Thursday, October 3, 2024
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26 जनवरी स्पेशल: अशोक स्तम्भ का इतिहास, जो बना हमारा राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न

भारत आज अपना 70वाँ गणतंत्र दिवस मना रहा है। गणतंत्र दिवस के इस ख़ास मौक़े पर आज हम इतिहास के पन्नों से कुछ जानकारी आपसे साझा करेंगे जिसका सीधा संबंध हमसे और हमारे देश से है।

उत्तर प्रदेश के सारनाथ स्थित अशोक स्तम्भ के सिंहों को 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में मान्यता मिली थी। ये दहाड़ते हुए सिंह धर्म चक्र प्रवर्तन के रूप में दृष्टिमान हैं। बुद्ध ने वर्षावास समाप्ति पर भिक्षुओं को चारों दिशाओं में जाकर लोक कल्याण हेतु ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ का आदेश दिया था, जो आज सारनाथ के नाम से विश्विविख्यात है। इसलिए यहाँ पर मौर्य साम्राज्य के तीसरे सम्राट व सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के पौत्र महान चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने चारों दिशाओं में गर्जना करते हुए शेरों को बनवाया था।

सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए स्तम्भों में सारनाथ के स्तम्भ को सबसे बेहतर माना जाता है। इसमें सबसे ऊपर चारों दिशाओं में चार सिंह बने हुए हैं। यह चुनार के बलुआ पत्थर के लगभग 45 फुट लंबे प्रस्तरखंड का बना हुआ है। सिंहों की आकृति बेहद सौम्य प्रतीत नज़र आती है, इसमें उनकी माँसपेशियों, उनके बालों और शारीरिक बारीकियों को बेहद कुशलता के साथ पत्थर पर उकेरा गया है। इन सिंहों के नीचे एक पट्टी पर चारों दिशाओं में चक्र बने हुए हैं, इन चक्रों में 32 तीलियाँ हैं। इन्हीं तीलियों को धर्म चक्र प्रवर्तन का प्रतीक माना जाता है।

बता दें कि हमारे राष्ट्रीय झंडे के बीच में जो अशोक चक्र का चिह्न विद्यमान है वो अशोक के स्तम्भ से ही लिया गया है। नीचे वाली पट्टी में चार पशु जिनमें हाथी, घोड़ा, बैल और सिंह बने हुए हैं वो देखने में संजीवता का आभास कराते हैं। अशोक द्वारा बनाए गए स्तम्भ सम्राट अशोक की शक्ति का प्रतीक भी माने जाते हैं। इन सभी स्तम्भों की ख़ासियत यह है कि इन्हें एक ही पत्थर को तराशकर बनाया गया है। इसलिए इन्हें एकाश्म (Monolithic) स्तम्भ भी कहा जाता है।

सारनाथ के सिंह स्तम्भ का ऊपरी हिस्सा या शीर्ष सारनाथ में पुरात्तव विभाग के संग्राहलय में रखा हुआ है और उसका बाक़ी हिस्सा या स्तम्भ संग्रहालय के पास ही में सारनाथ स्तूप के पास रखा गया है। सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए सभी स्तम्भ भारतीय कला का अद्भुत नमूना हैं। प्राचीन भारतीय विज्ञान और कला का बेजोड़ उदाहरण हैं।

इन स्तम्भों की ख़ासियतों में एक और ख़ास बात यह है कि इनकी चमकदार पॉलिश आज भी वर्षों बाद जस की तस बरक़रार है। सारनाथ के क़रीब 70 किलोमीटर दूर चुनार की खदानों में मिलने वाले बलुआ पत्थर से बनाए गए इस स्तम्भ में पत्थर की काली चित्तियाँ स्पष्ट दिखाई देती हैं बावजूद इसके इस स्तम्भ पर लाई गई चमक का आख़िर क्या राज़ है वो आज भी किसी को नहीं मालूम।

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस बलुआ पत्थर को चमकाने की कला ईरान से भारत आई है जबकि कुछ का मानना है कि यह कला भारत में पहले से ही विद्यमान थी। इतिहासकारों के अनुसार मौर्यकाल में चुनार पत्थर की कला को काफी प्रोत्साहन मिला था और मौर्य दरबार द्वारा इसे पूर्णत: संरक्षण भी प्राप्त था। अशोक सम्राट ने प्रमुख राजपथों व मार्गों पर भी धर्म लेख आदि स्थापित करवाए थे। ऐसा करने के पीछे देश की प्रजा को धार्मिक आचरण से अवगत कराने का उद्देश्य था। बता दें कि अशोक संसार के उन सम्राटों में से एक थे जिन्होंने धर्म-विजय के द्वारा संपूर्ण देश और पड़ोसी देशों में अहिंसा, शांति, मानव कल्याण और आपसी प्रेम का संदेश जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास किया।

सम्राट अशोक के समय में धार्मिक प्रचार से कला को काफ़ी बढ़ावा मिला था। अशोक ने धर्म प्रचार के लिए, नैतिक उपदेशों को प्रजा तक पहुँचाने के लिए धर्म लेखों का सहारा लिया था। इन धर्म लेखों को पर्वत शिखाओं, पत्थर के खंभों और गुफ़ाओं में अंकित किया जाता था। अशोक ने अपने धर्म लेखों के अंकन के लिए ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों का उपयोग किया और पूरे देश में बड़े स्तर पर लेखनकला का प्रचार-प्रसार हुआ।

धार्मिक स्थापत्य और मूर्तिकला का अभूतपूर्व विकास भी अशोक के राज में ही हुआ। परंपरा के अनुसार सम्राट अशोक ने अपने तीन वर्ष के अंतर्गत लगभग 84,000 स्तूपों का निर्माण करवाया। सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में लगभग 30 स्तम्भों का निर्माण करवाया जो भारत के अलग-अलग हिस्सों में आज भी मौजूद हैं। इनमें वैशाली, प्रयागराज, दिल्ली, चेन्नई, सारनाथ और लुम्बिनी जैसे स्थान शामिल हैं।

प्रणब मुखर्जी को ‘भारत रत्न’ दे कर सरकार ने एक कॉन्ग्रेसी का किया है सम्मान: अभिजीत मुखर्जी

केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, समाजसेवी नाना जी देशमुख (मरणोपरांत) और साथ ही असम के गायक भुपेन हजारिका (मरणोपरांत) को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित करने की घोषणा की है। जिसके बाद से कई दिग्गजों की प्रतिक्रियाएँ देखने को मिली। प्रतिक्रियाओं की इस सूची में एक नाम प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी का भी है।

पिता को भारत रत्न मिलने की घोषण पर अभिजीत मुखर्जी ने अपनी प्रसन्नता ज़ाहिर करते हुए कहा है कि देश ने उनके पिता को ये सम्मान उनके काम के लिए दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा उनके पिता को दिए जाने वाला ये सम्मान राजनैतिक विचारधाराओं से ऊपर उठकर दिया गया है।

अभिजीत ने अपने पिता के बारे में कहा कि उनके पिता (प्रणब मुखर्जी) ने अपने 50 साल के सार्वजनिक जीवन में कई काम किए। उन्होंने इस बात को भी स्वीकारा कि राजनीति में आलोचनाएँ तो होती ही हैं, लेकिन कुछ फ़ैसले कभी भी राजनीति से प्रेरित नहीं होते हैं।

अभिजीत ने कहा कि वो अपने पिता को मिलने वाले सम्मान पर प्रतिक्रिया बतौर बेटे के रूप में दे रहे हैं न कि कॉन्ग्रेसी नेता के रूप में। इस सम्मान के लिए अभिजीत ने अधिक खुशी इसलिए भी ज़ाहिर की क्योंकि ये एक कॉन्ग्रेसी का सम्मान है।

आजतक से हो रही अपनी इस पूरी बातचीत में अभिजीत ने बताया कि वो और उनका परिवार कॉन्ग्रेसी है। अपनी ओर इशारा करते हुए उन्होंने बताया कि प्रणब मुखर्जी की तीसरी पीढ़ी इस वक्त कॉन्ग्रेसी है।

प्रणव मुखर्जी के बेटे के बाद उनकी बेटी शर्मिष्ठा ने भी अपने पिता को मिलने वाले सर्वोच्च नागरिक सम्मान पर खुशी को जताते हुए कहा कि यह समय उनके और उनके परिवार के लिए बेहद आनंद और गर्व का क्षण है।

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने विनम्रता से देश की जनता के प्रति आभार प्रकट करते हुए ट्वीट किया और कहा कि वो हमेशा ऐसा मानते रहे हैं कि देश की जनता ने उन्हें, उनके द्वारा जनता की सेवा से कहीं ज़्यादा सम्मान और प्यार दिया है:

इसके साथ ही पीएम मोदी ने भी इन तीनो शख्सियतों को मिलने वाले सम्मान पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि प्रणब दा अपने समय के बेहतरीन व्यक्तित्व हैं। पीएम ने कहा कि प्रणब मुखर्जी ने दशकों तक देश की निस्वार्थ बिना थके सेवा की है। हमारे देश के विकास पथ में उनका गहरा योगदान है। पूर्व राष्ट्रपति की तारीफ करते हुए पीएम ने कहा कि उनके ज्ञान और मेधा की बराबरी कुछ ही लोग कर पाते हैं।


पद्मश्री सम्मान लेने से इनकार किया ओडिशा CM की लेखिका बहन ने, कहा चुनाव से पहले गलत संदेश जाएगा

ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बहन गीता मेहता ने ‘पद्म श्री’ पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया है। बता दें कि गीता एक जानी-मानी लेखिका हैं और वर्तमान समय में अमेरिका की नागरिक हैं। सरकार की ओर से गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 112 पद्म पुरस्कारों का ऐलान किया गया था, इसमें गीता मेहता का भी नाम शामिल है। लेकिन गीता ने यह सम्मान लेने से इनकार कर दिया।

एक रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने बयान जारी करते हुए कहा, “मैं भारत सरकार की बहुत आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे ‘पद्म श्री’ के लायक समझा लेकिन बड़े अफ़सोस के साथ मुझे लगता है कि मुझे इसे अस्वीकार करना चाहिए, क्योंकि आम चुनाव आने वाले हैं और ऐसे में अवॉर्ड लेने को गलत समझा जा सकता है। जिससे पटनायक सरकार और मुझे शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है और मुझे इसका पछतावा होगा।”

शिक्षा और साहित्य में योगदान के लिए चुना गया था गीता का नाम

गीता मेहता को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान देने के लिए इस सम्मान के लिए चुना गया था। गीता ने 1979 में कर्म कोला, 1989 में राज, 1993 में ए रिवर सूत्र, 1997 में स्नेक्स एंड लैडर्स: ग्लिम्पसिस ऑफ मॉडर्न इंडिया और 2006 में इटरनल गणेश: फ्रॉम बर्थ टू रीबर्थ जैसी किताबों का लेखन किया है। साथ ही उन्होंने 14 डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्देशन भी किया है। वहीं मीडिया रिपोर्ट की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लेखिका और उनके पति से लगभग 90 मिनट बातचीत की थी।

बता दें कि, 76 साल की गीता मेहता ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक और उनकी पत्नी ज्ञान पटनायक के तीन बच्चों (प्रेम, गीता और नवीन) में एक हैं। शुक्रवार शाम को केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा अनुमोदन के बाद पद्म पुरस्कार विजेताओं की सूची में उनके नाम की घोषणा की थी।

नज़ीर की शहादत पर मैं रोई नहीं, आतंक छोड़कर देश के लिए बलिदान होना गर्व की बात: महज़बीं वानी

गणतंत्र दिवस के अवसर पर अशोक चक्र से सम्मानित हुए शहीद लांस नायक नज़ीर अहमद वानी की पत्नी महज़बीं ने कहा कि उनके पति के पराक्रम का ही असर था, जिसने उनकी शहादत की ख़बर सुनकर भी आँखों से आँसू नहीं बहने दिए। जम्मू और कश्मीर के शोपियां में विगत नवम्बर के महीने आतंकवाद विरोधी अभियान में शहीद हुए नज़ीर वानी को शांति काल में दिए जाने वाले भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार – अशोक चक्र से सम्मानित किए जाने के सरकार के निर्णय के बाद महज़बीं ने यह बात कही।

लांस नायक नज़ीर वानी को शान्ति काल में देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार अशोक चक्र के लिए चुना गया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजपथ पर लांस नायक नज़ीर वानी के परिवार को अशोक चक्र से सम्मानित किया। नज़ीर वानी की पत्नी महज़बीं पेशे से शिक्षिका हैं। अपने पति की तरह ही नज़ीर वानी की पत्नी ने भी देश की सेवा करने का प्रण लिया है। बस इसके लिए महज़बीं ने दूसरा रास्ता अपनाया है।

महज़बीं के अनुसार वो शिक्षा के माध्यम से बच्चों को देश के बेहतर नागरिक बनने के लिए प्रोत्साहित करेंगी। महज़बीं युवाओं को सही मार्ग पर चलने की शिक्षा देंगी, उन्हें इसकी प्रेरणा अपने पति से मिली है। महज़बीं की नज़ीर वानी से लगभग 15 साल पहले स्कूल में पहली बार मुलाक़ात हुई थी।

जम्मू-कश्मीर के कुलगाम में चेकी अश्मुजी के रहने वाले वानी नज़ीर वानी, आतंकवाद का रास्ता छोड़कर 2004 में सेना में भर्ती हुए थे। नज़ीर वानी के लिए उनकी बटालियन 162/टीए जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फेंट्री पहली प्राथमिकता थी। आतंकवाद की राह छोड़कर नज़ीर वानी अपने आस-पास के लोगों को लिए प्रेरणा स्रोत बन गए थे।

आतंक का दामन छोड़ कर, नज़ीर वानी ने 2004 में आत्मसमर्पण करने के कुछ वक्त बाद ही भारतीय सेना ज्वॉइन कर ली थी। कभी सेना के ख़िलाफ़ लड़ने वाले इस बहादुर जवान ने आतंकवादियों से लड़ते हुए नवंबर 25, 2018 को शोपियाँ के हीरापुर गांव में आतंकवादियों के साथ एक भीषण मुठभेड़ में कई गोलियां लगाने बाद अंततः भारत माँ के इस सपूत ने शहादत का चोला ओढ़ लिया।

शहीद वानी की पत्नी महज़बीं ने कहा, “उनके शहीद हो जाने की ख़बर जानने के बाद भी मैं रोई नहीं। एक अंदरूनी संकल्प था, जिसने मुझे रोने नहीं दिया।”

पेशे से शिक्षिका और 2 बच्चों की माँ महज़बीं ने कहा कि नज़ीर का प्यार एवं निडर व्यक्तित्व, युवाओं को अच्छा नागरिक बनने की दिशा में प्रोत्साहित करने की प्रेरणा देता रहेगा।


विकास दर 8.5% तक जाने की संभावना: आर्थिक सलाहकार परिषद

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) ने 25 जनवरी, 2019 को एक बैठक की और अर्थव्यवस्था की स्थिति का जायजा लिया। परिषद ने इस बात का समर्थन किया कि अर्थव्यवस्था के वृहत् -अर्थव्यवस्था के मूलभूत घटक सुदृढ़ स्थिति में हैं। परन्तु चुनौतियाँ बनी हुई हैं और इनमें से कई चुनौतियों की प्रकृति संरचनात्मक है।

हालाँकि विश्व-आर्थिक विकास की संभावनाएँ, विशेष कर विकसित अर्थव्यवस्थाओं में, बहुत आशाजनक नहीं हैं लेकिन उभरती अर्थव्यवस्थाओं में पर्याप्त गति से विकास हो रहा है। वैश्विक घटनाक्रमों से भारत अछूता नहीं है। अगले कुछ वर्षों तक भारत की विकास दर 7-7.5% के बीच रहने की संभावना है जो दुनिया की सबसे तेज विकास दरों में एक है। यदि संरचनात्मक समस्याओं को समाप्त करने के लिए सुधार के उपाय किये जाते हैं तो विकास दर में 1 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है। 

ईएसी-पीएम द्वारा विचार-विमर्श किये गये मुद्दों में कृषि समस्या, निवेश के रूझान (14वें वित्त आयोग द्वारा राज्यों को दिए गए निवेश सहित), वित्तीय सुदृढ़ीकरण, ब्याज दर प्रबन्धन, ऋण व वित्तीय बाजार आदि शामिल थे। परिषद ने यह महसूस किया कि कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव के बावजूद रिजर्व बैंक ने रूपये के विनिमय दर का बेहतर प्रबंधन किया है। अच्छी ख़बर यह है कि तेल उपयोग (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में जीवाश्म ईंधन का उपयोग) में गिरावट दर्ज की जा रही है।

ऐसे संकेत हैं कि वित्तीय बचत में तेजी आ रही है और निजी बैंक, सेवा क्षेत्र को ऋण उपलब्ध करा रहे हैं। वित्तीय क्षेत्र में सुधारों को और मजबूती दी जानी चाहिए। सरकार पहले से ही यह कार्य कर रही है। 

परिषद ने महसूस किया कि विदेश व्यापार में देखी जा रही संरक्षणवादी चुनौती को समर्थक नीतिगत हस्तक्षेपों के माध्यम से उलट दिया जाना चाहिए क्योंकि निर्यात की स्थिति बेहतर हुई है और अब यह सकारात्मक बदलाव दिखाई पड़ने लगा है। कृषि क्षेत्र की चुनौतियों को आसान ऋण उपलब्धता और मनरेगा जैसे रोजगार कार्यक्रमों के माध्यम से दूर किया जा सकता है।

परिषद (ईएसी-पीएम) का दृढ़ विश्वास है कि वित्तीय सुदृढ़ीकरण लक्ष्य से किसी भी प्रकार का विचलन नहीं होना चाहिए लेकिन सामाजिक क्षेत्र में भी निरंतर जो दिया जाना चाहिए। जिन चुनौतियों पर ध्यान देने की आवश्यकता है उनमें कृषि क्षेत्र में सुधार, एमएसएमई क्षेत्र, कौशल विकास, ऋण से संबंधित मुद्दे, डिजिटल भुगतान, बैंकिंग क्षेत्र में सुधार आदि शामिल हैं। सुदढ़ वृहत् आर्थिक प्रबंधन के लिए सरकार और आरबीआई को बधाई दी जानी चाहिए और इस प्रयासों को जारी रखा जाना चाहिए। 

साभार: पत्र सूचना कार्यालय

विजय माल्या के स्विस बैंक की जानकारी स्विस सरकार ने दी CBI को

स्विस सरकार ने भगौड़े विजय माल्या की स्विस बैंक से संबंधित जानकारियाँ सीबीआई को सौंप दी है। हालाँकि, सरकार के इस कदम को रोकने के लिए विजय माल्या ने स्विट्ज़रलैंड के उच्च न्यायालय का रुख किया और भारत में सीबीआई से जुड़े घोटालों के बारे में बताया।

कुछ समय पहले सीबीआई ने स्विस अधिकारियों से इस बात का अनुरोध किया था कि वो भगौड़े व्यापारी विजय माल्या के चार बैंक अकाउंट में आने वाले फंड को रोक दें।

जिसके बाद जेनेवा के सरकारी वकील ने न केवल सीबीआई द्वारा किए इस अनुरोध का 14 अगस्त 2018 को पालन किया है बल्कि माल्या के अन्य तीन बैंक अकाउंट की जानकारियों को भी साझा किया है। साथ ही उन पाँच कंपनियों की भी जानकारी दी है जिनका संबंध माल्या से है।

इन पाँच कंपनियों में लेडीवॉक इंवेस्टमेंट, रोज़ कैपिटल वेंचर्स, कॉन्टीनेंटल एडमिनिस्ट्रेशन सर्विसज़, फर्स्ट यूरो कमर्शियल इन्वेस्टमेंट्स और मॉडल सेक्योरिटी का नाम शामिल है। जिनकी जानकारी स्विस सरकार ने सीबीआई के साथ साझा की है।

इन कंपनियों ने स्विस कोर्ट की तरफ रुख़ करते हुए कहा है कि उनकी कंपनियों के अकाउंट वो अकाउंट नहीं थे जिसकी जानकारी सीबीआई द्वारा मांगी गई है तो फिर उनकी जानकारियाँ क्यों भेजी गई हैं।

इसके अलावा माल्या ने अपनी स्विस की कानूनी टीम की मदद से वहाँ के न्यायलय में सीबीआई को जानकारी देने के मामले पर सवाल उठाए हैं। माल्या का कोर्ट में कहना रहा कि भारत में पहले ही घोटालों से जुड़े मामलों पर गंभीर तनाव वाली स्थिति बनी हुई। क्योंकि सीबीआई के जिस अफसर को माल्या और राकेश अस्थाना के ख़िलाफ़ जाँच करनी थी वो खुद ही इस समय में भ्रष्टाचार के मामले में आरोपित है।

माल्या ने खुद के बचाव में यूरोपीय अदालत के अनुच्छेद 6 का हवाला देते हुए मानवाधिकारों के बारे में भी स्विस कोर्ट में बात की। माल्या ने अपने अधिकारों के बारे में बात करते हुए कहा कि जब तक वो दोषी नहीं साबित होते तबतक उनके अधिकारों के प्रति निष्पक्ष सुनवाई हो।

लेकिन, आपको बता दें कि संघीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 26 और 29 नवंबर, 2018 लिए फ़ैसलों ने माल्या की बात को ख़ारिज कर दिया और कंपनियों द्वारा अपील को अस्वीकार कर दिया और प्रत्येक असफल अपीलकर्ता को 2,000 स्विस फ़्रैंक (1.4 लाख रुपए) का भुगतान करने का आदेश दिया।

AltNews के संस्थापक प्रतीक सिन्हा, फ़ैक्ट-चेक की आड़ में कितना गिरोगे?

साइबर अपराध से संबंधित अगर भारतीय कानून की बात की जाए तो इसमें दो राय नहीं कि यह अस्पष्ट है। ख़ासतौर से जब ऑनलाइन उत्पीड़न (Online Harassment) और स्टॉकिंग की बात आती है। ऑनलाइन उत्पीड़न का ऐसा ही एक रूप डॉक्सिंग (Doxxing) है। डॉक्सिंग का अर्थ है, आमतौर पर दुर्भावनापूर्ण इरादे से किसी को नुकसान पहुँचाने के लिए, इंटरनेट पर निजी या व्यक्तिगत पहचान से जुड़ी जानकारी की ख़ोज और उसे पब्लिक करना या पब्लिश करना।

इसके पीछे की सोच पब्लिकली किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति की छवि धूमिल करना, उन्हें परेशानी की हद तक शर्मिंदा या उनकी ओर बुरी नियत से लोगों को उकसाना है। उन्हें ट्रोल करना है। अक्सर इसका इस्तेमाल किसी की प्रतिष्ठा को ऑनलाइन बर्बाद करने या यहाँ तक कि शारीरिक नुकसान पहुँचाने के लिए भी किया जाता है। ‘रिवेंज’ का यह रूप ज़्यादा हानिकारक है क्योंकि इसमें तत्काल उसकी कुत्सित मंशा पूरी होती नज़र आती है। अक्सर, इसके परिणाम बड़े भयावह और दूरगामी होते हैं।

25 जनवरी को, ‘AltNews’ के सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा (Pratik Sinha) ने कुछ व्यक्तियों के न सिर्फ़ नाम का खुलासा किया बल्कि उनकी निजी जानकारियाँ भी पब्लिक कर दी। ये सभी लोग इंटरनेट पर गुमनाम रह सकते थे। ऐसा करने के लिए ‘राइट टू प्राइवेसी’ के तहत ये सभी स्वतंत्र हैं।

ऊपर जिन लोगों को उन्होंने दिखाया है वे व्यंग्य और वायरल कंटेंट वेबसाइट (satire and viral content website) ‘hmpnews’ और ‘thefauxy’ चलाते हैं। सभी ने अपनी वेबसाइटों पर पर्याप्त खुलासे किए हैं कि उनकी वेबसाइट पर कंटेंट की प्रकृति सटायर (व्यंग्य) है।

सिन्हा ने फिर एक और हास्य और पैरोडी अकॉउंट स्क्विंटनॉन (humour and parody account, SquintNeon) से जुड़ी निजी जानकारी सार्वजनिक कर दी।

ऊपर उल्लेखित सभी लोगों ने अपनी पहचान गुप्त रखी थी। लेकिन प्रतीक सिन्हा, जो वास्तव में कानून से जुड़ा व्यक्ति (law enforcement personnel) नहीं है और न ही किसी कानून प्रवर्तन एजेंसी (law enforcement agency) द्वारा अधिकृत है कि वो किसी की ऑनलाइन स्टॉकिंग करे और उनकी व्यक्तिगत पहचान का पता लगा कर उन्हें पब्लिक कर दे। फिर भी, सिन्हा ने, न सिर्फ़ उनकी व्यक्तिगत जानकारियाँ पब्लिक की बल्कि उनके ख़िलाफ़ ऑनलाइन भीड़ को भड़काया और उनको लीड भी किया।

द वायर (The Wire) की पत्रकार रोहिणी सिंह (Rohini Singh) भी निजी व्यक्तियों के बारे में जानकारी प्राप्त करने को लेकर बहुत ही एक्साइटेड रहती हैं और चाहती हैं कि काश सिन्हा उस व्यक्ति की तस्वीर भी निकालकर पब्लिक कर देतें।

एक पल के लिए सोंचे कि ऊपर की तरह डॉक्स किए गए लोग महिलाएँ होती तो! फिर भी ऐसे किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़ ऑनलाइन ट्रोलर को उकसाना। इतना ही नहीं, ये गोपनीयता के चैंपियन और स्टॉकिंग के क्रूसेडर उनकी तस्वीरों को भी पब्लिक करने की माँग कर रहे हैं। आपको यह देखने के लिए बहुत दूर नहीं जाना होगा कि वह एक महिला थी जिसकी पहचान बताई गई थी।

क्या होता? अगर सिन्हा ने उस व्यक्ति की जानकारी बाहर कर दी होती जिसे जान से मारने और बलात्कार की धमकी दी जा रही है? और क्या यह वास्तव में ठीक है? वो पुरुष हैं जिनकी पहचान उजागर की गई है!

जिस व्यक्ति की पहचान सिन्हा ने पहले बताई थी, उनमें से एक अशांत राज्य से है। सिन्हा के रहस्योद्घाटन ने उन्हें एक ‘मार्क्ड मैन’ (जिसकी व्यक्तिगत पहचान से लोग वाकिफ़ हो चुके हैं) बना दिया। अर्थात एक तरह से उसकी जान जोख़िम में डाल दी।

कौन ज़िम्मेदारी लेगा यदि जिसकी पहचान ऊपर बताई गई है, ऐसे किसी भी व्यक्ति के साथ कुछ अनहोनी हो जाए तो? जानकारी के लिए बता दूँ कि वे किसी सार्वजनिक पद पर नहीं है। इसलिए, उनकी व्यक्तिगत पहचान से किसी को भी कोई वास्ता नहीं होना चाहिए।

इससे भी बुरी बात क्या हो सकती है कि सिन्हा ‘गुमनाम अकाउंट’ को पब्लिक करने के लिए ‘फ़ैक्ट-चेकिंग’ को ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहा है। उसने निजी पहचान को इसलिए पब्लिक कर दिया क्योंकि वह ‘वायरल मिसइन्फॉर्मेशन’ की जाँच कर रहा था। जबकि लिखने वाले ने ख़ुद स्वीकार किया था कि यह व्यंग्य था। हुआ ये कि, कुछ लोगों ने व्यंग्य लिखा। यह वायरल हो गया। व्यंग्य शायद इतना वास्तविक लगा कि लोगों ने ग़लती से इसे सच समझ लिया। और शूरवीर, प्रतीक सिन्हा ग़रीबों के एसीपी प्रद्युम्न की भूमिका में कीबोर्ड लेकर ‘जाँच’ में जुट गए। सिन्हा ने फ़ैक्ट-चेक की आड़ में निजी व्यक्तियों की वास्तविक पहचान ढूँढकर पब्लिक कर दिया। व्यंग्य लिखने वालों का गुनाह सिर्फ़ यह है कि उनका व्यंग्य ज़बरदस्त और मारक है जो शायद प्रतीक सिन्हा की समझ से बाहर है।

यह पहली बार नहीं है जब सिन्हा ने किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत पहचान को पब्लिक किया है। इससे पहले, एक ट्विटर उपयोगकर्ता ने गोपनीयता भंग करने के लिए सिन्हा के ख़िलाफ़ मुक़दमा भी दर्ज़ कराया था और व्यक्तिगत छवि को नुक़सान पहुँचाने के एवज़ में 5 करोड़ रुपए का दावा ठोका था।

इससे पहले प्रतीक सिन्हा ने अपनी स्टॉकर टेन्डेन्सी का परिचय देते हुए (जिस पर अगर सिन्हा ने लग़ाम नहीं लगाई तो ख़तरनाक आपराधिक जुर्म में भी तब्दील हो सकती है) राहुल रौशन (Rahul Roushan) से जुड़ी निजी जानकारियों को पब्लिक कर दिया था। टॉर्गेटिंग और स्टॉकिंग की सीमा लाँघते हुए प्रतीक सिन्हा ने उनकी पत्नी के साथ ही मात्र दो-माह छोटी बच्ची से जुड़ी निजी जानकारियाँ भी पब्लिक कर दी थी।

सिन्हा एकमात्र ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जिन्होंने ऐसी आपराधिक प्रवृत्ति प्रदर्शित की है। ट्रोल स्वाति चतुर्वेदी ने एक पुस्तक लिखी है जिसमें निजी व्यक्तियों की निजी जानकारी को शामिल किया गया है। उन सबको ‘ट्रोल्स’ के रूप में लेबल किया गया है जो प्रधानमंत्री मोदी का समर्थन करते हैं।

स्वाति चतुर्वेदी, OpIndia (English) की सह-संस्थापक को डॉक्स करते हुए, उनकी व्यक्तिगत जीवन के पीछे पड़ गई थी।

बज़फीड (BuzzFeed) के एक अन्य तथाकथित पत्रकार, प्रणव दीक्षित ने भी एक महिला को ऑनलाइन स्टॉक किया। चूँकि वो उनसे असहमत थी, इसलिए प्रणव दीक्षित ने उसका लिंक्डइन प्रोफ़ाइल ढूँढा और एक ईमेल लिखकर उसके नियोक्ताओं से पूछा कि क्या वे जानते हैं कि उनका एक कर्मचारी उनसे असहमत है। फिर भी कमाल की बात ये है कि ये सभी धुरंधर गोपनीयता के चैंपियन हैं।

अभी तक कुछ तथाकथित पत्रकार ही उन लोगों को परेशान करते हैं जो उनसे असहमत थे, इतना ही काफ़ी नहीं था। तृणमूल कॉन्ग्रेस के सांसद डेरेक ओ’ब्रायन (Derek O’Brien) ने अपने संसदीय विशेषाधिकार का फ़ायदा उठाते हुए, उन ट्विटर उपयोगकर्ताओं को ज़लील करने लगे जो उनसे असहमत थे।

साइबर क्राइम की बात होने पर कानून और स्पष्ट कानूनी ढाँचे के अभाव में, ऐसे लोगों का ऑनलाइन स्टॉकिंग और उत्पीड़न जैसे अपराधों में शामिल होने के बाद भी बच निकलना आसान हो जाता है। ख़ासकर, तब जब उन्हें एक निश्चित तबके से संरक्षण प्राप्त होता है। इंटरनेट के इस युग में, जब कोई भी जानकारी महज़ कुछ ही क्लिक में हासिल हो जाने वाली हो तो ऐसे दौर में, डेटा का उपयोग एक हथियार के रूप में करते हुए, ऐसे अपराधी मानसिकता के लोग निजी व्यक्तियों को बहुत अधिक नुक़सान पहुँचा सकते हैं। इन पर नियंत्रण ज़रूरी है।

केंद्र सरकार के ‘खेलो इंडिया प्रोग्राम’ ने बदल दी इन 3 बॉक्सरों की जिंदगी

आज हम आपको तीन ऐसे बॉक्सरों की कहानी बताने जा रहे हैं, जिनकी केंद्र सरकार के ‘खेलो इंडिया यूथ गेम्स’ ने ज़िंदगी बदल दी। कभी पिता को गार्ड की नौकरी करता देख और माता को मजदूरी में हाथ बटाँने वाले छात्र-छात्राओं को अब 8 सालों तक अपने सपने को उड़ान देने के लिए केंद्र सरकार उन्हें 5 लाख प्रति वर्ष तक की मदद उपलब्ध कराएगी।

पुणे के आकाश ने फाइनल में बाज़ी मारकर पिता की आँखे नम कर दी

बड़ा अजीब लगता है अपना देश छोड़कर पराए देश में अपना आशियाना बनाना। 21 साल पहले नेपाल से भारत के पुणे में आए आकाश के पिता गार्ड की नौकरी करते हैं। यहाँ आने के पीछे उनका बस एक ही सपना था कि वो अपने बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल कर सकें।

दिन-रात एक करके उन्होंने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और बेटे को आगे बढ़ाते रहे। यही कारण रहा कि आकाश ने भी महाराष्ट्र में ‘खेलो इंडिया यूथ गेम्स’ में अंडर-17 57 किग्रा वर्ग के फाइनल में हरियाणा के अमन दुहान को हराकर उनके सपने को साकार कर दिया।

अपने परिवार और कोच उमेश जगदाले के साथ आकाश गोरखा

विदेश में भी मनवा चुके हैं अपने हुनर का लोहा

2018 सर्बिया में आयोजित जूनियर बॉक्सिंग चैंपियनशिप में आकाश ने रजत पदक अपने नाम किया था। जबकि 2017 में वे दूसरे स्थान पर रहे थे। आकाश के बचपन के कोच उमेश जगदाले कहते हैं, “वह मैदान पर बहुत तेज था, मुझे लगा कि वह एक अच्छा बॉक्सर बना सकता है और उसने मुझे सही साबित किया।”

बता दें कि जगदाले ने आकाश को 2010 से प्रशिक्षित करना शुरू किया था। वहीं आकाश ने कहा कि, “सर जगदाले मेरा मार्गदर्शन करने के लिए हमेशा मौजूद रहते हैं।” आकाश के पिता कहते हैं, “मैं अपने बेटे के खेल संतुष्ट हूँ। अब मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ।”

चौकीदार की बिटिया ने जीता गोल्ड मेडल

‘खेलो इंडिया यूथ गेम्स’ में हिमाचल की बेटी विनाक्षी ने वर्ल्ड चैंपियन को हराकर गोल्ड मेडल जीतते हुए अपने पिता का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया। जनजातीय क्षेत्र किन्नौर की विनाक्षी ने महाराष्ट्र में खेले गए फाइनल मुकाबले में हरियाणा की जूनियर बॉक्सिंग वर्ल्ड चैंपियन रह चुकी शशि चोपड़ा को 57 किलोग्राम भार वर्ग में हारकर ये उपलब्धि हासिल की। बता दें कि विनाक्षी के पिता जगन्नाथ चौकीदार की नौकरी करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं लेकिन बेटी को आगे बढ़ाने में वो हमेशा उसके सपनों के साथ खड़े रहे हैं।

7वीं क्लास से शुरू किया था बॉक्सिंग खेलना

विनाक्षी ने 7वीं क्लास से बॉक्सिंग की शुरूआत की थी और पाइका खेलों में साल 2016 में सिल्वर मेडल जीता था। उन्होंने साल 2018 में यूथ नेशनल में भी रजत पदक जीत कर अपने प्रदेश का मान बढ़ाया था। यही नहीं 2018 में महाराष्ट्र में हुए अंडर-19 स्कूल नेशनल में भी विनाक्षी गोल्ड जीत चुकी हैं।

तेज बुखार और तपन भी नहीं तोड़ पाया शिवानी का हौसला

बदन में तेज बुखार और पेट दर्द से तड़प रही शिवानी ने हार नहीं मानी और रिंग में उतरने का फैसला लिया। शिवानी ने 54 किग्रा भार वर्ग में रजत पदक अपने नाम किया। 17 साल की शिवानी जब गेम खेलने पुणे पहुँचीं उन्हें काफी तेज बुखार था कोच और साथी खिलाडियों ने सलाह दी कि बॉक्सिंग रिंग में न उतरे।

बावजूद इसके शिवानी ने सभी की बातों को अनसुना करते हुए दो अंतरराष्ट्रीय स्तर की बॉक्सरों को पटखनी देते हुए फाइनल में जगह बना ली। हालाँकि, अंतिम मुकाबले में उनके शरीर ने उन्हें धोखा दे दिया और उन्हें हार का सामना करते हुए रजत पदक से संतोष करना पड़ा।

शिवानी तेज बुखार और पेट दर्द के बाद भी हार नहीं मानीं और रिंग में उतरी

माता-पिता भी कर रहे हैं संघर्ष

शिवानी की माँ पूनम मजदूरी करती हैं, जबकि पिता स्वतंत्र कुमार गार्ड की नौकरी छोड़ बॉक्सरों की मालिश का काम करते हैं। तंगहाली और तमाम परेशानियों के बावजूद, उन्होंने बेटी को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया और आज वह निर्णय सही साबित हुआ।

शिवानी कहती हैं, “हरियाणा में सर्दी थी, पुणे में मौसम गर्म था इसलिए वहाँ पहुँचते ही बुखार हो गया और पेट में दर्द भी। इस स्थिति में मेरे लिए खेल पाना कठिन था। लेकिन, मैंने हार नहीं मानी और नेशनल चैंपियन उत्तराखंड के पिथौरागढ़ की सपना और अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर दिल्ली की रिया टोकस को हराकर फाइनल में जगह बनाई। फाइनल मुकाबले में पेट दर्द बढ़ गया था, फिर भी मैंने अंतरराष्ट्रीय स्तर की बॉक्सर, मध्यप्रदेश की दिव्या, को कड़ी टक्कर दी, लेकिन हार गई। मुझे स्वर्ण पदक नहीं जीतने का मलाल है।”

AMU: ‘तिरंगा यात्रा’ के आयोजन पर छात्रों को नोटिस दिए जाने पर BJP सांसद ने प्रकाश जावड़ेकर को लिखा पत्र

अलीगढ़ के बीजेपी सांसद सतीश गौतम ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखा है कि कैंपस में ‘तिरंगा यात्रा’ के आयोजन के लिए 2 छात्रों को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अधिकारियों द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। अपने पत्र में बीजेपी सांसद ने लिखा कि गणतंत्र दिवस के इस शुभ अवसर पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय कैम्पस में देशभक्ति से ओत-प्रोत तिरंगा यात्रा का आयोजन किया जाना था। इसके लिए प्रशासन ने इस आयोजन को विरोधी करार देते हुए उन सभी छात्रों को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया।

इस बाबत बीजेपी सांसद सतीश गौतम ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय प्रशासन से स्पष्टीकरण माँगे जाने का अनुरोध किया है। साथ ही सवाल उठाते हुए उन्होंने पत्र में में यह भी लिखा कि क्या भारत के किसी भी भूभाग में देशभक्ति का कार्यक्रम आयोजित किया जाना असंवैधानिक है?

इससे पहले भी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय विवादों में आ चुका है जब छात्रों को तिरंगा यात्रा और वंदे मातरम् के नारे के लिए नोटिस दिया गया था।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के प्रॉक्टर ने तिरंगा यात्रा निकालने और वन्दे मातरम् का नारा लगाने पर 6 छात्रों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। जिन छात्रों को नोटिस जारी किया गया है, उनमें छात्र नेता ठाकुर अजय सिंह और सोनवीर शामिल हैं। तिरंगा यात्रा का नेतृत्व करने वाले अजय बरौली के भाजपा विधायक ठाकुर दलवीर सिंह के पौत्र हैं। AMU ने छात्रों पर निम्न गंभीर आरोप लगाए हैं-

  • बिना अनुमति यात्रा निकालना
  • यूनिवर्सिटी कैंपस में शैक्षणिक माहौल को ख़राब करना
  • क्लास में पढ़ रहे छात्रों को बहका कर रैली में ले जाना
  • यात्रा में असामाजिक तत्वों का शामिल होना
  • AMU को बदनाम करना, और
  • छात्रों के बीच भय का माहौल पैदा करना
AMU द्वारा छात्रों को थमाई गई नोटिस की कॉपी।

नोटिस मिलने के बाद छात्रों ने प्रॉक्टर मोहसिन ख़ान की तुलना जालियाँवाला बाग़ सामूहिक हत्याकांड को अंजाम देने वाले अंग्रेज अधिकारी जनरल डायर से की है। छात्रों ने कहा कि देशभक्ति के नारे लगाने और तिरंगा लहराने के लिए आज़ाद भारत में कहीं भी अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। उन्होंने AMU में हुई इन घटनाओं का जिक्र कर प्रॉक्टर को घेरा-

  • आतंकी बशीर वानी के भारतीय सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारे जाने के बाद छात्रों ने उसके समर्थन में आज़ादी वाले नारे लगाए।
  • कैंपस में सामान्य वर्ग को आरक्षण देने सम्बन्धी बिल की कॉपी को जलाया गया।
  • जातिगत संघर्ष को बढ़ावा देने वाले सेमिनार आयोजित किए गए।

सर्वे में जनता ने कहा- अबकी बार, फिर नरेंद्र मोदी सरकार

देश में लोकसभा चुनाव होने में मात्र 2 महीने बाकी हैं। सभी राजनीतिक दल देश में सरकार बनाने की हर कोशिश में लगे हुए हैं। विभिन्न स्रोतों द्वारा 2019 में होने वाले आम चुनाव के सर्वे भी जनता के मिज़ाज का अनुमान लगाने के किए जा रहे हैं। 2019 में आम चुनाव से पहले किए गए ‘फ़र्स्टपोस्ट नेशनल ट्रस्ट सर्वे’ (Firstpost National Trust Survey) के परिणाम बता रहे हैं कि जनता की नज़र में नरेंद्र मोदी आज भी सबसे भरोसेमंद नेता हैं, जबकि राहुल गाँधी उनसे बहुत पीछे चल रहे हैं।

सर्वे के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नरेंद्र मोदी और बीजेपी के नेतृत्‍व वाले नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) को जनता की पहली पसंद माना जा रहा है। इस सर्वे के अनुसार एनडीए, विपक्षी महागठबंधन से बहुत आगे है।

इस सर्वे में 52.8% जनता पीएम नरेंद्र मोदी को सर्वाधिक भरोसेमंद नेता मानती है। वहीं, कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी पर केवल 26.8% जनता ने ही विश्वास जताया है।

‘फ़र्स्टपोस्ट नेशनल ट्रस्ट सर्वे’ द्वारा जारी परिणामों के लिए देशभर के 23 राज्‍यों के 285 जिलों के अंतर्गत आने वाले लगभग 60% संसदीय क्षेत्रों को शामिल किया गया है। इसमें 57 अलग-अलग सामाजिक-सांस्‍कृतिक इलाकों के 690 गाँवों और 291 शहरी इलाकों के 34,470 लोगों से बात की गई।

इस सर्वे के अनुसार देश में नरेंद्र मोदी सबसे विश्‍वसनीय नेता हैं और उन्‍हें सर्वे में शामिल 52.8% लोगों ने पसंद किया है। ये लोग नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। वहीं कॉन्ग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गाँधी को केवल 26.9% लोग प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं।

हिंदीभाषी राज्‍यों में भाजपा पर लोगों ने सबसे ज्‍यादा भरोसा जताया है। हाल ही में जिन 3 राज्‍यों में भाजपा पार्टी हारी थी, वहाँ पर भी बीजेपी आने वाले लोकसभा चुनावों में विपक्ष पर भारी है। हालाँकि, दक्षिण भारत में भाजपा कमज़ोर है।पश्चिम में भाजपा का प्रदर्शन उम्‍मीद से बहुत कम रहा है।

वहीं सर्वे में शामिल 85% लोगों ने धर्म या जाति की जगह विकास के नाम पर वोट देने पर स‍हमति जताई।