Thursday, October 3, 2024
Home Blog Page 5395

J&K: त्राल मुठभेड़ में मारा गया पुलवामा हमले का साज़िशकर्ता ‘मोहम्मद भाई’

जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों को बड़ी कामयाबी मिली है। दक्षिण कश्मीर स्थित पुलवामा ज़िले के त्राल में हुई मुठभेड़ में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी मुदस्सिर अहमद ख़ान को मार गिराया गया। आतंकियों के बीच उसे ‘मोहम्मद भाई’ के नाम से जाना जाता था। मुठभेड़ में उसके अलावा दो अन्य आतंकियों के मारे जाने की भी पुष्टि हुई है। हालाँकि, अभी फॉरेंसिक रिपोर्ट आनी बाकी है लेकिन उसके शव की शिनाख़्त पुलिस द्वारा की जा चुकी है। मोहम्मद पुलवामा हमले का साज़िशकर्ता था। बता दें कि 14 फरवरी को पुलवामा में हुए आत्मघाती आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए थे। इसके बाद जवाबी कार्रवाई करते हुए भारतीय वायु सेना ने एयर स्ट्राइक द्वारा पाकिस्तान स्थित कई आतंकी कैम्पों को तबाह कर सैंकड़ों आतंकियों को मौत के घात उतार दिया था।

आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद पाकिस्तान से संचालित होता है और इसकी स्थापना आतंकी मसूद अज़हर ने की थी। तब से वह भारत में कई हमलों को अंजाम दे चुका है। मारे गए तीनों आतंकियों का शव बरामद कर लिया गया है। जिस घर में इन आतंकियों ने पनाह ली थी, वह भी इस मुठभेड़ में पूरी तरह नष्ट हो गया। रविवार की रात (मार्च 11, 2019) हुए इस एनकाउंटर में मारे गए आतंकियों के शव बुरी तरह झुलस चुके हैं। यही कारण है कि पुलिस को शिनाख़्त करने में देरी हो रही है। दरअसल, सुरक्षा बलों को पिंगलिश इलाक़े में आतंकियों के छिपे होने की ख़ुफ़िया सूचना मिली थी। इसके बाद वहाँ सर्च अभियान चलाया गया। आतंकी पहले से ही घात लगाकर बैठे थे और उन्होंने तलाशी दल पर फायरिंग की। सुरक्षा बलों ने जवाबी कार्रवाई करते हुए आतंकियों को मार गिराया।

मारा गया आतंकी मुदस्सिर ख़ान अका मोहम्मद भाई

मुदस्सिर अक्सर परदे के पीछे से कार्य किया करता था और चर्चा में कम रहता था। 23 वर्षीय मुदस्सिर ने स्नातक पास किया था और इलेक्ट्रीशियन था। उसने आईटीआई का कोर्स कर रखा था। पुलवामा आतंकी हमले के दौरान उसने ही गाड़ी और विस्फोटक का इंतजाम किया था। आदिल अहमद डार नामक आत्मघाती आतंकी ने सीआरपीएफ की वैन को टक्कर मारी थी। मुदस्सिर लगातार उसके संपर्क में था। वह फ़रवरी 2018 में सुंजवाँ में हुए आतंकी हमले में भी शामिल था। उस हमले में 6 सुरक्षा बल के जवान वीरगति को प्राप्त हो गए थे और एक नागरिक की भी मृत्यु हो गई थी। आईटीआई से एक साल का डिप्लोमा करने वाला आतंकी मुदस्सिर के पिता एक मज़दूर हैं।

इसके अलावा जनवरी 2018 में लेथपुरा सीआरपीएफ कैम्प पर हुए हमले में भी मुदस्सिर का हाथ था। उस हमले में सीआरपीएफ के 5 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए थे। पुलवामा हमले की जाँच के दौरान एनआईए ने मुदस्सिर के घर छापा भी मारा था। 27 फरवरी को यह कार्रवाई की गई थी।

दूल्हे की हालत देख दुल्हन ने किया शादी से इंकार, लौटानी पड़ी दहेज की पूरी रकम

बिहार में भले ही पूर्ण शराबबंदी हो गई है, लेकिन आज भी लोग शराब के सेवन से गुरेज नहीं कर रहे हैं। कुछ मौकों पर तो ऐसे नजारे देखने को मिल जाते हैं, जहाँ बिहार पुलिस के हर वो दावे खोखले नज़र आते हैं, जिसमें वो प्रदेश में असरदार ढंग से कानून का पालन करवाने का दंभ भरती दिखाई देती है।

बिहार के छपरा जिले में एक दूल्हे की शराब की लत उस पर भारी पड़ गई। शराब पीने की वजह से दूल्हे और उसकी बारात को बिना दुल्हन के ही वापस लौटना पड़ा। मामला बिहार के तरैया थाने के डुमरी छपिया गाँव का है। यहाँ बबलू नाम के शख्स की शादी त्रिभुवन शाह की पुत्री रिंकी के साथ होने वाली थी, मगर दूल्हे को शराब के नशे में देख दुल्हन ने शादी करने से इंकार कर दिया।

दुल्हन के पिता त्रिभुवन शाह ने बताया कि दूल्हा जब बारात के साथ पहुँचा तो वह नशे में चूर था। उसने इतनी ज्यादा पी रखी थी कि उसे यह भी नहीं पता चल पा रहा था कि उसके आसपास क्या हो रहा है। जयमाला के दौरान वह स्टेज पर बदमतीजी भी कर रहा था। लड़के को ऐसी हालत में देखकर लड़की ने शादी से इंकार कर दिया।

शादी में शामिल लोगों के मुताबिक नशे में धुत्त दूल्हा ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था, किसी रस्म को भी ठीक से नहीं निभा पा रहा था। इतना ही नहीं वो वहाँ पर मौजूद लोगों के साथ बदसलूकी करने के साथ ही महिलाओं के लिए अपशब्द का भी प्रयोग कर रहा था। ये सब देखकर दुल्हन को गुस्सा आ गया और वो शादी से इंकार करते हुए वहाँ से चली गई। हालाँकि दोनों परिवार के लोगों ने रिंकी को काफी समझाने की कोशिश की, लेकिन रिंकी नहीं मानी।

रिंकी की जिद के आगे दोनों परिवारों की एक नहीं चली। इसके बाद दूल्हे को बिना दुल्हन के ही लौटना पड़ा, मगर गाँव वालों ने दूल्हे को तब तक वहाँ से वापस नहीं जाने दिया, जब तक कि उसने दहेज में ली गई पूरी रकम वापस नहीं कर दी।

दिखावे के लिए पूजा में जाते हैं ‘राहुल भइया’: सुनिए उन्हीं से इस 19 सेकंड के वीडियो में

राहुल गाँधी। नाम ही काफी है। फिर भी न जाने क्यों ये मीडिया वाले दिन-रात भोकार पारते रहते हैं कि राहुल ये हैं, वो हैं। वे कई बार ‘परिपक्व’ हो चुके हैं। जब कॉन्ग्रेस कोई पंचायत स्तरीय चुनाव भी जीतती है, राहुल गाँधी की धारदार वापसी होती है और मीडिया वाले इसे उनकी मैच्योरिटी लेवल बढ़ने का सबूत मानते हैं। वे कई बार ‘मैच्योर’ हो चुके हैं। मीडिया वाले कई बार उनकी धारदार वापसी करा चुके हैं। लेकिन, राहुल तो राहुल ठहरे। कभी जनेऊधारी बन जाते हैं, कभी मौलाना का रूप धारण कर लेते हैं, कभी मंदिरों की परिक्रमा शुरू कर देते हैं, कभी गंभीर दुःख के मौक़ों पर मुस्कराते नज़र आते हैं तो कभी राफेल के दाम एक ही भाषण में 4 बार बदलते हैं। अब राहुल गाँधी ने कुछ ऐसा किया है, जिसे जानकार आपके सामने उनके दिखावे की पोल तो खुल ही जाएगी, साथ ही यह भी पता चलेगा कि वे भारतीयता, हिंदुत्व और हमारी पूजा पद्धति से कितने अनभिज्ञ हैं।

नोट कीजिए, वे अनभिज्ञ हैं लेकिन इस बारे में जानना नहीं चाहते। कई लोग ऐसे हैं जिन्हें मन्त्रों का ज्ञान नहीं और यह बुरा नहीं लेकिन अगर उनके सामने कोई मंत्र पढ़ रहा हो तो वे उसे सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। हमारे घर में जब कोई पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन, आराधना-अष्टयाम का कार्यक्रम होता है तो हम उनमें हिस्सा लेते हैं, गर्व के साथ। भले ही कई बार हमें उनके बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं होता, हम सभी कार्य संपन्न करते हैं और जिज्ञासु बन कर और अधिक जानने की कोशिश करते हैं। लेकिन, राहुल गाँधी अलग हैं। कॉन्ग्रेस अध्यक्ष पूजा-पाठ को हँसी-मज़ाक का विषय समझते हैं और इसे हेय दृष्टि से देखते हैं। इसका प्रमाण आप स्वयं देखिए। सुनिए, ख़ुद राहुल की ज़ुबानी- नीचे दिए गए इस वीडियो में।

राहुल गाँधी का दिखावा

इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि कैसे पूजा के बाद जब राहुल गाँधी से पूछा जाता है कि वे यहाँ क्या करने आए हैं तो वे मज़ाक के मूड में कहते हैं कि उन्हें तो कुछ पता ही नहीं कि यहाँ क्या हो रहा है। बकौल राहुल, उन्हें बुलाया गया और वे आ गए। सीधा अर्थ ये कि उन्हें हिंदुत्व के लिए बस दिखावा करना है, इसीलिए वे आ गए। ये कैसी पूजा है, किस देवता की है, क्यों की गई- इन सबके बारे में उन्हें लेशमात्र भी पता नहीं लेकिन वे आ गए क्योंकि उन्हें कैमरे के सामने पूजा करते दिखना था। हिंदुत्ववादी इमेज बना कर हिन्दुओं के वोट ठगने थे। आप भी इस वीडियो को देखिए और सोचिए कि ऐसे दिखावेबाज़ नेताओं का क्या होना चाहिए जो पूजा-पाठ को हँसी-मज़ाक का विषय समझते हैं। उनके पुछल्ले ‘राहुल भईया ज़िंदाबाद’ का नारा लगा हैं और राहुल हैं कि उन्हें क्या हो रहा है इसके बारे में ‘No Idea’ है।

कंप्यूटर बाबा की सत्ता के गलियारों में वापसी, कमलनाथ ने आनन-फ़ानन में की नियुक्ति

अपने आप में न तो किसी सन्यासी के कंप्यूटर या अन्य गैजेट इस्तेमाल करने पर किसी को आपत्ति हो सकती है, न ही उन गैजेट्स के नाम पर ही अपना नाम ‘कंप्यूटर बाबा’ रख लेने पर, पर सांसारिक मोह-माया से कट्टी कर लेने का दावा करने वाले कंप्यूटर बाबा की राजनैतिक निष्ठा और विचारधारा यदि पेंडुलम की तरह सुविधा और अवसर की हवाओं के मुताबिक डोले तो सवाल उठना लाज़मी है।

मध्य प्रदेश की कमलनाथ नीत ‘हिंदुत्ववादी’(??) कॉन्ग्रेस सरकार ने प्रदेश के चर्चित संत कंप्यूटर बाबा को माँ नर्मदा, माँ क्षिप्रा, एवं माँ मन्दाकिनी रिवर ट्रस्ट का अध्यक्ष नियुक्त करने की घोषणा की है, वह भी चुनावों की तारीख चुनाव आयोग द्वारा घोषित किए जाने और आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले।

चुनावों से ठीक पहले नियुक्ति (‘जनता के रिपोर्टर एक्सपोज़ करने से चूके’)

कंप्यूटर बाबा (नामदेव त्यागी) की नियुक्ति न केवल लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले (रविवार, 10 मार्च को) घोषित की गई, जबकि नियुक्ति का आदेश 8 मार्च (शुक्रवार) को जारी किया जा चुका था, बल्कि ख़बरों के मुताबिक कंप्यूटर बाबा ने इस नियुक्ति और आदेश के समय में बरती गई चालाकी की खुले तौर पर तारीफ़ भी की है। वहीं जनता के हक़ और हुकूक की लड़ाई लड़ने वाले (ठीक उसी तरह, जैसे AAP आम आदमियों की पार्टी है) जनता के स्वनामधन्य रिपोर्टर योगी सरकार द्वारा राजू श्रीवास्तव को फ़िल्म विकास परिषद के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति पर सवाल उठाने के चक्कर में इस खबर को कवर करना ही भूल गए।

भाजपा भी दे चुकी है राज्यमंत्री का दर्जा

इससे पूर्व पिछले वर्ष ही, कंप्यूटर बाबा को तत्कालीन भाजपाई मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सरकार ने योजना, आर्थिक और सांख्यिकी विभाग का राज्यमंत्री बनाया था। चार अन्य आध्यात्मिक नेताओं- (अब दिवंगत) भय्यूजी महाराज, सर्वश्री नर्मदानंद जी, श्री हरिहरानंद जी, एवं पण्डित योगेन्द्र महंत जी को भी राजयमंत्री का दर्जा दिया गया था। उस समय देश के लेफ़्ट-लिबरल धड़े ने इसे हिन्दुत्ववादी एजेंडा बताते हुए बहुत हल्ला काटा था। यहाँ तक कि तत्कालीन कॉन्ग्रेस प्रवक्ता श्री पंकज चतुर्वेदी ने तो इसे उस समय के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर उपरोक्त आध्यात्मिक विभूतियों द्वारा आम लोगों की श्रद्धा को निचोड़ने का प्रयास करने और अपने पाप धोने का प्रयास करने का भी आरोप लगाया था।

जहाँ तक कि हमारी जानकारी है, श्री पंकज चतुर्वेदी जी की कॉन्ग्रेस ने अभी तक कमलनाथ सरकार के इस सांप्रदायिक कदम की कोई आलोचना नहीं की है, पर हम उसे पूरी तत्परता से तलाश रहे हैं, और मिलते ही यहाँ अपडेट कर देंगे।

हवा के रुख और अवसर की आंधी से बदलती रही है कंप्यूटर बाबाजी की राजनीतिक निष्ठा

पिछले साल जब कंप्यूटर बाबाजी को मार्च में शिवराज सरकार ने राज्यमंत्री का दर्जा दिया था, उस समय वह और योगेन्द्र महंतजी 15-दिवसीय नर्मदा स्कैम यात्रा निकालने की तैयारी कर रहे थे। पर उस नियुक्ति के पश्चात समाचार एजेंसी से यह खबर आई कि कंप्यूटर बाबा ने अपने ऊपर भरोसा जताए जाने के लिए प्रदेश सरकार के प्रति आभार व्यक्त किया, वह भी सम्पूर्ण संत समाज की ओर से। शिवराज सरकार ने पाँचों संतों को नर्मदा के किनारे वृक्षारोपण, जल संरक्षण, और स्वच्छता के प्रति जागरुकता वर्धन हेतु बनी समिति में नियुक्त किया था। विकिपीडिया के अनुसार इससे पहले 2014 लोकसभा चुनावों में कंप्यूटर बाबाजी ने आम आदमी पार्टी से भी मध्य प्रदेश में टिकट देने की गुज़ारिश की थी।

हम न तो आध्यात्मिक व्यक्तियों की राजनीतिक राय होने के विरोधी हैं और न ही सत्ता को प्रभावित करने के उनके प्रयासों के। लोकतंत्र में एक बाबा और एक सीईओ का वोट और राजनीतिक अधिकार बराबर के दिए गए हैं और हम इसका न केवल सम्मान बल्कि पुरज़ोर समर्थन करते हैं। पर राजनीति में यदि वायु वेग से और सुविधानुसार किसी शिक्षक, राजनेता या व्यापारी की राजनीतिक राय बदलने पर सवाल पूछे जाएँगे तो अध्यात्म जगत से राजनीति में आए महानुभावों को भी छूट नहीं दी जा सकती। हमारा यह मानना है कि श्री कंप्यूटर बाबाजी को स्वयं इस विषय पर स्पष्टीकरण देकर मामला ख़त्म कर देना चाहिए।

इसके अलावा कॉन्ग्रेस पार्टी को भी यह साफ़ करना चाहिए कि इन्हीं कंप्यूटर बाबाजी की पर्यावरण संरक्षण और मध्य प्रदेश के करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र नर्मदा नदी के उद्धार हेतु बनी समिति में नियुक्ति यदि गलत और हिन्दुओं का ‘तुष्टिकरण’ थी तो आज हालातों में ऐसे क्या बदलाव हुए हैं कि उन्हीं बाबाजी की नियुक्ति अब सही हो गई है? वह भी बिना उनके अधिकारों, पद, सुविधाओं आदि को रेखांकित किए।

जनता के स्वनामधन्य रिपोर्टरों से भी हमारा विनम्र आग्रह है कि यदि आपका उद्देश्य भाजपा का येन-केन प्रकारेण विरोध करना नहीं बल्कि ‘इश्यू-बेस्ड स्टैंड’ लेना है तो किसी भी ‘इश्यू’ पर भाजपा का नाम आते ही एकतरफ़ा रिपोर्टिंग चालू कर देने की बजाय उसी मुद्दे पर भाजपा के आलावा बाकियों पर भी अपनी ‘कृपा-दृष्टि’ ज़रूर डालें। क्योंकि कृपा वहीं से रुक रही है।

आलोचना बंद कीजिए, धोनी की सलाह महत्वपूर्ण लेकिन उनके बिना भी सक्षम हैं कप्तान कोहली

रविवार (मार्च 10, 2019) को भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए वनडे मैच में भारतीय बल्लेबाजों के अच्छे प्रदर्शन के बावजूद टीम को हार का सामना करना पड़ा। ओपनर्स रोहित शर्मा और शिखर धवन ने किसी भी भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया वनडे मैच में सबसे बड़ी ओपनिंग साझेदारी (188 रन) कर के ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों के पसीने छुड़ा दिए। ऑस्ट्रेलिया के सामने ये स्कोर भी छोटा नज़र आया और उन्होंने 2.1 ओवर रहते जीत दर्ज की। चहल और जाधव ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों के पसंददीदा शिकार रहे और दोनों ने 8 रन प्रति ओवर की दर से रन खाए। मोहाली में जीत दर्ज करने के साथ ही ऑस्ट्रेलिया ने सीरीज बराबर कर लिया है। इन सबके बीच ऋषभ पंत को लेकर ख़ासी चर्चा हुई और विकेट के पीछे उनके ख़राब प्रदर्शन को लेकर फैंस ने उन्हें निशाना बनाया।

ऋषभ पंत युवा विकेटकीपर हैं और उनके पास अनुभव की कमी है। ये अलग बात है कि आज आईपीएल के दौर में नए क्रिकेटर्स भी काफ़ी मैच खेल लेते हैं और उन्हें अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के साथ ड्रेसिंग रूम साझा करने का मौक़ा मिलता है। अब बदले ज़माने में आपसे शुरू से ही चमत्कारिक प्रदर्शन की उम्मीद की जाती है। हालाँकि, पिछले कुछ टेस्ट मैचों में पंत का प्रदर्शन अच्छा रहा है और इस मैच में भी उन्होंने 36 रन की पारी खेली लेकिन भारत के पास एमएस धोनी के रूप में एक सक्षम विकेटकीपर बल्लेबाज मौजूद है, जिसके कारण फैंस का धैर्य जवाब दे गया और उन्होंने धोनी को आराम देने के फ़ैसले पर सवाल खड़े किए। इस सिक्के के कई पहलू हैं। आगे बढ़ने से पहले पिछले मैच के शतकवीर शिखर धवन की राय जानते हैं।

शिखर धवन ने ऋषभ पंत का बचाव करते हुए उनके आलोचकों को फटकार लगाते हुए धोनी से उनकी तुलना न करने की सलाह दी। अगर आईपीएल को हटा कर बात करें तो 500 से भी अधिक अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुके और क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में सबसे ज्यादा संख्या में मैचों की कप्तानी कर चुके एमएस धोनी जैसे क़द के क्रिकेटर के साथ नए-नवेले ऋषिभ पंत की तुलना को धवन ने नाइंसाफी बताया। धोनी का करियर लम्बा रहा है और उनके करोड़ों फैंस भी हैं लेकिन भारत ने सचिन तेंदुलकर और सुनील गावस्कर जैसे प्रसिद्धि की चरम सीमा पर पहुँच चुके बल्लेबाजों को देखा है और हमें पता होना चाहिए कि वे भी आलोचना से नहीं बच सके थे। समय आने पर सबको जाना पड़ा।

कई न्यूज़ रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि विराट कोहली सिर्फ़ और सिर्फ़ एमएस धोनी की वजह से मैच जीतते हैं और धोनी के बिना उनकी कप्तानी में वो धार नहीं रहती। आलोचक ये कहते समय भूल जाते हैं कि वे क्रिकेट के महानतम बल्लेबाजों में से एक की बात कर रहे हैं- जिसकी तकनीक, रणनीति और सोच किसी भी समकालीन बल्लेबाज़ से ऊपर है। रही बात धोनी की उपस्थिति या अनुपस्थिति की तो बता दें कि वे अभी भारतीय टीम के सीनियर खिलाड़ी हैं और उनकी सलाह महत्वपूर्ण ज़रूर है लेकिन ऐसा नहीं है कि उनके बिना कोहली कप्तानी नहीं कर सकते या टीम नहीं जीत सकती। हम वो दौर भी देख चुके हैं जब सचिन की उपस्थिति से धोनी को ख़ासा फ़ायदा मिला करता था और मैच के बीच में वे अक़्सर सचिन की सलाह लिया करते थे। टीम में किसी भी बड़े सीनियर या धोनी अथवा सचिन के क़द के अनुभवी बल्लेबाजों की उपस्थिति से फ़ायदा मिलता ही मिलता है- यह कोई नई बात नहीं है।

पंत और धोनी की तुलना पर धवन की फटकार

विराट कोहली और एमएस धोनी की कप्तानी की शैली अलग-अलग है। उनकी फील्ड सेटिंग भी काफ़ी हद तक अलग है। राँची में हुए मैच में एमएस धोनी ने काफ़ी धीमी बैटिंग की थी और नागपुर में तो वे गोल्डन डक का शिकार हुए थे। धोनी की धीमी बल्लेबाजी कुछ स्थितियों में चिंता का विषय बन जाती है। हाँ, विकेट के पीछे वे अभी भी तेज-तर्रार हैं और बिजली माफिक चमकते हैं। लेकिन, अगर युवा विकेटकीपर बलबाज़ों को अभी से ही अच्छी तरह मौक़ा नहीं दिया गया तो उनके वनडे से रिटायर होते ही टीम संकट में फँस जाएगी। इसीलिए ज़रूरी है कि पंत जैसे क्रिकेटर्स को मौके दिए जाएँ और वो भी धोनी के रहते ताकि वे धोनी से काफ़ी कुछ सीख सकें। इसीलिए उनको आराम देने पर हंगामा मचाना सही नहीं है। यह भारतीय टीम के अच्छे भविष्य के लिए है। धोनी के साथ ड्रेसिंग रूम साझा कर पंत जैसे नए विकेटकीपर बल्लेबाज़ों को काफ़ी कुछ सीखने को मिलेगा।

अब बात करते हैं कोहली की कप्तानी की। ये कहना बिलकुल सही नहीं है कि उनकी कप्तानी सिर्फ़ और सिर्फ़ धोनी पर निर्भर है क्योंकि टेस्ट मैचों की कप्तानी में विराट कोहली के जीत का औसत एमएस धोनी से बेहतर है और उन्होंने धोनी के रिटायरमेंट के बाद कप्तानी करनी शुरू की। टेस्ट मैचों में कप्तान की रणनीति, सोच और क्षमता की अच्छी-ख़ासी परीक्षा होती है और विराट कोहली अगर उनमें सफल हुए हैं तो एकाध वनडे मैचों में धोनी के बिना मिली हार को लेकर उनको निशाना नहीं बनाया जा सकता। सावधान रहें, क्योंकि आप लगातार 9 टेस्ट सीरीज जीतने वाले कप्तान की बात कर रहे हैं। यह कारनामा कोहली के अलावा सिर्फ़ करिश्माई ऑस्ट्रेलियाई कप्तान रिकी पोंटिंग ही कर सके हैं। विराट कोहली को धोनी की सलाह की ज़रूरत तो है लेकिन उनकी कप्तानी धोनी के बिना शून्य है, यह थोड़ा बचकाना सा स्टेटमेंट है।

2019 के आँकड़ों की बात करें तो एमएस धोनी ने कई बार नॉटआउट रह कर टीम की नैया पार लगाई है और पिछले दिनों के अपने ख़राब रिकार्ड्स में अच्छा सुधार किया है। लेकिन, उनकी स्ट्राइक रेट अभी भी चिंता का विषय है। धोनी को 2019 विश्व कप खेलना है और उनकी फिटनेस को ध्यान में रखते हुए ज़रूरी है कि उन्हें सही समय पर आराम देते रहा जाए। धोनी की जगह पंत जैसे एक विकेटकीपर बल्लेबाज़ को मौक़ा देना ज़रूरी है ताकि विश्व कप या महत्वपूर्ण सीरीज के दौरान अगर धोनी फिट नहीं रहते हैं तो टीम में उनकी कमी पूरी की जा सके। इसीलिए, अधीर मत होइए क्योंकि यह टीम के भले के लिए है।

लोकसभा चुनाव 2019: वो 15 VIP सीटें जिन पर होगी पूरे देश की नज़र

बीते रविवार (मार्च 10, 2019) को चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा करते हुए बताया कि इस बार के चुनाव सात चरण में होने वाले हैं। वैसे तो चुनाव में एक-एक सीट की अपना महत्व होता है लेकिन फिर भी पूरे देश की नज़रें कुछ VIP सीटों पर हमेशा टिकी रहती हैं कि वहाँ से कौन जीता और कौन हारा…। लेकिन यह VIP सीटें कौन-कौन सी हैं, और इनमें मतदान कौन सी तारीख को होने वाले हैं, आइए आपको इसकी जानकारी देते हैं।

वाराणसी: वाराणसी में मतदान आखिरी चरण में यानि 19 मई को होना तय हुआ है। 2014 में इस सीट से नरेंद्र मोदी ने पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था और प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुँचे थे। ऐसे में लोगों की उत्सुकता इस सीट को लेकर बनी हुई है कि आखिर इस बार कौन होगा यहाँ से खड़ा और कौन मारेगा बाजी?

अमेठी और रायबरेली: कॉन्ग्रेस का गढ़ कहा जाता है अमेठी और रायबरेली। 2014 लोकसभा चुनाव में देश के सबसे बड़े राज्य (लोकसभा सीटों की संख्या के आधार पर) से कॉन्ग्रेस को सिर्फ 2 सीटें आईं थीं और वो दोनों सीटें थीं – अमेठी व रायबरेली। देखना है कि इस बार कॉन्ग्रेस इन दोनों संसदीय सीटों पर अपनी लाज बचा पाती है या नहीं…

लखनऊ: 6 मई को लखनऊ में मतदान की तारीख तय हुई है। यहाँ से 2014 में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने विजय हासिल की थी। कभी यह सीट अटल बिहारी वाजपेयी का हुआ करता था। और अब राजनाथ सिंह का। परंपरागत तौर पर VIP सीट का दर्जा पा चुका लखनऊ इस बार किस करवट बैठेगा, यह देखना वाकई दिलचस्प होगा।

वडोदरा और पुरी: इन दोनों ही संसदीय सीट पर मतदान 23 अप्रैल को होगा। इन दोनों को VIP सीट की सूची में डालने का कारण है यह है कि पिछली बार नरेंद्र मोदी वाराणसी के अलावा वडोदरा से भी निर्वाचित हुए थे। लेकिन इस बार खबरें आ रही हैं कि पुरी वह दूसरी सीट हो सकती है, जहाँ से पीएम मोदी चुनाव लड़ेंगे। हालाँकि इस पर बीजेपी की तरफ से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।

गाँधी नगर और पीलीभीत: VIP सीटों की सूची में गांधी नगर और पीलीभीत में चुनाव 23 अप्रैल को होना निश्चित हुआ है। गाँधी नगर जहाँ भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की सीट है, वहीं पीलीभीत की सीट का प्रतिनिधित्व केंद्रीय मंत्री मेनका गाँधी करती हैं।

अमृतसर: यहाँ मतदान के लिए 19 मई की तारीख निर्धारित की गई है। गौरतलब है कि इस क्षेत्र के मायने इस वर्ष इसलिए भी अधिक हैं क्योंकि मनमोहन सिंह को यहाँ से चुनाव लड़ाने की बात कॉन्ग्रेस में चल रही है। 2014 लोकसभा की बात करें तो पिछली बार यहाँ से अरुण जेटली ने चुनाव लड़ा था और हार गए थे।

सुल्तानपुर: केंद्रीय मंत्री मेनका गाँधी के बेटे वरुण गाँधी की संसदीय सीट सुल्तानपुर में मतदान 12 मई को होना है। भले ही वरुण गाँधी अभी लाइमलाइट में नहीं हैं लेकिन एक समय वो फायर ब्रांड नेता थे। साथ में गाँधी सरनेम तो है ही!

मैनपुरी और आजमगढ़: 23 अप्रैल को होने वाले मैनपुरी में मतदान पर लोगों की नजरें इसलिए भी होंगी क्योंकि 2014 में मुलायम सिंह यादव यहीं से निर्वाचित हुए थे। इसके अलावा आजमगढ़ में भी 12 मई को मतदान होना है, जहाँ मुलायम ने अपनी दूसरी सीट को भी बरकरार रखा था।

कन्नौज: मुलायम सिंह की बहू और उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम की पत्नी डिंपल यादव 2014 में यहीं से सांसद बनी थीं। यहाँ पर चुनाव 29 अप्रैल को होना तय हुआ है।

झांसी और कानपुर: इन दोनों संसदीय क्षेत्रों में मतदान 29 अप्रैल को होना है। बता दें कि झांसी की संसदीय सीट उमा भारती की है जबकि कानपुर की संसदीय सीट मुरली मनोहर जोशी की है।

आखिर में बताते चलें की सात चरणों में होने वाले यह मतदान 11 अप्रैल से शुरू होंगे और 19 मई को समाप्त होंगे। इसके बाद मतगणना के लिए 23 मई की तारीख निश्चित हुई है।

पश्चिम बंगाल के स्कूल की अनोखी पहल, मुस्लिम प्रिंसिपल के लिए बजनी चाहिए तालियाँ

पश्चिम बंगाल आए दिन चर्चा में बना रहता है। इसमें कई ऐसे राजनीतिक समीकरण भी बनते-बिगड़ते दिखते हैं, जहाँ ममता सरकार आए दिन आलोचनाओं का शिकार होती रहती है। लेकिन इस बार बात कुछ अलग है। फ़िलहाल पश्चिम बंगाल से आई एक प्रेरणादायी ख़बर। जिसकी सिर्फ तारीफ़ नहीं बल्कि भरपूर तारीफ़ होनी चाहिए।

मामला मुर्शिदाबाद के लालगोला में स्थित लक्ष्यपुर हाई स्कूल का है। यहाँ बाल-विवाह के ख़िलाफ़ शिक्षकों ने एक ऐसी मुहिम छेड़ी है, जिसके अंतर्गत बालिकाओं की 18 साल से पहले शादी न करने संबंधी एक शर्तनुमा ख़त (Undertaking) तैयार किया गया है। इसमें लिखा है, “मैं अपनी बेटी का विवाह 18 साल से पहले नहीं  करूंगा। शिक्षा से भी वंचित नहीं रखुंगा। मैं उसे शिक्षित करूंगा और 18 वर्ष की आयु के बाद ही उसके विवाह की व्यवस्था करूंगा।” स्कूल द्वारा तैयार किए गए इस अंडरटेकिंग पर लगभग 1,800 अभिभावकों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं। बता दें कि इस स्कूल में 1,957 लड़कियाँ हैं, जो कि 22 गाँवों से आने वाले लगभग 3,205 छात्रों की कुल संख्या के आधे से भी अधिक है।

राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आधार पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके बाद स्कूल ने यह अनूठी पहल शुरू की। इस रिपोर्ट के अनुसार 15 से 19 वर्ष की उम्र की 25.6 प्रतिशत लड़कियों के बाल-विवाह की घटनाओं में पश्चिम बंगाल सबसे ऊपर है और 39.9 प्रतिशत के साथ मुर्शिदाबाद सभी जिलों में शीर्ष पर है। 2015-16 में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, बाल-विवाह का राष्ट्रीय औसत 11.9 प्रतिशत है।

अभिभावकों से हस्ताक्षर कराने संबंधी अंडरटेकिंग के बारे में स्कूल के प्रिंसिपल जहाँगीर आलम का कहना है कि इस तरह के अंडरटेकिंग पर हस्ताक्षर लेना अनिवार्य तो नहीं है लेकिन अगर किसी को इस पर हस्ताक्षर करने में कोई आपत्ति है तो उसे दूर करने के लिए हम अभिभावकों के साथ बात करेंगे, जिससे उनकी किसी भी तरह की परेशानी का समाधान किया जा सके। इसके अलावा उन्होंने बताया कि अभी तक तो ऐसे माता-पिता सामने नहीं आए हैं, जिन्होंने इस अंडरटेकिंग पर सवाल खड़े किए हों या फिर इस पर हस्ताक्षर करने में किसी प्रकार की कोई आपत्ति दर्ज की हो।

अधिकारियों और शिक्षकों का कहना है कि स्कूल प्रशासन ने स्कूली लड़कियों के लिए राज्य सरकार की परियोजना के अनुरूप कन्याश्री समूह भी बनाया है। समूह के सदस्य गाँवों में सतर्कता और जागरूकता बनाए रखते हैं और अगर कहीं बाल-विवाह हो रहा हो तो उसकी रिपोर्ट दर्ज कराते हैं। इन परिस्थितियों में स्कूल के शिक्षक माता-पिता के साथ बातचीत करते हैं और सही फ़ैसला लेने का मार्गदर्शन करते हैं। अगर बात नहीं बनती है तो आवश्यकता पड़ने पर पुलिस और जिला प्रशासन की मदद भी लेते हैं।

स्कूल के प्रिंसिपल ने बताया कि इस इलाके में कम उम्र में विवाह करने का चलन है। चूँकि पुरुष काम के लिए अधिकतर समय बाहर रहते हैं, ऐसे में माताएँ ही लड़कियों की देखभाल करती हैं। इसलिए वो अपनी बेटियों की जल्द शादी करना सुविधाजनक समझती हैं। हालांकि अब धीरे-धीरे लोग इस बात को समझ रहे हैं और स्कूल द्वारा छेड़ी गई इस मुहीम का हिस्सा भी बन रहे हैं।

कुल मिलाकर अगर इस तरह के अंडरटेकिंग की बात करें तो निश्चित रूप से यह पहल अनूठी होने के साथ-साथ बालिकाओं के विकास में अपना अहम योगदान तो देगी ही साथ ही अन्य राज्यों के लिए एक मिसाल भी क़ायम करेगी। इस तरह की पहलों का स्वागत हर मायनों में किया जाना चाहिए, जिससे अन्य राज्यों के स्कूल भी इस तरह की पहल करने का साहस जुटा सकें।

गिलगित बल्तिस्तान: LoC के उस पार का भारत, जहाँ आज भी लोग भारतीय सेनाओं का इंतज़ार करते हैं

भूराजनैतिक पक्ष:-

1947 में जब देश ब्रिटिश राज से मुक्त हुआ तब जम्मू कश्मीर का विलय भारत में उस प्रकार नहीं हुआ जिस प्रकार अन्य रियासतें भारत संघ का अंग बनीं। जम्मू कश्मीर राज्य भूराजनैतिक विविधताओं से भरा पड़ा है। सन ’47-’48 में भारत-पाक युद्ध के पश्चात 27 जुलाई 1949 को कराची समझौते में युद्धविराम पर हस्ताक्षर कर तत्कालीन सरकार ने उस भूमि को पुनः हासिल करने का प्रयास नहीं किया जिस पर पाकिस्तान ने जबरन कब्जा कर लिया था। जानने लायक बात यह भी है कि पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर पाकिस्तान का कोई आधिकारिक प्रांत नहीं है। आज जिसे हम PoK अथवा PoJK कहते हैं उसके शासकीय अधिकारों पर पाकिस्तान का संविधान मौन है।

बहरहाल, पाकिस्तान ने जो भूमि हथियाई थी उसे उसने दो भागों में बाँटा: एक का नाम रखा आज़ाद कश्मीर तथा दूसरे को कहा नॉर्दर्न एरिया। कथित आज़ाद कश्मीर दरअसल नियंत्रण रेखा के पश्चिम में मीरपुर मुजफ्फराबाद का क्षेत्र है, जिसकी सीमा जम्मू और कश्मीर घाटी के थोड़ा ऊपर तक लगती है। यह पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर का छोटा भाग है। (मानचित्र में देखें)

आभार : जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र (नई दिल्ली )

यह उस पूरी भूमि का मात्र 15% भाग है जिस पर पाकिस्तान ने कब्जा किया था। पाकिस्तान ने बड़ी चालाकी से इस क्षेत्र को छद्म स्वतंत्रता प्रदान की है। शेष पाकिस्तान से अलग यहाँ का एक वजीरे आजम, सुप्रीम कोर्ट आदि स्थापित किए गए हैं। मीरपुर मुजफ्फराबाद का क्षेत्र रावलपिंडी के समीप है जहाँ पाकिस्तानी फ़ौज का जनरल हेडक्वार्टर स्थित है। इसलिए रणनीतिक रूप से पाकिस्तानी फ़ौज को इस क्षेत्र को आज़ाद कश्मीर घोषित कर यहाँ से भारत विरोधी गतिविधि संचालित करने में सुविधा होती है।

पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्र को कायदे से ‘पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर’ कहना चाहिए। इसके दो कारण हैं- पहला यह कि वह भारत के संवैधानिक रूप से स्वीकृत जम्मू कश्मीर राज्य का भाग है। दूसरा यह कि कथित आज़ाद कश्मीर में वास्तविक कश्मीर का एक इंच भाग भी नहीं आता। फिर भी पाकिस्तान इसे आज़ाद कश्मीर कहता है ताकि जो नैरेटिव सेट हो वह कश्मीर के नाम से हो न कि ‘भारत के जम्मू कश्मीर राज्य’ के नाम से।

पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर का दूसरा तथा बड़ा भाग (85%) गिलगित बल्तिस्तान है जिसे 2009 तक नॉर्दर्न एरिया कहा जाता था। इसकी सीमा दक्षिण में मीरपुर मुजफ्फराबाद क्षेत्र, कश्मीर घाटी और कारगिल से लगती है। पूर्व में गिलगित बल्तिस्तान की सीमा पॉइंट NJ9842 तक लेह से लगती है। पॉइंट NJ9842 के ऊपर सियाचेन ग्लेशियर है और उसके ऊपर काराकोरम दर्रा है। सियाचेन के ठीक ऊपर शक्सगाम घाटी है जो गिलगित बल्तिस्तान का ही अंग है। पाकिस्तान ने 1963 में शक्सगाम घाटी अनधिकृत रूप से चीन को दे दी थी।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:-

गिलगित तथा बल्तिस्तान ऐतिहासिक रूप से दो भिन्न राजनैतिक इकाइयों के रूप में विकसित हुए थे। गिलगित को दर्दिस्तान भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ दरदी भाषा बोलने वाले लोग रहते हैं। बल्तिस्तान को मध्यकाल में छोटा तिब्बत कहा जाता था। गिलगित और बल्तिस्तान का एक प्रांत के रूप में एकीकरण डोगरा शासनकाल में हुआ। पुरातन काल में गिलगित मौर्य वंश के अधीन रहा। कराकोरम राजमार्ग पर स्थित सम्राट अशोक के 14 शिलालेख इसका प्रमाण हैं। ललितादित्य (724-761 ई०) और उसके पश्चात कार्कोट वंश के समय भी गिलगित बल्तिस्तान काश्मीर साम्राज्य का अभिन्न अंग रहा।

ललितादित्य ने अपने शासनकाल में शेष भारत से काश्मीर के ऐतिहासिक सम्बन्धों को मजबूत किया। कालांतर में गिलगित और बल्तिस्तान मुग़ल शासन के अधीन भी रहा। मुग़ल शासन के दुर्बल होने के पश्चात साठ वर्षों तक काश्मीर में अफगान शासन रहा। उस समय भी गिलगित और बल्तिस्तान काश्मीर साम्राज्य का अंग था। अफगानी शासन के अत्याचारों से पीड़ित होकर एक काश्मीरी पण्डित बीरबल धर के नेतृत्व में काश्मीर की जनता ने सिख महाराजा रणजीत सिंह से गुहार लगाई। तब महाराजा रणजीत सिंह जी ने 15 जून 1819 को काश्मीर पर आक्रमण किया और अफगानी शासन से मुक्ति दिलाई।

महाराजा रणजीत सिंह जी ने जम्मू का क्षेत्र गुलाब सिंह को जागीर के रूप में दिया। कालांतर में कई युद्ध हुए और राजनैतिक घटनाक्रम परिवर्तित हुए। अंग्रेजों द्वारा सिखों को पराजित करने और 9 मार्च 1846 की लाहौर सन्धि के फलस्वरूप समूचे जम्मू कश्मीर राज्य पर गुलाब सिंह का एकछत्र राज स्थापित हुआ। बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में रूस में हुई क्रांति और सत्ता परिवर्तन के कारण बिगड़ते शक्ति सन्तुलन से घबराये अंग्रेजों ने डोगरा महाराजा से गिलगित एजेंसी 60 वर्षों के पट्टे पर छीन ली। जब सोवियत रूस ने 1934 में चीन के शिनजिआंग प्रांत पर कब्जा कर लिया तब ब्रिटेन ने महाराजा से संधि कर जम्मू कश्मीर को 60 साल के लिए पट्टे पर ले लिया था। उसके बाद अंग्रेज़ों ने गिलगित एजेंसी बनाई और गिलगित स्काउट नामक सैन्य टुकड़ी की स्थापना की जिसमें अधिकांश अफसर ब्रिटिश थे। 3 जून 1947 को मॉउंटबैटन प्लान की घोषणा के बाद गिलगित को पुनः महाराजा को सौंप दिया गया और इसके साथ ही गिलगित स्काउट्स भी महाराजा के अधीन हो गयी।

जब महाराजा ने 30 जुलाई 1947 को गवर्नर और चीफ ऑफ़ स्टाफ को गिलगित भेजा तो उन्हें पता चला कि गिलगित स्काउट्स ने पाकिस्तानी फ़ौज में सम्मिलित होने का निर्णय लिया है। 31 अक्टूबर 1947 को गिलगित स्काउट्स ने गवर्नर का आवास घेर लिया और अंतरिम सरकार बनाने की घोषणा कर दी। 4 नवंबर को मेजर ब्राउन ने पाकिस्तान का झंडा फहरा दिया और 21 नवंबर को खुद को एक पॉलिटिकल एजेंट बताने वाले एक पाकिस्तानी ने आकर अड्डा जमा लिया।

तत्कालीन भारतीय शासन व्यवस्था इस पूरे घटनाक्रम पर मौन रही और स्कर्दू को बचाने में भी असफल रही। इस प्रकार अंग्रेज़ों द्वारा गिलगित बल्तिस्तान समेत पूरे जम्मू कश्मीर को महाराजा के हाथों सौंपे जाने के बावजूद गिलगित स्काउट्स की गद्दारी के कारण वह हिस्सा पाकिस्तान में चला गया। सन 1947-48 के बाद के घटनाक्रम और जवाहरलाल नेहरू के कारनामे आज इतिहास का एक हिस्सा हैं। सन् 1947 में जब अंग्रेज भारत से जाने लगे तो उस समय अनेक षड्यंत्र तथा नाटकीय घटनाक्रम हुए। परन्तु यह भी सत्य है कि अंग्रेजों ने 1 अगस्त 1947 को गिलगित एजेंसी के सभी क्षेत्र महाराजा हरि सिंह को सौंप दिए थे।

इस संक्षिप्त ऐतिहासिक वर्णन से यह सिद्ध होता है कि गिलगित बल्तिस्तान पर शासन करने का पाकिस्तान का ऐतिहासिक रूप से भी कोई अधिकार नहीं बनता क्योंकि प्राचीनकाल से लेकर 1947 तक यह क्षेत्र अधिकांश समय भारतीय राजाओं के अधीन रहा। ऐसे में पाकिस्तान प्रायोजित यह प्रोपेगैंडा निराधार है कि गिलगित बल्तिस्तान भारत को अंग्रेजों ने दिया था।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य:-

आज के समय में गिलगित बल्तिस्तान सामरिक रूप से अतिमहत्वपूर्ण क्षेत्र है। यहाँ प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधन हैं तथा सांस्कृतिक संरचना पर इस्लामी प्रभाव होने के बावजूद विविधता है। यहाँ कई इस्लामी सम्प्रदाय के लोग रहते हैं जैसे- नूरबक्शी सम्प्रदाय, ट्वेलवर शिया सम्प्रदाय और सुन्नी मतावलंबी। गिलगित बल्तिस्तान के सिंकरी प्रदेश के निवासी गाय को पवित्र मानते थे किंतु इस्लामियों के भय के मारे अब वे अपनी प्राचीन मान्यताओं को तजने के लिए बाध्य हैं।

पाकिस्तान की सरकार ने कथित आज़ाद कश्मीर में बाहरी लोगों के बसने पर पाबन्दी लगा रखी है किंतु गिलगित बल्तिस्तान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए यहाँ शेष पाकिस्तान से आये इस्लामियों ने जनसंख्या परिवर्तन कर कट्टरपंथ को बढ़ावा देने का काम किया है। गिलगित बल्तिस्तान में पाकिस्तान सरकार के अत्याचारों और मानवाधिकार उल्लंघन पर ब्रिटिश बैरोनेस एम्मा निकोलसन ने यूरोपियन पार्लियामेंट (जब ब्रिटेन EU का सदस्य थ) में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। एक उदाहरण देखिये- गिलगित बल्तिस्तान के निवासियों को पाकिस्तान कोई नागरिक अधिकार नहीं देता।

गिलगित बल्तिस्तान का कोई निवासी वहाँ कोई रोजगार प्राप्त नहीं कर सकता। नौकरी के लिए उसे बाहर शेष पाकिस्तान के किसी नगर में जाना होगा। पाकिस्तान गिलगित बल्तिस्तान में बांध बना रहा है जिसका पानी बिजली या रॉयल्टी कुछ भी इस क्षेत्र को नहीं मिलने वाला। इस क्षेत्र के ऊपर से चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) होकर गुजरता है और शक्सगाम घाटी से निकटता के चलते चीन बड़ी आसानी से यहाँ अपने कर्मचारी भेज कर निर्माण कार्य करवा रहा है।

गिलगित बल्तिस्तान में कई प्राचीन भाषाएँ विलुप्त होने की कगार पर हैं। गिलगित के समीप स्थित चित्राल घाटी के आसपास कलश समुदाय के लोग रहते हैं। इनकी बेटियों को विवश होकर इस्लाम कबूल करना पड़ता है क्योंकि गर्मियों में कामांध भेड़िये अपनी हवस मिटाने इनके पास आते हैं। पाकिस्तानी शासन में ऐसी अनेक विषमताओं से जूझते हुए गिलगित बल्तिस्तान और आसपास के लोग कश्मीर नामक स्वर्ग में नरक भोगने को मजबूर हैं। सन 2005 में आये भूकंप के पश्चात स्थिति और खराब हुई है। कैप्टन सिंकदर रिज़वी अपने भाषणों में बताते हैं कि वहाँ के बच्चों के लिए चीनी जैसी चीज़ एक लक्ज़री की तरह है। स्कर्दू के आसपास गाँवों के लोग आज भी जब खाना बनाते हैं तो हर घर में 10 रोटी अधिक बनती है ताकि जब भारतीय सेनाएँ उन्हें पाकिस्तान से मुक्त कराने आएँगी तो वे भूखी न जाएँ। वहाँ के लोग आज भी इस इंतज़ार में हैं कि एक दिन भारतीय सेना उन्हें पाकिस्तानी कब्जे से छुड़ाने आएगी।

वैसे तो गिलगित-बल्तिस्तान दुनिया सबसे बड़े ग्लेशियर्स में से एक का क्षेत्र है लेकिन इसी वर्ष फरवरी में खबर आई कि गिलगित-बल्तिस्तान में रहने वाले लोगों में पानी के लिए हाहाकार मचना शुरू हो गया है। रिहायशी इलाकों में पीने लायक पानी उपलब्ध नहीं है। इसके पीछे पाकिस्तान का एक खतरनाक प्लान काम कर रहा है। इस प्लान के तहत सिलसिलेवार तरीके से गिलगित बल्तिस्तान में ‘Water-Crisis’ पैदा किया जा रहा है ताकि लोग पानी की कमी के चलते पाकिस्तान के दूसरे शहरी इलाकों दूसरे इलाकों में बसें या फिर गिलगित बल्तिस्तान के ही प्लानंड रिहायशी इलाकों लोगों को बसाया जाये। इसके दो प्रमुख कारण हैं- 1. गिलगित-बल्तिस्तान में डेमोग्राफी चेंज कर, यहां के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा करना 2. चीन के बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट के लिए उपयुक्त माहौल पैदा करना।

भविष्य की चिंताएँ तथा उपाय:-

भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जी ने 1 अक्टूबर 2015 को पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर की राजनैतिक दुर्व्यवस्था पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित कराया था। IDSA की एक रिपोर्ट बताती है कि 2006 में गिलगित बल्तिस्तान के छात्रों ने भारत के IIT और IIM में दाखिले में आरक्षण की मांग की थी। गिलगित बल्तिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर वाखन दर्रा एवं सड़क मार्ग स्थित है जो शक्सगाम घाटी के समीप ही है। युद्धकाल में यह चीन को अपनी सेनाएं गिलगित में घुसाने का अवसर प्रदान करेगा। सेंगे हसनान सेरिंग अमरीका में Institute for Gilgit Baltistan Studies नामक संस्था चलाते हैं। वे बताते हैं कि चीन गिलगित में मिसाइलें ले जाने हेतु सुरंगे बना रहा है। अजमल आमिर कसाब और डेविड कोलमैन हेडली इन दोनों ने स्वीकार किया था इन्हें PoJK में आतंकी प्रशिक्षण मिला था।

उपरोक्त तथ्य एवं चिंताओं पर समूचे भारत में विमर्श तथा जागरूकता आवश्यक है। हमारी सीमाओं पर यह समस्याएँ एक दिन अथवा एक दशक में समाप्त नहीं होने वालीं। इसके लिए व्यापक जनसमर्थन आवश्यक है। महत्वपूर्ण यह भी है कि जब लिबरल बुद्धिजीवी रोहिंग्यों के लिए आँसू बहा रहे होते हैं तब उन्हें गिलगित बल्तिस्तान में रह रहे लोगों की सिसकियाँ सुनाई नहीं देतीं। कुछ साल पहले तक दूरदर्शन समाचार गिलगित बल्तिस्तान क्षेत्र के मौसम की जानकारी भी देता था लेकिन अब वह जानकारी भी नहीं मिलती। जबकि यह स्थापित सत्य है कि नियंत्रण रेखा के उस पार के लोग बड़ी उम्मीदों से भारत की ओर देख रहे हैं।

80 लाख किसानों को डायरेक्ट लाभ, BT कॉटन बीजों के बिक्री मूल्य में कटौती

केंद्र सरकार ने बीटी कपास के बीजों के अधिकतम बिक्री मूल्य में कटौती की है। इससे देश भर में लगभग 80 लाख कपास किसानों को लाभ मिलने की संभावना है। शुक्रवार (मार्च 8, 2019) को कृषि मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया कि नए मूल्य के तहत 450 ग्राम वाले पैकेट के दाम घटाकर ₹730 रुपए (₹20 रॉयल्टी समेत) कर दिया गया है। 2018-19 में बीटी कपास बीजों का अधिकतम बिक्री मूल्य ₹740 था, जिसमें ₹39 का रॉयल्टी शुल्क शामिल था।

नए अधिकतम बिक्री मूल्य (MSP) में प्रति वर्ष ₹20 प्रति पैकेट (रॉयल्टी) के रूप में शामिल है, जबकि पिछले वर्ष ₹39 प्रति पैकेट था। इसका मतलब है कि किसानों को 2018 सीज़न की तुलना में इस साल ₹10 प्रति पैकेट कम भुगतान करना होगा। साथ ही घरेलू बीज कंपनियों को बड़ा लाभ होगा क्योंकि उन्हें डेवलपर को ट्रेट शुल्क के रूप में प्रति पैकेट ₹19 कम देने होंगे।

बीटी कपास बीज के MSP को कम करने के क़दम के तहत स्वदेशी जागरण मंच (SJM) सहित कई संगठनों ने माँग की थी कि ट्रेट शुल्क को पूरी तरह से हटा दिया जाए ताकि किसानों को उच्च क़ीमतों का ‘अनावश्यक बोझ’ न उठाना पड़े।

SJM के सह-संयोजक अश्वनी महाजन ने 1 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर बीटी कपास के बीजों के MSP में ट्रेट शुल्क हटाने के लिए हस्तक्षेप करने की माँग की थी। कुछ रिपोर्टों का हवाला देते हुए उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि बीटी ट्रेट कपास के पौधों को पिंक बोलवर्म (कीट) से बचाने का काम नहीं करता इसलिए ऐसी फीस वसूलने का कोई मतलब नहीं बनता।

महाजन ने आरोप लगाया कि कृषि मंत्रालय ने न तो ट्रेट मूल्य निकाला और न ही उन डेवलपर के ख़िलाफ़ कोई दंडात्मक कार्रवाई ही की, जो किसानें से धन तो इकट्ठा कर लेते हैं लेकिन कोई काम नहीं करते।

मध्यम या बड़े कपास किसानों के पास चिंता के अलग-अलग कारण हैं। कपास की कुल उत्पादन लागत में बीज की लागत ज़्यादा नहीं होती है। ख़बर के अनुसार महाराष्ट्र में यवतमाल ज़िले के कपास किसान विजय नीवाल ने बताया कि रॉयल्टी में कटौती के क़दम से प्रौद्योगिकी डेवलपर्स का मनोबल गिर सकता है और अगर वे अगले कुछ वर्षों में पुराने हो जाते हैं, तो फिर वे नई किस्मों के साथ बाहर नहीं आते।

बता दें कि इससे पहले केंद्र द्वारा दिसंबर 2015 में गठित एक पैनल द्वारा कपास बीज मूल्य नियंत्रण आदेश के तहत बीटी कपास बीजों के दाम पहली बार 2016-17 में घटाए गए थे। पैनल ने 830-1,030 रुपए के पुराने दाम घटाकर प्रति पैकेट 800 रुपए कर दिए थे। इसी तरह प्रति पैकेट 163 रुपए ट्रेट वैल्यू को लगभग 70 प्रतिशत घटाकर 49 रुपए कर दिया गया था। यह कदम मई 2016 में जारी प्रारूप दिशा-निर्देशों के बाद उठाया गया था, जिसमें ट्रेट वैल्यू को बीज के बिक्री मूल्य के 10 प्रतिशत पर सीमित कर दिया गया था और इसके बाद समय-समय पर इसे कम किया गया।

शादी के महज़ तीन महीने बाद पत्नी ने की पति की हत्या,जानिए क्या थी वजह

ऐसा कहा जाता है कि शादी के बाद इंसान की ज़िंदगी के एक नए सफर की शुरुआत होती है, मगर मुंबई से एक ऐसी ख़बर आई है, जिसने इस बात को पूरी तरह से झुठला दिया है। शादी के महज़ तीन महीने बाद ही पत्नी ने पति की ज़िंदगी के सफर को हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त कर दिया।

दरअसल, मुंबई में एक नवविवाहिता ने शादी के मात्र तीन महीने बाद ही पति की हत्या कर दी। इसकी वजह इतनी थी कि महिला को अपना पति ही पसंद नहीं था जिसके चलते उसने हत्या की इस वारदात को अंजाम दिया। पत्नी ने पति को ज़हर दिया और फिर गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी। इतना ही नहीं, इसके बाद उसने ख़ुद को निर्दोष साबित करने के लिए झूठी कहानी भी गढ़ी। पति जगदीश की हत्या करने के बाद पत्नी वृषाली पुलिस स्टेशन पहुँची और वहाँ उसने पुलिस से शिक़ायत दर्ज कराई कि उसके घर में चोर घुस आए थे और उसके सामने ही उसके पति की हत्या कर दी गई।

मगर पत्नी के इस झूठ का पर्दाफ़ाश तब हुआ, जब जगदीश के पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट आई। इस रिपोर्ट के मुताबिक पति की मौत ज़हर और गला घोंटने से हुई थी। पत्नी की बात और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की बातों में जब कोई समानता नज़र नहीं आई तो पुलिस को महिला पर शक हुआ और उसने उसे हिरासत में ले लिया और उससे पूछताछ करना शुरू कर दिया। पूछताछ के दौरान पहले तो वृषाली ने अपने झूठ को ही सच साबित करने की कोशिश की, लेकिन जब पुलिस ने सख़्ती से पूछताछ की तो उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया।

वृषाली ने बताया कि उसे अपना पति पसंद नहीं था, इसलिए उसने उसकी हत्या कर दी। बता दें कि जगदीश अपनी पत्नी वृषाली के साथ कल्याण पूर्व स्थित कोलसेवाडी परिसर के दुर्गा मंदिर के पास रहता था। वृषाली बताती है कि शादी के बाद दोनों का रोज आपस में झगड़ा होता था और फिर 6 मार्च को वृषाली ने जगदीश की हत्या कर दी।