Monday, October 7, 2024
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वन्दे भारत एक्सप्रेस: ट्रेन-18 से ट्रेन-20 का सफर तय करते हुए बुलेट ट्रेन चलाना है!

अवसर था “वंदे भारत एक्सप्रेस” की पहली यात्रा का। वन्दे भारत एक्सप्रेस अर्थात ट्रेन-18 मतलब 2018 में बनी भारत की पहली सेमी हाई स्पीड ट्रेन। इसकी पहली यात्रा अर्थात अत्याधुनिक अंतरराष्ट्रीय ट्रेन सुविधाओं का अपने ही देश में गवाह बनने का पहला मौका। यह यात्रा मेक इन इंडिया के तहत देश में उन्नत ट्रेन संचालन की गौरव यात्रा भी थी, साथ ही ट्रेन के विकास का अगला पड़ाव भी तो भला कैसे छोड़ देता, बनते हुए इतिहास के इस प्रस्थान विन्दु का साक्षी होने का मौका।

सुबह जल्दी से तैयार होकर निर्धारित समय से पहले ही स्टेशन पहुँच गया था। थोड़ा डरा भी था कि पुलवामा की घटना की वजह से आज की यात्रा ही कहीं कैंसिल न हो जाए। तभी खबर आई कि प्रधानमंत्री सुरक्षा पर आपात मीटिंग के बाद निर्धारित समय पर ही इस ट्रेन को हरी झंडी दिखाएँगे।

मेरे मन में अनायास पूरा रेलवे सिस्टम घूम रहा था कि कैसे पहले गंदे स्टेशन हुआ करते थे? ट्रेन की लेटलतीफ़ी का क्या अब भी वही हाल है? बदबूदार फिनायल, जहाँ-तहाँ फेंका कूड़ा कचरा, टीटी की अवैध वसूली? क्या सब वैसा ही होगा या प्रधानमंत्री के कार्यकाल में कुछ बदला भी है? पता नहीं क्यों आज मन एक पत्रकार की नज़र से कम और एक आम उपभोक्ता की नज़र से ज़्यादा इस पूरे बदलाव व हालात को देखना और समझना चाहता था, तो इस ट्रेन यात्रा में मेरे अंदर का सामान्य रेल-यात्री हावी रहा।

सब अपनी गति से हो रहा था। वन्दे भारत एक्सप्रेस सामने थी और मैं बोर्ड होने के इंतज़ार में बाहर। वह पल भी आया जब ट्रेन के स्वचालित दरवाजे खुले, पावदान बाहर आया, सिक्योरिटी चेक के बाद ट्रेन में पहले कदम की आहट से ही कुछ अलग महसूस होने लगा था। लग ही नहीं रहा था कि ये सब अपने देश में सम्भव है? इस यात्रा की शुरुआत से पहले मेरे संपादक अजीत भारती ने अपने बीजिंग और मॉस्को यात्रा में वहाँ के ट्रेनों के बारे में कई किस्से सुनाए थे। दिल्ली की मेट्रो ट्रेन की सुविधाओं का मेरा ख़ुद का अनुभव भी साथ था। ऐसे में मेरे अंदर कुछ सवाल भी चल रहे थे। जैसे – मेरे अंदर के आम आदमी को क्या महसूस हो रहा है? क्या उसकी अवधारणाएँ इस यात्रा के बाद बदलने वाली हैं भारतीय रेल परिवहन तंत्र के बारे में? इन्हीं सवालों के साथ चलिए आप भी एक आम रेल यात्री की नज़र से वंदे भारत एक्सप्रेस का जायज़ा लीजिए।

जितना सुना था ट्रेन-18 के बारे में, सबसे पहले उसे चेक कर लेना चाहता था। सीट आरामदायक है कि नहीं? बैठने में तो ठीक लग रहा लेकिन लम्बी यात्रा में कैसा लगेगा? मन ने कहा ये बाद में पता चलेगा, इसे छोड़ बाकि का देख। फिर क्या था, एक के बाद एक पड़ताल होने लगी।

लाइट टच करते ही जल गई थी। फिर टच किया तो बुझ गई। मतलब ये जो डेडिकेटेड लाइट सिस्टम है, सेंसर बेस्ड है। कर्टेन का अलग ही लुक है, ट्रांसपेरेंट मगर आकर्षक। तभी ख्याल आया सामान कहाँ रखना है? देखा तो हर सीट के ऊपर भरपूर सामान रखने की व्यवस्था। सामान रखा ही था कि गायब होने का डर भी सताने लगा। ख़ासतौर जब हम अकेले यात्रा करते हैं तो पहला डर तो यही होता है कि सामान सुरक्षित रहे बस! तभी हर जगह लगे CCTV कैमरे पर नज़र गई तो बात समझ आ गई कि सुरक्षा न सिर्फ़ आपके सामान की बल्कि रेलवे की प्रॉपर्टी की भी पुख्ता होगी। मुझे महामना एक्सप्रेस की बात याद आ गई कि कैसे कुछ लोगों ने उसकी पहली यात्रा में ही बाथरूम से मग खोल लिया था, तो कुछ को जो आकर्षक लगा वह उसे ही ज़्यादा छेड़ने लगा था। तब गुस्सा भी आया था कि कैसे कोई सरकार यहाँ अंतरराष्ट्रीय सुविधाएँ मुहैया कराए? लोगों ने गतिमान एक्सप्रेस को भी नहीं छोड़ा था, हेडफोन तक गायब कर दिए थे।

सोचा जल्दी से पूरे ट्रेन का एक राउंड लगा लिया जाए। आगे दूसरे डब्बे के लिए बढ़ा ही था कि सामने का काँच का दरवाजा स्वतः खुल गया और जैसे ही पार हुआ वो बंद। मतलब कनेक्टिंग डोर भी सेंसर युक्त। आगे दरवाजे के बगल में ही अत्याधुनिक फ़ूड स्टोरेज एंड सर्विसिंग सिस्टम से भी परिचय हुआ, जिसमें अवन, फ्रीज़, बॉयलर के साथ-साथ सर्विसिंग की हर ज़रूरी सुविधा दिखी।

वहीं पास ही एक तरफ वेल ड्रेस्ड डेडिकेटेड क्लीनिंग एंड कैटरिंग स्टाफ भी दिखा – पूरी तरह सेवा के लिए मुस्तैद। पास खड़े एक स्टाफ ने एमर्जेन्सी स्पीक सिस्टम के बारे में भी बताया। हम फट से समझ गए कि ई जंजीर खींचने का विकल्प है। पहले लोग यूँ ही ज़ंजीर खींच, ट्रेन की टाइमिंग का बेड़ा गर्क करते थे। अब इस सिस्टम से, पहले ट्रेन के ड्राइवर (कैप्टेन) को बताना होगा कि मामला क्या है? ज़रूरी लगने पर ही ट्रेन रोकी जाएगी। हमारे देश में ट्रेन की टाइमिंग गड़बड़ होने का एक बड़ा कारण चेन पुलिंग भी है।

सोचे बाथरूम भी चेक कर लिया जाए। देखे तो बाथरूम हाईटेक के साथ ही बहुत अलग लगा। रेलवे में मुझे पहले बाथरूम ही सबसे ख़राब दिखता था। पहली बार सेंसर बेस्ड बाथरूम की फिटिंग ट्रेन में देखने का अवसर मिला। दोनों तरफ नज़र दौड़ाया तो टॉयलेट फिजिकली चैलेंज़्ड लोगों के लिए भी सुविधाजनक बनाया गया है, साथ ही दूसरी तरफ वेस्टर्न फिटिंग वाला भी।

इतना बताते-बताते एक बात तो भूल ही गया! पूरी ट्रेन वाई-फाई सुविधा से युक्त है, साथ ही सामूहिक इंफोटेनमेंट स्क्रीन भी लगा है। इसके साथ ही यात्री अपने मोबाइल या अन्य डिवाइस पर भी रेलवे के इंफोटेनमेंट सिस्टम का आनंद उठा सकते हैं।

अब बारी थी एग्जीक्यूटिव क्लास की। पता लगा पूरी ट्रेन में केवल दो डब्बा ही एग्जीक्यूटिव क्लास का है बाकि पूरी ट्रेन कम पैसे में बेहतरीन सुविधाओं से युक्त है। एग्जीक्यूटिव क्लास की सीटें 180 डिग्री रोटेट कर रही थीं। यानि सुविधानुसार खुद मत घूमिए बल्कि सीट ही घुमा लीजिए। फिर कीजिए आपस में बातचीत या बिजनेस मीटिंग – दोनों सुविधाजनक।

यहाँ भी बैठकर चेक किया। सीट आरामदायक होने के साथ थोड़ा ज़्यादा स्पेसियस भी थी, आगे-पीछे भी स्लाइड हो रही थी। बाकि सुविधा तो पूरे ट्रेन में समता के भाव से बिना भेद-भाव के बँटी है अर्थात सेम है।

अब बारी थी खाने की। नाश्ता और चाय दोनों देखकर लग रहा था कि हम रेलवे में सफर कर रहें हैं या किसी रेस्टॉरेंट में बैठे हैं! मतलब उम्दा थी – सर्विस भी और क़्वालिटी भी। समय बीतने के साथ लंच आया तो वो भी कमाल का। चूँकि ट्रेन रास्ते में दो प्रमुख स्टेशनों पर विशेष कार्यक्रम के लिए ठीक-ठाक समय तक रुकी तो डिनर का भी समय आ गया। फिर जैसे ही पिंड बलूची का डिनर हाथ आया, मज़ा गया।

बीच में मौका निकालकर इंजन तक भी हो आया। वहाँ कुछ और बातें भी पता चलीं। जैसे वन्दे भारत एक्सप्रेस से ट्रेन संचालन के इतिहास में प्लेन की तरह पहली बार ‘ट्रेन कैप्टेन’ इस ट्रेन से इंट्रोड्यूस हुआ। कोई एक इंजन ट्रेन को नहीं खींच रहा और न ही इसमें कोई अलग से इंजन लगाने का सिस्टम है बल्कि हर डब्बे में ट्रेन को आगे बढ़ाने का सिस्टम है। सभी डब्बों के सामूहिक प्रयास से ही ट्रेन 180 किलोमीटर की औसत गति सीमा को छू सकती है। फ़िलहाल अभी चूँकि ट्रेन ट्रैक अपडेट नहीं हुआ है तो कहीं 130 तो कहीं 110 किलोमीटर की रफ़्तार से चल रही है। जैसे ही ट्रैक अपडेट हो जाएगा और कुछ घनी आबादी वाली जगहों पर बाड़ लग जाएगा तो ट्रेन अपनी उच्चतर क्षमता से चलेगी।

पिछले साल घटी पंजाब की घटना से हमने सोचा कि ब्रेक के बारे में भी पूछ ही लिया जाए तो केबिन के सूचना प्रदाता ने हमें बताया कि ब्रेक इतना पावरफुल है कि एमर्जेन्सी ब्रेक से हाई स्पीड गाड़ी को बिना जर्क के 600 मीटर के दायरे में रोका जा सकता है। एक बात और ट्रेन के अंदर शायद ही आपको यह महसूस हो कि ट्रेन की स्पीड इतनी ज़्यादा है। ट्रेन जर्क फ्री होकर छुक-छुक ट्रेन के अपने मुहावरे को बदलने को तैयार है।

ट्रेन-18 जारी, ट्रेन-20 की बारी

ख़ास बात ये भी थी इस यात्रा की कि रेल मंत्री ख़ुद भी हम लोगों के साथ ही ट्रेन में सवार थे। उनसे मिलने और बात करने का मौका भी मिला। बात आगे बढ़ी तो रेल मंत्री पीयूष गोयल ने प्रधानमंत्री का सपना साझा करते हुए बताया, “आने वाले दौर में जल्द ही ऐसे 30 और सेमी हाई स्पीड ट्रेनों को चलाने की तैयारी है। ट्रेन-18 सीरीज के स्लीपर ट्रेन भी आएँगे, फिर 2020 तक ट्रेन-20 और साथ ही भारत के विस्तृत क्षेत्र को बुलेट ट्रेन से जोड़ देने का भी प्रधानमंत्री का सपना है।”

रेल मंत्री ने बताया, “भारतीय मेधा ने मात्र 97 करोड़ रुपए की लागत में रिकॉर्ड 18 महीने में ट्रेन-18 का निर्माण किया है। एक ट्रेन को मेक इन इण्डिया के तहत बनाकर हमारे देश के इंजीनियरों ने देश का 100 करोड़ रुपए से ज़्यादा का राजस्व बचाया है। देश ने जिस तरह से वन्दे भारत एक्सप्रेस के प्रति उत्साह दिखाया है, हम जल्द ही ऐसे 100 और ट्रेनों के निर्माण को हरी झंडी दिखाने की तैयारी कर रहे हैं। देश में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के साथ ही हर क्षेत्र में रोजगार और देश के समुचित बुनियादी विकास को गति मिलेगी। हमारा लक्ष्य नॉर्थ ईस्ट सहित सम्पूर्ण भारत के विकास को गति देना है।”

कुल मिलाकर, आम रेल यात्री के नज़रिए से वंदे भारत एक्सप्रेस की यह यात्रा बेहद शानदार रही लेकिन एक बात थोड़ी खटकी भी। ट्रेन में ज़्यादातर लोग बड़े पत्रकार, संपादक तमाम नामी-गिरामी लोग थे। लेकिन मुझे जो बात बुरी लगी वो था लोगों का आज इतने जागरूकता अभियानों के बाद भी सफ़ाई के प्रति लापरवाह होना। प्लेट, रैपर, पेपर कप आदि को यहाँ-वहाँ फेंक देना, या पास में ही तुरंत कहीं ठिकाने लगा देने की जल्दबाजी। यह ख़राब आदत जो वर्षों से इस कदर जड़ हो चुकी है कि बदलने का नाम ही नहीं ले रही। जब इतने उच्च वर्गीय लोगों का यह हाल है तो पता नहीं आने वाले समय में बाकि जनता किस तरह से इन संसाधनों का उपयोग करे! क्योंकि तब तक कोई भी मिशन कारगर अंजाम तक नहीं पहुँच सकती जब तक उसके दायरे में आने वाला हर शख़्स उसमें अपना समुचित योगदान न दे।

अगली कड़ी में मेरे अंदर का एक पत्रकार आपको बताएगा वंदे भारत एक्सप्रेस से जुड़ी कुछ ऐसी बातें भी, जो भारत में रेलवे का पूरा अनुभव बदलने वाली है।

वंदे भारत एक्सप्रेस अपने पहले कमर्शियल रन के लिए हुई रवाना

वंदे भारत एक्सप्रेस के रूप में भारत ने विकास की गति में एक नई उपलब्धि को हासिल किया है। शुक्रवार (फरवरी 15, 2019) को पीएम मोदी ने इसे हरी झंडी दिखाकर इसकी शुरुआत की थी। इसके पहले कमर्शियल रन की शुरुआत आज से यानी 17 फरवरी से होनी थी, जोकि शुरू हो चुकी है।

रेलमंत्री पीयूष गोयल ने इस बारे में ट्वीट करके जानकारी दी है कि वंदे भारत एक्सप्रेस अपने पहले कमर्शियल रन के लिए दिल्ली से वाराणसी के लिए रवाना हो चुकी है।

पीयूष गोयल ने ट्वीट में बताया कि इस ट्रेन की आने वाली दो हफ्तों की टिकटें पहले ही बिक चुकी हैं।

रेलमंत्री ने इस ट्रेन पर बातचीत में बताया कि अगले साल तक इस ट्रेन के लिए 30 नए ट्रैक बनेंगे।

इस ट्रेन के बारे में आपको बता दें कि यह भारत की पहली इंजनलेस ट्रेन (मतलब अलग से इंजन जैसा कॉन्सेप्ट नहीं है बल्कि हर एक बोगी अपने-आप में एक इंजन है और पूरी ट्रेन एक यूनिट के समान चलती है) है। मेक इन इंडिया की उम्मीदों पर सफलता पूर्वक खरी उतरती हुई इस ट्रेन को पायलट द्वारा संचालित किया जा रहा है।

How’s The Khauf: पाकिस्तान ने LoC के पास आतंकियों के लॉन्च पैड्स कराए खाली

पुलवामा हमले के बाद भारत के कड़े रुख़ से पाकिस्तान डर गया है। सर्जिकल स्ट्राइक + के डर से उसने नियंत्रण रेखा (LoC) के पास लॉन्च पैड्स से अपने आतंकवादियों को सेना के शिविरों में स्थानांतरित करना शुरू कर दिया है। आपको बता दें कि हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कड़ा रवैया अपनाते हुए कहा था कि जैश-ए-मोहम्मद के इस आत्मघाती हमले का जवाब देने के लिए सैन्य बलों को पूरी छूट दे दी गई है।

ख़बरों के अनुसार, कश्मीर में टॉप इंटेलिजेंस ने बताया है कि सरहद के दोनों ओर तनाव जारी है लेकिन किसी तरह की तैनाती नहीं की गई है और फिलहाल नियंत्रण रेखा के पार बने आतंकियों के लॉन्च पैड्स पर कोई स्ट्राइक करने का लक्ष्य नहीं है। एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि ऐसे में भारतीय सेना के पास पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों पर कार्रवाई करने का विकल्प बचता है लेकिन उससे तनाव और भी बढ़ सकता है।

बता दें कि पाकिस्तान ने इस साल अपने विंटर पोस्ट्स को खाली नहीं कराया है इसलिए माना जा रहा है कि वह आतंकवादी हमलों के जवाब में कार्रवाई की संभावना मान रहा है। सूत्रों के मुताबिक कम से कम 50-60 विंटर पोस्ट, जो इस वक्त तक खाली करा लिए जाते थे, फिलहाल वहाँ पाकिस्तानी सैनिक तैनात हैं।

Fact Check: झूठ फैलाकर मनीष सिसोदिया ने दिखाई फ़र्ज़ी देशभक्ति, लोगों ने लगाई ‘लताड़’

पुलवामा अटैक के बाद मोदी सरकार ने पाकिस्तान को चौतरफा घेरने के लिए ताबड़तोड़ और कड़े फै़सले लिए हैं। इन्हीं फ़ैसलों में से एक है – पाकिस्तान से भारत को निर्यात किए जाने वाले सामानों पर बेसिक कस्टम ड्यूटी को 200% तक बढ़ाना।

जब यह ख़बर आई तो इंडियन एक्सप्रेस के ट्विटर हैंडल से इसे ट्वीट किया गया। दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री और AAP नेता ने केंद्र सरकार के इस फ़ैसले का स्वागत करते हुए एक ट्वीट किया। लेकिन इसी ट्वीट में उन्होंने राजनीति भी घुसेड़ दी। और यहीं सब गुड़-गोबर हो गया।

मनीष सिसोदिया ने इसी ट्वीट में प्राइवेट कंपनी अडानी द्वारा पाकिस्तान को बिजली सप्लाई किए जाने पर सवाल उठाए। सिसोदिया के अनुसार अडानी को यह बिजली अपने ही देश में वितरित करनी चाहिए, क्योंकि हमारे यहाँ भी बिजली की कमी है।

AAP नेता सिसोदिया के ट्वीट का तर्क कहीं से भी गलत नहीं है। बल्कि गलत है उनका पूरा ट्वीट। भारतीय कंपनी अडानी ने मनीष के ट्वीट पर ही रिप्लाई करते हुए पाकिस्तान को बिजली सप्लाई करने की बात का खंडन किया। साथ ही उन्हें गलत और गैर-ज़िम्मेदार स्टेटमेंट को डिलीट करने को भी कहा।

अडानी के ऑफिशियल ट्विटर अकाउंट से आए जवाब के बाद मनीष सिसोदिया ने ट्वीट तो डिलीट कर लिया लेकिन सोशल मीडिया-‘वीरों’ ने उनकी जमकर क्लास ले ली। चूँकि सिसोदिया द्वारा ट्वीट डिलीट किया जा चुका था, इसलिए ट्विटर से लेकर फेसबुक तक अडानी के ट्वीट और AAP मंत्री के स्क्रीनशॉट लोगों ने जमकर शेयर किए। फ़र्ज़ी देशभक्ति के नाम पर झूठ परोसने और किसी पर कुछ भी आरोप लगाने के लिए लोगों ने उप-मुख्यमंत्री को जमकर लताड़ा।

आम आदमी पार्टी की पूरी जमात ही झूठ की बुनियाद पर पैदा हुई है। झूठ ही इनकी राजनीति रही है। इनका कॉन्सेप्ट क्लियर है – ‘हम AAP के लोग हरिश्चंद्र की संतान हैं, जो हमसे अलग हैं वो झूठ के पुलिंदे।’ ऐसे ब्रह्म वाक्य वाले नेताओं के लिए पुलवामा हो या करगिल, राजनीति को छोड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है।

पाकिस्तान के आर्मी अस्पताल से पुलवामा अटैक का आया था निर्देश

पुलवामा आतंकी हमले का पूरा दारोमदार पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने लिया है। इस संगठन के सरगना मसूद अज़हर ने ही पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित आर्मी बेस अस्पताल में बैठकर अपने आतंकियों को सीआरपीएफ जवानों के काफ़िले पर आत्मघाती हमले के निर्देश दिए थे।

जानकारी के अनुसार, अज़हर ने अस्पताल से एक ऑडियो जारी करके इस हमले का आदेश दिया। अज़हर का पिछले चार महीने से आर्मी बेस अस्पताल में इलाज चल रहा है। अपनी बीमारी की वजह से मसूद यूजेसी (यूनाईटिड जिहाद काउंसिल) की 6 प्रमुख बैठकों का हिस्सा भी नहीं बन पाया। यूजेसी के बारे में आपको बता दें कि यह भारत के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किए जाना वाला जिहादी संगठन है। जिसको पाकिस्तान द्वारा संरक्षित किया जाता रहा है।

खबरों के मुताबिक जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी इस हमले के लिए आठ दिन पहले ही तैयार हो गए थे, जिसके बाद अज़हर ने धीमी आवाज़ में अपने संगठन के आतंकियों के लिए ऑडियो संदेश जारी किया था।

इस ऑडियो में मसूद अज़हर ने जैश संगठन के आतंकियों से अपने भतीजे उस्मान की मौत का बदला लेने की बात कही थी। ये वही उस्मान है जिसे पिछले साल 2018 में भारतीय सुरक्षाबलों ने मार गिराया था।

ऑडियो में अज़हर को यह भी कहते सुना गया कि इस हमले में होने वाली मौत से आनंददायक और कुछ भी नहीं। मसूद द्वारा जारी ऑडियो में वो फिदायीन हमलावार को भारत के ख़िलाफ़ भड़काते हुए भी सुना गया।

इसके अलावा ख़बरें हैं कि अज़हर ने जिहादी काउंसिल के लिए ख़ुफ़िया ढंग से अपने दूसरे भतीजे मोहम्मद उमैर और अब्दुल राशिद गाजी को नियुक्त किया है। इनका काम युवकों का ब्रेनवॉश करके उन्हें फिदायीन हमलों के लिए तैयार करना होगा।

कश्मीर के टॉप इंटेलिजेंस अफ़सर की मानें तो कश्मीर में इस समय क़रीब जैश-ए-मोहम्मद के 60 आतंकी काम कर रहे हैं, जिसमें से 35 तो पाकिस्तान से हैं और बाक़ी स्थानीय क्षेत्रों से हैं।

Exclusive: ‘वन्दे भारत एक्सप्रेस’ में रेल मंत्री के साथ यात्रा की कहानी, Photo की जुबानी

मैंने पहले भी कई ट्रेन यात्राएँ की हैं और कल मेक इन इंडिया के तहत बनाई गई ट्रेन “वन्दे भारत एक्सप्रेस” से दिल्ली से वाराणसी तक की पहली यात्रा का एहसास बेहद ख़ास और आनंददायक रहा। मेक इन इण्डिया के तहत इंटीग्रल कोच फैक्ट्री चेन्नई में निर्मित बदलते भारत की तस्वीर पेश करती वन्दे भारत एक्सप्रेस में ऐसी कई खूबियाँ हैं, जो ट्रेन यात्रा को सुगम, समयबद्ध और आरामदायक बनाते हुए दिल्ली से वाराणसी की यात्रा को महज़ 8 घंटे में समेट देती है। पहले हमने ऐसी ट्रेनों के बारें में सिर्फ सुना था, और अब एक युवा पत्रकार के रूप में मात्र 18 महीने में साकार हुए प्रधानमंत्री के सेमी हाई स्पीड ट्रेन के, सपने से हक़ीक़त की यात्रा का गवाह भी हूँ।

वन्दे भारत एक्सप्रेस

इस यात्रा में इस बात से भी भारत की मेधा के प्रति गर्व हुआ कि मात्र 97 करोड़ रुपए में निर्मित भारत की पहली सेमी हाई स्पीड ट्रेन-18 अर्थात वन्दे भारत एक्सप्रेस आने वाले समय में ट्रेन-20 की आधारशिला भी है। अगर इसे आयात करते तो इसकी लागत 200 करोड़ रुपए से ज़्यादा आती।

ट्रेन कैप्टेन के साथ हाईटेक ट्रेन की संचालन तकनीक

अत्याधुनिक तकनीक से सुसज्जित इस ट्रेन में एक यात्री के रूप में मैंने जिन ख़ासियत को देखा और महसूस किया, उससे आपका परिचय कराता हूँ। सबसे पहले स्वागत होता है ऑटोमेटेड पायदान से लेकर स्वचालित दरवाज़ों से। फिर बारी आई चेयर कार की सीटिंग व्यवस्था का।

चेयर कार : किफ़ायती किराए में अंतरराष्ट्रीय सुविधाएँ

आरामदायक सीट, लम्बे समय तक बैठने में बेहद सुकून देने वाला, ऐसा डिज़ाइन जिसमें बैठते समय रीढ़ सीधी रहती है। ग्रिप ऐसी कि कमर दर्द जैसी कोई परेशानी नहीं। हर सीट के साइड में मोबाइल, लैपटॉप चार्जिंग की सुविधा।

एग्जीक्यूटिव चेयर कार

एग्जीक्यूटिव चेयर कार में 180 डिग्री घूमने वाली सीट, जिससे किसी भी दिशा में घूमकर, पूरा परिवार आराम से बातचीत कर सकता है। बिज़नेस मीटिंग के लिए भी बेहद सुविधाजनक। पूरी ट्रेन में सेंसर बेस्ड लाइटिंग सिस्टम, पर्सनल रीडिंग लाइट भी।

दोनों तरफ भरपूर लगेज रखने की सुविधा के साथ इंफोटेनमेंट पैकेज भी

यात्रा को आनंददायक बनाने के लिए इंफोटेनमेंट स्क्रीन के साथ, फ्री वाई-फाई की सुविधा भी है। आप अपने पर्सनल डिवाइस पर ट्रेनमीडिया से कनेक्ट कर अपनी पसंद के अनुसार इंफोटेनमेंट का मज़ा ले सकते हैं। CCTV कैमरे से पुख़्ता सुरक्षा व्यवस्था, ऑटोमेटिक सेंसर आधारित कनेक्टिंग डोर। जैसे ही आप दरवाजे की तरफ बढ़ेंगे तो खुल जाएगा और पार होते ही स्वतः बंद।

अत्याधुनिक सफाई व्यवस्था

ट्रेन को साफ-सुथरा बनाए रखने के लिए हर डब्बे में अलग-अलग क्लीनिंग स्टाफ।

अत्याधुनिक स्टोरेज सिस्टम

बीच में अनावश्यक व्यवधान न हो, उसके लिए हर डब्बे का अलग से अत्याधुनिक फ़ूड स्टोरेज एंड डेडिकेटेड सर्विस सिस्टम।

सर्विसिंग का अनोखा अन्दाज

अच्छी चाय के साथ, पौष्टिक नाश्ता, स्वादिष्ट और उच्च गुणवत्ता का लंच एंड डिनर।

बेहतरीन फूड

बेहतरीन लेग स्पेस के साथ, कम्फर्टेबल फूट स्टैंड, साथ ही पर्सनल डेस्क भी।

दो सीटों के बीच पर्याप्त गैप

कुल मिलाकर, वन्दे भारत एक्सप्रेस की पहली ही यात्रा में मेरा अनुभव शानदार रहा। पूरे रूट पर लोगों से मिले सुखद रिस्पॉन्स से रेल मंत्री पीयूष गोयल भी गदगद दिखे। जल्द ही ऐसी तीस और ट्रेनों के निर्माण में तेजी लाने का आश्वासन भी दिया ताकि देश का हर हिस्सा यातायात की अत्याधुनिक सुविधाओं का लाभ ले सके।

ट्रेन में सहयात्री मुरली मनोहर जोशी एवं रेल मंत्री पीयूष गोयल

हालाँकि, एक दिन पहले ही घटी पुलवामा की घटना की वजह से ट्रेन में जश्न का माहौल कम और CRPF के जवानों के प्रति सम्मान का भाव ज़्यादा रहा। रेल मंत्री ने खुद कहा, “एक तरफ जहाँ देश शहीदों के प्रति दुःख में डूबा है, वहीं निर्धारित समय पर इतने लम्बे रुट पर ट्रेन का संचालन ऐसे मानवता के दुश्मनों को सन्देश भी है कि भारत किसी से डरने वाला नहीं है, न रुकने वाला, जब जो ज़रूरी होगा कठोर से कठोर निर्णय भी लिया जाएगा।”

रॉबर्ट वाड्रा की गिरफ़्तारी पर रोक की अवधि 2 मार्च तक बढ़ी

शनिवार को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने सोनिया गाँधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और एक अन्य आरोपी मनोज अरोड़ा की मनी लॉन्ड्रिंग मामले में अंतरिम ज़मानत बढ़ा दी। ताजा जानकारी के अनुसार वाड्रा की अंतरिम ज़मानत 2 मार्च तक बढ़ा दी गई है।

ख़बरों के मुताबिक, रॉबर्ट वाड्रा मनी लॉन्ड्रिंग मामले में अपनी अग्रिम जमानत याचिका के सिलसिले में आज सीबीआई की विशेष अदालत में पेश हुए थे। वाड्रा को दी गई अंतरिम जमानत शनिवार को समाप्त होने वाली थी। ईडी के अधिकारियों ने इस मामले की पूछताछ में रॉबर्ट वाड्रा द्वारा सहयोग न किए जाने के संबंध में शिक़ायत की थी।

विशेष लोक अभियोजक डीपी सिंह ने विशेष अदालत को सूचित किया कि वाड्रा द्वारा सहयोग न किए जाने के लिए उनकी ज़मानत याचिका का विरोध कर रहे हैं। सिंह ने आगे कहा कि पूछताछ को पूरा करने के लिए उन्हें वाड्रा के चार से पाँच पेशी की ज़रूरत है।

सिंह ने कहा, “यदि वह सवालों के जवाब देने और सहयोग करने के लिए तैयार हैं, तो हम इसे देख सकते हैं। अगर वह ज़मानत याचिका पर बहस करना चाहते हैं, तो हम उस तरह से भी आगे बढ़ सकते हैं।” एसएसपी सिंह ने आरोपी रॉबर्ट वाड्रा द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग पर भी आपत्ति जताई, जिसमें उन्होंने ईडी की जांच को राजनीतिक बदला लेने के रूप में पेश किया था।

आज की सुनवाई के दौरान, ईडी अभियोजक ने इस बात पर आपत्ति जताई कि रॉबर्ट वाड्रा जहाँ भी जाते हैं, तो एक ‘बारात’ उनके पीछे चलती रहती है, फिर चाहे वह ईडी कार्यालय हो या अदालत।

आरोपी रॉबर्ट वाड्रा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी ने आश्वासन दिया कि वे पूछताछ के लिए अब पूरा सहयोग करेंगे। अदालत ने अग्रिम जमानत याचिका की सुनवाई 2 मार्च तक के लिए टाल दी और गिरफ़्तारी से अंतरिम सुरक्षा प्रदान की।

बता दें कि बीकानेर लैंड स्कैम मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कल रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी मैसर्स स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड की 4.62 करोड़ रुपये की संपत्ति अटैच की थी।

रॉबर्ट वाड्रा 6 फ़रवरी को कई समन के बाद पूछताछ के लिए ईडी कार्यालय में पेश हुए थे। तब से, ED ने वाड्रा से कई बार पूछताछ की।

पिछले साल अप्रैल में ईडी ने वाड्रा के सहयोगी जयप्रकाश बगरवा की संपत्तियों को बीकानेर भूमि घोटाला मामले में अटैच किया था। बीकानेर भूमि घोटाला मामले में, राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा अचल संपत्ति डेवलपर्स सहित कुछ धोखाधड़ी वाले व्यक्तियों की मिलीभगत से ग़ैर-मौजूद व्यक्तियों के नाम पर भूमि आवंटित की गई थी।

वाड्रा पर उनके ख़िलाफ़ धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत एक आपराधिक मामला भी दर्ज है, इसमें आरोप लगाया गया था कि उनकी फ़र्म स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी ने कोलायत और बीकानेर में ज़मीन का एक टुकड़ा सस्ते में ख़रीदा था और उसे अवैध लेनदेन के तहत बेहद उच्च प्रीमियम पर बेचा था।

जागो कैप्टेन जागो, देशहित में सिद्धू को मंत्रिमंडल से बाहर फेंको

एक दशक तक 125 करोड़ से भी अधिक जनसंख्या वाले देश ने एक ऐसे प्रधानमंत्री को बर्दाश्त किया जिसकी छत्रछाया में अनगिनत घोटाले होते गए लेकिन वह चुप रहा। अब समय आ गया है जब कैप्टेन अमरिंदर सिंह इतिहास से सीखें, दूसरा मनमोहन सिंह कहलाने से बचें और नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब मंत्रिमंडल से तत्काल बरख़ास्त करें। कैप्टेन अगर ऐसा करने में असमर्थ साबित होते हैं, तो उन्हें लेकर पूरे देश में गलत सन्देश जाएगा। अगर एक परिवार विशेष की चाटुकारिता राष्ट्रहित पर भारी पड़ती है तो जनता यही सोचेगी कि कैप्टेन अमरिंदर सिंह जैसे भारी-भरकम व्यक्तित्व वाला नेता भी राजनीति की उसी धारा का हिस्सा है, जो सत्ता के लिए ‘कुछ भी’ कर सकता है।

कैप्टेन साहब, आप सेना में रहे हैं। सेना से इस्तीफ़े के बाद भी भारत-पाक युद्ध के दौरान आपसे चुप नहीं रहा गया और आप फिर से सेना से जुड़ गए थे। क्या आज 76 वर्ष का यह मुख्यमंत्री 24 वर्ष के उस कैप्टेन पर भारी पड़ रहा है? क्या भारत-पाक युद्ध को क़रीब से देखने वाला सेना का वह जवान आज एक बूढ़े मुख्यमंत्री के रूप में अपने उस गौरवपूर्ण इतिहास को भूल चुका है? भारत-पाकिस्तान युद्ध पर पूरी की पूरी पुस्तक लिखने वाला विद्वान यह तो जानता ही है कि आतंकवाद का देश होता है। उसे यह भी पता है कि उस देश का नाम क्या है? फिर नवजोत सिंह सिद्धू के बयान पर चुप्पी क्यों?

पुलवामा में हुए आतंकी हमले ने हमारे 42 जवानों को हमसे छीन लिया। पड़ोसी देश में बैठे आतंक के निशाचरों ने हमें एक ऐसा घाव दिया है, जिस से उबरने में हमें काफी वक़्त लगेगा। हम इस घाव से भले उबर जाएँ, लेकिन देश के वो जवान हमारे स्मृति पटल में सदा के लिए बने रहेंगे। कैप्टेन साहब, क्या आपका रक्त नहीं खौलता? पाकिस्तान के करतूतों पर पुस्तक लिखने वाला वह अध्येता आज न जाने कहाँ गुम हो गया है। रह गया है तो बस एक राजनेता, जो अपने कैबिनेट में एक ऐसे व्यक्ति को बर्दाश्त कर रहा है जो बिना उनकी सलाह लिए बेख़बर पाकिस्तान जाता-आता है।

चाटुकारिता देशहित पर भारी पड़ रही है

यह सब आपकी नाक के नीचे हो रहा है कैप्टेन साहब। यह हमें दर्द देता है। यह हर उस व्यक्ति को दर्द देने वाला है, जिसे लगता है कि पंजाब कॉन्ग्रेस में एक तो शेर बैठा हुआ है जो राष्ट्रहित को व्यक्ति-पूजा से ऊपर रखता है। कैप्टेन साहब, आप NDA (नेशनल डिफेंस एकेडमी) के प्रोडक्ट हैं। आप जब पहली बार सेना में शामिल हुए थे तब से अब तक साढ़े पाँच दशक बीत चुके हैं। सेना से लेकर राजनीति तक, आपके अनुभवों की कोई कोई सीमा नहीं। फिर भी ऐसी चुप्पी? फिर भी ऐसा मौन? कारण क्या है कैप्टेन साहब? क्या मुख्यमंत्री की कुर्सी ने सेना के उस बहादुर जवान को सुला दिया है?

बार-बार अपमान, आपका भी… देश का भी…

नवजोत सिंह सिद्धू जब पाकिस्तान से लौटे थे तब उनसे यह सवाल पूछा गया था कि क्या उन्होंने पाकिस्तान जाने से पहले मुख्यमंत्री की सहमति ली है? उस पर उन्होंने जो जवाब दिया था, उन्हें पंजाब कैबिनेट से बाहर फेंकने के लिए वही काफ़ी था। लेकिन आपने, कैप्टेन साहब, चुप रहना बेहतर समझा। आपने कोई कार्रवाई नहीं की। नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा था कि उनके कैप्टेन सिर्फ़ और सिर्फ़ राहुल गाँधी हैं और उन्ही की सहमति से वह बार-बार दौड़ कर पाकिस्तान की गोद में जा बैठते हैं। यह अपमान कैसे सह लिया आपने कैप्टेन साहब? नवजोत सिंह चाटुकार हैं। किस मजबूरी में आपने एक चाटुकार को अपना और देश का अपमान करने का हक़ दे दिया?

जब खालिस्तान की बात आती है, तब राष्ट्रहित में आप कनाडा की भी नहीं सुनते। यह आपका ही प्रभाव था कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो को भारत में यह महसूस कराया गया कि अगर कनाडा खालिस्तानी आतंकियों को समर्थन देने वाला कोई भी कार्य करता है तो उसे भारत की भारी नाराज़गी झेलनी पड़ेगी। आपने कनाडा के प्रधानमंत्री से मुलाक़ात में भी राष्ट्रहित को प्रथम रखा। जहाँ नेतागण किसी ख़ास वर्ग का वोट पाने के लिए उस वर्ग के कट्टरवाद का भी पुरजोर समर्थन करते हैं, आपका यह स्टैंड सराहनीय था। प्रधानमंत्री मोदी ने भी आपके इस स्टैंड को तवज्जोह दी और कनाडा के पीएम से उनकी भारत यात्रा के दौरान ऐसा ही व्यवहार हुआ, जैसा आप चाहते थे।

आप तो राहुल गाँधी से नहीं डरते हैं न?

क्या नवजोत सिंह सिद्धू को मंत्रिमंडल ने निकाल कर बाहर फेंकने में आपको राहुल गाँधी का डर सता रहा है? कनाडा जैसे विशाल देश को उसकी गलती का एहसास दिलाने वाला योग्य शासक आज अपने ही अंतर्गत कार्य कर रहे एक मंत्री को उसके कुकर्मों की सज़ा तक नहीं दे सकता? लेकिन, आप तो राहुल गाँधी से नहीं डरते हैं न? हमें याद है कि कैसे बीच चुनाव के दौरान राहुल गाँधी ने आपको पंजाब में कॉन्ग्रेस का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया था। उस से पहले आपने कहा था कि राहुल गाँधी को ‘रियलिटी चेक‘ की ज़रूरत है। क्या वह सिर्फ एक व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए था?

कैप्टेन साहब, आपके मंत्री ने पाकिस्तान का बचाव किया है। जनभावनाओं के प्रतिकूल जाकर देश को नीचा दिखाने वाला कार्य किया है। अनजान बन कर मत बैठिए। सोनी चैनल आपसे ज़्यादा समझदार निकला। उसे इसी देश में अपना व्यापार चलाना है। उसने जनता की माँग को मानते हुए सिद्धू को अपने शो से निकाल बाहर किया। आज जब एक प्राइवेट कम्पनी मिशाल पेश कर रही है, आपको अपने आप से पूछना पड़ेगा कि क्या पाकिस्तान परस्तों को अपने कैबिनेट में रख कर शासन करना जायज है? डॉक्टर मनमोहन सिंह भी रेनकोट पहन कर नहाया करते थे। इतिहास में उन्हें कैसे और किसलिए याद रखा जाएगा, आपको बख़ूबी पता है।

राहुल गाँधी तक को घुड़की देकर कॉन्ग्रेस में बने रहने वाले शायद आप अकेले नेता हैं। लेकिन एक चाटुकार ने आपको मनमोहन बना दिया है। खालिस्तान और वामपंथियों के ख़िलाफ़ बोलनेवाला व्यक्तित्व आज निःसहाय नज़र आ रहा है। शेर मेमना बन चुका है। कैप्टेन ने हथियार डाल दिए हैं। विद्वान मूर्खता कर रहा है। मुख्यमंत्री बनने के लिए अपनी पार्टी के आलाकमान तक को झुका देने वाला व्यक्ति आज देश की पुकार सुनने में असमर्थ है। कॉन्ग्रेस का शायद एकमात्र नेता जिसने सर्जिकल स्ट्राइक के बाद कहा था कि उसे कोई सबूत की ज़रूरत नहीं है, आज सबूत होते हुए भी कार्रवाई नहीं कर रहा है। सेना के बयान पर शब्दशः भरोसे का दावा करने वाला व्यक्ति आज शहीदों के बलिदान पर असंवेदनशील बयान देने वाले के सामने झुका पड़ा है।

समय बदल गया है। कैप्टेन की यह निष्क्रियता भी इतिहास में दर्ज होगी। इतिहास आपको दूसरा डॉक्टर मनमोहन सिंह के नाम से याद रखेगा। पटियाला के राजवंशी परंपरा का ध्वजवाहक आज पाकिस्तान का गुणगान करने वाले अपने ही एक जूनियर के सामने झुक गया। राजनीति ने शौर्य को चकमा दे दिया। अभी भी वक़्त है कैप्टेन साहब, जागिए और कान साफ़ कर जनता की आवाज सुनिए। वो आपसे कोई बलिदान नहीं माँग रही, वही माँग रही जो आप एक सेकेंड में कर सकते हैं। नवजोत सिंह सिद्धू को अपने कैबिनेट से बाहर फेंक कर पटियाला का प्रताप दिखाइए

सबरीमाला: कहानी एक धर्मयुद्ध की

“नमस्ते, आप सभी को यहाँ इस सभा का भाग बना देख मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है।” तीस साल की प्रतिभा ने जब सभा को इन वाक्यों से संबोधित करना शुरू किया तो सभा में उपस्थित सारी औरतों ने ज़ोरदार तालियों से उसका स्वागत किया। प्रतिभा के लिए ये कोई बड़ी बात नहीं थी। तेरह साल की उम्र से उसने ऐसी ना जाने कितनी सभाओं को संबोधित किया था। प्रतिभा का नाम तो जैसे उसके लिए ही बना था। उसमें अपनी बातों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर देने की प्रतिभा कूट-कूट कर बसी थी।

प्रतिभा ने आगे बोलना शुरू किया, “जब मुझे इस सभा- अस्तित्व एक औरत का को संबोधित करने का न्योता दिया गया तो सबसे पहला सवाल मेरे मन में यह आया कि एक औरत है क्या? इस पितृसत्तात्मक समाज में जहाँ एक औरत का सारा जीवन अपने पिता फिर पति और फिर बेटे की बातें सुनने में लग जाता है वहाँ एक औरत का अस्तित्व है क्या असल में? हमारे शास्त्र हमें जीवन भर एक दूसरे इंसान की ग़ुलामी करने और उसके अनुसार चलने का निर्देश देते हैं। ढोल, गवार, शुद्र, पशु , नारी । सकल ताड़ना के अधिकारी॥ मतलब कि एक औरत जो कि इस समाज का आधार है वो ताड़ना की अधिकारी हो गई, लेकिन क्यों? ऐसा क्या पाप किया है औरतों ने, कि वे ताड़ना की अधिकारी हो गईं? बचपन से एक औरत पर समाज दबाव डालना शुरू करता है। ये मत करो, ये मत बोलो, ऐसे मत बैठो, ये मत पहनो, क्यों? क्या औरत एक ग़ुलाम है? क्या उसे अपने निर्णय लेने का अधिकार नहीं?” प्रतिभा की इस बात पर एक बार फिर तालियाँ बज उठीं।

प्रतिभा ने हाथ उठाकर लोगों को शांत होने का आग्रह किया और आगे बोली “आजकल आप बहुत से लोगों को कहते सुनेंगे कि ये सब पुरानी बातें हो गई। आज तो समाज में औरतें आदमियों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चल रही हैं। जॉब कर रही हैं, आर्मी में जा रही हैं, विदेश जा रही हैं, यहाँ तक कि अन्तरिक्ष में भी पहुँच गईं। फिर वो कहेंगे कि औरतें अब बस अपनी हीन भावना का शिकार हैं और इस कारण अच्छा भला कमाने के बाद भी उत्पीड़ित होने का दावा करती हैं। मैं पूछती हूँ कि क्या सच में ऐसा है? क्या सच में समाज में औरतों की परिस्थिति में सुधार आया है?”

“हाँ, अब औरतें अपने हक़ की लड़ाई लड़ते हुए इतना अधिकार अपने लिए हासिल कर चुकी हैं कि वे काम पर जा सकें, घर से बाहर निकल सकें; पर क्या समाज में बराबरी का दर्जा उन्हें हासिल हो गया है? नहीं, ऐसा नहीं है। और आज भी इस बात का सबूत हमें कहीं ना कहीं हर रोज देखने को मिल ही जाता है। ज़रा उस औरत से पूछिए जो जॉब कर रही है। हर दिन घर आने के बाद जब उसका पति दिनभर की थकान का बहाना बनाकर बैठ जाता है तब वो अपनी थकान भूलकर परिवार के लिए किचेन में खाना बनाती है। क्या वो थकी नहीं होती? क्या उसका आराम करने का मन नहीं करता? पर अगर उसने थकान के कारण इस डिश कम बना दी, तो उससे क्या कहा जाएगा? जब इतनी ही तकलीफ़ हो रही है तो जॉब छोड़ दो ना?”

“आज भी एक औरत चाहे कितना भी कमा ले, उसका स्थान घर के अन्दर वही है। एक कामवाली बाई, एक दाई, एक मनोरंजन की वस्तु बस। और इस सबसे ऊपर एक औरत एक अछूत भी हो जाती है जब उसे महावारी होती है। बचपन से हमारे माँ-बाप हमें महावारी के समय एक कोने में ऐसे बिठा देते हैं जैसे कि हमें कोई कोढ़ हो गया हो। कुछ छू नहीं सकते क्योंकि हम अशुद्ध हैं। मंदिर जा नहीं सकते क्योंकि हमारे मंदिर जाने से मंदिर अशुद्ध हो जाएगा। क्यों भई? क्या एक औरत बिना महावारी के एक बच्चे को जन्म दे सकती है? और अगर नहीं तो जो प्रक्रिया हमें एक नए जीवन को जन्म देने की क्षमता देती है वो हमें अशुद्ध कैसे बना देती है? और अगर वो हमें अशुद्ध बना देती है तो हमारे शरीर से जन्म लेने वाला पुरुष शुद्ध कैसे हो गया?”

प्रतिभा के इस सवाल पर एक बार फिर ज़ोरदार तालियाँ बजीं। इस बार प्रतिभा ने उन्हें रोका नहीं। अपने पास रखी पानी के बोतल उठाकर कुछ घूँट पानी पीकर वो आगे बोली “आप सब ने सबरीमाला के अय्यप्पा स्वामी मंदिर में जो हो रहा है सुना ही होगा। आजकल वो मंदिर बहुत सुर्ख़ियों में है। क्यों? क्योंकि उस मंदिर में उन स्त्रियों को जाने की अनुमति नहीं है जिनके अन्दर महावारी की क्षमता है। यानी कि जहाँ एक स्त्री ने उस उम्र में पड़ाव डाला वो अछूत हो गई। और इतना ही नहीं वहाँ केरल के लोगों ने अपने घर की लड़कियों के दिमाग में इतना ज़हर घोला हुआ है कि वे भी इस बेहूदी प्रथा का समर्थन कर रही हैं।”

“पर ये ज़हर हमें अपने मन में नहीं घुलने देना है। इस ज़हर से हमें हमारी आने वाली पीढ़ियों को बचाना है। और इसलिए ही मैंने यहाँ आने से पहले एक निर्णय लिया था। मैंने निर्णय किया है कि मैं सबरीमाला जाऊँगी। वहाँ की इस ग़लत प्रथा को ख़त्म करने और औरतों के ख़िलाफ़ हो रहे इस अन्याय का विरोध करने। और इसमें मुझे आप सबके प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समर्थन की अपेक्षा है। मेरा अनुरोध है कि आप सभी अपने परिवार में इस तरह की प्रथाओं को जड़ से उखाड़ने का आज संकल्प लें। क्योंकि ये सारी प्रथाएँ आपके अस्तित्व पर एक बड़ा सवाल खड़ा करती हैं। ये आपको आपके सही रूप को समझने नहीं देंगी। ये प्रथाएँ आपको सिर्फ़ और सिर्फ़ दबाने के लिए बनाई गई हैं और अगर आप अपने अस्तित्व को बचाना चाहती हैं तो उखाड़ फेंकियें इन्हें अपने मन से और इस समाज से।”

इसके साथ ही प्रतिभा का भाषण समाप्त हुआ और पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज गया।

एक न्यूज़ ऑर्गनाइज़ेशन में काम करने वाली प्रतिभा को तब बहुत ख़ुशी हुई जब उस ऑर्गनाइज़ेशन ने उसके निर्णय में उसका साथ देने का वादा किया। कुछ ही दिनों में प्रतिभा केरल की ओर रवाना हुई। सीधे सबरीमाला जाने से बजाय वह पहले कोल्लम गईं। कोल्लम के रेलवे स्टेशन पर उतरते ही वेंकटेश की मीठी सी मुस्कान ने उसका स्वागत किया। प्रतिभा और वेंकटेश की मुलाक़ात छः साल पहले कॉलेज में हुई थी। वहाँ पहले वो दोस्त बने और फिर प्रेमी। प्रतिभा भोपाल की थी और वेंकटेश त्रिशूर का, जो इस समय कोल्लम में काम कर रहा था। वेंकटेश को देखते ही प्रतिभा उसके गले से लग गई। वेंकटेश ने भी उसे ख़ुशी से बाहों में भर लिया।

कुछ पल एक दूसरे को जी भर कर गले लगाने के बाद ही दोनों को याद आया कि वे स्टेशन में खड़े थे। आसपास के लोग आते-जाते उन्हें अजीब सी निगाहों से घूर ही लेते थे। ये देखकर दोनों हँस दिए और स्टेशन से बाहर निकल आए। दोनों ने साथ खाना खाया और फिर वेंकटेश उसे उसके होटल रूम छोड़ने आया। होटल रूम में कुछ देर बैठकर इधर-उधर की बातें करने के बाद प्रतिभा ने वेंकटेश को अपने आने का मूल उद्देश्य बताया।

“क्या? पर प्रतिभा कम से कम इतना बड़ा निर्णय लेने से पहले तुम मुझे बताती तो सही।” वेंकटेश ने जब प्रतिभा के सबरीमाला जाने के निर्णय के बारे में सुना तो वह स्तब्ध रह गया।

“अब बता रही हूँ ना? ऐसी भी क्या बड़ी बात है?” वेंकटेश ने अब तक प्रतिभा के हर निर्णय को सराहा ही था। ये पहली बार था जब उसकी आवाज़ में वह ख़ुशी नहीं थी और प्रतिभा को यह बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था।

“बात है इसलिए ही तो कह रहा हूँ। देखो प्रतिभा, सबरीमाला में ऐसी कोई भी प्रथा नहीं है जो औरतों के विरुद्ध हो और जिसके ख़िलाफ़ आन्दोलन की ज़रूरत हो। तुम अगर एक बार मुझसे इस बारे में बात करती तो मैं तुम्हें समझा तो सकता था। ये अचानक से तुमने ऐसा निर्णय कैसे ले लिया?”

“अचानक जैसा कुछ भी नहीं वेंकट। मैं बहुत दिनों से न्यूज़ फॉलो कर रही थी और मुझे लगा कि मुझे कुछ करना चाहिए। पर मेरे समझ में यह नहीं आ रहा कि तुम इस तरह की प्रथा का समर्थन कैसे कर सकते हो? ये केरल के हिन्दुओं की समस्या क्या है? देश के सबसे साक्षर राज्य से होते हुए भी इस तरह की मिसोजेनिस्ट प्रथा का समर्थन कर रहे हैं।” प्रतिभा की चिड़चिड़ाहट अब उसकी आवाज़ में झलक रही थी। उसका चिड़चिड़ाना जायज़ भी था। आख़िरकार उसने अपना निर्णय वेंकट को सुनाते हुए उम्मीद की थी कि उसे प्रतिभा पर गर्व होगा; पर यहाँ तो सबकुछ उल्टा ही हो रहा था।

“साक्षरता का मतलब आँखें बंदकर हर प्रथा को पुराना और बेबुनियाद ठहरा देना तो नहीं होता ना प्रतिभा?”

“तो तुम्हारा कहना है कि औरतों को मंदिरों में ना जाने देना सही प्रथा है?”

“मंदिरों की बात कौन कर रहा है? यहाँ एक मंदिर की बात हो रही है। आजतक कितने मंदिरों में तुम्हें अन्दर जाने से मना किया गया?”

“मेरा सवाल ये है कि कोई भी औरतों को किसी भी मंदिर जाने से रोकने वाला होता कौन है? तुम समझ नहीं रहे वेंकट, आज इस मंदिर में औरतों का जाना मना है, क्या पता कल को देश के दूसरे मंदिरों में भी यहीं प्रथा चालू हो गई तो? इसलिए इस तरह की बेबुनियाद प्रथाओं को समय रहते जड़ से उखाड़ देना चाहिए।”

“ज़रूर करना चाहिए, अगर सच में यह प्रथा बेबुनियाद हो तो। तुम मुझे बताओ कि किस आधार पर तुम इसे बेबुनियाद कह रही हो? क्या सिर्फ़ इसलिए कि एक उम्र सीमा की औरतों को मंदिर में जाना मना है? या फिर तुम्हारे पास और भी कोई कारण है?”

“क्या इतना कारण काफी नहीं है? क्या ये अन्याय नहीं है?”

“वही तो मैं तुम्हें समझा रहा हूँ प्रतिभा कि इसमें कुछ भी अन्याय नहीं है। तुम पता करने की कोशिश तो करती कि ऐसी प्रथा क्यों है? चलो मैं तुम्हें बताता हूँ। “ऐसा कहते हुए वेंकटेश ने प्रतिभा का हाथ पकड़ने की कोशिश की पर प्रतिभा का मन अब बहुत ख़राब हो चुका था।

थोड़ा पीछे हटते हुए वह बोली “मुझे सब पता है। तुम जानते हो कि मैं कोई भी निर्णय लेने से पहले अपनी रिसर्च करती हूँ। अयप्पा स्वामी नैस्तिक ब्रह्मचारी हैं यहीं कारण है ना? मेरा सवाल यह है, कि अय्यपा स्वामी जो कि भगवान् हैं, उनका ब्रह्मचर्य एक औरत के उनके मंदिर में प्रवेश करने से कैसे टूट सकता है?” उसकी आवाज़ में बहुत सख़्ती थी।

“प्रतिभा ब्रह्मचर्य के कुछ नियम होते हैं और इन नियमों की कुछ वजहें होती हैं। एक मंदिर कोई चर्च या मस्ज़िद नहीं जहाँ लोग सभा करने या नमाज़ अता करने के लिए इकठ्ठा होते हैं। एक मंदिर एक देव या देवी का घर होता है और हर घर के कुछ नियम होते हैं। तुम अय्यप्पा स्वामी को जानती तक नहीं। वो कौन हैं, क्या हैं, नैस्तिक ब्रह्मचर्य क्या है, उसके नियम क्या हैं, तुम्हें नहीं पता। तुम्हारे मन में अय्यप्पा स्वामी के लिए कोई भक्ति या प्रेम नहीं है, तो फिर क्यों तुम्हें उनके घर के नियम तोड़ कर उनके घर में घुसना है? क्या अगर कल को मैं यह संकल्प लूँ कि मैं किसी औरत से किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं रखना चाहता। मैं उनसे दूरी बनाकर रखना चाहता हूँ। और ये सब समझते हुए भी सामने वाली आंटी जो मुझे जानती तक नहीं सिर्फ़ यह सोचकर कि यह नियम एक औरत का अपमान है ज़बरदस्ती मेरे घर में घुस आयें तो क्या यह सही होगा? क्या उनका मेरे घर में घुस आना उनके और मेरे दोनों के लिए एक अजीब परिस्थिति नहीं हो जाएगी? और ऐसा करके उन्हें क्या मिलेगा? वो सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे घर का नियम तोड़ पलभर के लिए ख़ुश हो जाएँगी बस।”

“तुमने यह कैसे मान लिया कि मेरे मन में अय्यप्पा स्वामी के लिए भक्ति नहीं?”

“मानने की बात ही नहीं है। तुम ही सोचो जो अय्यप्पा स्वामी के भक्त होंगे वो उनके मंदिर में ज़बरदस्ती क्यों घुसेंगे? उनके मन की श्रद्धा उन्हें ऐसा करने ही नहीं देगी। वो उनके नैस्तिक ब्रह्मचर्य का सम्मान करेंगे। वो उनके घर की प्रथाओं का सम्मान करेंगे। वो वहाँ जायेंगे जहाँ अय्यप्पा स्वामी ब्रह्मचारी के रूप में नहीं हैं। तुम्हें अगर अय्यप्पा स्वामी के दर्शन की ही इच्छा है तो ठीक है, मैं तुम्हें केरल के ही उन मंदिरों में ले चलता हूँ जहाँ तुम आराम से बिना किसी और की भावनाओं को ठेंस पहुँचाए उनके दर्शन कर सकती हो।”

कुछ पल प्रतिभा वेंकटेश की बात सुनकर चुप बैठी रही फिर अचानक से बोल पड़ी “तो तुम्हारा कहना है कि अगर एक औरत एक ब्रह्मचारी के घर में घुस जाए तो उस ब्रह्मचारी का ब्रह्मचर्य टूट जाता है? बड़ा आसान है किसी का ब्रह्मचर्य तोड़ना।”

प्रतिभा की बात से वेंकटेश को थोड़ी चिड़चिड़ाहट हुई पर फिर भी वो ख़ुद को शांत करते हुए बोला “फिर वही बात! मैंने उनके घर के नियमों की बात की। मैंने उनके ब्रह्मचर्य के नियमों की बात की। क्या तुम किसी के संकल्प का सम्मान नहीं कर सकती? अगर एक नैस्तिक ब्रह्मचारी के लिए यह नियम है कि उसे उन औरतों से दूर रहना चाहिए जो अपनी रिप्रोडक्टिव एज में हैं तो उसे दूर रहने दो ना। क्यों तुम्हें जाकर उसका संकल्प को तोड़ने की कोशिश करनी है? क्या मिलेगा तुम्हें ऐसा करके?”

“ख़ुशी मिलेगी।” प्रतिभा ग़ुस्से में बोली “ऐसे बेफालतू के नियम जो सिर्फ़ औरतों को नीचा दिखाने के लिए बने हैं उन्हें तोड़कर मेरे मन को शान्ति मिलेगी। सच में वेंकट, मैंने सोचा भी नहीं था कि तुम मेरा साथ देने के बजाय ऐसी रूढ़िवादिता का समर्थन करोगे। मैं ख़ुश होकर आई थी कि तुम्हें मुझ पर गर्व होगा और तुम मेरी मदद करोगे पर यहाँ तो तुम भी वही बेवकूफी भरे तर्क कर रहे हो जिनका कोई मतलब नहीं बनता।”

“क्यों मतलब नहीं बनता?” वेंकटेश प्रतिभा के बात करने के तरीके से भड़क गया था। “मैंने औरतों को नीचा दिखाने वाली क्या बात कही? ऐसा कौन सा तर्क दे दिया मैंने, जो तुम्हें लगता है कि औरतों के ख़िलाफ़ है? ये हर चीज को फैमिनिज़्म का चश्मा लगाकर देखना ज़रूरी है क्या? तुम ख़ुद पर्सनल स्पेस और प्राइवेसी की बातें करती हो। तुम्हें पसंद नहीं कोई तुम्हारी मर्ज़ी या पसंद के ख़िलाफ़ तुमसे सम्बंधित कोई निर्णय ले। तो तुम यहाँ क्या कर रही हो? तुम भी तो किसी के मर्ज़ी की ख़िलाफ़ उसके घर में घुसने का निर्णय कर रही हो। किसी के नियमों का उल्लंघन करने की ही कोशिश कर रही हो। तो ये सही कैसे है?”

“यू नो व्हाट? इट्स यूजलेस। लेट्स फॉरगेट इट। मुझे नहीं लगता तुम मेरी बात समझना चाहते हो। और जायज़ भी है तुम ख़ुद भी एक आदमी ही तो हो। तुम्हें इन सब नियमों में कोई बुराई नहीं नज़र आएगी क्योंकि ये तुम्हें सुपीरियर होने का अहसास दिलाती हैं।” प्रतिभा चिढ़ते हुए बोली।

“क्या बेवकूफी भरी बात कर रही हो? इसमें सुपीरिओरिटी कैसे बीच में आ गयी। “वेंकटेश चिल्लाया पर अगले ही पल प्रतिभा को चौंकता देख उसे अहसास हुआ कि वो चिल्ला रहा था। एक कुर्सी लेकर प्रतिभा के सामने बैठकर उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए वह बोला “आई ऍम सॉरी। मैंने थोडा ज़्यादा ही ज़ोर से बोल दिया।” प्रतिभा का मूड अब भी ख़राब ही था। जब उसने कोई जवाब नहीं दिया तो दो पल रूक कर वेंकटेश आगे बोला “चलो ठीक है। इस वक़्त हम दोनों का मन ख़राब है तो इस मुद्दे को यहीं छोड़ते हैं। मैं बस इतनी उम्मीद करता हूँ कि तुम मेरी कही बातों पर एक बार विचार करोगी और जल्दबाज़ी में कोई क़दम नहीं उठाओगी। ठीक है ना?”

प्रतिभा फिर भी चुप ही थी।

“इतना ग़ुस्सा? कम से कम हाँ तो बोल दो। “वेंकटेश हँसते हुए बोला। प्रतिभा ने हाँ में सर हिला दिया।

“दो दिन बाद मैं अपने दो साथियों के साथ सबरीमाला जा रही हूँ। मैं दिल से चाहती थी कि तुम भी मेरे साथ चलो। तुम केरल से हो, सबरीमाला आते-जाते रहते हो, तुम्हारे हमारे साथ खड़े होने से हमारे इस उद्देश्य को एक अलग ही शक्ति मिलती। एक बार फिर सोच लो वेंकट।” वेंकटश के ऑफ़िस के सामने बने रेस्टोरेंट में उससे मिलने आई प्रतिभा उसका व्यवहार देखकर बहुत मायूस थी।

“नहीं प्रतिभा, जो तुम कर रही हो वो एकदम ग़लत है। इसमें मैं तुम्हारा साथ नहीं दे सकता। प्लीज़ मेरी बात मानो ये ज़िद छोड़ दो।” वेंकटेश के चेहरे पर दुःख था।

“ज़िद कहाँ हैं वेंकट? मैं तो कोशिश कर रही हूँ, समाज से एक कुरीति को मिटाने की।”

“यहीं तुम ग़लत हो प्रतिभा। अगर किसी प्रथा को तुम समझ नहीं पा रही तो इसका ये मतलब तो नहीं कि वो कुरीति है। मैंने उस दिन भी तुम्हें समझाने की कोशिश की थी पर तुम नहीं समझी। प्लीज़ मैं तुमसे रिक्वेस्ट कर रहा हूँ मेरी ख़ातिर ही सही अपना ये निर्णय बदल दो।”

“व्हाट? व्हाई आर यू गेटिंग सो पर्सनल? आजतक तो तुमने कभी ऐसा नहीं किया। बात क्या है? सच बोलो वेंकट, कहीं ऐसा तो नहीं कि अब तुम भी उन आदमियों जैसा सोचने लगे हो जिन्हें एक औरत घर की चारदीवारी में ही अच्छी लगती है। कहीं तुम मेरे सोशल वर्क्स से ऊब तो नहीं गए ना? क्या तुम भी ऐसी ही पत्नी की अपेक्षा रखते हो जो हाँ में हाँ मिलाती रहे?”

“तुम पागल हो क्या प्रतिभा? इतने सालों में मैंने हमेशा तुम्हारा साथ दिया क्योंकि मैं तुम्हारी बातों से, तुम्हारी सोच से सहमत था। पर मैं तुम्हारी इस सोच से सहमत नहीं क्योंकि मैं बचपन से अय्यप्पा स्वामी के मंदिर जाता रहा हूँ। मैंने देखी है लोगों की श्रद्धा। मैंने देखा है उन औरतों को जो चालीस साल इन्तज़ार करने में गर्व महसूस करती हैं। मैंने तुम्हें सबरीमाला की इस प्रथा का कारण भी समझाया, पर तुम समझने को तैयार नहीं। और अब तुम कहती हो कि जस्ट बिकॉज़ मैं तुम्हारे एक निर्णय में तुम्हारा साथ नहीं दे रहा तो मैं उन आदमियों जैसा हो गया जो चाहते हैं कि उनकी पत्नी उनकी हाँ में हाँ मिलाए। अगर तुम ध्यान दो प्रतिभा तो तुम्हें समझ आएगा कि कहीं ना कहीं तुम ऐसे पति की अपेक्षा रख रही हो तो तुम्हारी हाँ में हाँ मिलाए। “

प्रतिभा ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था पर वेंकटेश ने उसे रोक दिया और आगे बोला “और रही बात पर्सनल होने की, तो ये इशू पर्सनल ही है। जैसा कि मैंने कहा मैं बचपन से सबरीमाला जाता आया हूँ। मेरे परिवार का हर एक सदस्य अय्यप्पा स्वामी का डिवोटी है। मेरी माँ कोई अनपढ़ गँवार नहीं हैं प्रतिभा। वो एक लेक्चरर हैं। चाहतीं तो वो भी इस प्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठा सकती थीं, पर उन्हें अय्यप्पा स्वामी पर अपार श्रद्धा है और वो इस प्रथा को समझती हैं। सिर्फ़ वो ही नहीं मेरी मौसी, मेरी बहनें, मेरे पड़ोसी सब इस प्रथा को निभा रहे हैं और उनमें से एक भी नहीं जो आँखें बंद करके इस प्रथा को सपोर्ट कर रहा हो। सबने इसके कारण को समझा है और इस तपस को स्वीकार किया है। “

“तपस? तुम इस प्रथा को तपस बोल रहे हो?”

“हाँ, प्रतिभा क्योंकि ये तपस है।”

“और अगर मैं ये तपस करने से इनकार करूँ तो?”

“तो मत करो। कोई तुम्हारे साथ ज़बरदस्ती नहीं कर रहा। पर मंदिर के नियम भी मत तोड़ो। उन औरतों की श्रद्धा का अपमान मत करो जिन्होंने सहर्ष इस तपस को स्वीकार किया है। तुम्हारी एक नादानी ना जाने कितने भक्तों का दिल तोड़ देगी और उनमें से एक मैं भी हूँ प्रतिभा। मुझे अय्यप्पा स्वामी में अपार श्रद्धा है इसलिए तुमसे रिक्वेस्ट कर रहा हूँ कि मेरे लिए मत जाओ।”

“सॉरी वेंकट, मैं तुम्हारी ये बात नहीं मान सकती। तुम्हारे कोई भी तर्क मुझे लॉजिकल नहीं लग रहे। मंदिर एक पब्लिक प्लेस है। वहाँ जाने की स्वतंत्रता सबको होनी चाहिए।”

“यही तो समस्या है प्रतिभा। तुम उसे एक पब्लिक प्लेस की तरह देख रही हो ना कि तुम्हारे आराध्य के घर की तरह। एक बार अगर तुम मेरी नज़र से देखती या उन औरतों की नज़र से देखती जो अय्यप्पा स्वामी में श्रद्धा रखती हैं तो तुम सच को समझ पाती। मैं जिन पर श्रद्धा रखता हूँ, उनके घर के नियम को तोड़ कर कोई ज़बरदस्ती अपनी सोच उन पर थोपे तो ये मुझे दुःख ही देगा। ये मेरे लिए मेरे आराध्य का अपमान ही होगा।”

“तुम अय्यप्पा स्वामी को बस एक आइडल की तरह देख रही हो, हम उनमें जीते जागते भगवान् को देखते हैं। तुम मंदिर को पब्लिक प्लेस बोलती हो, हम उसे अपने स्वामी के घर की तरह देखते हैं। तुम वहाँ के नियमों को अपनी स्वतंत्रता का हनन समझती हो, हम जानते हैं कि ये नियम सिर्फ़ अय्यप्पा स्वामी की प्रतिज्ञा के कारण हैं। तुम्हें मैंने दूसरे मंदिरों के बारे में बताया जहाँ तुम आराम से अय्यप्पा स्वामी के दर्शन कर सकती हो, पर दर्शन करना तुम्हारा उद्देश्य है ही नहीं, तुम बस एक पल की जीत के अहसास के लिए ये करना चाहती हो।”

“क्या? क्या कहा तुमने? एक पल की जीत के अहसास के लिए मैं ये करना चाहती हूँ? इतना ही समझ पाए इन छ: सालों में तुम मुझे वेंकट।” प्रतिभा बहुत ग़ुस्से में थी। उसकी आवाज़ तेज़ होने के कारण आसपास के लोगों ने एक बार उनकी ओर मुड़कर देखा, पर फिर वापस अपने अपने काम में लग गए। प्रतिभा ने अपने ग़ुस्से पर क़ाबू किया और शान्ति से बोली “ठीक है। अब इस डिस्कशन का कोई मतलब नहीं। जैसा कि मैंने कहा, मैं दो दिन बाद सबरीमाला जा रही हूँ। अब मैं तभी तुमसे मिलूँगी जब मैं अपने उद्देश्य में सफल हो जाऊँगी। उम्मीद करती हूँ कि तब तक तुम्हारी सोच भी बदल चुकी होगी। वरना तो हमारे साथ का मतलब भी क्या बनता है?”

प्रतिभा के इस व्यवहार और उसकी बातों से वेंकटेश के मन को जो चोट लगी वो उसकी आँखों में साफ़ दिख रही थी। उसकी कोशिश निरर्थक सिद्ध हो गई थी और उसे कोई तरीका नहीं सूझ रहा था प्रतिभा को समझाने का। एक पल वो प्रतिभा के चेहरे को यूँ ही चुपचाप देखता रहा, फिर “पछताओगी तुम प्रतिभा।” कहते हुए वो चुपचाप उठकर चला गया।

आज का दिन प्रतिभा के लिए जीत का दिन था। आज प्रतिभा ने जो चाहा था हासिल कर लिया था। कुछ हफ़्तों की लगातार कई कोशिशों के बाद आज आख़िरकार वो सबरीमाला मंदिर में पुलिस की मदद से घुस ही गई। पहले तो वह सिर्फ़ मंदिर में घुसकर उस पुरानी बेबुनियाद प्रथा को तोड़ना भर चाहती थी पर पता नहीं कब यह हार, जीत का मुद्दा बन गया। पिछले कुछ समय में उसे बहुत कुछ सहना पड़ा। उसकी पहली कोशिश के बाद उसे केरल के हिन्दुओं के ग़ुस्से का शिकार होना पड़ा। होटल्स ने उसे कमरा देने से मना कर दिया, ऑटोवालों ने उसे कहीं भी ले जाने से मना कर दिया, सब उसे इस तरह से देखते जैसे कि वो कोई अपराधी हो, पहली बार उसे केरल छोड़कर मजबूरी में जाना पड़ा। पर फिर वहाँ के कुछ ग्रुप्स उसकी मदद के लिए आगे आए और फिर कुछ कोशिशों के बाद उसे आज सफलता मिल ही गई।

सुबह के तीन बजे थे जब प्रतिभा सबरीमाला मंदिर में पुलिस की मदद से घुसी। मंदिर परिसर में घुसते ही ना जाने क्यों अचानक ही उसे वेंकटेश की याद आई। पछताओगी तुम प्रतिभा। उसके ये शब्द प्रतिभा के कानों में गूँज गए। पिछले कुछ हफ़्तों में जब भी उसने वेंकटेश से बात की, उनकी बात झगड़ों पर ही ख़त्म हुई। जब प्रतिभा ने पहली बार मंदिर में घुसने की कोशिश की और वेंकटेश को फोन पर बताया कि कैसे लोगों ने उसे वहाँ से भगा दिया और कैसे लोग उसे अपने यहाँ जगह भी नहीं दे रहे थे तो वेंकटेश ने कुछ भी रिएक्ट नहीं किया। वो आख़िरी बार था जब प्रतिभा और वेंकटेश की बात हुई थी। उसके बाद वेंकटेश ने प्रतिभा के फोन उठाने ही बंद कर दिए। प्रतिभा को अब भी विश्वास नहीं हो रहा था कि एक पुरानी सी प्रथा के लिए वेंकटेश ने उसका छ: साल का साथ छोड़ दिया। क्या बस इतना ही गहरा रिश्ता था उनका कि इतनी सी बात पर टूट गया?

मंदिर में घुसने के बाद प्रतिभा ज़्यादा कुछ सोच नहीं पाई। बस एक बार उसे वेंकटेश का ध्यान आया। वो कुछ सोच समझ पाती उससे पहले ही अयप्पा स्वामी के भक्तों को उसके मंदिर में घुसने की बात पता चल गई। उसे तुरंत पुलिस वहाँ से निकालने में जुट गई। प्रतिभा के पास समय नहीं था। पुलिस की मदद से वो वहाँ से भागी और फिर उसे जल्द ही एक गाड़ी में बैठा दिया गया। सुबह के चार बजे चुके थे। गाड़ी के बाहर लोग पुलिस वालों से झड़प कर रहे थे। पर प्रतिभा को इस सब की परवाह नहीं थी। ये तमाशा तो वह हर दूसरे दिन देख रही थी। उसका ध्यान तो आज रह रहकर वेंकटेश पर जा रहा था। क्या वेंकटेश उसे कॉल करेगा? क्या उसे यहाँ से सीधे वेंकटेश से मिलने जाना चाहिए? जब वो वेंकटेश से मिलेगी तो वह क्या बोलेगा? यहीं सब सवाल उसके मन में घूम रहे थे।

दिन बीता। बहुत से लोगों ने उसे उसकी सफलता की बधाई देने के लिए कॉल किया, पर वेंकटेश का ना तो कोई कॉल आया ना ही मैसेज। प्रतिभा को उसका यह व्यवहार अब बहुत खल रहा था। वो उसे फोन करके बहुत कुछ सुनाना चाहती थी पर कैसे भी ख़ुद को संभालते हुए उसने अपने आपको ऐसा करने से रोक लिया। वो क्यों कॉल करे? ग़लती वेंकटेश की थी। क्या उसे प्रतिभा की बिल्कुल भी चिंता नहीं थी? क्या एक बार फोन करके वह यह नहीं पूछ सकता था कि तुम ठीक तो हो? इसी सब उधेड़बुन में प्रतिभा ने कोल्लम जाने का निर्णय किया। वो आमने-सामने वेंकटेश से सवाल करना चाहती थी। एक टैक्सी पकड़कर वो कुछ ही घंटों में कोल्लम पहुँच गई। उसने सोच लिया था कि वेंकटेश से मिलकर वो उसे बहुत कुछ सुनाएगी।

जब प्रतिभा कोल्लम में उसके ऑफ़िस पहुँची तो उसे पता चला कि वेंकटेश छुट्टी के लिए घर गया हुआ था। उसकी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया। प्रतिभा की मुलाक़ात वेंकटेश के घर वालों से कभी नहीं हुई थी इसलिए उसके पीछे त्रिशूर जाना उसे सही नहीं लगा। एक रात कोल्लम में बिताकर अगले दिन उसने वापस भोपाल जाने की सोची। वेंकटेश के ऑफ़िस से बाहर निकलते समय प्रतिभा ने वेंकटेश को व्हाट्सएप्प पर कुछ मेसेज भेजे-

“मैं तुमसे मिलने तुम्हारे ऑफ़िस आई थी, पर तुम तो शहर में ही नहीं। जब तुम छुट्टी पर हो तो ऑफ़िस में बिज़ी थे का बहाना नहीं बना सकते। इतना समय हो गया वेंकट क्या तुम्हें मेरी याद नहीं आई? क्या एक बार भी तुम्हारा मुझे कॉल करने का मन नहीं किया?”

“इससे पहले मेरी हर सफलता पर तुमने मुझे सबसे पहले कॉल करके विश किया। मुझे उम्मीद थी कि तुम सब भुलाकर मुझे कॉल ज़रूर करोगे पर तुमने इसकी ज़रूरत नहीं समझी। क्या छः साल का हमारा साथ इतना कमज़ोर था? मुझे तुमसे यह उम्मीद नहीं थी। “

कुछ समय तक जब वेंकटेश का कोई जवाब नहीं आया तो प्रतिभा ने ग़ुस्से में अपना फोन स्विच ऑफ़ कर दिया। उसने निर्णय ले लिया कि अब अगर वेंकटेश कुछ कहना भी चाहेगा तो वो नहीं सुनेगी। भाड़ में जाए। शायद उसे लगता है कि मैं उसके बिना जी नहीं पाऊँगी। ये सारे के सारे मर्द होते ही ऐसे हैं। अगर उसे मेरी ज़रूरत नहीं तो मुझे भी उसकी कोई ज़रूरत नहीं।

प्रतिभा इतना थकी हुई थी होटल रूम जाकर चुपचाप सो गई। अगले दिन की सुबह उसने अपने बैग्स उठाये और भोपाल की फ्लाइट पकड़ने के लिए निकल पड़ी। एअरपोर्ट पहुँचकर उसने एक न्यूज़ पेपर ख़रीदा। वो सबरीमाला की लेटेस्ट न्यूज़ जानना चाहती थी। वह देखना चाहती थी कि न्यूज़ पेपर वालों ने उसके बारे में क्या लिखा था।

न्यूज़ पेपर्स प्रतिभा की तारीफों से भरे पड़े थे। उसे देख प्रतिभा को थोड़ा ख़ुशी हुई। कम से कम कुछ लोग तो थे इस देश में जिन्हें सही और ग़लत की समझ थी। न्यूज़ पेपर पलटते हुए उसकी नज़र एक कोने पर छपी वेंकटेश की फोटो पर पड़ी। प्रतिभा का अब सारा ध्यान उस एक छोटे से न्यूज़-सेक्शन पर था। ख़बर में लिखा था- अय्यप्पा डिवोटी बर्नट सेल्फ टू डेथ। नहीं, वेंकटेश इतना बेवकूफ नहीं, यह पहला विचार उसके मन में आया। उसने तुरंत वेंकटेश को कॉल करने के लिए अपना फोन स्विच ऑन किया, और फोन के स्विच ऑन होते ही उसने देखा कि व्हाट्सएप्प में वेंकटेश ने उसे मैसेज किया था।

“माफ़ करना प्रतिभा, मैं अय्यप्पा स्वामी से अपने तीस सालों का रिश्ता नहीं निभा पाया तो तुमसे छः साल का रिश्ता कैसे निभा पाऊँगा? मैं थोड़ा स्वार्थी हूँ, तुम्हारी ये सफलता मेरी और मेरे जैसे बहुत से लोगों की बहुत बड़ी असफलता है, इसलिए तुम्हें बधाई नहीं दे सकता।”

प्रतिभा के चेहरे का रंग उड़ गया। वेंकटेश एक दिन पहले की दोपहर तक ज़िन्दा था। अगर प्रतिभा ने अपना फोन स्विच ऑफ नहीं किया होता तो शायद उसका मैसेज देखते ही वो उसको फोन कर सकती थी। शायद वो ये सब होने से रोक सकती थी। क्या ऐसा हो सकता था कि वेंकटेश की आत्महत्या की ख़बर ही झूठी हो। प्रतिभा ने ऑनलाइन वेंकटेश के नाम से न्यूज़ सर्च की और उसे कुछ और जगहों से उसकी आत्महत्या की ख़बर की पुष्टि हो गई। प्रतिभा के हाथ से उसका फोन छूट गया। पास से जा रही एक औरत ने प्रतिभा का फोन उठाकर उसे पकड़ाते हुए उसे पहचान लिया। उस औरत के चेहरे के भाव प्रतिभा को पहचानते ही बदल गए।

“आरेंट यू द वन हू एंटर्ड सबरीमाला फोर्सफुल्ली? व्हाट डिड यू गेन?”

प्रतिभा जो पहले से ही सदमें में थी, यह सवाल सुनकर भावुक हो उठी। उसकी ये हालत देख सामने वाली औरत ने उसे अकेला छोड़ दिया। उस औरत के एक सवाल ने प्रतिभा के सामने सवालों की झड़ी लगा दी। क्या पाया उसने? क्या सच में वह औरतों के हक़ की लड़ाई लड़ रही थी या फिर वेंकटेश की बात सच्ची थी? क्या सच में वह एक पल की जीत के अहसास के लिए ये करना चाहती थी? अगर वो सच में औरतों के हक़ की लड़ाई लड़ रही थी तो क्यों इतनी औरतें उसके ख़िलाफ़ हो गई थीं? क्यों सबकी नज़रों में उसे अपने लिए घृणा का भाव दिख रहा था? प्रतिभा के कानों में एक बार फिर से वेंकटेश की आवाज़ गूँज गई “पछताओगी तुम प्रतिभा।”

पूरी दुनिया से कहा पाक को ‘आतंकी देश’ घोषित करो, खुद के प्रस्ताव में नाम भी नहीं!

14 फरवरी को CRPF के काफिले पर हुए हमले के बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में 16 को एक सर्वदलीय बैठक हुई। बैठक के बाद एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें यह कहा गया कि सभी दल पुलवामा में हुए आतंकी हमले की भर्त्सना करते हैं और आतंकवाद की हर रूप में निंदा करते हैं। पारित हुए प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि सभी दल सीमा पार द्वारा समर्थन प्राप्त आतंकवाद की कड़ी निंदा करते हैं।  

लेकिन पूरे प्रस्ताव में कहीं भी पाकिस्तान का नाम तक नहीं लिया गया। हमारे प्रधानमंत्री हर जगह जाकर पाकिस्तान को भिखमंगा देश और न जाने क्या-क्या कह रहे हैं लेकिन सर्वदलीय बैठक में पारित प्रस्ताव में एक बार भी पाकिस्तान का नाम नहीं लिया गया। यह आश्चर्यजनक होने के साथ ही बड़ी विचित्र विडंबना है कि पूरे देश के साथ प्रधानमंत्री भी पाकिस्तान को अपने भाषणों में कोस रहे हैं और चेतावनी भी दे रहे हैं लेकिन जब आतंकी हमले का विरोध करने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई जाती है तब उसमें पाकिस्तान का कहीं ज़िक्र तक नहीं किया जाता।

क्या राजनाथ सिंह सर्वदलीय बैठक में पाकिस्तान का नाम लेने से डर रहे थे? अगर नहीं तो ऐसी क्या वजह थी कि सर्वदलीय बैठक में पाकिस्तान को एक ‘आतंकवाद का समर्थक’ देश घोषित नहीं किया गया? सत्तर सालों से जो देश हमें घाव दे रहा है नाम लेने में क्या हर्ज़ है भला?

वैसे यह पहली बार नहीं है जब कई दलों के नेता मिले, आतंकवाद की कड़ी निंदा की और पाकिस्तान का नाम नहीं लिया। संसद में भी जब राजीव चंद्रशेखर ने प्राइवेट मेंबर बिल लाकर पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करने की माँग की थी तब भी यह बिल पारित नहीं हुआ था। आखिर संसद और सभी दलों की क्या मजबूरी है कि वे बयानों और भाषणों में तो पाकिस्तान का नाम लेने से नहीं चूकते लेकिन जब आधिकारिक तौर पर पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करने की बारी आती है तब मुकर जाते हैं।

पूरे प्रस्ताव में पाकिस्तान का नाम नहीं!

हमारे देश में पाकिस्तान प्रेम का एक विचित्र प्रकार का कीड़ा है जिसने सबको काटा है। बहुत कम ही लोग हैं जो इसके दंश से अछूते हैं। सिनेमा जगत और क्रिकेट के अलावा मीडिया का भी पाकिस्तान प्रेम छिपा नहीं है। जब इमरान खान को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री चुना गया था तब हमारे मीडिया संस्थान इस पर लहालोट हो रहे थे कि अब पाकिस्तान में जम्हूरियत का सितारा बुलंद होगा।

हद तो तब हो गई थी जब सन 2013 में शीर्षस्थ जाँच एजेंसी सीबीआई ने विदेश मंत्रालय से अनुमति माँगी थी कि सीबीआई के स्थापना दिवस पर क़ुर्बान अली के परिवार को आमंत्रित किया जाए। यह माँग स्वीकार तो नहीं की गई थी लेकिन इसका कारण जानना आवश्यक है। दरअसल क़ुर्बान अली खान वह शख्स था जिसने भारत को हज़ार वर्षों में हज़ार घाव (bleeding India by thousand cuts) देने की रणनीति बनाई थी। चूँकि ब्रिटिश भारत में सीबीआई की पूर्वज एजेंसी का अध्यक्ष क़ुर्बान अली ही था इसलिए सीबीआई के कुछ अफसरों ने स्थापना दिवस पर उसके परिवारवालों को बुलाने का विचार किया था।

ग़ौर करें तो एक तरफ भारतीय सुरक्षा एजेंसियाँ क़ुर्बान अली की रणनीति को विफल करने में लगी थीं तो दूसरी तरफ सीबीआई के कुछ अधिकारी क़ुर्बान अली के परिवार को आमंत्रण देने की बात कर रहे थे। सोचने वाली बात यह है कि भारत को ऐसे विचारों से सर्वाधिक खतरा है। यह वैसा ही जैसे आप भाषणों में पाकिस्तान की भरसक निंदा करें लेकिन अपने देश की संसद में उसे एक आतंकी देश घोषित करने में आनाकानी करें।

इन बातों का सार यह है कि पाकिस्तान को लेकर भारत में राष्ट्रीय स्तर पर विचारों में एकरूपता नहीं है। कोई ऐसा सार्वजनिक पटल नहीं है जहाँ सर्वसम्मति से एक सुर में सभी भारतीय- चाहे वह नेता हों, अभिनेता हों, खिलाड़ी, सरकारी कर्मचारी या फिर पत्रकार- पाकिस्तान के प्रति एक राय, एक विचार रखें। सवाल है कि ऐसे ‘नेशनल कन्सेंसस’ की आवश्यकता क्यों है?

सर्वसम्मति की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि हमारा शत्रु एक है- ‘आतंकवाद’। जो भी देश आतंक का भरण पोषण करता है वह हमारे लिए आतंकी देश होना चाहिए। यह विचार भारत के प्रत्येक संस्थान और व्यक्ति द्वारा बिना किसी रिलिजियस अथवा सामुदायिक भेदभाव के अंगीकार किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि इस प्रकार के कानून अमेरिका ने बनाए हैं लेकिन हमारा रवैया पाकिस्तान के प्रति कभी स्पष्ट नहीं रहा।

भारत ने संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन 1373 को स्वीकार किया है लेकिन हमारे यहाँ आतंकवाद को परिभाषित करने वाला कोई कानून नहीं है। विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA) आतंकी गतिविधियों को तो परिभाषित करता है लेकिन आतंकवाद को परिभाषित नहीं करता। इस बात की क्या गारंटी है कि भविष्य में आतंकवाद उसी रूप में हमारे सामने आएगा जो UAPA एक्ट में परिभाषित है?

आज हम पाकिस्तान को FATF जैसे अंतर्राष्ट्रीय फोरम पर ब्लैकलिस्ट करवाना चाहते हैं और संयुक्त राष्ट्र से यह मांग करते हैं कि आतंकवाद की परिभाषा गढ़ी जाए लेकिन जब हम स्वयं आधिकारिक रूप से पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित नहीं कर पा रहे हैं तो इसका सीधा अर्थ यही है कि आतंकवाद से लड़ने की हमारी प्रतिबद्धता दृढ़ नहीं है।