Tuesday, October 1, 2024
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सरकारी कर्मचारी को गाली व धक्का देती BSP विधायक रामबाई का वीडियो वायरल

मध्य प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की दबंग विधायक रामबाई का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस वीडियो में रामबाई एक सरकारी कर्मचारी को गाली व धक्का देते हुए दिख रही हैं। इस वीडियो में यह देखा जा सकता है कि रामबाई मंडी के एक कर्मचारी को धक्का देते हुए गाड़ी तक ले जाती हैं। बसपा विधायक रामबाई यहीं नहीं रूकीं। उन्होंने मंडी कर्मचारी को धमकी देते हुए कहा, “यदि किसानों को परेशान किया आगे से तो पीटूंगी भी।”

इसके बाद विधायक मंडी कर्मचारी को लेकर पुलिस थाने पहुँच गईं। दरअसल पिछले कुछ दिनों से विधायक के पास मंडी कर्मचारी के ख़िलाफ़ शिकायत आ रही थी। इसके बाद विधायक ने मंडी पहुँचकर कर्मचारी के साथ दुर्व्यवहार किया।

कमलनाथ को अल्टीमेटम देने के बाद लाइम-लाइट में आई थीं रामबाई

मध्य प्रदेश में सरकार बनाने के बाद कमलनाथ को पहली बार गठबंधन दल की तरफ़ से विधायक रामबाई ने अल्टीमेटम दिया था। मध्य प्रदेश में इन दिनों सपा-बसपा की मदद से कॉन्ग्रेस की सरकार चल रही है। ऐसे में बसपा विधायक का अल्टीमेटम कमलनाथ सरकार के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।

पिछले दिनों मध्य प्रदेश के पथरिया की विधायक रामबाई ने कहा, “कॉन्ग्रेस की तरफ से मुझे मंत्री बनाने का वादा किया गया है, मैं 20 जनवरी तक इंतज़ार करूँगी।” जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि क्या उनके बयान को सरकार के लिए ख़तरे के संकेत के रूप में देखा जाए तो इस सवाल के जवाब में रामबाई ने कहा कि सरकार को पता है कि उनकी सरकार अगले पाँच साल तक ऐसे ही चलेगी।

मध्य प्रदेश के 230 सीटों वाली विधानसभा में कॉन्ग्रेस के 114 सदस्य हैं जबकि भाजपा के 109 सदस्य।

भाजपा के लखन सिंह को हराकर रामबाई बनीं विधायक

पथरिया विधानसभा से बसपा प्रत्याशी रामबाई गोविंद सिंह ने भाजपा के लखन पटेल को 2205 वोटों से हरा दिया था। रामबाई इससे पहले जिला पंचायत की सदस्य थीं। विधायक बनने के बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था। जानकारी के लिए आपको बता दें कि जिला पंयाचत अध्यक्ष पद के लिए चुनाव में रामबाई ने भाजपा उम्मीदवार शिवचरण पटेल को समर्थन दिया था।

अंतरिम बजट में सरकार किसानों को दे सकती है राहत

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली 1 फरवरी 2019 को अपना अंतरिम बजट पेश करने वाले हैं, मोदी सरकार के कार्यकाल का यह अंतिम बजट होगा। उम्मीद लगाई जा रही हैं कि इस अंतरिम बजट में किसानों के मुद्दे को प्राथमिकता दी जाएगी। देश में किसानों का मुद्दा सरकार के लिए सबसे ज्यादा संवेदनशील रहा है। एक ओर जहाँ कॉन्ग्रेस पार्टी किसानों की ऋण माफ़ी को चुनावी हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है, वहीं NDA सरकार के लिए अंतरिम बजट में किसानों की माँगों और लम्बे समय से चली आ रही नाराज़गी को दूर करना प्राथमिकता हो सकती है।

मोदी सरकार किसानों को राहत देने के लिए कई बड़े फ़ैसले इस बजट में ला सकती है। इसमें फ़सल के लिए लिया जाने वाला ऋण ब्याज-मुक्त करना और ओडीशा तथा कर्नाटक की तरह ही छोटे किसानों को आर्थिक मदद देना भी शामिल हो सकता है। इस प्रकार संकेत मिल रहे हैं कि सरकार किसानों के साथ उनके परिवारों को भी लाभान्वित करने के उद्देश्य से ‘पैकेज फ़ॉर्मूला’ ला सकती है। इसमें किसानों के साथ साथ आर्थिक रूप से पिछड़े हुए परिवारों को भी मदद पहुँचाने के लिए योजना बनाई जा रही हैं।

‘इंडिया फर्स्ट’ बनाम ‘भारत’

2014 में अपने ‘इंडिया फर्स्ट’ के नारे के साथ आगे बढ़ने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ‘भारत’ के साथ तालमेल मिलाना 2019 के लोकसभा चुनावों में चुनौती बन सकता है। इस कार्यकाल में समय-समय पर किसानों को मुद्दा बनाकर विपक्ष ने भी सरकार को घेरने की कोशिश की है।

गुजरात में पाटीदार समाज, जो मुख्यतः कृषि प्रधान है, उसके युवाओं ने रोजगार न मिलने को कारण बताकर आरक्षण के लिए आंदोलन चलाया। कहीं न कहीं महाराष्ट्र के दलित और मराठा आन्दोलन भी इसी माहौल की परिणिति हैं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने जून 2017 में ₹34,022 करोड़ की वृहद कृषि ऋण माफ़ी योजना की शुरूआत की थी। इस योजना के जरिए भाजपा सरकार ने किसानों के ग़ुस्से को कुछ हद तक कम करने की कोशिश की है। मध्यप्रदेश में किसान आन्दोलन ने हिंसक रूप लिया। हालाँकि, शिवराज सरकार किसानों की मदद के लिए भावान्तर योजना भी लेकर आई, जिसकी तर्ज़ पर केंद्र सरकार किसानों को लेकर अंतरिम बजट बनाने का विचार कर रही है।

कुछ सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार किसानों की हालात में सुधार के लिए तेलंगाना और ओडिशा सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं की भी समीक्षा कर रही है और इस योजना के लागू होने से राजस्व पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ का अध्ययन किया जा रहा है। अंतरिम बजट में किसानों को ज्यादा से ज्यादा राहत पहुँचाने के लिए विभिन्न सरकार द्वारा की गई ऋण माफ़ी के साथ-साथ किसान हित में लिए गए अन्य निर्णयों की भी समीक्षा की जा रही है।

एक नज़र किसानों को लेकर चल रही विभिन्न राज्यों की योजनाओं पर

कॉन्ग्रेस सरकार की ऋण माफ़ी के चुनावी हथियार से निपटने के लिए भाजपा सरकार विभिन्न राज्यों के किसानों को लेकर चल रही योजनाओं पर निरंतर मंथन कर रही है। देखना यह है कि किस राज्य का मॉडल सरकार द्वारा चुना जाता है।

मध्यप्रदेश भावान्तर योजना

पिछले साल मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने जिस भावांतर योजना के ज़रिए 15 लाख किसानों की मदद की थी, केंद्र की मोदी सरकार भी उसी की तर्ज़ पर किसानों को फ़सल के न्यूनतम समर्थन मूल्य और बिक्री मूल्य के अंतर को सीधे खाते में भेजने पर विचार कर रही है।

ओडिशा का ‘कालिया’ (KALIA) फ़ॉर्मूला

कर्ज़ के बोझ तले दबे किसानों की मदद के लिए ओडिशा सरकार ने ‘जीविकोपार्जन एवं आय वृद्धि के लिए कृषक सहायता’ (KALIA) योजना चालू की है। इस स्कीम के तहत किसानों की आय बढ़ाकर उन्हें आर्थिक रूप से समृद्ध किया जाएगा। ओडिशा सरकार ने ₹10,000 करोड़ की ‘जीविकोपार्जन एवं आय वृद्धि के लिए कृषक सहायता’ (KALIA) को मंजूरी दी है। इस स्कीम के द्वारा किसानों को कर्ज़माफ़ी के बजाय सीमांत किसानों को दायरे में लाकर फ़सल के लिए आर्थिक मदद देने का ज़रिया बनाया गया है। ‘KALIA’ के तहत छोटे किसानों को रबी और खरीफ में बुआई के लिए प्रति सीजन ₹5-5,000 की वित्तीय मदद मिलेगी, अर्थात सालाना ₹10,000 दिए जाएंगे।

झारखंड मॉडल

झारखंड की रघुवर दास सरकार भी मध्यम और सीमांत किसानों के लिए ₹2,250 करोड़ की योजना की घोषणा कर चुकी है। झारखंड में 5 एकड़ तक खेत पर सालाना प्रति एकड़ ₹5,000 मिलेंगे, एक एकड़ से कम खेत पर भी ₹5,000 की सहायता मिलेगी। इस योजना की शुरुआत झारखंड सरकार 2019-20 के वित्त वर्ष से करेगी जिसमें लाभार्थियों को चेक या डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफ़र के ज़रिए दिए जाएँगे।

तेलंगाना का ऋतु बंधु मॉडल

ओडीशा और झारखंड के साथ ही केंद्र सरकार तेलंगाना सरकार द्वारा शुरू की गई किसान योजनाओं की भी पड़ताल कर रही है। तेलंगाना सरकार ने किसानों के लिए ऋतु बंधु योजना शुरू की है। यहाँ के किसानों को प्रति वर्ष प्रति फ़सल ₹4000 प्रति एकड़ की रकम दी जाती है। दो फ़सल के हिसाब से किसानों को हर साल ₹8000 प्रति एकड़ मिल जाते हैं।

लगातार घट रही कृषि योग्य भूमि है चुनौती

कृषि ऋण और कर्ज़ माफ़ी जैसी योजनाएँ कहीं ना कहीं सरकारी राजस्व पर दबाव बनाती हैं, फिर भी सरकार के लिए किसान प्राथमिकता रहे हैं और उसे मध्यम मार्ग तो निकालना ही होगा। समय के साथ-साथ कृषि योग्य भूमि भी देश में निरंतर घट रही है। इस तरह की कुछ तमाम चुनौतियाँ हैं, जिनसे होकर सरकार अपना अंतरिम बजट पेश करेगी। मोदी सरकार का यह आख़िरी बजट है, इस कारण सभी वर्गों की निगाह इस बजट पर रहनी सामान्य बात है।

आम धारणा है कि देश के चुनावों का मिज़ाज काफी हद तक देश का किसान तय करता है। देश में ज्यादातर लोग कृषि पर आश्रित हैं, तो यह ज़ाहिर सी बात है कि सरकार उसकी बनती है जिसके साथ देश का किसान रहता है। वर्तमान सरकार किसानों की दशा सुधारने के लिए निरंतर रूप से महत्वपूर्ण प्रयास करती आ रही है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि पिछले 60 वर्षों की क्षतिपूर्ति करिश्माई तरीके से कर देना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है।

कर्नाटक सरकार पर सियासी संकट, दो निर्दलीय विधायकों ने समर्थन वापस लिया

कर्नाटक में नया सियासी संकट शुरू हो गया है। ताज़ा ख़बरों के अनुसार दो निर्दलीय विधायकों ने कॉन्ग्रेस-जेडीएस सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। बता दें कि राज्य में 224 सीटें हैं जिसमे से कॉंग्रेस के पास 80 और जेडीएस के पास 37 सीटें हैं। कुमारस्वामी की सरकार के पास दो निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन था। एच नागेश और आर शंकर नामक दो निर्दलीय विधायकों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया है।

अभी हाल ही भाजपा ने कुमारस्वामी की सरकार पर उसके विधायकों को अपने पाले में करने के लिए प्रलोभन देने का आरोप लगाया था। इस आरोप के बाद भाजपा ने एहतियात के तौर पर अपने सौ विधायकों को दिल्ली बुला कर एक रेसॉर्ट में ठहराया है।

अब कर्नाटक का गणित और पेंचीदा होता जा रहा है। कुमारस्वामी सरकार में जल संसाधन मंत्री और कर्नाटक कॉन्ग्रेस के दिग्गज नेता डीके शिवकुमार ने भाजपा पर उनकी पार्टी के तीन विधायकों को बरगला कर मुंबई ले जाने का आरोप लगाया है। शिवकुमार ने कहा कि वो तीनों विधायक मुंबई में भाजपा नेताओं के साथ हैं। इस बारे में मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने आश्वस्त होकर कहा:

”वे मुझे बताकर गए हैं। चिंता की कोई बात नहीं है। हमारा कोई भी विधायक पाला नहीं बदलेगा। सभी तीन विधायक लगातार मेरे संपर्क में हैं। वे लोग मुझे बताने के बाद ही मुंबई गए हैं। मेरी सरकार को कोई खतरा नहीं है। मुझे पता है कि भाजपा किसके संपर्क में हैं और वे क्या ऑफ़र कर रहे हैं। मैं इससे निपट लूंगा। मीडिया को इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए।”

कुमारस्वामी सरकार को प्रभावहीन बताते हुए विधायक आर शंकर ने कहा कि आज मकर संक्रांति का दिन है इसीलिए वो राज्य सरकार से अपना समर्थन वापस ले रहे हैं। वहीं समर्थन वापस लेने वाले दूसरे विधायक एच नागेश ने कहा कि उन्होंने भाजपा के साथ जाने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि भाजपा के नेतृत्व में बनने वाली सरकार इस गठबंधन सरकार से अच्छा प्रदर्शन करेगी।

बता दें कि बहुमत के लिए 113 विधायकों की जरूरत होती है। भाजपा के पास 104 विधायक हैं जो बहुमत से काफ़ी पीछे है। कॉन्ग्रेस-जेडीएस के पास अब 117 विधायक बचे हैं, जो कि बहुमत के आंकड़े से सिर्फ़ चार ज्यादा है। कर्नाटक विधानसभा में विपक्ष के नेता और भाजपा विधायक बीएस येदियुरप्पा ने कहा:

“हमने नहीं, बल्कि पहले उन्होंने (जेडीएस) पैसे और ताकत का इस्तेमाल करते हुए ख़रीद-फ़रोख़्त की शुरुआत की है। वे हमारे विधायकों से संपर्क करने की कोशिश में लगे हैं। कलबुर्गी सीट से हमारे एक विधायक को खुद कुमारस्वामी ने मंत्री पद का ऑफ़र दिया है।”

एक रिपोर्ट के अनुसार, कॉन्ग्रेस के 10 और जेडीएस के 3 विधायक बीजेपी के संपर्क में हैं। बीजेपी की कोशिश है कि जल्दी ही ये 13 विधायक इस्तीफ़ा दे दें। मीडिया में ख़बर यह भी है कि अगर सब कुछ सही रहा तो बीजेपी कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार के ख़िलाफ़ अगले हफ़्ते अविश्वास प्रस्ताव भी ला सकती है।

NDA की जिस योजना से मिल रहा है लाखों लोगों को फायदा, गैर-BJP प्रदेश कर रहे उसे बंद

देश के लिए डिजिटल इंडिया की कल्पना करने वाली मोदी सरकार ने पिछले साल 23 सितंबर 2018 को ‘आयुष्मान भारत’ नाम की योजना शुरू की थी। इसके तहत दवाइयों से लेकर सर्जरी जैसे 1350 मेडिकल पैकेज कैशलेस और पेपरलेस मुहैया कराए जाने का उद्देश्य निहित है। इस जन-कल्याणकारी योजना से कुछ ही दिनों के भीतर लाखों लोगों को लाभ मिला लेकिन राजनीति के कारण कुछ गैर-बीजेपी राज्य इसे अपने यहाँ बंद कर रहे हैं। अब छत्तीसगढ़ ने ‘आयुष्मान भारत’ योजना से खुद को अलग कर लिया है।

आश्चर्यजनक रूप से दिल्ली, उड़ीसा और तेलंगाना ने ‘आयुष्मान भारत’ योजना को अब तक स्वीकारा ही नहीं है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने कुछ समय पहले इसे बंद कर किया। अब छत्तीसगढ़ ने भी इस योजना को अपने राज्य में लागू करने से मना कर दिया है। छत्तीसगढ़ सरकार ने ऐसा करने के पीछे अपना मत दिया कि वो इस योजना के बदले में ‘यूनिवर्सल हेल्थ स्कीम’ शुरू करने जा रहे हैं।

छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने आयुष्मान योजना को बीमा योजना करार देते हुए कहा कि इसमें आउटपुट बेहद कम है और खर्चा बहुत ज्यादा है। उन्होंने अपने राज्य में इस योजना का विकल्प रखते हुए बताया कि उनके राज्य में एक ऐसी योजना लाई जा रही है, जो आयुष्मान योजना के मुकाबले कम खर्चे में तैयार होगी। राज्य में लागू होने वाली इस योजना में जाँच, इलाज व दवा भी मुफ़्त उपलब्ध करवाई जाएगी।

टीएस सिंहदेव ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा कि आयुष्मान भारत में गंभीर बीमारियों का इलाज किया जाता है, जिसके अंतर्गत सिर्फ प्रदेश की 5 से 8 प्रतिशत जनता ही आ पाएगी। इसके तहत प्रदेश में रह रहे 42 लाख परिवारों का 1100 रुपए हर परिवार के आधार पर बीमा कराया जाएगा। इस 1100 की राशि में 660 रुपए केंद्र द्वारा दिए जाते हैं और 440 रुपए राज्य सरकार द्वारा दिए जाते हैं। राज्य को इसके लिए करीब 180 करोड़ रुपए देने पड़ेंगे। मंत्री सिंहदेव के अनुसार इतनी राशि में पूरे राज्य के 80 फीसदी की आबादी को निशुल्क दवा और इलाज़ उपलब्ध करा दिया जाएगा।

आपको बता दें कि 2018 में आए केंद्रीय बज़ट में सरकार ने इसकी घोषणा की थी। इस योजना में लगभग उन सभी बीमारियों को कवर करने की बात है, जो बहुत से प्राइवेट मेडिकल बीमा कंपनियाँ मुहैया नहीं कराती हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने भी आयुष्मान भारत योजना की सराहना की थी। उन्होंने कहा था कि इस योजना को लागू करने के 100 दिनों के भीतर 7 लाख लोगों को फ़ायदा पहुँचा था।

बुलंदशहर गोकशी के मामले में तीन आरोपितों पर लगा रासुका

पिछले महीने उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में गोकशी घटना के संबंध में सात लोगों को गिरफ़्तार गया था। इनमें से तीन लोगों अज़हर ख़ान, नदीम ख़ान और महबूब अली पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत मुक़दमा दर्ज कर लिया गया है। दरअसल तीन दिसंबर को बुलंदशहर के स्याना तहसील में खेत के बाहर मवेशियों के कंकाल मिले थे। इसके बाद ग्रामीणों ने आरोपितों के विरोध में जमकर बवाल काटा था। गोकशी की घटना के बारे में सुनकर मौक़े पर पहुँची ग्रामीणों की भीड़ ने उत्पात मचाते हुए पुलिस चौकी पर हमला कर दिया था।

इस घटना के दौरान पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह और एक 20 वर्षीय नौजवान सुमित कुमार की मौत गोली लगने से हो गई थी। इस घटना के बाद राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्याना का दौरा करके पुलिस अधिकारी को कानून के आधार पर सख़्त कार्रवाई करने का दिशा-निर्देश दिया था। घटना के बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुए गोकशी मामले में सात लोगों को हिरासत में लिया था। पुलिस जाँच के बाद गिरफ़्तार किए गए सात में से तीन आरोपितों पर रासुका लगाया है।

जानकारी के लिए आपको बता दें कि इस मामले में घटना के संबंध में स्याना थाने में दो प्राथमिकी दर्ज हुई थी। पहली प्राथमिकी हिंसा के संबंध में दर्ज हुई जिसमें करीब 80 लोगों को नामजद किया गया, जबकि दूसरी प्रथमिकी गोकशी के लिए दर्ज हुई थी।

इस मामले में सुनावाई के बाद जिला मजिस्ट्रेट अनुज झा ने कहा, “तीन आरोपितों ने जमानत के लिए आवेदन किया था और उन्हें जमानत मिलने की संभावना थी। इस बात को ध्यान में रखते हुए, उनपर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाया गया है।” जिला मजिस्ट्रेट ने अपने बयान में यह भी कहा कि कार्रवाई पुलिस रिपोर्ट के आधार पर की गई है।

पुलिस रिपोर्ट में इस बात की चर्चा है कि अज़हर ख़ान,नदीम ख़ान और महबूब अली को गलत तरह से धन कमाने के लिए गोकशी में संलिप्त पाया गया था। जज ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा था कि गोकशी में संलिप्त इन आरोपितों के कृत्य से महाव व नयाबांस गाँव में रहने वाले हिन्दुओं की भावना को चोट पहुँचाई गई है, जिसके बाद गाँव में हिंसा हुई।

इस तरह आरोपितों पर रासुका लगाए जाने के बाद उन मुट्ठी भर लोगों के मुँह पर ताला लग गया जो पूरी घटना के लिए हिन्दुओं को ज़िम्मेदार मानते थे। जिला मजिस्ट्रेट ने अपने बयान में स्पष्ट कर दिया कि जिन लोगों पर रासुका लगा है, उन्होंने हिन्दुओं की भावना को चोट पहुँचाया है।

अगस्ता वेस्टलैंड काण्ड: दलाल मिशेल की पहुँच CCS, PMO ही नहीं बल्कि जाँच एजेंसियों तक!

दुबई से प्रत्यर्पित, अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी चॉपर घोटाले में बिचौलिए क्रिश्चियन मिशेल ने ख़ुलासा किया कि जब से इस सौदे पर बातचीत शुरू ही हुई थी तभी से वह लगातार भारतीय लोगों के सम्पर्क में था। इस मामले में एक के बाद एक लगातार आश्चर्यजनक खुलासे हो रहे हैं। इससे पहले, यह बताया गया था कि कैसे मनमोहन सिंह के कार्यकाल में  मिशेल की कैबिनेट मीटिंग, कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) मीटिंग्स और तत्कालीन पीएमओ तक पहुँच थी। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट में अब यह सामने आया है कि उसकी जाँच एजेंसियों तक भी पहुँच थी।

एक आश्चर्यजनक रहस्योद्घाटन उसके 2009 के डिस्पैच के आधार पर किया गया है जिसे उसने अपने साथी बिचौलिए, गुइडो राल्फ हाश्के को लिखा था। 6 दिसंबर 2009 के इस डिस्पैच में, हाश्के को अगस्ता वेस्टलैंड चॉपर घोटाले के एक सह-अभियुक्त वकील गौतम खेतान से दूरी बनाने के लिए कहा था।

इसका कारण बताते हुए क्रिश्चियन मिशेल ने हाश्के को लिखा था कि खेतान ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के भीतर अपने ‘दोस्त’ के साथ मिलकर रियल एस्टेट फर्म एम्मार एमजीएफ़ के ख़िलाफ़ छापा मारने की कोशिश की थी। उस समय कंपनी अपना पहला इनिशियल पब्लिक ऑफर (आईपीओ) शुरू करने वाली थी। लेकिन एमजीएफ़ के लोगों को इसके बारे में पता चल गया था और उन्होंने हाश्के के लोगों को ‘गेट लॉस्ट’ कहा था।

रिपोर्ट के अनुसार, क्रिश्चियन मिशेल पर अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले में ₹3,600 करोड़ के मनी लॉन्ड्रिंग, रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी का आरोप है।

क्रिश्चियन मिशेल के प्रत्यर्पण के बाद चल रही जाँच में कुछ और बड़े ख़ुलासे हुए हैं। इससे पहले, यह बताया गया था कि कॉन्ग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के बेटे ( son of a senior Congress leader) ने ‘किकबैक’ की व्यवस्था की थी। रिपोर्ट के अनुसार, मिशेल ऑफिशल सीक्रेट एक्ट के तहत आरोपित किए जा सकते हैं।

जाँच के दौरान, “श्रीमती गांधी”, “इतालवी महिला का बेटा आर” (“Mrs Gandhi”, “Italian Lady’s Son R”) और एपी (AP) (जो अहमद पटेल हो सकते हैं) जैसे गुप्त नाम भी सामने आए थे। यह भी पाया गया कि क्रिश्चियन मिशेल कई बार भारत आए थे और वे कॉन्ग्रेस शासन के दौरान भारत में राफ़ेल सौदे के ख़िलाफ़ और यूरोफाइटर सौदे के समर्थन में भी पैरवी कर रहे थे।

सबरीमाला मंदिर से लौटी महिला की सास ने की कुटाई, अस्पताल में भर्ती

800 वर्षों की परंपरा को तोड़ कर सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने वाली महिला की उसकी सास ने बुरी तरह पिटाई की है। सुप्रीम कोर्ट ने सितम्बर 2018 में महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने की इजाज़त दे दी थी जिसके बाद श्रद्धालुओं ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था। उच्चतम न्यायलय के उस निर्णय के बाद कनकदुर्गा सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने वाली पहली महिला थी। 39 वर्षीय कनकदुर्गा ने एक अन्य महिला के साथ सबरीमाला की सैकड़ों साल पुरानी परंपरा को धता बताते हुए मंदिर में प्रवेश किया था।

ताज़ा ख़बर के अनुसार मंदिर में प्रवेश करने के बाद पहली बार घर पहुँची कनकदुर्गा पर उनकी सास ने हमला कर दिया। उसकी सास ने उसे इतनी बुरी तरह पीटा कि कनकदुर्गा को तुरंत अस्पताल पहुँचाना पड़ा। अभी उसकी हालत स्थिर बनी हुई है। सबरीमाला मंदिर में प्रवेश कर वापस लौटने के बाद कनकदुर्गा कई दिनों से घर नहीं पहुँची थी और किसी गुप्त स्थान पर छिपी हुई थी। लोगों को लगा था कि वो शायद प्रदर्शनकारियों से बचना चाह रही हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार कनकदुर्गा जैसे ही अपने घर पहुँची, उस से नाराज़ उसकी सास ने लकड़ी के तख्ते से उसपर हमला कर दिया और उसकी पिटाई शुरू कर दी। उसके बाद उन्हें आनन-फानन में पेरिंथलमन्ना के सरकारी अस्पताल में भर्ती किया गया जहाँ अभी भी उसका इलाज चल रहा है। स्थानीय लोगों के अनुसार उसकी सास ने लकड़ी के तख्ते से उसके सिर पर वार किया। फ़िलहाल पुलिस ने इस मामले में केस दर्ज कर लिया है और आगे की करवाई की जा रही है।

कनकदुर्गा का परिवार उस से तभी से नाराज़ चल रहा था जब से उसके सबरीमाला में प्रवेश करने की ख़बर आई थी। उसके भाई ने इसे CPM और केरल पुलिस की साजिश बताया था। ज्ञात हो कि केरल के मुख्यमंत्री पिन्नाराई विजयन ने सबरीमाला में प्रवेश करने वाली इन महिलाओं को पूरी सुरक्षा प्रदान करने के निर्देश दिए थे। इसके बाद इन्हे पुलिस प्रोटेक्शन के साथ उसे आधी रात को मंदिर की सीढ़ियों पर ले जाया गया। रात के क़रीब तीन बजे कनकदुर्गा एक अन्य महिला के साथ सबरीमाला के अंदर घुसने में सफल हो गई थी। उसके साथ गई महिला का नाम बिंदु है जो केरल में सत्ताधारी पार्टी CPM की कार्यकर्ता है।

कई ख़बरों के मुताबिक़ अब तक 10 महिलाएँ सबरीमाला मंदिर के अंदर प्रेवश करने का दावा कर चुकी है। सबरीमाला की पुरातन प्रथा की रक्षा के लिए श्रद्धालु कई दिनों से सड़कों पर हैं और केरल की वामपंथी सरकार के ख़िलाफ़ लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। इस मामले में अब तक केरल पुलिस ने 5000 से भी अधिक श्रद्धालुओं को गिरफ़्तार किया है।

गुप्ता जी का नया धमाका: सुप्रीम कोर्ट के जज ‘दि प्रिंट’ के रिपोर्ट को पढ़कर फ़ैसला लेते हैं!

बचपन से अपने गाँव में एक कहावत ‘अधजल गगरी छलकत जाय’ को सुनते हुए बड़ा हुआ हूँ। इस कहावत का आशय यह है कि जब किसी घड़े में आधा पानी भरा होता है, तो घड़ा से छलक कर पानी बाहर आ ही जाता है।

शेखर गुप्ता की वेबसाइट ‘दि प्रिंट’ का मामला भी कुछ इसी तरह का लगता है। दरअसल दि प्रिंट को लॉन्च हुए अभी मुश्किल से दो साल भी नहीं हुआ है, लेकिन वेबसाइट अपने रिपोर्ट के ज़रिए दावा कुछ इस तरह करती है, जैसे उनके रिपोर्ट को पढ़ने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट के जज किसी मामले में कोई फ़ैसला लेते हैं।

पिछले दिनों सीबीआई निदेशक पद से आलोक वर्मा को हटाए जाने के लिए केंद्र के पक्ष में वोट करने के बाद तथाकथित प्रगतिशील मीडिया का एक बड़ा गिरोह जस्टिस एके सीकरी के ईमानदारी पर सवाल खड़े कर रहा है। इस मामले में मार्कंडेय काटजू ने नई टिप्पणी करते हुए अपने ट्वीटर पर लिखा – “मीडिया में जरा सी भी शर्म बची है तो उसे जस्टिस सीकरी से माफ़ी माँगनी चाहिए।”

पूर्व जस्टिस काटजू का यह बयान दि प्रिंट जैसे संस्थानों के लिए ही है। सीबीआई निदेशक मामले में जस्टिस सीकरी के फ़ैसले के बाद दि प्रिंट हिंदी ने वेबसाइट पर एक आर्टिकल पब्लिश किया। इस आर्टिकल को मनीष छिब्बर नाम के व्यक्ति ने 14 जनवरी को 10 बजकर 39 मिनट पर अपडेट किया है। इसे राहुल गाँधी ने अपने ट्वीटर अकाउंट से शेयर भी किया है। इस आर्टिकल में अप्रत्यक्ष रूप से एक न्यायाधीश की ईमानदारी पर सवाल उठाया गया है, मानो आलोक वर्मा को हटाने के पुरस्कार के रूप में सरकार उन्हें यह पद दे रही है।

जस्टिस सीकरी मामले में दिप्रिंट की यह पहली रिपोर्ट है

पहले रिपोर्ट के ठीक 38 मिनट बाद 11 बजकर 17 मिनट पर दि प्रिंट हिंदी की तरफ से एक दूसरी स्टोरी ‘दि प्रिंट की रिपोर्ट के बाद न्यायमूर्ति सीकरी का अब सीसैट पद से इंकार’ की हेडिंग के साथ अपडेट की गई। जिस वेबसाइट को पैदा हुए अभी जुम्मा-जुम्मा आठ रोज़ नहीं हुए हैं, उस वेबसाइट के इस खोखले दावे को देखकर किसी को भी आश्चर्य होगा। हालाँकि, दि प्रिंट ने अंग्रेजी वेबसाइट पर मनीष छिब्बर की यह रिपोर्ट 13 जनवरी को अपडेट की है। लेकिन बावजूद इसके सोचने वाली बात यह है कि दि प्रिंट को किन सूत्रों से यह पता चला कि उनके रिपोर्ट को पढ़ने के बाद ही जस्टिस सीकरी ने अपने फ़ैसले को बदला है।

दिप्रिंट के इस रिपोर्ट में जस्टिस सीकरी के फ़ैसले पर सवाल किया गया है

इस रिपोर्ट में किए गए दावे को देखकर शेखर गुप्ता और उनकी टीम के बड़बोलेपन का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। दि प्रिंट को लगता है कि जस्टिस सीकरी मुख्यधारा के चैनल व अख़बारों को देखना-पढ़ना छोड़कर आजकल सिर्फ़ दि प्रिंट को पढ़ रहे हैं। यही वजह है कि उनके रिपोर्ट को अपडेट हुए आधा घंटा भी नहीं हुआ कि जस्टिस सीकरी का दिमाग एकदम से घूम गया और उन्होंने आधे घंटे के अंदर सीसैट पद ठुकराने का फ़ैसला ले लिया। दि प्रिंट को यह भ्रम हो गया है कि उनके रिपोर्ट को पढ़कर ही एक न्यायाधीश ने अपना फ़ैसला बदल लिया है।

जस्टिस एके सीकरी की छवि एक ईमानदार न्यायधीश की रही है। पिछले दिनों बेबाक राय रखने वाले पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने कहा, “एके सीकरी को मैं काफ़ी अच्छे से जानता हूँ, वो बेहद ईमानदार न्यायधीश हैं। उन्होंने जो भी फ़ैसला लिया है, कुछ सोचने के बाद ही लिया होगा।”

ऐसे में साफ़ है कि जस्टिस सीकरी को यह बात काफ़ी अच्छी तरह से मालूम था कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा पर फ़ैसले के बाद कुछ लोगों और कथित प्रगतिशील मीडिया के एक धरे द्वारा उनके ऊपर सवाल उठाए जाएंगे। इस बात को समझते हुए एके सीकरी ने विवादों के गंदे छींटें से बचने के लिए सेवानिवृत होने के बाद सीसैट के पद से इनकार कर दिया।

लेकिन जस्टिस सीकरी के इस ईमानदार फ़ैसले पर शेखर गुप्ता के शेरों ने इसे अपनी जीत के रूप में देखना शुरू कर दिया। सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के मामले में जैसे ही जस्टिस सीकरी ने फ़ैसला लिया, राहुल गाँधी ने हर बार की तरह इस बार भी देश के सर्वोच्च संस्थान और वहाँ काम करने वाले ईमानदार न्यायाधीश को बदनाम करना शुरू कर दिया।

दि प्रिंट जैसे प्रोपेगेंडा फ़ैलाने वाले वेबसाइट के लिंक के ज़रिए जस्टिस सीकरी को बदनाम करने वाले राहुल ने एक बार भी नहीं सोचा कि कर्नाटक मामले में कॉन्ग्रेस की याचिका पर सीकरी ने दूसरे जजों के साथ मिलकर रात के एक बजे कोर्ट में सुनवाई की थी। यही नहीं अपने फ़ैसले में सीकरी ने राज्यपाल के फ़ैसले को पलटकर भाजपा को पंद्रह दिनों की बजाय तुरंत बहुमत साबित करने का आदेश सुनाया था। इसी आदेश के बाद भाजपा जल्दबाजी में बहुमत नहीं साबित कर पाई और कॉन्गेस-जेडीएस ने मिलकर सरकार बना लिया था।

कॉन्ग्रेस के लिए देश के सरकारी संस्थाओं पर सवाल उठाना कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी कॉन्ग्रेस पार्टी ने गुजरात में होने वाले राज्यसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग पर सरकार के दवाब में काम करने का आरोप लगाया था, जबकि चुनाव आयोग ने दो विधायकों के सदस्यता को रद्द करके फ़ैसला कॉन्ग्रेस पार्टी के पक्ष में सुनाया।

इसी तरह जब अचल कुमार ज्योति देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त बने थे, तो कॉन्ग्रेस ने उन्हें भाजपा समर्थक बताकर घड़ियाली आँसू बहाना शुरू कर दिया। कॉन्ग्रेस और राहुल गाँधी के इन बयानों को प्रोपेगेंडा वेबसाइटों ने खूब आगे बढ़ाया था ।

शेखर गुप्ता अपने बेकार और बेबुनियाद ख़बरों को लीड में चलाकर देश की सेना पर पहले ही ‘मिलिट्री कू’ (सेना द्वारा तख़्तापलट) के मनगढंत आरोप लगाकर जलवे काटे हैं। गुप्ता जी जैसे पत्रकारों को कहानी लेखन में अप्रतिम योगदान के लिए साहित्य अकादमी अवार्ड दिया जाना चाहिए।

गुप्ता जी के कारनामे की एक तस्वीर

प्रोपगेंडा है शाह फ़ैसल का इस्तीफा: IPS अधिकारी

भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी अभिनव कुमार ने UPSC के टॉपर रहे शाह फ़ैसल के इस्तीफे को प्रोपेगंडा बताते हुए उनकी धज्जियाँ उड़ा दी है। इंडियन एक्सप्रेस में लिखे गए एक लेख में अभिनव कुमार ने कहा कि फ़ैसल ये समझते हैं कि कश्मीरी अलगाववाद भारतीय संविधान के साथ पूरी तरह सुसंगत है। अपने लेख में उन्होंने कश्मीर समस्या पर बात करते हुए कहा कि बुद्धिजीवियों और यहाँ तक कि अंतराष्ट्रीय समुदाय ने कश्मीर पर एक गलत धारणा बना रखी है। बकौल अभिनव वो धारणा है, ‘निर्दयी भारतीय गणराज्य 1947 से ही कश्मीर के लोगों पर अत्याचार करता रहा है।’

अभी कश्मीर में अपनी सेवा दे रहे IPS अधिकारी कुमार इस लेख में कहते हैं कि यह एक संकीर्ण विचारधारा है, जो खुद धार्मिक कट्टरता, ज़ेनोफोबिया पर टिकी हुई है। उनके अनुसार इसमें कश्मीर की संस्कृति और उसके इतिहास के लिए कोई जगह नहीं है। ये ‘एकतरफा उत्पीड़न’ की गलत धारणा कश्मीरियों द्वारा उठाए गए कई गलत कदमों को भी नजरअंदाज कर देती है। अभिनव ने इसके लिए कश्मीरी नेताओं को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि उन अति महत्वकांक्षी नेताओं ने राज्य को विशेष दर्जा हासिल कराने के लिए अतिशयोक्तिपूर्ण आश्वाशन दिए। साथ ही उन्होंने घाटी से कश्मीरी पंडितों की निर्मम सफाई के लिए भी इस धारणा को आड़े हाथों लिया।

अभिनव कुमार ने अलगावादियों को भी कश्मीर पर भारतीय भावनाओं को समझने की हिदायत देते हुए कहा कि भारतीय भावनाएँ भारत-पाक विभाजन के कड़वे अनुभवों पर आधारित है। साथ ही, भारत-पाक के तल्ख़ रिश्ते भी इसे प्रभावित करते हैं। आतंकवादियों और अलगाववादियों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले ‘इन्तिफ़ा’ और ‘जिहाद’ जैसे शब्दों पर करारी चोट करते हुए उन्होंने अपने इस लेख में कहा कि ये शब्द ना तो भारतीय मुख्यधारा को भयभीत कर सकते हैं और न ही हमारे इरादे को तनिक भी हिला सकते हैं।

कश्मीरियों को इस अपरिहार्य त्रासदी लिए जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने लेख में बताया कि इसका निर्माण कश्मीरियों ने ही किया है और वो आज खुद इसमें उलझ गए हैं। शाह फ़ैसल के बारे में बात करते हुए अभिनव कुमार ने लिखा कि भले ही कश्मीर को एक उभरता सितारा मिल गया हो लेकिन उसकी सोच अस्पष्ट है। उन्होंने फ़ैसल द्वारा ‘टारगेट ऑडियंस’ को भरमाने पर भी सवाल खड़ा किया। कुल मिला कर देखें तो पुलिस अधिकारी अभिनव कुमार ने कश्मीर को लेकर चल रही गलत अवधारणा और उसे आगे ले जाने वाले फ़ैसल के इस्तीफे को विशेष प्रोपगेंडा से प्रेरित बताया।

बता दें कि शाह फै़ैसल 2009 में सिविल सेवा की परीक्षा में पूरे भारत में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले पहले कश्मीरी बने थे। उसके बाद वो विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे। विवादित अधिकारी फ़ैसल अक्सर उलूलजलूल बयान देकर चर्चा में आते रहे हैं। भारत को रेपिस्तान कह कर तीखी आलोचना का सामना करने वाले फ़ैसल ने भारत सरकार पर कश्मीरियों को प्रताड़ित करने का आरोप लगा कर कुछ दिनों पहले सिविल सेवा से इस्तीफा दे दिया था जिसके बाद उनके उमर अब्दुल्ला की पार्टी में शामिल होने के कयास लगाए जा रहे हैं।

मोदी को छोड़कर अब पूर्व पीएम वाजपेयी पर पिली कॉन्ग्रेस

लोकसभा चुनावों के आते-आते कॉन्ग्रेस नेताओं के बयानों को सुनकर ऐसा लगता है, मानो जैसे वो अच्छा-बुरा सब भुलाकर अपना आपा खो चुके हैँ। उन्हें न किसी के पद का ख़्याल है और न ही किसी की उपलब्धियों का। साम-दाम-दंड-भेद किसी भी तरीके से उन्हें सत्ता में आना हैं, जिसके लिए वो कुछ भी कर गुज़रने को तैयार हैं।

मणिशंकर अय्यर, दिग्विजय सिंह और संजय निरूपम जैसे कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता पहले ही प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के ख़िलाफ़ अपशब्दों का प्रयोग करते रहे हैं। लगातार आते इन नेताओं के बयानों को देखकर लगता हैं जैसे ये सिलसिला अभी रुकने वाला नहीं हैं।

रिपोर्टों के अनुसार उल्हास पवार ने, जो कि कॉन्ग्रेस के नेता भी हैं और पूर्व विधायक भी रह चुके हैं, नागपुर में आयोजित हुई ‘जन संघर्ष रैली’ में इल्ज़ाम लगाते हुए कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 1942 में स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल थे, जिस दौरान उन्हें जेल भी भेजा गया। लेकिन, उन्होंने 9 दिनों के भीतर ही ब्रिटिश सरकार को क्षमा पत्र लिखा और जेल से बाहर आ गए। इस घटना के बाद वो कभी भी जेल नहीं गए।

इसके बाद उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए बताया कि विनायक दामोदर सावरकर ने भी अंग्रेज़ों को कम से कम 18 दफ़ा माफ़ी पत्र लिखा। अपनी बातों पर ज़ोर देते हुए उन्होंने भाजपा पर कई और आरोप लगाए। उनके कहे अनुसार 1968 में वो भाजपा के ही नेता थे, जिन्होंने अपनी पार्टी के प्रमुख दीन दयाल उपध्याय को मारा था। जिसका स्त्रोत उन्होंने भारतीय जन संघ के पूर्व अध्यक्ष बलराज माढोक की किताब को बताया, जिसमें उन्होंनें दील दयाल उपध्याय की पूरी जीवनी की चर्चा की है।

बीजेपी की छवि धूमिल करने के लिए लगातार कॉन्ग्रेस नेताओं का इस तरह का हमला करना उनकी ओछी राजनीति का सबूत है। अपने आपको सेक्यूलर पार्टी होने का दावा करने वाली कॉन्ग्रेस सरकार लगातार पीएम की जाति को लेकर, उनके पारिवारिक परिस्थितियों को लेकर उनके बैकग्राउंड को लेकर टिप्पणी करना बताता है, कि कॉन्ग्रेस किस दिशा में जाकर पीएम को सत्ता से हटाने के लिए आतुर है। यही नहीं तथाकथित रूप से महिलाओं का सम्मान करने वाली कॉन्ग्रेस पार्टी के नेता संजय निरूपम ने स्मृति ईरानी पर भी शर्मसार करने वाली नारीविरोधी टिप्पणी की थी।