Tuesday, October 1, 2024
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को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ: प्रयागराज की महिमा भला कौन कह सकता है

तीर्थराज प्रयागराज की महिमा जानने से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि ‘तीर्थयात्री’ कौन होता है। तीर्थ शब्द ‘तृ’ धातु से निर्मित हुआ है, जिसका अर्थ है तैरना। यात्रा शब्द की उत्पत्ति ‘या’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है कहीं गमन करना या जाना। इस प्रकार तीर्थयात्री वह है जो जीवन रूपी भवसागर को तैरकर पार कर जाता है।

प्रयाग शब्द ‘प्र’ और ‘यज्’ धातु के योग से बना है। यज् धातु से निर्मित याग शब्द के कई अर्थ निकलते हैं जैसे- यज्ञ के द्वारा देवता की पूजा करना, संगति करना या दान देना। ऐसा स्थान जहाँ कोई वृहद यज्ञ किया गया हो, वह प्रयाग है। पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी ने यहाँ यज्ञ किया था।

प्रयागराज को तीर्थों का राजा कई कारणों से कहा गया है। पद्म पुराण के अनुसार: “ग्रहाणां च यथा सूर्यो नक्षत्राणां यथा शशी। तीर्थानामुत्तमं तीर्थे प्रयागाख्यमनुत्तमम्।” अर्थात- जैसे ग्रहों में सूर्य तथा नक्षत्रों में चन्द्रमा हैं, वैसे ही तीर्थों में प्रयाग सर्वोत्तम है।”

कुछ दिनों पहले शासन ने इलाहाबाद कहे जाने वाले नगर का नाम आधिकारिक रूप से प्रयागराज कर दिया। इसे नाम का परिवर्तन नहीं कहा जा सकता। नगर का नाम बदला नहीं गया है। कुछ सौ वर्षों से लोगों में जो भ्रम था, बस वही दूर किया गया है।

नगर का नाम प्रयाग तो आदिकाल से है। पुराणों में प्रयाग नगरी के नामकरण और माहात्म्य के वर्णन तो हैं ही, तीर्थराज प्रयाग की महिमा गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड में भी बताई है। गोस्वामी जी ने प्रयागराज को परमार्थ प्रदान करने वाले एक राजपुरुष के रूप में चित्रित किया है।

अयोध्याकाण्ड का प्रसंग इस प्रकार है कि जब भगवान राम सीताजी और लक्ष्मण जी सहित वनवास के लिए निकले तो सुमंत्र को विदा करने के पश्चात् उन्होंने नाव से गंगा पार की, केवट को भक्ति का वरदान दिया, गंगा जी से आशीर्वाद लिया और प्रयाग पहुँचे।

गोस्वामी जी कहते हैं: “तेहि दिन भयउ बिटप तर बासू, लखन सखाँ सब कीन्ह सुपासू, प्रात प्रातकृत करि रघुराई। तीरथराजु दीख प्रभु जाई” अर्थात्- उस दिन सभी ने वृक्ष के नीचे विश्राम किया, जिसकी पूरी व्यवस्था लक्ष्मण जी और सखा गुह ने कर दी। प्रातःकाल नित्यक्रिया से निवृत्त होने के पश्चात् प्रभु ने ‘तीर्थराज’ के दर्शन किए।

अभी वे नगर के भीतर नहीं गए हैं, बाहर से ही वर्णन किया जा रहा है। प्रयाग का वर्णन करते हुए गोस्वामी जी लिखते हैं: “सचिव सत्य श्रद्धा प्रिय नारी, माधव सरिस मीतु हितकारी।“ अर्थात्- यह जो तीर्थों का राजा है, इसके सचिव (मंत्री आदि) का नाम सत्य है। यहाँ नगर को ही राजा मान लिया गया है, जिसके मंत्रीगण सत्यनिष्ठा से सुशोभित हैं।

ऐसी उपमा देकर गोस्वामी जी यह बता रहे हैं कि मृत्यु और मोक्ष ही परम सत्य नहीं है (जो काशी में आकर सिद्ध होता है), अपितु तीर्थों के दर्शन से पापों का निवारण होता है यह भी अटल सत्य है, इसीलिए तो ‘तीर्थों के राजा’ के मंत्री ‘सत्य’ हैं।

यहाँ गोस्वामी जी कर्म करने की प्रेरणा देते हैं। व्यक्ति पापों का नाश तभी करना चाहेगा जब या तो उसे पुनर्जन्म लेना होगा अथवा इसी जन्म में सत्कर्म करने होंगे। इस प्रकार तीर्थराज प्रयाग कर्मों का वह मार्ग प्रशस्त करते हैं जिसका अनुगमन कर व्यक्ति काशी पहुँचता है और यहाँ देहत्याग कर मोक्ष की प्राप्ति करता है।

आज भी देखिए तो प्रयाग और काशी को जोड़ने वाला राजमार्ग एकदम सीधा है। यही नहीं गोस्वामी जी के अनुसार तीर्थराज की अर्धांगिनी ‘श्रद्धा’ हैं क्योंकि श्रद्धा के बिना किसी भी तीर्थ के दर्शन का फल नहीं मिलता। तीर्थ तो छोड़िए दैनिक पूजा भी यदि आप श्रद्धा के बिना करते हैं तो वह व्यर्थ ही है।

आजकल लोग श्रद्धाविहीन होकर तीर्थस्थलों पर पिकनिक मनाने, एडवेंचर करने चले जाते हैं फिर जब प्राकृतिक आपदा के शिकार होते हैं तब भगवान् से रोष प्रकट करते हैं। यह बड़ी विचित्र बात है! जब यात्रा प्रारंभ करने से पूर्व मन में श्रद्धा नहीं थी तो गिरने पड़ने पर रोष कैसा? इसीलिए गोस्वामी जी ने सैकड़ों वर्ष पूर्व ही बता दिया था कि तीर्थ यात्रा पर जाओ तो मन में श्रद्धा अवश्य होनी चाहिए।

यह तो बात हुई कि राजा के मंत्री, रानी और मित्र सलाहकार आदि कैसे हैं। आगे गोस्वामी जी तीर्थराज की संपन्नता के बारे में बताते हैं: “चारि पदारथ भरा भँडारू। पुन्य प्रदेस देस अति चारू।“ अर्थात्- यह ऐसा पुण्य प्रदेश है, जो चारों पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) से परिपूर्ण है। यहाँ पदारथ का अर्थ पुरुषार्थ है।

ये चारों पुरुषार्थ मनुष्य के जीवन का लक्ष्य निर्धारित करते हैं। धर्म का अनुसरण हमें किसी भी काल परिस्थिति में कर्तव्यनिष्ठ बनाता है। आर्थिक संपन्नता हमें दैहिक सौष्ठव, पारिवारिक स्थिरता तथा सामाजिक स्वीकार्यता प्रदान करती है। काम हमें जीवन में आगे बढ़ने को प्रेरित करता है। इन तीनों की सिद्धि के पश्चात् मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं।

तीर्थराज प्रयाग ऐसे राजा हैं, जिनके दर्शन से इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। सूक्ष्म दृष्टि डाली जाए तो देश की उन्नति में भी ये चारों पुरुषार्थ सहायक हैं क्योंकि व्यक्ति का मन यदि इन पुरुषार्थों को साध ले तो अच्छा नागरिक बन सकता है। मन से मानव बनता है, मानव से समाज और देश का उत्कर्ष समाज के उत्थान में निहित है।

तीर्थराज की संपन्नता का बखान करने के पश्चात् गोस्वामी जी यह बताते हैं कि प्रयागराज का सुरक्षा घेरा कैसा था: “छेत्र अगम गढ़ु गाढ़ सुहावा। सपनेहुँ नहिं प्रतिपच्छिन्ह पावा, सेन सकल तीरथ बर बीरा। कलुष अनीक दलन रनधीरा।“ अर्थात्- यह किले जैसा क्षेत्र अतीव दुर्गम है। यह ऐसा गढ़ (दुर्ग) है, जिसे स्वप्न में भी शत्रु जीत नहीं सकते। यहाँ शत्रु का अभिप्राय पाप से है।

प्रयागराज को कोई विधर्मी पापी दीर्घकाल तक जीत कर नहीं रख सकता। इसका प्रमाण तो उत्तर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री योगी जी ने ही दे दिया। चार सौ वर्षों से अधिक समय तक अकबर ने प्रयागराज की आभा पर ‘इलाही’ पर्दा डाल रखा था। आज वह भ्रम दूर हुआ और स्वयं गोरक्षपीठाधीश्वर ने आधिकारिक रूप से प्रयागराज का नामकरण कर जनमानस को आलोकित किया।

प्रयाग के भीतर जितने भी तीर्थ हैं, वे इसके वीर सैनिक हैं जो बड़े रणधीर हैं और पाप की सेना को पराजित करने में सक्षम हैं। प्रयागराज का कुछ ऐसा ही वर्णन मत्स्य पुराण में मार्कण्डेय ऋषि युधिष्ठिर से करते हैं। वे कहते हैं कि प्रयाग में साठ हजार वीर धनुर्धर गंगा की रक्षा करते हैं तथा सात घोड़ों से जुते हुए रथ पर चलने वाले सूर्य यमुना की देखभाल करते हैं।

इसके अतिरिक्त इंद्र, भगवान विष्णु और महेश्वर भी इसकी रक्षा करते हैं। यह ऐसा तीर्थ है, जहाँ पापी या अधर्मी व्यक्ति घुस ही नहीं सकता। प्रयागराज को कोई विधर्मी पापी दीर्घकाल तक जीत कर नहीं रख सकता।

इसका प्रमाण तो उत्तर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री योगी जी ने ही दे दिया। चार सौ वर्षों से अधिक समय तक अकबर ने प्रयागराज की आभा पर ‘इलाही’ पर्दा डाल रखा था। आज वह भ्रम दूर हुआ और स्वयं गोरक्षपीठाधीश्वर ने आधिकारिक रूप से प्रयागराज का नामकरण कर जनमानस को आलोकित किया।

आगे गोस्वामी जी बताते हैं कि गंगा यमुना सरस्वती का संगम ही तीर्थराज का सिंहासन है, अक्षयवट वृक्ष उनका छत्र है, गंगा जी और जमुना जी की तरंगे (लहरें) चँवर हैं, जिन्हें देखकर ही दुःख दरिद्रता का नाश हो जाता है: “संगमु सिंहासनु सुठि सोहा। छत्रु अखयबटु मुनि मनु मोहा।। चवँर जमुन अरु गंग तरंगा। देखि होहिं दुख दारिद भंगा।“

इसके आगे है: “सेवहिं सुकृति साधु सुचि पावहिं सब मनकाम। बंदी बेद पुरान गन कहहिं बिमल गुन ग्राम।।“ अर्थात् पुण्यात्मा साधू प्रयागराज की महिमा गाते हैं और वेद पुराण सब मिलकर उसके निर्मल गुणों का बखान करते हैं।

अंत में गोस्वामी जी कहते हैं: “को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ। कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ।। अस तीरथपति देखि सुहावा। सुख सागर रघुबर सुखु पावा।।“ अर्थात्- प्रयागराज की महिमा कौन कह सकता है भला? यदि पाप रूपी मदमस्त हाथियों का समूह सब कुछ नष्ट करने पर तुला हो तो सिंह रूपी तीर्थराज प्रयाग उनका वध कर सकता है। ऐसे तीर्थराज का दर्शन कर स्वयं प्रभु श्रीरामचन्द्रजी ने भी सुख पाया।

देशद्रोह क़ानून: थूक कर चाटने का नाम है कपिल सिब्बल

महान गीतकार सिब्बल के बोल

2016 की एक सुपर डुपर फ्लॉप फ़िल्म है- शोरगुल। ₹1 करोड़ की कमाई को भी तरस गई इस फ़िल्म के निर्माण के दौरान कपिल सिब्बल से इसके गाने लिखने का अनुरोध किया गया। खाली बैठे बेरोज़गार सिब्बल के पास जब यह प्रस्ताव आया, तब वो अपने काले कोट के साथ घर की एक खूँटी से टंगे हुए थे। चूँकि काम-धाम तो कोई था नहीं, कॉन्ग्रेस की सत्ता जा चुकी थी, अवॉर्ड वापसी का दौर भी जा चुका था और भारतीय राजनीति के साथ-साथ उनके घर में भी उनके लायक ऐसा कोई कार्य नहीं बचा था, तो उन्होंने ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। नरेंद्र मोदी रोज़गार गारंटी योजना के अंतर्गत भी वह अपने साप्ताहिक अवकाश पर थे। ऐसे में, मोदी के बारे में सोचते-सोचते कपिल सिब्बल ने गाने के बोल कुछ यूं लिखे-

तेरे बिना जी ना लगे, नजरों में भी तू ही दिखे…

कपिल सिब्बल के लिखे ये बोल आज भी उन पर फिट बैठते हैं। नरेंद्र मोदी के बिना उनका दिल नहीं लगता क्योंकि जब तक मोदी से जुड़ा कोई मुद्दा हाथ न आए, अपने काले कोट के साथ खूँटी पर टंगे होने के अलावे उनके पास कोई चारा नहीं बचता है। और उनकी नजरों में तो लगातार मोदी हैं ही, क्योंकि उनकी घड़ियाँ हमेशा इसी इन्तजार में बीतती हैं कि काश कोई ऐसा मुद्दा हाथ आ जाए, जिस पर खड़े-खड़े कुछ भी ABCD बोल कर 10 जनपथ की वफ़ादारी साबित कर सकें।

एक दशक पहले थूका, अब चाटा

ताजा मामला सिब्बल के थूक कर चाटने जैसा है। इस मामले में वो प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव जैसे महारथियों से सीधी टक्कर ले रहे हैं। उन्होंने इस बार कुछ अलग करने की सोच रखी है। इसी क्रम में सिब्बल ने ख़ुद को मीडिया के सामने खड़ा पाया। ये कॉन्ग्रेस नेताओं की विशेषता है। जैसे पीकू फिल्म में अमिताभ बच्चन किसी भी बात को पेट और कब्ज़ से जोड़ देते हैं, ठीक वैसे ही, कॉन्ग्रेस के नेतागण भी अपने घर में बिल्ली द्वारा फोड़े गए छीके के लिए भी मोदी को ही दोष देते हैं। बीवी से साधारण झगड़े के बाद भी वे खुद को कैमरे के सामने खड़ा हो कर मोदी को गाली देते हुए पाते हैं।

कॉन्ग्रेस के नेता कैमरे के सामने आते हैं या फिर कैमरा उनके पास आ जाता है- यह भी एक विवादित तथ्य है। भाजपा नेताओं की दिक्कत यह है कि कल को अगर कॉन्ग्रेस का कोई नेता यह बोल दे कि मोदीजी ने उनके घर की खिड़की का काँच तोड़ दिया है- तो भी मीडिया उसे इतना हाईलाइट करता है कि 10 भाजपा नेताओं को इसे झूठा साबित करने के लिए सबूतों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आना पड़ता है।

राम मंदिर मुद्दे पर सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के वकील सिब्बल और उनके बाकी के प्रतिद्वंदियों के बीच अंतर यह है कि बाकी आज थूकते हैं तो कल चाट लेते हैं, कपिल बाबू थोड़ा समय लेते हैं, लेकिन चाटते जरूर हैं। जैसे कि प्रशांत भूषण ने पहले आलोक वर्मा का विरोध किया और बाद में समर्थन में उतर आए। बाकी लोग इतना ज्यादा गैप नहीं रखते। कपिल सिब्बल ने 2011-12 में थूका और उस थूक को भलीभाँति सड़ाया और सात सालों बाद उसे चाट लिया। ताजा ख़बरों के अनुसार प्रशांत भूषण ने भी यह बयान ज़ारी कर दिया है कि सिब्बल इस थूक कर चाटने वाली इंडस्ट्री के अगले युवा सुपरस्टार हैं।

कार्टून बनाने पर सिब्बल के क़ानून के तहत जेल

असीम त्रिवेदी याद होंगे आपको। कॉन्ग्रेस के एक से एक भ्रष्टाचार के मामलों पर उन्होंने कई कार्टून बनाए थे। कॉन्ग्रेस नेताओं को ‘कार्टून’ हमेशा से पसंद नहीं रहे हैं, सिवाय एक के जिसका वो हुकूम बजाते हैं। ऐसे में त्रिवेदी के इस कृत्य को दिल पर लेते हुए उस समय देशद्रोह सहित तीन चार्ज लगा दिए गए। इसमें कपिल सिब्बल या कॉन्ग्रेस नेताओं की गलती नहीं है क्योंकि उनके लिए उनका देश, राज्य, जिला और पंचायत- सब उनकी पार्टी ही है और एक ही परिवार दशकों से वहाँ का प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, डीएम और मुखिया- सब है। आलम यह है कि कभी-कभी वो अपने नेताओं के असली फोटो को भी कार्टून समझ कर देशद्रोह के चार्ज ठोक दिया करते थे।

असीम त्रिवेदी की वेबसाइट को भी सिब्बल के क़ानून का प्रयोग करते हुए बंद कर दिया गया था। इसके अलावा कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता पूरे अन्ना हज़ारे आंदोलन, जिनसे असीम जुड़े थे, को देशद्रोह के तहत घसीटने को आतुर थे। आज अगर सिब्बल का क़ानून होता तो शायद वह ख़ुद भी जेल की हवा खा रहे होते क्योंकि कई लोग उनके चेहरे से ही ऑफेण्डेड हैं।

IT से IT तक का सफ़र

तत्कालीन IT मिनिस्टर कपिल सिब्बल ने 2010 में एक क़ानून (IT एक्ट, सेक्शन 66A) बनवाया, जिसमें इंटरनेट पर पोस्ट किए गए किसी भी कंटेंट से अगर कोई नेता ‘ऑफेंड’ हो जाता है, तो पुलिस उस पोस्टकर्ता को सलाख़ों के पीछे भेज सकती है। सालों तक इस क़ानून के खूब दुरुपयोग हुए लेकिन सिब्बल मिर्ज़ापुर के उस ‘*#@वाले चचा’ की तरह नाचते रहे। कुछ लोगों ने तो यहाँ तक दावा किया कि ममता बनर्जी ने एक बार खुद की असली फोटो को ही कार्टून समझ लिया था और इसे पोस्ट करने वाले बेचारे तृणमूल कार्यकर्ता को जेल जाना पड़ा था।

पहले सिब्बल का नाता IT डिपार्टमेंट से था, आज भी उनका नाता IT से ही जुड़ा हुआ है। वो अलग बात है कि वो IT इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी थी और ये वाली IT इनकम टैक्स है। सिब्बल के इस IT से IT तक के सफ़र में फ़र्क सिर्फ इतना है कि उस वाले IT में वो अकेले थे जबकि इस वाली IT में उनका पूरा परिवार भी शामिल है।

जब सिब्बल से 66A के बारे में सवाल पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि मैंने नहीं, संसद ने ये क़ानून बनाया है। उसके बाद से पत्रकार कैमरा और माइक लिए ‘संसद भवन’ की प्रतिक्रया का इंतज़ार कर रहे हैं लेकिन संसद भवन ने पत्रकारों से बातचीत करने से साफ़ इनकार कर दिया है। वैसे कॉन्ग्रेस का निर्जीव चीजों पर ठीकरा फोड़ने का पुराना इतिहास रहा है। दस सालों तक तो ऐसा समय चला था, जब सरकार के अच्छे कार्यों का श्रेय 10 जनपथ में बैठीं मोहतरमा के पास जाता था और जहाँ भी सरकार निष्फल साबित होती थी- उस मुद्दे का ठीकरा एक न बोलने वाले ‘जीव’ पर फोड़ दिया जाता था।

ताज़ा ख़बरों के अनुसार 66A को सिब्बल का क़ानून कहने से उनकी अपनी ही पार्टी उनसे ऑफेंड हो गई है और उन पर सिडिशन का चार्ज ठोकने वाली है। कॉन्ग्रेस का कहना है कि जिस देशद्रोह का चार्ज लगा कर उसने 45 साल पहले ही उत्पल दत्त जैसे महान कलाकार को जेल में ठूँस दिया था, उसके साथ आजकल के लड़के सिब्बल का नाम कैसे जोड़ा सकता है! कॉन्ग्रेस का कहना है कि देशद्रोह का चार्ज लगा कर लोगों को जेल भेजने के पुरोधा तो हम हैं, सिब्बल तो बस उसके IT सेल का हेड रहा है।

येक पे रहना, या घोड़ा बोलो या चतुर बोलो

अब उसी सिब्बल ने नरेंद्र मोदी रोज़गार गारंटी योजना के तहत देशद्रोह वाले क़ानून को हटाने की वकालत की है। उन्होंने इसे अंग्रेजों का क़ानून बताया है। महान गीतकार ने ANI को बयान देते हुए कहा कि इस क़ानून को हटा देना चाहिए। उनका बयान जायज है क्योंकि अगर ऐसा नहीं होगा तो वो ‘हार्डिक’ जैसों को डिफेंड कैसे कर पाएंगे। वैसे भी कॉन्ग्रेस में राजद्रोह का मतलब है उनके आकाओं का विरोध, देश का नहीं।

देशद्रोह को अंग्रेजों का क़ानून बताने वाले सिब्बल ने 2012 के एक इंटरव्यू में IT एक्ट के सेक्शन 66A का बचाव करते हुए कहा था कि ये कानून सही है क्योंकि ये UK, USA जैसे देशों के क़ानून पर आधारित है और उन्होंने उन देशों से ‘सटीक शब्द’ उधार लिए हैं।

सिब्बल के इस क़ानून का ख़ूब दुरुपयोग हुआ। एक बार कुछ यूँ हुआ कि किसी ने सोनिया गाँधी के ख़िलाफ़ इंटरनेट पर कुछ पोस्ट कर दिया। इसके बाद घबराए सिब्बल ने माइक्रोसॉफ्ट, फेसबुक, गूगल सहित पूरे इंटरनेट जगत को तलब कर लिया। सोनिया के ख़िलाफ़ कुछ लिखना अपराध है। कॉन्ग्रेस सरकारों के अनगिनत भ्रष्टाचारों पर कार्टून बनाना अपराध है। लेकिन जब ‘हार्डिक’ जैसा कोई भटका हुआ युवा अपनी खोटी क्रांति शुरू करता है और उसमें 12 युवकों की मृत्यु हो जाती है, तब सिब्बल और उनका काला कोट- दोनों ही खूँटी से उतर आते हैं और अपने-आप को अदालत की दहलीज पर पाते हैं

12 हत्याओं पर बैठ कर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने वाले ‘हार्डिक’ के लिए पैरवी करने सुप्रीम कोर्ट जाते समय सिब्बल यह भूल जाते हैं कि इसी कोर्ट ने उनके मंत्रालय द्वारा बनाए गए IT एक्ट के सेक्शन 66A को 2015 में ख़त्म कर दिया था। अब इस बात पर सिब्बल टिप्पणी करते हुए अपने संसद वाले बयान की तरह यह बात भी कह सकते हैं: “हार्डिक को मैं नहीं, मेरी काली कोट डिफेंड कर रही है।” उनके इस बयान का अगर कोई नहीं तो गुरमेहर कौर तो जरूर समर्थन करेगी।

फ़ैक्ट चेक: PM मोदी के हेलीपैड के लिए हज़ारों पेड़ काटे जाने की ख़बर का सच

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुर्दा-बलांगिर रेलवे लाइन को हरी झंडी दिखाने के लिए 15 जनवरी को ओडिशा के बलांगिर पहुँचे थे। प्रधानमंत्री का यह दौरा हेलिपेड निर्माण के लिए हजारों पेड़ काटे जाने की ख़बर के बाद विवाद में आ गया था। दरअसल 14 जनवरी को पीटीआई ने एक ख़बर अपडेट किया, जिसके बाद इस ख़बर को आधार बनाकर कई सारे मुख्यधारा की मीडिया वेबसाइट ने प्रधानमंत्री के हेलीपेड के लिए 1000-1200 पेड़ काटे जाने की ख़बर को प्रमुखता से वेबसाइट पर अपडेट किया।

पीटीआई ने डिविजनल फ़ॉरेस्ट ऑफिसर (बलांगिर) समीर सतपथी के स्टेटमेंट को आधार बनाकर यह रिपोर्ट तैयार कर दिया। अपने स्टेटमेंट में सतपथी ने कहा कि फ़ॉरेस्ट विभाग से अनुमति लिए बग़ैर हेलीपेड बनाने के लिए पेड़ों को काटा गया, इस मामले में जाँच का आदेश दे दिया गया है। फ़ॉरेस्ट विभाग के एक अधिकारी के बयान के बाद पीटीआई जैसी संस्थान में काम करने वाले रिपोर्टर ने ग्राउंड पर जाकर सच जानने की कोशिश नहीं की। हालाँकि, PTI की ख़बर में ‘alleged’ शब्द का इस्तेमाल हो रहा है, फिर भी देश के इतने बड़े संस्थान के द्वारा ऐसी ख़बर को ‘कथित’ (alleged) कहकर आगे बढ़ा देना आलस्य ही कहा जा सकता है।

इसका परिणाम यह हुआ कि प्रधानमंत्री से जुड़ी गलत ख़बर को लगभग सभी संस्थानों ने अपनी वेबसाइट पर अपडेट किया। इसके बाद हमने देखा कि 13 जनवरी 2019 को द हिन्दू ने अपने वेबसाइट पर एक ख़बर पब्लिश की है। इस ख़बर में इस बात का जिक़्र है कि ‘अर्बन प्लांटेशन प्रोग्राम’ के अंतर्गत 2.25 हेक्टेयर जमीन रेलवे विभाग ने 2016 में अपने अधीन लिया था। हेलीपेड बनाने के लिए कुछ खाली जमीन की ज़रूरत थी, जिसके के लिए 1.25 हेक्टेयर ज़मीन को साफ़ किया गया।

द हिंदू अपने 14 जनवरी के रिपोर्ट में स्टेट फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट की तरफ़ से समीर कुमार सतपती के हवाले से लिखा कि इस मामले में एक जाँच कमेटी गठित कर दी गई है। द हिंदू ने अपने रिपोर्ट में 1,000 से 1,200 पेडों के काटे जाने की पुष्टि की। उसके बाद, द हिंदू के रिपोर्ट को आधार बनाकर कई सारे मेन स्ट्रीम मीडिया ने इस गलत ख़बर को पब्लिश किया।

यह है ख़बर की सच्चाई

ऑपइंडिया टीम ने इस ख़बर की सच्चाई को ज़ानने के लिए ईस्ट कोस्ट रेलवे के मुख्य जनसूचना पदाधिकारी जेपी मिश्रा से संपर्क किया। जेपी मिश्रा ने हमारी टीम को बताया कि हेलीपेड बनाने का काम राज्य सरकार की पीडब्लूडी डिपार्टमेंट देख रही है।

इसके बाद थोड़ा रिसर्च करने के बाद हमने देखा कि TOI भुवनेश्वर ने एक ट्वीट के ज़रिए यह बताया है कि प्रधानमंत्री के ओडीशा दौरे में हजारों पेड़ काटे जाने की ख़बर गलत है। TOI ने, जहाँ हेलीपेड बनाई गई है, वहाँ से कई सारे वीडियो को ट्वीट किया।

यही नहीं अपने ट्वीट में TOI भुवनेश्वर ने यह दावा किया है कि ईस्ट कोस्ट रेलवे प्रवक्ता के मुताबिक हेलीपेड बनाए जाने के लिए बड़े पेड़ को नहीं काटा गया है। हालाँकि ट्वीट में यह बात लिखा है कि मौके पर करीब 40 के आस-पास पेड़ व झाड़ियों को हेलीपेड बनाने के लिए काटा गया है। इस तरह TOI भुवनेश्वर के इस रिपोर्ट से यह ज़ाहिर हो गया कि इंडियन एक्सप्रेस व द हिंदू जैसी मुख्यधारा की मीडिया ने गलत ख़बर को वेबसाइट पर अपडेट किया है।

यही नहीं PTI जैसी बड़ी न्यूज़ एजेंसी भी किसी ख़बर के तह में पहुँचे बगैर ख़बर को वेबसाइट पर अपडेट कर देती है। इससे भ्रामकता की स्थिति बनती है और कई लोग सच्चाई को नहीं जान पाते क्योंकि गलत ख़बर चलाने वाले संस्थान कभी भी अपनी गलती स्वीकार कर सच्ची ख़बर नहीं बताते।

पंजाब के ‘आप’ विधायक ने दिया पार्टी से इस्तीफ़ा, कहा- भटक गई है पार्टी की विचारधारा !

लोकसभा चुनावों के आते-आते राजनैतिक पार्टियों में उठा-पठक चालू हो रखी है। कहीं एक पार्टी के साथ दूसरी पार्टी की जुड़ने की खबरें आ रही हैं, तो कहीं पर विधायकों के पार्टी के छोड़ने की।

आने वाले लोकसभा के चुनावों से पहले अरविंद केजरीवाल की पार्टी को एक नया झटका लगा है। पंजाब में ‘आप’ पार्टी के विधायक बलदेव सिंह ने बुधवार यानि आज (जनवरी 16, 2019) पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया है। बता दें कि आप पार्टी के बलदेव सिंह पंजाब में ‘जैतो’ से विधायक थे।

पार्टी को छोड़ने से पहले बलदेव सिंह ने अरविंद केजरीवाल को भेजे ई-मेल में लिखा है कि वो बेहद दुखी मन के साथ आम आदमी पार्टी की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे रहे हैं। उन्होंने अपने पत्र में शिकायत भी की, कि आम आदमी पार्टी अपनी तय हुई विचारधारा से बिलकुल भटक चुकी है।

उन्होंने कहा कि वो अन्ना हजारे द्वारा शुरू किए गए आंदोलन से काफ़ी प्रेरित होकर ही ‘आप’ के साथ जुड़ने का फैसला किया था, जिसके लिए उन्होनें बतौर प्रधान शिक्षक अपनी सरकारी नौकरी छोड़ने का फैसला लिया था। इसका पीछे उनका उद्देश्य देश की (खासकर पंजाब की) सामाजिक-राजनीतिक स्थिति को सुधारने का था। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने ये फ़ैसला लिया था तब उनके पूरे परिवार में खलबली सी मच गई थी। लेकिन, फिर भी उन्होंने ‘आप’ के बुलंद इरादों और वायदों पर ये जोखिम लेना जरूरी समझा।

बलदेव सिंह के अलावा पंजाब के ही एक और विधायक सुख़पाल खैरा ने आम आदमी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दिया था। इन्होंने भी अपने इस्तीफ़े में केजरीवाल की पार्टी पर कई आरोप लगाए थे, कि पार्टी अपने निर्धारित किए हुए सिद्धांतों और विचारधारा से भटक चुकी है। जिस समय खैरा ने इस्तीफ़ा दिया उस समय वो पार्टी से निलंबित चल रहे थे, क्योंकि उन्होंने पार्टी के ख़िलाफ़ बगावत शुरू कर दी थी। जिसके कारण ही उनका पार्टी से निलंबन किया गया था। अब खबरें हैं कि अब बलदेव, सुखपाल खैरा की ‘पंजाबी एकता पार्टी’ से जुड़ सकते हैं।

इन दो विधायकों के अलावा हरविंदर सिंह फुलका जो पंजाब आदमी पार्टी के नेता और सिख़ विरोधी दंगे के वकील हैं, वो भी पार्टी को लेकर अपनी शिकायतों की वजह से सदस्यता छोड़ चुके हैं।

पाकिस्तान में ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ को मिली हरी झंडी

अनुपम खेर की फ़िल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ जिसमें वो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के किरदार में दिख रहे हैं, अब पाकिस्तान में भी पर्दों पर दिखाई जाएगी। पाकिस्तान के सेंसर बोर्ड ने इसे मंजूरी दे दी है।

फ़िल्म के निर्माता जयन्तीलाल गड़ा ने इस बात की जानकारी दी कि फ़िल्म पाकिस्तान में 18 जनवरी को रिलीज़ की जाएगी।

उन्होंने अपने बयान में कहा, “पेन स्टूडियो को इस बात को बताते हुए बेहद खुशी हो रही है, कि एक तरह की राजनीति से जुड़ी फ़िल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ को हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में हरी झंडी दिखा दी गई है। अब पाकिस्तान के सिनेमा प्रेमी भी इस फ़िल्म का आनंद उठा पाएँगे।”

उन्होंने अपने दिए बयान में कहा – “मैं हमेशा से ही इमरान खान को एक बहादुर क्रिकेटर होने के लिए सराहता था, लेकिन अब उनकी प्रधानमंत्री होने की भी इज़्ज़त करता हूँ। मैं बहुत शुक्रगुज़ार हूँ। पाकिस्तान के सेंसर बोर्ड अध्यक्ष ने हमारी फ़िल्म को रिलीज़ की अनुमति दी।”

‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ भारत में 11 जनवरी को रिलीज़ हो चुकी है। ट्रेलर के आने के साथ ही फ़िल्म कई विवादों से घिर गई थी। जिसकी वज़ह से इसे कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। बता दें कि ‘बॉलीवुड हंगामा’ के अनुसार फ़िल्म ने 5 दिनों में केवल ₹13.90 करोड़ की कमाई की है।

यह फ़िल्म संजय बारू की किताब के आधार पर बनी है। संजय, मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार भी रहे हैं। इस फ़िल्म में संजय बारू का किरदार अक्षय खन्ना द्वारा निभाया जा रहा है। फ़िल्म की ओवर-ऑल रेटिंग चाहे कुछ भी रही हो, लेकिन कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि मुख्य किरदार में दिख रहे, सभी कलाकारों ने किरदारों को सटीक तरह से निभाने का पूरा प्रयास किया, जिसके लिए वो सराहना योग्य हैं।

बिहार में आंध्र से आने वाली मछलियाँ बैन, व्यापारियों में भारी आक्रोश

बिहार में आंध्र प्रदेश सहित कई राज्यों से आयातित मछलियों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। बिहार मछलियों का बहुत बड़ा बाज़ार है और राज्य सरकार के इस निर्णय के बाद मछली व्यापारियों को अपने धंधों के ठप हो जाने का डर सता रहा है। इस मामले में बिहार मछली व्यवसायी संघ के सचिव अनुज कुमार ने अन्य प्रदेशों से आयातित मछली में फार्मलिन सहित अन्य हानिकारक रसायनों की मात्रा निर्धारित सीमा से अधिक होने से इनकार किया, जो कि सरकार की तरफ़ से बताया जा रहा है।

बिहार सरकार के इस निर्णय के ख़िलाफ़ मछली व्यापारियों ने कड़ा विरोध दर्ज़ कराया है। उन्होंने कहा कि उन्हें ये बातें अख़बारों से माध्यम से पता चलीं। राज्य सरकार के इस निर्णय के ख़िलाफ़ विरोध दर्ज़ कराने के लिए क़रीब 500 मछली व्यापारियों ने पटना की मछली मंडी में शनिवार (जनवरी 12, 2019) को एक बैठक आयोजित की थी। इस बैठक में व्यापारियों ने बिहार सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि जिस फार्मलिन की बात सरकारी महक़मों द्वारा की जा रही है, वो सरासर झूठी और बेबुनियाद है।

पटना की मछली मंडी बंद है, व्यापार ठप

व्यापारियों ने शिकायत करते हुए बताया कि अक्टूबर 2018 में सरकार ने उनसे सैंपल लेकर जाँच की थी। उस जाँच की रिपोर्ट अब आई है। रिपोर्ट आने में होने वाली तीन महीने की देरी पर भी व्यापारियों ने सवाल खड़े किए। मछली व्यापारियों ने कहा कि मछली एक कच्चा माल है और कोई भी कच्चा माल 4 से 6 दिन में ही खराब हो जाता है। उन्होंने पूछा कि जिस फार्मलिन को किट से महज़ 2 मिनट में जाँचा जा सकता है, उसमें इतनी देरी क्यों लगाई गई?

मछली व्यापारियों ने दावा किया कि आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा भी फार्मलिन किट से ही जाँच की जाती है। आंध्र के जाँच में मछलियाँ सही पाई गईं हैं और व्यापारियों के पास इसका ‘अप्रूवल रिपोर्ट’ भी है। उन्होंने यह बात भी पूछा कि बिहार सरकार द्वारा इन आयातित मछलियों को बैन करने के पीछे तर्क क्या है?

‘ताज़े फ़िश’ स्टार्ट-अप के मालिक रंजीत कुमार के 4 सवाल:

  • बिहार सरकार के तुगलकी रवैये के कारण रोजगार से ज्यादा बेरोजगार बढ़ रहा है। फार्मलिन जाँच की बात सरकार कहती है लेकिन यह नहीं बताती कि आख़िर जाँच में इतनी देरी क्यों होती है जबकि बंगाल और गुवाहाटी में 1 दिन में फैसला आता है।
  • मैंने ताज़े फिश ऑनलाइन खोला था। मछली ज़्यादा बिकने लगी थी। अपनी पूंजी लगा कर, हम मछली अपनी गाड़ी से मँगवाने लगे और कुछ मंडी से ख़रीदने लगे। अब बंद कर दिया गया तो मेरी पूंजी गई और बचा माल तो गया ही।
  • बिहार सरकार की रिपोर्ट में यह लिखा है कि जिंदा मछली में फार्मलिन पाया गया है। अब जो लेप बस मुर्दा मछली पर लग सकता है क्या वो कोई जिंदा में लगा भी सकता है ? लॉजिक गज़ब है सरकार का।
  • 2 वैन से राज्य सरकार ख़ुद से मछली बेचेगी? 2 गाड़ी से पूर्ति हो जाएगा? सब आदमी के कमाने का साधन छीन के जब सरकार ही हर काम करेगी तो हमलोग क्या करेंगे, दूसरे राज्य में जाके मार खाएँगे?

बिहार मछली व्यापारी संघ ने आग्रह किया कि बिहार सरकार फिर से व्यापारियों के सामने जाँच करवाए और रिपोर्ट उनके सामने दे। उन्होंने दावा किया कि अगर उनकी मछलियॉं खाने योग्य नहीं निकलती हैं तो वे ख़ुद इसे बैन कर देंगे। व्यापारियों की इस माँग पर सरकार की तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रया नहीं आई है।

बिहार सरकार के इस निर्णय के बाद मछली व्यापारियों को काफ़ी घाटे का सामना करना पड़ रहा है। मछलियों की होम डिलीवरी करने वाले स्टार्ट-अप को ₹40 लाख का भारी घाटा हुआ है। साथ ही, इससे वहाँ के व्यापारियों का घाटा करोड़ों में है।

ज्ञात हो कि बिहार सरकार ने आंध्र और बंगाल से आने वाली मछलियों पर रोक लगाने के साथ ही इनके भण्डारण पर भी तत्काल प्रभाव से प्रतिबन्ध लगा दिया है। अगर कोई इन नियमों का उल्लंघन करते हुए पाया जाता है तो उसे सात सालों तक की सज़ा हो सकती है। यही नहीं, इसके लिए ₹10 लाख तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है। सज़ा के इतने कड़े प्रावधानों के कारण मछली व्यापारियों में डर का भी माहौल है।

स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय सिंह ने पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए कहा कि इस बारे में और अधिक अध्ययन किया जा रहा है और पशुपालन विभाग के एक्सपर्ट्स भी इस मामले को देख रहे हैं।

2016 में राहुल पहुँचे थे कन्हैया के लिए JNU, फिर अब बिलकुल चुप क्यों हैं?

हाल ही में दिल्ली पुलिस द्वारा कन्हैया कुमार पर देशद्रोह मामले में चार्जशीट दाख़िल की गई है। ये मामला 2016 का है, जब जेएनयू में कन्हैया कुमार के नेतृत्व में “भारत तेरे टुकडे होंगे” जैसी नारेबाज़ी की गई थी।

इस मामले के तूल पकड़ने पर जेएनयू समेत देश भर में माहौल गरमा गया था। ये लाज़मी था, आखिर देश के इतने प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्थान में जहाँ हर साल कई पीएचडीधारी बुद्धिजीवी निकलते हैं, वहाँ ऐसी घटना का होना बिल्कुल भी अपेक्षित नहीं था। विचारधाराओं पर बहस अपनी धरातल पर ठीक है, लेकिन देशविरोधी नारेबाज़ी करना किसी भी राष्ट्रवादी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुँचाना है।

इस मामले पर जब कन्हैया कुमार की गिरफ़्तारी हुई तो जेएनयू में जैसे हड़कंप मच गया, वहाँ के छात्र क्लासरूम छोड़कर धरने पर बैठ गए। इन लोगों को कई विपक्षी दल के नेताओं का समर्थन मिला, जिनमें राहुल गाँधी का नाम शामिल था, राहुल इन धरने पर बैठे लोगों के समर्थन में जेएनयू भी पहुँचे थे। लेकिन, अब हैरान करने वाली बात ये है कि कन्हैया समेत सभी आरोपितों के ख़िलाफ़ चार्जशीट आने के बाद राहुल की किसी भी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली है।

राहुल के इस चुप्पी पर सवाल ये उठता है, जब 2016 मे वो जेएनयू की भीड़ से मिलने पहुँचे थे, तो अब आरोपितों के प्रति उनकी सहानुभूति कहाँ चली गई? ऐसा भी नहीं है कि जिस दिन जेएनयू मामले पर चार्जशीट दायर की गई, उस दिन वो सोशल मीडिया पर एक्टिव न हुए हों। 14 जनवरी को उन्होंने पूरे देश को पोंगल के त्यौहार की शुभकामनाएँ भी दी और साथ ही में उन्होंने प्रधानमंत्री को कोटलर अवार्ड को लेकर प्रधानमंत्री पर तंज भी कसा

लेकिन जेएनयू मामले पर उनका किसी भी प्रकार का कोई बयान सामने नहीं आया हैं, अब इसे लोकसभा चुनावों का असर भी कहा जा सकता है और राहुल के अवसरवादी होने का सबूत भी। कोई पार्टी या कोई नेता जिसके लिए कुर्सी से बढ़कर कुछ भी न हो, वो अपनी ज़मीन तैयार करने के लिए बिना सोचे-समझे किसी के भी समर्थन में खड़ा तो हो जाता है, लेकिन चुनावों के आते ही उन्हीं मामलों पर चुप्पी साध लेता है, ताकि किसी भूल से मतदाताओं की सोच पर नकारात्मक असर न पड़े।

व्यक्तिगत धर्म की स्वतंत्रता लेकिन सामूहिक धर्मान्तरण की अनुमति नहीं: राजनाथ सिंह

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार (जनवरी 15, 2019) को एक ईसाई संगठन के ‘शांति उत्सव’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, “मैंने कभी अपने जीवन में जाति, वर्ण और धर्म के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया है – हमें वोट मिले या नहीं मिले; हम जीते या हारें; हम सरकार बनाएँ या न बनाएँ; – हम लोगों के बीच भेदभाव नहीं करेंगे। यही हमारे प्रधानमंत्री का सन्देश है।”

राजनाथ सिंह ने आगे कहा, “बिना प्रेम के कोई भी सत्ता और शासन में नहीं रह सकता। कोई भी प्रेम से ही शासन कर सकता है। शासन का कोई दूसरा तरीका नहीं है।”

अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि कोई भी व्‍यक्तिगत तौर पर किसी भी धर्म को स्‍वीकार करने के लिए स्वतन्त्र है। लेकिन सामूहिक धर्मांतरण की अनुमति नहीं दी जा सकती। यदि ऐसा होता है तो इस पर बहस ज़रूरी है।

गृहमंत्री ने यह भी कहा, “मैं ईसाई समुदाय को लेकर एक चीज और कहूँगा। हम किसी के ख़िलाफ़ कोई आरोप नहीं लगाना चाहते। अगर कोई व्यक्ति किसी धर्म को अपनाना चाहता है तो उसे ऐसा करना चाहिए। इस पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। लेकिन सामूहिक धर्मांतरण में बड़ी संख्या में लोग धर्म बदलना शुरू कर देते हैं। यह किसी भी देश के लिए चिंता की बात है।”

गृह मंत्री ने कहा कि ब्रिटेन और अमेरिका समेत लगभग सभी देशों में अल्पसंख्यक धर्मांतरण विरोधी कानून की माँग करते हैं। जबकि भारत में बहुसंख्यक माँग कर रहे हैं कि धर्मांतरण विरोधी कानून होना चाहिए। यह चिंता की बात है।

उनके अनुसार कुछ लोग दूसरों के बीच डर की भावना भरने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “भाजपा आ गई, अब गड़बड़ होगा। ये हो जाएगा, वो हो जाएगा। हम डर की भावना भरकर देश नहीं चलाना चाहते। हम विश्वास के साथ देश चलाना चाहते हैं। किसी के अंदर अलगाव की भावना नहीं होनी चाहिए। यही हमारी कोशिश रहेगी।”

केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा, “राजग सरकार को बदनाम करने की कई कोशिशें होती रही हैं। यहाँ तक कि चर्च पर पत्थर फेंके गए। कुछ पादरी आए और मुझसे सुरक्षा देने की माँग की। आपने देख होगा, पत्थरबाज़ी की यह घटनाएँ विधानसभा चुनावों से महज एक महीने पहले ही शुरू हुईं थीं। और यह घटनाएँ चुनाव ख़त्म होने के बाद बंद भी हो गईं। आप इस पर क्या कहेंगे? इसमें किसकी साजिश है? सिंह ने कहा कि जहाँ तक राजग सरकार का सवाल है, किसी से कोई भेदभाव नहीं होगा।”

रोते-रोते महिला ने कहा… भारतीय सेना नहीं होती तो हम में से कोई नहीं बच पाता!

देश की सेना पर हमेशा सवाल उठाने वाले लोग भूल जाते हैं कि वो अगर देश में रहकर सुरक्षित हैं तो इसका मतलब है कि सीमा पर तैनात ज़वान उनके लिए दिन-रात जाग रहा है।

एक तरफ़ जब लोग साल 2019 के आने की तैयारी कर रहे थे, तो उसी समय भारतीय सेना नाथुला पास में करीब 3,000 जिंदगियों को बचाने का प्रयास कर रही थी।

भारी बर्फबारी के कारण लगभग 3,000 टूरिस्ट 28 दिसंबर 2018 को सिक्किम के नाथुला पास में फँस गए थे। रिपोर्ट के अनुसार, करीब 300 से 400 गाड़ियाँ बर्फबारी के कारण फँस गई थी। इस वज़ह से पर्यटकों का वहाँ से निकलना मुश्किल था। फँसे हुए इन लोगों में महिला, बच्चे और बुजुर्ग भी थे।

ऐसी स्थिति में भारतीय सेना के जवान फँसे हुए लोगों का बचाव करने वहाँ पहुँचे। उन्होंने मुश्किल भरे हालातों का सामना करके सभी लोगों की जान बचाई। उनकी इस बहादुरी का सबूत सोशल मीडिया पर भी अपलोड किया गया है।

ट्विटर पर शेयर किए गए इस वीडियो में देखा जा सकता है कि किस तरह एक महिला पर्यटक रोते-रोते भारतीय सेना का शुक्रिया अदा कर रही है। ये अंजान महिला इस वीडियो में कहते हुए नज़र आ रही हैं कि अगर ये खुद या बाकी के अन्य पर्यटक जिंदा हैं, तो सिर्फ और सिर्फ भारतीय सेना की वज़ह से ही जिंदा हैं।

महिला ने कहा, “हम अक्सर पूछते थे कि सेना काम क्या करती है, आज मैंने देखा कि आखिर में सेना करती क्या है।”

इस वीडियो पर ट्विटर के बहुत सारे यूजर्स ने भारतीय सेना को बधाई दी और भारतीय सेना के सहयोग के लिए उनका आभार भी व्यक्त किया।

बता दें कि पर्यटकों को बचाने के बाद सेना के जवानों ने उन्हें गर्म कपड़े भी उपलब्ध कराए। साथ ही उन्हें रहने के लिए आर्मी क्वॉटर में जगह भी दिया। इसके बाद सेना ने बर्फबारी से जाम हुई रोड को साफ करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

ये सिर्फ एक घटना नहीं हैं, जहाँ सेना ने आम नागरिकों को संकट से निकाला हो। केदारनाथ में आई आपदा से लेकर केरल आपदा तक में वो सेना के जवान ही थे, जो हर परिस्थिति से लड़कर वहाँ आपदा पीड़ितों को सुविधा मुहैया कराई।

हम देखते हैं कि आए दिन कुछ बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों द्वारा सेना पर सवाल उठाए जाते हैं। उनकी आलोचना की जाती है। उन्हें कठोर, निष्ठुर कहकर दरकिनार कर दिया जाता है। लेकिन, हम भूल जाते हैं कि सैनिक होने का मतलब क्या है। यह एक जिम्मेदारी है, जिसमें सेना का हर जवान, हर परस्थिति में अपनी जान गंवा कर भी देश को और देश के नागरिकों को बचाने का प्रण लेता है।

BJP को दौड़ा-दौड़ा के मारेंगे, मरी नानी याद दिला देंगे: BSP नेता

उत्तर प्रदेश में बसपा की अध्यक्ष मायावती के जन्मदिन पर उनकी पार्टी के नेता विजय यादव ने एक बेहद विवादित बयान दिया है। मायावती के जन्म दिन पर जनसभा को संबोधित करते हुए विजय यादव ने कहा- “घबराने की जरूरत नहीं है, दौड़ा-दौड़ा कर मारेंगे बीजेपी को, मरी हुई नानी याद दिला देंगे।”

सपा-बसपा के गठबंधन के बाद दोनों पार्टियों के नेताओं में और उनके समर्थकों में एक अलग ही ‘स्तर’ का आत्मविश्वास देखने को मिल रहा है। लगातार हर तरफ ऐसे बयान सुनने में आ रहे हैं कि इस गठबंधन ने बीजेपी पार्टी से जुड़े लोगों की नींदें उड़ा दी हैं।

ANI द्वारा ट्विटर पर जारी किए गए वीडियो के एक हिस्से में विजय यादव कहते नज़र आ रहे हैं, “कॉन्ग्रेस ने एक तरफ जहाँ देश को राजीव गांधी, इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के रूप में चार गाँधी दिए हैं। वहीं बीजेपी ने भी मोदी दिए हैं- नीरव मोदी, ललित मोदी और अंबानी की गोद में बैठा नरेंद्र मोदी।”

विजय यादव ने इस वीडियो में जनता को संबोधित करते हुए बोला, “अगर इस मोदी ने किसी के लिए कुछ किया है तो वो उद्योगपतियों के लिए किया है, बाकी किसी गरीब के लिए मोदी ने कुछ नहीं किया है।”

इस पूरे वीडियो में ऐसा लग रहा है कि सपा-बसपा के एक होने की खुशी विजय यादव से समेटे नहीं सिमट रही है। अपनी बात को रखने का अंदाज़ इस लहज़े में था कि अगर उन्हें कुर्सी नहीं मिली तो वो उसे छीन लेंगे।

लोकसभा चुनावों को मद्देनज़र रखते हुए अपनी इस बातचीत में उन्होंने श्रोताओं से कहा कि वे लोग फिक्र न करें, भारतीय जनता पार्टी वालों को तो सपा-बसपा दौड़ा-दौड़ा कर मारेगी।

विजय यादव ने यह भी बोला कि बीएसपी वालों को घबराने की जरूरत नहीं है। सपा-बसपा को साथ देखकर तो बीजेपी वालों को इनकी मरी हुई नानी याद आ गई हो गई।

जनता को न डरने की सलाह देते हुए नेता जी ने जय भीम बोलते हुए मुस्लिमों को अस्सलाम-वालेकुम कहा और हिन्दुओं को कहा राम-राम।

विजय यादव के ऐसे बयान के बाद लगता है कि सपा-बसपा के गठबंधन से पूरे देश में खुशी की लहर दौड़ी हो चाहे न दौड़ी हो, लेकिन पार्टी के सारे नेताओं में जीत को लेकर अत्याधिक विश्वास अभी से देखने को मिल रहा है। बता दें कि कॉन्ग्रेस का एक तरफ इस गठबंधन पर कहना है कि इन दोनों पार्टियों ने एक होकर वही काम किया है, जो बीजेपी चाहती थी कि सारे गुट एक हो जाएँ। वहीं बीजेपी के समर्थकों का इस गठबंधन पर कहना है कि उन्हें विश्वास है कि चाहे सारी पार्टियाँ एक क्यों न हो जाएँ, लोकसभा चुनावों में जीत उन्हीं की होगी।