Friday, October 4, 2024
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DD न्यूज़ ऑफिस में बाँटी गई थी मिठाइयाँ, जब मोदी को नहीं मिला था US वीजा: किताब में खुलासा

डीडी न्यूज़ यानी कि दूरदर्शन समाचार का यूपीए सरकार द्वारा 2004-2014 के बीच किस तरह से दुरुपयोग किया गया था, इसका  खुलासा डीडी न्यूज़ के एंकर और पत्रकार अशोक श्रीवास्तव द्वारा लिखित पुस्तक “नरेंद्र मोदी सेंसर” में हुआ है।

यह पुस्तक मुख्य रूप से नरेंद्र मोदी के एक साक्षात्कार के बारे में है, जो 2014 के लोकसभा चुनावों में डीडी न्यूज पर प्रसारित किया गया था। यह साक्षात्कार अशोक श्रीवास्तव द्वारा संचालित किया गया था, लेकिन इसका प्रसारण काफी देर से और सेंसर करने के बाद किया गया था।

प्रसारित होने के बाद भी, यह विवादों में घिर गया क्योंकि ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने डीडी न्यूज़ द्वारा सेंसर की गई इस गलतफहमी को और भी ज्यादा फैला दिया था। अशोक श्रीवास्तव उस साक्षात्कार के आसपास की घटनाओं से जुड़े तारों को याद करते हुए अपनी किताब में यह भी बताते हैं कि कैसे कॉन्ग्रेस पार्टी द्वारा एक सार्वजनिक संस्थान का इस्तेमाल एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को निशाना बनाने के लिए किया गया था।

इस पुस्तक के अनुसार दूरदर्शन का इस्तेमाल यूपीए सरकार के कार्यक्रमों और नीतियों के समर्थन में सामग्री बनाने के लिए भी किया गया था। उस समय दूरदर्शन में काम कर रहे कुछ लोग वहाँ के ‘पावर सेंटर’ बन गए थे। पत्रकारिता करने वाली यह सरकारी जगह बहुतों को शर्मिंदगी महसूस करवाने के लिए 9 दिसंबर को मिठाईयाँ बाँटकर सोनिया गांधी का जन्मदिन भी मनाती थी।

अशोक श्रीवास्तव बताते हैं कि जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उन्हें वीजा देने से मना कर दिया गया था तो मिठाईयाँ बांंटकर उन्हें और उनके जैसे कुछ और पत्रकार, जो कि वहाँ पर काम करते थे, को काफी शर्मिंदगी महसूस करवाई गई थी।

हालाँकि, किसी ने भी इस तरह की प्रथाओं के खिलाफ कुछ नहीं बोला क्योंकि ‘पावर सेंटर’ में कॉन्ग्रेस के सदस्य थे और ‘दूरदर्शन के कर्मचारी’ इस बात के गवाह थे कि दर्जनों पत्रकार – मुख्य रूप से जो दीपक चौरसिया के साथ शामिल हुए थे, को 2004 में मज़बूरन इस्तीफा देना पड़ा था, जब कॉन्ग्रेस सरकार सत्ता में आई थी। इसीलिए कोई भी पत्रकार कॉन्ग्रेस के खिलाफ कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था।

इतना ही नहीं, इस किताब का दावा है कि साल 2007 के गुजरात चुनाव के दौरान दूरदर्शन के संवाददाता संपादकीय सलाह के तौर पर एक ‘कंसलटेंट’ और तीस्ता सीतलवाड़ से आदेश लेते थे। लेकिन 2009 के लोकसभा चुनावों के बाद इस ‘पावर सेंटर’ की विशेष शक्तियाँ कम हो गई थीं। संभवतः ऐसा कॉन्ग्रेस की आंतरिक राजनीति के कारण हुआ था। लेकिन फिर भी यह ‘पावर सेंटर’ मोदी पर निशाना बनाने के लिए तुली हुई थी।

दूरदर्शन में मोदी से जुड़ी अच्छी खबरों पर और उनके द्वारा किए गए कार्यों पर बैन लगना जारी रहा। जिसके कारण अशोक श्रीवास्तव को उस समय काफ़ी हैरानी हुई, जब पब्लिक ब्रॉडकास्टर ने नरेंद्र मोदी के साक्षात्कार को आगे बढ़ाने को कहा।

हिंदी में लिखी यह किताब इस बात का सबूत है कि कॉन्ग्रेस के समय में मीडिया किस हद तक ‘स्वतंत्र’ थी। इस किताब से मालूम चलता है कि आज मीडिया पर खतरा बताने वाली बातें भी केवल एक प्रोपेगेंडा का ही हिस्सा है।

यह किताब इस बात की भी याद दिलाती है कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भी प्रियंका गांधी का इस्तेमाल किया गया था और 2019 के आते-आते भी स्थितियाँ बदली नहीं हैं। चीजें आपके सामने हैं, उस समय प्रियंका को प्रचारक के रूप में उतारा गया था और अब महासचिव का चेहरा दिया गया है।

महाशिवरात्रि पर तनाव: शिव-प्रतिमा को लेकर चश्मुद्दीन के गैंग ने वाल्मीकि समुदाय के लोगों से की मारपीट

आगरा में महाशिवरात्रि के अवसर पर साम्प्रदायिक तनाव भड़कने की ख़बर आई है। ‘अमर उजाला’ में प्रकाशित ख़बर के अनुसार, लोहामंडी के मोहल्ला पुरानी गढ़इया में खाली जमीन पर वाल्मीकि बस्ती के लोग भगवान शिव की प्रतिमा स्थापना करना चाहते थे। लेकिन उन्हें ऐसा करने से रोक दिया गया। बताया जाता है कि प्रतिमा स्थापना की तैयारी काफ़ी दिनों से ज़ोर-शोर से चल रही थी। आज सोमवार (मार्च 4, 2019) को सांप्रदायिक तनाव ने मारपीट का रूप ले लिया, जिसके कारण तीन थानों की पुलिस को घटनास्थल पर कैम्प करना पड़ा।

उक्त खाली ज़मीन किदवई पार्क के पीछे मोहल्ला पुरानी गढइया में स्थित है। यहीं के अखाड़ा मोहल्ले का एक परिवार मूर्ति स्थापना का विरोध कर रहा था। मामले की शुरुआत तब हुई जब चश्मुद्दीन ने इस ज़मीन पर दावा ठोकते हुए कहा कि यह ज़मीन उसकी है और वह प्रतिमा स्थापना नहीं करने देगा। इधर वाल्मीकि बस्ती के कुसुम साहू ने बताया कि उक्त ज़मीन नजूल की है। 300 गज की इस ज़मीन के बारे में चश्मुद्दीन का कहना है कि पूरा मोहल्ला मिल कर इस पर कब्ज़ा करना चाहता है। चश्मुद्दीन ने दावा किया कि ये उसके पुरखों की ज़मीन है और उसके पास इस से जुड़े दस्तावेज भी हैं।

स्थिति तनावपूर्ण होने के बाद थाने को को सूचना दी गई और पुलिस के पहुँचने से पहले वाल्मीकि बस्ती के लोगों ने प्रतिमा की स्थापना कर दी थी। प्रतिमा स्थापना की सूचना मिलते ही चश्मुद्दीन गिरोह के लोगों ने आकर मारपीट शुरू कर दी। इलाक़े में अफरातफरी मचने के बाद पुलिस वहाँ पर पहुँची। उस समय दोनों पक्षों के बीच पथराव हो रहा था। पुलिस के आने पर पथराव करने वाले तो भाग गए लेकिन मारपीट नहीं थमी। पुलिस के सामने भी मारपीट चलती रही।

स्थिति बेक़ाबू होने पर लोहामंडी, जगदीशपुरा और हरीपर्वत- इन तीनों थाने की फोर्स पहुँच गई। इसके बाद जाकर लोगों को वहाँ से हटाया जा सका। अधिकारियों का कहना है कि दोनों पक्षों से दस्तावेज दिखाने को कहा गया है, जिसके बाद झगड़े के कारणों का पता चलेगा। अधिकारियों ने कहा कि उन्हें अभी इस विवाद की वजह नहीं पता।

पाक के झूठ का पर्दाफाश: नहीं लगा आतंकी हाफिज सईद के संगठनों पर बैन

पाकिस्तान भले ही अमेरिका और भारत समेत सभी देशों से ये कह रहा है कि उसने आतंकी हाफिज सईद के संगठनों जमात-उद-दावा पर बैन लगा दिया है, लेकिन ये सच नहीं है। पाकिस्तान का झूठ एक बार फिर से सामने आ गया है। मुंबई हमले सहित कई अन्य हमलों का मास्टरमाइंड हाफिज का संगठन जमात-उद-दावा और फलाह-ए-इंसानियत आज भी पाकिस्तान में खुलेआम चल रहा है।

बता दें कि पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आत्मघाती हमले के बाद इमरान खान ने राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक बुलाई, जिसमें आर्मी के शीर्ष ऑफिसर मौजूद थे। इस बैठक में इमरान खान ने बढ़ते वैश्विक दवाब के बाद आतंकी हाफिज सईद के नेतृत्व वाले जमात-उद-दावा और फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन पर प्रतिबंध लगाने की बात कही थी।

लेकिन अभी हाल ही में एक रिपोर्ट आई है। जिसके मुताबिक पाकिस्तान द्वारा कही ये बात भी झूठी निकली, क्योंकि जो लिस्ट सामने आई है उससे खुलासा हुआ है कि पाकिस्तान सरकार की तरफ से इन संगठनों पर बैन नहीं लगाया गया है। इसमें उन संगठनों पर सिर्फ निगरानी रखने की बात कही गई है।

पाकिस्तान के इस झूठ से साफ जाहिर हो रहा है कि पाकिस्तान जो शांति और आतंकवाद से लड़ने की बात कर रहा है, वो महज एक दिखावा भर है।

BBC का J&K प्रोपगैंडा: भारत-विरोधी राय को प्रसारित कर भारतीय विचार को जान-बूझ कर छिपाया

14 फरवरी को पुलवामा में हुए आतंकी हमले में 40 सीआरपीएफ जवान वीरगति को प्राप्त हो गए। इसके बाद भारत सरकार ने चुप रहना उचित नहीं समझा और पाकिस्तान को उसी की भाषा में करारा जवाब दिया गया। चूँकि पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन ‘जैश-ए-मुहम्मद’ ने इस हमले की जिम्मेदारी ली थी, भारत ने उसके ठिकानों को तबाह कर सैकड़ों आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। भारतीय वायु सेना द्वारा की गई बहुचर्चित ‘एयर स्ट्राइक’ के बाद पाकिस्तान ने भारतीय सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया, जिसका उसे कड़ा प्रत्युत्तर दिया गया।

भारतीय मीडिया से लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया तक- सभी की इस पूरे घटनक्रम पर पैनी नज़र थी क्योंकि दक्षिण एशिया में युद्ध के बादल मँडराने लगे थे। वैसे स्थिति अब भी तनावपूर्ण है लेकिन बड़ी चालाकी से नैरेटिव बदलने की कोशिश की जा रही है। आतंक की समस्या को कश्मीर समस्या से जबरदस्ती जोड़ने की कोशिश इसी का एक हिस्सा है, ताकि पाकिस्तान को जिम्मेदार न ठहराया जा सके। हमने देखा कि कैसे भारतीय पत्रकारों और लिबरल्स के एक समूह ने इमरान ख़ान को शांति के देवता के रूप में प्रचारित किया। इसी क्रम में बीबीसी ने भी कुछ ऐसा किया है, जो उसके पूर्वाग्रह से भरे पक्षतापूर्ण रवैये को प्रदर्शित करता है।

बीबीसी ने क्या किया?

बीबीसी ने इस पूरे घटनाक्रम पर कश्मीर की जनता की राय जानने और उसे प्रसारित करने के लिए एक श्रृंखला बनाई, जिसमें ऐसे लोगों की राय ली गई जो लाइन ऑफ कण्ट्रोल (LOC) के पास रहते हैं। ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (BBC) की इस श्रृंखला में उन कश्मीरियों की राय को प्रदर्शित किया गया, जो पाकिस्तान की पैरवी करते हैं या उसे पाक-साफ बताते हैं। अगर आपको नहीं पता है तो यह जानना ज़रूरी है कि बीबीसी ने पाकिस्तानी मुस्लिमों द्वारा बच्चों के यौन शोषण को ढकने का पूरा प्रयास किया था। इसके अलावा ऑपइंडिया द्वारा बीबीसी की फेक रिसर्च का भी पर्दाफाश किया गया था।

इस श्रृंखला में दो लोगों की राय प्रसारित की गई, जो समान धर्म से ताल्लुक रखते हैं। हालांकि, शुरुआत में बीबीसी ने कश्मीर मसले और इस से जुड़े धार्मिक संघर्षों का उल्लेख तो किया लेकिन बाद में उन्होंने एक साज़िश के तहत अपना एजेंडा चलाना शुरू कर दिया।

चैनल पर प्रसारित हुए इस प्रोग्राम के दौरान पहले व्यक्ति ने कहा कि भारत और पाकिस्तान ने कश्मीर को खेल का मैदान बना डाला है। बकौल अनजान शख्स, इस प्रक्रिया में महिलाओं की जानें ली जा रही हैं और बच्चों को मारा जा रहा है। उसने कहा कि पाकिस्तान ने भारत द्वारा की गई ‘एयर स्ट्राइक’ को फेक बता दिया है। साथ ही, उसने भारत-पाकिस्तान तनाव को भी फेक करार दिया।

दूसरे व्यक्ति की पहचान हंदवारा के शौकत के रूप में कराइ गई। उसने कहा कि वह “कश्मीरियों की आम धारणा को उजागर करना” चाहता था। उसने यह भी कहा कि भारत ने “बदला” के रूप में जवाबी कार्रवाई (एयर स्ट्राइक) की और यह संघर्ष का समाधान नहीं था। उसने पूरे भारत-पाकिस्तान तनाव को ‘मोदी स्टंट’ करार दिया। अव्वल तो यह कि उसने दावा किया कि लगभग सभी कश्मीरियों की यही राय है।

अर्थात यह, कि इसे कश्मीरियों के बीच आम धारणा बता कर पेश किया गया। उस व्यक्ति ने इंडो-पाक तनाव को नकारते हुए कहा कि युद्ध जैसी कोई स्थिति नहीं है। साथ ही, उसने भारत और पाकिस्तान- दोनों ही देशों को ‘अति राष्ट्रवाद (Jingoism)’ को काबू में करने की सलाह दी।

बीबीसी ने दूसरे पक्ष की राय को कोई महत्व नहीं दिया

यह स्पष्ट है कि बीबीसी ने केवल दो लोगों की राय को साझा किया और एक एजेंडे के तहत मोदी विरोधी और भारत विरोधी बयानों को आम धारणा बता कर प्रसारित किया। अब, हमें एक और बात यह पता चली है कि बीबीसी ने जम्मू-कश्मीर की एक मोदी समर्थक महिला से भी बात की, लेकिन उनकी राय को प्रसारित नहीं किया। बीबीसी ने उस महिला से ट्विटर के अलावा फोन से भी बात किया। प्रत्येक अवसर पर, ब्रिटिश समाचार एजेंसी ने काफ़ी समय तक उनसे बात की, पूरे मामले पर उनकी राय के बारे में विस्तार से जाना।

डॉक्टर मोनिका लंगेह जम्मू में रहती हैं और एलओसी के पास राजौरी में उनके कुछ रिश्तेदार रहते हैं। उनकी राय बीबीसी चैनल पर प्रसारित अन्य व्यक्तियों की राय से अलग थी। उनका मानना था कि अगर पाकिस्तान अपनी ज़मीन पर स्थित आतंकी संगठनों पर लगाम नहीं लगाता है तो युद्ध ही एकमात्र विकल्प है। उन्होंने भारत और भारतीय सेना की तारीफ़ की, जो अन्य दोनों व्यक्तियों की राय से अलग थी। क्षेत्र में समस्याओं के लिए उन्होंने पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया था।

बीबीसी और डॉक्टर लंगेह की बातचीत का स्क्रीनशॉट

आतंकवाद पर बात करते हुए डॉक्टर मोनिका ने याद दिलाया कि जम्मू-कश्मीर के 60% हिस्से यानी लद्दाख में आतंकवाद जैसी कोई समस्या नहीं है। इसी तरह उन्होंने जम्मू की बात करते हुए कहा कि राज्य के इस 26% क्षेत्र में भी आतंकवाद मुद्दा नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि आतंकवाद की समस्या सिर्फ़ कश्मीर में है और वह भी उसके एक छोटे हिस्से तक सीमित है।

अफ़सोस यह कि बीबीसी ने उनकी राय को तवज्जोह नहीं दी और उसे प्रसारित नहीं किया। अगर चैनल चाहता तो उनकी राय को प्रसारित कर यह बता सकता था कि भारतीय कश्मीर समस्या के बारे में क्या सोचते हैं। लेकिन, बीबीसी ने अपने प्रोपगैंडा को चोट पहुँचाना उचित नहीं समझा और केवल उन्हीं की राय को प्रसारित किया, जो उसके एजेंडे में फिट बैठते थे।

यह कहा जा सकता है कि बीबीसी ने डॉक्टर लंगेह की राय को उनकी धार्मिक भावनाओं के कारण प्रसारित नहीं किया। बीबीसी ने उनसे उनकी धार्मिक आस्था के बारे में भी पूरी जानकारी ली थी। इस से यह साफ़ हो जाता है कि सिर्फ़ एक पक्ष की राय को प्रसारित करने वाले बीबीसी ने डॉक्टर लंगेह की राय को उनकी धार्मिक पृष्ठभूमि के कारण प्रसारित नहीं किया।

(यह खबर हमारी अंग्रेजी वेबसाइट (OpIndia.com) पर प्रकाशित के भट्टाचार्जी के लेख का अंग्रेजी अनुवाद है)

दौर-ए-खास और दौर-अल-राद: पकड़े गए जैश के आतंकियों ने खोली बालाकोट की सच्चाई

साल 2014-17 के बीच पकड़े गए जैश-ए-मुहम्मद के आतंकियों में से 4 आतंकियों को प्रशिक्षण बालाकोट के उसी कैंप में मिला है जहाँ पर वायु सेना द्वारा हाल ही में हमला किया गया। इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट में बताया गया है कि जैश के यह चारों आतंकी पाकिस्तान से हैं, जिन्होंने पूछताछ में बालाकोट में प्रशिक्षित हुए आतंकियों से जुड़ी कुछ खास बातों का खुलासा किया है।

अधिकारियों के अनुसार, वकास मंसूर खैबर पख्तूनख्वा का निवासी है। उसे 2014-15 में सुरक्षा बलों द्वारा गिरफ्तार किया गया था। पूछताछ के दौरान मंसूर ने बताया कि उसे 100 युवकों के साथ प्रशिक्षित किया गया था। साल 2007 से मंसूर घाटी में सक्रिय था, यहाँ उसके साथ के 40 और आतंकी थे जबकि 60 को अफगान में युद्ध छेड़ने के लिए भेज दिया गया था।

अधिकारियों के अनुसार घाटी में हुए दो बड़े हमलों में मंसूर का नाम आया था। साल 2009 के मार्च में वह आतंकियों के उस समूह का हिस्सा था, जिसने कुपवाड़ा के पास लोलब में सेना के जवानों पर हमला किया था। इसके अलावा वह जून 2009 में एक ऐसे हमले में भी शामिल था जिसमें छह जवानों की मौत की हुई थी।

इन हमलों के बाद वो 2010 में पाकिस्तान लौट गया था और लश्कर से जुड़ गया और लश्कर-ए-तैयबा के केन्द्र में ट्रेनिंग लेने लगा था।

अधिकारियों की मानें तो जैश के आतंकियों से पूछताछ में पता चला कि प्रशिक्षण देने के दौरान उनके लिए कई तरह के प्रशिक्षण कोर्स भी चलाए जाते हैं। तीन माह के अग्रिम युद्ध कोर्स को दौर-ए-खास कहा जाता है और अग्रवर्ती हथियारों के प्रशिक्षण कोर्स को दौर-अल-राद कहा जाता है।

साल 2016 में पकड़े गए जैश आतंकी जिसकी पहचान अब्दुल रहमान मुगल अलियास राजा के नाम से की गई, वह बताता है कि कश्मीर में भेजे हर आतंकी का एक कोड नाम होता है। अधिकारियों के अनुसार मुगल का नाम रोमियो था और उसका काम कश्मीर में प्रशिक्षण केन्द्रों को सेट करना था।

मुगल से हुई पूछताछ में उसने बताया कि फिदायिन बनने से पहले किसी को भी अपनी इच्छा जाहिर करनी होती है। साथ ही बालाकोट स्थित कैंप के कमांडर को लिखित रूप में भी देना होता है कि वह ऐसा करने के लिए इच्छुक है।

अधिकारियों के अनुसार, 2014 में कश्मीर में गिरफ्तार किए गए एक अन्य जैश आतंकवादी नासिर मोहम्मद अवान ने पूछताछ के दौरान कहा था कि बालाकोट शिविर में 80 से अधिक प्रशिक्षक थे। अधिकारियों ने बताया कि नासिर 2003 में रेडियो कश्मीर पर हमले में शामिल था, जिसमें सीआरपीएफ के एक जवान और बीएसएफ के एक जवान वीरगति को प्राप्त हो गए थे।

इन सबके अलावा अधिकारियों ने पाकिस्तान के सियालकोट के निवासी मोहम्मद साजिद गुज्जर से पूछताछ का भी हवाला दिया, जिसे 2015 में गिरफ्तार किया गया था। अधिकारियों ने कहा कि गुर्जर 3 नवंबर 2015 को तंगधार के एक आर्मी कैंप पर हुए हमले में शामिल था, जिसमें उसके साथ मौजूद तीन आतंकवादी मारे गए थे, जबकि वह भागने में सफल रहा था।

अधिकारियों ने कहा कि हमले के दौरान मारे गए तीनों की पहचान गुर्जर ने बाद में रिजवान, हुसैन पठान और मुइवा के रूप में की थी। अधिकारियों की मानें तो वे सभी पाकिस्तानी नागरिक थे, जिन्होंने बालाकोट कैंप में गुर्जर के साथ प्रशिक्षण लिया था और एक साथ घाटी में घुसपैठ की थी।

29 सेकंड में ख़ून से लथपथ और दुश्मन से घिरे अभिनन्दन ने Pak सेना को यूँ किया ट्रोल!

विंग कमांडर अभिनन्दन की वतन वापसी पर देशवासियों ने ख़ूब जश्न मनाया। पाकिस्तान की ज़मीन पर भी वह इसी तरह कूल बने रहे, जैसे एक ओवर में 20 रन की ज़रूरत हो और भारत की तरफ से महेंद्र सिंह धोनी डटे हुए हों। हालाँकि, क्रिकेट और सैन्य कार्रवाई में काफ़ी अंतर है लेकिन आम जनों के एक बड़े वर्ग को सरल शब्दों में समझाने के लिए यह उदाहरण बुरा नहीं। नीचे ये वीडियो देखें और जानें कि दुश्मन से घिरे, ख़ून से लथपथ और आँखों पर पट्टी बंधी होने के बावजूद भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर अभिनन्दन वर्तमान ने पाकिस्तानी सेना को कैसे ट्रोल किया।

अभिनन्दन से पाकिस्तानी सेना ने पूछा की वह पाक सेना के बारे में क्या सोचते हैं? जवाब में उन्हें उम्मीद रही होगी कि वह डर के कारण पाकिस्तानी सेना की तारीफ़ों के पुल बाँधेंगे लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी। अभिनन्दन ने उसी तरह का जवाब दिया जो सैन्य अनुशासन का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि वह पाकिस्तानी सेना की इज्ज़त करते हैं क्योंकि पाकिस्तानी सेना भी किसी अन्य देश की सेना जैसी ही है। लेकिन अंत में उन्होंने पाक सेना को ट्रोल करते हुए कहा- “इसीलिए मैंने आपसे सबसे पहला प्रश्न यही किया था कि क्या आप रेगुलर पाक सेना से हो?”

ऐसे मुश्किल क्षणों में भी ऐसी धीरता और गंभीरता के साथ-साथ मज़ाकिया अंदाज में दुश्मन को ट्रोल करने वाले जांबाज अभिनन्दन ही हो सकते थे। सोशल मीडिया पर लोगों ने उनके इस अंदाज को ख़ूब सराहा।

‘…तो एक से अधिक बीवियाँ हराम है’ – शीर्ष इस्लामी संस्थान प्रमुख

इस्लाम में केवल तीन तलाक ही ऐसी कुरीति नहीं है जिसके चलते मुस्लिम महिलाएँ डर-डर के अपना जीवन गुजारती हैं बल्कि बहु-विवाह भी एक ऐसा मसला है, जिसके कारण न जाने कितनी औरतों की जिंदगियाँ तबाह होती हैं।

पिछले कुछ सालों में तीन तलाक पर मुद्दा गर्माने के कारण हमारे सामने उसके पक्ष-विपक्ष उभर कर आए हैं। लेकिन बहु-विवाह पर बात खुलकर अब भी नहीं होती। हालाँकि देखा जाए तो यह दोनों समस्याएँ एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं।

ऐसे में मिस्र में शीर्ष इस्लामी संस्थान अल-अज़हर के प्रमुख और सुन्नी इस्लाम के सबसे बड़े इमाम शेख अहमद अल-तैयब ने इस मुद्दे पर बात करते हुए कहा कि बहुविवाह के लिए अक्सर कुरान का हवाला दिया जाता है लेकिन वास्तविकता में कुरान को सही तरीके से न समझने के कारण ऐसा होता है।

इमाम अल-तैयब द्वारा यह बात साप्ताहिक टीवी कार्यक्रम और ट्विटर के जरिए कही गई है। लेकिन जब उनकी बात पर विवाद बढ़ने लगा तो अल-अजहर ने इस पर सफाई देते हुए कहा कि इमाम ने बहु-विवाह पर प्रतिबंध लगाने की बात नहीं कही है। इसके बाद इमाम अहमद अल-तैयब ने दोहराया भी कि एक स्त्री से विवाह का नियम था और बहु-विवाह अपवाद है।

बहुविवाह का समर्थन कर रहे लोगों को गलत ठहराते हुए इमाम शेख़ अल-तैयब ने कहा कि जो यह कहते हैं कि विवाह, बहु-विवाह ही होना चाहिए वो सब गलत हैं।

उन्होंने कुरान का हवाला देकर कहा कि जब किसी समुदाय विशेष के आदमी के लिए बहु-विवाह की बात कही जाती है तो उसमें निष्पक्षता की शर्तों का भी पालन होना चाहिए, और अगर ऐसा नहीं होता है, तो एक से अधिक बीवियाँ हराम हैं।

महिलाओं के पक्ष में बात करते हुए उन्होंने कहा कि जिस तरह से महिलाओं के मुद्दों को निपटाया जाता है, उसमें बड़े स्तर पर सुधार करने की आवश्यकता है। अपने ट्वीटर पर लिखते हुए उन्होंने कहा, “महिलाएँ समाज के आधे हिस्से की नुमाइंदगी करती हैं, यदि हम उनका ध्यान नहीं रखेंगे तो यह एक पाँव पर चलने जैसा होगा।”

वो ‘अच्छे लोग’ जिहादी आतंक के साए में नेरूदा और फ़ैज़ पढ़कर सो जाते हैं

सीमा पर तनाव का माहौल है। बॉर्डर पर पाकिस्तान की तरफ से बमबारी जारी है। दो-तीन दिनों पहले उस बमबारी में नौ महीने के एक बच्चे की मौत हो गई और उसी दिन श्रीनगर में कुछ आतंकवादियों ने अंधाधुंध गोली चलाकर पाँच जवानों और कुछ मासूमों को मार दिया। हर साल इसी तरह कई मासूम लोग आतंकवादियों द्वारा मारे जाते हैं। कुछ लोग ये मानते हैं कि इसे युद्ध से सुलझाया जा सकता है तो कुछ लोग ये मानते हैं कि हिंसा कभी भी किसी समस्या का समाधान नहीं होती। और कुछ लोग ये भी मानते हैं कि Nationalism, hyper-nationalism और jingoism के बहाने युद्ध की बातें करने वाले सारे लोग घिनौने, क्रूर और warmonger होते हैं।

हर मसले का बहुत सारा परिप्रेक्ष्य यानी कि perspective होता है। अक्सर हम ये मान लेते हैं कि हमारा परिप्रेक्ष्य ही सही है और दूसरों का ग़लत। पुलवामा हमले के बाद भी कई तरह के विपरीत विचार सामने आए हैं, लेकिन आज मैं पाकिस्तान को सबक सिखाने की बातें करने वाले लोगों के बारे में बोलना नहीं चाहता। आज मैं उन लोगों के बारे में बातें करना चाहता हूँ, जो ये मानते हैं कि उरी पर फिल्म बनाकर या पुलवामा हमले का बदला लेकर हमने अच्छा नहीं किया। आज मैं कुछ अच्छे लोगों के बारे में बातें करना चाहता हूँ।

अच्छे लोग हिंसा या हिंसा के किसी भी संवाद से दूर रहते हैं। अच्छे लोग आतंकवादी हमलों पर दुःख व्यक्त करते हैं, गाँधी के सन्देश लिखते हैं, फैज़ की नज़्म पढ़ते हैं, चैनल बदल कर गुस्सा कम करते हैं और फिर सो जाते हैं। अच्छे लोग मोदी की हँसी में भी युद्ध के विषैले गीत सुन लेते हैं और अच्छे लोग जैश-ए-मोहम्मद को पनाह देने वाले इमरान खान में statesmanship देख लेते हैं। अच्छे लोगों में अच्छा दिखने की इतनी होड़ लगी रहती है कि हिन्दुस्तान के सौ लोगों का पोस्ट पढ़कर उन्हें पूरा हिन्दुस्तान खून का प्यासा दिखने लगता है और पाकिस्तान के दो पोस्ट पढ़कर पूरा पाकिस्तान उन्हें शान्ति की जन्मभूमि दिखने लगती है।

आतंकवादी कैंपों पर हमला करना कब से ग़लत हो गया?

जब अमेरिका पाकिस्तान में घुस कर लादेन को मार रहा था, तब तो उसे युद्ध नहीं बोला गया था। उस दिन तो हमारे अच्छे लोग ये नहीं कह रहे थे कि ओबामा खून का प्यासा है और उसने वोट के लिए लादेन को मार दिया। उस दिन किसी ने ये नहीं कहा था कि पाकिस्तान की अवाम शांति चाहती है, लेकिन अमेरिकी लोग घिनौने हैं। मोदी ने बस ये कहा है कि पुलवामा का बदला लिया जाएगा और इतने में ही वो सबसे बुरा आदमी हो गया।

अच्छे लोगों का मानना है कि भारत को आतंकवादी कैम्पों पर हमला करने के बाद जश्न नहीं मनाना चाहिए था, क्योंकि इससे शान्ति की प्रक्रिया भंग होती है। अच्छे लोग ‘अच्छा सच’ सुनना चाहते हैं। उन्हें ‘बुरा सच’ उचित नहीं लगता। हर रोज़ जब हम शांति की अच्छी बातें लिखकर सो रहे होते हैं, तो सीमा पर आतंकवादी हमलों में कोई न कोई जवान शहीद होता रहता है। हर रोज़ जब हम फैज़ और नेरुदा की कविताएँ पढ़कर ख़ुद को अच्छा इंसान मानते रहते हैं तो उस समय कुछ निर्दोष लोग हमेशा के लिए शांत कर दिए जाते हैं। शान्ति और कविताएँ उन्हें भी पसंद होती हैं, लेकिन जब उनके सामने आतंकवादी बन्दूक लेकर खड़ा रहता है, तब उनके पास बड़ी-बड़ी philosophical बातें करने का convenience नहीं होता।

अच्छे लोग कहते हैं कि केवल प्रेम और संवाद से हिंसा रोकी जा सकती है। अच्छे लोग आपको ये नहीं सुनाना चाहते हैं कि कश्मीर को per-capita के मुताबिक़ सबसे ज्यादा फण्ड मिलता है। इसमें education और medical facilities पर बहुत ध्यान दिया जाता है। अच्छे लोग ये नहीं सुनना चाहते हैं कि जब कोई जवान आतंकवादी को घेरने जाता है तो उस पर पत्थर बरसाए जाते हैं। अच्छे लोग अच्छी बातें लिख कर समस्या हल कर लेते हैं।

जी बिलकुल, युद्ध से गरीबी और तबाही फैलती है। उससे आम आदमी परेशान होता है। आम आदमी के पास पहले से कम परेशानियाँ नहीं हैं, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं है कि आतंकवादी हमलों में सेना को शांति से मर जाना चाहिए, ताकि आम आदमी शांति की कविता लिख पाए। एक गंभीर समस्या को बस इसलिए तो नहीं भूल जाना चाहिए क्योंकि कुछ गंभीर समस्याएँ और भी हैं।

अच्छे लोग ये तो बोल देते हैं कि सेना की इतनी फ़िक्र है तो सीमा पर लड़ने क्यों नहीं चले जाते, लेकिन कभी ये नहीं बोलते कि मैं सीमा पर शांति का सन्देश लेकर जाऊँगा।

प्रश्न पूछना अच्छा है। आप पूछते रहिए, लेकिन जवाब यदि कड़वा हो तो कान बंद मत कीजिएगा।

असम के कॉन्स्टेबल रफ़ीकुल इस्लाम ख़ान को Pro-Pak पोस्ट शेयर करना पड़ा भारी, हुआ सस्पेंड

असम के एक कॉन्स्टेबल को नौकरी से सस्पेंड कर दिया गया है। सस्पेंड करने के साथ ही उसकी गिरफ़्तारी भी हो गई है। पुलिस सूत्रों के अनुसार, उक्त कॉन्स्टेबल ने सोशल मीडिया पर पाकिस्तान समर्थित पोस्ट शेयर किया था, जिसमें पाक के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की तारीफ़ों के पुल बाँधे गए थे। इतना ही नहीं, इस पोस्ट में इस्लाम धर्म को बढ़ावा देने वाली बातें भी कही गई थी। कॉन्स्टेबल रफ़ीकुल इस्लाम ख़ान मोरीगाँव ज़िले के बरछाला पुलिस आउटपोस्ट में तैनात था।

पुलिस विभाग ने रफ़ीकुल की इस हरकत को अनुशासनहीनता बताया। एसपी स्वप्नानील डेका ने इस बारे में विशेष जानकारी देते हुए बताया:

“मैंने उसके फेसबुक प्रोफाइल पर किसी और के पोस्ट को शेयर करने के लिए उसके ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई की है। इस पोस्ट में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की प्रशंसा की गई थी और कहा गया था कि मुस्लिम बहुत उदार (Generous) हैं। कोई भी पुलिस कर्मी किसी धर्म विशेष का पक्ष नहीं ले सकता है।”

निलंबित कॉन्स्टेबल ख़ान के ख़िलाफ़ जाँच कमिटी बिठाई जाएगी, जिसके बाद इस संबंध में आगे के निर्णय लिए जाएँगे। इसके साथ ही पुलिस को उस व्यक्ति की भी तलाश है, जिसने ये पोस्ट लिखा था। पुलिस इसका पता लगाने में जुटी हुई है। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक, जब उसने रफ़ीकुल से संपर्क साधना चाहा तो उस से कोई बात नहीं हो पाई।

बता दें कि पुलवामा में हुए आतंकी हमले और उसके बाद भारत की जवाबी कार्रवाई में आतंकियों के मारे जाने के बाद ऐसे कई लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है। इन लोगों ने बलिदानी जवानों का मज़ाक बनाने से लेकर आतंकियों की पैरवी तक की थी।

अमेठी राइफल फैक्ट्री: राहुल गाँधी का महाझूठ, देशी कट्टे और AK-47 के बीच अंतर भूले

राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उनसे क्रेडिट छीनने का आरोप लगाया है। मामला रूस के सहयोग से अमेठी में स्थापित कलाश्निकोव राइफल फैक्ट्री से जुड़ा है। यहाँ अत्याधुनिक एक-47 राइफल्स का निर्माण किया जाएगा। कलाश्निकोव 203 दुनिया की आधुनिकतम एके-47 राइफल्स में से एक है। पीएम मोदी पर झूठ बोलने का आरोप लगाने वाले राहुल गाँधी इस दौरान स्वयं झूठ बोल गए। मामले को समझने से पहले पूरे घटनाक्रम पर एक नज़र डाल कर इसकी तह तक जाना ज़रूरी है।

रविवार (मार्च 4, 2019) को अमेठी के कौहर स्थित सम्राट मैदान में बोलते हुए प्रधानमंत्री ने कोरवा मुंशीगंज में राइफल फैक्ट्री के उद्घाटन को लेकर लोगों को जानकारी दी। इस दौरान उन्होंने कहा कि ‘मेड इन अमेठी’ AK-203 राइफलों से आतंकियों और नक्सलियों के साथ होने वाली मुठभेड़ों में हमारे सैनिकों को निश्चित रूप से बहुत बढ़त मिलने वाली है। उन्होंने इस फैक्ट्री से अमेठी के युवाओं को रोज़गार मिलने की भी बात कही।

इस दौरान प्रधानमंत्री ने राहुल गाँधी और पिछली यूपीए सरकार पर इस फैक्ट्री को लेकर निशाना साधते हुए कहा:

आपके सांसद ने जब 2007 में इसका शिलान्यास किया, तब ये कहा गया था कि साल 2010 से इसमें काम शुरू हो जाएगा लेकिन काम शुरू होना तो दूर, तीन साल में पहले की सरकार ये तय ही नहीं कर पाई कि अमेठी की ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में किस तरह के हथियार बनाए जाएँ। इतना ही नहीं, ये फैक्ट्री बनेगी कहाँ, इसके लिए ज़मीन तक उपलब्ध नहीं कराई गई। हमारे देश को आधुनिक राइफल ही नहीं, आधुनिक बुलेटप्रूफ जैकेट ही नहीं, आधुनिक तोप के लिए भी इन्हीं लोगों ने इंतजार कराया है।”

इसके बाद राहुल गाँधी ने ट्वीट कर उनके द्वारा किए गए कार्यों का श्रेय लेने का आरोप पीएम मोदी पर लगाया। राहुल ने इस फैक्ट्री के 2010 में शिलान्यास करने की बात कही। उन्होंने कहा कि कई वर्षों से वहाँ छोटे-छोटे हथियारों का उत्पादन चल रहा है। इस दौरान राहुल देशी कट्टे और अत्याधुनिक कलाश्निकोव 203 एके-47 राइफल्स के बीच का अंतर भूल गए। उन्होंने छोटे हथियारों की बात कह अपनी उस ‘बुद्धिमत्ता’ का परिचय दिया, जिसके लिए वह जाने जाते हैं। अखिलेश पी सिंह जैसे कॉन्ग्रेसी नेताओं ने भी राहुल के इस बयान को आगे बढ़ाया।

अगर संक्षिप्त में इस फैक्ट्री की टाइमलाइन खीचें तो 2005 में ही सेना ने तत्कालीन यूपीए सरकार से अत्याधुनिक राइफल्स ख़रीदने की माँग की थी। इसके बाद 2 वर्ष सरकार को यह निर्णय करने में ही लग गए कि इस फैक्ट्री को कहाँ स्थापित किया जाएगा। 2007 में अमेठी में राइफल फैक्ट्री के निर्माण का निर्णय लिया गया। इसके बाद 3 वर्ष सरकार को ये तय करने में लगा कि इस फैक्ट्री में किस प्रकार का हथियार बनेगा। कुल मिला कर देखें तो इन सबके बावजूद भी यूपीए सरकार इसको अमली जामा पहनाने में नाकाम साबित हुई। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने राहुल गाँधी के इस झूठ पर से पर्दा उठाने के लिए 2010 के एक न्यूज़ रिपोर्ट का हवाला दिया। ‘TOI’ के इस रिपोर्ट में लिखा गया है:

“अत्याधुनिक कार्बाइन निर्माण के लिए प्रस्तावित फैक्ट्री का शिलान्यास कर दिया गया लेकिन यह नहीं तय किया गया कि यहाँ कौन सी नयी तकनीक की राइफल्स बनेंगी। अनुचित साइट का चयन और अपर्याप्त मॉनिटरिंग की वजह से ये परियोजना काफ़ी धीमी गति से आगे बढ़ी। कैग रिपोर्ट के अनुसार, इस परियोजना में बुरी तरह से देरी होने की संभावना है, जिससे सेना को तत्काल आवश्यक कार्बाइन की आपूर्ति नहीं हो पाएगी।”

राहुल गाँधी अब कैग सहित सभी संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करते रहते हैं लेकिन उन्हीं की सरकार के दौरान कैग ने जो बातें कहीं, उन्हें वह कैसे झूठलाएँगे? कैग ने साफ़-साफ़ कहा है कि एक नहीं बल्कि कई स्तरों पर हुई देरी के कारण ये फैक्ट्री अधर में लटकी रही। इसके लिए 60 एकड़ भूमि की ज़रूरत थी लेकिन इसके उलट सिर्फ़ 34 एकड़ ज़मीन का ही इंतजाम हो सका। ये मसला वर्षों तक उत्तर प्रदेश सरकार के साथ पेंडिंग रहा। 2006 में एक ‘साइट सिलेक्शन कमिटी’ की गठन के बावजूद इस तरह की देरी पिछली केंद्र सरकार के ढुलमुल रवैये को प्रदर्शित करता है।

अमेठी में राइफल फैक्ट्री पर भाजपा का पोस्टर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यही कहा कि उन्होंने ‘राइफल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट’ का उद्घाटन किया है लेकिन राहुल इन तकनीकी चीजों को समझे बिना आक्षेप लगाने में महारत रखते हैं। राहुल को आयुध फैक्ट्री और राइफल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट के बीच का अंतर ही नहीं पता। राहुल को यह भी नहीं पता कि शिलान्यास और उद्घाटन में क्या फ़र्क़ होता है। उन्होंने ये जानने की भी कोशिश नहीं की कि पिछली सरकारों द्वारा शिलान्यास की गई कई परियोजनाएँ वर्षों तक धूल फाँकती रही, जिनमें से कई को वर्तमान सरकार ने पूरा कराया।

कलाश्निकोव राइफल उत्पादन को लेकर भी मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद कार्य शुरू हुआ। रूस के साथ इस बाबत करार किया गया, जिससे यहाँ साढ़े सात लाख अत्याधुनिक राइफल्स का निर्माण होगा, देशी कट्टे और गुल्ली-डंडे का नहीं। राहुल गाँधी ने जिस फैक्ट्री का शिलान्यास किया था, उसके लिए ₹400 करोड़ के क़रीब का बजट प्रस्तावित था जबकि नरेंद्र मोदी द्वारा की गई ताज़ा घोषणा में ₹12,000 करोड़ की लागत आएगी ‘मेड इन फलाना’ से लेकर ‘मेड इन ढिंगना’ तक की बात करने वाले राहुल को ‘मेड इन अमेठी’ आख़िर पच क्यों नहीं रहा?