Wednesday, November 20, 2024
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जब सोनिया ने राहुल से कहा, ऐसे छोटे-मोटे चुनावी हार को दिल पर नहीं लेते!

कॉन्ग्रेस कार्यकारिणी की बैठक। राहुल जी ने त्यागपत्र दिया। सोनिया जी ने कहा, “बेटा, देश तो हमारा ही है, छोटे-मोटे चुनाव को दिल पर नहीं लेते। तुम छंगामल विद्यालय के योग्य थे, फिर भी हमने तुम्हें सेंट स्टीवेंस भेजा। मन पे मत लो, कुछ नहींं तो हथियार दलाली का काम फिर शुरू करा देंगे।”

राहुल जी के नेत्रकमल से अश्रुधारा बह निकली। यह देख कर पंजाब शिरोमणी सिद्धू जी उनके चरण कमलों मे गिर पड़े। सिद्धू जी को अपने स्थान पर पड़े देख कर पिद्दी गाँधी गुर्राए। राहुल जी ने कर कमलों से नेत्रकमल पोंछे, और चरण कमल से सिद्धू जी को हटाया।

सोनिया जी ने बुद्धिजीवी खेमे की ओर सुझाव के लिए संकेत फेंका। कोमल स्वर के स्वामी, पार्ट टाईम नेता और फुल टाईम चुनावी चिंतक सलीम भाई उर्फ़ योया जी गर्म पानी के गरारे कर के, संगीतमय स्वर में बोले, “देखिए… सारेगामापा।” वे अभी सुर ही बिठा रहे थे कि अलीमुद्दीन खान बोल पड़े, “इन्होंने तो चैनल पर बोला , कॉन्ग्रेस मस्ट डाई।”

योया जी ने डायबिटीक, सुलभ मुस्कान तत्काल धारण की और बोले, “मैंं तो कह रहा था कि कॉन्ग्रेस सभी विपक्षी दलों की धाय माँ है। आपको ही आआपा जैसे शिशु दलों को पाल पोस कर बड़ा करना है।”

“आप कोई काम के नहींं हैं। गुहा कहाँ हैं?” गुहा जी कोने मे दरी पर उकड़ूँ बैठे लिख रहे थे। सोनिया जी के आह्वाहन पर शीश उठा कर बोले, “वाह, वाह, वाह, वाह। मैंं देख पा रहा हूँ कि ऐसी परिस्थिति मे नेहरू होते तो ठीक ऐसे ही बैठते जैसे आज बाबा बैठे हैं और वे ना बैठते तो आज हम यहाँ न बैठते।” “अरे गुहा, इसी बैठा-बैठी मे पार्टी बैठ गई है। नेहरू ऐसे क्यों बैठते, अमेठी से कऊन कॉन्ग्रेसी हार सकता है।”

बरखा जी ने फ़ौरन गुटखा थूका और बोलीं, “हम इसको वीमेन इम्पावरमेंट से जोड़ सकते हैं। जब वाड्रा जी गाँव-गाँव मे कॉलोनी बना सकते हैं तो क्या राहुल अमेठी का विकास न कर सकते थे?” यह कह कर उन्होंने चहुँओर विजयी भाव से देखा और बोलीं, “बिल्कुल कर सकते थे, किंतु स्मृति ईरानी जी महिला हैं- राहुल जी चाहते थे कि वे जीतें, अत: तमाम दबावों के बावजूद उन्होंने विकास रोके रखा। राजीव शुक्ला जी जानते हैं कि कैसे दिन मे दो बार बाबा को ज़ोर से विकास आता था, पर वे उसे रोक लेते थे।”

“अरे वो आरनॉब तो कुछ भी कहला देता है बाबा से।” शैम्पूस्वामी ने तभी उस विलक्षण विधि से मस्तक को झटका दे कर अपने केश-विन्यास को नव-रूप दिया, जैसे कोई अरबी घोड़ा रेस के पूर्व कुलाँचे मारने को तत्पर हो गया हो। फिर वे बोले, “हे मातृतुल्य देवी, इस पत्नीतुल्य महिला समाज में आप एकमात्र मातृतुल्य हैं- इसका संज्ञान ले कर मैं बाबा को केरल ले गया, और वहाँ से वे विजयी हुए। केरल के लोग ज्ञानी हैं और वे बाबा की बातों को समझ गए।” कहते-कहते शैम्पूस्वामी बाईं ओर बैठी नई कार्यकर्ता को देख विचारों मे खो गए।

सोनिया जी बोलीं, “शशि, झूठ ना बोलो। वहाँ यह इसलिए नहींं जीता क्योंकि केरल वासी इसकी बातें समझ गए, बल्कि इसलिए जीता क्योंकि इसका ट्रांसलेटर अच्छा था। तुम्हारा बस चले तो अगला चुनाव तुम बाबा को लक्षद्वीप से लड़वाओगे। सैम, तुम्हारा क्या कहना है।”

सैम बोले, “हुआ सो हुआ…” यह सुनते ही राहुल जी उत्तेजित और उद्वेलित हो उठे, और सैम की ओर झपटे। सिद्धरमैया ने बीच-बचाव किया और बोले, “जाने दें बाबा, इस पर प्रेत बाधा है- इस पर अय्यर आए हुए हैं। जब तक कौए के पँख से, गिरगिट के ख़ून में डूबा कर इनके माथे पर फ़ोन का चित्र नहीं बनाया जाएगा, यह ठीक नहीं होंगे।”

माकन जी को फ़ौरन कौए के पँख के साथ केजरीवाल जी के निवास की ओर रवाना किया गया और मंथन को आगे बढ़ाया गया। राहुल बाबा चुपचाप मैगी खा रहे थे जो मानसिक दबाव कम करने के लिए माता जी ने उन्हें दी थी।

अचानक “फिच्च…” की आवाज़ आई, बरखा जी गुटखा थूक रही थीं। “कपिल, इसको मना करो। ये क्या आदत है?” सिबल जी कान खुजा कर बोले, “उमर ख़ालिद के साथ रह कर आदत हो गई है इसकी। आप बेकार चिंता कर रहीं हैं। जो माता है, वही बहन है- जो शून्य है, वह शून्य नहीं है। जो आज शून्य है, कल पिछत्तीस भी हो सकता है।”

“चुप रहो, सिबल। तुम्हारी सलाह ने अंडों की बारात लगाई है। बरखा से अच्छी ट्राईकलर वाली है। दिग्गी कहाँ हैं?” “वे सदमे मे हैं। दिग्गी भोपाल से गाड़ी की डिग्गी में छुप कर भागे हैं। कमल-कमल चिल्लाते हैं, पता नहीं भाजपा का भय है या कमलनाथ का?” “कमलनाथ का भय क्यों होगा? दिग्गी कोई सिख थोड़े हैं!” सोनिया जी बोलीं।

सिबल सहम गए और अपने आज़ाद लबों पर फ़ौरन 66-A लगाया। सोनिया जी बोलीं, “युवा कार्यकर्ताओं में रोष है। उनकी बात समझनी होगी, कुछ तो करना होगा।” पीछे से दिग्विजय जी की आवाज़ आई, “बगड़ बम।”
सोनिया जी आगे बोलीं, “क्या करना चाहिए? मोतीलाल वोरा जी से पूछा जाए!” मोतीलाल जी महाभारत काल मे संजय के टीवी का एंटीना घुमा कर रिसेप्शन ठीक करते थे, और सब परिस्थिति पर नज़र रखते थे। बोले, “किसी को इस्तीफ़ा देना होगा। पर किसे?”

दृष्टि एक चेहरे से दूसरे पर तैरती चली गई। ऐसे मातमी माहौल में जब कॉन्ग्रेस मुख्यालय एनडीटीवी-सा लगने लगा, तो कोई बोला, “चाय पी लें?” सोनिया जी ने अनमने भाव से संदेश बाहर भेजा। बाहर श्रद्धा भाव से नामपट्टिका निहारतीं पल्लवी जी ने मुसम्बी देवी को पटखनी देते हुए रामखिलावन को चाय लाने का आदेश पहुँचाया।

सोनिया जी गँभीरता से बोलीं, “लोग कहते हैं राहुल को इस्तीफ़ा देना चाहिए।” चिदम्बरम बोले, “हम क्या मर गए हैं?” “तो आप दे रहे हैं इस्तीफ़ा?”

“नहीं, नहीं। मेरा मतलब यह था कि यदि राहुल जी ठीक से संवाद नहींं कर पाए जनता से, तो इसका कारण उनका नींद में होना था। ऐसा इसलिए होता था क्योंकि उन्हें अच्छी चाय नहीं मिलती थी। मैंंने पहले रामखिलावन को निकालने को कहा था, तो उन्होंने राम को मिथक बता कर मना कर दिया। अब समय आ गया है कि पार्टी हित में कठोर निर्णय लिए जाएँ। रामखिलावन, चाय की ट्रे रखो और इस्तीफ़ा दो।”

सोनिया जी प्रसन्न हो गईं। बोलीं, “तुम्हारी इसी नैरेटिव घुमाने की कला के कारण हम तुम्हारे बेटे की सुपरमैन मुद्रा में ईडी ऑफ़िस जाने जैसी बेहूदगी बर्दाश्त करते हैं।” फिर रामखिलावन की ओर घूम कर बोलीं, “रामखिलावन, इस्तीफ़ा दो।”

“पर आगे चाय कौन देगा मैडम?”
“तुम उसकी चिंता मत करो, मनमोहन जी ख़ाली हैं। तुम पेपर डालो।”
मुसम्मी देवी चीख़ते हुए कैमरे की ओर दौड़ीं, “रामखिलावन हैज रिजाईन्ड, राहुल जी हैज अराईव्ड।”
राहुल जी मैगी खाने मे व्यस्त हो गए।

NOTA: 21 सीटों पर हार-जीत के अंतर से ज्यादा वोट खींचे, भाजपा ने पाँच गँवाए, 7 जीते

NOTA को आम तौर पर शहरी उच्च-मध्यम वर्ग का चुनाव मानकर खारिज कर दिया जाता है। पर लोकसभा 2019 का निर्वाचन इसके उलट गवाही दे रहा है। NOTA जिन सीटों पर निर्णायक ताकत बनकर उभरा है, उनमें से कई ग्रामीण इलाकों और जनजाति-बहुल क्षेत्रों में स्थित हैं- यानि NOTA समाज के हर वर्ग में बढ़ रही है। सभी राजनीतिक दलों को इस पर ध्यान देने की जरूरत है।

NOTA के मायने

सैद्धांतिक रूप से NOTA किसी एक दल या विचारधारा नहीं बल्कि सम्पूर्ण समकालीन राजनीतिक वर्ग को ख़ारिज करने का प्रतीक है। एक वोटर NOTA दबाकर यह सन्देश देता है कि वह अमुक पार्टी से तो इतना नाराज है कि उसे वोट न दे, लेकिन अन्य किसी को भी अपने वोट के लायक या अपनी समस्या विशेष का समाधान नहीं मानता। अभी तक इसे शहरी उच्च-मध्यम वर्ग का शिगूफा माना जाता था, लेकिन मतदान के बाद की तस्वीर कुछ अलग है:

NOTA exit polls lok sabha results 2019 general elections NOTA seats

जैसा कि ऊपर की टेबल में देखा जा सकता है, अंडमान जैसे जनजातीय इलाकों, मछलीशहर जैसे तुलनात्मक रूप से पिछड़े इलाकों आदि में भी बड़ी संख्या में NOTA वोट पड़े हैं। अंडमान में कॉन्ग्रेस के कुलदीप शर्मा ने भाजपा के विशाल जॉली को केवल 1407 वोटों से हराया, जबकि NOTA 1412 लोगों ने दबाया। यानि इन 1412 NOTA वालों के वोट मिल जाते तो भाजपा प्रत्याशी कॉन्ग्रेस के उम्मीदवार को हरा देते।

उसी तरह मछलीशहर में भाजपा जहाँ महज 180 मतों से जीती वहीं NOTA को इसके लगभग 50 गुने यानि 10,830 वोट मिले। मतलब अगर 10 प्रतिशत NOTA वाले भी दूसरे नंबर पर रहे बसपा प्रत्याशी को मिल जाते तो मामला पलट सकता था। अब जबकि राजनीतिक मुकाबले इतने करीबी होने लगे हैं, जनता में मतदान प्रतिशत और जागरुकता भी बढ़ रहे हैं तो भाजपा समेत सभी दलों के हित में होगा कि वे NOTA पर भी एक राजनीतिक प्रतिस्पर्धी के तौर पर ध्यान दें।

सीटों के सन्नाटे के बाद AAP ने स्वीकारा, EVM पर शक नहीं है, मोदी को हराना था लक्ष्य

लोकसभा चुनाव 2019 में हुई शर्मनाक हार को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 26 मई को कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत कर लोकसभा चुनाव में पार्टी की शर्मनाक हार पर चर्चा करेंगे। इसके लिए दिल्ली के पंजाबी बाग क्लब में पार्टी नेताओं को बुलाया गया है। खबर है कि इस हार की समीक्षा से सबक लेकर आम आदमी पार्टी नई रणनीति के साथ आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव की तैयारी में तत्परता से जुटेगी।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, आम आदमी पार्टी के प्रदेश संयोजक एवं कैबिनेट मंत्री गोपाल राय ने प्रेसवार्ता बुलाई। इसमें उन्होंने कहा कि इस लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर कराए गए एक आकलन से पता चलता है कि एक तरफ लोग मोदी को जिताने के लिए वोट कर रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ लोग मोदी को हराने के लिए भी वोट कर रहे थे।

पार्टी का साफ़ मानना है कि मोदी जी को जिताने वालों की संख्या ज्यादा थी। जिससे दिल्ली में भी मोदी जी को एक बड़ी जीत हासिल हुई। लेकिन साथ ही आम आदमी पार्टी का अभी भी मानना है कि विधानसभा चुनाव में लोग दोबारा से केजरीवाल को ही मुख्यमंत्री चुनेंगे।

यहाँ तक कि 24 मई को अलका लाम्बा ने ट्वीट करते हुए लिखा था, “काश किसी की कुछ तो सुनी होती, जीतते ना सही, कम से कम जमानत तो जप्त ना होती। 2015 में 70 में से 67 जीतने वाले 2019 आते-आते 7 में से 3 पर जमानत ही जब्त करवा बैठे। अभी भी देर नही हुई, जनता को हमेशा एक अच्छे विकल्प की तलाश रहती है, बस जरूरत है फ़ालतू के घमंड को छोड़कर, हार से सबक लेने की।”

पार्टी की तरफ से बोलते हुए गोपाल राय ने कहा कि आम आदमी पार्टी ने पूर्ण राज्य के मुद्दे पर चुनाव लड़ा था। पार्टी का मानना था कि अगर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी जीत कर संसद जाते हैं तो दिल्ली के लिए केंद्र से लड़कर और बेहतर काम करा सकेंगे। लेकिन चुनाव में जो वोट पड़े वो नरेंद्र मोदी और राहुल गाँधी के नाम पर पड़े।

गोपाल राय ने कहा कि हमें ईवीएम पर किसी भी तरह का संदेह नहीं है। हम दिल्ली लोकसभा चुनाव पर मंथन कर रहे हैं। आगामी विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी अपने दम पर चुनाव लड़ेगी और जीतेगी।

AAP ने अलका लाम्बा को किया व्हाट्सएप्प ग्रुप से पदच्युत, जोड़ने-निकालने पर अलका ने किए मार्मिक ट्वीट

आम आदमी पार्टी के सबसे ख़ास बात ये है कि दुनिया में चाहे कुछ भी चल रहा हो, ये पार्टी लोगों के मनोरंजन में कमी नहीं होने देती है। इस पार्टी नेताओं की हरकतों से ऐसा महसूस होता है मानो इस पार्टी का जन्म व्हाट्सएप्प ग्रुप में जोड़ने और निकालने को राष्ट्रीय चर्चा बनाने के लिए ही हुआ था।

ताजा प्रकरण दिल्ली, चाँदनी चौक से AAP विधायक अलका लाम्बा को लेकर है। अलका लाम्बा से पार्टी की नाराजगियाँ सास-बहू धारावाहिक की तरह ही हर दूसरे दिन ट्विटर पर देखने को मिलती हैं। इस बार दिल्ली में लोकसभा चुनाव में एक भी सीट जीत पाने में नाकाम रही अरविन्द केजरीवाल की यह पार्टी अंदरूनी उठापटक झेल रही है।

अलका लाम्बा ने चुनाव नतीजे आने के बाद ट्विटर पर अरविन्द केजरीवाल को कुछ नसीहत दे डाली थी, जिसका परिणाम ये हुआ कि आम आदमी पार्टी ने अपनी विधायक को व्हाट्सएप्प ग्रुप से ही निकाल दिया। इस दुखद और बेहद मार्मिक घटना ने अलका लाम्बा के मन को गहरी ठेस लगाईं और उन्होंने ट्विटर पर अपना दुःख व्यक्त कर फिरसे व्हाट्सएप्प ग्रुप की चर्चा छेड़ दी है।

24 मई को अलका लाम्बा ने ट्वीट करते हुए लिखा था, “काश किसी की कुछ तो सुनी होती, जीतते ना सही, कम से कम जमानत तो जप्त ना होती। 2015 में 70 में से 67 जीतने वाले 2019 आते-आते 7 में से 3 पर जमानत ही जब्त करवा बैठे। अभी भी देर नही हुई, जनता को हमेशा एक अच्छे विकल्प की तलाश रहती है, बस जरूरत है फ़ालतू के घमंड को छोड़कर, हार से सबक लेने की।”

शायद इस घमंड वाली बात से ही अरविन्द केजरीवाल ‘ट्रिगर’ हो गए और उनके हारे हुए प्रत्याशियों ने उनके इशारे पर अलका लाम्बा को ग्रुप से बाहर कर दिया। इसके बाद आज अलका लाम्बा ने कुछ और बेहद करुणामय और मार्मिक ट्वीट के माध्यम से अपनी बात सामने रखते हुए लिखा है कि बार-बार व्हाट्सएप्प ग्रुप में जोड़ने-निकालने से बेहतर होता, इससे ऊपर उठकर कुछ सोचते, बुलाते, बात करते, गलतियों और कमियों पर चर्चा करते, सुधार करके आगे बढ़ते। बता दें कि विगत मार्च के महीने ही उन्हें आम आदमी पार्टी के MLA वाले ग्रुप से निकाल दिया गया था। लेकिन, उस समय उन्हें फिरसे जोड़ लिया गया था।

इसके बाद अलका लाम्बा ने शक जाहिर करते हुए कल का ही एक ट्वीट रीट्वीट किया, जिसमें उन्होंने ओडिशा मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के नेतृत्व की तारीफ़ की थी। इसमें अलका लाम्बा ने लिखा है कि महागठबंधन के लिए इधर-उधर भागने से बढ़िया था कि नवीन पटनायक की तरह एक राज्य पर फोकस करते।

आत्ममुग्ध बौने के नाम से ट्विटर पर प्रसिद्द अरविन्द केजरीवाल को फिरसे ‘ट्रिगर’ करते हुए अलका लाम्बा ने लिखा है कि कुछ अंदरूनी सूत्र उन्हें बता रहे हैं कि अरविन्द केजरीवाल को नवीन पटनायक की तारीफ पसंद नहीं आई इसलिए उन्हें व्हाट्सएप्प ग्रुप से निकाल दिया गया है। हालाँकि, अलका लाम्बा ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि यह अंदरूनी सूत्र उस व्हाट्सएप्प ग्रुप में अभी तक मौजूद हैं या फिर उनको भी निकाल दिया गया है।

Breaking: जेट एयरवेज़ के पूर्व-चेयरमैन को मुंबई एयरपोर्ट पर रोका गया, विदेश जाने पर रोक

प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इण्डिया के हवाले से आई खबर के अनुसार घाटे में चल रही जेट एयरवेज़ के पूर्व-चेयरमैन नरेश गोयल को सपत्नीक विदेश जाने से रोक दिया गया है। वह मुंबई हवाई अड्डे से विदेश जाने की फ़िराक में थे तभी मुंबई आव्रजन अधिकारियों ने उन्हें रोक दिया। माना जा रहा है कि यह 1.2 बिलियन डॉलर के कर्ज को देखते हुए एहतियातन किया गया है, ताकि विजय माल्या वाले प्रकरण की पुनरावृत्ति न हो।

कई वरिष्ठ अधिकारीयों ने भी दे दिया है इस्तीफा

जेट एयरवेज़ की माली हालत इस समय काफी ख़राब चल रही है। घाटे और कर्जे में डूबी कंपनी के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जाँच शुरू किए जाने की भी खबरें आईं हैं। इसके अलावा कंपनी ने अपने स्टाफ की तनख्वाह भी नहीं दी है। 17 अप्रैल से कंपनी की वायुसेवा का परिचालन ठप है

बड़बोलेपन पर मोदी का अपने ही सांसदों पर कटाक्ष, बोले ‘छपास’ और ‘दिखास’ से बचिए

भाजपा संसदीय दल द्वारा नेता चुने जाने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा और एनडीए के संसदीय साथियों को संबोधित किया। संदेश में उन्होंने जनता के प्रति सभी उपस्थित सांसदों की जिम्मेदारी को भी रेखांकित किया और सांसदों के प्रति अपनी जिम्मेदारी का भी आश्वासन दिया।

नरेंद्र मोदी ने कहा, “भारत के लोकतांत्रिक जीवन में, चुनावी परंपरा में देश की जनता ने एक नए युग का आरंभ किया है। हम सब उसके साक्षी हैं। भारत के लोकतंत्र को हमें समझना होगा। भारत का मतदाता, भारत के नागरिक के नीर, क्षीर, विवेक को किसी मापदंड से मापा नहीं जा सकता है। हम कह सकते हैं सत्ता का रुतबा भारत के मतदाता को कभी प्रभावित नहीं करता है। सत्ताभाव भारत का मतदाता कभी स्वीकार नहीं करता है।

2014 से 2019 तक देश हमारे साथ चला है, कभी-कभी हमसे दो कदम आगे चला है, इस दौरान देश ने हमारे साथ भागीदारी की है। ये देश परिश्रम की पूजा करता है, ये देश ईमान को सर पर बिठाता है। यही इस देश की पवित्रता है।

मोदी ने पार्टी के बड़बोले नेताओं पर कटाक्ष करते हुए उन्हें बड़ी नसीहत देते हुए कहा, “मैं कहता हूँ कि छपास (छपने का मोह) और दिखास (टीवी पर दिखने के मोह) से बचना चाहिए। इससे बचकर चलें तो खुद भी बचेंगे और दूसरों को भी बचाएँगे। कुछ लोग बड़बोलेपन में कुछ भी बोल देते हैं। मीडिया के लोगों को भी पता होता है कि यह 6 नमूने है, उनके घर के पास पहुँच जाओ कुछ भी बोलेगा।

मोदी ने कहा, “मेरे जीवन के कई पड़ाव रहे, इसलिए मैं इन चीजों को भली-भांति समझता हूँ, मैंने इतने चुनाव देखे, हार-जीत सब देखे, लेकिन मैं कह सकता हूँ कि मेरे जीवन में 2019 का चुनाव एक प्रकार की तीर्थयात्रा थी।”

2019 का चुनाव समता और ममता के भाव से सामाजिक आंदोलन का हिस्सा बन गया: नरेंद्र मोदी

“मुझे संसदीय दल का नेता चुनने के लिए बीजेपी और एनडीए के सभी सांसदों का धन्यवाद” भारत के संविधान को प्रणाम करने के बाद इन्हीं शब्दों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में अपने भाषण की शुरुआत की। भाजपा संसदीय दल द्वारा नेता चुने जाने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा और एनडीए के संसदीय साथियों को संबोधित किया। संदेश में उन्होंने जनता के प्रति सभी उपस्थित सांसदों की जिम्मेदारी को भी रेखांकित किया और सांसदों के प्रति अपनी जिम्मेदारी का भी आश्वासन दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत केंद्रीय और राज्य के चुनाव आयोग और सुरक्षाबलों का इस चुनाव के आयोजन के लिए धन्यवाद के साथ की। नरेंद्र मोदी ने कहा, “सेंट्रल हॉल की यह घटना असामान्य घटना है। हम आज नए भारत के हमारे संकल्प को एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ाने के लिए एक नई यात्रा को यहाँ से आगे बढ़ाने वाले हैं”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण की कुछ प्रमुख बातें

  • आज एनडीए के सभी वरिष्ठ साथियों ने मुझे आशीर्वाद दिया है। आप सबने मुझे नेता के रूप में चुना है, मैं इसे व्यवस्था का हिस्सा मानता हूँ। मैं भी आपमें से एक हूँ, आपके बराबर हूँ, हमें कंधे से कंधा मिलाकर चलना है।
  • भारत के लोकतंत्र को हमें समझना होगा। भारत का मतदाता, भारत के नागरिक के नीर, क्षीर, विवेक को किसी मापदंड से मापा नहीं जा सकता है। हम कह सकते हैं सत्ता का रुतबा भारत के मतदाता को कभी प्रभावित नहीं करता है। सत्ताभाव भारत का मतदाता कभी स्वीकार नहीं करता है।
  • विनोबा भावे कहते थे कि चुनाव बाँट देता है, दीवार खड़ी कर देता है, लेकिन 2019 के चुनाव ने सभी दीवारें गिरा दी हैं।
  • विश्वास की डोर जब मजबूत होती है तो प्रो-इनकम्बेंसी की लहर चलती है।
  • पूरी दुनिया में भारतीयों ने विजय उत्सव मनाया।
  • देश की राजनीति में जो बदलाव आया है, आप सभी ने इसका नेतृत्व किया है। आप सभी का अभिनंदन, लेकिन जो सदस्य पहली बार चुनकर आए हैं उनका विशेष अभिनंदन है।
  • जनप्रतिनिधियों के लिए कोई पराया नहीं हो सकता, दिलों को जीतने जीतने की कोशिश करें।
  • आम तौर पर चुनाव बाँट देता है, दूरियाँ पैदा करता है, दीवार बना देता है, खाई पैदा कर देता है। लेकिन 2019 के चुनाव ने दीवारों को तोड़ने का काम किया है। दिलों को जोड़ने का काम किया है।
  • 2019 का चुनाव सामाजिक एकता का आंदोलन बन गया, समता भी, ममता भी, समभाव भी, ममभाव भी। इस वातावरण ने इस चुनाव को एक नई ऊँचाई दी।

परिणाम के एक दिन बाद ही तृणमूल के गुंडों ने भाजपा कार्यकर्ता की हत्या कर दी

लोकसभा चुनाव खत्म होने और नतीजे सामने आने के बाद भी पश्चिम बंगाल में हिंसा लगातार जारी है। जानकारी के अनुसार, नादिया में भाजपा के एक कार्यकर्ता की गोली मारकर हत्या कर दी गई है। भाजपा के बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने इस खबर को साझा करते हुए इस हत्या का आरोप तृणमूल कॉन्ग्रेस पर लगाया है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ममता बनर्जी की इस रक्त और हिंसा की राजनीति का जवाब जनता मौजूदा सरकार को जड़ से उखाड़ कर देगी। बीजेपी बंगाल के ट्विटर ने भी यही आरोप लगाया है कि भले ही चुनाव खत्म हो गया है, लेकिन टीएमसी द्वारा जारी हिंसा से कोई राहत नहीं मिली है।

खबर के अनुसार, जिस भाजपा कार्यकर्ता संतु घोष की गोली मारकर हत्या की गई है, वो हाल ही में टीएमसी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे। ये घटना शुक्रवार (मई 24, 2019) की रात की है। गोली लगने के बाद संतु घोष को घायल हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन उनकी जान नहीं बच सकी। डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। फिलहाल पुलिस इस मामले की जाँच कर रही है।

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में पिछले कई सालों से भाजपा कार्यकर्ता की हत्या के मामले सामने आते रहे हैं। 23 मई की शाम, चुनाव नतीजों के ठीक बाद भी बीजेपी कार्यकर्ताओं को पीटने की घटना की सामने आई थी। चुनावों के अंतिम चरण के एक रात पहले भी भाजपा नेता अर्जुन सिंह को टीएमसी के गुंडों ने गोली मार दी थी। इस दौरान बम भी फेंके गए और दो वाहनों में आग भी लगा दी गई। पश्चिम बंगाल में चुनावों के दौरान व्यापक हिंसा के बाद, चुनाव आयोग को राज्य में सातवें चरण के चुनाव के लिए चुनाव प्रचार के समय सीमा में कटौती करने जैसे कड़े कदम उठाने पड़े।

लोकसभा चुनाव में बंपर जीत के बाद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने दिल्ली बीजेपी मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए पश्चिम बंगाल और केरल में मारे गए कार्यकर्ताओं को जीत समर्पित की थी।

दुष्प्रचार से बाज नहीं आ रहा The Wire, समुदाय विशेष के मोदी-समर्थक लोगों को समाज से अलग-थलग करने की कोशिश

मोदी की भीमकाय जीत से शायद विपक्षी राजनीतिक पार्टियों ने सबक ले लिया है (शायद इसीलिए अब तक किसी ‘सेक्युलर’ पार्टी ने इफ्तार पार्टी नहीं दी है), लेकिन द वायर जैसे प्रपोगंडाबाजों ने न सुधरने की कसम खा रखी है। पहले पाँच साल न केवल यह समाचार प्रपोगंडा पोर्टल मोदी को गाली देता रहा बल्कि लोगों को यह भी फुसफुसाता-उकसाता रहा कि भाजपा और मोदी को वोट देने वालों का सामाजिक  बहिष्कार किया जाना चाहिए। हिन्दुओं पर जब इसका असर नहीं हुआ, और भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापिस है, तो अब यही सोशल मॉब-लिंचिंग मोदी-समर्थकों की करने की कोशिश हो रही है ताकि उन्हें चुप कराया जा सके, और समुदाय विशेष को डराना बदस्तूर जारी रहे।

वह महिलाएँ केवल अपनी नहीं, कम-से-कम समुदाय के 70,000 लोगों की प्रतिनिधि हैं  

द वायर के इस गंदले प्रपोगंडे में केवल एक बात तथ्य के आधार पर काटे जाने लायक है, और वह उनका यह दावा कि जिन दो महिलाओं पर उन्होंने यह लेख लिखा, वह अपने अलावा समुदाय के वाराणसी के किसी आदमी की नुमाइंदगी नहीं करतीं। इसका जवाब यूँ दिया जा सकता है:

बनारस में इस बार कुल 10 लाख के करीब वोट पड़े, जिसमें से 6.74 लाख मोदी के खाते में गए। बनारस में समुदाय विशेष का जनसांख्यिक अनुपात करीब 30 प्रतिशत है। यानि वोट देने वालों में लगभग तीन लाख मजहब विशेष से थे। अब, लोकसभा निर्वाचन की घोषणा के पहले, लोकनीति-सीएसडीएस ने एक सर्वेक्षण किया था जिसमें समुदाय के 26 प्रतिशत लोगों ने मोदी सरकार को एक और कार्यकाल दिए जाने से सहमति जताई थी। इसे अगर बनारस की समुदाय विशेष की संख्या पर लागू करें तो कम-से-कम 70,000 की संख्या बनती है मजहब के मोदी-समर्थकों की। यानि वह महिलाएँ 70,000 लोगों की नुमाइंदगी कर रहीं थीं।

और सत्तर हजार लोगों की नुमाइंदगी को, उनकी आवाज़ और उनके मत को सिरे से ख़ारिज करने के लिए वायर केवल समुदाय के दो लोगों की बात सामने रखता है, और उसके आधार हेडलाइन बना देता है कि यह दो मोदी-समर्थक मजहबी महिलाएँ मीडिया का बनाया शिगूफा हैं। लेकिन बात केवल 70,000 बनाम 2 जितनी सीधी नहीं है। अगर लेख को पढ़ेंगे- और सरसरी निगाह की बजाय ध्यान से पढ़ेंगे, तो पंक्तियों के बीच में स्टॉकिंग, धमकी, सब दिखेंगे, ‘फैक्ट्स’ के आवरण में, धमकियों की तलवार subtext में लिए

खोजी पत्रकारिता के नाम पर स्टॉकिंग

यह सच है कि कई बार खोजी पत्रकारिता और किसी के निजी जीवन में बेजा ताक-झाँक में अंतर बताना मुश्किल हो जाता है, लेकिन द वायर इस लाइन के इर्द-गिर्द नहीं टहलता, बल्कि मर्यादा की सीमा तोड़कर मीलों आगे निकल जाता है। शुरुआत होती है ANI के वीडियो में दिखाई जा रही दो महिलाओं के वर्णन से, जो भाजपा की मजहब विशेष में सुधारवादी नीतियों का बखान करतीं दिखीं थीं मार्च 2017 में। और फिर वायर उनके एक-एक ‘पाप’, जैसे ट्रिपल तलाक से बचने के लिए हनुमान चालीसा पढ़ना, मोदी के लिए राखी बनाना, राम आरती करना, आदि का ‘कच्चा चिट्ठा’ खोल के रख देता है।

यही नहीं, बनारस में उनके घर पहुँचने के लिए किस मोहल्ले जाकर किससे पूछना होगा, इसकी भी विस्तृत जानकारी इस आलेख में है। यह पत्रकारिता नहीं है- स्टॉकिंग है। उनके जरिए मोदी का खुल कर समर्थन करने वाले लोग समुदाय में बढ़ रहे तबके को यह चेतावनी है कि संभल जाओ, मुँह बंद कर लो, वरना तुम्हारा भी पता कट्टरपंथियों को दे देंगे। यह ‘डॉक्सिंग’ का ऑफलाइन संस्करण है। इसी आवरण में लिपटी गुंडागर्दी को नंगा करते हुए ANI की सम्पादिका स्मिता प्रकाश ने ट्वीट कर सवाल उठाए, और उन मजहबी महिलाओं के निजी और सामाजिक जीवन में हस्तक्षेप को ललकारा:

नैरेटिव जर्नलिज़्म का दुरुपयोग  

कहने को कोई कह सकता है कि यह सब तो मामूली बातें हैं- वह महिलाएँ आख़िरकार समुदाय विशेष के लगभग तीस प्रतिशत लोगों वाले बनारस में रहतीं ही हैं, उनकी गतिविधियाँ आखिर ANI समेत कई समाचार माध्यमों में चल ही रहीं थीं, तो वायर के लिख देने से क्या बदल गया? तो साहब, जवाब होगा कथानक, यानि नैरेटिव। नैरेटिव बदला। अब तक मीडिया में इन महिलाओं की चर्चा हो रही थी सम्मानजनक रूप से, इन्हें प्रशासनिक से लेकर सामाजिक समर्थन प्राप्त था। और इसी ताकत के दम पर न केवल वे मजहब में, समुदाय विशेष में सकारात्मक बदलाव की वाहक बन रहीं थीं बल्कि उनकी बढ़ती सामाजिक शक्ति और प्रभाव को देखते हुए उनसे नहीं जुड़े समुदाय के लोगों में भी यह संदेश जा रहा था कि वक्त बदल गया है, अगर ताकत चाहिए, देश-समाज से लेकर गली-मोहल्ले तक अगर प्रभावशाली बनना है तो आगे की राह कट्टरपंथ और मदरसों से नहीं, आधुनिक शिक्षा और देशभक्ति के चौराहों से होकर गुजरती है। द वायर ने इसके ठीक उल्टा संदेश दिया।

बिना कुछ बोले, तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर ऐसा कपटी ताना-बाना बुना कि पढ़ने पर पहली बारगी में यह महिलाएँ कोई समुदाय विशेष की बच्चियों (और बच्चों) को शिक्षा देने, बाल-मजदूरी और बाल-विवाह से बचाने, ट्रिपल तलाक से लड़ने वाली सुधारक नहीं, भाजपा और संघ के तलवे चाटने वाली कठपुतलियाँ प्रतीत होतीं हैं। यही नैरेटिव जर्नलिज़्म की ताकत है- बिना अपने मुँह से झूठ बोले सामने वाले के मन में अपना एजेंडा बैठा देना, किसी को हिंसा के लिए उकसा देना तो किसी को धमका देना कि जब चाहें ऐसा ही कुछ लिख देंगे कि शहर भर के नाराज मजहबी भीड़ तुम पर टूट पड़ेगी।

लेकिन द वायर यह भूल रहा है कि ‘ये नया भारत है’ केवल एक सियासी नारा भर नहीं है, बल्कि जमीनी हकीकत है- और मोदी को टूट कर मिला वोट इस बदलाव की केवल एक बानगी है। हिन्दू तो अब बदल ही रहा है, बदल गया है बल्कि, और उनमें भी सुधारवादी आवाज़ें, प्रगतिशील आवाज़ें अब वायर द्वारा सामाजिक-बौद्धिक रूप से, और उसके माई-बापों द्वारा आर्थिक रूप से, पाले जाने वाले मुल्ला-मौलवियों, कट्टरपंथियों की गुलामी और नहीं सहेंगी। इस नए भारत में नफरती चिंटुओं और अनर्गल प्रलाप वाली पत्रकारिता नहीं चलेगी, फर्जी भय का नैरेटिव भी नहीं चलेगा, सो बेहतर होगा वायर प्रपोगंडाबाजी छोड़ या तो सच्चाई प्रतिबिम्बित करने वाली पत्रकारिता सीखने की जहमत उठाए, या दुकान समेटने की तैयारी करे- और यह subtext में छुपी धमकी नहीं, नेक नीयत वाली सलाह है।

दूसरे समुदाय के समर ने भाईयों संग लात-घूँसे, सरिये से कपड़ा व्यापारी को पीटा, वीडियो वायरल

उत्तर प्रदेश के मेरठ में दो समुदायों के बीच आपसी विवाद होने की ख़बर सामने आई है। यह घटना भगत सिंह नामक मार्केट में एक कपड़े की दुकान की है, जहाँ आधा दर्जन समुदाय विशेष के लोगों ने कपड़ा व्यापारी की जमपर पिटाई की है। उनकी गुंडागर्दी इस क़दर बढ़ गई कि उन्होंने कपड़ा व्यापारी और सेल्समेन को पीटने के लिए लोहे की रॉड का इस्तेमाल किया। सोशल मीडिया पर इस घटना का एक वीडियो UttarPradesh.ORG के ट्विटर हैंडल से शेयर किया गया, जो अब वायरल हो चुका है।

मीडिया में आई ख़बरों के अनुसार, यह घटना लोकसभा चुनाव की मतगणना के पहले दिन बुधवार की रात की है। किसी पुराने विवाद को मुद्दा बनाकर दूसरे सम्प्रदाय के लोग कपड़ा व्यापारी की दुकान में जबरन घुसे और फिर लोहे की सरियों और लात-घूँसों से व्यापारी और दुकान में उपस्थित सेल्समैन के साथ मारपीट शुरू कर दी। आसपास के लोगों ने बीच-बचाव कर मामले को शांत करवाया।

एक अन्य ख़बर के अनुसार, भगत सिंह मार्किट में देव कलेक्शन के नाम से देवराज की कपड़े की दुकान है। इस दुकान पर सचिन नाम का एक लड़का काम करता है। किसी बात को लेकर सचिन और दूसरे समुदाय के समर से विवाद हो गया और बात मार-पिटाई तक पहुँच गई। अगले दिन समर अपने भाईयों के साथ उसी दुकान में जा पहुँचा और गुंडागर्दी शुरू कर दी। इस बीच बीच-बचाव के लिए आगे आए अन्य व्यापारियों को भी समर और उसके भाईयों ने मारा-पीटा।

घटना का एक वीडियो शुक्रवार (24 मई) को सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, इसके बाद मामले ने तूल पकड़ लिया। मारपीट की इस घटना से पूरे क्षेत्र में साम्प्रदायिक तनाव का माहौल बना हुआ है। घटनास्थल पर पुलिस के पहुँचने से पहले ही हमलावर वहाँ से भाग गए। सीओ कोतवाली दिनेशचंद्र मिश्रा ने बताया कि मामला दो पक्षों में आपसी विवाद का है। फ़िलहाल, पुलिस ने इसकी जाँच शुरू कर दी है और साथ ही वहाँ पीएसी और पुलिस की तैनाती भी कर दी है।