Sunday, October 6, 2024
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वेलेंटाइन डे स्पेशल: ‘राजुला-मालूशाही’ की कहानी जो बन गया प्यार के लिए संन्यासी

वेलेंटाइन डे आ चुका है। कहते हैं कि फ़िज़ाओं में प्रेम की महक फैल रही है। प्रेम तो ऐसा भाव है कि अपने अलग आयामों में बहुत कुछ समेट लेता है। यह कालातीत है, जीवत्व और जीवन के बंधनों से परे है। बहुत कम जीव हैं जिन्हें प्रेम की अनुभूति नहीं होती। हर समय, हर समाज, हर जगह प्रेम से जुड़ी ऐसी कहानियाँ मिलती हैं, जो अपनी पवित्रता और आत्मीयता से हमें आश्चर्यचकित कर देती हैं।

ऐसी ही एक ‘टाइमलेस कहानी’ आपके लिए देवभूमि उत्तराखंड के इतिहास से, जिसके प्रमुख पात्र हैं राजुला और मालूशाही। कहानियों के अनुसार, कुमाऊँ के पहले राजवंश कत्यूर से ताल्लुक रखने वाले मालूशाही शौका वंश की राजुला के प्रेम में राज-पाट छोड़ संन्यासी हो गए थे।

ये प्रेम कथा है 15वीं शताब्दी की जो उत्तराखंड में आज भी लोकगीतों, लोकनाटकों और लोकगाथाओं में देखी, सुनी, कही जाती है। कत्यूर राजवंश के राजकुमार मालूशाही और शौका वंश की सुंदरी राजुला ‘शौक्याणी’ की इस प्रेम कहानी के अलग-अलग संस्करण उत्तराखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों में खूब प्रचलित हैं।

कुमाऊँ के पहले कत्यूर राजवंश की ये कहानी अपनी प्रेमिका के लिए मालूशाही के राजा से जोगी बन जाने तक का सफर है। उस समय कत्‍यूरों की राजधानी बैराठ (वर्तमान चौखुटिया) थी। ‘रंगीले बैराठ’ में तब राजा दुलाशाह शासन करते थे। सम्पन्नता के बावज़ूद संतानविहीन होना दुलाशाह की एक बड़ी वेदना थी। किसी ने राजा को बताया कि वह बागनाथ (बागेश्वर) में शिव की अराधना करें, तो उन्‍हें अवश्य संतान प्राप्‍ति होगी।

भाग्यवश, सूर्य के उत्तरायण का पर्व था और इसी दिन पंचाचूली पर्वत शृंखला में स्थित क्षेत्र ‘मल्ला दारमा’ का सम्पन्न व्यापारी ‘सुनपति शौक’ अपनी पत्नी ‘गांगुली शौक्याण’ के साथ बागेश्वर के बागनाथ मंदिर में दर्शन करने गए थे। यहीं पर दुलाशाह की मुलाकात भोट (दारमा) के व्‍यापारी सुनपति शौक और उसकी पत्‍नी गांगुली से हुई, वह भी संतान की चाह में ही वहाँ आए थे।

दोनों पक्षों की व्यथा एक ही होने के कारण दोनों ने आपस में समझौता किया कि यदि संतानें लड़का और लड़की हुई तो उनकी आपस में शादी कर देंगें। आशुतोष भगवान बागनाथ के आशीष से रंगीले बैराठ के राजा को पुत्र प्राप्ति हुई, उसका नाम ‘मालुशाही’ रखा गया। व्यापारी सुनपत शौक के घर में लड़की हुई, उसका नाम ‘राजुला’ रखा गया।

राजुला और मालू

समय बीतता गया, बैराठ में मालू जवान हो चुका था और भोट में राजुला का सौन्‍दर्य चर्चा का विषय था। बुराँस का पुष्प उसे देखकर खिलता और वसंत उसके केशों में झूमता था। राजुला का मुख कंचन की तरह दमकता, जिस दिशा से वो गुजरती, उसका लावण्‍य समय की गति रोक देता।

लेकिन भाग्य को कुछ और ही था मंजूर

मालू छोटा था जब एक ज्योतिषी ने राजा दुलाशाह को बताया कि यह अल्पायु होगा, ज्योतिषी ने कहा, “राजा! तेरा पुत्र बहुरंगी है, लेकिन इसका तो अल्प-मृत्यु का योग है, इसका निवारण करने के लिए जन्म के 5वें दिन इसका ब्याह किसी नौरंगी कन्या से कराना होगा।” राजा ने फ़ौरन अपने पुरोहित को शौक देश भेजा और उसकी कन्या राजुला से ब्याह करने की बात की, सुनपति शौक तैयार हो गए और खुशी-खुशी अपनी नवजात पुत्री राजुला का प्रतीकात्मक विवाह मालूशाही के साथ कर दिया। इसी बीच राजा दुलाशाह की मृत्यु हो गई जिस पर दरबारियों ने कहा कि जो लड़की मंगनी के बाद अपने ससुर को खा गई, यदि वो इस राज्य में आएगी तो अनर्थ हो जाएगा। इसलिए मालूशाही से यह बात गुप्त रखी गई।

धीरे-धीरे दोनों जवान होने लगे, राजुला जब बड़ी हो गई तो सुनपति शौक ने सोचा राजुला को रंगीली वैराट में मालूशाही से ब्याहने का वचन राजा दुलाशाह को दिया था, लेकिन वहाँ से कोई खबर अब तक नहीं आई।

एक दिन राजुला ने अपनी माँ से पूछा, “माँ, दिशाओं में कौन दिशा प्यारी? पेड़ों में कौन पेड़ बड़ा, गंगाओं में कौन गंगा? देवों में कौन देव? राजाओं में कौन राजा और देशों में कौन देश?” इस पर राजुला की माँ ने जवाब दिया, “दिशाओं में प्यारी पूर्व दिशा, जो नवखंडी पृथ्वी को प्रकाशित करती है, पेड़ों में पीपल सबसे बड़ा, क्योंकि उसमें देवता वास करते हैं। गंगाओं में सबसे बड़ी भागीरथी, जो सबके पाप धोती है। देवताओं में सबसे बड़े महादेव, जो आशुतोष हैं। राजाओं में राजा है राजा रंगीला मालूशाही और देशों में देश है रंगीलो वैराट।”

इस पर राजुला ने अपनी माँ से अपना विवाह रंगीले वैराट प्रदेश में ही करने की इच्छा व्यक्त की। जनश्रुतियों के अनुसार राजुला ने कहा,
“मिकणी बिवाय बाबू, पाली पछाऊँ का देश।
पाली पछाऊँ का देश म, रंगेलो गेवाड़ा।
रंगीलो गेवाडा म, रंगीलो वेरठा।
मिकणी बिवाय बाबू, रंगेलो गेवाड़ा।”

इसी समय तिब्बत के हूण राजा विक्खीपाल ने हमला करने की धमकी देकर सुनपति शौक से राजुला से शादी करने का विचार रखा। वैराट में मालूशाही को स्वप्न में बचपन में हुए विवाह का स्मरण हुआ और राजुला को दिया हुआ विवाह का वचन उसे याद आया। यही सपना राजुला को भी हुआ और अब एक ओर मालूशाही का वचन था तो दूसरी ओर हूण राजा विक्खीपाल की धमकी। इस सब से व्यथित होकर राजुला ने निर्णय लिया कि वह स्वयं वैराट जाएगी और मालूशाही से मिलेगी। उसने अपनी माँ से वैराट का रास्ता पूछा, लेकिन उसकी माँ ने कहा कि अब राजुला को हूण देश ही जाना है, इसलिए वैराट और मालूशाही का विचार वो मन से निकाल दे।

इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’

निराश होकर राजुला ने अपने हाथ की हीरे की अंगूठी और एक पत्र मालूशाही को भेज दिया। पत्र में लिखा था, “क्योंकि मेरे पिता अब मुझे हूण देश ब्याह रहे हैं, तो मुझे लेने तुम तिब्बत के हूण देश ही आना।”

…. इक आग का दरिया है और डूब के जाना है

राजुला का पत्र पढ़कर मालूशाही शोक में डूब गया, राजुला के विवाह की ख़बर ने मानो उसे निर्जीव कर दिया। मालूशाही की आँखें सूख गई, उसका अन्न-जल त्याग हुआ, लेकिन वो जानता था कि यह समय विलाप का नहीं है।

मालूशाही ने व्यथित होकर अपना राजसी मुकुट, राजसी कपड़े नदी में बहा दिए और गुरु गोरखनाथ की शरण में पहुँच गया। वो जानता था की हूण देश के लोग तंत्र-विद्या के महारथी हैं और उनसे टकराव आसान न होगा। मालूशाही ने गोरखनाथ से निवेदन किया कि राजुला से मिलवाने में वो उसकी मदद करें। लेकिन गुरु गोरखनाथ आने वाले कष्टों को भाँप चुके थे, जिस कारण उन्होंने मालूशाही से वापस जाकर राजपाठ संभालने को कहा। लेकिन, मालूशाही का मर्म तो प्रेम था और राजुला की व्यथा सोचकर वह अपनी जिद पर अड़े रहें।

यह देखकर गुरु गोरखनाथ ने मालूशाही को दीक्षा दी और ‘बोक्साड़ी विद्या’ सिखाई। उन्होंने मालूशाही को वे तंत्र-मंत्र भी सिखाए जिससे वह हूण और शौका देश के विष से बच सके। इसके बाद मालूशाही ने राजुला से मिलने के लिए राजपाट छोड़ा, सर मुंडाया, जोगी का वेश धर लिया और धूनी की राख शरीर में मल कर जोगी का वेश धर लिया।

धरकर जोगी का भेष, मालूशाही पहुँचा राजुला के देश

मालूशाही जोगी के वेश में घूमता हुआ हूण देश पहुँचा, साथ में चालाकी से अपनी कत्यूरी सेना भी लेकर गया। मालू घूमते-घूमते राजुला के महल पहुँचा, वहाँ बड़ी चहल-पहल थी, क्योंकि विक्खीपाल राजुला को ब्याह कर लाया था। मालू ने भिक्षा के लिए आवाज लगाई। गहनों से लदी राजुला सोने के थाल में भिक्षा लेकर आई और जोगी को भिक्षा देने लगी। लेकिन जोगी एकटक राजुला को देखता रह गया, उसने अपने स्वप्न में देखी राजुला को साक्षात देखा, तो अवाक रह गया और अपनी सुध-बुध खोकर स्तब्ध हो गया।

जोगी ने राजुला से कहा, “अरे रानी, तू तो बड़ी भाग्यवती है, यहाँ कहाँ से आ गई?”
राजुला ने जोगी की ओर अपना हाथ बढ़ाकर अपने हाथ की रेखाएँ देखकर बताने को कहा। जोगी ने कहा कि वो बिना नाम-ग्राम के हाथ न देखेगा।
राजुला ने उसे बताया, “मैं सुनपति शौक की लड़की राजुला हूँ, अब बता जोगी, मेरा भाग्य क्या है।”
जोगी बने मालूशाही ने प्यार से राजुला का हाथ अपने हाथ में लिया और कहा “तेरे भाग्य में तो रंगीलो वैराट का मालूशाही था।”

तो राजुला ने रोते हुए कहा, “हे जोगी, मेरे माँ-बाप ने तो मुझे जानवरों की तरह विक्खीपाल के पास हूण देश भेज दिया।”
इसके बाद मालूशाही अपना जोगी वेश उतारकर कहा, “मैंने तेरे लिए ही जोगी वेश लिया है राजुला, मैं तुझे यहाँ से ले जाने आया हूँ।”

राजुला-मालूशाही, दोनों प्रेमी-प्रेमिका ने एक दूसरे को पहचान लिया। हूण राजा विक्खीपाल को मालूशाही के चेहरे और हाव-भाव से उसके राजा होने का संदेह हो गया और अंदेशा होने पर वो मालूशाही और उसके साथियों को मार देने की योजना बनाने लगा। राजा विक्खीपाल ने अपने सेवकों से मेहमानों (साधू और उसके चेले) के लिए हलवा-पूरी, खीर आदि पकवान खिलाने को कहा और मालूशाह की खीर में जहर मिलाकर उन सबको बेहोश कर दिया।

इसकी सूचना मिलते ही गुरु गोरखनाथ ने एक सेना के साथ हूण देश जाकर अपनी बोक्साड़ी विद्या का प्रयोग कर के मालू को जीवित कर दिया। फिर मालूशाही ने हूण राजा विक्खीपाल को उसकी सेना समेत मार गिराया और रंगीले वैराट लौट गया।

सवाल पूछने वाले मॉब लिंचर हैं, नहीं चाहिए इनका वोट: मनसे नेता ने मोदी समर्थक को कहा ‘हत्यारा’

जी न्यूज के कार्यक्रम ‘ताल ठोक’ का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। ऑपइंडिया टीम के सदस्यों को भी इस कार्यक्रम से जुड़ी एक वीडियो मिली है। 10 मिनट के इस वीडियो में कॉन्ग्रेस और महाराष्ट्र नवनिर्णाण सेना (मनसे) के दो नेता युवाओं के धारदार सवाल के आगे घुटने टेकते नजर आ रहे हैं।

दरअसल, जी न्यूज के ‘ताल ठोक’ कार्यक्रम की जो वीडियो वायरल हो रहा है, उसमें अमन चोपड़ा एकरिंग करते हुए दिख रहे हैं। इस कार्यक्रम में मनसे की तरफ़ से संदीप देशपांडे ने शिरकत किया है। कार्यक्रम के दौरान कॉन्ग्रेस नेता ने प्रधानमंत्री मोदी को ‘फेंकू’ कह दिया, इसके बाद जब युवाओं ने कॉन्ग्रेस नेताओं से उनका एजेंडा पूछा तो वो घबराकर चिल्लाने लगे। इसके बाद जब लगातार युवाओं द्वारा एक के बाद एक सवाल पूछा जाने लगा तो कॉन्ग्रेस नेता घबराए नजर आए।

इसके बाद युवाओं के सवाल पर भड़ककर मनसे नेता संदीप देशपांडे ने बीच में ही एंकर अमन चोपड़ा को कहा कि ‘वो यहाँ मॉब लिचिंग करा रहे हैं’। जब एंकर अमन ने संदीप से पूछा कि क्या सवाल पूछना मॉब लिंचिंग है? इस सवाल से घबराकर संदीप देशपांडे कॉन्ग्रेस नेता के साथ मिलकर कार्यक्रम के दौरान चिल्लाने लगते हैं। यही नहीं, वहाँ मौजूद सवाल पूछ रहे युवाओं को मॉब लिंचर करार देते हैं।

कार्यक्रम के दौरान जब एंकर पूछते हैं कि संदीप जी आपको इन युवाओं का वोट नहीं चाहिए, तो इस सवाल पर संदीप देशपांडे का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच जाता है और वो कहते हैं कि नहीं मुझे इन युवाओं का वोट नहीं चाहिए।

कॉन्ग्रेस और मनसे नोताओं के इस जवाब के बाद युवाओं ने एक के बाद एक धारदार सवाल खड़ा करना शुरू कर दिया, जिसके बाद दोनों ही नेताओं ने कार्यक्रम के दौरान अपना आपा खो दिया।

BSP नेता याकूब कुरैशी के बूचड़खाने को मेरठ पुलिस ने किया सील

मेरठ विकास प्राधिकरण (MDA) ने मंगलवार को बहुजन समाज पार्टी (BSP) के नेता याकूब कुरैशी के बूचड़खाने को सील कर दिया है। फ़रवरी के पहले सप्ताह में स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा बूचड़खाने के संबंध में कार्रवाई पर रोक लगाने वाले आदेश को MDA ने रद्द कर दिया है।

अल फहीम मीटेक्स प्राइवेट लिमिटेड (Al Faheem Meatex Pvt Ltd meat factory) नाम के इस मीट फैक्ट्री को बनाने से पहले संबंधित सरकारी अधिकारियों से नक्शे को मंजूरी नहीं मिली थी। जिस जमीन पर बूचड़खाने का निर्माण किया गया है, उसके कुछ हिस्से नन-कंपाउंडेबल क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।

इससे पहले स्थानीय प्रशासन ने एमडीए द्वारा बूचड़खाने को सील करने पर रोक लगा दी थी। हालाँकि, फैक्ट्री को सील करने से पहले MDA ने संचालक को अपना पक्ष रखने के लिए कहा था, लेकिन जब संचालक अपना पक्ष नहीं दे सका, तो MDA की तरफ से स्टे आर्डर रद्द कर दिया गया।

बता दें कि बूचड़खाने के मालिक कुरैशी को बसपा ने मेरठ-हापुड़ सीट के लिए के लोकसभा प्रभारी के रूप नियुक्त किया है। पिछले दिनों कुरैशी ने उच्च न्यायालय से सीलिंग पर रोक लगाने की माँग की थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने कुरैशी की माँग को ठुकरा दिया था।

पिछले मंगलवार को MDA के अधिकारी पुलिस के साथ बूचड़खाने वाली जगह पर पहुँचे। इसके बाद बूचड़खाने को अधिकारियों ने सील कर दिया। यही नहीं किसी भी इस क्षेत्र में किसी भी अप्रिय स्थिति से बचने के लिए पुलिस की तरफ से काफ़ी सतर्कता बरती गई थी।

हालाँकि, कुछ मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, अधिकारियों ने अवैध क्षेत्र को सील करने में केवल औपचारिकता की थी क्योंकि बूचड़खाने का केवल एक छोटा सा हिस्सा सील किया गया था। मीडिया रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि MDA टीम को शुरू में परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी और बाद में बहुत संघर्ष के बाद बूचड़खाने के अंदर जाने की अनुमति दी गई।

जानकारी के लिए बता दें कि कुरैशी पहली बार 2006 में खबरों में तब आए थे, जब उन्होंने डेनमार्क के एक कार्टूनिस्ट के सिर लाने वाले को 51 लाख रुपए देने की बात कही। कुरैशी ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि वह कार्टूनिस्ट इस्लाम विरोधी कार्टून बनाता था। यही नहीं कुरैशी यूपी के कद्दावर नेताओं में से एक हैं। इन्हें तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार में ‘मुस्लिम मामलों’ का मंत्री बनाया गया था। उन्होंने बाद में बसपा को ज्वाइन कर लिया।

AMU छात्रों ने लगाए भारत विरोधी नारे, 14 छात्रों के ख़िलाफ़ देशद्रोह का मुक़दमा दर्ज

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) छात्र संघ के अध्यक्ष सलमान इम्तियाज सहित 14 छात्रों के ख़िलाफ़ देशद्रोह का मुक़दमा दर्ज किया गया है। इन छात्रों पर आईपीसी की धारा 124A के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है। पुलिस ने AMU में पढ़ने वाले इन छात्रों के ख़िलाफ़ तोड़-फोड़ और लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप भी लगाए हैं।

एएमयू उपद्रवियों के ख़िलाफ़ प्रमुख शिकायतकर्ता भाजपा युवा मोर्चा के सदस्य मुकेश लोढ़ा ने आरोप लगाया है कि एएमयू छात्र संघ अध्यक्ष सहित कुछ अन्य छात्रों ने विरोध दर्ज कराने की वजह से उनकी कार को रोककर उन्हें धमकी दी।

मुकेश लोढ़ा ने बताया कि कैंपस के उपद्रवी छात्रों की भीड़ ने कई वाहनों को आग लगा दी। इसके बाद उपद्रवी छात्रों ने भारत विरोधी और पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए। जिसके बाद उन्होंने उपद्रवियों के ख़िलाफ़ राजद्रोह का मामला दर्ज करने के लिए थाने में शिकायत की।

इस मामले में अलीगढ़ पुलिस ने कहा है कि धारा 307 और धारा 153 को किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने और हिंसक धमकी और तोड़-फोड़ में लिप्त होने के लिए AMU के अराजक तत्वों के ख़िलाफ़ चालान किया गया है।

यही नहीं अलीगढ़ पुलिस ने एएमयू कैंपस में अराजकता फैलाने वाले 56 छात्रों को कैंपस से निष्कासित करने की माँग विश्वविद्यालय प्रशासन से की है। पुलिस अधिकारियों के अनुसार जल्द ही इन अराजक छात्रों के ख़िलाफ़ गैर-जमानती वारंट जारी किया जाएगा।

बता दें कि एक दिन पहले AMU छात्रों द्वारा रिपब्लिक टीवी के क्रू को परेशान किया गया था जिसके बाद उपद्रवी छात्रों के ख़िलाफ़ धारा 307 और धारा 153 के तहत टीवी क्रू ने स्थानीय पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी।

AMU कैंपस में उपद्रवी छात्रों ने रिपब्लिक टीवी के पत्रकारों को धमकाया था, जिसमें एक महिला पत्रकार भी शामिल थी। भीड़ ने महिला क्रू मेंबर्स को धमकी दी थी कि किसी भी कीमत पर महिला होने की वजह से उन्हें नहीं बख्शा जाएगा। यही नहीं छात्रों ने महिला पत्रकार के साथ अभद्रता करते हुए उसका कैमरा भी तोड़ दिया था।

द वायर ने इस घटना के बारे में एक झूठी कहानी गढ़कर एएमयू के गुंडागर्दी कर रहे छात्रों का समर्थन करते हुए कहा कि रिपब्लिक टीवी वालों ने ही भड़काया था। हालाँकि, एक विडम्बना ये भी है कि एएमयू में पाकिस्तान समर्थक नारे लगाए जाने की ख़बर को मुख्यधारा की मीडिया बहुत अधिक गंभीरता से नहीं ले रही है।

इमाम ने स्कूली बच्ची को बनाया हवस का शिकार, पकड़े जाने पर कहा ‘बीवी है मेरी’

केरल पुलिस ने एक नाबालिग लड़की के यौन शोषण के मामले में थोलिकोड (Tholicode) के मुख्य इमाम और केरल इमाम काउंसिल के सदस्य शफ़ीक़ अल क़ासिमी के ख़िलाफ़ POCSO अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है।

ख़बरों के अनुसार, मस्जिद कमेटी के बयान के बाद मामला दर्ज किया गया था, जिसमें कहा गया था कि इमाम ने एक 15 वर्षीय लड़की को बहका कर जंगल में ले जाकर बच्ची का यौन उत्पीड़न किया। स्थानीय महिलाओं के एक समूह ने जब इमाम को एक स्कूल जाने वाली लड़की के साथ देखा तो भेद खुल गया।

थोलिकोड मुस्लिम मस्जिद के अध्यक्ष की शिकायत के पर मंगलवार को तिरुवनंतपुरम के नेदुमंगद (Nedumangad) के विथुरा पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया। कहा जाता है कि इमाम भी उसी मस्जिद में काम किया करता था। घटना की सूचना मिलने के बाद, दरिंदे शफ़ीक़ को मस्जिद और इमाम परिषद में उनके पद से हटा दिया गया था।

रिपोर्ट के अनुसार, कई गवाहों द्वारा नाबालिग के यौन उत्पीड़न की पुष्टि की गई है। मस्जिद के अध्यक्ष बदुशा (Badusha) द्वारा इन गवाहों के बयान का एक ऑडियो क्लिप जारी की गई थी। मस्जिद के सदस्यों द्वारा जाँच शुरू करने के बाद इस पूरे मामले का खुलासा हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार, जब स्थानीय महिलाओं ने इमाम से सवाल किया, तो उसने झूठ बोला कि बच्ची उसकी पत्नी थी। जब महिलाओं ने बच्ची के यूनिफॉर्म और स्कूल के बैज पर ध्यान दिया, तो उन्हें संदेह हुआ।

जब महिलाओं ने सवाल किया कि 15 साल की लड़की 40 वर्षीय व्यक्ति की पत्नी कैसे हो सकती है, तब इमाम आपा खोने लगा और ख़ुद ही चिल्लाता हुआ वहाँ से भाग निकला।

बता दें कि मदरसों और चर्च में एक के बाद एक यौन उत्पीड़न के मामले सामने आ रहें हैं, कुछ दिन पहले केरल के एक पादरी पर चर्च की ननों के यौन उत्पीड़न का मामला सामने आया था।

देसी वैलेंटाइन: भारत के वो मेले जहाँ लोग अपना जीवन साथी खुद चुनते हैं

इस दुनिया में हर किसी को एक जीवन साथी चाहिए होता है जिसके लिए आजकल शहरों में रहने वाले लड़के-लड़कियाँ तरह-तरह के जतन करते हैं। लेकिन भारत के कुछ भागों में प्राचीनकाल से ही आदिवासी समुदाय के लोग द्रौपदी के स्वयंवर से प्रेरित ऐसे आयोजन का हिस्सा बनते रहे हैं जहाँ लड़के-लड़कियाँ अपना जीवन साथी स्वयं चुनते हैं।

गुजरात के सुरेन्द्रनगर ज़िले में तरनेतर का मेला लगता है जहाँ पारंपरिक नृत्य इत्यादि होते हैं। विवाहिताएँ तो काले लहंगे में नाचती हैं लेकिन जो लड़कियाँ लाल लहंगे में नाचती हैं उन्हें वर चाहिए होता है। त्रिनेत्रेश्वर महादेव के मंदिर के पास लगने वाले मेले में यह परंपरा 200-250 वर्षों से चली आ रही है। यह मेला आज भी लगता है तथा कुछ मात्रा में जीवनसाथी पसन्द भी किए जाते हैं।

छत्तीसगढ़ में ऐसा ही भगोरिया मेला लगता है। भगोरिया एक उत्सव है जो होली का ही एक रूप है। यह मध्य प्रदेश के मालवा अंचल के आदिवासी इलाकों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। भगोरिया के समय धार, झाबुआ, खरगोन आदि क्षेत्रों के हाट-बाजार मेले का रूप ले लेते हैं और हर तरफ फागुन और प्यार का रंग बिखरा नजर आता है।

भगोरिया हाट-बाजारों में युवक-युवती बेहद सजधज कर अपने भावी जीवनसाथी को ढूँढने आते हैं। इनमें आपसी रज़ामंदी ज़ाहिर करने का तरीका भी बेहद निराला होता है। सबसे पहले लड़का लड़की को पान खाने के लिए देता है। यदि लड़की पान खा ले तो हाँ समझी जाती है। इसके बाद लड़का लड़की को लेकर भगोरिया हाट से भाग जाता है और दोनों विवाह कर लेते हैं। इसी तरह यदि लड़का लड़की के गाल पर गुलाबी रंग लगा दे और जवाब में लड़की भी लड़के के गाल पर गुलाबी रंग मल दे तो भी रिश्ता तय माना जाता है।

बिहार के मिथिला क्षेत्र के मधुबनी में सौराठ सभा अर्थात दूल्हों का मेला लगता है। यह मेला हर साल ज्येष्ठ या अषाढ़ महीने में 7 से 11 दिनों तक लगता है जिसमें कन्याओं के पिता योग्य वर को चुनकर अपने साथ ले जाते हैं। यह एक प्रकार से सामूहिक अरेंज मैरिज होता है। इस सभा में लड़के अपने पिता व अन्य अभिभावकों के साथ आते हैं। कन्या पक्ष के लोग वरों और उनके परिजनों से बातचीत कर एक-दूसरे के परिवार कुल-खानदान के बारे में पूरी जानकारी इकट्ठा करते हैं और दूल्हा पसंद आने पर रिश्ता तय कर लेते हैं।

सौराठ सभा में पारंपरिक पंजीकार होते हैं जो तय हो चुके रिश्ते का पंजीकरण करते हैं। पंजीकार के पास वर और कन्या पक्ष की वंशावली होती है। उसमें पंजीकार दोनों तरफ की सात पीढ़ियों के उतेढ़ (विवाह का रिकॉर्ड) का मिलान करते हैं। दोनों पक्षों के उतेढ़ देखने पर जब पुष्टि हो जाती है कि दोनों परिवारों के बीच सात पीढ़ियों में इससे पहले कोई वैवाहिक संबंध नहीं हुआ है, तब पंजीकार रिश्ता पक्का करने की स्वीकृति देता है।

छत्तीसगढ़ की मुरिया और गोंड जनजाति के लोगों में लड़के लड़कियों के स्वछंद मिलन की प्रथा है जिसे घोटुल कहा जाता है। घोटुल एक बड़े कुटीर को कहते हैं जिसमें पूरे गाँव के बच्चे या किशोर सामूहिक रूप से रहते हैं। यह छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले और महाराष्ट्र व आंध्र प्रदेश के पड़ोसी इलाक़ों के गोंड ग्रामों में विशेष रूप से मिलते हैं। अलग-अलग क्षेत्रों की घोटुल परंपराओं में अंतर होता है।

कुछ में बच्चे घोटुल में ही सोते हैं और अन्य में वे दिन भर वहाँ रहकर रात को अपने-अपने घरों में सोने जाते हैं। घोटुल में क़बीले से संबंधित आस्थाएँ, ज्ञान, नृत्य-संगीत और कथाएँ सीखी जाती है। कुछ में किशोर किशोरियाँ आपस में बिना बाधा मिलकर जीवन साथी भी चुना करते हैं जिसे आज के ज़माने की ‘डेटिंग’ जैसा समझा जा सकता है। हालाँकि यह आधुनिक शहरी मान्यताओं के दबाव में धीरे-धीरे कम हो रहा है।

इसी प्रकार उत्तराखंड की भोटिया जनजाति में ‘रड़-बड़ विवाह’ की प्रथा हुआ करती थी, जिसमें महिलाओं को अपना वर चुनने का अधिकार होता था। इस प्रथा में विशाल मेले का आयोजन किया जाता था और लोग बड़ी मात्रा में इसमें हिस्सा लेकर अपना मनचाहा जीवन साथी चुन सकते थे। यह परंपरा उत्तराखंड में प्राचीन समय से ही महिलाओं की इच्छाओं के मान सम्मान का भी परिचायक है।

स्रोत:- विकिपीडिया और अन्य वेबसाइट से संकलित

कुम्भ जा रही महिला को हुई मेडिकल इमरजेंसी, रेलवे ने तुरंत पहुँचाई चिकित्सा

भारतीय रेलवे ने ट्वीट द्वारा की गई अपील पर एक्शन लेते हुए एक महिला को त्वरित मेडिकल सपोर्ट मुहैया कराई। दरअसल, प्रशांत भारती नामक व्यक्ति ने ट्वीट कर रेलवे को महिला के पेट में असहनीय दर्द होने की सूचना दी, जिसके बाद रेलवे ने संज्ञान लेते हुए मेडिकल टीम भेजी।

प्रशांत भारती ने अपने ट्वीट में रेलवे को टैग करते हुए लिखा:

“कुम्भ यात्रा पर जा रहीं किशनगंज के भावेश जालान की माताजी पारवती जालान के पेट में असहनीय दर्द है। ट्रैन प्रयाग स्टेशन पहुँचने वाली है। तुरंत मेडिकल सपोर्ट की ज़रूरत है।”

इसके बाद रेलवे ने तुरंत संज्ञान लेते हुए प्रशांत से पीएनआर संख्या माँगी। रेलवे ने प्रयागराज के डिविजनल रेलवे मैनेजर को टैग करते हुए तुरंत मेडिकल सुविधाएँ मुहैया कराने को कहा।

कुछ देर बाद प्रशांत ने ट्वीट कर जानकारी देते हुए बताया कि उक्त महिला तक समुचित चिकित्सा पहुँच गई है। उन्होंने रेलवे व डीआरएम को उनकी सामूहिक तत्परता के लिए ह्रदय से आभार व्यक्त किया।

इसके बाद केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल ने ट्ववीट कर महिला के स्वास्थ्य की कामना की। उन्होंने बताया कि रेलवे यात्रियों की कुशलता के लिए किसी भी प्रकार की सहायता पहुंचाने के लिए हमेशा तैयार है। रेल मंत्री के ट्वीट के प्रत्युत्तर में प्रशांत ने बताया कि पार्वती जालान अब सकुशल हैं और उन्होंने पूरी रेलवे टीम को धन्यवाद भेजा है।

सोशल मीडिया पर भी लोगों ने रेलवे को उसकी तत्परता के लिए सराहा। लोगों ने कहा कि इस तरह की सर्विस पहले कभी नहीं देखी। उन्होंने मोदी कैबिनेट के मंत्रियों को ‘कुशल’ बताया।

244 आतंकियों का ख़ात्मा: 2018 सबसे सफल साल, गृह मंत्रालय की रिपोर्ट

गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन सालों की तुलना में 2018 में सेना ने सबसे अधिक आतंकियों को जम्मू-कश्मीर में मार गिराया है। रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि 2016 में भारतीय सेना ने 135 आतंकियों को मार गिराया था, जबकि 2017 में यह आँकड़ा 207 पहुँच गया था।

2018 में सेना ने कश्मीर में 244 आतंकी को मार गिराया। इस तरह जाहिर होता है कि केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद कश्मीर में आतंकी सफाई को लेकर बड़ा कदम उठाया गया है।

कश्मीर में अशांति फैलाने वाले आतंकी समूह को जड़ से खत्म करने के लिए सेना दिन-रात काम कर रही है। इसका परिणाम यह हुआ है कि पिछले साल सबसे ज्यादा घुसपैठ करने की कोशिश आतंकियों द्वारा की गई, लेकिन उन सबको बॉर्डर पर मार गिराकर सेना ने आतंकियों के मंसूबे पर पानी फेर दिया।

हालाँकि, 2017 की तुलना में 2018 में संघर्ष विराम उल्लंघन की ज्यादा घटनाएँ घटी हैं। 2017 में संघर्ष विराम की 971 घटनाएँ घटी जबकि 2018 में संघर्ष विराम की 2140 घटनाएँ घटी। पिछले साल आतंकी और पाकिस्तानी सेना द्वारा जब कभी घुसपैठ का प्रयास किया गया या फिर संघर्ष उल्लंघन किया गया तो भारतीय सेना ने मुँहतोड़ जवाब दिया है।

जानकारी के लिए बता दें कि कश्मीर में सेना के सफल प्रयास से ही हिज़्बुल मुज़ाहिद्दीन का गढ़ माने जाने वाला ज़िला बारामूला को अब आतंक-मुक्त घोषित कर दिया गया है। सेना और पुलिस की इस क़ामयाबी पर पूरे देश को गर्व होना चाहिए। 23 जनवरी 2019 को सेना के साथ मुठभेड़ में तीन आतंकियों के मारे जाने के बाद जम्मू एवं कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह ने इस बात की पुष्टि की थी।

जम्मू एवं कश्मीर में जितने भी आतंक प्रभावित ज़िले हैं, उनमें से बारामूला आतंक-मुक्त घोषित होने वाला पहला ज़िला है।

नेताजी भी निकले मोदी के फैन, सदन में गूँजा ‘जय श्री राम’

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव भी पीएम मोदी के फैन निकले! लोकसभा चुनाव से पहले मुलायम सिंह ने बड़ा बयान दिया है। पूर्व सपा सुप्रीमो ने नरेंद्र मोदी के फिर से प्रधानमंत्री बनने की कामना की है। बजट सत्र के आखिरी दिन मुलायम ने पीएम मोदी की उपस्थिति में सदन में कहा:

“मेरी कामना है कि यहाँ जितने भी सदस्य हैं, वे फिर से चुनकर आएँ। हम इतना बहुमत हासिल नहीं कर सकते हैं, इसलिए प्रधानमंत्री जी आप फिर प्रधानमंत्री बनकर आएँ।”

मुलायम सिंह के इस बयान का सदन ने ठहाकों और तालियों की गड़गड़ाहट से स्वागत किया। संसद में यूपीए अध्यक्षा सोनिया गाँधी के साथ बैठे मुलायम ने जैसे ही पीएम मोदी के बारे में ऐसा कहा, लोकसभा में ‘जय श्री राम’ के नारे गूँजने लगे। उनके बगल में बैठीं सोनिया गाँधी इस दौरान इधर-उधर देखने लगीं।

मुलायम सिंह के इस बयान के कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। उनके बेटे और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने यूपी में मोदी के रथ को रोकने के लिए नेताजी की पुरानी राजनीतिक दुश्मन मायावती से गठबंधन कर लिया है। अखिलेश आए दिन मोदी पर हमला करते रहते हैं। ऐसे वक़्त पर मुलायम के इस बयान को अहम माना जा रहा है। क्या नेताजी ने देश का मूड पहले ही भाँप लिया है?

प्रधानमंत्री मोदी की प्रसंशा करते हुए मुलायम सिंह यादव ने कहा:

“मैं प्रधानमंत्री जी को बधाई देना चाहता हूँ। आपने सबसे मिल जुल करके सबका काम किया है। हम जब-जब मिले, किसी काम के लिए कहा, आपने उसी वक्त ऑर्डर किया। मैं आपका आदर करता हूं, सम्मान करता हूँ।”

राहुल गाँधी ने मुलायम के इस बयान से असहमति जताई है। उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह का राजनीति में अहम योगदान है और वे उनका सम्मान करते हैं। पीएम मोदी ने भी सदन में अपने भाषण के दौरान मुलायम के इस बयान का ज़िक्र करते हुए कहा- “मुझे मुलायम सिंह जी ने आशीर्वाद दे दिया है। मैं उनका सम्मान करता हूँ।

मुलायम सिंह ने लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन की भी तारीफ़ की। उन्होंने कहा कि सुमित्रा महाजन अच्छी तरह से सदन चलाने में क़ामयाब हुईं हैं। समाजवादी पार्टी के नेताओं ने कहा कि उन्हें मुलायम सिंह के बयान की जानकारी नहीं है।

महिमा हिन्दू आध्यात्म की: सस्ती लोकप्रियता के लिए ‘सनातन सद्गुरु’ यीशु भी ले रहे हैं कुम्भ की मदद

प्रयागराज में कुम्भ चल रहा है। आस्था और उत्साह का सैलाब चरम पर है। कुम्भ मेले की व्यापकता का ही प्रभाव है कि हिन्दुओं के साथ-साथ अन्य आस्था, मत, सम्प्रदाय और धर्म के लोग हर तरह से प्रयागराज में चल रहे कुम्भ मेले का आनंद ले रहे हैं।

सनातन हिन्दू धर्म के इस त्यौहार की सबसे बड़ी खूबी है कि इसके विस्तार में सिर्फ हिन्दू ही नहीं बल्कि बड़े स्तर पर यह लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ हुआ है। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण प्रयागराज से आने वाली ये तस्वीरें हैं जिसमें सद्गुरु यीशु आपको अपने से जोड़ने की प्रार्थना कर रहे हैं।  

हिन्दू धर्म की सहिष्णुता का ये एक बहुत बड़ा उदाहरण है। त्यौहार हिन्दुओं का, डुबकी हिन्दुओं की, ताम-झाम हिन्दुओं का और हाथ धो रहे हैं ईश्वर के पुत्र पवित्र यीशु! धर्म परवर्तन और प्रचार के मकसद से डाले गए ईसाई धर्म के कैंप प्रयागराज तक भी पहुँच चुके हैं। और इसके लिए विकसित देशों से उपजी धर्म परिवर्तन की सभ्यताएँ हर तरह के हथकंडे अपना रही है। कुम्भ मेले में ईसाई मिशनरियों के पंडाल का प्रमुख उद्देश्य यही है।  

प्रयागराज में चल रहे कुम्भ में जो पर्चे बाँटे जा रहे हैं उनमें बहुत ही आसानी से यीशु (ईसा मसीह) को ‘सद्गुरु यीशु’ बनाकर जनता के सामने रखा जा रहा है। हिन्दू धर्म के पवित्र उपनिषदों के श्लोकों में ईसा मसीह को ठूँसकर परोसा जा रहा है। धर्म परिवर्तन का यह वाकया धर्म परिवर्तन के लिए अपनाए जा रहे सभी हथकंडों में सबसे ज्यादा ‘क्रिएटिव’ और हास्यास्पद तो है ही, साथ ही यह ईसाइयत के विस्तार की पराकाष्ठा को भी दर्शाता है।

भारत देश में कश्मीर से कन्याकुमारी और JNU से सरकारी विद्यालय तक अपनी पैठ बना रहे ये ‘धर्म परिवर्तक घातक टुकड़ियाँ’ बढ़िया कारोबार कर रही हैं।

इन पर्चों में ईसाई धर्म के प्रचार के लिए हिन्दू धर्म-ग्रंथों और ब्राह्मण साहित्यों के साथ ‘मिलावट का कारोबार’ चल रहा है। इनमें दावा किया गया है कि यीशु ईश्वर के इकलौते पुत्र थे और वो सनातन सद्गुरु हैं, अगर किसी को सत्य जानना है तो उसे सद्गुरु यीशु के पास जाना चाहिए।

असतो मा सद्गमय

ब्राह्मण साहित्यों के श्लोकों की भोंडी नक़ल करते हुए श्लोंको के बीच लिखा गया है, “असतो मा सद्गमय अर्थात यीशु ही हमें असत्य से पूर्ण सत्य पर ले चलते हैं, क्योंकि वे स्वयं सत्य हैं, वो अहमेव सत्यः का दवा करते हैं जिसका मतलब होता है सत्य मैं ही हूँ।”

इसके साथ ही प्रयागराज में बाँटे जा रहे इन किताबों में लिखा गया है, “यीशु ग्रन्थ हमें सिखाता है कि अनंत जीवन पाने के लिए हमें केवल सद्गुरु यीशु पर अपनी आस्था रखनी चाहिए।” इन पर्चों में बड़ी ही सावधानी से लिखा गया है कि सद्गुरु यीशु ही ज्योति हैं।  

मृत्योर्मा अमृतं गमय

एक और पर्चे में लिखा गया है, “जो मेरा सन्देश सुनता और भेजने वाले पर भरोसा करता है, उसे दंड नहीं मिलता और अंतिम न्याय के दिन मैं उसे फिर जीवित कर दूँगा।”

क्या है असल सन्देश

हमारे पूर्वग्रह हमें इस बात पर यकीन करने से रोकते हैं लेकिन हिन्दू धर्म विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता रही है। सदियों बाद भी अगर यह हिन्दू धर्म बिना किसी धर्म प्रचार, धर्म परिवर्तन और हिंसा के, वैश्विक और अडिग है तो इसकी वजह इसके मूल में निहित इसकी सहिष्णुता है।

हिन्दू धर्म में मौजूद आध्यात्म, शान्ति और शालीनता आसानी से हर किसी के आकर्षण का केंद्र बन जाती है। यही कारण है कि निरंतर वैश्विक स्तर पर लोग हिन्दू धर्म से जुड़ रहे हैं।  ईसाई धर्म प्रचार में जुटी हुई ये ‘घातक टुकड़ियाँ’ भी इस मर्म को समझती हैं। बढ़ते हुए भौतिकवाद के बीच हर इंसान जिस शांति की तालाश करता है, उसे हिन्दू धर्म में वह आध्यात्म आसानी से मिल जाता है। शायद यही वजह है कि ‘हिन्दू गरीबों को गुड़ और चना’ की विफल नीति के बाद अब ईसाई मिशनरी भी आध्यात्म और सत्संग के जरिए लोगों को रिझा कर बहुसंख्यक बनने की ओर अग्रसर हैं।