Monday, October 7, 2024
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भाजपाइयों, कॉन्ग्रेसियों या दलितों-ब्राह्मणों का नहीं… यह गुस्सा राष्ट्रवादियों का है

पुलवामा से इतर फिलहाल कुछ नामचीन पत्रकारों के बीच स्क्रीनशॉट शेयर करने की प्रतिस्पर्धा आरम्भ हो गई है। बाहर से ही सही किन्तु कुछ छुटभैये पत्रकार भी इस प्रतिस्पर्धा में भाग लेते हुए झूठी खबरें फैला कर खुद को नामचीन बनाने की कोशिश में लग गए हैं।

सर्वविदित है कि सोशल मीडिया पर हैं तो आप भले नामचीन न हों, आपको आलोचना और अपशब्द सहने पड़ते ही हैं। इतिहास और वर्तमान गवाह है कि यदि मेरे-आपके जैसा कोई अदना आदमी दिलीप मंडल या रविश कुमार सरीखे किसी नामचीन के पोस्ट पर सवाल करता है तो भी गालियाँ मिलती हैं। सुअर, कुत्ता आदि भी कहा जाता है और देख लेने की धमकी भी दी जाती है। चूँकि हम अदने से आदमी हैं सो न तो हम इसका स्क्रीनशॉट लगाते हैं और न ही रोना रोते हैं। सच मगर यह है कि रक्त का दबाव हमारा भी बढ़ता है, दुःख हमें भी होता है। लेकिन हमारे स्क्रीनशॉट को न तो कोई तवज्जो मिलती है और न ही हमारे अपमान से मानवता शर्मसार होती है।

निजी अनुभव है कि एक नेताजी से सवाल करने पर मुझे पब्लिकली, इनबॉक्स में और फोन पर खूब गालियाँ दी गईं। दुःखी होकर मैंने आप जैसे कई नामचीनों के सामने गुहार लगाई। नतीजा सिफ़र रहा। माना कि आपकी तरह हमारे जानने वाले न तो कोई पुलिस ऑफिसर थे और न ही आका मगर साहब क्या हमारा खून, खून नहीं…?

इन सबमें सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि जिस तरह से आप इस सबके पीछे सीधे-सीधे मोदी का हाथ घोषित कर देते हैं, वैसे ही आपके पोस्ट पर गाली खाने पर भी लोग आपको ही दोषी क्यों न मानें? यदि आपको यह लगता है कि आपको दी जाने वाली गाली खुद मोदी लिखवाते हैं तो फिर यह कहाँ से साबित होता है कि आप खुद नहीं लिखवाते ये गालियाँ जो आपके भक्त दूसरों को देते हैं?

देखिए, हम में से कोई भी भगवान नहीं है। कोई आदमी न तो पूर्ण है और न ही शत-प्रतिशत सही। ऐसे कई मौकों पर हम गलत भी होते हैं। ऐसे में हमें या तो गाली स्वीकार लेनी चाहिए या फिर अपनी गलती। हम अदना लोग तो ऐसा करते भी हैं मगर ये नामचीन लोग? कोई इनसे पूछ दे कि भई आप अफजल और कन्हैया पर तो टीवी स्क्रीन काला कर देते हैं मगर पुलवामा के दर्द पर आपको तकलीफ क्यों नहीं होता भला, तो क्या गलत है भाई? क्या पूछने का अधिकार सिर्फ आपको है? जनाब! आपको कोई आतंकी बनता इसलिए दिख जाता है क्योंकि उसको सेना ने पत्थर मारते पकड़ लिया और मारा भी था। लेकिन आए दिन जान बचाने वाली सेना के ही ख़िलाफ़ आतंकियों को प्रश्रय देने वाले पत्थरबाज गलत नहीं दिखते। आतंकियों को प्रोटेक्शन देते और सेना पर पत्थर से वार करते लोग आपको शान्ति-दूत दिखते हैं! आप ऐसा कौन सा चश्मा लगाते हैं कि आपको सेना अत्याचारी और पत्थरबाज भोले-भाले दिखते हैं? कभी सोचा है कि जैसे आपको सेना या पुलिस के टॉर्चर से कुछ लोग आतंकी बनते दिखते हैं, वैसे ही ट्विटर या फेसबुक पर आपके व आपके समर्थकों द्वारा टॉर्चर किए जाने पर भी लोगों ने हथियार उठा लिए तो क्या होगा?

बात मात्र इतनी सी है महोदय कि न तो इस तरह की वीभत्स आलोचना हरदम सही है और न ही आपके विचार। मगर आपको तो टीआरपी के लिए ऐसे ही मौकों की तलाश होती है… आपको बस ये कहने का बहाना मात्र चाहिए होता है कि देखो मोदी ने कितना इनटॉलेरेंस बढ़ा दिया।

वक़्त की मांग है। आप ध्यान से सोच लें। पब्लिक को जब आप देशद्रोही लगेंगे तो वो आपकी नामचीनता या मेरे अदनेपन को भूलकर सबको खदेड़ेगी ही… आप भले ही इस भीड़ को मोदी गैंग और फ़र्ज़ी राष्ट्रवादी कहें, सच ये है कि फिलहाल इस भीड़ में कोई भाजपाई, कॉन्ग्रेसी या फिर ब्राह्मण-दलित नहीं है। यदि आपको यह समझ नहीं आ रहा तो इंशा अल्लाह आपको प्रत्यक्ष रूप से कश्मीर में आजादी का नारा बुलंद करना चाहिए।

नोट : मैं अभद्र, अश्लील जबावों का स्क्रीनशॉट नहीं लगाता, आपको देखना हो तो रविश कुमार जी के किसी भी पोस्ट पर उनके भक्तों की पुष्प वर्षा देख सकते हैं।

सरेंडर करो या गोली खाओ: कश्मीर के ‘भटके’ नौजवानों के लिए सेना की फाइनल वॉर्निंग

पुलवामा आतंकी हमले और जैश कमांडर गाजी के ख़ात्मे के बाद मंगलवार (फरवरी 19, 2019) को सेना, सीआरपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने एक साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इसमें पुलवामा आतंकी हमले और उसके बाद हुए मुठभेड़ की विस्तृत जानकारी दी गई। इसके अलावा प्रेस कॉन्फ्रेंस में कश्मीर के ‘भटके’ नौजवानों (पत्थरबाज या आतंकी बन गए युवाओं) के लिए भी सख़्त शब्दों के साथ चेतावनी दी गई।

भारतीय सेना के चिनार कॉर्प्स के लेफ्टिनेंट जनरल केजेएस ढिलन्न ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि आतंकवाद के सफाये को लेकर हम कृत-संकल्प हैं। इसके लिए बाहर से जो भी कश्मीर में आतंक मचाने आएगा, वो वापस ज़िन्दा नहीं जाएगा, इसकी गारंटी है।

लेफ्टिनेंट जनरल केजेएस ढिलन्न ने कश्मीर की माताओं से अपील करते हुए कहा कि वे अपने बच्चों को समझाएँ और गलत रास्ते पर चले गए लड़कों को सरेंडर करने का आग्रह करें। लेकिन अगले ही वाक्य में उनका यह आग्रह स्पष्ट संकेत में बदल गया जब उन्होंने कहा, “सरेंडर करने वालों के लिए सेना कई तरह के अच्छे कार्यक्रम चला रही है। लेकिन आतंकवाद में शामिल होने वालों पर कोई रहमदिली नहीं दिखाई जाएगी।”

प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद कश्मीर पुलिस के आईजी एसपी पाणि ने बताया कि कश्मीरी युवाओं के आतंकी बनने की घटना पिछले कुछ महीनों में कम हुई है। हालाँकि उन्होंने भी सेना की तरह ही स्पष्ट संदेश दिया कि घाटी में जो भी घुसपैठ करेगा वह जिन्दा नहीं बचेगा।

सीआरपीएफ के आईजी जुल्फिकार हसन भी इस प्रेस कॉन्फ्रेस में मौजूद थे। वीरगति को प्राप्त हुए जवानों पर उन्होंने कहा, “जिन परिवार के बेटों ने बलिदान दिया है, वे खुद को अकेले न समझें। आपके लिए हर वक्त हम खड़े हैं।” जुल्फिकार हसन ने देश के विभिन्न हिस्सों में पढ़ने वाले कश्मीरी बच्चों और उनके परिवारों पर भी अपनी बात रखी और CRPF के द्वारा चलाए जा रहे हेल्पलाइन नंबर का भी जिक्र किया।

साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुलवामा अटैक और उसके बाद हुए मुठभेड़ में वीरगति को प्राप्त हुए सभी जवानों को नमन किया गया। इसमें जानकारी दी गई कि मुठभेड़ में 2 नहीं बल्कि 3 आतंकियों को मार गिराया गया था। 3 में 2 पाकिस्तान के थे जबकि एक स्थानीय आतंकी था।

48 घंटे के भीतर जिला छोड़ दें Pak नागरिक, होटलों में भी नहीं मिलेगी पनाह: DM

पुलवामा हमले के बाद भारत में जगह-जगह पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कड़े कदम उठाए जा रहे हैं। इसी दिशा में बीकानेर के डीएम ने पाकिस्तानियों के लिए एक आदेश जारी किया है, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान नागरिकों को 48 घंटे के भीतर जिला छोड़ने का अल्टीमेटम दिया है।

सोमवार (फरवरी 18, 2019) को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले के पिंगलिना क्षेत्र में सुरक्षाबलों और आतंकियों के साथ मुठभेड़ हुई। इस मुठभेड़ में मेजर समेत देश के 4 जवान वीरगति को प्राप्त हुए। एक नागरिक की भी मौत इस मुठभेड़ में हुई है। वीरगति को प्राप्त हुए जवानों में एक एस राम भी थे। वे राजस्थान से थे।

एक तरफ जहाँ सोमवार को एस राम का पार्थिव शरीर देर रात राजस्थान पहुँचा, वहीं बीकानेर के डीएम (जिलाधिकारी) कुमार पाल गौतम ने सीआरपीसी धारा 144 के तहत आदेशों की एक लिस्ट जारी की। इस लिस्ट में पाकिस्तानी नागरिकों को आदेश दिया गया कि वह 48 घंटे के भीतर जिला छोड़ दें।

इतना ही नहीं डीएम ने बीकानेर की सीमाक्षेत्र में बने सभी होटलों में पाकिस्तानी नागरिकों को जगह देने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। इस आदेश को पूरे जिले में 2 महीने के लिए लागू किया गया है।

बता दें कि पुलवामा अटैक के बाद जिले के पिंगलिना क्षेत्र में हुई मुठभेड़ में सेना, राष्ट्रीय राइफल्स और पैरा फोर्सेज की टीम ने 3 आतंकियों को मार गिराया। इन आतंकियों में जैश-ए-मोहम्मद के दो टॉप कमांडर और पुलवामा का मास्टरमाइंड कामरान गाजी भी शामिल था।

कुलभूषण जाधव केस: भारत ने ICJ में पाक की उधेड़ी बखिया; पाकिस्तानी जज को आया हार्ट अटैक

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में चल रहे कुलभूषण जाधव केस में जहाँ भारत ने काफ़ी मजबूती से अपना पक्ष रखा, वहीं पाकिस्तान अलग-थलग नज़र आया। भारत की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने एक-एक कर पाकिस्तान के सारे झूठ बेनक़ाब किए और अपनी उम्दा दलीलों से भारत का पक्ष मजबूत किया। इस दौरान भारतीय विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव दीपक मित्तल ने पाकिस्तानी अटॉर्नी जनरल से हाथ मिलाने से मना कर दिया। मित्तल ने मई 2017 में सुनवाई के दौरान भी पाकिस्तान के वकील से हाथ मिलाने से मना कर दिया था।

सुनवाई के दौरान भारत ने पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया। एक निर्दोष की जान को ख़तरे में बताते हुए भारत ने इस पूरे मामले को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। चार दिन तक चलने वाली इस सुनवाई के पहले दिन सोमवार (फरवरी 18, 2019) को भारत ने काउंसलर एक्सेस का मुद्दा उठाते हुए कहा कि पाकिस्तान वियना समझौते का उल्लंघन कर रहा है। हरीश साल्वे ने अदालत में कहा:

“भारतीय नागरिक जाधव को लेकर पाकिस्तान की कहानी पूरी तरह कल्पना पर आधारित है, जिसमें सच्चाई नहीं। काउंसलर एक्सेस के बिना जाधव को लगातार हिरासत में रखा गया जिसे ग़ैर क़ानूनी घोषित किया जाना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं कि पाकिस्तान जाधव मामले को एक प्रचार उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।”

साल्वे ने कहा कि पाकिस्तान अब तक इस मामले में कोई विश्वसनीय सबूत नहीं दे पाया है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान इस मामले को प्रोपोगैंडा के लिए कर रहा है। उन्होंने कोर्ट से जाधव को राहत देने की अपील की। पाकिस्तान के अमानवीय रवैये को दुनिया के सामने लाते हुए हरीश साल्वे ने आगे कहा:

“बिना देरी पाकिस्तान को जाधव को काउंसलर एक्सेस देने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए। काउंसलर एक्सेस के लिए भारत ने 13 बार रिमाइंडर भेजा, लेकिन पाकिस्तान ने इस पर अब तक ध्यान नहीं दिया। मार्च 2016 में जाधव को पकड़ा गया, जबकि केस क़रीब एक महीने बाद दर्ज किया गया। इस दौरान भारत ने कई बार काउंसलर एक्सेस की मांग की, जिसे ठुकरा दिया गया।”

पाकिस्तान के एड-हॉक जज तसद्दुक हुसैन गिलानी को दिल का दौरा पड़ा है, जिसके बाद उन्हें इस्लामाबाद के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। 69 वर्षीय गिलानी की हालत अभी स्थिर है। आपको बता दें कि आईसीजे के अनुच्छेद 31 के तहत व्यवस्था की गई है कि अगर किसी केस में पैरवी कर रहे देश की राष्ट्रीयता का कोई जज कोर्ट की बेंच में नहीं है तो वह किसी व्यक्ति का चुनाव एड-हॅक जज के तौर पर कर सकता है।

कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान के सैनिकों ने मार्च 2016 में बलूचिस्तान से पकड़ने का दावा किया था। जाधव पर अफ़ग़ानिस्तान में जासूसी का झूठा आरोप मढ़ कर पाकिस्तानी मिलिट्री कोर्ट ने अप्रैल 2017 में उन्हें मौत की सज़ा सुनाई थी। भारत ने इस सज़ा को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायलय का दरवाजा खटखटाया था। इतना ही नहीं, पाकिस्तान ने जाधव के परिवार को भी प्रताड़ित किया था। जब जाधव के परिजन उनसे मिलने गए थे, तब पाकिस्तान ने उनसे दुर्व्यवहार किया था।

पुलवामा जाँच: Pak का था हाथ, कोयले में छिपा कर लाया गया था RDX

पुलवामा हमले को लेकर चल रही शुरुआती जाँच में पाकिस्तान का हाथ सामने आया है। वैसे यह कोई आश्चर्यजनक या चौंकाने वाली बात नहीं है क्योंकि सभी को पता था कि इस त्रासद हमले के पीछे पाकिस्तान ही है। लेकिन, अब जाँच भी इसी ओर इंगित कर रहे हैं। 40 भारतीय जवानों की जान लेने वाले इस हमले में हाई इंटेंसिटी वाले ‘मिलिट्री ग्रेड एक्सप्लोसिव (RDX)’ का प्रयोग किया गया था। इस विस्फोटक को पाकिस्तानी सेना द्वारा आतंकियों को सप्लाई किया जाता है।

फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स के इस ख़ुलासे के बाद पाकिस्तान की सच्चाई एक बार फिर से बेनक़ाब हो गई है। इसके अलावा यह भी पता चला है कि विस्फोटक रखने के लिए जिस गाड़ी का इस्तेमाल किया गया था, वह मारुती ईको वैन थी। घटनास्थल पर पहुँच कर प्रथम दृष्टया जाँच के बाद विशेषज्ञों ने बताया कि आरडीएक्स एक स्थिर विस्फोटक है लेकिन इसे घटना से महीनों पहले लाया गया था। साथ ही उन्होंने यह भी अनुमान लगाया कि इन विस्फोटकों को घटनास्थल से 5-7 किमी की दूरी पर तैयार किया गया था।

हालाँकि, अभी आधिकारिक तौर पर फॉरेंसिक रिपोर्ट नहीं आई है। रिपोर्ट आने के बाद ही इस हमले से जुड़े अन्य राज़ खुलेंगे। बारिश की वजह से कई साक्ष्य मिटने के कारण विशेषज्ञों को जाँच में ख़ासी परेशानी हुई। एक सीनियर विशेषज्ञ के अनुसार, इस हमले में 50-70 किलोग्राम आरडीएक्स का प्रयोग किया गया था ताकि 300 किलोग्राम की चीज को पूरी तरह नष्ट किया जा सके। इसे तैयार करने के लिए पाकिस्तान से बम बनाने वाले भारत आए थे।

जम्मू-कश्मीर पुलिस, एनआईए व अन्य एजेंसियों द्वारा की जा रही जाँच से यह भी पता चला है कि आरडीएक्स को अंगीठी के कोयले में छिपा कर कई चरणों में लाया गया था। आरडीएक्स में राख मिला कर इसे कोयले के साथ कवर बना कर रखा जाता था ताकि किसी को शक न हो। आरडीएक्स के अलावा इस हमले में अमोनियम नाइट्रेट व अन्य केमिकल भी प्रयोग किए गए थे।

मीडिया में प्रकाशित ख़बरों के अनुसार, अगर पुलवामा हमले में उतनी भारी मात्रा में आरडीएक्स इस्तेमाल किया गया होता, जितने के क़यास लगाए जा रहे थे, तो सिर्फ़ एक बस ही नहीं बल्कि एक बड़े दायरे में आने वाले सारे वाहन उड़ जाते। इस स्थिति में जान-माल की और ज्यादा क्षति होती। बता दें कि दक्षिण कश्मीर में बड़े पैमाने पर अंगीठी का उपयोग होता है व स्थानीय लोग प्लास्टिक के थैलों या बोरियों में कोयला ले जाते हैं। आतंकियों ने इसी का फ़ायदा उठाया।

पत्रकारिता है या दोमुँहापन? स्टॉकिंग का दावा और दूसरों के नंबर पब्लिक कर अपनी ट्रोल आर्मी से ट्रोल करवाना

अक्सर विवादों में रहने वाली पत्रकार बरखा दत्त ने सोमवार (फ़रवरी 18, 2019) को ट्वीट किया कि उन्हें अज्ञात नंबरों से फोन आ रहे हैं, लोग उन्हें परेशान कर रहे हैं और गालियाँ दे रहे हैं। अपने ट्वीट में, उन्होंने गृह मंत्री राजनाथ सिंह से इस मामले में स्वयं हस्तक्षेप करने की माँग की, जबकि आमतौर ऐसे मामले स्थानीय पुलिस द्वारा निपटाए जाते हैं।

बरखा दत्त ने दावा किया कि उनका नंबर सार्वजनिक होने से उन्हें जो मैसेज प्राप्त हुए हैं। उसमें पुरुष जननांग की अनचाही तस्वीर भी शामिल है। अगर ऐसा है तो यह वास्तव में यौन उत्पीड़न का मामला है और इसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों पर कार्रवाई किया जाना चाहिए। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि विशेष रूप से महिलाएँ, सोशल मीडिया पर अक्सर उत्पीड़न का सामना करती हैं और जो ऐसा करते हैं उन पर कार्रवाई भी होनी चाहिए। जिससे समाज में एक उदाहरण सेट हो कि लोग इस तरह से महिलाओं को परेशान नहीं कर सकते हैं।

OpIndia.com ने, विशेष रूप से, बरखा के ट्वीट में सार्वजनिक किए गए सुनील सक्सेना और अभिषेक नाम के दो लोगों से संपर्क किया।

OpIndia.com से बात करते हुए, अभिषेक ने बरखा को गाली देने से इनकार किया और दावा किया कि उसने केवल इस बात की पुष्टि करने के लिए फोन किया था कि क्या वह नंबर जो सोशल मीडिया पर बरखा दत्त के नाम से घूम रहा था, क्या वास्तव में उनका है। अभिषेक ने बताया, “मैंने उन्हें बिल्कुल भी गाली नहीं दी। दरअसल, उनका नंबर फेसबुक पर सर्कुलेट हो रहा था, और मैं जाँचना चाहता था कि क्या सच में ये उनका नंबर है या नहीं। इसलिए, मैंने फोन किया और महसूस किया कि यह वास्तव में उन्हीं का है। मैंने नंबर का बिल्कुल भी दुरुपयोग नहीं किया। हमने शायद 15 या 20 सेकंड के लिए भी बात की।”

सुनील सक्सेना की कहानी भी ऐसी ही है, उनका भी कहना है कि बरखा का नंबर फेसबुक पर प्रसारित हो रहा था। उन्होंने भी यह दावा किया कि केवल यह पुष्टि करने के लिए उन्होंने कॉल किया था कि क्या यह बरखा दत्त का नंबर है। ऑपइंडिया डॉट कॉम से बात करते समय उनकी आवाज काँप रही थी वो डरे हुए थे। सुनील ने बताया, “उनका नंबर सोशल मीडिया पर सर्कुलेट हो रहा था, इसलिए मैंने उन्हें फोन किया। मैंने उन्हें अपना नाम और अपना पता भी बताया। और बरखा ने मेरे साथ आराम से बात भी की। फिर, अचानक से कहा, “मैं आपको रिपोर्ट कर रही हूँ, आपको मेरा नंबर कहाँ से मिला और आपने मुझे कॉल क्यों किया?” यहाँ तक कि मुझ पर स्टॉक करने का आरोप भी लगाया, लेकिन मैंने ऐसा कुछ बिल्कुल भी नहीं किया।

यह पूछे जाने पर कि क्या उनके पास कॉल की रिकॉर्डिंग है, सक्सेना ने कहा कि ‘उन्होंने ऐसा नहीं किया, यह वह गलती है, जो मैंने की क्योंकि मेरे मन ऐसा कुछ था ही नहीं।’

सक्सेना ने कहा, “फिर भी बरखा दत्त ने उनका (सुनील) नंबर पब्लिक कर दिया है। सार्वजनिक होने के बाद उन्हें खुद फोन आ रहे हैं और धमकी दी जा रही है। यहाँ तक कि लोग मुझे गाली दे रहे हैं, मुझे कई नंबरों से कॉल आ रहे हैं। यहाँ तक कि पुलिस ने भी मुझसे संपर्क किया है। इसके अलावा, दूसरों ने भी मुझे गंदी गालियाँ देते हुए, धमकी दी है। मैंने अब उन कॉल को रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया है।”

सुनील सक्सेना का कहना है कि उन्होंने बरखा दत्त से बात करते हुए कोई अपशब्द नहीं इस्तेमाल किया, कोई गाली गलौच नहीं की, वो इस कॉल कि बात को भूल भी गए थे। लेकिन थोड़ी ही देर में किसी के द्वारा बरखा दत्त का ट्वीट शेयर किया गया, जिसमें सुनील सक्सेना का नाम और मोबाइल नंबर दिया हुआ था, और उन पर स्टाकिंग करने का आरोप भी लगाया गया था।

बरखा दत्त ने जब से सुनील का नंबर पब्लिक किया, उसके बाद से ही सुनील के पास तमाम ट्रोल्स के बहुत ज़्यादा कॉल्स आने लगी, अलग-अलग जगहों से कॉल कर, इन्हे जान से मार देने की, सबक सिखाने की धमकियाँ दी जाने लगी। सुनील घबरा गए क्योंकि लोग इनके परिवार को भी नुक्सान पहुँचाने की धमकी देने लगे। इन्होने बरखा दत्त को पर्सनल मैसेज करके, ट्वीट से इनका नंबर हटाने की रिक्वेस्ट की और कहा की अगर उन्हें लगता है और इन्होने उनसे कोई बदतमीजी की है तो बेशक पुलिस से शिकायत करें, लेकिन नंबर हटा लें। लेकिन बरखा दत्त ने अभी तक वो ट्वीट नहीं हटाया है।

OpIndia.com को सक्सेना ने उन रिकॉर्डिंग्स में से एक भेजा। कॉल रिकॉर्डिंग में, एक व्यक्ति को गंदी भाषा में सुनील को गाली देते हुए साफ सुना जा सकता है और उसे धमकी देता हुआ भी।

इसके बाद भी बरखा दत्त ने खुद ट्वीट किया कि कुछ लोग सोशल मीडिया पर उनका नंबर सर्कुलेट कर रहे हैं और बरखा दत्त ने माँग कि उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए।

यहाँ असली सवाल ये है कि क्या सिर्फ़ किसी व्यक्ति को कॉल कर ये पता करना कि क्या वास्तव में उस व्यक्ति का नंबर है कि नहीं। यह अपराध है? क्या इसे स्टाकिंग के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है? अगर हाँ तो इसे कानून का पालन कराने वाली एजेंसियों को तय करना होगा। न कि बरखा दत्त स्वयं तय कर उसके नंबर सार्वजनिक कर उसे अपने ट्रोल्स द्वारा ट्रोलिंग के लिए छोड़ दें।

बरखा दत्त की ट्रोल आर्मी सुनील पर जिस तरह से टूट पड़ी है वह भी आपकी भाषा में क्या स्टॉकिंग नहीं? अगर सुनील ने कुछ गलत किया है तो पुलिस को रिपोर्ट करतीं, ना कि ट्विटर पर नंबर सार्वजनिक कर ट्रोल करवातीं। कल को कोई बरखा दत्त का ट्रोल सुनील या उनके परिवार को नुक्सान पहुँचाता है तो जिम्मेदारी किसकी होगी? क्या बरखा दत्त ये भूल गई हैं कि उन्होंने स्वयं एक कानून का उल्लंघन कर दिया है, लोगो के नंबर ट्विटर पर शेयर करके?

यहाँ ये सवाल भी जरूरी है कि सुनील की क्या गलती थी? क्या बरखा दत्त को कॉल कर देना ही उसकी गलती थी? क्या बरखा दत्त किसी मार्केटिंग कंपनी के कॉल आने पर भी उनके नंबर शेयर करती है? और सबसे बड़ी बात, किसी का पर्सनल नंबर क्यों ट्विटर पर शेयर किया? क्या एक की गलती, गलती है! अपराध है! आपकी नहीं?


बरखा जी… जो हुआ वो गलत है लेकिन आप राष्ट्रवाद और यौन शोषण में पहले फर्क समझिए

डियर बरखा जी,

मुझे नहीं मालूम जाने-अनजाने में किसने आपका फोन नंबर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया। लेकिन मुझे यह जानकर बहुत दुख हुआ कि इस नंबर का गलत इस्तेमाल करके आपको उत्पीड़ित किया गया। मैं आपकी तकलीफ को अच्छे से समझ सकती हूँ क्योंकि मैं जानती हूँ कि किसी महिला का नंबर मिलने के बाद समाज में मौजूद अराजक तत्व उसका किस तरह से गलत इस्तेमाल करते हैं।

खैर, एक तो आप महिला और दूसरा आप पत्रकारिता जगत की सेलेब्रिटी हैं। आपका नंबर जब सोशल मीडिया पर किसी के द्वारा पोस्ट किया गया होगा, तो निश्चित ही कुछ लोगों ने आपको उत्सुकता में फोन किया होगा कि क्या आप वही बरखा हैं जिनको अब तक सिर्फ़ टेलीविजन पर बड़ी-बड़ी रिपोर्टिंग करते देखा गया… तो कुछ ने केवल ‘उसी’ लिहाज़ से आपके नंबर का इस्तेमाल किया, जिसका प्रमाण आपने ट्विटर पर उन स्क्रीनशॉट्स को डालकर दिया।

ट्विटर पर आपके द्वारा किए गए पोस्ट वाकई हमारे समाज की उस घटिया समुदाय की हकीकत है… जो छोटी बच्ची से लेकर महिलाओं तक का पर्याय केवल योनि के रूप में ही आँकता है। ऐसे घटिया, नीच, ओछी हरकतों को सोशल मीडिया तक लाया जाना ही चाहिए। ताकि बाक़ी के लोग भी सतर्क रहें। आपके द्वारा ट्विटर पर डाले गए स्क्रीनशॉट की मैं जितनी प्रशंसा करूँ उतना ही कम है। इनकी न केवल सोशल लिंचिंग होनी चाहिए, बल्कि कानूनी रूप से भी इनके ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

लेकिन इस स्क्रीनशॉट के साथ आपके ट्वीट न केवल मुझे बेमेल लगे बल्कि सवाल उठाने वाले भी लगे। यह घटना जितनी निंदनीय और शर्मनाक है, उससे भी कहीं शर्मनाक आपका यह ट्वीट है…

मैं निराधार होकर यह बात बिलकुल भी नहीं कह रही हूँ। आप खुद सोचिए! कुंठित समाज के घटिया समुदाय के किसी एक शख्स ने आपको अपने लिंग की तस्वीर भेजी और अपनी अति-बेहयायी का प्रमाण दिया। इस पर एक्शन लिया जा सके, इसके लिए आप वर्चुअल स्पेस पर हुए यौन शोषण को अपने सोशल मीडिया पर लेकर आईं। क़ाबिले-तारीफ़ है यह तरीका ताकि लोग सतर्क हो सकें।

लेकिन, आपके इस ट्वीट में राष्ट्रवाद शब्द का प्रयोग क्यों किया गया, वो मेरी समझ से बाहर है…? क्या आपके लिए इस बेहयायी का पर्याय राष्ट्रवादी हो जाना है? हैरानी है मुझे कि आपको जिस जगह पर यौन शोषण शब्द का इस्तेमाल करना था, आप वहाँ पर राष्ट्रवादी शब्द प्रयोग कर रही हैं।

एक अंजान व्यक्ति आपके निजी नंबर पर अश्लील तस्वीर साझा करता है। लेकिन इससे आपको कैसे पता चलता है कि उसकी यह घटिया हरकत राष्ट्रवाद के नाम पर है? या मैं ये समझ लूँ कि आप देश के राजनैतिक माहौल में इतनी डूब चुकी हैं कि अब सिर्फ़ आपको आपके साथ हुए हर वाकये के पीछे राष्ट्रवाद ही जिम्मेदार लगता है।

कायदे से मुझे आज आपकी इस हिम्मत के लिए सराहना चाहिए था, क्योंकि अक्सर लड़कियाँ इस तरह के यौन शोषण को समझ ही नहीं पाती हैं और घबरा के सोशल मीडिया से दूरी बनाना शुरू कर देती हैं। लेकिन, आपके इस पोस्ट पर राष्ट्रवाद शब्द का इस्तेमाल करने से आपको सराहने की मेरी सारी इच्छाएँ ही खत्म हो गईं या यह कहूँ कि वो इच्छा ही मर गई।

आप अपना अजेंडा क्लियर करिए आपको सामाजिक बुराईयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हुए सामने आना है, या सोशल मीडिया के प्लैटफॉर्म पर अपने पाठकों और फॉलोवर्स को हर बुराई में सिर्फ़ राष्ट्रवादियों का चेहरा ही दिखाना है।

आप शायद खुद इस बात को नहीं समझ पा रही हैं कि आपके एक पोस्ट का असर आपके पाठकों की मानसिकता पर कितने बड़े रूप में पड़ेगा। आप इस पूरे मामले को यौन शोषण न कहकर राष्ट्रवाद का रूप बता रही हैं। जरा सोचिए, आप वर्चुअल दुनिया में किन चीजों का निर्माण कर रही हैं, और किन शब्दों के पर्यायों से लोगों को वंचित रख रही हैं।

जिसने भी आपको यह तस्वीर भेजी है, वो शख्स निःसंदेह ही सलाखों के पीछे भेजा जाना चाहिए लेकिन शोषण के आरोप में… राष्ट्रवाद का इन घटिया चीज़ों से कोई लेना-देना नहीं है।

बतौर नारी होने के साथ-साथ आप इस देश की जागरूक और बेहद समझदार नागरिक भी हैं। आपकी भाषा और चुने हुए शब्दों से बहुत बड़ी आबादी के लोग अपनी सोच का निर्माण करते हैं। यौन शोषण में और राष्ट्रवाद में फर्क समझिए। अपने पाठकों के लिए राष्ट्र की भावनाओं को तहस-नहस मत करिए। जो उस गलीच आदमी ने आपके साथ किया, वो राष्ट्रवादी होने के नाम पर नहीं किया, उसने अपनी तथाकथित मर्दानगी को दिखाने के लिए ऐसा किया।

आपका इस तरह का पोस्ट दो शब्दों के मायनों को समाज में गलत ढंग से प्रेषित कर रहा है। संप्रेषण की गलती के कारण इन दो शब्दों के घाल-मेल से न जाने कितने लड़के-लड़कियाँ गलतफहमी का शिकार हो जाएँगे। मैं आपसे यही कहना चाहती हूँ कि आप कुछ लोगों के लिए खबरों का पर्याय बन चुकी हैं, उनको अपनी विचारधारा और राजनैतिक समझ के चलते बरगलाने का काम न करें। जो है उसे वही कहकर, बताकर, लिखकर सबके बीच भेजिए। ताकि आप द्वारा भेजे संदेश में और वास्तविकता में लोगों को सवाल उठाने का मौका न मिले।

बांग्ला फ़िल्म ‘भोबिश्योतिर भूत’ की स्क्रीनिंग रद्द, ममता के ख़िलाफ़ धरना प्रदर्शन

पश्चिम बंगाल में निर्देशक अनिक दत्ता की फिल्म “भोबिश्योतिर भूत” (भूत का भविष्य) की स्क्रीनिंग को लगभग सभी मल्टीप्लेक्स और सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों से हटा दिया गया है। इसके विरोध में रविवार (18 फ़रवरी) को कई फ़िल्म कलाकारों और कार्यकर्ताओं ने धरना प्रदर्शन किया।

ख़बरों के अनुसार, अनिक दत्ता द्वारा निर्देशित एक सामाजिक-राजनीतिक व्यंग्य, पर आधारित फ़िल्म भोबिश्योतिर भूत, 15 फ़रवरी को रिलीज़ हुई थी और एक दिन बाद ही कोलकाता के सभी सिनेमाघरों से इसके प्रदर्शन पर रोक लगा दी गई। जानकारी के अनुसार फ़िल्म कथित तौर पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर व्यंग्य थी इसलिए उसे सिनेमाघरों से हटा दिया गया। प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर यह दावा किया कि ममता बनर्जी ने बदले की भावना से फ़िल्म पर रोक लगवाई है।

इस बीच, मीडिया से बात करते हुए निर्देशक ने आरोप लगाया है कि सिंगल-स्क्रीन थिएटर मालिकों और मल्टीप्लेक्स को राज्य भर में 40 से अधिक स्क्रीन पर स्क्रीनिंग को रोकने के लिए मजबूर किया गया था। उन्होंने कहा, “हाँ, मैंने सुना है कि स्क्रीनिंग रोक दी गई है लेकिन मैं जो समझ पा कर रहा हूँ, वह यह है कि स्थानीय पुलिस स्टेशनों ने हॉल को निर्देश दिया है। पुलिस ने मेरे निर्माताओं को पहले भी चेतावनी दी थी कि फिल्म की सामग्री विवाद उत्पन्न कर सकती है।”

इसके बाद फ़िल्म निर्देशक ने कहा कि सिनेमाघरों से फ़िल्म हटाने के संबंध में उन्हें किसी भी तरह की कोई आधिकारिक सूचना नहीं दी गई, सभी (हॉल मालिकों) ने उनसे कहा कि फ़िल्म की स्क्रीनिंग को रोकने के निर्देश उच्च अधिकारियों के द्वारा दिए गए थे। इसके बाद उन्होंने कहा कि फ़िल्म की स्क्रीनिंग पर रोक के मामले में उन्हें लोगों का काफी समर्थन मिल रहा है और फ़िल्म बिरादरी भी उनके समर्थन में एकजुट है।

वयोवृद्ध कलाकार सौमित्र चटर्जी ने एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने लिखा कि फ़िल्म पर रोक लगाने का फ़ैसला अलोकतांत्रिक और फ़ासीवादी नीति से ताल्लुक़ रखता है। चटर्जी ने अपने पत्र में यह भी लिखा कि स्क्रीनिंग पर रोक का फ़ैसला प्रशासन का एक ‘प्रतिशोधात्मक कृत्य’ है।

रविवार को कोलकाता में विरोध प्रदर्शन में, कई कलाकारों और कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर सेंसरशिप की कार्रवाई की आलोचना करते हुए बैनर और तख़्तियाँ धारण कीं। कोलकाता में मेट्रो चैनल पुलिस स्टेशन के सामने एक बैनर पर ‘अमर दीदी शिल्पी दीदी, आमार दीदी कोबी, पुलिस दी बंधो कोरो नॉटन बंगला चोबी’ लिखा गया था। इसके अलावा, मेरी बहन एक कलाकार है, मेरी बहन एक कवि है, और वह एक नई बंगाली फ़िल्म को सेंसर करने के लिए पुलिस का उपयोग करती है जैसे वाक्य भी लिखे गए।

बता दें कि फ़िल्म भोबिश्योतिर भूत शुरुआत से ही विवादों का सामना कर रही है। फ़िल्म के निर्देशक अनिक दत्ता और सह-निर्माता इंदिरा उन्नीनार ने हाल ही में धमकी मिलने का दावा भी किया था।

Fact Check: पुलवामा अटैक पर मोदी के ठहाके! झूठ बोलती कविता कृष्णन को कौवे ने काटा

जम्मू-कश्मीर में हुए आत्मघाती हमले की आग अभी देशवासियों के दिल में बुझी भी नहीं थी कि झूठ फैलाने वाले लोग जनता को भ्रमित और उन्हें बरगलाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। ऐसे भ्रष्ट लोग इसी ताक में रहते हैं कि कैसे इस ग़मगीन मौक़े का फ़ायदा उठाकर जनता को मोदी सरकार के ख़िलाफ़ ला खड़ा किया जाए।

ऐसी ही विकृत सोच के साथ कविता कृष्णन अपने ट्विटर हैंडल पर दिखीं। इन्होंने अपने ट्वीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की हँसते हुए एक फोटो अपलोड की और उलाहना दिया कि पुलवामा हमले के बाद पूरा देश रो रहा है पर मोदी और उनके दोस्त नीतीश और साक्षी महाराज मुस्कुरा रहे हैं। बता दें कि यह फोटो वर्तमान की नहीं बल्कि दो साल से भी अधिक (मार्च 1, 2016) पुरानी है, जिसे कविता कृष्णन ने वर्तमान परिदृश्य से जोड़कर दिखाया।

कविता कृष्णन की यह ओछी हरक़त उनकी भ्रष्ट बुद्धि और विचारधारा को स्पष्ट करता है। अपने इस निंदनीय आचरण से वो देश की जनता को भड़काने के उद्देश्य को पूरा करती दिखीं।

भले ही देश आज अपने जवानों को खो देने की पीड़ा से गुज़र रहा हो, लेकिन वो सही और ग़लत को समझने में पूरी तरह से सक्षम हैं। इसी के चलते तमाम ट्विटर यूज़र्स ने कविता कृष्णन के इस ट्वीट का पुरज़ोर विरोध किया और अपनी प्रतिक्रिया दर्ज की।

अपने ट्विटर हैंडल से चिंतन शाह ने लिखा कि कविता कृष्णन, मोदी विरोधी एजेंडी को पूरा कर रही हैं।

कविता कृष्णन के द्वारा फैलाया गया झूठ ख़ुद उन्हीं पर भारी पड़ा, जब लोगों ने उन्हें सच से वाक़िफ़ कराया। एक ट्विटर यूजर ने तो उन्हें जिहादी मैम तक लिख दिया और बताया कि जो फोटो आप अपने एजेंडे को फैलाने के लिए इस्तेमाल कर रही हैं वह 2016 की है। कुछ शर्म करो और हमारे सैनिकों के बलिदान पर राजनीति करना बंद करो।

सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री मोदी को ग़लत रूप से चित्रित करके फैलाया गया यह झूठ कविता कृष्णन को काफ़ी महँगा पड़ गया। वो इसलिए क्योंकि लोगों ने उन्हें उनके किए के लिए काफ़ी खरी-खोटी सुनाई। एक ट्विटर यूज़र ने उन्हें Godmother कहते हुए लिखा कि @kavita_krishnan सेना-विरोधी कश्मीरियों की रक्षा में व्यस्त हैं, उनकी पार्टी के कार्यकर्ता अपना एजेंडा चलाने के लिए मोदी-नीतीश की पुरानी तस्वीरें फैला रहे हैं।

बता दें कि कविता कृष्णन ऑल इंडिया प्रोगेसिव वुमेन एसोसिएशन की सेक्रेटरी और CPM (ML) पोलित ब्यूरो की सदस्य हैं। बड़े शर्म की बात है कि इन्होंने देश की भावुकता को तार-तार करके देशहित से परे एक ग़ैर-ज़िम्मेदाराना रवैया अपनाया। इस तरह की ख़बरों का असर लोगों पर कई बार विपरीत पड़ सकता है और इसका ख़ामियाजा कविता कृष्णन जैसे कुटिल लोग नहीं बल्कि देश की भोली-भाली जनता भुगतती है।

कश्मीर जनमत संग्रह: पाकिस्तान का एजेंडा चला रहे हैं कमल हासन… लेकिन क्यों?

कमल हासन ने एक नया बयान दिया है। कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर बोलते हुए कमल हासन ने भारत सरकार से सवाल किया है कि वह जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह क्यों नहीं करा रही है? दरअसल, कमल हासन गलत संस्था से सवाल कर रहे हैं। उन्हें यही सवाल पाकिस्तान सरकार से पूछना चाहिए। उन्हें पाकिस्तान सरकार से पूछना चाहिए कि आख़िर उसने क्यों कश्मीर में जनमत-संग्रह की बात को अस्वीकार कर दिया था?

यहाँ सबसे पहले पाक पीएम इमरान खान के सुरक्षा परिषद के कश्मीर रिजोल्यूशन को लेकर कही गई बात की पड़ताल करते हैं। ऐसा इसीलिए, क्योंकि कमल हासन ने जिस जनमत संग्रह की बात की है, उसकी चर्चा इसी रिजोल्यूशन में की गई थी। इमरान खान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से ये अपेक्षा रखते हैं कि वह कश्मीर को लेकर अपनी प्रतिबद्धता पूरी करे। लेकिन यहाँ पर वो ये भूल जाते है कि अप्रैल 1948 में सुरक्षा परिषद् द्वारा कश्मीर समस्या को लेकर स्वीकृत किये गए प्रस्ताव 47 में क्या कहा गया था। कमल हासन को भी इसे समझने की ज़रूरत है।

इस प्रस्ताव में कश्मीर समस्या के समाधान की प्रक्रिया को तीन प्रमुख चरणों में बांटा गया है। इसके पहले चरण में ये साफ़-साफ़ कहा गया है कि सबसे पहले पाकिस्तान कश्मीर में अपनी किसी भी प्रकार की उपस्थिति को ख़त्म करे। कमल हासन से मिलता-जुलता बयान इमरान ख़ान ने भी दिया था। इमरान ख़ान का ये बयान विरोधाभाषी था क्योंकि जिस सुरक्षा परिषद को वो कश्मीर को लेकर अपनी प्रतिबद्धता पूरी करने को कहते रहे हैं, असल में उसी सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर अमल करने में वो नाकाम रहे हैं। कमल हासन को सबसे पहले पाकिस्तान को कश्मीर से अपनी उपस्थिति हटाने को कहना चाहिए।

इस प्रस्ताव में सुझाई गई प्रक्रिया का दूसरा चरण है भारत द्वारा धीरे-धीरे कश्मीर में तैनात अपने सेना के जवानों की संख्या में कमी लाना। लेकिन ये तभी संभव है जब पकिस्तान पहले चरण पर पूरी तरह अमल करे और सीमा पार से घुसपैठ करने वाले आतंकियों की संख्या में कमी आए। बता दें कि पाकिस्तान ने कश्मीर के एक बड़े भाग पर अवैध रूप से कब्जा कर रखा है जिसे वहाँ ‘आज़ाद कश्मीर’ बुलाया जाता है। क्या कमल हासन पाकिस्तान को इस प्रक्रिया पर अमल करने की सलाह देंगे?

पकिस्तान आज जिस सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को अमल में लाने की बात बार-बार करता रहा है, असल में उसने जनमत-संग्रह वाले इस इस प्रस्ताव को 1948 में अस्वीकार कर दिया था। ये इस बात को दिखाता है कि पकिस्तान अपने ही स्टैंड पर कायम रहने में विफल रहा है और कश्मीर पर समय के हिसाब से पैंतरा बदलने में उसने महारत हासिल कर ली है। ये उस देश की अविश्वसनीयता को दिखाता है जो कभी अपने द्वारा ही पूरी तरह अस्वीकार कर दिए गए प्रस्ताव की आज रट लगाये हुए है।

पिनाराई विजयन ने शायद कमल हासन को गलत ट्यूशन पढ़ा दिया है

कमल हासन भारत के नागरिक हैं। विश्वरूपम विवाद के समय जब उन्होंने देश छोड़ने की बात कही थी, तब पूरे देश ने एकजुट होकर उनकी फ़िल्म सिर्फ़ रिलीज़ ही नहीं बल्कि सुपरहिट भी कराई थी। सारे मुस्लिम संगठनों के विरोध के बावजूद उनकी फ़िल्म को लेकर लोगों ने एकता दिखाई। लेकिन, कमल हासन आज पाकिस्तान के एजेंडे को दुहरा रहे हैं, भले ही अनजाने में। अपने ही देश का पक्ष समझे बिना और इतिहास की जानकारी लिए बिना कमल हासन अपने इन बयानों से उस इज्ज़त को तार-तार कर रहे हैं, जो उन्होंने अपने 6 दशक के एक्टिंग करियर से कमाई है।

कमल हासन को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान से यह सवाल पूछना चाहिए कि क्या वह सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 47 पर अमल करने को तैयार हैं? क्या वो कश्मीर से पाकिस्तानियों को हटाने को तैयार हैं? लेकिन, कमल हासन उलटा भारत सरकार से सवाल पूछ रहे हैं। उन्हे इमरान ख़ान से पूछना चाहिए कि आज वो जिस सुरक्षा परिषद की दुहाई देते हैं, उसके प्रस्ताव को उनके देश ने 1948  में अस्वीकार क्यों कर दिया था?

कमल हासन ने आज कश्मीर में जनमत-संग्रह की बात कही है। पकिस्तान समय-समय पर कश्मीर में जनमत-संग्रह कराने की भी माँग करता रहा है लेकिन भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर इस बारे में विस्तृत विवरण दिया गया है जो पकिस्तान की दोहरी नीति को पूरी तरह से बेनक़ाब करता है। इसमें ये बताया गया है कि असल में वो भारत ही था जिसने कश्मीर को लेकर सबसे पहले जनमत-संग्रह कराने की बात की थी। जिस देश ने जनमत संग्रह की बात उठाई थी, उसी से सवाल पूछ कर कमल हासन भारत में बैठ कर पकिस्तान का काम आसान कर रहे हैं।

भारत ने 1947, 48 और 1951 में कई बार अपने इस स्टैंड को साफ़ किया था। लेकिन पकिस्तान बार-बार जनमत-संग्रह की बात पर मुकरता रहा। रिपोर्ट में ये भी लिखा गया है कि इस बात के कई सबूत हैं कि पकिस्तान ने वो हर-संभव कोशिश की जिस से कश्मीर में जनमत-संग्रह टल सके। इसीलिए कमल हासन पाकिस्तान जाएँ, वहाँ के हुक़्मरानों से सवाल करें कि उन्होंने बार-बार जनमत-संग्रह की बात क्यों ठुकराई? कमल हासन के राजनीतिक गुरु केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के ट्यूशन में शायद यही पढ़ाया जाता हो।