Monday, October 7, 2024
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राजदीप जी, थोड़ी शरम बची हो तो हथेली पर थूक कर उसी में नाक डुबा के मर जाइए

इससे पहले कि हेडलाइन पढ़कर मुझे पत्रकारिता के आदर्शों की बात आप बताने लगें, मैं बताना चाहूँगा कि यह एक (कम) प्रचलित कहावत है, जो मैंने ही ऐसे ख़ास मौक़ों के लिए ईजाद की है। दूसरी बात, मैं लुट्यन दिल्ली का पत्रकार नहीं हूँ कि अंग्रेज़ी में लिखने के चक्कर में सामने पड़े पत्र में BSF को CRPF पढ़ लूँ, या फिर बेगैरतों की तरह आँख में चमक लेकर यह स्वीकार लूँ कि आतंकी हमलों पर मैं ख़ुश हो जाता हूँ। जो इस तरह की तुच्छ हरक़त करेगा, उसके लिए मुहावरे भी ऐसे ही इस्तेमाल होंगे, और बाय गॉड, हिन्दी में नीचता के लिए मुहावरों की कमी नहीं है। 

हुआ यूँ कि पुलवामा आतंकी हमले पर ‘छप्पन इंच’ और ‘हाउ इज़ द जैश’ की नौटंकी के बाद जब ‘कश्मीरियों को पीटा जा रहा है’ का नैरेटिव भी फुस्स हो गया, तो राजदीप ने किसी सैकात दत्ता नामक पत्रकार का एक ट्वीट अपने ज्ञानगंगा की कुछ बूँदों के साथ पब्लिक में परोसा। जो भी हो, उद्देश्य यही है कि ‘लोन वूल्फ़’ अटैक का ठीकरा किसी भी तरह से सरकार पर फोड़ा जाए, और उसके लिए जितना गिरा जा सकता है, गिर जाएँगे।

बिल्लौरी चमक के साथ, धूर्तों वाली मुस्कान लिए (मैं उनकी इसी रूप में कल्पना कर पाता हूँ) राजदीप ने लिखा कि सरकारों के पास चमकीले सरकारी विज्ञापनों के लिए अथाह पैसा है, लेकिन हमारे जवानों को बाहर लाने के लिए हेलिकॉप्टर या वायुयान के लिए नहीं! उसके बाद सबको पढ़ने की नसीहत देते हुए राजदीप ने ‘एंटी-नेशनल’ की डुगडुगी बजाते हुए अपना फ़र्ज़ीवाड़ा पब्लिक में बेचने की कोशिश की। 

ज़माना अब टीवी वाला तो रहा नहीं लेकिन काइयाँ पत्रकार, जिसकी दुम स्टूडियो में कुर्सी पर बैठते-बैठते टेढ़ी हो चुकी हो, वो तो यही सोचेगा कि इनके शब्दबाण तो स्पीकर से निकल गए, तो निकल गए। लेकिन सोशल मीडिया के ज़माने में लोग पकड़ लेते हैं, तीन सेकेंड में। राजदीप भी धर लिए गए, और सैकात दत्ता का तो सैराट झाला जी हो गया। 

दरअसल, सैकात ने एक डॉक्यूमेंट शेयर किया जिसमें बीएसएफ़ की तरफ़ से ‘छूट गए/फँसे हुए’ जवानों के लिए एयरलिफ्टिंग (यानी, हवाई मार्ग से उन्हें बाहर निकालने की बात) के लिए गृह मंत्रालय को आवेदन भेजा गया था। यहाँ तक तो ठीक था, लेकिन जब आप उस डॉक्यूमेंट को पढ़ेंगे तो उसमें मंत्रालय ने साफ़-साफ़ लिखा है कि बीएसएफ़ के ही एयर विंग के साथ बात करने के बाद यह फ़ैसला लिया गया है कि जनवरी और फ़रवरी के दो महीनों में C17 हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल ‘फीजीबल’ (व्यवहार्य, संभव, तर्क संगत) नहीं लगता। 

इसी पत्र के दूसरे बिंदु पर मंत्रालय ने लिखा कि बीएसएफ़ चाहे तो एयरफ़ोर्स से इस संदर्भ में बात करते हुए, उनके यानों के प्रयोग की अनुमति हेतु आवेदन कर सकता है अगर ऐसी ज़रूरत आन पड़े तो। ये दोनों बातें बीएसएफ़ के संदर्भ में है। और मंत्रालय ने बीएसएफ़ के ही एयर विंग से सलाह करने के बाद हेलिकॉप्टर इस्तेमाल की अनुमति देने में अपनी असमर्थता जताई। 

स्टूडियो में बैठे पत्रकारों को लगता है कि जैसे ‘ये जो कैलाश है, वो एक पर्वत है’ की ही तरह ‘ये जो हेलिकॉप्टर होता है, वो हवा में उड़ता है’ कोई सीधी-सी बात है। इसके अलावा, वो और कुछ नहीं सुनना चाहते। उन्हें ये जानने में कोई रुचि नहीं कि हो सकता है मौसम ख़राब होने के कारण इन दो महीनों में उड़ान संभव नहीं। हो सकता है कि सिक्योरिटी थ्रेट हो जिसके कारण हवाई उड़ान संभव नहीं। या, और भी कोई कारण रहें हों।

अगली बात यह है कि ये पूरा का पूरा संदर्भ बीएसएफ़ के लिए था, न कि सीआरपीएफ़ के लिए। उसमें भी, अगर राजदीप ने अपने बुज़ुर्ग होते दिमाग पर थोड़ा ज़ोर डाला होता तो याद कर पाते कि 2500 जवानों को पुलवामा आतंकी हमले के दिन ले जाया जा रहा था। और, इस डॉक्यूमेंट में ‘स्ट्रैंडेड पर्सनल’ यानी ‘छूट गए/फँसे हुए’ बीएसएफ़ जवानों के लिए एयरलिफ़्ट की मदद माँगी गई थी। 

लेकिन, इतना कौन देखता है। जब ‘होम मिनिस्ट्री’, ‘ऑफिशियल डॉक्यूमेंट’, ‘हेलिकॉप्टर नहीं दे सकते’ आदि बातें आपको चरमसुख दे रही हों तो ट्वीट टाइप करने में रैज़डीप्स टाइप लोग फ़ैक्ट तो छोड़िए बेसिक इंग्लिश भी भूल जाते हैं। राजदीप ने चरमसुख के चक्कर में न तो आर्टिकल पढ़ा, न ये देखा कि उस लेटर में किस फ़ोर्स का ज़िक्र है, न यह कन्फर्म करने की कोशिश की कि क्या 2500 जवानों को ऐसे ख़राब मौसम में एयरलिफ़्ट करना संभव है। 

आर्टिकल के भीतर जाकर पढ़ने पर मीडिया का पुराना खेल देखने को मिला जिसमें ‘सूत्रों के हवाले’ से कुछ भी लिखा जा सकता है। भीतर में एक जगह पर किसी ‘अधिकारी’ ने कहा कि अगर हेलिकॉप्टर दे दिए जाते तो ‘शायद’ ऐसा होने से बचाया जा सकता था। हालाँकि, सीआरपीएफ़ पर स्टोरी करने वाले सैकात भी पीले डॉक्यूमेंट का रंग देखकर भूल गए कि वो बीएसएफ़ के लिए था और चालीस दिन पहले का (जनवरी 7) था जिसमें ‘विंटर सीज़न’ का ज़िक्र है। 

आगे उनकी ही स्टोरी में उसी अधिकारी ने यह भी माना है कि यह (हेलिकॉप्टर न मिलना) आतंकी हमले का असली कारण नहीं था। उस स्टोरी में ऐसा कहीं ज़िक्र नहीं है कि सीआरपीएफ़ ने भी कभी हेलिकॉप्टर से एयरलिफ़्ट करने का आवेदन किया था। हो सकता है किया हो, पर इस डॉक्यूमेंट में तो ऐसा नहीं है, न ही सैकात के ग्राउंड रिपोर्ट में। 

ख़ैर, आगे बढ़ते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि पत्रकारों का जो ये समुदाय विशेष है, ये जो धूर्तों का गिरोह है, ये जो शातिर लम्पटमंडली है, वो आख़िर कब तक लोगों को ‘कौआ कान लेकर भाग गया’ कहकर दौड़ाती रहेगी? आज बरखा दत्त ने ऐसे ही लिख दिया कि कश्मीरी विद्यार्थियों पर देशभर में हमले हो रहे हैं, और उसे ‘टेरर अटैक’ तक कह दिया। जबकि, ऐसा कोई केस नहीं दिखा है कि किसी भी कश्मीरी पर कहीं भी ‘हमला’ हुआ हो। कुछ जगहों पर उनके द्वारा पुलवामा आतंकी हमले पर जश्न मनाने या आपत्तिजनक बातें कहने पर पुलिस ने संज्ञान ज़रूर लिया है। 

सैकात ने लिखा कि वो देखो कौआ, राजदीप ने भी ज़ोर से कहा कि कौआ कान लेकर भाग रहा है, लेकिन ट्विटर वाले अब चालाक हो गए हैं। उन्होंने राजदीप को न सिर्फ़ उनके बेकार अंग्रेज़ी की समझ पर सवाल किए बल्कि यह भी बताया कि वो जिसको कौआ बोल रहे हैं, वो उन्हीं के सर पर बैठा है और झूठ बोलने पर काट लेगा। बहुतों ने उन्हें आज काटा, ये बात और है कि सिसिफस और प्रोमिथियस की तरह इस आदमी ने आजकल अपने दैनिक दुखों में ही आनंद लेना शुरू कर दिया है। 

ये सब भी हटा लें, तो राजदीप जैसे लोग क्या क्लेम करना चाहते हैं? सरकार जागरुकता के लिए विज्ञापन देना बंद करे दे जबकि ‘स्वच्छता अभियान’ से लेकर ‘बेटी बचाओ, बेची पढ़ाओ’ जैसे जीवन बदलने वाले सरकारी अभियानों की सफलता प्रचार पर बहुत हद तक निर्भर करती है। क्या ‘हेलिकॉप्टर हैं और उसका इस्तेमाल किया जा सकता था’ का मतलब यह है कि किसी आतंकी द्वारा ट्रक से विस्फोटकों से लदी कार भिड़ा दी जाए? 

मोदी विरोध में ऐसे मानसिक रूप से विक्षिप्त हो चुके पत्रकार तर्क की कौन-सी शाखा से चलते हैं कि वो इस तरह की बातें खोज लाते हैं? अमरनाथ यात्रा पर भी हमला हुआ था, उनको भी हेलिकॉप्टर से उठा लेते? उरी में सेना के कैंप पर हमला हुआ था, उसको शायद इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर शिफ्ट किया जा सकता था? क्योंकि सरकार के पास विज्ञापनों पर ख़र्च करने के लिए बहुत पैसा है! 

आप सोचिए भला कि किस तरह से नैरेटिव बनाया जा रहा है। हमला होने के आधे घंटे में सरकार की क़ाबिलियत से लेकर उसकी गम्भीरता और प्रतिकार की क्षमता पर सवाल उठाए जाने लगे थे। उसके बाद जब मोदी सरकार ने पाकिस्तान से ‘मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन’ का स्टेटस वापस लिया, अलगाववादियों की सुरक्षा हटा ली, इंटरनेशनल प्रेशर बनाना शुरू किया, सेना को स्वतंत्रता दे दी कि योजना बना कर निपटे, राजनयिकों को तलब किया, तो इस गिरोह को लगा कि ये आदमी तो सीरियस ही हो गया! 

तब इन्होंने ‘शांति’ की अपील करनी शुरु की लेकिन देश में अभी वैसा माहौल है नहीं कि शांति की बात कोई भी राष्ट्रभक्त व्यक्ति सुनना चाह रहा हो। मैं युद्ध के ख़िलाफ़ हूँ, लेकिन शांति की बात पाकिस्तान से तो नहीं ही कर सकता। उसके बाद मीडिया का गिरोह सक्रिय होकर आतंकी और उसके माँ-बाप को ऐसे दिखाने लगा जैसे वो लोग आम भारतीय नागरिकों की तरह आईपीएल देखा करते थे। टेररिस्ट के बाप को यह कहते दिखाया गया कि उनका दुःख उस जवान के परिवार के दुःख के समान ही है!  

बात यहीं तक नहीं रुकी, राजदीप ने अपने घर के दरवाज़े कश्मीरियों के लिए खोल दिए और बरखा ने ट्विटर पर एक मैनुफ़ैक्चर्ड झूठ के आधार पर कश्मीरियों पर देश में ‘टेरर अटैक’ होता दिखा दिया। शेहला रशीद जैसे फ़्रीलान्स बेसिस पर विरोध प्रदर्शन करने वाली महिला ने 15-20 लड़कियों को देहरादून के किसी संस्थान में बंधक बनवा दिया जिसे पुलिस निकाल नहीं पा रही थी! 

नैरेटिव को ‘पुलवामा में एक आतंकी ने 40 जवानों की नृशंस हत्या कर दी, जिनके चिता की अग्नि अभी ठंडी न हुई हो और कब्र की मिट्टी ठीक से दबी न हो’, वहाँ से उठाकर ‘कश्मीरियों को ‘भारत’ में मारा जा रहा है’ बनाने की कोशिश की गई। भला हो सोशल मीडिया का कि पुलिस सक्रिय होकर ऐसे लोगों पर एफआईआर कर रही है। और, जैसा कि होना था कार्डों में श्रेष्ठ ‘विक्टिम कार्ड’ को लेकर बेचारी शेहला ने कश्मीरियत के लिए अपने आप को एक बार फिर से क़ुर्बान कर दिया। पिछली बार जब किया था, तब उन पर कठुआ पीड़िता के फ़ंड के हरे-फेर का आरोप लगा था। 

इसलिए, आप यह मत देखिए कि मैं एक ट्वीट पर इतना लिख रहा हूँ। आप यह सोचिए कि इन लोगों का एक ट्वीट ही कितना घातक होता है। इन लोगों के द्वारा ट्वीट की गई एक फ़र्ज़ी ख़बर पूरे भारत का सर बिग बीसी टाइप के प्रोपेगेंडा पोर्टलों पर स्माइली के साथ नीचा करा देती है। ये लोग वाक़ई में बहुत ही निम्न स्तर के ट्रोल हैं जिन्होंने कई साल तथाकथित पत्रकारिता की थी। 

इसलिए, इनके एक ट्वीट पर, इनके हर शब्द का सही मतलब निकाल कर, तह दर तह छील देना है। जब तक इन्हें छीलेंगे नहीं, ये अपनी हरक़तों से बाज़ नहीं आएँगे। इसलिए, इनके ट्वीट तो छोड़िए, एपिडर्मिस, इन्डोडर्मिस से लेकर डीएनए तक खँगालते रहिए क्योंकि बाय गॉड, ये लोग बहुत ही बेहूदे क़िस्म के हैं। 

Fact Check: कश्मीरी मुस्लिमों के नाम पर रॉयटर्स फैला रही फ़ेक ख़बर

पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले से जहाँ एक तरफ देश में आक्रोश का माहौल है, वहीं कुछ ऐसी ख़बरें भी सामने आ रही हैं जिसका सच्चाई से कोई वास्ता नहीं है। अफ़वाह फैलाने जैसी ख़बरों को कई बार सच मान लिया जाता है, जिसके परिणाम भयंकर भी हो जाते हैं। ऐसी ही एक ख़बर रॉयटर्स न्यूज़ एजेंसी ने अपनी वेबसाइट पर ‘Kashmiri Muslim evicted, threatened after deadly attack on indian forces’ शीर्षक से लिखी है।

रॉयटर्स जैसी बड़ी और अंतरराष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसी कैसे ख़बरों के साथ फ़र्ज़ीवाड़ा करती है, इसे नीचे के दो स्क्रीनशॉट के माध्यम से समझा जा सकता है। भारत की एक न्यूज़ एजेंसी में काम कर रहे हमारे एक साथी (नाम न छापने की शर्त पर) ने रॉयटर्स की इसी गंदगी का पर्दाफाश किया है।

भारतीय न्यूज़ एजेंसी में काम कर रहे हमारे एक साथी द्वारा शेयर किया गया चैट

भारतीय न्यूज़ एजेंसी में काम कर रहे हमारे एक साथी द्वारा शेयर किया गया चैट

रॉयटर्स ने अपनी इस ख़बर में पुलवामा में हुए हमले के बारे में तो बताया ही साथ में हरियाणा और उत्तराखंड के कश्मीरी मुस्लिमों के प्रति अपने इस फ़र्ज़ी दर्द को भी उजागर किया कि वो किस तरह की साम्प्रदायिक स्थिति का सामना कर रहे हैं।

रॉयटर्स ने इस ख़बर में जिन-जिन जगहों और व्यक्ति-विशेष का उदाहरण दिया है वो या तो झूठ है या फिर उन लोगों ने सही में भारतीय कानून को ताक पर रख कर जुर्म किया था। पुलवामा जैसे आतंकी हमले के बाद सोशल मीडिया पर देशद्रोही पोस्ट लिखना अमानवीय और गैर-कानूनी भी है।

रॉयटर्स की यह ख़बर पूरी तरह से झूठी है। इस तरह की ख़बरे लोगों को भड़काने और बेवजह परेशान करने के लिए लिखी जाती हैं।

₹33,000+ करोड़ की योजनाएँ, 3 मेडिकल कॉलेज: झारखंड-बिहार में 1 दिन में PM मोदी का योगदान

रविवार (जनवरी 17, 2019) को पीएम मोदी बिहार और झारखंड के दौरे पर पहुँचे। यहाँ पहुँचकर प्रधाममंत्री ने 33 हजार करोड़ रुपयों से अधिक की परियोजनाओं की सौगात दी। इसमें पटना शहर को स्मार्ट बनाने से जुड़े प्रोजेक्ट हैं, बिहार के औद्योगिक विकास और युवाओं को रोज़गार से जुड़े प्रोजेक्ट हैं और बिहार के लिए स्वास्थ्य सुविधाएँ बढ़ाने वाली परियोजनाएँ हैं।

बरौनी पहुँचकर पीएम मोदी ने रिमोट कंट्रोल से पटना मेट्रो की आधारशिला रखी। जिसपर 13,365 करोड़ रुपए की लागत आएगी। साथ ही पुलवामा हमले को लेकर पीएम मोदी ने कहा कि जो आग देशवासियों के दिल में है, वही आग उनके दिल में भी है। बरौनी के बाद पीएम हजारीबाग पहुँचे। यहाँ पर उन्होंने 800 करोड़ की योजनाओं का शिलान्यास किया और 3 मेडिकल कॉलेजों का भी उद्घाटन किया।

उन्होंने जनता को संबोधित करते हुए कहा कि उन्होंने पिछले साढ़े चार साल से झारखंड के विकास के लिए जो काम किया जा रहा है, उसको गति देने आए हैं। उन्होंने कहा कि मेडिकल कॉलेज, अस्पताल, इंजीनियरिंग कॉलेज, पाइप लाइन, नमामि गंगे प्रोजेक्ट के शिलान्यास और लोकार्पण से झारखंड में मूलभूत सुविधाओं को ताकत मिलने वाली है।

बरखा दत्त, शेहला रशीद, मनीष सिसोदिया, क्विंट आदि मीडिया गिरोह के नए झूठ और नैरेटिव

कई वामपंथी अजेंडाबाज़ और पत्रकारों का समुदाय विशेष पुलवामा आतंकी हमले के बाद नए नैरेटिव लाने की पुरज़ोर कोशिश कर रहा है जहाँ ऐसा लगे कि ये लड़ाई कश्मीरी बनाम भारतीय है। जबकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है। किसी भी कश्मीरी छात्र को कहीं भी पीटा नहीं गया। बरखा दत्त ने इसे ‘कश्मीरी टेरर अटैक’ तक कह दिया। कई मीडिया वाले आतंकियों के ‘मानवीय’ चेहरे को दिखाना चाह रहे हैं।

जानिए सच क्या है वीडियो में:

Pak को उसके खिलाड़ी-कलाकार मुबारक, जवानों की मौत के साथ नहीं चाहिए ऐसे सुर और शॉट्स

कश्मीर के पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले में 40 जवानों के बलिदान और दो दर्जन से अधिक घायलों की ख़बर से देश सदमे में है। देश का ऐसा कोई कोना बाक़ी नहीं जहाँ वीरगति को प्राप्त इन जवानों को नम आँखों से विदा न किया गया हो। शायद ही कोई देश-प्रेमी होगा जिसके ख़ून में उबाल न आई हो।

पाकिस्तान का दोहरा रवैया एक बार नहीं सैकड़ों बार उजागर हो चुका है। भारत ने हमेशा ही पाकिस्तान के साथ शांति क़ायम रखने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया है। लेकिन पाकिस्तान हमेशा से पीठ पर छुरा घोंपने का काम करता आया है। साथ ही, आतंकी संगठनों का गढ़ होने के बावजूद पाकिस्तान इस बात को नकारता आया है। बारूद पर बैठे पाकिस्तान की हक़ीकत को दुनिया अच्छी तरह से जानती है और इसीलिए पुलवामा हमले के बाद विश्वभर के देशों ने भारत का साथ देने पर अपनी सहमति जताई है।

पुलवामा हमले के बाद से ही देश के कोने-कोने में विरोध की लहर चल निकली है। खेल जगत से लेकर फ़िल्म जगत तक में पाकिस्तान के इस छद्म वार की घोर निंदा हो रही है।

प्रतिष्ठित क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया (CCI) ने शनिवार को कश्मीर के पुलवामा में CRPF के क़ाफ़िले पर हुए आतंकी हमले के विरोध में ग़ुस्सा दिखाते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की फोटो को ढक दिया। पाकिस्तान के ख़िलाफ़ अपने विरोध में इमरान ख़ान के फोटो को ढक देने भर से क्या दो देशों के बीच कड़वाहट ख़त्म होगी? एक तरफ सीमा पर तैनात जवान पाकिस्तान के वार का समना करते हैं और दूसरी तरफ भारत कला-संस्कृति के आदान-प्रदान और खेलों के माध्यम से हमेशा पाकिस्तान को सपोर्ट करता आया है। लेकिन फायदा शायद ही कुछ हुआ हो!

पुलवामा हमले के बाद बॉलीवुड के जावेद अख़्तर और शबाना आज़मी ने पाकिस्तान में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में शामिल होने से मना कर दिया था। सोनू निगम और कंगना रनौत ने भी हमले के बाद तीखी प्रतिक्रिया दर्ज की थी। सोनू निगम ने तो दोहरा रवैया अपनाने वालों को पाकिस्तान का हितैषी करार दिया था और उनके नाम एक वीडियो भी जारी किया था।

वहीं अपनी प्रतिक्रिया में कंगना ने शबाना आज़मी पर तंज कसा और कहा कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान ने भारतीय कलाकारों को बैन कर दिया था तब कराची जाकर शबाना आज़मी ने एक कार्यक्रम का आयोजन क्यों किया था? जब दो देशों के बीच कटुता इतना विकराल रूप धारण कर चुकी हो तो किसी भी तरह के सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर रोक लग जानी चाहिए।

इसी कड़ी में म्यूज़िक कंपनी टी-सीरिज का भी नाम शामिल है, जिसने पाकिस्तानी गायक आतिफ़ असलम के एक गाने को यूट्यूब पर अनलिस्ट कर दिया। बता दें कि यह गीत 12 फ़रवरी को रिलीज किया गया था। हालाँकि इस बात की जानकारी ऑफ़िशियली नहीं दी गई है। हमले के बाद से ही पाकिस्तानी सिंगर को बैन करने की माँग भी तेजी से बढ़ी है। कई ट्विटर यूज़र्स ने अपने ट्वीट के ज़रिए जवानों के बलिदान को याद करते हुए पाकिस्तानी सिंगर को बैन करने के लिए अपनी आवाज़ बुलंद की है।

अब बात करते हैं पाकिस्तानी गायक अदनान सामी की, जिन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक की सफलता पर प्रधानमंत्री मोदी को ट्वीट किया था और इसके बाद वो विवादों में आ गए थे। हालात इतने गंभीर हो गए थे कि अदनान सामी ने यह तक कह दिया था कि सर्जिकल स्ट्राइक से भारत ने पाकिस्तान के कचरे को साफ़ करने का काम किया है। बता दें कि अदनान ने पाकिस्तान की नागरिकता छोड़कर भारत की नागरिकता अपना ली थी। इसके अलावा वो असहिष्णुता मुद्दे पर भारत के पक्ष में बयान दे चुके हैं।

ऐसे में यह कहना लाज़मी बन पड़ता है कि जिस भारत को पाकिस्तान पानी पी-पीकर कोसता है, जिसकी बर्बादी का ख़्वाब वो पल-पल देखता है वो ख़ुद अपनी कला-संस्कृति को बचाने में पूरी तरह से विफल है, केवल आतंक फैलाना ही उसका एकमात्र ध्येय है। क्योंकि अगर ऐसा न होता तो पाकिस्तान के कलाकार यहाँ कभी फल-फूल न पाते।

यह हो सकता है कि कुछ लोग मेरी राय से इत्तेफ़ाक़ न रखते हों और यह मानते हों कि सीमा के विवाद को कला-संस्कृति और खेल से नहीं जोड़ना चाहिए। लेकिन मेरी अंतरात्मा इस बात को कभी स्वीकार नहीं करेगी कि एक तरफ तो पाकिस्तान सीमा पर हमारे वीरों की बलि चढ़ाता रहे, उनके मस्तक काटकर ले जाए और दूसरी तरफ खेलों व सांस्कृतिक आदान-प्रदान के नाम पर गाना-बजाना और खेलना-कूदना भी जारी रखे।

पाकिस्तान अपने दोहरे रवैये से आपसी रिश्तों को कभी नहीं सुधार पाएगा। एक तरफ दोस्ती का हाथ और दूसरी तरफ छद्म युद्ध पाकिस्तान की मंशा को पूरी तरह से स्पष्ट करता है।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि पाकिस्तान कब अपनी इन नापाक हरक़तों से बाज आएगा। इतना होने के बावजूद भी खेलों और सांस्कृतिक गतिविधियों में शिरक़त के बहाने आपसी रिश्तों की कड़वाहट क्यों छिपाने की कोशिश की जाए? समय रहते अब पाकिस्तान को सचेत हो जाना चाहिए कि भारत उसकी किसी भी बहलाने-फुसलाने वाली चाल में नहीं फँसेगा और उसे उसके किए की सज़ा जल्द से जल्द देगा।

कश्मीरी छात्राओं की पत्थरबाजी और Pak-जिंदाबाद के नारों से गरमाया देहरादून का माहौल

एक तरफ जहाँ श्रीनगर में भारतीय सुरक्षाबल हेल्पलाइन नंबर देकर कोशिश कर रही है कि कश्मीर के लोगों को किसी भी तरह की मुसीबत का सामना न करना पड़े, वहीं कुछ कश्मीरी स्वयं ही अपनी ओछी हरकतों के कारण लोगों का गुस्सा अपनी तरफ आकर्षित करने का लगातार प्रयास कर रहे हैं।

ख़बर है कि देहरादून में पढ़ रही कई कश्मीरी छात्राओं ने हॉस्टल की छत से कैंडल मार्च में नारेबाजी करते हुए जाते लोगों पर न केवल पत्थर उछाले बल्क़ि पाकिस्तान के समर्थन में नारे भी लगाए। इसके बाद कश्मीरी छात्राओं की इस हरक़त से गुस्साए वहाँ के स्थानीय लोगों ने हॉस्टल को घेर लिया। ये घटना मांडूवाला रोड पर एक निजी संस्थान के पास बने हॉस्टल की है, जिसमें 24 कश्मीरी छात्राएँ रहती हैं।

हिन्दुस्तान अख़बार के हरिद्वार संस्करण में 17 फरवरी 2019 को प्रकाशित ख़बर

मामले में बढ़ती तनातनी को देखकर पाँच थानों की पुलिस को वहाँ मौक़े पर बुलाया गया। पुलिस की मौजूदगी में इन छात्राओं द्वारा भारत जिंदाबाद के नारे लगाने के बाद माहौल शांत हुआ और भीड़ वहाँ से हटी। घटनास्थल पर विधायक सहदेव पुंडीर भी पहुँचे।

घटना के विरोध में कार्रवाई की माँग को लेकर लोगों ने सुद्दोवाला सड़क पर जाम लगा दिया था। साथ ही मोमबत्तियाँ जलाकर बलिदान हुए जवानों को श्रद्धांजलि भी दी गई। पुलिस ने बाद में किसी तरह से लोगों को शांत कराते हुए जाम खुलवाया।

इसके अलावा आतंकी हमले के बाद प्रेमनगर क्षेत्र में भी कुछ कश्मीरी छात्रों की ऐसे पोस्ट सामने आए, जिसमें जवानों पर हुए हमले का समर्थन किया गया था। यह तीनों ही छात्र प्रेमनगर थाना क्षेत्रों के अलग-अलग संस्थानों से हैं। इन तीनों ही छात्रों को इनके संस्थानों से निकाल दिया गया है।

दून में रहते हुए देश विरोधी प्रतिक्रियाओं पर पुलिस ने मुकदमों को दर्ज करना शुरू कर दिया है। ऐसे छात्रों के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 505(2) के तहत मुकदमों को दर्ज किया जा रहा है। इस धारा में दोष सिद्ध होने के तहच पूरे पाँच साल की सज़ा होने का प्रावधान है।

5 अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा और सुविधाएँ वापस, सरकार का कड़ा कदम

पुलवामा आतंकी हमले के बाद सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी नेताओं के ख़िलाफ़ कड़े कदम उठाते हुए फ़ैसला लिया है कि इन नेताओं को सरकार की ओर से मिलने वाली सभी सुरक्षा और सुविधाएँ वापस ले ली जाएँ।

जम्मू-कश्मीर के उच्च अधिकारियों ने इस बात की जानकारी दी है कि अलगाववादी नेताओं में मीरवाइज़ फ़ारुक़, अब्दुल गनी भट, बिलाल लोन, शबीर शाह और हाशिम क़ुरैशी को उपलबध कराए गए सुरक्षा और वाहनों की सभी सुविधाएँ इस रविवार तक वापस ले ली जाएँगी।

इसके अलावा हिंदुस्तान में छपी ख़बर के मुताबिक अगर कोई और अलगाववादी है जिसे सभी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा रही हैं तो प्रदेश पुलिस मुख्यालय द्वारा इस पर समीक्षा की जाएगी। साथ ही तत्काल प्रभाव से उसकी सुरक्षा वापस ले ली जाएगी।

सरकार द्वारा लिए गए इस बड़े फ़ैसले के बाद हुर्रियत प्रेस कॉन्फ्रेंस की प्रतिक्रिया भी सामने आई है। मीरवाइज़ उमर फ़ारुक़ के नेतृत्व में हुई इस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि सरकार ने ख़ुद ही अलगाववादी नेताओं को सुरक्षा मुहैया कराने का फ़ैसला किया था, जिसकी कभी माँग नहीं की गई थी। उन्होंने कहा कि सुरक्षा वापस लेने के फ़ैसले से न तो अलगाववादी नेताओं के रुख़ में बदलाव आएगा और न ही इससे उनकी ज़मीनी हालातों पर कोई असर पड़ने वाला है।

इसके अलावा अलगाववादी नेता अब्दुल गनी भट का कहना है कि उन्हें राज्य द्वारा मिलने वाली सुरक्षा की कोई भी आवश्यकता नहीं है। भारत और पाकिस्तान में युद्ध के आसार हैं। प्रदेश सरकार द्वारा दी गई सुरक्षा की उन्हें कोई ज़रूरत नही हैं।

आप हमें पत्थर मारो… लेकिन हम आपकी रक्षा करेंगे: CRPF का संदेश, मानवता की सबसे बड़ी सीख

आज पुलवामा आतंकी हमले के बाद कश्मीर के लोगों से जुड़ी लगातार दो ख़बरें पढ़ीं। एक ख़बर जिसमें बताया जा रहा है कि दिल दहला देने वाले इस घटना में न केवल आतंकियों ने बल्कि पत्थरबाजों ने भी अपनी भूमिका अदा की है, और दूसरी ख़बर यह कि इस हमले के बाद सीआरपीएफ के जवानों ने संकट में फँसे हर कश्मीरी के लिए एक टॉल फ्री नंबर जारी किया है।

दोनों ख़बरों को पढ़ने के बाद समझ से परे है कि क्या लिखा जाए और क्या कहा जाए। जिन सीआरपीएफ जवानों के क़ाफ़िले पर हमला हुआ है, उसी क़ाफ़ीले के एक जवान ने इस बात की सूचना दी कि जिस समय यह धमाका हुआ है उससे 10 मिनट पहले से कुछ पत्थरबाज पथराव कर रहे थे। बाज़ार में लोग जल्दी-जल्दी दुकानों के शटर को गिरा रहे थे। लेकिन, जबतक गाड़ी में बैठे जवान इन सब चीज़ों को लेकर कुछ समझ पाते तब तक धमाका हो गया।

इस मामले में आगे जाँच में सामने आया कि सीआरपीएफ के क़ाफ़िले के बारे में आतंकियों को पहले से ही जानकारी थी। इसी वजह से उन्होंने हमले के लिए एक ऐसी जगह को चुना जहाँ पर अमूमन गाड़ियों की रफ़्तार कम हो जाती है। ज़ाहिर है यह सारी ख़बरें बिना किसी स्थानीय जानकार के इकट्ठा कर पाना नामुमकिन होगा। पत्थरबाज भी वहाँ के स्थानीय ही रहे होंगे, जिन्होंने हमले के पूरी ज़मीन तैयार करने में अपनी भूमिका को अदा किया।

अब ऐसे में दूसरी ख़बर में है कि सीआरपीएफ जवानों ने एक टॉलफ्री नंबर सिर्फ़ इसलिए जारी किया है क्योंकि पुलवामा हमले के बाद कश्मीर के लोगों को कथित तौर पर धमकियाँ मिल रही हैं। इन्हीं खबरों के मद्देनज़र श्रीनगर स्थित सीआरपीएफ हेल्पलाइन ने शनिवार (16 फ़रवरी) को कहा कि वे किसी भी तरह के उत्पीड़न के मामले में उनसे संपर्क करें।

साथ ही मददगार हेल्पलाइन ने भी इसी सिलसिले में ट्वीट करके कहा है कि इस समय कश्मीर से बाहर छात्र और आम लोग ट्विटर हैंडल @CRPFmadadgaar पर संपर्क कर सकते हैं। साथ ही किसी भी कठिनाई या उत्पीड़न का सामना करने में शीघ्र सहायता के लिए वे 24 घंटे टोल फ्री नंबर 14411 या 7082814411 पर SMS कर सकते हैं।

इन दोनों ख़बरों में निहित दो पक्षों की भावनाओं में जो विरोधाभास है वो लगातार सोचने पर मजबूर करता है, कि क्या इतने सब के बाद भी कश्मीर के पत्थरबाजों को समझ नहीं आता कि जवानों का होना न केवल देश के लिए बल्कि उनकी ख़ुद की सुरक्षा के लिए कितना आवश्यक है। आज जो सुरक्षाबल के लोग अपने जवानों को खोने के बाद भी उनकी सुरक्षा के लिए तत्पर हैं, वही कल को पत्थरबाजी का शिकार होंगे। देश का हर व्यक्ति इस बात को अच्छे से जानता है कि इस पूरे हमले में आतंकियों तक सूचनाएँ बिना किसी स्थानीय के नहीं जा सकती थी। तो सोचिए जवान इस बात को नहीं जानते होंगे क्या?

इतना सब होने के बावजूद भी तथाकथित लोग देश की सेना पर सवाल उठाना नहीं बंद करेंगे। कुछ अपने ही लोग सेना का सोशल मीडिया पर लगातार मजाक बनाएँगे और पकड़े जाने पर अभिव्यक्ति की आज़ादी का हवाला देंगे। ऐसे लोग भूल जाएँगे कि जैश-ए-मोहम्मद जैसे कई आतंकी संगठन भारत को मिटाने के लिए अपना निशाना साधे बैठे हैं। जो मौक़ा मिलते ही अपने मनसूबों पर फ़तह हासिल करना चाहते हैं।

सोचिए, अगर यही सेना के जवान आपकी पत्थरबाजी और उठाए सवालों से तंग आकर सीमा से हट जाएँ… तो कैसे बचेंगे आप और कैसे सुरक्षित रहेगी आपकी अभिव्यक्ति की आज़ादी? अगर सेना ही आपकी और देश की सीमाओं की रक्षा करना बंद कर दे तो इन आतंकियों से कैसे कोई नेता और संविधान की कोई धारा आपकी रक्षा कर पाएगी, सोचिए जरा। सीमा पर तैनात जवान अगर ड्यूटी करना छोड़ दे तो इन आतंकियों के ख़िलाफ़ कोई न्यायालय आपकी शिक़ायत और गुहारों को न ही सुन पाएगा और न ही मामला दर्ज कर पाएगा। इसलिए थोड़े मतलबी होकर समय रहते सुरक्षाबलों की एहमियत को पहचानिए, कहीं देर न हो जाए।

नाबालिग से यौन शोषण: पादरी को 20 साल की सज़ा, ₹2 लाख जुर्माना

केरल के कोट्टियूर में 16 साल की नाबालिग के साथ रेप करने पर थलास्सेरी स्थित विशेष अदालत ने शनिवार (फरवरी 17, 2019) को चर्च के पादरी रॉबिन वड़ाक्केनचेरिल के लिए 20 साल की सज़ा तय की है। साथ ही पादरी पर दो लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है।

ख़बरों के मुताबिक इस दुष्कर्म में आरोपित फॉदर के अलावा अन्य छह लोग (4 नन, 1 पादरी और 1 कर्मचारी) भी शामिल थे। जिन्हें शनिवार को बरी कर दिया गया। लेकिन, फॉदर रॉबिन को अदालत ने पूरे मामले का दोषी करार दिया।

पीड़िता द्वारा दर्ज कराए गए बयान के अनुसार यह घटना 2016 में हुई थी, इसके बाद 2017 में नाबालिग ने एक निजी हॉस्पिटल में बच्चे को जन्म भी दिया था। खबरों के मुताबिक यह पूरा मामला नाबालिग के जन्म प्रमाण-पत्र के कारण सामने आया। जिसमें साफ़ था कि जिस समय लड़की के साथ दुष्कर्म हुआ उस समय उसकी उम्र 16 साल थी।

इसके अलावा नाबालिग के बच्चे का डीएनए भी फॉदर रॉबिन के डीएनए से मिलता है। इससे साबित होता है कि उसका यौन शोषण पादरी ने ही किया था।

बता दें कि फरवरी 28, 2017 में रॉबिन को उस समय पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किया गया, जब वो कनाडा भागने की फ़िराक में था।

‘हमलावर धोनी का फैन’, ‘हमले के लिए सेना जिम्मेदार’: यही है कॉन्ग्रेस की हक़ीक़त

पूरी दुनिया जब वैलेंटाइन मना रही थी, हमारा देश मातम में डूब गया था। लोग सदमे में थे। जो शहीद हुए, जो ज़ख्मी थे… उनकी पीड़ा पर क्या कहा जाए और क्या लिखा जाए… सोच से परे है, शब्द नहीं है! लेकिन एक ज़ख्म और लगा था उस दिन – ऐसा ज़ख्म जिस पर चर्चा की जा सकती है और हम सबको करनी भी चाहिए। वो ज़ख्म था – भारत की सुरक्षा पर चोट, हर नागरिक के दिल में उठती टीस वाला ज़ख्म। वो ज़ख्म था – आतंकियों का अट्टाहास – हम तुम्हें ऐसे ही मारेंगे और घुस कर मारेंगे।

लेकिन यह हुआ कैसे? यह होता क्यूँ आ रहा है? आख़िर यह रूकेगा कब – क्या कभी नहीं? कुछ सवालों को अपने अंदर खंगालिए, आस-पास की राजनीति से उसे जोड़िए – तो ऐसी हर घटना के पीछे आपको एक विभीषण दिखाई देगा। उस विभीषण का एक्कै मकसद है – वोट-बैंक। उसका एक्कै रास्ता है – मुस्लिम तुष्टिकरण। और उसका एक ही नाम है – कॉन्ग्रेस।

ज्यादा बोल गया! एकदमे भक्त हूँ! झूठा आरोप लगा रहा हूँ? पाठक होने के नाते कुछ ऐसे सवाल आप मुझ पर या हर लिखने-बोलने वाले पर भी जरूर उठाइए। किसी पर भी अंधा भरोसा मत कीजिए। क्योंकि मीडिया का एजेंडा सेट है। चौथे खंभे की आड़ में हर जगह ‘धंधा’ चालू है। ख़ैर! पहले इस स्क्रीनशॉट को देखिए।

मुझ पर दागे गए सवालों का जवाब है यह स्क्रीनशॉट। लेकिन मेरा वजूद कुछ भी नहीं। असल में यह स्क्रीनशॉट है कॉन्ग्रेस की राजनीति का वो काला चिट्ठा, जो वह पिछले 70-72 सालों से खेलती आई है। यह स्क्रीनशॉट है मीडिया की वो बजबजाती गंदगी, जहाँ आतंकी कभी हेडमास्टर का बेटा बन जाता है तो कभी धोनी का फैन! हो सके आपमें से बहुतों को नेशनल हेराल्ड के बारे में नहीं पता हो। क्योंकि यह पता करने और पढ़ने के लायक है भी नहीं। बस जानकारी रखिए कि यह कॉन्ग्रेस की वेबसाइट है। यह वही नेशनल हेराल्ड है, जिसके घोटाले की आँच ‘युवा’ नेता और कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल से लेकर उनकी माता सोनिया तक कब का पहुँच गई है।

पार्टी मुस्लिम-तुष्टिकरण करे और नेताजी लोग चुप बैठें, यह संभव नहीं। लोकसभा चुनाव सर पर हो तब तो नामुमकिन ही। ऐसे में कॉन्ग्रेस की एक पूर्व सांसद हैं – बेगम नूरबानो। उन पर पार्टी से टिकट लेने का (पार्टी को खुश करके) शायद भूत सवार होगा। तभी तो पुलवामा अटैक के लिए सेना को लापरवाह और जिम्मेदार दोनों ही ठहरा दिया। एक सिद्धू हैं, उन्होंने पाकिस्तान को आतंकवादी देश मानने से ही मना कर दिया।

साभार: रिपब्लिक भारत

अब जरा सोचिए! जिस पार्टी की ऐसी राजनीतिक सोच रही हो और जिसने लगभग 60 सालों तक इस देश पर राज किया हो, वहाँ की अच्छी-खासी जनता भला क्यों न हाहा करे जवानों की मौत पर! कोई संपादक भला क्यों न संवेदना की जगह व्यक्तिगत घृणा थोपे!