बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने दिल्ली से लोकसभा चुनाव 2019 के लिए प्रचार की औपचारिक शुरुआत कर दी है। अब बीजेपी ‘भारत के मन की बात, मोदी के साथ’ कैंपेन से लोगों के मन की बात जानेगी। बीजेपी इस बार के ‘संकल्प पत्र’ के लिए ‘डोर टू डोर’ अभियान से 10 करोड़ लोगों की राय लेगी। बता दें कि, इसके लिए बीजेपी के कार्यकर्ता अगले एक महीने में लोगों के घर जाकर लोगों से उनकी राय जानेंगे।
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि 2014 के पहले देश के अंदर लोकतंत्र के बहुत बड़े हिस्से की आस्था डिगने वाली थी और इसकी वजह 30 साल तक गठबंधन सरकार का दौर रहा था। उन्होंने कहा कि देश के बहुत बड़े तबके को संदेह होने लगा था कि हमारी संसदीय प्रणाली काम कर पाएगी या नहीं। शाह ने कहा, ”देश तेज़ी से आम चुनाव की ओर बढ़ रहा है। ये फै़सला देश की जनता करने जा रही है कि किस व्यक्ति और पार्टी के हाथ मे देश की धुरी रहेगी।”
Amit Shah at launch of #BharatKeMannKiBaat in Delhi:Before 2014,for over 30 yrs,there were coalition govts. During this time, about 10 cr families use to think if govt can deliver?Amid such doubts,2014 polls were held&ppl voted for BJP&govt led by Modi ji with majority was formed pic.twitter.com/G2DddFYC90
‘भारत के मन की बात, मोदी के साथ’ के बारे में बताते हुए शाह ने कहा, ”संकल्प पत्र में लोकतांत्रिकरण का अनूठा प्रयोग कर रहे हैं। अलग-अलग तरीके से हम लोगों से संपर्क करने वाले हैं। 10 करोड़ लोगों से हमारे कार्यकर्ता संपर्क करने वाले हैं। उनसे मिले सुझावों के आधार पर बीजेपी अपना संकल्प पत्र तैयार करेगी।” शाह ने कहा कि ये कार्यक्रम देश को सुरक्षित करने, ग़रीब का जीवन स्तर ऊँचा उठाने के लिए है। ये कार्यक्रम नया भारत बनाने के लिए है।
उन्होंने बताया कि ”300 रथ, 7700 मतपेटी देश की जनता के पास जाएगी। हर राज्य में 20 लोगों की टीम तैनात की जाएगी। आने वालों सवालों और सुझाव 12 विभागों के बीच बाँटे जाएँगे। इसके आधार पर संकल्प पत्र तैयार होगा।
कार्यक्रम में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि जनभागीदारी से लोकतंत्र को मज़बूती मिलती है। देश में पहली बार ऐसा हो रहा है, जब कोई राजनीतिक दल अपना संकल्प पत्र बनाने के लिए इतने बड़े स्तर पर जनसंपर्क करने जा रहा है।
कॉन्ग्रेस के कर्ज़माफ़ी को लेकर मध्य प्रदेश के किसानों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। एक के बाद एक हो रहे फर्ज़ीवाड़े को लेकर किसानों ने अब इसका विरोध प्रदर्शन करना भी शुरू कर दिया है। हिलगन गाँव के किसानों ने राज्य सरकार के कर्ज़माफी की सूची में बिना कर्ज़ लिए माफ़ी पर सामूहिक आत्महत्या करने की धमकी दी है। किसानों का कहना है कि उनपर कोई बकाया नहीं था। कई अन्य किसानों का कहना है कि उन्होंने कर्ज़ कम लिया था और लिस्ट में कर्ज़ की राशि को बढ़ाकर दिखाया गया।
लिस्ट को लेकर नाराज़ किसानों ने पंचायत ऑफ़िस में इकट्ठा होकर लिस्ट के खिलाफ़ अपना विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शन कर रहे किसान रामकुमार सिंह ने कहा, ”अगर इस मुद्दे को जल्दी सुलझाया नहीं गया तो हम सामूहिक आत्महत्या कर लेंगे।” बता दें कि उनके नाम पर कर्ज़ की बड़ी राशि लिखी गई और उनके पिता का नाम भी इस लिस्ट में शामिल है, जिनकी कुछ साल पहले मृत्यु हो चुकी है।
मृतक के नाम पर कर्ज़माफ़ी
बता दें कि जय किसान ऋण माफी योजना के तहत लिस्ट में रामकुमार सिंह के पिता के नाम पर ₹9,547 का कर्ज़ जबकि उनके नाम पर ₹70,481 का कर्ज़ लिख दिया गया। उन्होंने कहा कि चने की फसल के लिए उन्होंने केवल ₹17,000 का कर्ज़ लिया था, जबकि उनके पिता ने कोई कर्ज़ नहीं लिया था।
इस मामले पर राज्य के सहकारिता मंत्री गोविंद सिंह ने कहा कि हमने पहले ही जाँच शुरू कर दी है और यह सुनिश्चित करेंगे कि जिन किसानों ने कर्ज़ नहीं लिया है, उन्हें परेशान न किया जाए।
शारदा चिटफंड और रोज़ वैली घोटाले में कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार की CBI तलाश कर रही है। CBI राजीव कुमार से आवश्यक दस्तावेज़ों और फ़ाइलों के ग़ायब होने से संबंधित पूछताछ करना चाहती है। इस मामले में CBI राजीव कुमार को गिरफ़्तार भी कर सकती है। राजीव कुमार CBI द्वारा जारी किए गए नोटिस का जवाब नहीं दे रहे हैं। बता दें कि राजीव ने चिटफंड घोटालों की जाँच करने वाली पश्चिम बंगाल पुलिस की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम का नेतृत्व किया था।
राजीव कुमार पश्चिम बंगाल काडर के 1989 बैच के IPS ऑफिसर हैं। उन्हें 2016 में कोलकाता का पुलिस कमिश्नर नियुक्त किया गया था। चुनाव की तैयारियों के अवलोकन करने के लिए चुनाव आयोग की एक टीम जब उनसे मिलने कोलकाता पहुँची तो वो उनसे मिलने की बजाए अपने ऑफ़िस चले गए।
इसके बाद उनके कार्यालय में फ़ोन के ज़रिए उनसे संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उनके ऑफ़िस के कर्मचारी ने बताया कि राजीव कुमार अब शायद ही आफ़िस में मिल पाएँ, इसलिए उनसे बात करने के लिए उनके घर या व्यक्तिगत नंबर पर कॉल करें। इसके लिए उक्त कर्मचारी ने राजीव के घर का नंबर भी बताया, जिस पर उस समय संपर्क नहीं हो पाया। इसके अलावा राजीव कुमार से उनके मोबाइल पर संपर्क करने का प्रयास भी किया गया, जो विफल रहा।
अधिकारियों के मुताबिक़ बंगाली फिल्म निर्माता श्रीकांत मोहिता को गिरफ़्तार किए जाने के बाद से ही राजीव को भी गिरफ़्तारी का डर सता रहा है। इसलिए वो किसी भी तरह की पूछताछ से बचते नज़र आ रहे हैं।
बता दें कि रोज़ वैली घोटाला ₹15,000 करोड़ से अधिक का है और शारदा चिटफंड घोटाला क़रीब ₹2500 करोड़ का है। अधिकारियों के मुताबिक, दोनों ही मामलों में सभी आरोपित कथित तौर पर सत्ताधारी टीएमसी से जुड़े पाए गए। इन दोनों ही चिटफंड घोटालों की जाँच CBI कर रही है।
आपको बता दें कि CBI को इस जाँच में पहले भी ममता सरकार द्वारा दिक़्कतों का सामना करना पड़ा है। CBI ने आरोप लगाया था कि राज्य सरकार के ‘शत्रुतापूर्ण’ व्यवहार के चलते अंतिम आरोप पत्र दाखिल करने में देरी हो रही है। इसके अलावा एक आरटीआई के माध्यम से भी यह ख़ुलासा हुआ था कि पश्चिम बंगाल सरकार भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) को योजनाओं और ई-ख़रीद से संबंधित विवरण साझा करने से मना कर रही थी।
ईसा के 500 वर्ष पूर्व बुद्ध एक दिन अचानक प्रोपेगंडा नगरी NDTV पहुंच गए। कमरों, गलियारों और कूचों से निकलते हुए वो रवीश जी के ऑफिस में पहुंचे और उनसे पूछा, “मैं तो ठहर गया, तुम कब ठहरोगे?” ऐसी ही एक घटना 1930 में भी हुई थी। दस दिन तक कड़ी धूप में 240 मील चलने के बाद गांधी ने दांडी में दो मुट्ठी नमक उठा कर रवीश कुमार की तरफ देखकर पूछा, “बस कर पगले रूलाएगा क्या?”
ये दोनों घटनाएं उतनी ही काल्पनिक और थिएट्रिक हैं, जितनी आज कल रवीश कुमार की पत्रकारिता हो गयी है।
2019 का बजट आया। लोग चाहते थे कि किसानों पर बात हो, किसानों पर बात हुई। लोग चाहते थे कि मिडिल क्लास पर बात हो, मिडिल क्लास पर बात हुई। लेकिन रवीश जी को इस बार किसान या मिडिल क्लास याद नहीं आया, उन्हें गंगा मैया याद आ गयी।
ये इत्तेफाक़ हो सकता है कि मीडिया में रहने के बाद भी रवीश जी को गंगा सफाई पर चल रहे कार्यक्रमों के बारे में मालूम नहीं, ये भी इत्तेफाक़ हो सकता है कि इस बार रवीश जी को याद नहीं आया कि मिडिल क्लास जैसा भी कुछ होता है, और ये भी इत्तेफाक़ हो सकता है कि रवीश जी सिनेमा में जाना चाहते थे पर उन्हें मीडिया में काम करना पड़ गया।
रवीश कुमार ने बजट पर जो ब्लॉग लिखा है, उसका एक और हिस्सा देखते हैं।
इन टिप्पणियों में जान बुझ कर की गईं दो मौलिक त्रुटियाँ मुझे बहुत परेशान कर रही हैं।
1. क्या रवीश कुमार ये चाहते हैं कि किसान और उसका परिवार सरकार के दया पर जीवित रहे? क्या रवीश कुमार ये चाहते हैं कि किसान के लिए यही पांच सौ सब कुछ हो? ये राशि किसानों के लिए सहायता (जिसे अंग्रेजी में सपोर्ट बोलते हैं) का साधन है, जिसका उपयोग वो बुरे दिनों में कर सकते हैं। ये जानते हुए भी रवीश कुमार इतिहास और भूगोल पर तंज कस रहे हैं।
2. बजट आने के पहले रवीश कुमार जैसे सोशलिस्ट ये बोल रहे थे कि अमीरों को ज्यादा टैक्स देना चाहिए और गरीबों को कम। बजट आने के बाद वो ये पूछ रहे हैं कि पाँच लाख से ज्यादा कमाने वालों का टैक्स कम क्यों नहीं हुआ। मिडिल क्लास वाले 3 करोड़ लोग, जो कुछ अधिक पैसा बचा पाएँगे, उन्हें रवीश जी छुट्टी मनाने और होली खेलने की नसीहत भी दे रहे हैं। अरे भाई, इसमें इतना जलने वाली क्या बात हो गयी?
कभी कभी रवीश कुमार को देखकर लगता है कि मीठी-मीठी बातें करने वाला आदमी इतनी ज्यादा नेगेटिविटी कैसे ले आता है।
रवीश कुमार हिंदी के दिग्गज पत्रकार हैं। हिंदी लिखने और पढ़ने वाले कई दर्शक उनके प्रशंसक हैं। इनमें वो लोग भी आते हैं, जिन्हे हिंदी में बजट सुनने में परेशानी है। रवीश कुमार चाहते तो किसानों को ये बता सकते थे कि नया बजट उनके लिए कैसे सहायक हो सकता है, लेकिन उन्होंने इसकी जगह उन्हें बेबस और लाचार बताना उचित समझा। पांच सौ रुपए बहुत तो नहीं होते, लेकिन जो किसान दस-दस रुपए के लिए परेशान होता था वो उसकी महत्ता NDTV के AC ऑफिस में बैठे रवीश कुमार से ज्यादा समझ सकता है।
रवीश जी से आग्रह है कि गंगा सफाई पर चल रहे कार्यक्रमों पर थोड़ी जाँच पड़ताल कर लें ताकि होली के दिन उन्हें दिवाली के बारे में बात करने की जरूरत ना पड़े| एक महान अर्थशास्त्री ने कहा था, “पैसे पेड़ पर नहीं उगते।” रवीश जी से ये भी आग्रह है कि मुफ्त में पैसे बाँटने वाली राजनीति से बाहर निकलें।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर में लेह एयरपोर्ट सहित कई विकास परियोजनाओं का शिलान्यास किया। प्रधानमंत्री ने इस दौरान लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि शिलान्यास के बाद इन परियोजनाओं का लोकार्पण करने भी वही आएँगे। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार के काम करने का तरीका तेज़ी से काम करना है। लटकाने और भटकाने की संस्कृति देश पीछे छोड़ चुका है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जिन परियोजनाओं का लोकार्पण, उद्घाटन और शिलान्यास किया गया है, उनसे बिजली के साथ-साथ लेह-लद्दाख की देश और दुनिया के दूसरे शहरों से कनेक्टिविटी सुधरेगी, पर्यटन बढ़ेगा, रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे और यहाँ के युवाओं को पढ़ाई के लिए अच्छी सुविधाएँ भी मिलेंगी। उन्होंने कहा कि यह धरती वीरों की है और यहाँ की जनता से मुझे प्रेम मिलता रहा है। लेह-लद्दाख-कारगिल भारत का शीर्ष है, हमारा मस्तक है। माँ भारती का ये ताज हमारा गौरव है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि लेह, लद्दाख का इलाक़ा अध्यात्म, कला-संस्कृति, प्राकृतिक सुंदरता और एडवेंचर स्पोर्ट्स के लिए दुनिया का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यहाँ टूरिज्म के विकास के लिए एक और क़दम सरकार ने उठाया है। इसके अलावा यहाँ 5 नए ट्रैकिंग रूट को खोलने का फै़सला भी लिया गया है।
बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू के विजयपुर भवनों और पुलवामा के अवंतीपोरा में नए एम्स की आधारशिला रखी और साथ ही किश्तवाड़ में 624 मेगावाट क्षमता वाली जल विद्युत परियोजना का शिलान्यास भी किया।
केंद्रीय रेल और संचार राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने शनिवार (2 फरवरी 2018) को कुंभ मेले पर भारतीय डाक विभाग का एक विशेष डाक टिकट जारी किया। इस अवसर पर एक विशेष ‘फस्ट डे कवर’ भी जारी किया गया। इसका मूल्य पाँच रुपए है।
इस अवसर पर श्री सिन्हा ने कहा कि कुंभ मेला न सिर्फ़ भारत का बल्कि पूरी दुनिया का एक प्रमुख आयोजन है। मनोज सिन्हा ने कहा कि कुंभ केवल एक धार्मिक और आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि यह पूरे विश्व का एक ज्योतिषीय, सांस्कृतिक और खगोलीय आयोजन भी है। कुंभ को ज्ञान के स्रोत के रूप में भी देखा जाता है।
कुंभ पर डाक टिकट जारी करते हुए उन्होंने कहा कि कुंभ मेले पर टिकट जारी करना बड़े गौरव की बात है। इससे पहले की सरकारें इस प्रकार के आयोजनों पर स्मारक डाक टिकट जारी करने से बचती आई हैं। वर्तमान सरकार ने ऐसा साहस दिखाया है और कुंभ पर स्मारक डाक टिकट जारी किया, जो इससे पहले कभी नहीं हुआ।
उन्होंने बताया कि कुंभ पूरे देश के साथ-साथ विश्व के लिए आकर्षण का केंद्र है। संपूर्ण विश्व के लिए कुंभ मेला आस्था का प्रतीक है, दुनिया भर से लोग यहाँ आते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए स्मारक डाक टिकट और स्मारिका जारी की गई है।
केंद्रीय रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने जानकारी दी कि डाक विभाग ने कई क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित किए हैं। डाक विभाग ने पार्सल के साथ-साथ तक़नीकी का इस्तेमाल कर कोर बैंकिंग की भी शुरुआत की है। इसके अलावा पासपोर्ट सेवा केंद्र भी डाक विभाग में खोले गए हैं। मनोज सिन्हा ने कहा कि हमारा लक्ष्य है कि हर लोकसभा क्षेत्र में कम से कम एक पासपोर्ट केंद्र हो और हम इस लक्ष्य को फरवरी के अंत तक प्राप्त कर लेंगे। 2014 तक देश में सिर्फ़ 77 पासपोर्ट केंद्र थे, जो अब बढ़कर 300 से अधिक हो चुके हैं।
मनोज सिन्हा ने कहा कि अब इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक के माध्यम से क्रान्तिकारी परिवर्तनों की डाक विभाग में शुरुआत हो चुकी है। इंडिया पोस्ट की लगभग 1,30,000 शाखाएँ खुल चुकी हैं और बीमा क्षेत्र में भी डाक विभाग जल्दी ही अपने क़दम आगे बढ़ाएगा।
बिहार में रविवार की सुबह एक बड़ा रेल हादसा हुआ। हादसे में बिहार के जोगबनी से नई दिल्ली के आनंद विहार टर्मिनल जा रही सीमांचल एक्सप्रेस की 11 बोगियां पटरी से उतर गईं। अभी तक की जानकारी में 7 लोगों मौत हो चुकी है, जबकि कई अन्य घायल हैं।
#SpotVisuals: Total 11 coaches affected due to #SeemanchalExpress derailment in Bihar's Sahadai Buzurg, earlier this morning. 3 out of 11 coaches had capsized. 7 people have lost their lives in the incident pic.twitter.com/FSLbEYKxGc
रेलवे अधिकारियों के अनुसार यह हादसा संभवत: पटरी के टूट जाने की वजह से हुआ है। यह हादसा हाजीपुर-बछ़वाड़ा रेल सेक्शन के बीच सहदोई स्टेशन के पास हुआ। हादसे के वक्त ट्रेन फूल स्पीड में थी और पटरी से उतरने के बाद बोगियाँ एक के ऊपर एक चढ़ गई।
रेलवे द्वारा हादसे संबधित जानकारी के लिए जारी किए गए नंबर:
Smita Vats Sharma, Additional Director General PR (Rail) on #SeemanchalExpress: We are focusing on rescue and relief operations right now. Railway Accident Medical Van along with team of doctors are at site. Two teams of NDRF have also reached the spot. pic.twitter.com/iiYzaXCt2Z
इस बीच रेलवे ने इस हादसे पर मुआवजे का ऐलान कर दिया है। ऐलान के अनुसार, मृतकों के परिजनों को 5 लाख रुपए जबकि गंभीर रूप से घायलों को 1 लाख रुपए तक मुआवज़ा दिया जाएगा। मामूली रूप से जख्मी को 50 हजार रुपए का मुआवजा मिलेगा। इसके साथ ही रेलवे ने हादसे के जाँच के आदेश भी दे दिए हैं।
1 फरवरी को समूचे विश्व में ‘वर्ल्ड हिजाब डे’ मनाया गया। इस दिन हिजाब के महत्वों पर भी बात की गई और कई देश के कोनों-कोनों में इस पर समारोह का भी आयोजन हुआ। इन समारोह में जो मुख्यत: बातें हुईं, वो यह कि आख़िर मुस्लिम महिलाओं को हिजाब क्यों पहनना चाहिए। इस ‘क्यों’ के एक ज़वाब में हिजाब को मुस्लिम महिलाओं की पहचान बताया गया।
इस दिन को पूरे विश्व में मनाने का एक उद्देश्य है कि सभी धर्मों और विभिन्न पृष्ठभूमि की महिलाओं को एक दिन के लिए हिजाब पहनने और उसे अनुभव करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। साल 2013 में नजमा खान के द्वारा इस वार्षिक कार्यक्रम की स्थापना की गई थी।
आज हिजाब को न केवल इस्लामिक देशों में बल्की अन्य देशों में भी मुस्लिम महिलाओं की छवि का प्रतिबिंब माना जाता है। ऐसे में अब ज़रा सोचिए कितना कठिन होता होगा उन मुस्लिम महिलाओं के लिए खुद को हिजाब से अलग कर पाना, जो इसे अपने जीवन में जगह नहीं देना चाहती हैं और खुली हवाओं में खुले सिर घूमने की तमन्ना रखती हैं।
हिजाब पहनना किसी विशेष समुदाय की महिलाओं के लिए सिर्फ तभी तक ‘माय लाइफ, माय रूल्स’ का हिस्सा बन सकता है, जब तक उन पर वो थोपा न जाए। जब इससे धार्मिक कुरीतियों और पितृसत्ता की बू आने लगे तो इसे जितनी जल्दी मुमकिन हो, उतारकर फेंक देना चाहिए।
लगभग 6 साल होने को है, जब इरान की एक महिला मसीह अलीनेज़ाद ने हिज़ाब के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरू किया था। अपने हिजाब को उतारकर इस महिला ने कार की स्टेयरिंग पकड़कर सोशल मीडिया पर अपनी फोटो अपलोड की थी। जिसके बाद सोशल मीडिया पर कई महिलाओं ने उनके समर्थन में अपनी तस्वीरें भी साझा करनी शुरू की थी।
मसीह ने अपनी किताब ‘द विंड इन माय हेयर’ में लिखा है कि वो इरान के एक ऐसे मुस्लिम परिवार में पली-बढ़ी हैं, जिसमें एक लड़की को अपना सर घर के लोगों के आगे भी ढककर रखना होता था। उन्होंने अपनी संस्कृति में औरतों के साथ होती नाइंसाफ़ी को महसूस किया था। अपनी किताब में मसीह ने बताया कि वो मूक लोगों की आवाज़ बनना चाहतीं थी लेकिन इरान में रहते हुए वो हमेशा ही मूक रहीं।
मसीह 2009 से ही यूएस में रह रही हैं। वो गिरफ्तारी की डर की वजह से यूएस से इरान चाहकर भी नहीं जा पाती हैं। वो बताती हैं कि उनके पिता ने उनसे बात भी करनी बंद कर दी है।
आज मसीह के इस आंदोलन से 1000 से ज्यादा महिलाएँ जुड़ चुकी हैं। मतलब साफ़ है कि हिजाब का मामला स्वेच्छा से जुड़ा हुआ तो बिलकुल भी नहीं है।
ईरान की ही राजधानी तेहरान में साल 2017 से 2018 के बीच में लगभग 35 से अधिक हिजाब के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करती महिलाओं को गिरफ्तार किया गया। साथ ही इस बात की भी धमकी दी गई कि अगर कोई भी महिला हिजाब के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करती पाई गई, तो उसे दस साल के लिए जेल में भी डाला जा सकता है।
अब ऐसी स्थिति में सोचिए अंतराष्ट्रीय स्तर पर इस दिन को मनाना क्या वाकई में मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर बात करना है या उनकी स्थिति को और भी दयनीय बनाना है।
हिजाब आज मुस्लिम महिलाओं के लिए और भी ज्यादा विमर्श का विषय है क्योंकि बाज़ार से लेकर खेल जगत तक और खेल से सौंदर्य तक हर क्षेत्र में हिजाब को ढाल बनाकर मुस्लिम महिलाओं को इसमें जकड़े रखने की पुरज़ोर कोशिशें की जा रही हैं।
हाल ही में नाइकी जैसी बड़ी कंपनी ने एथलिट के लिए एक डिज़ाइनर हिजाब तैयार किया, जिसको बनाने के पीछे तर्क था कि एथलिट जिसमें सहज है, वो वैसे ही खेले। नाइकी के इस कदम पर तथाकथित नारीवादी लोग वाह-वाही करते नहीं थके।
लेकिन, सोचिए ज़रा! हिजाब की जकड़ मुस्लिम महिलाओं पर कितनी होगी कि जिस बाज़ार का काम हमें विकल्प मौजूद कराना है, वो भी हिजाब के मसले पर सीमित हो गया। ये किसी विशेष धर्म की कुरीतियों को बढ़ावा देना नहीं तो और क्या है कि अब दौड़ के मैदान में भी एक लड़की ‘खिलाड़ी’ बनकर नहीं बल्की ‘मुस्लिम खिलाड़ी’ बनकर दौड़ेगी।
नाइकी ही एक ऐसा नाम नहीं है, जिसने हिजाब को मुस्लिम महिलाओं की सहज़ता से जोड़ा हो। इसी दिशा में पिछले साल ऐसा काम इंडोनेशिया के डिज़ाइनर अनिएसा हसीबुआँ ने किया था और उस समय भी हिजाब को न्यूयॉर्क फ़ैशन वीक में बहुत वाहवाही मिली थी।
अब सोचिए अगर हर स्तर पर इसी तरह से मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब की अनिवार्यता को आधुनिक रूप दे-देकर पेश किया जाएगा तो आने वाले समय में ये ‘मुस्लिम महिलाएँ’ खुद के भीतर की महिला को मारकर सिर्फ ‘मुस्लिम’ को ही जिंदा रख पाएँगी।
आज देश-विदेश में हिजाब को लेकर जो कॉन्सेप्ट चल रहा है, वो बिल्कुल ऐसा है ही कि विश्व के कोने-कोने में लड़कियों को ‘जंजीर’ से छुड़ाने की जगह उनके हाथ-पाँवों को ‘डिजाइनर जंजीरों’ से जकड़ दिया जाए। ताकि वे मॉडर्न बनने की चाह में खुद के अधिकारों पर बात करना बिलकुल बंद कर दें और उसी आबो-हवा में साँस भरें, जिसकी कण-कण से केवल गुलामी की गंध आती हो।
जिस दिशा में हिजाब को इस्लाम का हिस्सा बताकर डिज़ाइनर तरीके से पेश किया जा रहा है, उसी दिशा में जरा दूसरे पहलू पर गौर करें और सोचें कि क्या होगा? जरा सोचिए कैसा लगेगा अगर कोई कंपनी हिंदू धर्म के लिए डिज़ाइनर चिता बनवाए, ताकि कोई सती होकर चिता पर जलना चाहे? सभी धर्मों के अनुरूप बाल विवाह के मंडप भी डिज़ाइनर बनाए जाएँ! कन्या भ्रूण हत्या के लिए डिज़ाइनर इक्विप्मेंट्स बनाए जाएँ! जरा सोचिए।
और ऐसा इसलिए ताकि हर उस कुरीति को जिंदा रखा जाए, जिससे महिलाओं का दमन होता आया है। इसके लिए बाजार को आखिर करना ही क्या है, सिर्फ मूल वस्तु और भाव में डिजाइन को ठूँस देना है। 10-20 जगहों पर समारोह करवा देना है और ट्विटर जैसी बड़ी कंपनियों के सीइओ के हाथ में कुछ भी लिखकर तख्ती पकड़वा देनी है। जरा सोचिए, वो बाजार कितना ख़ौफनाक होगा?
गुजरात में मेहसाणा जिले के ऊँझा विधानसभा सीट से कॉन्ग्रेसी विधायक आशाबेन पटेल ने पार्टी में अंदरूनी कलह का हवाला देते हुए अपना इस्तीफ़ा दे दिया। उन्होंने अपना इस्तीफ़ा विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र त्रिवेदी को सौंपा, जिसके बाद उन्होंने इस्तीफ़े को स्वीकार कर लिया। बता दें कि, पटेल का इस्तीफ़ा देना कॉन्ग्रेस पार्टी के लिए एक झटका माना जा रहा है, क्योंकि बीजेपी के गढ़ वाली सीट पर इन्होंने 2017 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज़ की थी। बता दें कि महेसाणा जिले में 7 विधानसभा सीटे हैं, जिसमें से चार सीटें बीजेपी के पास जबकि तीन कॉन्ग्रेस के पास है।
आशाबेन पटेल ने पार्टी अध्यक्ष राहुल गाँधी को पत्र लिखकर अपने इस्तीफ़े की जानकारी दी। इसके बाद मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैंने अंदरूनी कलह और पार्टी नेतृत्व के मुझे नजर अंदाज करने के चलते इस्तीफ़ा दिया है।’’ उन्होंने कहा कि पिछले एक साल में राज्य के विकास के लिए दिए गए किसी भी बात को पार्टी ने गौर नहीं किया।
बीजेपी में शामिल होने को लेकर पूँछे एक सवाल पर उन्होंने कहा कि वह पहले निर्वाचन क्षेत्र के लोगों से इसके बारे में पूछेंगी फिर कोई निर्णय लेंगी। वहीं इस्तीफ़े को लेकर कॉन्ग्रेस राज्य इकाई के अध्यक्ष अमित चावड़ा ने इसे आशा पटेल का निजी स्वार्थ बताया। बता दें कि इससे पहले कॉन्ग्रेस विधायक कुंवरजी बावलिया कॉन्ग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गईं थीं।
बंग्लादेश के गाज़ीपुर में गाय चोरी करते हुए रंगे हाथ पकड़े जाने पर दो लोगों को भीड़ ने अपने गुस्से का शिकार बना लिया। भीड़ द्वारा पीटाई किए जाने के बाद मौके पर दोनों आरोपितों की जान चली गई। कालियाकेर पुलिस स्टेशन के प्रमुख, एमडी आलमगीर ने कहा कि मारे गए दोनों लोग एक गिरोह का हिस्सा थे, जिसने शनिवार तड़के अपज़िला के नौला इलाके से मवेशी चुराने की कोशिश की थी।
भीड़ द्वारा मारे गए दोनों मृतकों की उम्र 25 से 30 वर्ष के बीच थी। हालाँकि, पुलिस को दोनों ही मृतकों की पहचान करने में काफ़ी समय लगी।
पुलिस ने बताया कि नओला व अताबा क्षेत्र के रहने वाले मोहम्मद शाजान अपने साथी के साथ लोगों के घरों से गाएँ चुराने का काम करते थे। पुलिस ने बताया कि मारे गए दोनों चोरों द्वारा छह गायों की चोरी की गई थी।
इस क्षेत्र में गायों की चोरी करने के बाद चोरों का यह गिरोह बरियाबाहा इलाके के अब्दुस समद के घर में घुसा, लेकिन मौके पर घर के लोगों को चोरों की मौजूदगी का अहसास हुआ और फिर शोर मचाने पर पास पड़ोस में रहने वाले लोगों की नींद खुल गई।
इसके बाद गाँव के मस्जिद से चोर के गाँव में एक घोषणा की गई , जिसके बाद भारी संख्या में स्थानीय लोग घटनास्थल पर पहुँच गए। मौके पर मौजूद लोगों ने दो चोरों को पकड़ लिया। उनमें से एक की घटनास्थल पर ही पीट-पीटकर हत्या कर दी गई, जबकि दूसरे ने अस्पताल पहुँचने के बाद दम तोड़ दिया।
इस घटना के समय मौके पर मौजूद ग्रमीणों ने बताया कि इस चोर गिरोह के अन्य सदस्य एक ट्रक पर मवेशी रखकर भाग गए।
आपको बता दें कि भारत में यदि यह घटना घटी होती तो लोग इस घटना को भी सांप्रदायिक बनाने में लग जाते, ऐसे लोगों को बंग्लादेश के इस घटना से समझने की ज़रूरत है कि गायों की रक्षा के लिए सिर्फ़ भारत में ही नहीं बल्कि बंग्लादेश जैसे मुस्लिम देश में भी गौरक्षक हैं।