Sunday, October 6, 2024
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प्रियंका गाँधी के आने से सोनिया को हुआ ‘जबरदस्त’ घाटा: पोस्टर-गणित से समझें राजनीति का खेल

“एक तस्वीर हजार शब्दों के बराबर होती है।” प्रियंका गाँधी वाड्रा की एक पोस्टर को देखते हुए अचानक मेरे दिमाग में यह पंक्ति याद आ गई। इसके बाद मैंने सोचा कि भारतीय राजनीति में ट्रेंड कर रहीं प्रियंका गाँधी की पॉलिटिक्स को तस्वीर व पोस्टरों की मदद से समझा जाए। यहाँ एक जरूरी बात यह है कि जैसे बिना किसी पूर्वग्रह से ग्रसित हुए मैंने यह लेख लिखा है, आप भी बिनी किसी पूर्वग्रह के पूरा लेख पढ़ जाइए। आधा लेख पढ़कर कंफ्यूजन में पड़ने के बजाय नहीं पढ़ना ज्यादा बेहतर होगा।

यह संभव है कि मैंने इन पोस्टरों के जरिए जितना कुछ भी समझा है, आप उससे थोड़ा ज्यादा या कम समझ सकते हैं। यह पूरी तरह से आपकी कल्पनाशीलता पर निर्भर करता है। मैंने प्रियंका गाँधी वाड्रा से जुड़े तीन पोस्टर को लेकर यह आर्टिकल लिखा है। यह तीनों ही पोस्टर प्रियंका गाँधी वाड्रा के प्रत्यक्ष रूप से राजनीति में आने से पहले और आने के बाद की है।

इन तीनों ही पोस्टरों से जो संकेत मिल रहे हैं उसे समझने की कोशिश करेंगे यहाँ। प्रत्यक्ष रूप से राजनीति में आने से पहले प्रियंका रायबरेली और अमेठी में कॉन्ग्रेस पार्टी के लिए प्रचार करती रही हैं। ऐसी बात भी नहीं है कि प्रियंका सिर्फ अपने भाई और माँ के लिए ही इन दोनों लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव प्रचार करती हैं। बल्कि यह कहा जाता है कि प्रियंका ने 1999 में रायबरेली से कॉन्ग्रेसी उम्मीदवार सतीश शर्मा के लिए पहली बार खुल कर चुनाव प्रचार किया था।

प्रियंका ने इस चुनाव प्रचार के दौरान कई बार कहा, “रायबरेली इंदिरा गाँधी की कर्मभूमि है। भारत की उस बेटी की कर्मभूमि, जिसे मैं सबसे ज्यादा सम्मान करती हूँ।”

1999 के लोकसभा चुनाव में अरूण नेहरू जैसे कद्दावर नेता को हराना कॉन्ग्रेसी उम्मीदवार सतीश शर्मा के लिए संभव नहीं होता, यदि प्रियंका मैदान में नहीं उतरतीं। इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि प्रियंका के दिल में रायबरेली के लिए ख़ास जगह है।

दरअसल आपको हम यहाँ इस बात को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि प्रियंका को रायबरेली से इतना प्रेम क्यों है? शायद इसलिए क्योंकि प्रियंका मानती हैं कि यह लोकसभा क्षेत्र उनकी दादी इंदिरा की कर्म भूमि है, लेकिन अक्टूबर 2018 में छपे एक पोस्टर से यह ज़ाहिर हो गया कि प्रियंका का रायबरेली से भावनात्मक जुड़ाव तो नहीं है।

यह सोचने वाली बात है कि जिस रायबरेली के बारे में प्रियंका कहती रही हैं कि यह क्षेत्र मेरे दिल के करीब है, लेकिन रायबरेली में हरचंपुर रेल हादसा, ऊँचाहार दुर्घटना और रालपुर हादसे में दर्जनों लोगों की मौत के बाद भी प्रियंका पीड़ित लोगों से मिलने भी नहीं पहुँचती हैं। इस बात से रायबरेली को लेकर उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को आसानी से समझा जा सकता है।

रायबरेली में प्रियंका का पोस्टर

मानवीय तौर पर सोनिया, राहुल व प्रियंका तीनों को उन पीड़ित परिवारों से तुरंत मिलना चाहिए था। ऐसा करके शायद प्रियंका पीड़ित परिवार के दिल में अमिट छाप छोड़ पातीं, लेकिन ऐसा नहीं करके उन्होंने एक बड़ी गलती की।

अब बात दूसरे तस्वीर की करते हैं, जो पोस्टर कॉन्ग्रेस पार्टी द्वारा प्रियंका गाँधी को पूर्वी यूपी के महासचिव बनने की घोषणा से पहले की है। इस तस्वीर से साफ़ होता है कि आने वाले समय में जैसे-जैसे पार्टी में प्रियंका का कद बढ़ेगा, पोस्टरों में सोनिया की तस्वीर छोटी होती चली जाएगी।

प्रियंका के कॉन्ग्रेस पार्टी में महासचिव बनने से पहले के पोस्टर की तस्वीर

एक माँ के लिए बेटी के बढ़ते कद को देखना अच्छी बात हो सकती है। लेकिन मामला देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार से जुड़ा है, इसलिए कॉन्ग्रेस पोस्टर से सोनिया की तस्वीर का अचानक छोटा और फिर गुम हो जाना एक बड़े राजनीतिक बदलाव का संकेत देता है। संकेत यह है कि अपनी बेटी के ही आगे सोनिया का राजनीतिक कद पार्टी में और आम लोगों के बीच कम होता जा रहा है।

पटना में जन आकांक्षा रैली के पोस्टर की तस्वीर, जिसमें सोनिया नहीं दिख रही हैं

अब बात तीसरी तस्वीर की। दूसरी तस्वीर में हमने देखा कि प्रियंका के आने से सोनिया का राजनीतिक कद कम हुआ। लेकिन पटना जन अकांक्षा रैली के पोस्टर में सोनिया का ना होना, एक बड़ा संकेत देता है। इससे स्पष्ट होता है कि प्रियंका के आने से भाजपा पर क्या असर पड़ेगा यह बाद की बात है, लेकिन इसका सीधा असर सोनिया पर जरूर पड़ा है।

ब्रह्माण्ड में आदिकाल से अविरल बहती ‘सरस्वती’

सरस्वती केवल पृथ्वी पर विलुप्त हो चुकी एक नदी का नाम ही नहीं है। दो साल पहले भारत के वैज्ञानिकों के एक दल ने ब्रह्माण्ड में मंदाकिनियों के एक बड़े समूह का पता लगाया था और उसे ‘सरस्वती’ नाम दिया था। कल्पना से भी बड़े गैलेक्सी के इन समूहों को सुपर क्लस्टर कहा जाता है।

जुलाई 2017 में पुणे स्थित इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिज़िक्स (IUCAA) के वैज्ञानिकों ने सरस्वती सुपर क्लस्टर की खोज की थी। यह सुपर क्लस्टर हमसे 4 अरब प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है। दूरी की गणना की जाए तो एक प्रकाश वर्ष वह दूरी है जो प्रकाश एक वर्ष में तय करता है। प्रकाश एक सेकंड में 3 लाख किमी दूरी तय करता है। इस हिसाब से वह एक वर्ष में लगभग 10 खरब किमी तय करेगा।

इस छोटी सी गणित को समझा जाए तो हमें पता चलेगा कि हम सरस्वती सुपर क्लस्टर की जो तस्वीर देख रहे हैं वह आजकल या कुछ साल पहले की नहीं बल्कि उस समय की है जब ब्रह्माण्ड में बड़ी संरचनाएँ जन्म ले रही थीं। उस कालखंड को वैज्ञानिक ‘Large Structure Formation’ की संज्ञा देते हैं। यह बिग बैंग से एक अरब वर्ष बाद का समय था जब बड़ी संरचनाएँ उत्पन्न हुईं। सरस्वती सुपर क्लस्टर आज से 4 अरब वर्ष पहले निर्मित हुआ था।

बिग बैंग से एक लाख वर्ष बाद ब्रह्माण्ड में केवल तरंगें ही व्याप्त थीं, कोई पदार्थ नहीं बना था। इन तरंगों को ‘कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड रेडिएशन’ (CMBR) कहा जाता है। इन तरंगों की खोज भी अकस्मात हुई थी। दरअसल 1964-65 में अमेरिका में आर्नो पेंजियास और रॉबर्ट विल्सन एंटीना पर कुछ प्रयोग कर रहे थे कि तभी उन्हें कुछ विचित्र आवाज़ सुनाई दी। जब उन्होंने उसका स्रोत जानने का प्रयास किया तो पाया कि वे तरंगें धरती पर कहीं से नहीं आ रही थीं। वास्तव में वे तरंगें सुदूर अंतरिक्ष में अरबों वर्षों से व्याप्त थीं जब ब्रह्माण्ड अपने शैशवकाल से निकलकर किशोरावस्था में प्रवेश कर रहा था।

कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड रेडिएशन ने बिग बैंग थ्योरी को प्रमाणित किया। लेकिन जब मंदाकिनियों के अपनी धुरी पर घूमने की गति मापी गई तो पता चला कि गति के हिसाब से उनका द्रव्यमान (mass) अत्यधिक है। एक गैलेक्सी के सभी तारों, गैस इत्यादि पदार्थों का द्रव्यमान जोड़ा गया तो वह बहुत कम था। अपनी आकाशगंगा की ही बात करें तो उसमें जितना पदार्थ हम देख पाते हैं वह गणितीय आकलन द्वारा प्राप्त द्रव्यमान का मात्र 10% है। तब प्रश्न उठा कि बाकी 90% भार या द्रव्यमान किस वस्तु का है। गैलेक्सी में ऐसी कौन सी वस्तु है जो हमें दिखाई नहीं देती लेकिन उसका भार है।  

तब एक थ्योरी आई जिसे हम डार्क मैटर कहते हैं। डार्क मैटर दो प्रकार के बताए गए- कोल्ड डार्क मैटर और हॉट डार्क मैटर। ब्रह्माण्ड में बड़ी संरचनाएँ कैसे बनीं इसकी सर्वाधिक प्रचलित थ्योरी कोल्ड डार्क मैटर थ्योरी है। कोल्ड डार्क मैटर थ्योरी के अनुसार ब्रह्माण्ड के जन्म के 1 अरब वर्ष बाद तारे और छोटी गैलेक्सी उत्पन्न हुईं। आज से 4 अरब वर्ष पहले तक ब्रह्माण्ड में सरस्वती जैसे सुपर क्लस्टर का निर्माण कोल्ड डार्क मैटर थ्योरी के अनुसार नहीं हुआ होगा।

लेकिन अब जब एक सामान्य गैलेक्सी से सैकड़ों गुना बड़ी सरस्वती जैसी बड़ी संरचना खोज ली गई है जो कई मंदाकिनियों का समूह है, तब वैज्ञानिकों को ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और कोल्ड डार्क मैटर थ्योरी पर पुनर्विचार करना होगा। अब तक तो यही माना जाता रहा कि ब्रह्माण्ड एक जाल की तरह है जिसके तंतु गैलेक्सी हैं। ये मंदाकिनियाँ आपस में जुड़ कर गैलेक्सी की चादर (sheet) बनाती हैं। कोल्ड डार्क मैटर थ्योरी के अनुसार ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के आरंभ में छोटी गैलेक्सी बनी होंगी। कालांतर में वे जुड़कर क्लस्टर और सुपर क्लस्टर बनी होंगी, लेकिन 250,000 प्रकाश वर्ष बड़ी सरस्वती की खोज ने इन मान्यताओं को धराशाई कर दिया है।   


चुनाव आयोग ने दी वोटर्स को सावधान रहने की सलाह, नहीं कटे हैं मतदाता सूची से नाम

कुछ दिन पहले खबरें आई थी कि आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं की तरफ से नागरिकों को एक अलग ही तरह की कॉल की आ रही है। इस कॉल में लोगों से कहा जा रहा था कि उनका नाम वोटर लिस्ट से कट गया था लेकिन दिल्ली मुख्यमंत्री ने उनका नाम दोबारा से वोटर लिस्ट में जुड़वा दिया है। झूठे फोन कॉल का मामला चर्चा में आने के बाद चुनाव आयोग के पास इसकी शिकायतें पहुँचनी शुरू हुईं।

ऐसे में चुनाव आयोग ने दिल्ली की जनता को भ्रमित करने वाले फोन कॉल्स से सावधान करते हुए आश्वासन दिया है कि वो इस तरह की बातों पर यकीन न करें। शनिवार (फरवरी 9, 2019) को दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के हवाले से आयोग द्वारा यह बात कही गई है

आयोग ने इस बात को साफ़ किया है कि अज्ञात व्यक्तियों और संस्थाओं की ओर से काफ़ी सँख्या में लोगों को भ्रमित करने वाली फोन कॉल्स आ रही हैं। जिसमें लोगों को बताया जा रहा है कि उनका नाम मतदाता सूची से काट दिया गया है। ऐसे में चुनाव आयोग ने बताया कि इन मामलों में मिली शिकायतों पर क़ानूनी कार्रवाई की जा रही है।

मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने इस बात को स्पष्ट किया कि मतदाता सूची में नाम जोड़ने या हटाने का एकमात्र अधिकार केवल निर्वाचक पंजीयक अधिकार के पास ही होता है।

इसलिए, किसी व्यक्ति अथवा संस्था की ओर से आने वाली फोन कॉल से स्थानीय नागरिकों को सावधानी बरतने की सलाह दी गई। साथ ही जनता को मतदाता सूची से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए हेल्पलाइन नंबर 1950 पर फोन करने की सलाह दी।

साथ ही मतदाता सूची में नाम नहीं मिलने पर आयोग ने बताया है कि आयोग की वेबसाइट पर मौजूद फॉर्म 6 के ज़रिए आवेदन किया जा सकता है।

रामलिंगम हत्या: एस निजाम अली, सरबुद्दीन, रिज़वान, मोहम्मद अज़रुद्दीन और मोहम्मद रैयाज़ गिरफ़्तार

तमिलनाडु में कुंभकोणम पुलिस ने गुरुवार को एक्टिविस्ट रामलिंगम की हत्या मामले में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से जुड़े एक सदस्य समेत पाँच लोगों को कुंभकोणम पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया है।

ख़बर के अनुसार, मामले में आरोपितों को गिरफ़्तार करने के लिए गठित एक विशेष टीम ने 42 वर्षीय कार्यकर्ता और पीएमके (पट्टाली मक्कल काची) नेता वी रामलिंगम की जघन्य हत्या मामले में पाँच लोगों को हिरासत में लिया है। गिरफ़्तार लोगों की पहचान एस निजाम अली, सरबुद्दीन, रिज़वान, मोहम्मद अज़रुद्दीन और मोहम्मद रैयाज़ के रूप में की गई है।

कथित तौर पर, धार्मिक रूपांतरण का विरोध करने के लिए मुस्लिम समुदाय के लोगों के एक समूह द्वारा उनकी बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।

5 फरवरी को रामलिंगम ने देखा कि कट्टरपंथी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से संबंधित एक समूह द्वारा दलित बहुल पड़ोस में धर्मांतरण की प्रक्रिया चलाई जा रही थी। रामलिंगम ने उसी का विरोध किया, जिससे प्रचारकों और रामलिंगम के बीच विवाद शुरू हो गया। हालाँकि बाद में इस मुद्दे को कुछ मुस्लिम मौलवियों द्वारा सुलझा लिया गया था।

इस घटना के बाद अपने मिनीवैन में जब रामलिंगम घर वापस जा रहे थे तब चार लोगों के गिरोह ने कार से बाहर निकालकर रामलिंगम के हाथों पर धारदार हथियार से हमला किया और उनका हाथ काट दिया। गंभीर रूप से घायल रामलिंगम को कुंभकोणम के एक सरकारी अस्पताल में ले जाया गया। बाद में उन्हें तंजावुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।

ममता की ‘मक्कारी’: BJP रथ यात्रा पर खौफ़ का खेल, रची झूठी इंटेलीजेंस रिपोर्ट से साज़िश

पश्चिम बंगाल में बीते दिनों हुए तमाम राजनीतिक और प्रशासनिक उठक-पटक के बीच इंडिया टुडे द्वारा किया गया स्टिंग ऑपरेशन ममता बनर्जी सरकार के झूठे दावे की पोल खोलने के लिए काफ़ी है। स्टिंग के जरिए यह बात सामने आई है कि ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार ने जानबूझकर भाजपा की रथ यात्रा को गलत खुफिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए रुकवाया था। इसमें यह दावा किया गया था कि अगर राज्य में रथ यात्रा निकलती है तो साम्प्रादायिकता भड़केगी।

बीते दिनों भाजपा को कोलकाता में अलग-अलग स्थानों से 3 रथ यात्रा का आयोजन करना था। इस यात्रा को अमित शाह द्वारा हरी झंडी दिखाने के बाद प्रधानमंत्री मोदी की एक रैली को संबोधित करने के साथ इस अभियान को समाप्त करना था। लेकिन उस वक्त राज्य पुलिस और प्रशासन ने एक खुफिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि अगर राज्य में रथ यात्रा निकलेगी तो ‘सांप्रदायिक भेदभाव’ बढ़ेगा, इसलिए हम इसकी इजाज़त नहीं दे सकते हैं।

बीजेपी ने इसके बाद रथयात्रा पर रोक के फै़सले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था, लेकिन कोर्ट ने भी यह कहते हुए बीजेपी की याचिका ख़ारिज कर दी थी कि राज्य सरकार की ओर से जताई गई आशकाएँ बेबुनियाद नहीं हैं।

स्टिंग में ख़ुलासा, इंटेलीजेंस इनपुट था ‘बनावटी’

इंडिया टुडे के द्वारा किए गए स्टिंग ऑपरेशन में यह खु़लासा हुआ है कि ज़मीनी स्तर पर कोई खास इंटेलीजेंस इनपुट नहीं था, जिसके आधार पर रथ यात्रा पर रोक लगाने की बात को वाजिब ठहराया जा सके। दरअसल, स्टिंग करने वाली टीम पश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले में एक खुफिया अधिकारी जेपी सिंह से मिली।

इसमें उन्होंने इस बात को माना कि रथयात्रा को अगर इजाज़त मिलती तो वह प्रोटेक्शन देते, लेकिन उनके पास इसकी इजाज़त ही नहीं थी। इन सारी बातों का खु़लासा उस वक्त हुआ जब रिपोर्टर ने सवाल पूछा कि आपके पास किस तरह के इनपुट थे और कहाँ-कहाँ दंगे हो सकते थे।

इसके अलावा एक अन्य सवाल में जब रिपोर्टर ने पूछा कि यह रिपोर्ट किसने बनाई थी, तो अधिकारी ने कहा, “हाँ, वो तो बनी, हर डिस्ट्रिक्ट ने बनाई। हर जगह ऐसा ही है… हम क्या बता रहे हैं कि मास्टर सिर्फ़ एक आदमी होता है दस लोग नहीं… रिपोर्ट उन्हीं के निर्देशों पर है और उसी के मुताबिक़ भेजी गई है।”

जेपी सिंह ने यह भी कबूल किया कि प्रस्तावित यात्रा पर उनकी रिपोर्ट अस्पष्ट इनपुट पर आधारित थी। उन्होंने कहा कि निर्देश ऊपर से आए थे। साथ में उन्होंने यह दावा भी किया कि सभी जिलों में खुफिया अधिकारियों ने रिपोर्ट बनाई थी।

एक अन्य अधिकारी बप्पादित्य घोष ने भी कहा कि उनके पास कोई सटीक इंटेलीजेंस नहीं थी, जो भाजपा की यात्रा को रोकने का कारण बने। उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि वे कुछ राजनीतिक दबाव में थे। उन्होंने यह भी बताया कि मार्च 2018 में पश्चिम बर्धमान जिले से संबंधित सांप्रदायिक समस्या की सूचना उन्होंने दी थी। लेकिन वर्तमान समय में ऐसी किसी समस्या को लेकर ताजा इंटेलीजेंस इनपुट नहीं था।

दूल्हा-दुल्हन सब थे राज़ी, लेकिन निकाह से बिदक गए काजी!

पैसा-पैसा करती है तू पैसे पे क्यों मरती है…

यह गाना तो आपने सुना ही होगा? लेकिन जब असिलयत में इस गाने की तर्ज़ पर कुछ ऐसा देखने को मिल जाए, जिससे प्रशासन के भी हाथ-पाँव फूल जाएँ तो बात गंभीर हो जाती है। उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में एक काजी साहब ने उस वक़्त ‘माहौल’ बना दिया जब, उन्होंने कहा कि पैसा नहीं तो शादी नहीं, मतलब पहले दाम फिर काम। मतलब ‘माहौल’ इस कदर बन गया कि मियाँ-बीबी के राज़ी होने के बाद बिन काजी के शादी अटक गई। और विवाह संपन्न नहीं हो सका।

दरअसल, शाहजहाँपुर में एक सामूहिक विवाह कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसमें मिनिस्टर से लेकर अन्य तमाम दिग्गज पहुँकर सामूहिक विवाह की शोभा बढ़ा रहे थे। यहाँ न सिर्फ़ मुस्लिम कन्याओं का बल्कि हिंदू कन्याओं की शादी का प्रोग्राम भी बना था, जिसमें हिंदू कन्याओं की शादी तो हो गई, लेकिन जब बारी मुस्लिम कन्याओं की आई तो अंत समय पर काजी साहब ने धोखा दे दिया।

पहले दिखाया था ठेंगा, काजी ने लिया बदला

वैसे नेताओं के बारे में क्या कहा जाए? उनकी पूरी राजनीति ही ठेंगा दिखाने पर टिकी हुई है। खै़र यहाँ हम काजी साहब के बारे में बात कर रहे हैं। दरअसल, मुस्लिम कन्याओं की शादी के लिए शहर के नामी काजी वसीम मीनाई को बुलावाया गया था, लेकिन उन्होंने यह कहकर विवाह स्थल पर आने से इनकार कर दिया कि पिछले 3 सामूहिक विवाह कार्यक्रमों में निकाह करवाने के बाद भी उन्हें तय की गई रकम ₹500/निकाह नहीं दी गई थी।

शादी न करवाने के पीछे उनका दिया गया तर्क जायज है भाई! शादी-ब्याह अपनी जगह है, लेकिन अगर पैसा ही नहीं मिलेगा तो फिर बेगम के लिए समान और बच्चों के लिए चॉकलेट कहाँ से लेकर आएँगें काजी साहब? शादी के बाद जोड़े तो हनीमून पर रहेंगे और घर में बेगम उनका क्या हस्र करेंगी, इसके बारे में सोचा किसी ने? खै़र काजी साहब की मानें तो उन्हें प्रशासन ने मान मुनौवल करके तीन बार धोखा दिया है।

काजी शाहब ने दर्द बयाँ करते हुए तर्क दिया कि पिछले 3 सामूहिक विवाहों का लगभग ₹20,000 उधार है। काजी साहब की मानें तो प्रशासन के अधिकारी न सिर्फ़ उनसे मुफ़्त में निकाह पढ़वाते हैं, बल्कि फोन पर पैसे माँगने पर धमकी भी देते हैं।

मतलब भाई भलाई का जमाना ही नहीं रहा! जहाँ लोग मेहनत-मजदूरी करके एक दिन में ₹300-₹500 कमाते हैं, वहीं काजी साहब से 3 बार समारोह में निकाह भी पढ़वा लिया और उनका ₹20,000 भी लेके बैठ गए। फिलहाल काजी साहब की मानें तो नेकी करने पर बदी मिलने वाली कहावत उन पर लागू हो रही है।

पाक अधिकृत कश्मीर में माँ सरस्वती का निवास, भारत की धरोहर है यह शारदा पीठ

देश की चारों दिशाओं में चार मठ स्थापित करने तथा आचार्य गौड़पाद में महाविष्णु के दर्शन करने के पश्चात आदि शंकर को माँ सरस्वती की कृपा प्राप्त हुई थी। विद्यारण्य कृत ‘शंकर दिग्विजय’ ग्रंथ में वर्णित कथा के अनुसार शंकर अपने शिष्यों के साथ गंगा किनारे बैठे थे तभी किसी ने समाचार दिया कि विश्व में जम्बूद्वीप, जम्बूद्वीप में भारत और भारत में काश्मीर सबसे प्रसिद्ध स्थान है जहाँ शारदा देवी का वास है। उस क्षेत्र में माँ शारदा को समर्पित एक मंदिर है जिसके चार द्वार हैं। मंदिर के भीतर ‘सर्वज्ञ पीठ’ है। उस पीठ पर वही आसीन हो सकता है जो ‘सर्वज्ञ’ अर्थात सबसे बड़ा ज्ञानी हो।

उस समय माँ शारदा के उस मंदिर के चार द्वार थे जो चारों दिशाओं में खुलते थे। पूर्व, पश्चिम और उत्तर दिशा से आए विद्वानों के लिए तीन द्वार खुल चुके थे किंतु दक्षिण दिशा की ओर से कोई विद्वान आया नहीं था इसलिए वह द्वार बंद था। आदि शंकर ने जब यह सुना तो वे शारदा मंदिर के सर्वज्ञ पीठ के दक्षिणी द्वार के लिए निकल पड़े।

शंकर जब काश्मीर पहुँचे तब वहाँ उन्हें अनेक विद्वानों ने घेर लिया। उन विद्वानों में न्याय दर्शन, सांख्य दर्शन, बौद्ध एवं जैनी मतावलंबी समेत कई विषयों के ज्ञाता थे। शंकर ने सभी को अपनी तर्कशक्ति और मेधा से परास्त किया तत्पश्चात मंदिर का दक्षिणी द्वार खुला और आदि शंकर पद्मपाद का हाथ पकड़े हुए सर्वज्ञ पीठ की ओर बढ़ चले। तभी माँ सरस्वती ने शंकर की परीक्षा लेने के लिए उनसे कहा, “तुम अपवित्र हो। एक सन्यासी होकर भी काम विद्या सीखने के लिए तुमने एक स्त्री संग संभोग किया था। इसलिए तुम सर्वज्ञ पीठ पर नहीं बैठ सकते।”

तब शंकर से कहा, “माँ मैंने जन्म से लेकर आजतक इस शरीर द्वारा कोई पाप नहीं किया। दूसरे शरीर द्वारा किए गए कर्मों का प्रभाव मेरे इस शरीर नहीं पड़ता।” यह सुनकर माँ शारदा शांत हो गईं और आदि शंकर सर्वज्ञ पीठ पर विराजमान हुए। माँ सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त कर शंकर की कीर्ति चहुँओर फैली और वे शंकराचार्य कहलाए। आदि शंकराचार्य ने माँ सरस्वती की वंदना में स्तुति की रचना की जो आज प्रत्येक छात्र की वाणी को अलंकृत करती है- “नमस्ते शारदे देवि काश्मीरपुर वासिनी, त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्यादानं च देहि मे।”

कश्मीर में जिस मंदिर के द्वार कभी आदि शंकर के लिए खुले थे आज उसके भग्नावशेष ही बचे हैं। हम प्रतिवर्ष वसंत पंचमी और नवरात्र में माँ सरस्वती की वंदना शंकराचार्य द्वारा रची गई स्तुति से करते हैं लेकिन उस सर्वज्ञ पीठ को भूल गए हैं जिसपर कभी आदि शंकर विराजे थे। शारदा पीठ देवी के 18 महाशक्ति पीठों में से एक है। आज वह शारदा पीठ पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर में है और वहाँ जाने की अनुमति किसी को नहीं है।

कश्मीर के रहने वाले एक डॉ अयाज़ रसूल नाज़की अपने रिश्तेदारों से मिलने पाक अधिकृत कश्मीर स्थित मुज़फ्फ़राबाद कई बार गए। अंतिम बार जब वे 2007 में गए थे तब उन्होंने शारदा पीठ जाने की ठानी। डॉ नाज़की की माँ के पूर्वज हिन्दू थे इसलिए वे अपनी जड़ों को खोजने शारदा पीठ गए थे। गत 60 वर्षों में वे पहले और अंतिम भारतीय कश्मीरी थे जो शारदा पीठ गए थे।

एक समय ऐसा भी था जब बैसाखी पर कश्मीरी पंडित और पूरे भारत से लोग तीर्थाटन करने शारदा पीठ जाते थे। आज वह शारदा पीठ उस क्षेत्र में है जिसे पाकिस्तान आज़ाद कश्मीर कहता है। आज़ाद कश्मीर मीरपुर मुज़फ्फ़राबाद का क्षेत्र है जो जम्मू कश्मीर राज्य का अंग है।

मुज़फ्फ़राबाद झेलम और किशनगंगा नदियों के संगम पर बसा छोटा सा नगर है। किशनगंगा के तट पर ही शारदा तहसील में शारदा गाँव स्थित है। वहाँ आज शारदा विश्वविद्यालय के अवशेष ही दिखाई पड़ते हैं। कनिष्क के राज में यह समूचे सेंट्रल एशिया का सबसे बड़ा ज्ञान का केंद्र था। वस्तुतः कश्मीर की ख्याति ही ‘शारदा प्रदेश’ के नाम से थी। आर्थर लेवलिन बैशम ने अपनी पुस्तक ‘वंडर दैट वाज़ इण्डिया’ में लिखा है कि बच्चे अपने उपनयन संस्कार के समय ‘कश्मीर गच्छामि’ कहते थे जिसका अर्थ था कि अब वे उच्च शिक्षा हेतु कश्मीर जाने वाले हैं।

कश्मीर के शंकराचार्य के समकक्ष आदर प्राप्त आचार्य अभिनवगुप्त ने लिखा है कि कश्मीर में स्थान-स्थान पर ऋषियों की कुटियाँ थीं और पग-पग पर भगवान शिव का वास था।

शारदा पीठ का उल्लेख सर्वप्रथम नीलमत पुराण में मिलता है। इसके अतिरिक्त कल्हण ने राजतरंगिणी में लिखा है कि सम्राट ललितादित्य के समय में शारदा विश्वविद्यालय में बंगाल के गौड़ समुदाय के लोग शारदा पीठ आते थे। संस्कृत समूचे कश्मीर की भाषा थी और शारदा विश्वविद्यालय में 14 विषयों की पढ़ाई होती थी। शारदा विश्वविद्यालय में ही देवनागरी से भिन्न शारदा लिपि का जन्म हुआ था।

डॉ अयाज़ रसूल नाज़की ने Cultural Heritage of Kashmiri Pandits नामक पुस्तक में प्रकाशित अपने लेख में ‘सारिका’ या ‘शारदा’ की लोक प्रचलित कहानी लिखी है। हुआ यह कि एक बार कश्मीर में रहने वालों की वाणी चली गई। कोई न कुछ बोल सकता था न व्यक्त कर सकता था। आवाज़ चली जाने से लोग दुखी और परेशान थे। तब सबने मिलकर हरि पर्वत पहाड़ी पर जाने का निश्चय किया। वहाँ पहुँच कर सबने भगवान से प्रार्थना की। तभी एक बड़ी सी मैना आई और उस चिड़िया ने अपनी चोंच से पत्थरों पर खोए हुए अक्षरों को लिखना प्रारंभ किया। सबने मिलकर उन अक्षरों को बोलकर पढ़ा, और इस प्रकार सबकी वाणी लौट आई।

संभव है कि वाग्देवी सरस्वती ने कश्मीरी लिपि शारदा को इसी प्रकार प्रकट किया हो लेकिन शेष भारत ने शारदा देश, लिपि, आदि शंकर की सर्वज्ञ पीठ और देवी की शक्ति पीठ को भी लगभग भुला दिया है।

गुर्जर आरक्षण: कई ट्रेनें रद्द, बहुतों का बदलना पड़ा रास्ता

लोकसभा चुनावों के आते ही गुर्जर आरक्षण आंदोलन ने भी तूल पकड़ लिया है। शुक्रवार (फरवरी 8, 2019) को ये आंदोलन गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला के नेतृत्व में शुरू हुआ।

इस आंदोलन में गुर्जर समेत 5 समुदायों के लिए सरकारी नौकरियाें और शिक्षण संस्थानों में पाँच फ़ीसदी तक आरक्षण दिए जाने की माँग की है।

गुर्जर समुदाय के ये लोग सवाई माधोपुर के नज़दीक मलारना डूंगर में रेलवे ट्रैक और सड़क रास्ते पर धरना दे रहे हैं। इस धरने की वजह से रेल यातायात को काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अभी तक पश्चिम मध्य रेलवे ने दिल्ली-मुंबई की 5 ट्रेनें को रद्द कर दिया है जबकि 15 ट्रेनों के रास्ते बदलने पड़े हैं।

बैंसला ने एएनआई से बातचीत में कहा है कि अगर आर्थिक रुप से कमज़ोर वर्गों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का इंतज़ाम किया जा सकता है तो उनके समुदाय के लिए क्यों नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि उनकी माँगों पर चूँकि अब तक ध्यान नहीं दिया गया है इसलिए उन्हें मजबूरन ही धरना प्रदर्शन करना पड़ा।

बता दें कि गुर्जरों की आरक्षण को लेकर माँग बहुत पुरानी हैं। साल 2007 से 2015 तक में गुर्जर कई बार आंदोलन कर चुके हैं।  इन आंदोलनों के दौरान रेल और सड़क यातायात को बाधित करना बहुत ही आम बात हो चुकी है।

SC के फ़ैसले से आहत मायावती ने कहा, ‘मीडिया और BJP कटी पतंग ना बनें तो बेहतर’

उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहते हुए मायावती ने राज्य में कई जगहों पर हाथी की मूर्तियों को लगवाया था। इन मुर्तियों को लगाने के लिए मायावती ने सरकारी खज़ाने को ग़लत तरह से ख़र्च किया।

सुप्रीम कोर्ट ने मायावती के द्वारा सरकारी पैसा ख़र्च करके प्रतिमा लगाए जाने को ग़लत बताते हुए अपने फ़ैसले में मूर्तियों पर किए गए ख़र्च को लौटाने की बात कही। सुप्रीम कोर्ट द्वारा फ़ैसला सुनाए जाने के बाद अब इस मामले में मायावती की प्रतिक्रिया आई है।

मायावती ने इस मामले पर ट्वीट करते हुए कहा, “मीडिया कृपया कर माननीय सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को तोड़-मरोड़ कर पेश न करें। हमारी पार्टी माननीय न्यायालय में अपना पक्ष पूरी मज़बूती के साथ आगे रखेगी। हमें पूरा भरोसा है कि इस मामले में भी न्यायालय से पूरा इंसाफ़ मिलेगा। मीडिया व बीजेपी के लोग कटी पतंग ना बनें तो बेहतर है।”

मायावती ने इस मामले में एक और ट्वीट करते हुए कहा कि सदियों से तिरस्कृत दलित व पिछड़े वर्ग में जन्मे महान संतों, गुरुओं व महापुरुषों के आदर-सम्मान में निर्मित भव्य स्थल, स्मारक, पार्क आदि सरकारों द्वारा बनाई गई। इनसे उत्तर प्रदेश की नई शान, पहचान मिला और यह जगह व्यस्त पर्यटन स्थल बन गया। इन आकर्षक जगहों से सरकार को नियमित आय भी होती है।

इस ट्वीट को पढ़ने के बाद ऐसा लग रहा है मानों वो अपनी सरकार द्वारा बनाए गए स्मारक और पार्क आदि पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद ख़ुद का बचाव कर रही हों।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (फ़रवरी 8, 2019) को आदेश दिया कि बसपा अध्यक्ष मायावती को जनता का वो सारा धन लौटाना होगा जिसे उन्होंने अपने स्मारकों को बनाने में ख़र्च किया था।

यह आदेश न्यायलय ने एक वकील द्वारा दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। जिसमें शिक़ायत थी कि कोई भी राजनैतिक पार्टी जनता के पैसों का इस्तेमाल अपनी मूर्तियाँ बनवाने के लिए या फिर प्रचार-प्रसार के लिए ख़र्च नहीं कर सकती।

कुम्भ: स्नान करती महिलाओं के फोटो लेने पर हाई कोर्ट सख़्त

कुम्भ जहाँ आस्था और पवित्रता का विषय है वहीं कुछ लोग कुम्भ में स्नान करती महिलाओं की तस्वीर खींचने से बज नहीं आ रहे थे। यहाँ तक की ऐसी कई तस्वीरें अख़बारों में भी छापी गई, मीडिया चैनलों में भी दिखाया गया। जिसका कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए, अखबार और मीडिया चैनलों पर स्नान करती महिलाओं की फोटो दिखाए जाने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मेला अधिकारियों और व्यवस्थापकों को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने निर्देश देते हुए कहा है कि ऐसा करने वालों पर कार्रवाई की जाएगी। हालाँकि, अदालत ने इस मामले में अगली सुनवाई पाँच अप्रैल को रखी है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, वकील असीम कुमार की याचिका पर जस्टिस पीकेएस बघेल और जस्टिस पंकज भाटिया की खण्डपीठ ने सुनवाई की। कोर्ट ने मेला अधिकारी से प्रश्न किया कि जब स्नान घाट से 100 मीटर के दायरे में फोटोग्राफी प्रतिबंधित है तो यह सब कैसे हो रहा है? इस प्रतिबंध का कड़ाई से पालन किया जाए।

बता दें कि प्रशासन 1000 से ज़्यादा सीसीटीवी कैमरों की मदद से पूरे मेला क्षेत्र की निगरानी कर रहा है। पूरे इलाके पर नजर रखने के लिए 40 निगरानी टावर का भी निर्माण किया गया है। मेले में राज्य पुलिस बल, पीएसी और केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के करीब 22,000 जवानों की तैनाती भी की गई है। आपात स्थिति से निपटने के लिए पूरे मेला क्षेत्र में 40 पुलिस थाने, 3 महिला पुलिस थाने और 60 पुलिस चौकियाँ भी स्थापित की गई हैं।