Sunday, October 6, 2024
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भारत में हिन्दू अल्पसंख्यकों को कब मिलेगा उनका हक़? माइनॉरिटीज़ कमीशन का फ़ैसला होगा हिंदुओं के पक्ष में!

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को ‘अल्पसंख्यक’ की परिभाषा तय करने के निर्देश दिए। भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट का ऐसा निर्देश आया। याचिका में कहा गया है कि आँकड़ों के अनुसार हिंदू एक बहुसंख्यक समुदाय है, जबकि पूर्वोत्तर के कई राज्यों और जम्मू-कश्मीर में यही हिंदू अल्पसंख्यक है। याचिका में इस बात का तर्क़ दिया गया है कि हिंदू समुदाय उन लाभों से वंचित है, जो कि इन राज्यों में अल्पसंख्यक समुदायों के लिए मौजूद है।

संविधान में नहीं है परिभाषित

सबसे पहले इस पर विचार करना ज़रूरी है कि जो ‘अल्पससंख्यक’ शब्द हम दशकों से सुनते आ रहे हैं, जिनके हितों की रक्षा की बात होती आ रही है और जिन अल्पसंख्यकों को उनके धर्म व अन्य परम्पराओं के स्वतंत्र पालन की बात कही गई है- वो हैं कौन, कहाँ से आते हैं और उनकी पहचान क्या है। आपको यह जान कर आश्चर्य हो सकता है कि भारतीय संविधान में कहीं भी ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। इसे विडम्बना कहें या अदूरदर्शिता, कई सरकारों ने अल्पसंख्यकों को केंद्र में रख कर हज़ारों योजनाएँ तैयार कीं लेकिन इनके लाभार्थियों की परिभाषा तय करने की ज़रूरत ही नहीं महसूस की

संविधान में सिर्फ़ दो जगह अल्पसंख्यकों की चर्चा की गई है- आर्टिकल 29-30 और आर्टिकल 350A-350B में। सबसे पहले तो संविधान में अल्पसंख्यकों की बात की गई लेकिन उन्हें परिभाषित नहीं किया गया। इसके बाद 1993 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया गया और ‘नेशनल कमीशन फॉर माइनॉरिटीज एक्ट, 1992’ अस्तित्व में आया लेकिन विडम्बना देखिए कि जिनके लिए यह सब किया गया- फिर से उनकी परिभाषा तय करने की ज़रूरत नहीं समझी गई। इस एक्ट के मुताबिक़ मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसियों को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा दिया गया।

बिना परिभाषा तय किए बना आयोग

2006 में अल्पसंख्यकों के लिए एक अलग मंत्रालय बनाया गया। अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के गठन के वक़्त भी अल्पसंख्यकों की परिभाषा तय करने की ज़रूरत नहीं समझी गई। इसे भी उनकी पाँच धार्मिक समुदायों तक सीमित रखा गया। नीति नियंताओं ने एक आयोग के बाद पूरा का पूरा मंत्रालय ही उन लोगों के नाम कर दिया, जिनकी परिभाषा ही तय नहीं है। यह ऐसा ही है जैसे सरकार ने किसी ‘ABC’ के लिए आयोग का गठन किया, मंत्रालय बनाया, हज़ारों योजनाएँ तैयार की- लेकिन वो ‘ABC’ कौन लोग हैं, यह परिभाषित ही नहीं है

संविधान में माइनॉरिटीज के हितों की चर्चा

भारत में अल्पसंख्यकों की परिभाषा तय किए बिना इतना सब कुछ किया गया, उसके दुष्परिणाम को समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं। क़तर, पश्चिम एशिया का एक अमीर राष्ट्र है, जो अपने तेल संसाधनों के लिए प्रसिद्ध है। अपने छोटे आकार के बावजूद से वैश्विक पटल पर अच्छी-खासी धाक रखने वाले क़तर की जनसँख्या है- 26 लाख। क़तर में 67.7% लोग मुस्लिम हैअगर आपसे कोई पूछे कि क़तर की क़रीब 68% जनता जिस समुदाय से आती है, वह माइनॉरिटी (अल्पसंख्यक) है या मेजॉरिटी (बहुसंख्यक), तो आप आपका क्या जवाब होगा?

क्या है भारतीय राज्यों की स्थिति?

यक़ीनन आप आँख बंद कर के कह सकते हैं कि क़तर के 68 प्रतिशत मुस्लमान बहुसंख्यक हैं और ये सही भी है। लेकिन, कुछ भारतीय राज्यों में ऐसे आँकड़ों का कुछ और अर्थ निकलता है। उत्तर-पूर्वी भारतीय राज्य नागालैंड की बात करें तो क़तर और इसकी जनसंख्या में बस 3 लाख का अंतर है। नागालैंड में 88% लोग ईसाई धर्म से आते हैं, लेकिन वो अल्पसंख्यक भी हैं है न आश्चर्य वाली बात? बस इसी विरोधाभाष को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाख़िल की गई थी। नागालैंड के अलावा मिज़ोरम में भी क़रीब 88% लोग ईसाई समुदाय से आते हैं, लेकिन वह भी अल्पसंख्यक हैं।

इसी तरह भारतीय राज्य मेघालय और पूर्वी एशिया में स्थित मंगोलिया की जनसंख्या लगभग समान ही है। मंगोलिया में 53% बौद्ध मेजॉरिटी है, जबकि मेघालय में 75% ईसाई अल्पसंख्यक हैं। इसी तरह मणिपुर में 41% और अरुणाचल प्रदेश में 30% ईसाई जनसँख्या है लेकिन उन्हें सारी अल्पसंख्यक केंद्रित योजनाओं का लाभ मिलता है। मुद्दा सिर्फ़ यह नहीं है कि बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यक वाले लाभ दिए जा रहे हैं। मुद्दा इस से कहीं ज़्यादा गंभीर और विचारणीय है। असली मुद्दा यह है कि उन राज्यों में जो वास्तविक रूप से अल्पसंख्यक हैं, जिन्हें इन योजनाओं के लाभ मिलने चाहिए- वो इस से वंचित हैं। यह अन्याय है। लक्षद्वीप के 2% हिन्दू बहुसंख्यक नहीं हो सकते।

याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय अपनी बात रखते हुए (साभार: RSTV)

इसी तरह लक्षद्वीप में 96%, जम्मू एवं कश्मीर में 68%, असम में 34% और पश्चिम बंगाल में 27% लोग मुस्लिम हैं, लेकिन वो अल्पसंख्यक हैं। पश्चिम बंगाल में मुस्लिमों की जनसंख्या उतनी ही है, जितनी यमन और उज़्बेकिस्तान में। सऊदी अरब में उस से कुछ ही ज्यादा मुस्लिमों की जनसंख्या है। इन सभी देशों में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, जबकि बंगाल में अल्पसंख्यक। इसी तरह उत्तर प्रदेश में इराक़ से भी ज्यादा मुस्लिम रहते हैं। अगर इराक़ में मुस्लिम अल्पसंख्यक का दर्जा माँगने लगे तो यह हास्यास्पद लगे, लेकिन यूपी में मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं।

संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा

अगर संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा की बात करें तो UN ने माइनॉरिटी की परिभाषा को समझाते हुए उन्हें ऐसा समुदाय बताया है जिनके रीति-रिवाज़ बाकी की जनसंख्या से भिन्न हो और जिनकी जनसंख्या काफ़ी कम हो। यूनाइटेड नेशन ने साफ़-साफ़ कहा है कि एक समूह जो किसी देश में एक पूरे के रूप में बहुमत का गठन करता है, वह राज्य के किसी विशेष क्षेत्र में गैर-प्रमुख (Non-Dominant) स्थिति में हो सकता है। अगर संयुक्त राष्ट्र के इस कथन को भी ध्यान में रखा जाए तो भारत के कई राज्यों में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलना ही मिलना चाहिए। ऐसा इसीलिए, क्योंकि उन राज्यों में बाकी समुदायों के मुक़ाबले उनकी उपस्थिति या जनसंख्या काफ़ी कम है।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार माइनॉरिटीज की परिभाषा

क्या अल्पसंख्यक आयोग उचित न्याय कर पाएगा?

अब सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा आदेश पर आते हैं। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को माइनॉरिटी की परिभाषा राज्यों की आबादी के हिसाब से तय करने को कहा है। ऊपर हमने बताया कि 1993 में अस्तित्व में आया राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Minority Commission) एक संस्था है, जो माइनॉरिटीज के हितों के लिए कार्य करता है। आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और पाँच धार्मिक समुदायों (अल्पसंख्यकों) के प्रतिनिधि के तौर पर पाँच सदस्य होते हैं। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने जिस विषय को उठाया है, उसे सिर्फ़ माइनॉरिटी आयोग तय नहीं कर सकता।

संविधान में माइनॉरिटीज की चर्चा

अगर हज़ कमेटी को यह तय करने को कहा जाए कि हिन्दुओं को चारधाम यात्रा के दौरान फलां सुविधाएँ मिलनी चाहिए या नहीं, तो यह काफ़ी अज़ीब लगेगा? है न? राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग द्वारा अल्पसंख्यक की परिभाषा तय करने का अर्थ है सिर्फ़ मुस्लिम सदस्यों वाली हज़ कमिटी को अमरनाथ यात्रा के लिए श्रद्धालुओं का चयन करने का अधिकार देना। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग में पाँच धार्मिक समुदायों के प्रतिनिधि तो हैं, लेकिन जो लोग या समुदाय अल्पसंख्यक दर्जे की माँग कर रहे हैं, उनका यहाँ कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।

इसे यूँ समझिए। लक्षद्वीप के 2% हिन्दू को अल्पसंख्यक दर्जा दिया जाए या नहीं, यह निर्णय लेने वाली कमेटी में उनके बीच से (हिन्दू समुदाय से) कोई हो ही नहीं, तो वो न्याय की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को वर्तमान व्यवस्था के हिसाब से नियुक्त सदस्य हैं। हो सकता है कि राज्यों की जनसंख्या के आधार पर अल्पसंख्यकों का निर्धारण किया जाए तो दूसरे कई समुदाय के प्रतिनिधि भी इसमें होने चाहिए- क्योंकि इसके गठन का आधार ही यही रहा है।

भारत सरकार को अल्पसंख्यकों की नई परिभाषा तय करने की ज़िम्मेदारी किसी स्वतंत्र कमेटी को देनी चाहिए जिसमे सरकार द्वारा नियुक्त किए गए लोग हों। अगर नहीं, तो राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग में राज्यों आधार पर अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो कई राज्यों में बहुसंख्यक कहलाने को मजबूर अल्पसंख्यकों को शायद ही उचित न्याय मिले।

11 ऑफिसर, 55 सवाल: रॉबर्ट वाड्रा का आज होगा बुरा हाल!

एक तरफ़ जहाँ प्रियंका गाँधी का राजनीतिक करियर अभी शुरू हुआ है, वहीं रॉबर्ट वाड्रा पर जैसे मुसीबतों का पहाड़ गिर गया है। रॉबर्ट वाड्रा पर ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) का शिकंजा दिन पर दिन कसता ही जा रहा है। मनी लॉन्ड्रिंग की वजह से चल रही पूछताछ के कारण रॉबर्ट लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं।

रॉबर्ट वाड्रा से पूछताछ का सिलसिला मंगलवार (फरवरी 12, 2019) को भी जारी रहेगा। लेकिन, इस बार पूछताछ का कारण मनी लॉन्ड्रिंग नहीं बल्कि बीकानेर लैंड डील है। ये पूछताछ जयपुर में हो रही है। खबरें हैं कि ईडी रॉबर्ट की माँ मौरीन वाड्रा से भी पूछताछ कर सकती है।

रॉबर्ट और उनकी माँ मौरीन से कुल 11 अधिकारी पूछताछ करेंगे। इस पूछताछ के लिए अधिकारियों ने 55 सवालों की सूची तैयार की हुई है। बता दें कि इन सवालों में वाड्रा की कंपनी स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड के ज़रिए हुई जमीनों की खरीद-फरोख़्त में पैसे का इस्तेमाल ही मुख्य मुद्दा होगा।

दरअसल, ईडी ने छापे द्वारा प्राप्त जानकारी में यह पाया कि जिस महेश नागर के ज़रिए इस कंपनी की जमीन को बीकानेर में ख़रीदा गया था, वह जमीन महेश नागर के ड्राइवर अशोक कुमार के पावर ऑफ अटार्नी पर ख़रीदी गई थी।

इसलिए, ईडी ने यह सवाल उठाया है कि ड्राइवर के नाम पर पावर ऑफ अटॉर्नी तैयार कराने की क्या आवश्यकता थी। साथ ही, एक ड्राइवर के पास इतने पैसे कहाँ से आए?

इस पूछताछ में रॉबर्ट वाड्रा से पूछा जाएगा कि साल 2012 में जब स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी ने फिनलिज प्राइवेट लिमिटेड को बेचा था तो उस कंपनी के बारे में पता किया गया था या नहीं?

अखिलेश को आई कॉन्ग्रेस की याद, चल गया प्रियंका का जादू?

सोमवार को कॉन्ग्रेस की महासचिव बनने के बाद प्रियंका गाँधी वाड्रा ने अपना पहला रोड शो लखनऊ में किया। इस रोड शो के बाद सपा के प्रमुख अखिलेश यादव ने बयान दिया कि उनकी पार्टी का गठबंधन सिर्फ़ बसपा के साथ नहीं है, बल्कि कॉन्ग्रेस के साथ भी है, राष्ट्रीय लोक दल, निशाद पार्टी और पीस पार्टी के साथ भी है।

सोमवार को फिरोज़ाबाद में अखिलेश ने रिपोर्टरों से बातचीत के दौरान बताया कि उनका गठबंधन सिर्फ़ बसपा के साथ का नहीं हैं, बल्कि कॉन्ग्रेस भी इसमें शामिल है। अखिलेश ने बताया कि आरएलडी की तीन सीटों की वज़ह से वो भी गठबंधन का हिस्सा हैं। निशाद पार्टी के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि उनके साथ उन्होंने पहले चुनाव लड़े हैं, इसलिए वो भी गठबंधन का हिस्सा हैं। साथ ही पीस पार्टी ने भी उनका साथ दिया है, इसलिए वो भी इसमें शामिल हैं।

आने वाले चुनाव को लेकर अखिलेश यादव ने कहा कि कुछ पार्टी इन चुनावों में हमारे साथ होंगी और कुछ विधान सभा में साथ होंगी।

एक तरफ जहाँ बसपा अध्यक्ष मायावती कॉन्ग्रेस की लगातार आलोचना करती हैं, वहीं अखिलेश कॉन्ग्रेस पर प्रत्यक्ष रूप से कुछ भी बोलने से झिझकते रहे हैं। वहीं जनवरी में जब सपा और बसपा के गठबंधन की घोषणा की गई थी, तब मायावती ने कहा था कि लोकसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस के साथ किसी तरह का कोई गठबंधन नहीं होगा।

12 जनवरी को हुई संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश के साथ बैठी मायावती ने कहा था कि कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन का कोई भी फायदा नहीं है। मायावती के अनुसार बीजेपी हो या कॉन्ग्रेस, दोनों एक ही बात है। रक्षा घोटालों में दोनों के ही नाम हैं, हर समुदाय इन दो पार्टियों से नाख़ुश है।

लोकसभा चुनाव नज़दीक होने पर अखिलेश ने अपनी चुप्पी तोड़ी है और आरएलडी के साथ सीटों के बंटवारे पर बात कही। वहीं इसके ज़वाब में आएलडी के वरिष्ठ नेता जयंत चौधरी ने कहा है कि जब तक आधिकारिक रूप से इस मुद्दे पर बात नहीं होती है, तब तक वो इस पर कुछ नहीं कहेंगे। उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता है कि यह बात किस मौके पर और किस संदर्भ में बोली गई है।

जयंत से जब पूछा गया कि क्या वो तीन सीटों पर चुनाव को लड़ने के लिए हाँ करेंगे तो उन्होंने कहा, “जहाँ पर बातचीत होती है, वहाँ पर बातों के हल भी निकलते हैं। अब उसके बाद ही कोई घोषणा करेंगे, तब तक इंतज़ार कीजिए।”

साथ ही जब जयंत से सपा के कॉन्ग्रेस से गठबंधन के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बोला कि इस विषय पर राय महत्व नहीं रखती है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी को मिलकर सोचना है कि कॉन्ग्रेस गठबंधन का हिस्सा बनेगी या फिर नहीं।

लंदन के फ्लैट के बाद… अब दुबई का विला… ED धीरे-धीरे ढाह रहा वाड्रा का किला!

आर्थिक अनियमितताओं के आरोप में फँसे रॉबर्ट वाड्रा की मुश्किलें थमने का नाम ही नहीं ले रही हैं। शुरुआत में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने उनके लंदन स्थित फ्लैट को लेकर उनसे पूछताछ की थी। अब वाड्रा के दुबई स्थित विला को लेकर उनसे पूछताछ की गई है। ख़बरों के मुताबिक़, वाड्रा को आज फिर ED के समक्ष उपस्थित होने को कहा गया है। बता दें कि ED ने वाड्रा की ₹26 करोड़ क़ीमत वाले लंदन के 12, अलॉर्टन हाउस, ब्रायनस्टोन स्क्वायर फ्लैट को लेकर सवाल पूछे थे।

दुबई के जुमैरा में ई-74 नामक एक विला है, जिसकी क़ीमत ₹14 करोड़ बताई जा रही है। इसी विला को लेकर ED ने उनसे जानकारियाँ माँगी। दुबई की कम्पनी स्काईलाइट्स इंवेस्टमेंट्स से वाड्रा के संबंधों को लेकर भी उनसे सवाल किए गए थे। एजेंसी का मानना है कि वाड्रा ने इस कम्पनी में भारी मात्रा में नकदी जमा कराया था। वाड्रा की एक कम्पनी का नाम भी स्काईलाइट्स हॉस्पिटैलिटी है। जाँच अधिकारी इसे महज़ संयोग नहीं मान रहे।

वाड्रा से सीसी थम्पी नमक व्यक्ति से अपना सम्बन्ध स्पष्ट करने को कहा गया है। बता दें कि थम्पी स्काईलाइट्स इन्वेस्टमेंट का शेयरहोल्डर था। ED को शक है कि ये कोई शेल कम्पनी है। थम्पी ने ही जून 2010 में भगोड़े हथियार कारोबारी संजय भंडारी से लंदन का फ्लैट ख़रीदा था। पूछताछ के दौरान वाड्रा ने स्काईलाइट्स इंवेस्टमेंट्स के साथ किसी प्रकार के सम्बन्ध होने की बात को नकार दिया। अमर उजाला में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, पूछताछ के दौरान वाड्रा घबराए से लग रहे थे।

भंडारी ने सैमसंग इंजीनियरिंग नामक दक्षिण कोरियाई कम्पनी से मिले रुपयों से लंदन में फ्लैट ख़रीदा था। बताया जा रहा है कि यह रुपए उसे कम्पनी का ONGC से करार करवाने के बदले मिले थे। आज (फरवरी 12, 2019) रॉबर्ट वाड्रा की उनकी माँ के साथ जयपुर में ED के समक्ष पेशी होनी है। वाड्रा अपनी माँ के साथ पहले ही जयपुर पहुँच चुके हैं जबकि देर शाम प्रियंका गाँधी भी वहाँ पहुँच गईं। बता दें कि सोमवार (फरवरी 11, 2019) को प्रियंका का लखनऊ में रोडशो भी था।

वाड्रा और उसकी माँ से बीकानेर ज़मीन ख़रीद में अनियमितताओं को लेकर सवाल किए जाएँगे। आरोप है कि वाड्रा ने बीकानेर जिले के कोलायत में 79 लाख रुपए में 270 बीघा जमीन खरीदकर तीन साल बाद उसे 5.15 करोड़ रुपए में बेच दी थी। रॉबर्ट वाड्रा के ख़िलाफ़ कई राज्यों में जमीन खरीद में अनियमितता बरतने के केस चल रहे हैं। एक अन्य मामले में उन पर हरियाणा के अमीपुर गाँव में अवैध रूप से पचास एकड़ जमीन खरीदने का मामला भी चल रहा है। उस समय हरियाणा में कॉन्ग्रेस की सरकार थी।

यह बीकानेर में भारतीय सेना की महाजन फील्ड फायरिंग रेंज की ज़मीन थी। इसके कुछ हिस्से पर विस्थापित लोगों को बसाया गया था, लेकिन उनमें से कुछ ने फ़र्ज़ी काग़ज़ात तैयार करवा कर जमीन वाड्रा की कंपनी को बेच दी, जबकि सेना की ज़मीन बेची नहीं जा सकती। इस मामले में कुल मिला कर 18 एफआईआर दर्ज किए गए हैं।

अनशन, आंदोलन, सत्याग्रह के ख़िलाफ़ गाँधी जी का मौन व्रत!

अनशन, आंदोलन, सत्याग्रह ये तीन शब्द नहीं बल्कि सामाजिक राजनीतिक परिवर्तन के सशक्त हथियार थे। इनकी महत्ता को स्थापित करने में महात्मा गाँधी ने अपना पूरा जीवन खपा दिया। लेकिन पिछले कुछ सालों में राजनेताओं ने इसका इतना दुरुपयोग किया कि अब कोई भी इनका प्रयोग करता है तो उसमें जनहित न होकर व्यक्तिगत राजनीतिक महत्वाकांक्षा होती है, जिसके बल पर आज के राजनेता जनता को बेवकूफ़ बनाने का कार्य कर रहे हैं।

केजरीवाल, हार्दिक पटेल, ममता बनर्जी और अब चंद्रबाबू नायडू जैसे कुछ नेताओं ने आजकल आंदोलन, अनशन, सत्याग्रह की परिभाषा इतनी सस्ती कर दी है कि क्या कहा जाए! कभी अँग्रेजों के खिलाफ यही ब्रह्मास्त्र था। जिसने उन आक्रांताओं को भी घुटने टेकने पर मज़बूर किया, जिनके बारे में कहा जाता था कि उनके राज में सूरज नहीं डूबता लेकिन भारत की पावन धरा पर एक अधनंगे फ़क़ीर गाँधी ने ऐसा डुबोया की आज तक उबर नहीं सके।

आम आदमी पार्टी का धरना

आंदोलन, अनशन, सत्याग्रह शब्दों के वास्तविक मर्म को यदि ये संकीर्ण राजनीति करने वाले सही ढंग से समझते, तो अपने राजनीतिक प्रदर्शनों को आंदोलन, अनशन, सत्याग्रह नाम नहीं देते। क्योंकि आंदोलन, अनशन, सत्याग्रह ऐसे छद्म राजनीतिक या रणनीतिक हथियार नहीं हैं, जिनका आए दिन दुरुपयोग किया जाए।

सूट-बूट वाला धरना

आख़िरी बार 2013 में कॉन्ग्रेस के महाघोटालों से तंग और त्रस्त जनता अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में जब दिल्ली के रामलीला मैदान में आंदोलित हुई तो इस देश ने कॉन्ग्रेस मुक्त भारत का बिगुल ही बजा दिया। अन्ना को दूसरा गाँधी कहा जाने लगा।

आंदोलन, सत्याग्रह जब तक नैतिक बल पर आधारित रहा, वह देश को एकजुट करने में क़ामयाब रहा। लेकिन जैसे ही उसमें राजनीतिक स्वार्थ की मिलावट हुई, वह मात्र एक नाटक रह गया। कौन है वह सूत्रधार, जिसने सबसे पहले इसका माखौल उड़ाया? इस सवाल के जवाब में महान क्रन्तिकारी नेता केजरीवाल का नाम याद आता है, जो पब्लिसिटी स्टंट के इतने माहिर खिलाड़ी निकले कि आंदोलन शब्द को गंध से भर दिया। अब कोई ज़रूरी वजहों से भी आंदोलन के बारे में सोचे तो नाटक लगने लगता है। फिर चाहे वह चुनाव के समय दिल्ली में तमिलनाडु के किसानों को जुटाकर मल-मूत्र पीना क्यों न हो। इसके पीछे भी सिर्फ चुनावी बढ़त के लिए अन्नदाता से ऐसा घृणित कार्य करवा लेने की साजिश ही है।

वजन बढ़ने वाला भूख हड़ताल

आपको हार्दिक पटेल जैसे नेताओं का भूख हड़ताल तो याद ही होगा। ममता बनर्जी भी सीबीआई से अपने चहेते अधिकारियों को बचाने के लिए धरने पर बैठ गईं थी और उसे भी अनशन का नाम दे दिया था। अन्ना का आए दिन आंदोलन तो नज़र ही आता है। जिस व्यक्ति को देश ने इतना सम्मान दिया, देश का बच्चा-बच्चा उसमें दूसरा गाँधी देखने लगा, वह भी राह भटक कर इसे प्रसिद्धि के हथियार के रूप में प्रयोग करने लगा। यहाँ तक कि ठीक से काम करती सरकारों को भी आंदोलन, अनशन की धमकी देने लगा।

अन्ना का फ्लॉप शो

अन्ना जैसे व्यक्ति भी ये भूल गए कि विशुद्ध नैतिक बल पर आधारित आंदोलन, अनशन, सत्याग्रह करना हो तो मन, वचन और कर्म की पूर्ण अहिंसा उसकी सबसे बड़ी कसौटी होती है। न कि राजनीतिक या प्रसिद्धि की भूख को आधार बनाकर सरकारों को डराने, काम से रोकने या धमकी देने के लिए इनका इस्तेमाल करना।

ममता बनर्जी का CBI रेड के विरोध में धरना

आज के सुविधा भोगी नेताओं को यह बात याद करनी होगी कि आंदोलन, अनशन, सत्याग्रह तीनों का स्वरूप नकारात्मक नहीं, रचनात्मक है। इसके पीछे क्रोध या द्वेष की भावना न थी, न होनी चाहिए। इसमें छोटी-मोटी बातों, आपसी मनमुटावों को कभी तूल नहीं दिया जाता। अधीरता से काम नहीं लिया जाता और न ही व्यर्थ का शोरगुल मचाया जाता है।

इन तीनों शब्दों के अर्थ को समझने के पीछे के नैतिक और आध्यात्मिक पहलुओं को सीखने और समझने का व्यावहारिक प्रयास लुप्त हो गया है। आज तो महागठबंधन की राजनीतिक जुटान के लिए भी आंदोलन, अनशन, सत्याग्रह जैसे शब्दों का प्रयोग हो रहा है। महागठबंधन भी वो जो राजनीतिक रूप से जनता द्वारा ठुकराए लोगों का जुटान भर है, जिसका न कोई दृष्टिकोण है, न दिशा। ये ठीक वैसे ही है, जैसे सीता के स्वयंवर में शिव धनुष उठाने में असफल रहे लोगों का झुंड। याद कीजिए वो सीन, जब कोई भी शिव धनुष हिला तक नहीं पाया था तो आख़िर में सभी राजाओं ने मिलकर उसे उठाने का प्रयास किया। फिर भी वह धनुष टस से मस नहीं हुआ। सोचिए अगर उठ जाता तो क्या होता? सीता का विवाह किससे होता? क्या एक सीता के हज़ारों पति होते? आज महागठबंधन की स्थिति ऐसी ही है। सब जनता द्वारा ठुकराए लोग एक जगह इकट्ठा हैं। पर कौन उनका नेता है? विकास का मॉडल क्या है? गर गलती से महागठबंधन चुनाव जीत गया तो सब मिलकर प्रधानमंत्री और अपने पसंद के मंत्रालय के लिए टूट पड़ेंगे। फिर महा-घोटालों और लूट का ऐसा खेल चलेगा कि शायद ही यह देश पुनः कभी खड़ा हो पाएगा?

एक द्रौपदी और पाँच पाण्डव होने की गलती ही महाभारत जैसे महाविनाशक युद्ध का आधार थी। अपने इतिहास से सबक लेने वाला ये देश शायद ही अब इन नेताओं के छलावे में आए। सोशल मीडिया के दौर में आज के मतदाता की नज़र इनकी हर एक नाटक-नौटंकी पर है।

इस देश की बागडोर ऐसे हाथों में हो, जिसके अंदर अटूट धैर्य, दृढ़ता, एकाग्र-निष्ठा और पूर्ण शांति हो। जो देश की उन्नति और विकास के लिए हर पल जी-जान से कार्यरत होने का संकल्पी हो। न कि महज़ अपने कुटुम्ब का उत्थान ही उसका सपना हो, जिसे वो देश के माथे पर थोप देना चाहता हो।

ऐसे में आज जब ये महा-स्वार्थी नेतागण अपने निहित राजनीतिक स्वार्थों के वशीभूत हो कर आए दिन आंदोलन, अनशन, सत्याग्रह करने बैठते हैं और ऐसी जगह चुनते है जहाँ इन्हें भरपूर लोकप्रियता प्राप्त हो। तो क्या उनमें सचमुच उपरोक्त सारे गुण दिखाई देते हैं? हर धरनागत नेता अपने आप को गाँधी का अनुआई कहने लगता है! और तो और, कुछ लोगों को तो “प्रति गांधी” भी कहा जाता है, तो LoL वाली हँसी आने लगती है।

स्पष्ट है कि ये सभी नेता गाँधी जी की नकल करते हुए आज खुद इतने नकली हो चुके हैं कि इनके कथनी और करनी में आसमान-ज़मीन का अंतर आ गया है। अब ये कुछ भी कहें, वह प्रतीत महा-झूठ ही होता है। अफ़सोस पर सत्य यही है कि महा-झूठ के साथ महा-गठबंधन का बंधन दिन-प्रतिदिन अटूट ही होता जा रहा है।

आज के स्वार्थी नेताओं को यह याद दिलाना चाहूँगा कि नकल होती तो नकल ही है। गाँधी जी के प्रति कितने भी अलग-अलग विचार क्यों न हो, पर मुझे लगता है कि गाँधी जी जैसे महामानव धरती पर कभी-कभार ही आते हैं, बार-बार नहीं। इसलिए महागठबंधन के इन आडम्बरी नेताओं का रवैया मुझे तो बिल्कुल ही गलत लगता है। यह कुछ और नहीं, बल्कि जन-आंदोलनों की समस्त ऊर्जा का गला घोंट देने का कुत्सित कार्य भर करते हैं। गाँधी के अर्थों वाले आंदोलन, अनशन, सत्याग्रह की कसौटी पर शायद ही आज इनमें से कोई खरा उतर सकता है। क्योंकि आंदोलन, अनशन, सत्याग्रह के पीछे गाँधी जी की पूर्ण निष्ठा और देश के प्रति समर्पण की भावना थी। उन सब के पीछे देश और देशवासियों की तरक्की का विचार था। जबकि आजकल के इस महा-नाटक में घोर राजनीतिक स्वार्थ और संकीर्ण मानसिकता नज़र आती है। ये पूरा गिरोह एक बार फिर से देश को लूट लेने की साजिस का हिस्सा है, और यही इस महागठबंधन की वास्तविकता है।

गर आज गाँधी जी ज़िन्दा होते तो एक अनशन और करते… कि देश में कोई और अनशन न करे।

दिल्ली होटल में आग: 15 की मौत, कई घायल – दहशत में कई कूद गए बिल्डिंग से!

दिल्ली के करोल बाग़ स्थित पाँच मंज़िला होटल अर्पित पैलेस में मंगलवार (फरवरी 12, 2019) को तड़के सुबह 4.30 बजे भीषण आग लग गई। ताज़ा जानकारी के मुताबिक़, दमकल विभाग की क़रीब 25 गाड़ियाँ मौके पर पहुँच कर आग बुझाने के कार्य में लगी हुईं हैं। इस हादसे में अब तक 15 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि कई लोगों के घायल होने की भी सूचना है। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि कई लोगों ने होटल की खिड़की से कूद कर जान बचाने की कोशिश की, जिसमें वो घायल भी हो गए।

दिल्ली के करोल बाग़ स्थित पाँच मंज़िला होटल अर्पित पैलेस में मंगलवार (फरवरी 12, 2019) को तड़के सुबह 4.30 बजे भीषण आग लग गई। ताज़ा जानकारी के मुताबिक़, दमकल विभाग की क़रीब 25 गाड़ियाँ मौके पर पहुँच कर आग बुझाने के कार्य में लगी हुईं हैं। इस हादसे में अब तक 9 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि कई लोगों के घायल होने की भी सूचना है। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि कई लोगों ने होटल की खिड़की से कूद कर जान बचाने की कोशिश की, जिसमें वो घायल भी हो गए।

आग होटल के ऊपरी हिस्से में लगी। आग की ख़बर फैलते ही लोगों में भगदड़ मच गई। पुलिस ने बताया है कि अब भी कई लोग होटल के अंदर ही फँसे हो सकते हैं, जिन्हें निकालने की पूरी कोशिश की जा रही है। फायर अधिकारी सुनील कुमार ने पत्रकारों को बताया कि सुबह 8 बजे ही आग पर क़ाबू पा लिया गया था। मृतकों के शव भी बाहर निकाल लिए गए हैं। जो घायल हुए हैं, उन्हें अस्पताल में दाख़िल कराया गया है। मृतकों में 7 पुरुष, एक महिला एवं एक बच्चा शामिल है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अधिकतर लोगों की मौत दम घुटने के कारण हुई है। आग लगने की वजह अभी तक नहीं पता की जा सकी है। शुरुआती जाँच में शॉर्ट सर्किट को आग लगने का कारण बताया जा रहा है। 40 कमरों वाला होटल अर्पित पैलेस मेट्रो के पिलर नंबर 90 के पास स्थित है। घायलों का इलाज़ लेडी हार्डिंग और राम मनोहर लोहिया अस्पताल में चल रहा है। केरल के एक परिवार के 10 लोग भी इसी होटल में रुके हुए थे।

रोज़गार कहाँ है? पूछने वाले यह ख़बर ज़रूर पढ़ें…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 में प्रधानमंत्री बन जाने के बाद से देश में बेरोज़गारी को लेकर आए दिन माहौल गरमाया रहता है। ऐसे में सरकार द्वारा पेश किए गए अंतरिम बजट में बताया गया कि वर्ष 2017 से 2019 के बीच सरकार द्वारा विभिन्न विभागों में 3.79 लाख से अधिक नौकरियाँ दी गईं।

सरकार ने कहा कि साल 2017 से 2018 के बीच में केंद्रीय सरकार ने 2,51,279 नौकरियाँ निकाली थी। 1 फरवरी को कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल द्वारा प्रस्तुत किए गए अंतरिम बजट के दस्तावेजों के विश्लेषण से अनुमान लगाया जा रहा है कि मार्च 01, 2019 तक यह 3,79,544 अंक बढ़कर 36,15,770 के आँकड़े तक पहुँच जाएगा।

सरकार द्वारा पेश किया गया ये रिकॉर्ड जानना इसलिए भी बेहद ज़रूरी हो जाता है, क्योंकि कॉन्ग्रेस लगातार बीजेपी को बेरोज़गारी के मुद्दे पर घेरती रही है।

बृहस्पतिवार (7 फ़रवरी 2019) को संसद में बोलते हुए पीएम मोदी ने बताया कि प्रोविडेंट फंड, नेश्नल पेंशन योजना, आय कर भरने वालों में और वाहनों की ख़रीद से निकले आँकड़े इस बात को दर्शाते हैं कि संगठित और गैर-संगठित संस्थानों को मिलाकर करोड़ों नौकरियों का सृजन किया गया है।

बता दें कि अधिकतर भर्तियाँ रेल मंत्रालय, पुलिस बलों, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर विभागों द्वारा की गई थी। केंद्र सरकार के प्रस्तावित बजट में इस बात का उल्लेख है कि विभागीय स्तर पर किस-किस क्षेत्र में कितनी नौकरियों का इज़ाफ़ा किया गया।

इसमें बताया गया है कि भारतीय रेलवे में 1 मार्च 2019 कर 98,999 नौकरियाँ देने के लिए तैयार है। इसके अलावा पुलिस विभाग में 1 मार्च 2019 तक 79,353 अतिरिक्त नौकरियाँ निकाली जाएँगी। इसी तरह से प्रत्यक्ष कर विभाग में नौकरियों का आँकड़ा 1 मार्च 2019 तक 80,143 तक पहुँचेगा। सरकार ने बताया कि अप्रत्यक्ष कर विभाग में मार्च 2017 में 53,394 लोग कार्यरत थे जबकि मार्च 2018 तक ये आँकड़ा 92, 842 तक पहुँचा।

नागरिक उड्डयन मंत्रालय में 1 मार्च तक 2,363 कर्मचारी होंगे, जबकि मार्च 2017 तक में 1,174 कर्मचारी थे। इसी तरह से डाक विभाग में 1 मार्च 2019 तक 4,21,068 कर्मचारी होंगे। इसके साथ ही ऐसा अनुमान है कि अगले माह तक विदेश मंत्रालय में भी 11,877 कर्मचारी काम कर रहे होंगे। जबकि साल 2017 तक इसमें सिर्फ़ 10,044 कर्मचारी ही कार्य कर रहे थे।

फ़ैक्ट चैक: प्रियंका गाँधी की रैली का भीड़ कनेक्शन फ़र्ज़ी, कॉन्ग्रेस को डिलीट करना पड़ा ट्वीट

अपने राजनीतिक सफ़र की शुरुआत करते हुए कॉंग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा सोमवार को अपने भाई राहुल गाँधी के साथ लखनऊ पहुँची। मीडिया और कॉन्ग्रेस में जमानत पर चल रहे रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी प्रियंका गाँधी की इस रैली को लेकर विशेष उत्साह देखा गया।

इसी बीच कॉन्ग्रेस की उत्साहित पार्टी प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने ट्विटर पर लखनऊ के आज के रोड शो की तस्वीरों को ट्वीट किया, जिसके कैप्शन में लिखा था, “इसे कहते हैं स्वागत, लखनऊ!” लेकिन इसके बाद उन्होंने अपने इस ट्वीट को डिलीट कर दिया।

इंदिरा गाँधी की तरह दिखने वाली प्रियंका गाँधी वाड्रा की रैली में ‘जनसैलाब’ दिखाने का भरपूर प्रयास करते हुए प्रियंका चतुर्वेदी के ट्वीट का स्क्रीनशॉट

‘अपार जनसैलाब’ दिखाने के लिए जिस तस्वीर का सहारा प्रियंका चतुर्वेदी ने लिया था, वो असल में लखनऊ की आज की रैली की नहीं बल्कि गजवेल, तेलंगाना राज्य की थी।

शेयर करने के बाद डिलीट कर दी गई यह तस्वीर असल में प्रियंका गाँधी की रैली की नहीं, बल्कि तेलंगाना की थी

यह तस्वीर दिसंबर 2018 की थी, जिसे @Kkdtalkies नाम से चल रहे ट्वीटर हैंडल ने सोशल मीडिया पर डाला था।

सोशल मीडिया पर कॉन्ग्रेस पार्टी प्रवक्ता के प्रियंका गाँधी वाड्रा की इस रैली में ‘अपार जनसैलाब’ जुटाने की इस नादान कोशिश की सच्चाई को लोगों ने पहचान लिया था।

जब से कॉन्ग्रेस पार्टी में जमानत पर चल रहे रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी प्रियंका गाँधी वाड्रा का पदार्पण हुआ है, मीडिया और कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता लगातार उन्हें इंदिरा गाँधी से लेकर दुर्गा-अवतार साबित करने की जद्दोजहद में जुटे हुए हैं। इसके लिए आज उन्होंने साबित भी कर दिया कि वो प्रियंका गाँधी की भक्ति की किसी भी सीमा को लाँघने के लिए तैयार हैं।

‘दिल्ली सच में विश्व की रेप कैपिटल है, भगवान हमारी मदद करें’

राजधानी दिल्ली में बढ़ते अपराध पर लगाम लगा पाने में केजरीवाल की आप सरकार फेल होती नज़र आ रही है। पश्चिमी दिल्ली के नारायणा क्षेत्र में 35 वर्षीय एक व्यक्ति द्वारा 5 साल की एक बच्ची के साथ दुष्कर्म का मामला सामने आया है। आरोपित व्यक्ति ने एक सर्वजनिक शौचालय में कथित तौर पर बच्ची के साथ दुष्कर्म की वारदात को अंज़ाम दिया है।

ख़बर की मानें तो घटना 6 फरवरी की है, लेकिन इसकी सूचना पुलिस को सोमवार को हुई। पश्चिम दिल्ली के पुलिस उपायुक्त मोनिका भारद्वाज के अनुसार पीड़िता को मेडिकल चेक-अप के लिए भेज दिया गया है और फ़िलहाल उसकी हालत स्थिर है। उन्होंने कहा कि आरोपी (सुलभ शौचायल का सफाईकर्मी) को गिरफ़्तार कर लिया गया है।

‘रेप कैपिटल में भगवान करे हमारी मदद’

मामले के प्रकाश में आने के बाद दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालिवाल ने ट्विटर पर इस घटना पर गुस्सा जाहिर करते हुए लिखा, ‘‘अब नारायणा में पाँच साल की बच्ची के साथ 40 साल के व्यक्ति ने दुष्कर्म किया। बच्ची ने काफ़ी तकलीफ़ झेली और उसके शरीर से काफी रक्तस्राव हुआ है। मैं बच्ची को देखने अस्पताल जा रही हूँ। दिल्ली सच में विश्व की ‘रेप कैपिटल’ है। भगवान हमारी मदद करें।”

28,594 घर… बस! देश के बाकी सभी घरों में पहुँच गई है बिज़ली

PM मोदी ने देश की तस्वीर को बदलने के लिए पिछले साढ़े चार सालों में सतत प्रयास किए हैं। इन्हीं प्रयासों में एक नाम ‘सौभाग्य योजना’ का भी है। इस योजना के अंतर्गत हर अंधेरे घर को बिजली पहुँचाकर रौशन करने का लक्ष्य साधा गया था। इसमें ग़रीबों को 5 एलईडी बल्ब, 1 पंखा और एक बैटरी देने की योजना भी थी।

साल 2017 में 25 सितंबर से इस योजना को शुरू किया गया था, इसकी अवधि 31 मार्च 2019 तक की तय की गई थी। इस योजना की अंतिम तिथि अब क़रीब है। ऐसे में जानना ज़रूरी है कि ये कार्य अपने लक्ष्य के कितने निकट पहुँचा है।

सौभाग्य योजना की वेबसाइट के अनुसार, अब सिर्फ़ 28,594 घर यानी 0.01 प्रतिशत ही ऐसे बाक़ी हैं जिनका विद्युतिकरण अभी तक नहीं हुआ है। अनुमान लगाया है कि महीने के आख़िर तक इन बचे हुए घरों में भी रौशनी पहुँचा दी जाएगी।

सरकार की वेबसाइट पर मौजूद आँकड़ों में यह दर्शाया गया है कि राजस्थान के उदयपुर ज़िले में केवल 8,460 ही ऐसे घर बचे हैं जिनका विद्युतीकरण किया जाना है। इसी तरह छत्तीसगढ़ में बीजापुर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा और सुकमा में क़रीब 20,134 लोगों के घरों तक बिजली पहुँचाना बाक़ी है।

इस योजना का लक्ष्य था कि देश के 2.5 करोड़ घरों तक बिजली को पहुँचाया जाए। जिसमें से अब सिर्फ़ 28,594 घर बाक़ी बचे हैं। ये एक बड़ी कामयाबी है, जिसे आलोचकों द्वारा नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। इस योजना पर आधिकारिक बयान भी हैं कि अभी तक 2.48 करोड़ से अधिक घरों में काम किया गया है और अगले 10-12 दिनों में लक्ष्य पूरा होने की उम्मीद है।