Thursday, October 3, 2024
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‘परीक्षा पे चर्चा’ के दौरान PM ने विद्यार्थियों, अभिभावकों, शिक्षकों को दिए स्ट्रेस मैनेजमेंट टिप्स

आमतौर पर एग्जाम फ़रवरी और मार्च के महीने में ही होते हैं और जैसे ही ये महीने क़रीब आते हैं, दसवीं और बाहरवीं की परीक्षा देने वाले छात्रों के साथ अभिभावकों की भी धड़कनें तेज़ होने लगती हैं। ऐसे में ज़रूरत होती है कि कोई उनका डर दूर कर हौसला बढ़ाए। आज प्रधानमंत्री ने बच्चों से परीक्षा पर चर्चा कर उनका और उनके अभिभावकों का भी डर दूर करने की कोशिश की।

पीएम मोदी वैसे तो ‘मन की बात’ के माध्यम से छात्र-छात्राओं को हमेशा से ही प्रेरित करते रहें हैं। लेकिन आज उन्होंने देश की राजधानी में ‘परीक्षा पे चर्चा’ के दूसरे संस्करण में लगभग 2000 विद्यार्थियों, अभिभावकों और शिक्षकों के साथ संवाद किया।

जैसा कि हम जानते हैं बोर्ड की परीक्षा में अब दो महीने से भी कम समय बचा है। ऐसे में प्रधानमंत्री ने बच्चों के साथ बात करते हुए उन्हें बताया और समझाया कि किस तरह से परीक्षा के प्रेशर को ख़ुद को बाहर निकालकर बेहतरीन प्रदर्शन किया जा सकता है।

तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित हुए इस समारोह पहली बार देश के अलग-अलग हिस्सों से आए छात्रों के साथ उनके अभिभावकों ने भाग लिया। इस समारोह में 24 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों से प्रतिभागी शामिल हुए। मानव संसाधन विकास मंत्रालय अनुसार इस समारोह देश के अलग-अलग राज्यों से क़रीब 675 छात्रों के साथ दिल्ली के स्कूलों के हज़ारों बच्चे भी शामिल हुए थे।

उन्होंने इस चर्चा में कई छात्रों के सवालों का लाइव ज़वाब भी दिया। उन्होंने इस चर्चा में बच्चों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए विचारों की स्पष्टता और दृढ़ विश्वास की आवश्यकता होती है। आज देश में अवसर की कमी नहीं, भारत व्यापक संभावनाओं से भरा है।

भारत ने जापान को स्टील उत्पादन में पछाड़कर हासिल की दूसरी रैंक

भारत ने जापान को पीछे छोड़ते हुए स्टील उत्पादन में दूसरी रैंक हासिल कर ली है। जबकि चीन कच्चे इस्पात का उत्पादन करने के मामले में 51% शेयर के साथ पहले स्थान पर बना हुआ है। वर्ल्ड स्टील एसोसिएशन (वर्ल्ड स्टील) ने नई रिपोर्ट साझा करते हुए इसकी जानकारी दी।

रिपोर्ट की मानें तो, चीन का कच्चा इस्पात उत्पादन 2018 में 6.6% बढ़कर 928.3 मिलियन टन पर पहुँच गया है। जबकि, 2017 में यह 870.9 मीट्रिक टन था। उत्पादन के मामले में चीन का हिस्सा 2017 में 50.3% था, जो अब बढ़कर 51.3% हो गया।


जापान से आगे निकला भारत

रिपोर्ट की माने तो भारत का कच्चे इस्पात का उत्पादन 2018 में 4.9% बढ़कर 10.65 करोड़ टन रहा, जो 2017 में 10.15 करोड़ टन था। जापान का उत्पादन इस दौरान 0.3% घटकर 10.43 करोड़ टन पर रह गया, जिसके चलते भारत दूसरे स्थान पर पहुँच गया। रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि, 2018 में वैश्विक इस्पात उत्पादन 4.6% बढ़कर 180.86 करोड़ टन रहा, जो 2017 में 172.98 करोड़ टन था।

बता दें कि, टॉप 10 इस्पात उत्पादक देशों में अमेरिका 8.67 करोड़ टन के साथ चौथे स्थान पर है। वहीं दक्षिण कोरिया (7.25 करोड़ टन के साथ) 5वें, रूस (7.17 करोड़ टन के साथ) 6वें, जर्मनी (4.24 करोड़ टन के साथ) 7वें, तुर्की (3.73 करोड़ टन के साथ) 8वें, ब्राजील (3.47 करोड़ टन के साथ) 9वें और ईरान (2.5 करोड़ टन के साथ) 10वें स्थान पर आता है।

जावेद अख़्तर : स्क्रिप्ट-राइटर और गीतकार से लेकर ट्रोल तक का सफ़र

जावेद अख़्तर- एक ऐसा नाम, जिसने कई ऐतिहासिक बॉलीवुड फ़िल्मों की स्क्रिप्ट, कहानी और स्क्रीनप्ले लिखा। एक ऐसा नाम, जिसने सलीम खान के साथ जोड़ी बना कर अमिताभ बच्चन की सफलता को नया आयाम दिया, महानायक के सुपरस्टारडम को विस्तार दिया। एक ऐसा नाम, जिसने अपनी कालजयी लेखनी से फ़िल्मी गानों में अर्थ डाले- दर्द, दवा, ज़िंदगी लेकर युद्ध, शांति और प्यार तक को शब्दों के जाल में बुन कर आवाम तक पहुँचाने का काम किया। लेकिन, अब समय बदल गया है। जावेद अख़्तर ने एक बार फिर से अपना रोल बदल लिया है।

फ़िल्मों के स्क्रिप्ट लिखने से अपने करियर की शुरुआत करने वाले अख़्तर ने बाद में गीतकार की भूमिका चुनी और सफल हुए। नवंबर 2009 में उन्हें राज्यसभा के लिए नामित किया गया। संसद में उनकी उपस्थिति मात्र 53% रही जो 78% के राष्ट्रीय औसत से काफ़ी कम रही। आज ट्विटर पर हर एक बहस में जबरन कूद कर अपनी ही इज्ज़त उछालने वाले अख़्तर ने अपने 6 वर्ष के संसदीय कार्यकाल में एक भी प्रश्न नहीं पूछे। इसके बाद अब वह ताज़ा किरदार में आ गए हैं। उन्होंने अपने लिए सोशल मीडिया ट्रोल की भूमिका ढूँढ ली है।

जावेद अख़्तर ट्विटर पर लोगों से ऐसे लड़ते हैं, जैसे वह सेलिब्रिटी न होकर कोई सड़क छाप रंगदार हों। जावेद अख़्तर की सोच कल भी वही थी, आज भी वही है। जब-जब भाजपा की सरकार आती है, उनके अंदर का विद्रोही कीड़ा कुलबुलाने लगता है और फिर जावेद साहब उलूलजलूल बयानों की शरण में उतर आते हैं। ट्विटर ट्रोल के किरदार में फ़िट बैठ रहे जावेद अख़्तर की सोच को समझने के लिए हमें 2002 में जाना होगा जब देश में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार चल रही थी।

उस दौरान जावेद अख़्तर की भाषा वही थी जो आजकल सक्रिय तथाकथित लिबरल और सेक्युलर लोगों की है। उस दौरान जावेद अख़्तर ने एक साक्षात्कार में कहा था कि राजनीतिक विरोधियों, असंतुष्टों और अल्पसंख्यकों को हाशिये पर रखने के प्रयास किए जा रहे हैं। यही वही भाषा है जो कश्मीरी UPSC टॉपर शाह फ़ैसल बोलते हैं। उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा देते वक़्त कहा कि हिंदुत्व ताक़तों से 20 करोड़ मुस्लिमों को हाशिये पर भेज दिया है। जब-जब भाजपा की सरकार आती है- यह राग इतनी बार आलापा जाता है कि आपके कान ख़राब हो जाएँ।

उसी इंटरव्यू में जावेद अख़्तर ने बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद को आतंकवादी संगठन बताया था। अब जावेद अख़्तर के इतिहास से उनके वर्तमान पर आते हैं। हमें यह देखना होगा कि सोशल मीडिया में वह जिस तरह की भाषा का प्रयोग कर रहे हैं, क्या उन्होंने ऐसी भाषा अपनी लिखी फिल्मों या गानों में प्रोग की है क्या? जावेद अख़्तर ने ऑपइंडिया अंग्रेजी की सम्पादक नुपुर शर्मा से बहस करते ट्विटर पर लिखा:

“जब भी ये नफ़रत की सौदाग़र मुझे कोई असभ्य सन्देश भेजेगी, मैं भी जवाब में एक असभ्य लेकिन अधिक मज़ाकिया प्रत्युत्तर के साथ वापस आऊँगा।”

जावेद अख़्तर के लिए उनके ट्वीट में व्याकरण की त्रुटियाँ निकालना ‘असभ्य’ है, वो भी उस ट्वीट में, जिसमे वह ख़ुद बहसबाज़ी में तल्लीन होकर सामनेवाले की मानसिकता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहे हों। इतना ही नहीं, ट्विटर ट्रोल की हर एक परिभाषा में फ़िट बैठने के लिए शायद उन्होंने कोई ख़ास प्रशिक्षण ले रखा है। अपने-आप को नास्तिक कहने वाले जावेद अख़्तर को जब इस बात की याद दिलाई गई कि केवल भारतीय धर्मों में नास्तिकों के लिए स्थान है, तो वह बिफ़र उठे। उन्हें बस यह सवाल पूछा गया था कि इस्लाम में नास्तिकों के साथ क्या किया जाता है? इस बात पर उन्होंने मज़ाक बनाते हुए दाभोलकर, पनसारे और कलबुर्गी का नाम लिया।

किसी की व्यक्तिगत राय अलग हो सकती है। यह तब तक स्वीकार्य है, जब तक वह राय व्यक्तिगत रहे, उसे किसी पर जबरन थोपने की कोशिशें न की जाए। जावेद अख़्तर हर उस व्यक्ति से लड़ पड़ते हैं जो उनकी विचारधारा, बयानों और सोच से मतभेद प्रकट करता है।

पिछले वर्ष अप्रैल में उन्होंने राष्ट्रीय जाँच एजेंसी NIA को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया था। मक्का मस्ज़िद मामले में NIA पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा था कि एजेंसी के पास विधर्मी विवाहों की जाँच करने के लिए दुनियाभर का समय है।

जावेद अख़्तर एक ऐसे ट्विटर ट्रोल के रूप में विकसित होकर उभरे हैं कि अगर हम उनके सारे ऐसे ट्वीट्स की पड़ताल करने बैठ जाएँ तो इस पर पूरी की पूरी पुस्तक लिखी जा सके। इसीलिए उसके ट्वीट्स से ज़्यादा उनकी दिन पर दिन विकृत होती जा रही मानसिकता, संकुचित होती जा रही सोच और फूहड़ होते जा रहे बयानों की चर्चा करना उचित रहेगा।

जावेद अख़्तर को जिस सरकार के कार्यकाल में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होता नज़र आ रहा था, उसी सरकार द्वारा उन्हें 1999 में पद्म श्री से नवाज़ा गया था। उसी सरकार के कार्यकाल में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले। यह विरोधाभाषी है। 1971 से ही फ़िल्मों में सक्रिय अख़्तर को क़रीब 30 वर्ष बाद पहली बार पद्म पुरस्कार मिला, उसी पार्टी के कार्यकाल में, जिसके सत्ता में आते वो एक ट्रोल का रूप धारण कर लेते हैं।

जावेद अख़्तर से उनकी लिखी फ़िल्मों और गानों का फैन उनसे यही विनती करेगा कि कृपया एक ट्रोल की तरह व्यवहार करना बंद कर दें। आप सोशल मीडिया पर सक्रिय रहें, ख़ूब वाद-विवाद करें, संसद में जो मौका अपना गँवाया था, उसे ट्विटर पर धरे रखें। लेकिन, जो भाषा आप अपने गीतों में इस्तेमाल करते रहे है, जो भाषा आपकी लेखनी में झलकती है- उसी शालीन भाषा का उपयोग करें। गली के आवारा बदमाशों वाली भाषा आपको शोभा नहीं देती।

‘संस्कृत’ से नहीं उन्हें ‘संस्कृति’ से गुरेज़ है, उन्हें ‘श्लोक’ से नहीं ‘हिंदू-धर्म’ से परहेज़ है

हाल ही में ख़बरें आई हैं कि केंद्रीय विद्यालय में प्रार्थना के दौरान संस्कृत का एक श्लोक पढ़ने की वज़ह से संविधान को ठेस पहुँची है। लोकतंत्र की व्यवस्था चरमरा गई है। कई लोग इससे विशेष रूप से आहत भी हुए हैं। मसला इतना विकराल हो गया कि इसपर स्कूल प्रशासन नहीं बल्कि देश का सर्वोच्च न्यायालय फ़ैसला सुनाएगा। यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट में भी 5 जजों की संवैधानिक बेंच इस पर फ़ैसला करेगी। अब कोर्ट इसका निर्णय करेगा कि विद्यालयों में ‘असतो मा सदगमय’ (मुझे झूठ से सच की ओर ले चलें) जैसी प्रार्थनाएँ गाई जा सकती हैं या फिर नहीं।

कमाल की बात यह है कि इस शिकायत को कोर्ट तक ले जाने वाले विनायक शाह नाम के व्यक्ति खुद को नास्तिक बताते हैं। शायद इसलिए, उनमें बतौर सेकुलर देश का नागरिक होने के कारण इतनी पीड़ा, इतना दुख, देश के प्रति चिंता है।

सोचिए कि संस्कृत का श्लोक पढ़ने का दूसरा पर्याय आख़िर धार्मिकता का प्रचार करना कैसे हो सकता है। केंद्रीय विद्यालय की प्रार्थना में धार्मिक तत्व ढूँढ निकालने वाले मदरसों से लेकर मिशनरी स्कूलों के अस्तित्व में होने को लेकर चुप हैं। जिन्हें न जाने कितनी धार्मिक संस्थाओं से बाकायदा फंडिंग की जाती है। ऐसे शैक्षिक संस्थानों में विशेष समुदाय का हवाला देते हुए उसी धर्म के अनुरूप न केवल प्रार्थना होती है बल्कि शिक्षा भी उसी दिशा में दी जाती है।

केंद्रीय विद्यालय को देश में शिक्षा के लिहाज़ से एक प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्थान का दर्ज़ा मिला हुआ है। हज़ारों लोगों की कोशिश होती हैं कि उनका बच्चा/बच्ची केंद्रीय विद्यालय से शिक्षा ग्रहण करे। यहाँ तक पहुँचना थोड़ा कठिन तो है लेकिन शायद ही कोई ऐसा अभिभावक होगा जो अपने बच्चे को यहाँ पढ़ाकर सिर-माथा पकड़े।

इतनी दलीलों के बाद भी मान लेते हैं कि संस्कृत हिंदू धर्म की वाहक हैं। लेकिन, 5000 साल पुरानी सभ्यता और संस्कृति का हवाला देने वाली दर्ज़नों किताबें इस बात का प्रमाण हैं कि संस्कृत जितना हिंदू धर्म से जुड़ी उसका उतना ही संबंध हमारे देश और संस्कृति से भी हैं। अब आप यह कहने लग जाएँ कि देश की उन सभी सभ्यताओं को ख़ारिज किया जाए जिनका संबंध हिंदू धर्म से हैं तो शायद फिर इस मुद्दे पर कोई बात करनी वाली ही नहीं बचेगी।

अगर मात्र स्कूल में संस्कृत के कुछ श्लोकों से संविधान को ठेस पहुँचती है, धर्म का प्रचार होता है तो आप उसे क्या कहेंगे जो जगह-जगह विद्यालयों में जाकर ईसा-मसीह के जीवन से लेकर उनके चमत्कारों पर बात करते हुए ईसाई धर्म को सर्वश्रेषठ बताते हैं। शैक्षिक संस्थान में इस तरह की बातों को तो फिर अराजकता की श्रेणी में डाल देना चाहिए।

इस पूरे मामले को दर्ज़ कराने वाले शाह ने इस बात का दावा किया है कि  केंद्रीय विद्यालय संगठन की ओर से 28 दिसंबर, 2012 को जारी संशोधित एजुकेशन कोड में पढ़ रहे सभी छात्रों के लिए सुबह की प्रार्थना में ‘असतो मा सदगमय’ को गाना अनिवार्य बनाया गया। उनका कहना है कि इससे नास्तिक लोगों की भावनाएँ आहत हो सकती हैं।

शाह साहिब को किस तरह बताया जाए कि शैक्षिक संस्थानों में आस्तिकता और नास्तिकता को प्राथमिकता देने से बड़ा कार्य वहाँ पढ़ रहे छात्रों को उचित दिशा दिखाना है। अगर नास्तिक और आस्तिक के झूले पर झूलते हुए छात्र स्कूल का रुख करें तो वो भले ही हिंदू-मुस्लिम, सुन्नी-सिया, ऊँच-नीच की लड़ाई में न पड़े लेकिन लड़ाईयों का विस्तार करते हुए आस्तिक-नास्तिक के दंगो को जन्म दे देंगे।

साल 2018 में भी इसी तरह की याचिका दर्ज़ कराई गई थी जिसमें लिखा था कि केंद्रीय विद्यालयों में 1964 से हिंदी-संस्कृत में सुबह की प्रार्थना हो रही है जो कि पूर्ण रूप से असंवैधानिक है। याचिका दर्ज़ कराने वाले ने इसे संविधान के अनुच्छेद 25 और 28 के खिलाफ बताते हुए कहा था कि इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती है।

आज चाहे किसी भी समुदाय का कोई भी छात्र हो वो विद्यालय शिक्षा को लेने और खुद के विकास के उद्देश्य से जाता है। शायद एक भाषा के रूप में ही सही लेकिन हिंदू छात्र को उर्दू जुबां से गुरेज़ नहीं है और एक मुस्लिम छात्र को संस्कृत में टॉप करने से परहेज़ नहीं है। खुद सोचिए, बेवज़ह की दलीलों देना वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि आप नास्तिक है।

क्या देश में संस्कृत भाषा के श्लोक से हर शख्स की भावनाएँ आहत हो जाएँगी? शायद नहीं, लेकिन ऐसे लोग उस माहौल का निर्माण जरूर कर रहे हैं जब साहित्य,कविताओं को, गीतों को भी धर्म से ही लेकर देखा जाएगा। क्या कभी आपने किसी छात्र को इस तरह की शिकायतों में उलझता देखा है कि वो पढ़ाई छोड़कर शिकायत करता दिखा हो… इस प्रार्थना को बंद करो, मेरी भावनाएँ आहत होती है।

राम मंदिर: 0.3 एकड़ विवादित भूमि को छोड़ 67 एकड़ पर मोदी सरकार ने SC में चल दिया बड़ा दाँव

राम मंदिर मामले में केंद्र सरकार ने एक बड़ा क़दम उठाया है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से विवादित ज़मीन को छोड़ कर बाकी की ज़मीन से यथास्थिति हटाने की माँग की है। बता दें कि 1993 में केंद्र सरकार ने अयोध्या अधिग्रहण एक्ट के तहत मंदिर और उसके आसपास की ज़मीन का अधिग्रहण कर लिया था। इसके बाद उस ज़मीन को लेकर दायर की गई सारी याचिकाओं को भी ख़त्म कर दिया गया था। इस एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

याचिका की PDF का स्क्रीशॉट

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दायर की है, उसके अनुसार 0.3 एकड़ के ‘विवादित’ क्षेत्र के अलावा बाकी के 67 एकड़ की भूमि को उनके मालिकों को लौटाया जा सकता है। इसी 67 एकड़ के लिए केंद्र सरकार ने कोर्ट में अर्ज़ी दाख़िल की है। अगर कोर्ट ने केंद्र सरकार के पक्ष में फ़ैसला दिया तो यह ज़मीन राम जन्मभूमि न्यास सहित सभी संबंधित पक्षों को लौटाई जाएगी। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इन 67 एकड़ में से लगभग 42 एकड़ भूमि राम जन्मभूमि न्यास की है। अदालत ने 1994 में कहा था कि जिसके पक्ष में निर्णय आएगा, उसे ही जमीन दी जाएगी। अदालत ने केंद्र सरकार को इस ज़मीन को ‘कस्टोडियन’ की तरह रखने को कहा था।

याचिका की PDF का स्क्रीशॉट

हाल ही में समाचार एजेंसी एएनआई की सम्पादक स्मिता प्रकाश को दिए साक्षात्कार में प्रधानमंत्री ने कहा था कि अदालती प्रक्रिया ख़त्म होने के बाद सरकार की जो भी जवाबदेही होगी, उस दिशा में कार्य किया जाएगा। उन्होंने अदालती प्रक्रिया ख़त्म होने का इंतज़ार करने की भी सलाह दी थी। तभी से यह क़यास लगाए जा रहे थे कि सरकार इस दिशा में कोई न कोई क़दम उठा सकती है।

याचिका की PDF का स्क्रीशॉट

राम मंदिर मुद्दे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने भी भाजपा को घेरा था। कुछ दिनों पहले संघ के सहकार्यवाहक भैय्याजी जोशी ने कुंभ मेले में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि 2025 तक राम मंदिर का निर्माण हो जाना चाहिए।

याचिका की PDF का स्क्रीशॉट

केंद्र सरकार के ताज़ा कदम का विश्व हिन्दू परिषद (VHP) व अन्य हिन्दू संगठनों ने स्वागत किया है। सुप्रीम कोर्ट में बार-बार राम मंदिर मसले की सुनवाई टालने से नाराज़ चल रहे हिन्दू संगठनों में सरकार के इस क़दम के बाद नई आस जगी है।

‘अगर आप करते हैं अपने बच्चों से प्यार तो चुनें ‘AAP’ सरकार’

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल और उप-मुख्समंत्री मनीष सिसोदिया ने न्यू फ्रेंड्स कॉलनी के सर्वोदय कन्या विद्यालय परिसर से 250 से ज्यादा सरकारी स्कूलों में बने 11,000 नए क्लासरूम के निर्माण कार्य का उद्घाटन किया। और इसके बाद शिक्षा-व्यवस्था पर बोलने या अभिभावकों की सुनने के बजाय राजनीति पर उतर आए।

इस मौके पर सीएम केजरीवाल ने अभिभावकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि लोकसभा चुनाव नज़दीक आ रहे हैं। ऐसे में उन्हें ‘देशभक्ति’ या फिर ‘मोदीभक्ति’ में से किसी एक को चुनना है।

केजरीवाल ने कहा कि अगर आप लोगों से पूछते हैं कि आप किसे वोट देंगे तो वो कहते हैं मोदी जी। अगर आप उनसे पूछेंगे कि ‘क्यों’ तो वह कहेंगे क्योंकि वह मोदी जी को प्यार करते हैं। सीएम ने कहा कि अब आप खुद सोचिए कि आप मोदी जी से प्यार करते हैं या फिर अपने बच्चों से। उन्होंने कहा कि अगर आप अपने बच्चों से प्यार नहीं करते हैं तो मोदी जी को ही वोट दीजिए।

सीएम केजरीवाल ने प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा कि मोदी जी ने जनता के लिए एक भी स्कूल नहीं बनवाए हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे में या तो आप देशभक्ति कर सकते हैं या फिर मोदी-भक्ति। लेकिन दोनों एक साथ मुमकिन नहीं है।

सीएम की बात पर ज़ोर देते हुए उप-मुख्यमंत्री सिसोदिया ने कहा कि उन्हें किसी ने बताया था कि वो चुनाव में मोदी के लिए वोट देंगे क्योंकि उन्हें वो अच्छे लगते हैं।

”मैने उन्हें कहा कि अगर आप अपने बच्चों से प्यार करते हैं तो उन्हें वोट दीजिए जो आपके बच्चों के लिए स्कूलों का निर्माण करवा रहे हैं।”

उन्होंने कहा कि इसलिए वो ये बात हर अभिभावक को बता रहे हैं और हर बच्चे से पूछ रहे हैं कि घर जाकर अपने माता-पिता से यह जरूर पूछें कि वो उनसे प्यार करते हैं या नहीं। अगर वो जवाब में हाँ कहते हैं तो उन्हें बोलें कि वोट उन्हीं को दें, जो हमारे लिए स्कूल बना रहे हैं।

नहीं रहे पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस, 77 में जेल से चुनाव लड़ 3 लाख वोटों से पाई थी जीत

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान देश के रक्षा मंत्री रहे जॉर्ज फर्नांडिस का आज (जनवरी 29, 2019) निधन हो गया। लम्बे समय से बीमार चल रहे जॉर्ज फर्नांडिस ने दिल्ली के मैक्स अस्पताल में आख़िरी साँस ली। जॉर्ज फर्नांडिस अपने आख़िरी वर्षों में अल्ज़ाइमर से पीड़ित थे और उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता था। रक्षा मंत्री के अलावा उन्हें आपातकाल के दौरान सक्रियता के कारण भी जाना जाता है।

वह 2004 में बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर से सांसद चुने गए थे। जॉर्ज फर्नांडिस का राजनीतिक जीवन काफ़ी लम्बा रहा है और उन्हें देश के दिग्गज नेताओं में से एक माना जाता था। वीपी सिंह की सरकार के दौरान उन्होंने केंद्रीय रेल मंत्री का पद भी संभाला था। मुंबई में ट्रेड यूनियन के नेता के तौर पर अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले जॉर्ज वहाँ के कामगारों में काफ़ी लोकप्रिय थे और उनके हक़ के लिए उन्होंने कई लड़ाइयाँ लड़ी थीं।

अपने विरोध प्रदर्शनों और कड़े तेवर की वज़ह से जाने जाने वाले जॉर्ज फर्नांडिस ट्रेड यूनियन से लेकर राजनीति में ऊपर चढ़ते गए और उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। 1976 में आपातकाल के दौरान उन्हें कोलकाता से गिरफ़्तार किया गया था।

जॉर्ज फर्नांडिस काफ़ी दिनों से राजनीति में सक्रिय नहीं थे और बीमारी के कारण उन्होंने लोगों से मिलना-जुलना भी कम कर दिया था। मुज़फ़्फ़रपुर के लोग आज भी उन्हें याद कर के भावुक हो उठते हैं। जिले में दूरदर्शन केंद्र, काँटी थर्मल पावर स्टेशन, लिज्जत पापर फैक्ट्री- इन सब की स्थापना का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है। जिले में उनके इन सभी कार्यों से रोज़गार का सृजन हुआ था। 1977 में उन्होंने जेल से ही मुज़फ़्फ़रपुर से चुनाव लड़ा था और 3 लाख से भी अधिक मतों से विजयी हुए थे।

फर्नांडिस का रक्षा मंत्री वाला काल भी यादग़ार रहा है। उसी दौरान भारत ने कारगिल में पाकिस्तान को परास्त किया और पोखरण परमाणु परीक्षण के दौरान भी जॉर्ज फर्नांडिस ही देश के रक्षा मंत्री थे। उन्हें बिहार की वर्तमान सत्ताधारी पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) की स्थापना के लिए भी जाना जाता है।

PM मोदी के कार्यकाल में चौचक है भारत की वैश्विक चमक, 3 ग्लोबल रिपोर्ट के आँकड़ों ने लगाई मुहर

वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम के मंच पर भारत की जो छवि उभरी, वह चुनौतियों के साथ-साथ उम्मीदों पर भी खरी है। इसमें दो राय नहीं कि पिछले पाँच सालों में तमाम उतार-चढ़ाव के बाद भी भारत की छवि वैश्विक मानदंडों पर पहले से मज़बूत हुई है।

चाहे वो वैश्विक सलाहकार कंपनी प्राइसवॉटरहाउस कूपर्स (Pricewaterhouse Coopers-PwC) की वैश्विक CEO सर्वे रिपोर्ट हो या ऑक्सफ़ैम रिपोर्ट या एडलमैन ट्रस्ट बैरोमीटर रिपोर्ट, इन तीनो के पैमानें पर भारत की छवि वैश्विक सन्दर्भों में निखरती नज़र आई है।

वैश्विक CEO रिपोर्ट के अनुसार, 2018 की तुलना में 2019 में वैश्विक आर्थिक वृद्धि की रफ्तार हालाँकि धीमी रहने के आसार हैं। लेकिन इसी रिपोर्ट में भारत की अर्थव्यवस्था के लिए सुखद भविष्यवाणी की गई है। बता दें कि प्राइसवॉटरहाउस कूपर्स की वैश्विक CEO सर्वे रिपोर्ट के अनुसार यूनाइटेड किंगडम को पीछे छोड़ते हुए भारत 2019 में दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।

वैश्विक CEO सर्वे रिपोर्ट में भारत के लिए क्या है ख़ास

प्राइसवॉटरहाउस कूपर्स ने 90 से अधिक देशों में सितंबर-अक्तूबर 2018 के दौरान वैश्विक स्तर पर 1378 CEOs का वार्षिक सर्वे किया। दावोस में विश्व आर्थिक मंच पर इस सर्वे रिपोर्ट को पेश किया गया।

रिपोर्ट के अनुसार, 2012 के बाद सबसे धीमी वृद्धि का अनुमान 2019 में लगाया गया है। अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों में यह धीमी वृद्धि देखने को मिलेगी। उत्तरी अमेरिका और यूरोप में यह अंतराल ज़्यादा दिखाई देगा।

अगस्त-2018 में अनुमानित विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारत की ग्रोथ रेट

सर्वे में 29 फीसदी CEOs ने इस बात पर सहमति जताई थी और इनमें से बड़ी संख्या इन्हीं क्षेत्रों के CEOs की थी। इससे पहले, वर्ष 2018 में 48 फीसदी CEOs ने मंदी के आसार जताए थे। हालाँकि, सर्वे में 42 फीसदी CEOs ने यह भी माना कि 2019 में वृद्धि में सुधार की सम्भावना भी है, लेकिन यह 2018 के 57 फीसदी की तुलना में कम होने का अनुमान है। रिपोर्ट में वर्ल्ड बैंक के आँकड़ों के हवाले से कहा गया है कि वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) ने 2011 से ही 4% के बैरियर को पार नहीं किया है।

2019 में निवेश के हिसाब से भारत सबसे भरोसेमंद देशों में शामिल

इस रिपोर्ट का ख़ासा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ने की सम्भावना है। जिसका कारण ये है कि भारत में निवेश पर बेहतर रिटर्न मिलने की उम्मीद करने वाले CEOs की तादाद थोड़ी कम है। जबकि, 2019 में कहाँ निवेश किया जाए इसको लेकर अनिश्चितता की स्थिति में रहने वाले CEOs की सँख्या ज़्यादा है। लेकिन फिर भी भारत को सबसे भरोसेमंद देशों की सूची में रखा गया है। इसके पीछे भारत में राजनीतिक स्थिरता के साथ शासन का कठोर निर्णय लेने के साथ व्यापार के लिए भारत में समुचित माहौल उपलब्ध कराना भी है।

रिपोर्ट में लगभग  8% CEOs का स्पष्ट मानना है कि भारत उनकी वृद्धि के लिये अहम है। जबकि 15 फीसदी CEOs यह नहीं जानते कि कहाँ निवेश किया जाए। सर्वे रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बेहतर निवेश बाज़ार के तौर पर भारत अब जापान और ब्रिटेन से आगे निकल गया है। इस रिपोर्ट के ही अनुसार, ज़्यादातर निवेश बाजारों की सूची में भारत एक उभरता हुआ आकर्षक निवेश अनुकूल देश है।

विश्व अर्थव्यवस्था में भारत के पाँचवें स्थान पर आने की संभावना

प्राइसवॉटरहाउस कूपर्स की वैश्विक CEO सर्वे रिपोर्ट में यह संभावना जताई गई है कि 2019 में भारत विश्व अर्थव्यस्था में पाँचवां स्थान प्राप्त कर सकता है। वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत की रैंकिंग अभी छठवीं है।

रिपोर्ट में बताया गया है लगभग समान विकास दर और जनसंख्या के कारण ब्रिटेन और फ्राँस दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की सूची में अक्सर आगे-पीछे होते रहते हैं। लेकिन यदि भारत इस सूची में आगे निकलता है तो उसका स्थान स्थाई रहेगा।

प्राइसवॉटरहाउस कूपर्स की वैश्विक अर्थव्यवस्था निगरानी (ग्लोबल इकोनॉमी वॉच) रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि इस वर्ष (2019 में) ब्रिटेन की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर 1.6%, फ्राँस की 1.7% तथा भारत की 7.6% रहने की सम्भावना है।

एडलमैन ट्रस्ट बैरोमीटर रिपोर्ट-2019: भारत विश्वसनीय देशों में शामिल

वैश्विक CEO रिपोर्ट और ऑक्सफ़ैम रिपोर्ट के अलावा एडलमैन ट्रस्ट बैरोमीटर रिपोर्ट भी दावोस में विश्व आर्थिक मंच (वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम) के वार्षिक सम्मेलन शुरू होने से पहले जारी की गई। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत कारोबार, सरकार, NGOs और मीडिया के मामले में दुनिया के सबसे विश्वसनीय देशों में शामिल है। हालाँकि, देश के कारोबारी ब्रांडों की विश्वसनीयता थोड़ी कम ज़रूर हुई है। जिसके जल्द ही सुधरने के आसार हैं।

वैश्विक विश्वसनीयता के पैमाने पर देंखे तो भारत की वैश्विक विश्वसनीयता सूचकांक 3 अंक के सुधार के साथ 52 अंक के आँकड़े पर पहुँच गया है। इस रिपोर्ट में चीन जागरूक जनता और सामान्य आबादी के भरोसा सूचकांक में क्रमश: 79 और 88 अंकों के साथ शीर्ष पर है। जबकि, भारत इन दोनों श्रेणियों में दूसरे और तीसरे स्थान पर रहा। बता दें कि एडलमैन ट्रस्ट बैरोमीटर की यह रिपोर्ट NGOs, कारोबार, सरकार और मीडिया में भरोसे के औसत पर आधारित है।

ऑक्सफैम रिपोर्ट: क्या कहती है भारत के बारे में

प्राइसवॉटरहाउस कूपर्स की वैश्विक CEOs की उपरोक्त रिपोर्ट के साथ ऑक्सफैम ने भी अपनी रिपोर्ट जारी की। जानकारी के लिए बता दूँ कि 1942 में स्थापित ऑक्सफैम 20 स्वतंत्र चैरिटेबल संगठनों का एक संघ है। यह वैश्विक स्तर पर ग़रीबी उन्मूलन के लिये काम करता है और ऑक्सफ़ैम इंटरनेशनल इसकी अगुवाई करता है। वर्तमान में विनी ब्यानिमा इस गैर-लाभकारी समूह की कार्यकारी निदेशक हैं।

इस रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय अरबपतियों की संपत्ति में 2018 में प्रतिदिन 2,200 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई है। इस दौरान देश के शीर्ष 1% अमीरों की संपत्ति में 39 % की वृद्धि हुई। हालाँकि इस दौरान 50% ग़रीब आबादी की संपत्ति में भी 3% की बढ़ोतरी हुई है। इसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि देश के शीर्ष 9 अमीरों की संपत्ति 50 फीसदी ग़रीब आबादी की संपत्ति के बराबर है। यह आँकड़ा पहली नज़र में भयावह दिखता ज़रूर है, लेकिन आय की अवधारणा पर एकदम सामान्य बात है, चूँकि अमीरों के पास पहले से ही ज़्यादा संपत्ति है, इसलिए उनके निवेश की तुलना में वृद्धि भी उसी अनुपात में होती है। इस अंतराल को भरने में अभी काफ़ी वक़्त लगने के आसार हैं।

इस रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि भारत में रहने वाले 13.6 करोड़ लोग वर्ष 2004 से कर्ज़दार बने हुए हैं। यह देश की सबसे ग़रीब आबादी का 10% है। जिसे अधिकांश मीडिया रिपोर्टों में इस तरह पेश किया गया कि भारत की ये 10% आबादी 2014 के बाद ग़रीबी के दायरे में आई है। जबकि ये आँकड़ा 2004 के बाद का है। 2014 के बाद मोदी सरकार की तमाम योजनाओं के फ़लस्वरूप ग़रीबी रेखा के नीचे के लोगों को जहाँ मनरेगा से निश्चित रोज़गार मिला, वहीं उन्हें डायरेक्ट बेनिफिट स्कीम के तहत सीधे लाभ भी। साथ ही उज्ज्वला, जन-धन योजना, मुद्रा योजना एवं अन्य योजनाओं के तहत भी ग़रीबों-किसानों की स्थिति में काफ़ी सुधार आया है।

हालाँकि, आय में बढ़ोतरी के बाद वर्ग अंतराल में कमी आने के बावजूद भी भारत में विषमता बनी हुई है, रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि भारत की शीर्ष 10% आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 77.4% हिस्सा है और इनमें से सिर्फ़ 1% आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 51.53% हिस्सा है। जबकि, 60% आबादी के पास देश की सिर्फ़ 4.8% संपत्ति है।

ऑक्सफ़ैम रिपोर्ट में संभावनाशील भारत की तस्वीर पेश करते हुए यह भी कहा गया है कि 2018 से 2022 के बीच भारत में प्रतिदिन 70 नए करोड़पति बनेंगे। पिछले साल, 2018 में देश में 18 नए अरबपति बने और इस प्रकार, अरबपतियों की कुल संख्या बढ़कर 119 हो गई है। इनकी संपत्ति 2017 में 325.5 अरब डॉलर से बढ़कर 2018 में 440.1 अरब डॉलर हो गई है।

दुनिया भर में 10 अरब डॉलर का काम महिलाएँ मुफ़्त में करती हैं

ऑक्सफ़ैम रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में घर और बच्चों की देखभाल करते हुए घरेलू महिलाएँ सालभर में कुल 10 हज़ार अरब डॉलर के बराबर काम करती हैं, जिसका उन्हें कोई भुगतान नहीं किया जाता। यह दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी ऐपल के वार्षिक कारोबार का 43 गुना है।

इसी सन्दर्भ में, रिपोर्ट में भारत की महिलाओं का भी जिक्र है, भारत में महिलाएँ घर और बच्चों की देखभाल जैसी जो अवैतनिक काम करती हैं, उसका मूल्य देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 3.1% के बराबर है। इस तरह के कामों में शहरी महिलाएँ प्रतिदिन लगभग 312 मिनट और ग्रामीण महिलाएँ 291 मिनट लगाती हैं। इसकी तुलना में शहरी क्षेत्र के पुरुष बिना भुगतान वाले कामों में सिर्फ 29 मिनट ही लगाते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले पुरुष 32 मिनट ख़र्च करते हैं।

फ़िलहाल भारतीय सन्दर्भ में अभी घरेलू श्रम का भुगतान दूर की कौड़ी है। फिर भी यहाँ की मेहनतकश आबादी अनेक संभावनाओं से भरपूर है। आज वैश्विक पटल पर भारत की असीम संभावनाओं पर दुनिया की नज़र है। आने वाले दौर में निवेश और व्यापार दोनों के लिए भारतीय माहौल अनुकूल होगा।

इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शिता और रिस्क लेने की क्षमता की सराहना करनी होगी। पिछले पाँच सालों में उनके द्वारा चलाई गई विभिन्न योजनाओं के साथ, व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए उठाये गए कई कठोर क़दम हैं जिनके परिणाम न सिर्फ़ भारत में बल्कि विश्व पटल पर भी नज़र आ रहें है। चाहे वह इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के रूप में हो, बिजली उत्पादन और वितरण में सुधार, मेक इन इंडिया, भ्रष्टाचार पर लग़ाम कसने के लिए नोटबंदी जैसा कठोर कदम, जिसका परिणाम टैक्स स्लैब में बढ़ोतरी के रूप में नज़र आया।

किसी भी देश में विकास योजनाओं को लागू करने में धन की आवश्यकता होती है। जिसकी भरपाई सरकार विभिन्न प्रकार के करों से करती है। टैक्सेशन में सुधार के लिए ही GST लागू हुआ, जिससे एक तरफ़ जहाँ मुद्रास्फीति में सुधार हुआ वहीं सरकार का कर दायरा भी बढ़ा। जिसका उपयोग मुद्रा योजना, उज्ज्वला योजना, जन आरोग्य योजना के साथ ही ‘सबका साथ, सबका विकास’ को मूलमंत्र मानते हुए मोदी सरकार ने विभिन्न योजनाओं के माध्यम से जन-जन के सम्पूर्ण विकास का ख़ाका खींचते हुए बदलते भारत की तस्वीर पेश कर वैश्विक धरातल पर भी सुनहरे व संभावनाशील भारत से दुनिया का परिचय कराया।

SC ने भारत में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले विदेशियों का ब्यौरा माँगा

असम में विदेशी बंदियों के लिए चलाए जा रहे हिरासत केंद्रों के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने जानकारी माँगी है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 10 साल के दौरान असम में हिरासत में लिए गए विदेशी नागरिकों की संख्या समेत कई अन्य जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है। याचिकाकर्ता हर्ष मदर की याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने यह निर्देश दिया।

दरअसल, यह याचिका राज्य के हिरासत केंद्रों और यहाँ लंबे समय से हिरासत में रखे गए विदेशी नागरिकों की स्थिति को जानने के लिए दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से हिरासत केंद्रों, वहाँ बंद बंदियों की अवधि और विदेशी नागरिक अधिकरण के समक्ष दायर उनके मामलों की स्थिति को लेकर सरकार से विवरण माँगा। पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से भी इस संबंध में ब्यौरे उपलब्ध कराने को कहा है।

पीठ ने कहा कि सरकार 10 साल के दौरान भारत में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले विदेशियों का साल के हिसाब से ब्यौरा दे। बता दें कि, अधिकारियों को सभी विवरण उपलब्ध कराने के लिए तीन हफ़्ते का समय दिया गया है, और अब पीठ ने मामले में अगली सुनवाई 19 फरवरी को तय की है।

हाल ही में बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय को सौंपे गए हैं कुछ घुसपैठिए

बीते दिनों 21 बांग्लादेशी नागरिकों को असम बॉर्डर पुलिस और बीएसएफ की अगुवाई में बांग्लादेश राइफल्स और बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को सौंप था। बता दें कि, आए दिन बांग्लादेशी नागरिकों के चोरी-छिपे भारतीय सीमा में घुसने का मामला सामने आता रहता है। चूँकि बांग्लादेश के गरीब और मजदूर वर्ग के लोगों के लिए भारत में आसानी से मज़दूरी करने और रोज़गार के मौके मिल जाते हैं, इसी आस में सीमा पार कर ये लोग अक्सर भारत में घुस आते हैं।

घुसपैठ के खिलाफ हो चुका है आंदोलन

बांग्लादेशी घुसपैठ से परेशान होकर 1979 से 1984 तक 6 साल ‘अखिल असम छात्र संघ’ ने इनके खिलाफ आंदोलन किया था। इसके बाद असम में 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के साथ असम समझौता (असम एकॉर्ड) पर हस्ताक्षर हुआ था। इसमें असम की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा और उनके क्रियान्वन के लिए कई माँगों पर सहमति बनी थी।

मध्य प्रदेश: भाजपा नेताओं की मौत के बीच राज्य के गृह मंत्री का शर्मनाक बयान

मध्य प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व में कॉन्ग्रेस की सरकार बनने के बाद भाजपा के कई नेताओं पर जानलेवा हमला हो चुके हैं। यही नहीं राज्य के कई नेताओं को अपनी जान भी गँवानी पड़ी। भाजपा नेताओं की मौत के बीच राज्य के गृहमंत्री बाला बच्चन ने बेहद शर्मनाक बयान दिया है।

मध्य प्रदेश के गृहमंत्री बाला बच्चन ने कहा, “भाजपा राज्य में कॉन्ग्रेस सरकार बनने की बात को पचा नहीं पा रही है। रतलाम व मंदसौर घटना में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ व भाजपा नेताओं के हाथ होने की संभावना है।” जबकि सच्चाई यह है कि मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस की सरकार बनने के बाद राजनैतिक हत्याओं का दौर रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है।

21 जनवरी 2019  को ग्वालियर भाजपा के ग्रामीण जिला मंत्री नरेंद्र रावत के भाई छतरपाल सिंह रावत की लाश पार्वती नदी के पुल के पास मिली थी। प्रथम दृष्टया यह धारदार हथियार से गोदे जाने का मामला लगता था। छतर सिंह के शरीर पर ज़ख़्म के कई निशान भी मिले थे।

मृतक छतरपाल सिंह रावत खुद भी भाजपा कार्यकर्ता थे। हलाँकि, पुलिस ने पहली नजर में इसे आपसी रंजिश बताया था और पंचनामे के बाद शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया था। ‘आपसी रंजिश’ शब्द को भी अगर अंतिम सत्य मान लिया जाए तो भी मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए कानून-व्यवस्था की लचर स्थिति पर खुद को पाक-साफ़ बताना बहुत मुश्किल होगा। चुनाव से पहले कमलनाथ ने ‘उन्हें देख लेंगे’ की धमकी भी दी थी।

मध्य प्रदेश में राजनैतिक हत्याओं की बात करें तो पिछले छह दिनों में अब तक पाँच भाजपा नेताओं/कार्यकर्ताओं की हत्या की जा चुकी है:

16 जनवरी (बुधवार) – इंदौर में कारोबारी और भाजपा नेता संदीप अग्रवाल को सरेआम गोलियों से भून दिया गया था।

17 जनवरी (गुरुवार) – मंदसौर नगर पालिका के दो बार अध्यक्ष रहे भाजपा नेता प्रहलाद बंधवार की सरे बाजार गोली मारकर हत्या कर दी गई।

20 जनवरी (रव‍िवार) – गुना में परमाल कुशवाह को गोली मारी गई। परमाल भारतीय जनता पार्टी के पालक संयोजक शिवराम कुशवाह के रिश्तेदार थे और खुद भी भाजपा के कार्यकर्ता थे।

20 जनवरी (रव‍िवार) – बड़वानी में भाजपा के मंडल अध्यक्ष मनोज ठाकरे को पत्थरों से कुचलकर बेरहमी से मार डाला गया।

21 जनवरी (सोमवार) – ग्वालियर भाजपा के ग्रामीण जिला मंत्री नरेंद्र रावत के भाई छतरपाल सिंह रावत की लाश मिली। छतरपाल सिंह रावत खुद भी भाजपा कार्यकर्ता थे।