-कौन से मासूम तर्क ले आएँगे। आपसे आज़म खान जैसे बेहूदा लोगों की निंदा तक नहीं हो पाती। आपसे हाजी अली के ट्रस्टी की निंदा तो हो नहीं पाती। आप तो मौन रहकर मौलवी द्वारा किए जा रहे मजहबी बलात्कारों को समर्थन देते हैं। आप तो उस समय बैलेंस बनाने लगते हैं कि हिन्दुओं में भी कुरीतियाँ हैं! क्या हिन्दुओं की कुरीतियाँ ख़त्म होने से मौलवी निकाह हलाला के नाम पर करने वाले बलात्कार बंद कर देगा? क्या उसके ये मजहबी कानून हिन्दुओं के कारण हैं या कारण कुछ और है?

आपकी संवेदना आपके अल्पज्ञान से उपजती है। आपकी संवेदना आपकी विचारधारा के सापेक्ष चलती है। आप बहुत ही घटिया क़िस्म के धूर्त और आवारा लोग हैं जिन्हें किसी की मृत्यु से नहीं, उसके ख़ास मजहब से होने और मरने से मजा आता है। आपको लेख के लिए एक विषय मिल जाता है। इसलिए आपको मोदी की स्पीच में सकारात्मक बातों से ज्यादा इस बात पर नकली चिंता हो जाती है कि क्या मायनोरिटी सुरक्षित महसूस करेगी?

जबकि आप ये सारी बातें महज़ कल्पनाशीलता से कहते हैं। आपके पास कोई तथ्य नहीं है जो साबित कर सके कि पिछले पाँच साल में कितने देंगे हुए जो भाजपा शासित प्रदेशों में हुए, और उनकी संख्या ग़ैर-भाजपा शासित प्रदेशों से ज्यादा है। आप यह साबित नहीं कर पाएँगे कि मोदी की सरकार बनने के बाद मनमोहन की सरकार या कॉन्ग्रेस की किसी भी सरकार से ज़्यादा बड़े पैमाने के दंगे हुए हैं। छोटे दंगों की गिनती में भी आप हार जाएँगे। इसीलिए, आप घूम फिर कर गौरक्षकों पर आ जाते हैं, जैसे आप कुछ साबित नहीं कर पाए तो राफेल पर आ गए थे।

गौरक्षकों की घटनाओं की संख्या पता कीजिए, कितने मामलों में केस दर्ज नहीं हुआ, यह पता कीजिए और यह भी पता कीजिए कि कितनी बार गौतस्करों ने पुलिस पर गाड़ी चढ़ा दी। यह भी पता कीजिए कि गायों को चोरी से क्यों काटा जा रहा है। आपको बहुत बातें पता करने की ज़रूरत है, लेकिन आप नहीं करेंगे क्योंकि आपको लगता है कि आप लिख देंगे, और लोग मान लेंगे।

यही दंभ आपकी विचारधारा और टट्टी लेखों को अप्रासंगिक बन चुका है। आपको नहीं लगता कि आपने पाँच साल जो विषवमन किया है, जो ज़हर समाज में घोला है, जिस आग को हवा देते रहे, उसे लोगों ने नकार दिया? आपको लगता है कि दूसरे मजहब की महिलाओं ने मोदी को वोट नहीं दिया होगा? आपको लगता है कि बनारस में मोदी की जीत का जश्न मनाते दूसरे समुदाय के लोग टिकटॉक का विडियो बना रहे थे?

आपकी क़िस्मत बहुत अच्छी है कि इस देश का प्रधानमंत्री मोदी है जिसके कार्यकाल में किसी अख़बार पर प्रतिबंध नहीं लगा, किसी फिल्म का प्रदर्शन नहीं रुका, किसी दुर्गा के कार्टूनों के कारण उसे सजा नहीं हुई। आप स्वतंत्र हैं लिखने को और आप पर कोई हमले नहीं कर रहा। जिस सहजता से आपके तारणहार पत्रकार यह लिख देते हैं कि सरकार आवाज़ों को दबा रही है, वो किसी और कार्यकाल में नहीं दिखा। आप अगर यह लिख और बोल पा रहे हैं कि अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं, इसका यही मतलब है कि इतनी आज़ादी है कि सरकार के खिलाफ आप पाँच साल पत्रकारिता के नाम पर कैम्पेनिंग कर सकते हैं।

इसलिए, घृणा फैलाना बंद कीजिए। अगर ज्योतिषी नहीं हैं तो फिर चुप रहना सीखिए क्योंकि मुँह खोलने पर आप विष्ठा ही कर रहे हैं। कुछ ढंग का नहीं हो पा रहा तो मोदी ने जो कहा है उसी को शब्दशः लिखिए। विश्लेषण की कोशिश मत कीजिए क्योंकि उसमें आपका ज़हर घुलना तय है। अगर आप भीतर से जानते हैं कि आप ज्ञानी बनने की कोशिश कर रहे हैं, तो ठहर जाइए। ज्ञानी व्यक्ति स्थिर होता है, वो ज़हर की खुली पुड़िया हवा में खोले नहीं चलता।

राजीव कुमार के खिलाफ CBI ने जारी किया लुकआउट नोटिस, नहीं छोड़ सकते देश

सीबीआई ने शारदा चिट फंड घोटाले में राजीव कुमार पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। एजेंसी ने उनके खिलाफ एक साल की वैधता वाला लुकआउट नोटिस जारी किया है, जिसके बाद राजीव कुमार हवाई मार्ग से देश छोड़कर नहीं जा सकते, और हर एयरपोर्ट पर उनके देखे जाने की सूचना देनी होगी।

1989 बैच के पुलिस अधिकारी कुमार ₹2,500 करोड़ के घोटाले की जाँच की पहली टीम, पश्चिम बंगाल पुलिस की एसआईटी के अध्यक्ष थे। बाद में सीबीआई ने मामले की जाँच अपने हाथ में ले ली थी और पाया था कि राजीव कुमार ने अहम सबूतों वाले और मामले के संदिग्धों से जब्त कई लैपटॉप और फ़ोन अपनी हिरासत से रिलीज़ कर दिए थे। कुमार से पूछताछ करने गई सीबीआई टीम के कई लोगों को भी इस साल की शुरूआत में पश्चिम बंगाल की पुलिस ने हिरासत में ले लिया था (उस समय राजीव कुमार कमिश्नर के पद पर कायम थे)। इसको लेकर लोकसभा निर्वाचन के ठीक पहले केंद्र और राज्य सरकार के बीच गंभीर टकराव के आसार बन गए थे।

सहयोग नहीं कर रहे कुमार, सॉलिसिटर जनरल का आरोप

सीबीआई की तरफ से सर्वोच्च न्यायालय में पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि राजीव कुमार सरकार के साथ सहयोग नहीं कर रहे हैं। वह न केवल रौब झाड़ रहे हैं बल्कि सवालों को भी टालने और बात को घुमाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें 24 मई यानि (बीते हुए) कल तक गिरफ़्तारी से छूट मिली हुई थी। उन्होंने जब सुप्रीम कोर्ट से छूट की मियाद आगे बढ़ाने की गुज़ारिश की थी तो उन्हें अदालत ने इसके लिए कोलकाता उच्च न्यायालय जाने के लिए कह दिया था। पिछले महीने ही शीर्ष अदालत ने सीबीआई से भी अपने आरोपों के पक्ष में सबूत पेश करने के लिए कहा था ताकि सुप्रीम कोर्ट को यह तसल्ली हो सके कि राजीव कुमार की गिरफ्तारी राजनीतिक कारणों से नहीं हो रही।

क्या है मामला  

सारधा घोटाले में सीबीआई के अनुसार सारधा समूह की कंपनियों ने ऊँचे रिटर्न का लालच देकर लाखों निवेशकों के पैसे ऐंठ लिए थे। मामले की सीबीआई जाँच का आदेश सुप्रीम कोर्ट से मिलने के बाद जब एजेंसी ने पड़ताल शुरू की तो पाया कि घोटाले को अंजाम देने के लिए स्कीम ऑपरेटरों की कथित तौर पर नेताओं और पुलिस विभाग में भी साथ-गाँठ थी। सारधा के संस्थापक सुदीप्तो सेन ने भी सीबीआई को 2013 में लिखे गए इकबालिया खत में पत्रकारों, नेताओं, पुलिस वालों आदि को रिश्वत देने के बात कबूली थी

राजीव कुमार घोटाले की जाँच राज्य पुलिस के हाथ रहते एसआईटी के मुखिया थे। बाद में उन्हें 2016 में कोलकाता पुलिस का प्रमुख बना दिया गया था। उन पर आरोप है कि सीबीआई को बरामद कॉल रिकॉर्डिंग सौंपने से पहले उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण अंश मिटा दिए थे। इसके अलावा उन पर सुदीप्तो सेन का फोन उसे लौटा देने का भी आरोप है

चार्ज लेने दिल्ली भी नहीं पहुँचे राजीव कुमार   

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रैली में भाजपा और तृणमूल कार्यकर्ताओं के बीच हुई हिंसा के बाद पश्चिम बंगाल सीआईडी के एडीजी पद से हटाए गए राजीव कुमार को दिल्ली में गृह मंत्रालय में तैनाती मिली थी। वहाँ भी वह चार्ज लेने नहीं पहुँचे थे और यह मामला चर्चा में आ गया था। बाद में सफाई आई कि कुछ निजी कारणों के चलते वह चार्ज नहीं ले पाए

एशिया की सबसे बड़ी ईसाई कैथोलिक बिशप समिति ने मोदी की जीत को गले लगाया

जहाँ एक तरफ उत्तर-पूर्व और केरल के चर्चों के पादरी लगातार भाजपा व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वोट न देने की बात कर रहे थे वहीं एशिया की सबसे बड़ी कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ने पीएम मोदी को उनकी ऐतिहासिक जीत के लिए बधाई दी है। कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (CBCI) ने प्रधानमंत्री को शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि वे समावेशी और शांतिमय भारत के लिए नई सरकार के साथ मिल कर काम करने को तैयार हैं। कॉन्फ्रेंस ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को भी बधाई दी है। कॉन्फ्रेंस ने ऐसे नए भारत के निर्माण की बात कही, जहाँ शांति और समृद्धि लगातार बढ़ती रहे।

कॉन्फ्रेंस ने कहा कि वह ऐसे नए भारत के लिए आशावान है और इसके लिए प्रार्थना भी करता है। बिशप कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष ओसवाल्ड कार्डिनल ग्रेसियस ने कहा, “आपको जिन महान जिम्मेदारियों को निभाने के लिए जनता ने चुना है, उसे पूरा करने के लिए भगवान आपको आवश्यक शक्ति, बुद्धिमत्ता और स्वास्थ्य प्रदान करें। इसके लिए मैं प्रार्थना करता हूँ।” मोदी को बधाई देते हुए कैथोलिक चर्च ने एक पत्र भी लिखा है। इस पत्र में लिखा गया है कि नए भारत के नज़रिए पर काम करने के लिए चर्च इच्छुक है। ये संस्था 19 करोड़ 90 लाख कैथोलिक ईसाईयों का प्रतिनिधित्व करती है।

चर्च ने लिखा कि नए भारत में युवाओं को आशा और ऊर्जा मिलेगी, महिलाओं का (ख़ासकर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली) सशक्तिकरण होगा और किसानों के लिए लम्बे समय तक के लिए प्रभावकारी अवसर पैदा किए जाएँगे। चर्च ने कहा कि बिना किसी को पीछे छोड़े हुए भारत की अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी। चर्च ने कहा कि जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्थिर एवं प्रभवशाली सरकार चलाने के लिए स्पष्ट बहुमत दिया है और समावेशी भारत की दिशा में उनके द्वारा किए जाने वाले प्रयासों की सफलता के लिए प्रार्थनाएँ की जाएँगी।

बता दें कि इसी बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया ने मार्च 2019 में प्रधानमंत्री को भेजे पत्र में मोदी सरकार की आलोचना करते हुए लिखा था कि धार्मिक मामलों में मीडिया की लापरवाही, भोजन की चॉइस को लेकर हुए कई विवाद और सांस्कृतिक भिन्नता ने सरकार की विश्वसनीयता को काफी प्रभावित किया है और अल्पसंख्यकों को असुरक्षित महसूस कराया है। संस्था ने उस समय पीएम को भेजे पत्र में अल्पसंख्यकों को लेकर चिंता जताते हुए उन्हें देश में सुरक्षित महसूस कराने की सलाह दी थी।

इस पत्र में सरकार को सभी धर्मों के त्योहारों का सम्मान करते हुए उनमें भाग लेने की सलाह दी गई थी। मार्च में पीएम को भेजे पत्र में आगे लिखा गया था कि यूजीसी, सीबीएसई, एनसीईआरटी, आईआईटी, आईआईएम, सीबीआई, ईडी और न्यायपालिका जैसे राष्ट्रीय संस्थानों और स्वायत्त निकायों को अवरोध के बिना कार्य करने की अनुमति दी जानी चाहिए और उन्हें दबाया या प्रतिस्थापित नहीं किया जाना चाहिए। बता दें कि विपक्ष द्वारा भी कमोबेश चुनाव में इन्हीं मामलों को मुद्दा बनाया गया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने शानदार जीत दर्ज करते हुए पिछली बार से भी अच्छा प्रदर्शन किया है। पिछले 40 वर्षों में ऐसा पहली बार हुई है जब कोई सरकार लगातार दूसरी बार बहुमत के साथ चुन कर सत्ता में आए। ताज़ा लोकसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस की बुरी हार हुई है और पार्टी में घमासान मचा हुआ है।