Friday, October 4, 2024
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इंदौर के किसान संजय का कहना है: ‘प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना’ ने उनकी ज़िन्दगी बदल दी

केंद्र सरकार द्वारा 18 फरवरी 2016 को देश के किसानों की फ़सल को बीमा सुरक्षा देने के उद्देश्य से शुरू की गई ‘प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना’ का लाभ आज किसानों को मिल रहा है। इस योजना के ज़रिए न सिर्फ़ वे अपनी आय को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं बल्कि उनके जीवन में अब इसके ज़रिए ज्यादा खु़शहाली आई है।

सरकार की इस योजना से किसानों का आज और भविष्य दोनों सुरक्षित हो रहा है। मध्यप्रदेश के इंदौर में रहने वाले संजय, ‘प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना’ पर कहते हैं कि इससे उनकी जिंदगी में व्यापक बदलाव आया है।

संजय कहते हैं कि पिछले 40-50 सालों में योजनाएँ तो बहुत आईं लेकिन वह सफ़ल नहीं हुईं। लेकिन मोदी सरकार द्वारा लाई गई ‘प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना’ तीन सालों में लागू हुई है और हमें उसका लाभ प्राप्त हुआ है। संजय का मानना है कि इसके जरिए उन्हें आर्थिक सुरक्षा कवच मिला है। उन्होंने कहा कि जब पहले पाले, ओले गिरते थे तो उन्हें उसका नुकसान उठाना पड़ता था लेकिन अब इस योजना के तहत वो अपने आपको सुरक्षित महसूस कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना क्या है?

आपदाओं में नष्ट होने वाली फ़सलों के बदले किसानों को मुआवज़ा देने के लिए मोदी सरकार ने 2016 में प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना (PMFBY) शुरू किया। इसके तहत किसानों को खरीफ की फ़सल के लिए 2% प्रीमियम और रबी की फ़सल के लिए 1.5% प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है। PMFBY योजना वाणिज्यिक और बागवानी फ़सलों के लिए भी बीमा सुरक्षा प्रदान करती है।

जया प्रदा ने किया खुलासा, SP नेता आज़म खान ने तेज़ाब फेंकने का किया था प्रयास

बॉलीवुड से राजनीति का सफ़र तय करने वालों में एक बड़ा नाम जया प्रदा का है। जया शुरू से अपनी रहस्यों से भरी जिंदगी की वज़ह से सवालों का हिस्सा बनी रही हैं। लेकिन इस बार जया अपने एक बयान की वज़ह से ख़बर में आई हैं।

पूर्व लोकसभा सांसद और बॉलीवुड की कमाल की अभिनेत्री जया प्रदा ने क्वींसलाइन लिटरेचर फेस्टीवल में बताया है कि यूपी के रामपुर से विधायक आज़म खान ने एक बार चुनावों के दौरान उन पर तेज़ाब फेंकने का प्रयास किया था। जया ने कहा “क्योंकि मैं जिस राज्य में थी, उसमें आज़म खान के साथ चुनाव लड़ना था, एक महिला के रूप में, एसिड अटैक की धमकियों के साथ, मेरे जीवन के लिए खतरा था … मैं अपनी माँ को यह भी नहीं बता सकती थी कि क्या मैं घर से बाहर निकलने पर जीवित वापस आऊँगी?”

उन्होंने कहा ​​कि “यहाँ तक एक पार्टी के सांसद के रूप में, मुझे बख़्शा नहीं गया। आज़म खान ने मुझे परेशान किया। उसने मुझ पर एसिड अटैक का प्रयास किया। मुझे बिल्कुल नहीं पता था कि मैं अगले दिन जीवित रहूँगी।”

इसके अलावा जया प्रदा ने इस बातचीत में समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता अमर सिंह से अपने अच्छे संबंधों के बारे में भी बात की। अमर सिंह को अपना “गॉडफॉदर” बताते हुए उन्होंने कहा कि उनके बुरे समय में केवल एक अमर सिंह ही थे जो उनके साथ खड़े हुए थे।

जया ने कहा, “अगर मैं अमर सिंह को राखी भी बाँध दूँगी तो क्या लोग बात करना बंद कर देंगे? मुझे कोई परवाह नहीं है कि लोग क्या कहते है।”

जया ने अपनी बातचीत में समाजवादी पार्टी के पूर्व प्रमुख मुलायम सिंह पर उनके बचाव में नहीं आने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि एक बार जब उनकी तस्वीरों के साथ छेड़-छाड करके इधर-उधर बाँटा जा रहा था तो उन्होंने आत्महत्या तक करने की सोच ली थी।

उन्होंने उस समय को याद करते हुए बोला, “अमर सिंह डायलिसिस पर थे और मेरी डॉक्टर्ड तस्वीरें इलाकों में प्रसारित की जा रहीं थी। मैं रोते हुए कह रही थी कि मुझे अब और नहीं जीना है, मैं आत्महत्या करना चाहती हूँ।”

उन्होंने कहा कि “ सिर्फ़ अमर सिंह जी ही थे जो डायलिसिस के बाद मेरे साथ ख़ड़े हुए और मेरा साथ दिया। अब ऐसे में आप उनके बार में क्या सोचेंगे? गॉडफॉदर या कुछ और?”

आपको बता दें समाजवादी पार्टी से निष्कासित किए जाने के बाद अमर सिंह और जया प्रदा ने अपनी राष्ट्रीय लोक मंच नाम की पार्टी का गठन किया था।

सरकार को अस्थिर करने की साज़िश रचने वाला आनंद तेलतुम्बडे गिरफ़्तार

पुणे शहर की पुलिस ने प्रतिबंधित CPI-M के साथ संबंधों के लिए एल्गार परिषद मामले में गोवा प्रबंधन संस्थान के प्रोफ़ेसर आनंद तेलतुम्बडे को गिरफ़्तार किया है। बता दें कि पुणे की एक विशेष अदालत ने शुक्रवार (फरवरी 1, 2019) को तेलतुम्बडे की अग्रिम ज़मानत अर्ज़ी ख़ारिज कर दी थी। पुणे शहर पुलिस की एक टीम ने तेलतुम्बडे को शनिवार तड़के लगभग 4 बजे मुंबई हवाई अड्डे से गिरफ़्तार किया।

सहायक पुलिस आयुक्त शिवाजी पवार ने तेलतुम्बडे की गिरफ्तारी की पुष्टि की और कहा कि उन्हें आज पुणे में विशेष अदालत में पेश किया जाएगा। पुणे शहर की पुलिस मामले में आगे की जाँच के लिए तेलतुम्बडे की हिरासत की मांग कर रही है।

शुक्रवार को तेलतुम्बडे की अग्रिम ज़मानत याचिका ख़ारिज करते हुए विशेष न्यायाधीश के डी वाडाने ने एक आदेश पारित किया जिसमें कहा गया कि जाँच अधिकारी द्वारा पर्याप्त साक्ष्य एकत्र किए गए थे जिसमें उसके अपराध की भागीदारी स्पष्ट दिखाई दी।

आदेश में यह भी कहा गया कि जाँच बहुत ही महत्वपूर्ण चरण में थी। जस्टिस वडाने ने कहा, “इससे पता चलता है कि पूछताछ के लिए अभियुक्तों की हिरासत ज़रूरी इसलिए, अभियुक्त अग्रिम ज़मानत पर रिहा होने का हक़दार नहीं है। इसलिए अग्रिम ज़मानत अर्ज़ी ख़ारिज होने लायक है”।

अभियोजन पक्ष द्वारा गुरुवार (जनवरी 31, 2019) को एक लिफाफा पेश किया गया था जिसमें इलेक्ट्रॉनिक डेटा के प्रिंटआउट शामिल थे। इसमें उन्होंने दावा किया था कि इस मामले में तेलतुम्बडे की भागीदारी स्पष्ट रूप से साबित हुई है।

इससे पहले अभियोजन पक्ष ने तेलतुम्बडे की ज़मानत अर्ज़ी का विरोध करने के लिए विशेष न्यायाधीश किशोर डी वडाने के समक्ष अपनी प्रतिक्रिया दर्ज की थी। पुलिस ने दावा किया था कि उनके पास यह साबित करने के लिए सबूत हैं कि तेलतुम्बडे प्रतिबंधित माओवादी संगठन के माध्यम से सरकार को अस्थिर करने के लिए देश विरोधी गतिविधियों में शामिल थे।

तेलतुम्बडे उन सात प्रमुख कार्यकर्ताओं में से एक है जिनके घरों पर पिछले साल 28 अगस्त को पुणे पुलिस द्वारा किए गए एक मल्टी-सिटी सर्च ऑपरेशन के तहत छापा मारा गया था। इनमें से चार- सुधा भारद्वाज, पी वरवर राव, वर्नन गोंजाल्विस और अरुण परेरा- पहले से ही पुलिस हिरासत में हैं। इन सभी को पुणे पुलिस ने पिछले साल गिरफ़्तार किया था। पुणे पुलिस ने रांची से सातवें संदिग्ध स्टेन स्वामी को गिरफ़्तार करने का फ़िलहाल कोई प्रयास नहीं किया है।

भीमा कोरेगाँव की लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ से एक दिन पहले 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एक कार्यक्रम में दिए गए भाषणों के बाद पुणे के आसपास हिंसक झड़पें हुई थी। इस मामले में पुणे पुलिस एल्गार परिषद की नक्सली गतिविधियों की खोजबीन कर रही है।

पुलिस का दावा है कि अगले दिन हिंसात्मक घटनाओं के लिए एल्गार परिषद के दौरान दिए गए भाषण जिम्मेदार थे। एल्गार परिषद के आयोजन में कथित नक्सली संलिप्तता की जाँच करते हुए पुणे पुलिस ने दावा किया कि सबूतों को जुटाने में उनसे कहीं चूक हुई है, जिसमें प्रतिबंधित समूह CPI-M की बड़ी साज़िशों और गतिविधियों को उजागर किया गया है।

बर्दवान ब्लास्ट मामले के आरोपी इमाम की केरल में हुई गिरफ़्तारी

पश्चिम बंगाल और केरल पुलिस के संयुक्त ऑपरेशन के तहत 2014 के बर्दवान विस्फोट मामले के आरोपी अब्दुल मतीन को केरल के मलप्पुरम जिले के इडावन्ना से 30 जनवरी (बुधवार) को गिरफ़्तार किया गया।

पुलिस के अनुसार अब्दुल मंजेरी के पास एडवाना में एक स्थानीय मस्जिद के इमाम के रूप में काम करता था और उसे मंजेरी-एदावन्ना सीमा से हिरासत में लिया गया। पुलिस अधिकारी प्रथमेश कुमार ने बताया कि इमाम की गिरफ़्तारी के लिए केरल पुलिस और पश्चिम बंगाल पुलिस ने मिलकर इस ऑपरेशन को अंजाम दिया। इस ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए पुलिस को अपने विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी प्राप्त हुई थी।

बता दें कि आरोपी अब्दुल मतीन पश्चिम बंगाल के बर्दवान में हुए विस्फोट के मुख्य अभियुक्तों में से एक था। इस हमले के पीछे जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) का हाथ होने का संदेह था और इसी आतंकी संगठन से मतीन के संबंध हैं।

बर्दवान में यह विस्फोट 2 अक्टूबर, 2014 को हुआ था। खगरागढ़ इलाके में तृणमूल कांग्रेस के एक नेता नुरुल हसन चौधरी के स्वामित्व वाली इमारत के अंदर विस्फोट हुआ था। पुलिस के आने पर बंदूक चलाने वाली दो महिलाओं ने पुलिस को प्रवेश करने से रोका था और एक बड़े विस्फोट की धमकी दी, इस बीच कई दस्तावेज़ों और सबूतों को भी नष्ट कर दिया गया था।

50 से अधिक आईईडी, उन्हें तैयार करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरण, बड़ी सँख्या में कलाई घड़ी डायल, सिम कार्ड, प्रोपेगंडा फैलाने के गीतों से संबंधित माइक्रो एसडी कार्ड, तालिबान के प्रशिक्षण से जुड़े वीडियो बरामद किए गए थे। अरबी में मैप और अधजली किताबों के साथ निर्वाचन कार्ड और पासपोर्ट जैसे नकली भारतीय दस्तावेज़ भी पाए गए थे।

गृह मंत्रालय ने SIMI पर पुनः कसी नकेल, प्रतिबंध 5 साल के लिए बढ़ाया

आतंकवादी संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) पर सरकार ने पाँच साल के लिए प्रतिबंध बढ़ा दिया है। गृह मंत्रालय की ओर से जारी की गई अधिसूचना में कहा गया है कि आतंकवादी घटानाओं पर रोक लगाने के लिए इस संगठन पर प्रतिबन्ध लगाना ज़रूरी था। बता दें कि पिछली बार फ़रवरी 1, 2014 में यूपीए सरकार ने SIMI पर पाँच साल के लिए प्रतिबंध लगाया था।

गृह मंत्रालय ने कहा कि सिमी की गैरकानूनी गतिविधियों को रोकने और उसे नियंत्रित करने के लिए उस पर कार्रवाई ज़रूरी है। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो वह अपनी विध्वंसकारी गतिविधियों और फ़रार सदस्यों को फिर से जोड़ने का काम जारी रखेगा।

58 आतंकी घटनाओं को अंजाम दे चुके हैं सिमी के सदस्य

सरकार ने गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 3 की उप-धाराएँ (1) और (3) के तहत सिमी को ‘गैर-कानूनी संगठन’ घोषित करते हुए प्रतिबंध लगाया गया। बता दें कि गृह मंत्रालय ने ऐसे 58 मामलों को सूचीबद्ध किया है जिसमें सिमी के सदस्य आतंकी गतिविधियों में शामिल थे। जिन आतंकवादी गतिविधियों में सिमी के सदस्य शामिल रहे हैं, उनमें बिहार के गया में 2017 का विस्फोट, 2014 में बेंगलुरू के चिन्नास्वामी स्टेडियम में विस्फोट और 2014 में ही भोपाल में जेल ब्रेक की घटना शामिल है।

सिमी का गठन 25 अप्रैल 1977 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था। शुरुआत में सिमी को जमात-ए-इस्लामी हिंद (JIH) के स्टूडेंट विंग के रूप में जाना जाता था। सिमी का ध्येय ‘पश्चिमी भौतिकवादी सांस्कृतिक प्रभाव को एक इस्लामिक समाज में रूपांतरित करना है’। सिमी भारत में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए 2001 में भारत सरकार ने प्रतिबंधित किया था।

हालाँकि, अगस्त 2008 में एक विशेष न्यायाधिकरण में सिमी पर से प्रतिबंध हटा लिया था। ये प्रतिबंध बाद में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 6 अगस्त 2008 को बहाल किया गया। सिमी को अनलॉफुल ऐक्टिविटीज प्रिवेंशन ऐक्ट 1967 (यूएपीए) के तहत प्रतिबंधित किया गया था।

रॉबर्ट को सताने लगा जेल जाने का डर, कोर्ट में दायर की अग्रिम ज़मानत याचिका

कॉन्ग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गाँधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को इन दिनों जेल जाने का डर सताने लगा है इसलिए उन्होंने अग्रिम ज़मानत के लिए कोर्ट में याचिका दायर कर दी है। ख़बर है कि इस याचिका पर कोर्ट में शनिवार (फरवरी 2, 2019) को सुनवाई हो सकती है।

मनी लॉन्ड्रिंग का यह मामला रॉबर्ट के क़रीबी मनोज अरोड़ा से संबंधित है। यह मामला लंदन के 12, ब्रायनस्टन स्क्वेयर स्थित क़रीब ₹17 करोड़ (19 लाख पाउंड) की एक प्रॉपर्टी की ख़रीदारी में हुई मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ा हुआ है।

ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) ने कोर्ट में दावा किया है कि इस संपत्ति के मालिक रॉबर्ट वाड्रा है। साथ ही ईडी ने कोर्ट को यह भी बताया कि यह संपत्ति रॉबर्ट ने मनोज की मदद से ख़रीदी है।

एक तरफ जहाँ रॉबर्ट की अग्रिम ज़मानत याचिका पर अभी सुनवाई होनी बाकी है वहीं मनोज को 6 फरवरी तक के लिए गिरफ़्तारी से अंतरिम राहत मिल चुकी है।

बता दें कि इससे पहले कोर्ट ने मनोज की अग्रिम ज़मानत याचिका पर ईडी से दो दिन में ज़वाब माँगा था, क्योंकि याचिका को दर्ज़ करते समय मनोज ने आरोप लगाया था कि ईडी इस मामले में उस पर रॉबर्ट वाड्रा का नाम लेने का दबाव बना रहा है।

फ़ेक न्यूज़ का भस्मासुर अब नियंत्रण से बाहर हो चुका है

सर्फ़ कहते ही आपको “दाग अच्छे हैं” याद आ जायेगा, या इसका उल्टा “जस्ट डू इट” कहते ही आपको Nike की याद आ जाती है। इस चीज़ को टैगलाइन कहते हैं। कंपनी अपने प्रचार के लिए बड़ी मेहनत से टैगलाइन बनवाती है, प्रचार की कंपनी में ऐसे टैगलाइन लिखने वालों को कॉपी राइटर कहते हैं।

इस टैगलाइन नाम की प्रचार की विधा पर 1980 के आस पास अख़बार वालों का ध्यान चला गया तो उन्होंने इसकी सस्ती नक़ल कर ली। जिसे काफी पढ़ाई कर के, लिखने की काफी प्रैक्टिस कर के सीखा जाता है उसे मीडिया हाउस में बिना सोचे टीआरपी के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा।

सन 1980 के ज़माने में ऐसा नहीं होता था। अप्रैल 15, 1983 को न्यूयॉर्क टाइम्स में एक बार मालिक की हत्या की खबर छपी तो हेडलाइन थी: “Owner of a Bar Shot to Death; Suspect is Held”, और इसी दिन एक दूसरे अख़बार न्यूयॉर्क पोस्ट में यही खबर आई तो उसमें हेडलाइन थी “Headless body in Topless Bar”।

ख़बर कुछ यूँ थी की कुईन्स नाम की जगह पर एक हथियारबंद व्यक्ति ने बार मालिक की हत्या कर दी थी और बार के ही एक बंधक से जबरन उसका सर कटवा लिया था। दूसरे अख़बारों ने जहाँ टॉपलेस बार और सर काटने कि बातों का फायदा नहीं उठाया वहीँ इस एक हैडलाइन ने न्यूयॉर्क पोस्ट को चमका दिया। नैतिकता और ज़िम्मेदारी जैसी उबाऊ बातें फिर किसे याद रहती? इस तरह से हैडलाइन को “क्रांतिकारी” बनाने की विधा शुरू हुई।

आगे जब न्यूयॉर्क के मेयर ने पार्कों और दूसरी सार्वजनिक जगहों पर सिगरेट पीने पर पाबन्दी लगाने की मुहिम शुरू की तो लिखा गया: “कोच किक्स बट” (Koch kicks Butt)। “बट” का एक मतलब सिगरेट पीने के बाद बची हुई टोंटी भी होती है। गद्दाफी की पत्नी ने उस पायलट को मार देने की कसम खाई थी जिसने उनके बंगले पर बम गिराया था। कैमरे पर बोलते वक्त उस लड़की ने केप पहना था तो अख़बार में आया “कर्स ऑफ़ द केपवुमन” (Curse of the Capewoman)!

जब 1984 में वेल्मा बारफील्ड (Margie Velma Barfield) को मौत की सजा हुई तो वो अपने सोने जाने वाले कपड़ों में मौत का इंजेक्शन लेने गई। अखबार ने लिखा “ग्रेन्नी एग्जीक्यूटेड इन हर पिंक पजामाज़” (Granny Executed in Her Pink Pajamas)। प्रदूषित तीतरों के लिए हैडलाइन थी “बिग फ्लैप ओवर फ़ाउल टर्कीज़” (Big Flap over Foul Turkeys)। अपने समय में विन्सेंट ने ऐसी ही जाने कितनी भड़काऊ हैडलाइन लिखी। उनकी नकल में उतरे भारतीय सरस्वती चंदरों ने टीआरपी के लिए ऐसी हेडलाइन लिखनी शुरू की जिनका मुख्य खबर से कोई लेना देना ही नहीं होता।

इंडिया टुडे जैसे प्रकाशनों से शुरू हुई ये व्यवस्था प्रचलित अखबार टाइम्स ऑफ़ इंडिया में आई। अब तो इसमें द हिन्दू, जनसत्ता और इंडियन एक्सप्रेस जैसे तथाकथित विचारधारा वाले अखबार भी शामिल हैं। जून 2015 में, कैंसर की वजह से न्यूयॉर्क में 74 वर्षीय विन्सेंट मुसेट्टो की मौत हो गई। हमारे टीआरपी खोर मीडियाकर्मियों ने भड़काऊ हैडलाइन के जनक को श्रद्धांजलि दी या नहीं पता नहीं। हाँ ये जरूर है कि जहाँ ऊपर कुछ और लगे लेकिन असली मसला कुछ और उसे “फ़ेक न्यूज़” का नाम जरूर दे दिया गया है।

ऐसे मौकों पर रामधारी सिंह “दिनकर” की कर्ण के मुँह से कहलवाई कुछ पंक्तियाँ जरूर याद आती हैं –
“वृथा है पूछना, था दोष किसका?
खुला पहले गरल का कोष किसका?
जहर अब तो सभी का खुल रहा है,
हलाहल से हलाहल धुल रहा है।”

ये एक पुरानी गोएब्बेल्स पद्धति रही है कि अपराध खुद करो लेकिन उसका आरोप विपक्षी पर थोप दो। कई हिंसक विचारधाराओं ने ऐसे गोएब्बेल्स प्रचार का इस्तेमाल हमेशा से अपने पक्ष में किया है। ऐसे में जिस “फ़ेक न्यूज़” को उन्होंने खुद ही शुरू किया हो उसका इल्जाम किसी और पर थोपना उनके लिए कौन सी बड़ी बात होती? हाँ ये जरूर कहा जा सकता है कि जिस भस्मासुर को उन्होंने पैदा किया वो अब उनके नियंत्रण से बाहर हो गया है।

बाकी ऐसे में सवाल ये बनता है कि ज्यादा दिक्कत किस बात से है? न्यूज़ के फ़ेक हो जाने से या उस फ़ेक न्यूज़ के तुम्हारे नियंत्रण में न रह जाने से? बताओ न कॉमरेड, बताओ बताओ!

बजट विश्लेषण: पशुपालन, मत्स्यपालन, सस्ते ऋण व किसानों की आय बढ़ाने पर ज़ोर

भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है और सालों से देश में किसानों की हालत ख़राब रही है। किसानों की आत्महत्या की विचलित करने वाली ख़बरों के बीच हर साल के बजट में यह उम्मीद रहती है कि सरकार किसानों के लिए कुछ घोषणाएँ करेगी। बजट 2019 में कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कृषि संबंधी वस्तुओं की गिरती क़ीमतों और खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट को किसानों की आमदनी कम होने के लिए जिम्मेदार ठहराया।

कार्यवाहक वित्त मंत्री ने कहा कि बारम्बार विभाजन के कारण जोत विखंडित हो गए हैं और इस कारण किसानों की आमदनी में कमी आई है। उनका यह कहना सही था। क्योंकि, गाँवों में वंश और पीढ़ी बढ़ने के साथ ही ज़मीन के बँटवारे होते हैं और किसी परिवार के पास खेती लायक भूमि कम होती जाती है। ऐसे किसान साहूकारों के चंगुल में फँसते हैं और घाटे में जाते हैं। गोयल ने कहा कि उन्हें बीज, उर्वरक, श्रम, उर्वरक और इनपुट के लिए लागत लगती है, जिसमें सरकार मदद करने का कार्य करती है।

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान)

केंद्र सरकार ने छोटे व सीमांत किसानों की आय बढ़ाने के लिए ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान)’ की शुरुआत करने की घोषणा की। इस योजना के तहत 2 हेक्टेयर तक भूमि वाले छोटी जोत के किसान परिवारों को ₹6,000 प्रति वर्ष की दर से प्रत्यक्ष सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। यह आय सहायता ₹2,000 तीन समान किस्तों में लाभान्वित किसानों के बैंक खातों में सीधे ही हस्तांतरित कर दी जाएगी। इस कार्यक्रम का वित्त पोषण भारत सरकार द्वारा किया जाएगा। इस कार्यक्रम से लगभग 12 करोड़ छोटे और सीमांत किसान परिवारों के लाभान्वित होने की उम्मीद है।

इस कार्यक्रम पर सालाना ₹75,000 करोड़ का सरकारी ख़र्च आएगा। इस घोषणा से छोटे किसानों को फ़ायदा मिलेगा। जो भारतीय गाँवों की सामाजिक स्थिति समझते हैं, उन्हें पता है कि कैसे पीढ़ी दर पीढ़ी परिवारों के पास अपनी भूमि कम होती जा रही है और कई किसानों के तो उपज के बावज़ूद खाने के लाले पड़े हैं। वो कृषि छोड़ किसी अन्य व्यवसाय में जाने को मज़बूर हैं। ऐसे में, इस कार्यक्रम से उन्हें लाभ मिलेगा।

‘पीएम-किसान’ निर्धन किसानों के लिए वरदान साबित होगा। वैसे ग़रीब किसान जो कटाई, रोपनी और जोत के मौसम में साहूकारों से कर्ज़ लेने को मज़बूर होते हैं, उन्हें प्रत्यक्ष आय के रूप में जो भी राशि मिले, उसका उपयोग कृषि कार्य की तात्कालिक लागत की जरूरत पूरी करने में किया जा सकता है। जो किसान एक-एक रुपए को मोहताज़ होकर आत्महत्या के लिए मज़बूर होते हैं, उन्हें स्वावलम्बी बनाने की दिशा में ये योजना एक क़दम हो सकती है।

पानी पटाने के मौसम में ग़रीब किसान सब्सिडी पर बिजली, तेल और उपकरण तो ले सकता है, लेकिन उसके लिए भी उसे कुछ राशि की ज़रूरत पड़ती है- वैसे में उन्हें जो भी सहायता मिले, उसका विरोध नहीं होना चाहिए। कर्जमाफ़ी से बैंक किसानों को कर्ज़ देना लगभग बंद कर देते हैं। अतः, कर्जमाफ़ी से अच्छा है कि उन्हें कृषि में उपयोग के लिए एक छोटी व निश्चित धनराशि उपलब्ध कराइ जाए, जिसकी मदद से वो कृषि कार्य पूरा कर सकें

इनके अलावा मृदा स्वास्थ्य कार्ड, उत्तम बीज, सिंचाई योजना और नीम कोटेड यूरिया की कमी दूर करना- सरकार ने ऐसे कई प्रयास किए हैं, जो किसानों के हित में कार्य करते हैं।

पीएम-किसान निर्धन कृषकों के लिए वरदान साबित होगा

पशुपालन (गौपालन) के लिए प्रोत्साहन

पशुपालन एवं मत्स्यपालन- ये दो ऐसे माध्यम हैं जो कर्ज़ में डूबे या भूमि की कमी से जूझ रहे किसानों के लिए आमदनी का नया ज़रिया बन सकते हैं। केंद्रीय मंत्री ने राष्ट्रीय गोकुल मिशन के लिए आवंटन बढ़ाकर ₹750 करोड़ करते हुए राष्ट्रीय कामधेनू आयोग की स्थापना की घोषणा की। इससे गाय संसाधनों का सतत अनुवांशिक उन्नयन करने और गायों का उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलेगी। यह आयोग गायों के लिए कानूनों और कल्याण योजना को प्रभावी रूप से लागू करने में भी मदद करेगा।

जब त्रिपुरा के मुख्यमंत्री विप्लव देव ने गौपालन कर रुपए कमाने की बात कही थी, तब कई लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया था। बिना उस पॉजिटिव पहलू को समझे इसकी आलोचना करने वालों को केंद्र सरकार ने इस बजट के माध्यम से करारा ज़वाब दिया है। गौपालन किसानों की आय का एक बहुआयामी ज़रिया हो सकता है। कार्यवाहक वित्त मंत्री ने गौ संसाधनों के अनुवांशिक उन्नयन को स्थायी रूप से बढ़ाने की बात कही है।

गौ पालन को किसान अब नए सिरे से आमदनी का माध्यम बना सकते हैं। डेयरी कंपनियों के गाँवों-बस्तियों तक पाँव पसारने के बाद अब किसानों को उनके दूध का उचित मूल्य मिलना सुगम हो गया है। सालों पहले उन्हें अपने गायों के दूध को बेचने का माध्यम नज़र नहीं आता था। अब जब सड़कों के जाल से गाँव, बस्ती और शहर एक-दूसरे से जुड़ गए हैं, उनके दूध को सही तरीक़े से बेचने के लिए परेशानी नहीं होगी।

गोयल ने गायों के उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने की भी बात कही है। कई नस्लों के गायों के आने के बाद, किसानों के लिए गौपालन सुविधाजनक हो गया है। दूध के अलावा गाय के गोबर, मूत्र इत्यादि का भी व्यावसायिक उपयोग किया जा सकता है। सरकार ने दूरगामी निर्णय लेते हुए यह घोषणा की है। कृषि के बदलते स्वरूप में किसानों के लिए यह काफ़ी फ़ायदेमंद रहेगा। केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने भी कहा कि गौपालन का धार्मिक दृष्टिकोण से विरोध करने वाले लोगों को ग्रामीण जीवन का कोई अंदाज़ा ही नहीं है।

मत्स्यपालन- भारत का विश्व में बढ़ता दबदबा

पीयूष गोयल ने कहा कि भारत 6.3% हिस्सेदारी के साथ विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक देश है। यह सेक्टर लगभग डेढ़ करोड़ के रोज़गार का माध्यम है। मत्स्यपालन में अनेक सम्भावनाएँ देखते हुए सरकार ने इसे प्रोत्साहित करने के लिए अलग से एक मत्स्य पालन विभाग बनाने का निर्णय लिया है। इसके दूरगामी परिणाम आएँगे, क्योंकि दुनिया के तमाम विकसित देश भी अब मत्स्यपालन को एक बड़े उद्योग के तौर पर देख रहे हैं। बता दें कि चीन और इण्डोनेशिया ने मछलीपालन के व्यापारिक आयाम को समझ कर रोज़गार सृजन के क्षेत्र में सफल कार्य किया है।

गौपालन और मछलीपालन किसानों की आमदनी का नया माध्यम बन सकता है

पिछले बजट में पशुपालन एवं मछलीपालन में रत किसानों को भी किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) की सुविधा प्रदान की गई थी। यह दिखाता है कि सरकार हर साल इस क्षेत्र में कुछ न कुछ बड़ा क़दम उठा रही है, ताकि कृषकों को आय के अधिक से अधिक स्रोतों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। सरकार ने ऐसे किसानों के लिए 2 प्रतिशत ब्याज छूट का लाभ देने का प्रस्ताव भी किया। इसके अलावा ऋण का समय पर पुनर्भुगतान करने पर उन्हें 3 प्रतिशत अतिरिक्त ब्याज छूट भी दी जाएगी।

किसानों को KCC से जोड़ने के लिए केंद्रीय मंत्री ने सरलीकृत फॉर्म लाकर व्यापक अभियान चलाने के निर्णय की भी जानकारी दी।

किसानों को अन्य सहायताएँ

प्राकृतिक आपदाओं से बुरी तरह प्रभावित सभी किसानों को जहाँ सहायता राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (NDRF) से उपलब्ध कराई जा रही हो, 2% ब्याज छूट का लाभ उपलब्ध कराया जाएगा और उनके ऋणों की पुनः अनुसूचित पूरी अवधि के लिए 3 प्रतिशत तत्काल पुनः भुगतान प्रोत्साहन भी दिया जाएगा।

इसके अलावा कार्यवाहक वित्त मंत्री ने बजट पेश करते हुए कहा कि मोदी सरकार ने किसानों की आय दुगुनी करने हेतु इतिहास में पहली बार 22 फ़सलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत से 50% अधिक रखा है। प्रधानमंत्री अपनी चुनावी रैलियों में भी किसानों की आदमी दुगनी करने की बात कहते रहे हैं। कॉन्ग्रेस ने किसानों के लिए कर्ज़माफ़ी की घोषणा को कई राज्य चुनावों में मुद्दा भी बनाया था। ऐसे में, किसानों के लिए बजट में कोई बड़ी घोषणा की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन सरकार ने बड़ी घोषणा करने के साथ-साथ दूरगामी फ़ायदों पर ज़्यादा ज़ोर दिया है।

बजट विश्लेषण: गाँव, ग़रीब-गुरबा, पिछड़े और मध्यम वर्ग के लिए ज़रूरी था ये सब

बजट 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार ने ग़रीबों का विशेष ध्यान रखा है। गाँवों के इंफ़्रास्ट्रक्चर और अन्य सुविधाओं के साथ-साथ सामाजिक पहलूओं को भी ध्यान में रखा गया है। स्वच्छता पर ख़ास ज़ोर तो दिया ही गया है, साथ ही ग़रीबों के भूखे पेट को भरने की व्यवस्था और सुगम की गई है। प्रधानमंत्री मोदी ने देश के संसाधन पर पहला हक़ ग़रीबों का बता कर पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के 2006 में दिए उस बयान का ज़वाब दिया जिसमे उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला हक़ मुसलामानों का है।

आइए एक-एक कर देखते हैं कि ग़रीबों के लिए इस बजट 2019 में क्या है?

आर्थिक आधार पर ग़रीबों को आरक्षण

सामान्य वर्ग के ग़रीबों को आरक्षण देने संबंधी विधेयक को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही ऐतिहासिक बता चुके हैं। संविधान संशोधन के बाद राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिलते ही, इस विधेयक ने क़ानून का रूप ले लिया था। भाजपा सरकार के इस महत्वाकांक्षी विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा- दोनों ही सदनों में भारी बहुमत से पारित किया गया था। इस विधेयक को पीएम मोदी के नारे ‘सबका साथ-सबका विकास’ से जोड़ कर देखा जा रहा है। बजट पेश करते समय कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने भी इसकी चर्चा करते हुए कहा कि इस से पहले से ही आरक्षण के दायरे में आने वाले समूह पर कोई असर नहीं पड़ेगा

वित्त मंत्री ने इस बात की भी जानकारी दी कि सरकारी संस्थानों में सीटों की संख्या 25% (2 लाख) बढ़ाई जाएगी, जिससे किसी भी वर्ग हेतु वर्तमान में आरक्षित सीटों में कमी न आए। वित्त मंत्री का यह बयान एक ऐसे संतुलन की तरह प्रतीत होता है, जो सरकार हर वर्ग के बीच बना कर चलने की कोशिश कर रही है। जहाँ एक तरफ सरकार की कोशिश है कि आर्थिक रूप से विपन्न लोगों को आरक्षण मिले, वहीं दूसरी तरफ सरकार इस बात को लेकर सजग है कि पहले से आरक्षित तबके को यथास्थिति का फ़ायदा मिलता रहे।

भूखे भजन न होए गोपाला

जिस देश में दुनिया की सबसे बड़ी अल्प-पोषित आबादी रहती हो, वो भले ही मंगल और चाँद तक पहुँच जाए, लेकिन भूख से हुई एक मृत्यु भी सारी उपलब्धियों पर एक धब्बा बन जाती है। भारत जैसे विशाल देश में सबको समुचित भोजन मिले- इसकी व्यवस्था करने के लिए केंद्र सरकार सजग दिख रही है। अगर हम 2013-14 और ताज़ा 2019-20 बजट की तुलना करें तो पता चलता है कि ग़रीबों को सस्ता अनाज उपलब्ध कराने के लिए आवंटित बजट दोगुना हो चुका है

ग़रीबों को सस्ता अनाज उपलब्ध कराने के लिए सरकार सजग।

बजट 2013-14 में इसके लिए ₹92,000 करोड़ आवंटित किए गए थे जबकि ताज़ा बजट में ₹1,70,000 करोड़ की व्यवस्था की गई है। अगर हम मनरेगा की बात करें तो उसके लिए आवंटित बजट भी 6 वर्ष में तिगुना हो चुका है। जहाँ 2013-14 में इसके लिए ₹33,000 करोड़ की व्यवस्था की गई थी जबकि इस वर्ष ₹90,000 करोड़ के आवंटन के साथ सरकार ने यह भी कहा है कि ज़रूरत पड़ने पर और रुपयों की भी व्यवस्था की जाएगी।

कुल मिला कर देखें तो निचले स्तर पर ग़रीबों के रोज़गार और भोजन के लिए सरकार चिंतित नज़र आ रही है। मनरेगा और सस्ता अनाज के लिए आवंटित धनराशि में इज़ाफ़ा होना तो यही बताता है।

गाँवों एवं बस्तियों में पक्की सड़क

सबसे पहले सुव्यवस्थित आँकड़ों पर नज़र डाल कर देखते हैं कि ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY)’ गाँवों और बस्तियों में सड़कों के निर्माण के लिए क्या किया गया है?

  • कुल 17.84 लाख बस्तियों में से 15.80 लाख बस्तियों को पहले ही पक्की सड़कों से जोड़ा जा चुका है। सरकार के अनुसार, शेष को भी ज़ल्द ही जोड़ दिया जाएगा।
  • अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा शुरू की गई PMGSY के लिए केंद्र सरकार ने 2019-20 में ₹19,000 करोड़ का आवंटन किया है। बजट 2018-19 में इस योजना के लिए ₹15,500 करोड़ का आवंटन किया था। अर्थात, एक वर्ष में पूरे ₹3,500 करोड़ की वृद्धि।

हालाँकि 2013-14 का बजट पेश करते हुए पी चिदंबरम ने PMGSY के लिए इस से ज़्यादा धनराशि आवंटित की थी, लेकिन इसके प्रदर्शन के मामले में यूपीए सरकार कहीं नहीं टिकती। जहाँ 2013-14 में इस योजना के तहत 3,81,314 किमी सड़कें बनाई गई थीं, वहीं 2018-19 में 5,75,524 किमी सड़कें बनाई गई। यही कि डेढ़ गुना ज़्यादा

इसके अलावा वित्त मंत्री ने यह भी बताया कि ‘प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY)’ के तहत पिछले चार सालों में 1.3 करोड़ आवास बनाए जा चुके हैं। अगर PMAY की तुलना पिछली हाउसिंग योजना IAY से करें तो पता चलता है कि आज औसतन 114 दिनों में एक घर बन कर तैयार हो जाता हैं। वहीं IAY के दौरान एक घर के निर्माण का औसत समय था- 314 दिन।

भोजन के अलावा ग्रामीण जीवन की सबसे बड़ी जरूरत- मकान, और गावों की खुशहाली का सबसे बड़ा माध्यम- सड़कें, ताज़ा बजट में केंद्र सरकार इन दोनों ही मोर्चे पर मुस्तैदी से अपना कार्य करते हुए नज़र आ रही है।

घर-घर में रोशनी पहुँचाने का कार्य

कार्यवाहक वित्त मंत्री ने बताया कि 2014 तक 2.5 करोड़ परिवार बिना बिजली के 18वीं शताब्दी की ज़िंदगी जीने को मज़बूर थे। अब ‘सौभाग्य योजना’ के तहत घर-घर बिजली पहुँचाने का कार्य किया गया है। शेष घरों को भी 2019 तक बिजली से जोड़ दिया जाएगा। पीयूष गोयल मोदी सरकार में बिजली मंत्रालय भी संभाल रहे हैं और उन्हें गाँव-गाँव तक बिजली पहुँचाने के लिए ‘Carnot’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

घर-घर में बिजली पहुँचाने को सरकार कटिबद्ध नज़र आ रही है।

इसके अलावा केंद्र सरकार ने यह भी बताया कि देश के ग़रीब व मध्यम वर्गीय परिवारों को 143 करोड़ LED बल्ब उपलब्ध कराए गए हैं, जिस से उन्हें बिजली बिल में सालाना ₹50,000 करोड़ की बचत हो रही है। 2016 में मोदी सरकार के दो वर्ष का कार्यकाल पूरा करने के बाद LED बल्ब के मूल्य की तुलना 2014 से करें तो उस समय यह दस गुना से भी ज्यादा था। इस से पता चलता है कि सरकार द्वारा ग़रीबों को कम मूल्य पर बेचे जाने वाले LED बल्बों की क़ीमत में भारी कमी आई है।

स्वास्थ्य सुविधाएँ- करोड़ों लोगों को पहुँचेगा फ़ायदा

कार्यवाहक वित्त मंत्री ने कहा कि पहले ग़रीब लोग बीमारी से लड़े या रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी करें- इसी सोच में डूबे रहते थे। उन्होंने प्रधानमंत्री की महत्वकांक्षी ‘आयुष्मान भारत योजना’ का ज़िक्र करते हुए बताया कि इस योजना से 50 करोड़ नागरिक लाभान्वित होंगे, जिन्हे चिकित्सा व उपचार मुहैया कराया जाएगा। बकौल गोयल, अब तक 10 लाख लोग इस योजना के द्वारा मुफ़्त चिकित्सा का लाभ उठा चुके हैं। इस से उन्हें क़रीब ₹3,000 करोड़ रुपयों की बचत हुई है।

आयुष्मान भारत के सुखद परिणाम देखने को मिल रहे हैं।

आयुष्मान भारत लॉन्च लके बाद से ही विपक्ष की आलोचना के कारण लगातार ख़बरों में है, लेकिन इस योजना के लाभान्वितों की संख्या अलग ही कहानी कहती है। नवंबर 2018 में पानीपत में इस योजना के तहत एक ग़रीब मरीज़ की सफल हार्ट वॉल्व सर्जरी हुई थी। वह इस योजना के अंतर्गत हुई पहली हार्ट सर्जरी थी। इस योजना का पहले तीन महीने में ही 5 लाख लोगों ने लाभ उठाया था और बिल गेट्स जैसे दिग्गज उद्योगपति ने इसकी तारीफ़ की थी।

असंगठित क्षेत्र श्रमिकों के लिए ऐतिहासिक साबित होगी ‘प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन पेंशन योजना’

आज (फरवरी 01, 2019) संसद में कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट पेश किया। इस बजट के माध्यम से तमाम लाभकारी योजनाओं के ज़रिए देश की जनता को लाभ पहुँचाने का प्रयास किया गया। हर योजना का उद्देश्य देश की जनता को अधिकतम लाभ पहुँचाकर उनके जीवन को बेहतर दिशा प्रदान करना है। आज के बजट में एक ऐसा बड़ा निर्णय भी शामिल है, जिसे किसी भी हाल में नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

‘प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन योजना’ एक ऐसी ही योजना है, जिसे अमल में लाने के बाद देश के हर व्यक्ति को ₹100 मात्र के अंशदान से उसे 60 साल की आयु के बाद ₹3000 प्रतिमाह पेंशन प्राप्त होगी।

अंतरिम बजट-2019

बता दें कि देश में पेंशन की सुविधा अब तक केवल सरकारी विभागों तक ही सीमित थी। वो भी वर्ष 2004 के बाद समाप्त कर दी गई थी। केंद्र सरकार के असंगठित क्षेत्र (प्राइवेट सेक्टर कर्मचारियों) के लोगों को पेंशन देने संबंधी यह योजना बहुत बड़ा फ़ैसला है। आइए आपको आज के अंतरिम बजट में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को दी जाने वाली पेंशन और उससे जुड़ी विशेष बातें बता दें।  

  • वर्तमान सरकार ने पेंशन के दायरे में लाभकारी क़दम उठाते हुए ‘प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन’ नामक पेंशन योजना की घोषण की है, इसका संबंध ऐसे लोगों से है जिनकी मासिक आय
    ₹15,000 या उससे कम है।
  • इस पेंशन योजना से अपनी कार्यशील आयु के दौरान एक छोटी सी राशि के मासिक अंशदान करने से उन्हें 60 वर्ष की आयु से ₹3000 की सुनिश्चित मासिक पेंशन दी जाएगी।
  • 29 वर्ष की आयु में इस पेंशन योजना से जुड़ने वाले असंगठित क्षेत्र के कामगार को केवल ₹100 प्रति माह का अंशदान 60 वर्ष की आयु तक करना होगा।
  • 18 वर्ष की आयु में इस पेंशन योजना में शामिल होने वाले कामगार को मात्र ₹55 प्रतिमाह का अंशदान करना होगा। सरकार हर महीने कामगार के पेंशन खाते में बराबर की राशि जमा करेगी।
  • ऐसा अनुमान है कि अगले 5 वर्षों के भीतर असंगठित क्षेत्र के कम से कम 10 करोड़ श्रमिक और कामगार इस योजना का लाभ लेंगे।
  • इससे आने वाले समय में यह योजना विश्व की सबसे बड़ी पेंशन योजनाओं में से एक बन जाएगी। बता दें कि इस योजना के पहले साल के लिए ₹500 करोड़ की राशि आवंटित की जाएगी। ज़रूरत पड़ने पर अतिरिक्त निधियाँ भी प्रदान की जाएँगी। यह योजना चालू वर्ष से ही कार्यान्वित की जाएगी।

यह बात जगज़ाहिर है कि असंगठित क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारी वर्ग के जीवन में वो स्थिरता नहीं होती, जो एक सरकारी कर्मचारी के जीवन में होती है। असंगठित क्षेत्र की बात करें तो वहाँ ऐसी स्थिरता नदारद होती है। इसका असर उसके साथ-साथ पूरे परिवार पर भी पड़ता है। ऐसे में आज के बजट में पेश की गई ‘प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन पेंशन योजना’ उन सभी नागरिकों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी, जो असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं।

आपको बता दें कि भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का आधा हिस्सा असंगठित क्षेत्र के उन 42 करोड़ कामगारों के पसीने और अथक परिश्रम से बनता है। जैसे, रेहड़ी वाले, रिक्शा चालक, निर्माण कार्यों में लगे मज़दूर, कूड़ा बीनने वाले, कृषि कामगार, बीड़ी बनाने वाले, हथकरघा कामगार, चमड़ा कामगार और इस तरह के अन्य कई सारे व्यवसाय असंगठित क्षेत्र के दायरे में आते हैं। देश की जनता का इतना बड़ा हिस्सा, जो आज भी पेंशन जैसी लाभकारी योजना का फायदा उठाने की कल्पना भी नहीं कर सकता था, उसके लिए प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन योजना एक ऐतिहासिक और बड़ी योजना साबित होगी।

न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) के दायरे को विस्तार दिया

बता दें कि न्यू पेंशन योजना एक लाभकारी पेंशन स्कीम है, जिसमें निवेश करना लाभकारी है, क्योंकि इसमें सभी कार्यों में पारदर्शिता बनी रहती है। पारदर्शिता से मतलब यह है कि इससे जुड़े लोग कभी भी निवेश एवं लाभ का ब्यौरा ले सकते हैं। आज पेश किए गए अंतरिम बजट में न्यू पेंशन योजना को पहले से अधिक विस्तार दिया गया है।

  • न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) को और उदार किया गया है। सरकार ने एनपीएस में अपने योगदान को बढ़ाकर, 10% से 14% कर दिया है। ग्रेच्युटी के भुगतान की सीमा को
    ₹10 लाख से बढ़ाकर ₹20 लाख किया गया है।
  • ईएसआईसी की सुरक्षा पात्रता सीमा भी ₹15,000 प्रतिमाह से बढ़ाकर, ₹21,000 प्रतिमाह कर दी गई है। सभी श्रमिकों के न्यूनतम पेंशन प्रतिमाह ₹1,000 तय की गई है।
  • सर्विस के दौरान किसी श्रमिक की मृत्यु होने की स्थिति में ईपीएफओ द्वारा राशि ₹2.5 लाख से बढ़ाकर , ₹6 लाख तक सुनिश्चित की गई। आंगनबाड़ी और आशा योजना के तहत सभी श्रेणियों के कार्मिकों के मानदेय में लगभग 50% की वृद्धि हुई है।  

इसके अलावा मोदी सरकार में चल रही पहले से कई ऐसी योजनाएँ मौजूद हैं, जिनका लाभ मज़दूरों और श्रमिकों को मिलता रहा है, लेकिन पेंशन की ऐसी व्यवस्था, जिसमें सबका विकास निहित हो, पहले अस्तित्व में नहीं थी। केंद्र सरकार ने देश की जनता के विकास के लिए इस अंतरिम बजट में और भी कई पहलुओं को शामिल किया है।

यदि एक सामान्य आदमी के जीवन की कल्पना करें, तो जिन मूलभूत सुविधाओं की आवश्यकता एक आम नागरिक को होती है, उसकी पूर्ति के लिए प्रधानमंत्री मोदी की अगुआई में केंद्र सरकार ने कई स्तरों पर इस कार्यकाल में काम किया है।

देश के हर तबके का विकास करने के लिए जन-जन की मूलभूत आवश्यकताओं पर न सिर्फ़ ध्यान दिया गया है, बल्कि उन्हें तमाम योजनाओं के माध्यम से अमल में भी लाया गया है । इस कार्यकाल के दौरान मोदी सरकार ने शहरी और ग्रामीण, दोनों स्तर पर बराबर ध्यान दिया है। एक मज़दूर के हक़ के लिए, उसके पैसे के रखरखाव के लिए प्रधानमंत्री जनधन जैसी योजनाओं को भी धरातल पर लाया गया। बता दें कि प्रधानमंत्री जनधन योजना विश्व कीर्तिमान स्थापित किया, जिसकी वजह से इस योजना को गिनीज बुक में शामिल किया जा चूका है।

मज़दूरों के पैसे को बैंक में ट्रांसफर करने के लिए मालिकों पर नकेल कसी गई। एक मज़दूर को उसके हक़ का पूरा पैसा मिले, इसके लिए ‘प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण’ या ‘डीबीटी योजना‘ को बेहतर बनाया गया। ‘डीबीटी’ के माध्यम से भी भारत सरकार द्वारा लोगों के खातों में सब्सिडी ट्रांसफर की जाती है, जिसका सीधा सा मतलब देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करना है।

अक्टूबर, 2017 में शुरू की गई श्रमेव जयते भी उन योजनाओं में शामिल है, जिसके माध्यम से असंगठित क्षेत्र के लाखों मज़दूरों को लाभ पहुँचाने का प्रयास किया गया। कई बार ऐसा होता है, जब कोई व्यक्ति एक कंपनी में वर्षों तक नौकरी करता है और उसके बाद वहाँ से छोड़कर दूसरी कंपनी ज्वॉइन करता है। ऐसी सूरत में वह अपने पीएफ (प्रोविडेंट फंड) खाते में जमा धनराशि पर ध्यान नहीं दे पाता है। अक्सर देखा जाता है कि ऐसा इसलिए भी हो जाता है क्योंकि वो इस बात पर ग़ौर ही नहीं कर पाता कि आख़िर उसके पीएफ खाते में कितनी धनराशि जमा है।

इसके अलावा ऐसा भी देखा जाता है कि वह अपने पीएफ के खाते की धनराशि प्राप्त करने में भी समर्थ नहीं होता है। इन हालातों में पीएफ खाते से बहुत से कर्मचारी अपनी जमा पूंजी नहीं निकाल पाते हैं। प्रधानमंत्री की श्रमेव जयते योजना ने ऐसे ही कर्मचारियों की मुश्किलों को हल करने में क़ामयाब रही है। इसके माध्यम से कर्मचारी अपने पीएफ खाते में जमा राशि देख सकते हैं और उस बचत का समय आने पर इस्तेमाल भी कर सकते हैं।

2015 में शुरू की गई मुद्रा योजना के तहत भी देश हित का कार्य किया गया, जिसमें स्वरोज़गार के लिए धन की व्यवस्था का प्रावधान किया गया। इसके ज़रिए कई स्वयं सहायता समूह को फलने-फूलने का अवसर प्राप्त हुआ। ख़ासतौर पर छोटे व्यापारियों को इससे काफी लाभ प्राप्त हुआ। बता दें कि इसके तहत ₹50,000 से ₹10 लाख तक के लोन की व्यवस्था है, इससे छोटे उद्योग को लगाने में लोगों को आर्थिक मदद मिलती है। कई ऐसे ग़रीब परिवार हैं, जिन्होंने इस योजना का लाभ उठाकर अपने जीवन को रोज़गार से जोड़कर लाभ प्राप्त किया। इस योजना के तहत अब तक कुल मिलाकर ₹7,23,000 करोड़ के ₹15.56 करोड़ ऋण वितरित किए गए हैं।

कार्यवाहक वित्त मंत्री द्वारा पेश किया गया अंतरिम बजट हर मायने में सम्पूर्ण बजट कहा जा सकता है, जिसमें किसी भी क्षेत्र की अनदेखी नहीं की गई है और देश की जनता को लाभ पहुँचाने का भरसक प्रयास किया गया है। हालाँकि, आलोचनाओं एवं सुधार की गुँजाइश सदैव रहती है।