जेएनयू (JNU) कैम्पस दिल्ली में 2016 में देशद्रोह के नारे लगाने के मामले में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने पटियाला हाउस कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दिया है। चार्जशीट में माकपा नेता डी राजा की बेटी अपराजिता, JNU के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार, और उमर ख़ालिद समेत 10 को आरोपी बनाया गया है। अब इस मामले में कोर्ट कल (जनवरी 15, 2019) विचार करेगी।
चार्जशीट दाख़िल होने से पहले ही कन्हैया कुमार पर फ़ैसला
‘आज तक’ न्यूज चैनल तेज़ तो है लेकिन इस बार कुछ ज़्यादा ही तेज़ी दिखाई गई। JNU मामले में चार्जशीट दाख़िल होने से पहले ही इन्होंने JNUSU के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार के ख़िलाफ़ सबूत नहीं होने का दावा करते हुए हेडलाइन लिखा – JNU केस में चार्जशीट आज, कन्हैया के ख़िलाफ़ सबूत नहीं, शहला राशिद और डी राजा की बेटी का नाम
हालाँकि, जब FIR की कॉपी रिलीज़ की गई तो ‘आज तक’ ने फिर से तेज़ी दिखाते हुए ख़बर में संशोधन करते हुए हेडलाइन में बदलाव कर दिया और पुरानी हेडलाइन को वेबसाइट से हटा दिया।
पूर्व
न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने उठाए थे मीडिया पर सवाल
बता दें कि बीते दिनों मीडिया-सोशल मीडिया पर स्वयं ही जज बनने वालों पर काटजू ने तंज कसा था। उन्होंने मीडिया की नैतिकता और जवाबदेही पर सवाल उठाते हुए कहा था, “ऐसा लगता है कि हमारे अधिकांश पत्रकार केवल सनसनी पैदा करना चाहते हैं। तथ्यों की परवाह किए बिना मसाला घोंटने में विश्वास रखते हैं। इसीलिए मैं ज्यादातर भारतीय मीडिया को फ़र्ज़ी ख़बर कहता हूँ।”
ख़बरों को सबसे पहले चलाने की मारा-मारी में अक्सर सत्य और तथ्य पहला शिकार बनते हैं। चार्जशीट दाख़िल होने के बाद कोर्ट कल इसका संज्ञान लेगी, फिर मुक़दमे की बात होगी, मुक़दमा चलेगा, सबूत माँगे जाएँगे, गवाहियाँ होंगी, और तब जाकर कहा जा सकेगा कि ‘कन्हैया के ख़िलाफ़ सबूत नहीं मिले’ या ‘सबूत मिले’। लेकिन चार्जशीट फ़ाइल होने से पहले हेडलाइन में क्लीनचिट और भीतर आरोप तथा धाराओं की बात लिखना बताता है ख़बर पढ़वाने के लिए वेब मीडियम भ्रामक हेडलाइन चलाने से बाज़ नहीं आते।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रथम फिलिप कोटलर प्रेसिडेंशियल अवॉर्ड दिया गया। 14 जनवरी को पीएम मोदी को प्रदान किया गया यह पुरस्कार मुख्यतः तीन पर बिंदुओं पर केंद्रित है – जनता, लाभ, धरती (3 Ps – People, Profit and Planet)। यह पुरस्कार किसी राष्ट्र के नेता को प्रतिवर्ष दिया जाना है।
PM @narendramodi received the first-ever Philip Kotler Presidential award.
The Award focuses on the triple bottom-line of People, Profit and Planet.
“पीएम मोदी का चयन राष्ट्र के लिए उत्कृष्ट नेतृत्व के आधार पर किया गया है। भारत के लिए उनकी निःस्वार्थ सेवा के साथ-साथ उनकी अथक ऊर्जा के कारण देश में असाधारण आर्थिक, सामाजिक व तकनीकी विकास हुआ है।” – फिलिप कोटलर प्रेसिडेंशियल अवॉर्ड के प्रशस्ति पत्र में यही उल्लेख है।
The Award Citation says:
“Shri Narendra Modi is selected for his outstanding leadership for the nation. His selfless service towards India, combined with his tireless energy has resulted in extraordinary economic, social and technological advances in the country.” pic.twitter.com/otcI8BmWmk
प्रशस्ति पत्र में यह भी कहा गया है कि उनके नेतृत्व में भारत को अब इनोवेशन का केंद्र, मेक इन इंडिया के कारण विनिर्माण केंद्र के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी, अकाउंटिंग व फ़ायनांस जैसी व्यावसायिक सेवाओं के लिए वैश्विक तौर पर पहचान मिली है।
The Citation adds: “Under his leadership, India is now identified as the Centre for Innovation and Value Added Manufacturing (Make in India), as well as a global hub for professional services such as Information Technology, Accounting and Finance.” pic.twitter.com/CaNYkQbNeI
पीएम मोदी को डिजिटल क्रांति (डिजिटल इंडिया) का श्रेय देते हुए प्रशस्ति पत्र में कहा गया कि उनके दूरदर्शी नेतृत्व के कारण ही आधार कार्ड के जरिए सामाजिक लाभ और वित्तीय समावेशन संभव हो पाया। इससे उद्यमशीलता, व्यापार करने में आसानी भी हुई। इस कारण भारत आज 21वीं सदी का बुनियादी ढाँचा बनाने में सक्षम है।
The Citation mentions: “His visionary leadership has also resulted in Digital Revolution (Digital India), including Aadhaar, for social benefits and financial inclusion. It is enabling entrepreneurship, ease of doing business, & creating a 21st century infrastructure for India.”
जानकारी के लिए बता दें कि फिलिप कोटलर केलॉग स्कूल ऑफ मैनेजमेंट (नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी) में मार्केटिंग के प्रोफ़ेसर हैं और मार्केटिंग गुरु के नाम से मशहूर भी। वो अपने स्वास्थ्य कारणों से ख़ुद यह पुरस्कार देने नहीं आ पाए। उनकी जगह जॉर्जिया की इमोरी यूनिवर्सिटी के जगदीश सेठ को पीएम मोदी को पुरस्कार प्रदान करने के लिए भेजा गया।
अंतरराष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों की बात करें तो नरेंद्र मोदी को पिछले साल प्रतिष्ठित सियोल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उससे पहले, संयुक्त राष्ट्र ने ‘चैंपियंस ऑफ द अर्थ अवार्ड्स’ फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्राँ के साथ संयुक्त रूप से दिया था।
लोकसभा चुनाव जितने करीब आ रहे हैं, विपक्षी नेताओं का मिलना-जुलना उतना ही बढ़ता जा रहा है। इन्हींं मुलाक़ातों से सपा-बसपा के बीच का गठबंधन देखने को मिला है और अब लग रहा है, जैसे इस गठबंधन में राजद नेता तेजस्वी यादव भी अपनी जगह बना ही लेंगे।
बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इस समय लखनऊ आए हुए हैं, जहाँ वह सोमवार को मायावती से मिलने के बाद समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव से मिले हैं। दोनों पार्टी के मुखियों से मिलने के बाद तेजस्वी यादव ने कहा कि इस समय देश में अघोषित रूप से आपातकाल का माहौल है। देश के नौजवान बेरोज़गार हैं। ऐसे में भाजपा को चुनावों में हराने के लिए सपा-बसपा के हुए इस गठबंधन पर उन्होंने मायावती और अखिलेश को बधाई दी।
अपने बयान में तेजस्वी ने कहा कि आज बाबा साहब के संविधान को मिटाने के साथ ‘नागपुरिया कानून’ को देश में लागू करने करने प्रयास किया जा रहा है। तेजस्वी की मानें तो इन लोकसभा के चुनावों में भाजपा का सफ़ाया यूपी और बिहार से बिलकुल तय है। तेजस्वी ने अपना गणित लगाते हुए कहा कि अगर भाजपा को उत्तर प्रदेश की 80 सीटें, बिहार की 40 सीटें और झारखंड की 14 सीटें न मिलें, तो बीजेपी अपने आप ही 100 सीटों से नीचे पहुँच जाएगी।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि सपा-बसपा का ये गठबंधन बेहद सराहनीय कदम है। अपनी इस बातचीत में तेजस्वी ने लालू के जेल में होने का भी ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि इस समय सीबीआई और ईडी बीजेपी के सहयोगी हैं, जिसके कारण लालू जी जेल में हैं।
इस गठबंधन में कॉन्ग्रेस के न शामिल होने पर तेजस्वी ने इस बात को खुलकर स्वीकारा कि पूरे विपक्ष का लक्ष्य सिर्फ बीजेपी को हराना है, जिसके लिए सिर्फ़ सपा-बसपा का गठबंधन ही काफ़ी है।
तेजस्वी द्वारा पाई गई बधाई के बाद सपा के प्रमुख अखिलेश यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनका धन्यवाद अदा किया। साथ ही, उन्होंने कहा कि देश में किसान से लेकर नौजवान और व्यापारी सभी दुखी हैं, ऐसे में यूपी के साथ पूरे देश में इस गठबंधन को लेकर खुशी है।
बसपा की मुखिया से मिलने के बाद तेजस्वी ने कहा कि वो सबसे छोटे हैं, इसलिए लखनऊ आशीर्वाद लेने आए हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में महागठबंधन देखने को मिले, ये लालू जी भी चाहते थे।
आगामी चुनावों को देखते हुए अगर बात करें तो उत्तर प्रदेश और बिहार दो ऐसे राज्य है, जिन्होंने हमेशा से ही राजनीति के बदलते समीकरणों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को निभाया है। इस डेढ़ घंटे चली मुलाकात के बाद बताया जा रहा है कि सपा-बसपा के गठबंधन में अब राजद भी शामिल हो सकती है और साथ ही बिहार में बसपा को 1-2 सीटें मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है।
नैशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी के अध्यक्ष फारूक अबदुल्ला ने एक फिर केंद्र सरकार को घेरते हुए ‘असहिष्णुता’ का राग अलापा। देश की जनता को भ्रमित करने की उनकी यह आदत एक बड़े विवाद का रूप ले लेती है। बीते रविवार (जनवरी 13, 2019) को उन्होंने कहा कि देश में बढ़ती असहिष्णुता मजहब के लोगों को बुरी तरह से प्रभावित कर रही है। बयान में उन्होंने अल्पसंख्यको के प्रति अपनी भ्रमित कर देनी वाली चिंता दर्शाने की पुरज़ोर कोशिश की, जिसका ना कोई पुख़्ता आधार है और ना ही कोई पुख़्ता कारण। हाल ही में पूर्व IAS अफ़सर शाह फ़ैसल ने भी ऐसे ही शब्दों को चुना था जब उन्होंने
केंद्र सरकार को टारगेट
करके दिया गया बयान फारूक की कूटनीतिक विचारधारा को स्पष्ट करती है। केंद्र सरकार को
दोषी करार देते हुए उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार भारत की धर्मनिरपेक्ष और उदार
छवि को धूमिल करने का काम कर रही है।
तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं फारूक अबदुल्ला
बता दें कि फारूक अब्दुल्ला तीन बार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। मुख्यमंत्री पद का भार संभालने के बावजूद वो यह समझने में असमर्थ रहे हैं कि देश की जनता को जातिगत या धार्मिक रूप से भ्रमित करना निंदनीय कार्य ही नहीं बल्कि लोकतंत्र के माथे पर कलंक भी है। फारूक के फ़र्ज़ी बयानों से ऐसा लगता है मानो, उनके तीखे बोल और हमलावर रुख़ हमेशा बीजेपी को आड़े हाथों लेने के सिवाय कोई दूसरा काम जानते ही न हो।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब फारूक ने अपने बयानों से सुर्ख़ियाँ बटोरने का काम किया हो, पहले भी वो इस तरह की हरक़त कर चुके हैं जिसमें वो केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ ही नज़र आए हैं। ख़बरों के मुताबिक़ फारूक ने पड़ोसी देश के समर्थन में कहा था कि पाकिस्तान ने चूड़ियाँ नहीं पहन रखी हैं और ना ही वो इतना कमज़ोर है कि अपने क़ब्ज़े वाले कश्मीर पर भारत का कब्ज़ा होने देगा। हद तो तब हो गई जब फारूक ने अपने बयान के ज़रिए पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को पाकिस्तान का ही बता डाला था।
असहिष्णुता जैसे विवादित बयान देने वाले फारूक से अगर यह पूछा जाए कि क्या उन्हें वाक़ई देश की चिंता है, अगर है तो इस प्रकार के विवादित बयान देने के पीछे आख़िर उनका क्या मक़सद होता है?
पाकिस्तान के समर्थन में बोले फारूक
हाल ही में दिए अपने एक अन्य बयान में तो वो पूरी तरह से पाकिस्तान के समर्थन में दिखे और यहाँ तक कह गए कि यदि आज की तारीख़ में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हो जाए तो पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर) पर पाकिस्तान का ही कब्ज़ा होगा। पाकिस्तान के समर्थन में उनके बोल अपने देश के प्रति उनकी झूठी चिंता का स्पष्ट प्रमाण है।
अपने असहिष्णुता वाले बयान से अल्पसंख्यकों के मसीहा बनने वाले फारूक की देशभक्ति का यह कौन-सा रूप है जो भारत में रहकर उन्हें भारत-विरोधी जैसा दिखाता है। फारूक अब्दुल्ला की खोखली चिंताओं में उन भारतीय शहीदों के लिए जगह नहीं होती जो सरहद पर अपने प्राण न्यौछावर कर देते हैं। पाकिस्तान की तरफ से हुई फ़ायरिंग में दोनों देशों के जवानों की शहादत पर फारूक ने कहा था कि दोनों तरफ से सीज़फ़ायर का उल्लंघन हो रहा है, दोनों ओर से गोलियाँ चल रही हैं। इस फ़ायरिंग में केवल भारत के जवान ही नहीं मर रहे हैं बल्कि पाकिस्तान के जवान भी मर रहे हैं। इस प्रकार के बयान से यह साफ़ झलकता है कि फारूक को भारतीय सेना के जवान से ज़्यादा पाकिस्तान के जवानों के मारे जाने की अधिक चिंता है।
भारतीय सैन्य क्षमता को पाकिस्तान से कम आँका
फारूक इतने पर ही नहीं रुके बल्कि यहाँ तक कह गए कि अगर हम (भारत) उनके (पाकिस्तान) 10 जवानों को मारेंगे तो वो हमारे 12 जवानों को मारेंगे। अपने इस विवादित बयान से क्या वो भारत की सैन्य क्षमता पर भी प्रश्नचिन्ह लगाने की कोशिश कर रहे हैं। निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि फारूक अब्दुल्ला को देश की चिंता तो रत्ती मात्र भी नहीं है, लेकिन मुद्दा चाहे किसी अन्य समस्या का हो वो केवल अपने विवादों के ज़रिए एक ऐसा माहौल बनाने का प्रयास करते रहते हैं जिससे केंद्र सरकार को बेवजह कटघरे में खड़ा किया जा सके।
2016 में जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में देशविरोधी नारेबाजी – ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह-इंशाअल्लाह’ – एवं भड़काऊ भाषण केस में पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार, उमर ख़ालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य समेत 10 आरोपियों के ख़िलाफ़ दिल्ली पुलिस ने सोमवार (जनवरी 14, 2019) को 1200 पेज का चार्जशीट दाख़िल कर दिया। पटियाला हाऊस कोर्ट में दाखिल इस चार्जशीट में कन्हैया कुमार, उमर ख़ालिद, अनिर्बान भट्टाचार्य, आक़िब हुसैन, मुजीब हुसैन, मुनीब हुसैन, उमर गुल, राईए रसूल, बशीर भट्ट, शेहला रशीद, अपराजिता राजा समेत कई लोगों के नाम है। अब कोर्ट चार्जशीट पर संज्ञान लेते हुए मंगलवार (जनवरी 15, 2019) को इस मामले में फ़ैसला करेगी।
Kanhaiya Kumar, Umar Khalid, Anirban Bhattacharya, Aquib Hussain, Mujeeb Hussain, Muneeb Hussain, Umar Gul, Rayeea Rasool, Bashir Bhat, among others named in the chargesheet filed in JNU sedition case.
तीन साल बाद दाख़िल हुए इस चार्जशीट में कहा गया है कि जेएनयू में देश विरोधी नारे 7 कश्मीरी छात्रों ने लगाए थे। कन्हैया समेत अन्य छात्र नेताओं पर JNU परिसर में संसद हमले का दोषी ‘अफजल गुरू’ को फाँसी पर लटकाए जाने के विरोध में कार्यक्रम आयोजित करने का आरोप है। साथ ही इन पर कार्यक्रम के दौरान भड़काऊ भाषण देने की धाराओं में भी मामला दर्ज़ किया गया है। चार्जशीट में कहा गया है कि वारदात के समय उमर ख़ालिद सभी आरोपितों के संपर्क में था और उसे कैंपस में आयोजित कार्यक्रम में भी बुलाया गया था। इन पर IPC की धारा 124ए, 323, 465, 471, 143, 149, 147, 120बी के तहत मुक़दमा दर्ज़ किया गया है।
Delhi: Police reaches Patiala House Court to file 1200-page chargesheet in 2016 JNU sedition case. pic.twitter.com/zN8H10Yr3J
चार्जशीट के कॉलम 12 में 36 आरोपियों का नाम है। इनमें छात्र संघ की नेता शेहला रशीद और सीपीआई सांसद डी राजा की बेटी अपराजिता राजा का भी नाम है।
पिछले दिनों दिल्ली पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक ने कहा था कि यह मामला काफ़ी पेचीदा है और इसके लिए पुलिस की अलग-अलग टीमों ने कई राज्यों का दौरा कर गहन जाँच और छानबीन की है।
बता दें कि इसी मामले में तीन साल पहले देश में तमाम वामपंथी बुद्धिजीवियों और अर्बन नक्सल द्वारा अच्छा-खासा बवाल काटा गया था। पूरी JNU को राष्ट्रविरोध का अड्डा बना दिया गया था। इसके पक्ष और विपक्ष में पूरे देश में लम्बे समय तक माहौल गरम रहा। इस मामले में कन्हैया कुमार की गिरफ़्तारी भी हुई थी। कन्हैया की गिरफ़्तारी का भी उन दिनों वामपंथियों द्वारा विरोध किया गया था और JNU के कई छात्र संगठन इस गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ और ‘देशद्रोहियों’ के समर्थन में ढपली लेकर सड़कों पर उतरे थे।
हालाँकि, कन्हैया कुमार विभिन्न मंचों से दिल्ली पुलिस को इस केस में चार्जशीट दाखिल करने की चुनौती दे चुके थे। वहीं चार्जशीट दायर होने से पहले कन्हैया कुमार ने कहा, “अगर यह ख़बर सच है कि इस मामले में चार्जशीट दायर हो रही है तो मैं पुलिस और मोदी जी को धन्यवाद देना चाहूँगा। इस पुराने मामले में 3 साल बाद और चुनावों से ठीक पहले चार्जशीट दाख़िल होना दर्शाता है कि यह राजनीति से प्रेरित है। मुझे देश की न्यायपालिका पर पूरा विश्वास है।”
जनवरी बीत रही है और हर साल की तरह थोड़े ही दिनों में इस साल भी परीक्षाओं की तारीख़ों का शोर होगा। इसके साथ ही अख़बारों में दिखने लगेंगे, कम नंबर आने के डर से या फिर परीक्षा खराब जाने की वजह से आत्महत्या करने वाले बच्चों की दर्दनाक कहानियाँ। पसंद हो या न हो, ये होता तो हर साल है! सवाल है कि माँ-बाप का, समाज का, अच्छी यूनिवर्सिटी में जाने, एक मोटी तनख़्वाह वाली नौकरी की संभावनाएँ बनाने का कैसा दबाव है जो अख़बारी भाषा में बच्चों को ये ‘अंतिम विकल्प’ चुनने पर मजबूर करता है? बतौर एक समाज हमने किया क्या है इस दिशा में?
कोई फाँसी के फंदे पर बस इसलिए झूल जाना चाहता है क्योंकि उसे अंग्रेज़ी नहीं आती या फिर वो गणित में कमज़ोर है? हाल में ही पटना के एक इंजीनियरिंग के छात्र ने हॉस्टल की छत से सिर्फ इसलिए छलाँग लगा ली क्योंकि उसे छह लाख सालाना का पैकेज मिला था। ‘सूरत में एक छात्र ने फाँसी लगा ली’ या ‘इलाहाबाद में कोई ट्रेन के आगे कूद गया’ जैसी ख़बरें अब अजीब नहीं लगती। परीक्षाओं का आना, छात्रों के आत्महत्या की घटनाओं के अख़बार में न्यूज़ चैनल पर आने का मौसम भी हो गया है। ऐसा ही चलता रहा तो हो सकता है इसे दूसरी राष्ट्रीय आपदाओं की श्रेणी में डाला जाए – बाढ़, भूकंप जैसा ही परीक्षा भी हो!
अख़बारों के ज़रिए ही 2006 का सरकारी आँकड़ा भी मिल जाता है, जब 5,857 छात्रों ने आत्महत्या की, 2016 तक ये गिनती 9,500 हो गई। इतने पर ये हिसाब हर घंटे एक मौत का हिसाब बनता है। जहाँ देश की आबादी क़रीब आधी ही युवाओं की हो, वहाँ इतनी बड़ी संख्या पर ध्यान कैसे नहीं गया? ये भी एक आश्चर्य है। बच्चों को कैसी प्रतिस्पर्धा झेलनी पड़ती है, वो आम आदमी को पता न हो ऐसा भी नहीं। दिल्ली के ज्यादातर नामी-गिरामी कॉलेज 98% से ऊपर नंबर पर एडमिशन ले रहे हैं, ये भी एक ख़बर है जो हर साल सब ने सुनी भी होती है।
आई.आई.टी. और आई.आई.एम. जैसे दर्जन भर के लगभग संस्थान और सभी नामचीन कॉलेज एक साथ मिला लें तो वो पचास हज़ार बच्चों का भी दाख़िला नहीं ले सकते। इस से दस गुना बच्चे तो हर साल स्कूल से ही निकलते हैं। कस्बों के छोटे कॉलेज जोड़ लें तो गिनती और बढ़ जाएगी। दस साल पहले तक जहाँ बोर्ड की परीक्षा में 80-85% पर राज्य भर के टॉपर होते थे, आज 90-95% बड़ी ही आम बात लगती है। 90 फीसदी लाने वाले बच्चे के माँ-बाप सकुचाते हुए बताएँगे कि फलाँ विषय में बच्चे ने कम मेहनत की, बस वहीं मार खा गया। ‘थोड़ी मेहनत की होती तो और आते जी’!
इस से अपराधों को भी बढ़ावा मिलता है। केन्द्रीय बोर्ड (सी.बी.एस.सी. या आई.सी.एस.सी.) जहाँ बड़े आराम से 90% देते हैं, वहीं राज्य के बोर्ड में 65% पार करना भी मुश्किल है। आश्चर्य नहीं कि हरियाणा से लेकर यू.पी. और बिहार तक अभिभावक खिड़कियों से लटक-लटक कर छात्रों को चोरी-नक़ल करने में सहयोग करते पाए जाते हैं। बिहार का पिछले वर्षों का टॉपर घोटाला अभी याद से गया नहीं होगा। जिस लड़की के पास लाखों की रकम देने के ना तो आर्थिक स्रोत थे, न जान-पहचान, वो जेल में है। कदाचार और भ्रष्ट व्यवस्था के पोषक अभी फिर मोटा माल कमाने का मौसम आने पर मुदित हो रहे होंगे।
प्रोफ़ेसर यशपाल की समिति की पतली-दुबली 25-30 पन्नों की रिपोर्ट धरी रह गई और छात्रों की आत्महत्या की घटनाएँ बढ़ती रही। हम आखिर कब ध्यान देंगे इसपर? ध्यान देने लायक है कि कम नंबर आने पर आत्महत्या करने वाली छात्राओं की गिनती लड़कों से कहीं ज़्यादा है। कौन-से शिक्षाविद और मनोचिकित्सक ये मान लेंगे कि लड़कियों पर कम नंबर लाने पर शादी कर दिए जाने का दबाव भी रहता है? पढ़ने में अच्छी नहीं तो शादी करवा दो, जैसे शादी कोई जेल हो, सज़ा सुनाई गई हो। बिहार के मुख्यमंत्री जो बाल विवाह के ख़िलाफ़ अभियान चला रहे हैं उनका बाल विवाह के इस अनोखे कारण पर ध्यान गया या नहीं, पता नहीं।
कम नंबर लाने वाले छात्र-छात्राओं को अक्सर प्राइवेट संस्थानों से पढ़ाई करनी पड़ती है जो कि महँगे भी है और कई बार मान्यता प्राप्त नहीं होते। अच्छे नंबर ना हुए और आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं तो ‘पढ़ाई छूट जाएगी’ का डर, या फिर दो-चार साल पढ़ने के बाद पता चलना कि उनकी डिग्री का नौकरी के बाज़ार में कोई मोल ही नहीं। यह भी बच्चों के आत्महत्या का एक बड़ा कारण होता है। हाल के दौर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार जैसे नेता, राजनीति से इतर, सामाजिक मुद्दों पर भी चर्चा करने लगे हैं। अच्छा है कि उनके बोलने से सामाजिक सरोकार, अख़बार के पहले पन्ने पर आ गए।
पिछले साल (फ़रवरी 3, 2018) को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एक किताब, जो कि परीक्षाओं से सम्बंधित बच्चों के तनाव पर है, आई थी। उम्मीद है कि जो बच्चे आज वोट नहीं देते और नेताओं के लिए या व्यापार, समाज की दृष्टि से उतने मूल्यवान नहीं दिखते थे, उनकी बात भी अब होगी। हमारे बच्चे हमारा भविष्य हैं, उनकी चर्चा हमारी पहली चर्चा होनी भी चाहिए।
बीते कुछ दिनों सेसुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर का विवादों से नाता गहरा होता जा रहा है। इस बार राजभर ने साम्प्रदायिक दंगों को लेकर कहा कि दंगे के दौरान किसी नेता की मौत क्यों नहीं होती है ? कभी आपने ये नहीं सुना या देखा होगा कि दंगों में किसी बड़े नेता की मौत हुई है।
उन्होंने नेताओं के लिए कड़े शब्दों का प्रयोग करते हुए कहा कि जो नेता तुम्हें मजहब के नाम पर लड़ाने का काम करें, उन्हें वहीं आग लगाकर जला दो, ताकि वो समझ जाएँ कि हम एक-दूसरे को नहीं जलाने देंगे। उन्होंने कहा, “राजनेता वोट के लिए हिंदुओं और मुस्लिमों को विभाजित करने की कोशिश करते हैं। उन्हें एक बार सोचना चाहिए कि भारत का संविधान देश के सभी नागरिकों को मतदान का अधिकार देता है। वो देश के ही नागरिक हैं, उन्हें आपस में मत लड़ाओ।”
बीते कुछ दिनों से बदले हैं राजभर के स्वर
ओम प्रकाश राजभर, भले ही यूपी सरकार में पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री हैं, लेकिन बीते कुछ दिनों से वो लगातार राज्य सरकार पर सवाल उठाते हुए निशाना साधते रहे हैं। बीते दिनों उन्होंने कहा था कि भाजपा को 100 दिन का समय दिया है। अगर वो हमारे साथ चुनाव लड़ना चाहती है तो उनका स्वागत है। अगर इतने दिनों में उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आता है तो फिर मेरी पार्टी सभी 80 सीटों पर लोकसभा का चुनाव लड़ेगी।
Suheldev Bahujan Samaj Party (SBSP) president OP Rajbhar: We are with BJP, if BJP want to keep us then we will stay with them, If they don’t want us, then we have given them 100 days, 12 days have already passed. We will fight on 80 seats after 100 days. pic.twitter.com/7lgTNPeXe0
निजी सचिव के भ्रष्टाचार में लिप्त होने से झेलनी पड़ी थी शर्मिंदगी
कुछ दिनों पहले एक टीवी चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में तीन राज्यमंत्रियों के निजी सचिव तबादले, ठेका-पट्टा दिलाने के नाम पर भ्रष्टाचार करते हुए रिकॉर्ड हुए थे। इनमें ओपी राजभर के निजी सचिव ओमप्रकाश कश्यप भी शामिल थे। इस स्टिंग के बाद राज्य सरकार ने तीनों को निलंबित करते हुए एसआईटी जाँच के आदेश दिए थे। बता दें कि एसआईटी जाँच में तीनों सचिवों को दोषी पाया गया था, जिसके बाद उन्हें जेल भेजा गया।
शुक्रवार (जनवरी 11, 2019) को रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ (URI: The Surgical Strike) इस वर्ष की पहली हिट फ़िल्म बन गई है। फ़िल्म को दर्शकों का अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है। फिल्म ने वीकेंड्स पर तीन दिनों में क़रीब ₹36 करोड़ की कमाई की है। फ़िल्म समीक्षक तरण आदर्श ने इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए ट्विटर पर बताया कि 2019 ‘हाई जोश (High Josh)’ के साथ शुरू हुआ है क्योंकि उरी इस साल की पहली हिट फ़िल्म साबित हुई है। बता दें कि उरी फ़िल्म का डायलाग ‘हाउ इज़ द जोश? (How is the Josh?)’ आम लोगों और सेलेब्रिटीज़ के बाच काफ़ी लोकप्रिय हो रहा है।
#UriTheSurgicalStrike emerges the FIRST HIT of 2019… Indeed, 2019 has started with high josh… Sets the BO on ??? on Day 3… Packs a solid total in its opening weekend… Fri 8.20 cr, Sat 12.43 cr, Sun 15.10 cr. Total: ₹ 35.73 cr. India biz. #Uri#HowsTheJosh
अगर नेट बॉक्स ऑफिस कलेक्शन को देखें तो फ़िल्म ने पहले दिन यानी शुक्रवार को ₹8.20 करोड़ की कमाई की। दूसरे दिन फ़िल्म ने अपने कलेक्शंस में 50 प्रतिशत से भी अधिक की उछाल के साथ ₹12.43 करोड़ बटोरे। तीसरे दिन यानी रविवार को साप्ताहिक छुट्टियाँ होने के कारण उरी दर्शकों की पहली पसंद रही और इसने ₹15.10 करोड़ बटोरे। कुल मिला कर विकी कौशल अभिनीत फ़िल्म ने तीन दिनों में ₹35.73 करोड़ की कमाई की है।
ज्ञात हो कि फ़िल्म का बजट ₹25 करोड़ के आसपास है जिसके कारण फ़िल्म अभी ही प्रॉफ़िट ज़ोन में प्रवेश कर गई है। 25 जनवरी तक बॉक्स ऑफिस पर कोई बड़ी फ़िल्म रिलीज़ नहीं होने वाली है, जिस से उरी के ₹100 करोड़ के जादुई आँकड़े को पार करने से इनकार नहीं किया जा सकता। 25 जनवरी को नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी की ठाकरे और कंगना राणावत की मणिकर्णिका के रूप में दो बड़ी फ़िल्में बॉक्स ऑफ़िस पर दस्तक देने वाली है। ठाकरे शिवसेना संस्थापक बालासाहब ठाकरे की बायोपिक है जबकि मणिकर्णिका झाँसी की रानी लाक्षीबाई की शौर्य गाथा है।
रोनी स्क्रूवाला द्वारा बनाई गई फ़िल्म उरी में भारतीय सेना द्वारा सितम्बर 2016 में पाकिस्तान में घुसकर सफल सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देने की कहानी का चित्रण किया गया है। उस अभियान में भारतीय सेना ने लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल को पार कर एक रात में क़रीब 70 आतंकियों को मार गिराया था और उनके बेस कैम्प तबाह कर दिए थे। इसके बाद भारतीय सेना की ख़ूब वाहवाही हुई थी। वहीं कॉन्ग्रेस नेता संजय निरुपम और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल सहित कुछ विपक्षी नेताओं ने भारत सरकार और सेना से सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत माँगे थे।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी फ़िल्म के मुख्य अभिनेता विक्की कौशल सहित बॉलीवुड के कई प्रसिद्ध शख़्सियतों से मुलाक़ात की थी और उनकी समस्याओं को सुना था।
संगम नगरी में मंगलवार से हो रहे पहले शाही स्नान से पूर्व आज सोमवार (जनवरी 14, 2019) को टेंट सिटी के सेक्टर-16 में आग लग गई। आग सबसे पहले दिगंबर अखाड़े के टेंट में लगी। आग इतनी बड़ी थी कि अचानक ही आस-पास के दर्जनभर टेंटों में फैल गई। जिससे कई टेंट जल कर ख़ाक हो गए। अधिकारियों के अनुसार मौक़े पर खड़ी दमकल गाड़ियों ने आग पर काबू पा लिया है।
ये हादसा टेंट के बाहर खाना बनाने के रखे सिलिंडर में लापरवाही से आग लगने की वज़ह से हुआ। बता दें कि टेंट के बाहर संतो और निवासियों को खाना बनाने की छूट होती है।
#WATCH Fire fighting operations underway at a camp of Digambar Akhada at #KumbhMela in Prayagraj after a cylinder blast. No loss of life or injuries reported. pic.twitter.com/qcbh8IPl5Y
कुम्भ में सम्मिलित होने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए, सुरक्षा के लिहाज़ से ये एक बड़ी भूल है। हालाँकि, राहत की बात यह है कि प्रशासन के तुरन्त एक्शन में आ जाने से इसमें किसी भी साधु-संत या अन्य व्यक्ति के हताहत होने की कोई ख़बर नहीं है।
कुम्भ प्रशासन के सूचना निदेशक शिशिर ने कहा कि टेंट के बाहर खाना बनाने की आज्ञा रहती है और वहीं पर सिलिंडर था, जिसके कारण आग लग गई। उन्होंने कहा कि हमने सभी को सुरक्षा से जुड़ी जानकारियाँ दी हैं। लेकिन कुछ लोगों की लापरवाही की वजह से इस प्रकार का हादसा हुआ है। इस हादसे के बाद से प्रशासन हाई एलर्ट पर है ताकि आगे ऐसा कोई अन्य हादसा न हो।
अपनी पार्टी की अक्षमता को पहचानते हुए कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता एके एंटनी ने बयान दिया है, कि भाजपा को हराने के लिए कॉन्ग्रेस को किसी विपक्षी पार्टी का हाथ थामना ही पड़ेगा। उनका मानना है कि भाजपा को लोकसभा चुनावों में हराना कॉन्ग्रेस के वश की बात नहीं है।
केरल प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी की बैठक में शुक्रवार को पूर्व रक्षा मंत्री ने बताया है कि कॉन्ग्रेस को ये एहसास हो चुका है कि वो बीजेपी को अकेले चुनावों में हराने में समर्थ नहीं हैं। उन्होंने अपनी बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने के लिए महागठबंधन की ज़रूरत पर जोर दिया।
तिरुवनंतपुरम में अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए एके एंटोनी ने कहा कि कॉन्ग्रेस अकेले नरेंद्र मोदी को सत्ता से नहीं हटा सकती है। लेकिन फिर भी मोदी को सत्ता से बाहर करने के लिए चलाए जा रहे अभियानों में कॉन्ग्रेस बेहद महत्वपूर्ण ताक़त है। इसलिए बीजेपी को हराने के लिए कॉन्ग्रेस को गठबंधन की तरफ रुख़ करना पड़ेगा।
उनके अनुसार कॉन्ग्रेस ही एक ऐसी राजनैतिक ताकत है, जो मोदी शासन के ख़िलाफ़ लड़ाई को लड़ सकती है। आने वाले समय में कॉन्ग्रेस को अलग-अलग राज्यों में उन सभी पार्टियों के साथ गठबंधन की पहल करनी चाहिए जो उनके इस कदम में उनका साथ देना चाहें।
एके एंटनी जो कि कॉन्ग्रेस कार्य कमेटी के अध्यक्ष भी हैं, उनका ऐसा मानना है कि राहुल गाँधी ही ऐसे व्यक्ति हैं, जिनसे नरेंद्र मोदी को लोकसभा के चुनावों में डर है। उन्होंने अपनी पुरानी बात को दोहराते हुए कहा कि सोनिया गाँधी के 48 साल के बेटे राहुल गाँधी, अब उस उम्र में आ चुके हैं कि वो कॉन्ग्रेस का नेतृत्व कर सकें। उनका कहना है कि राहुल गाँधी एक सशक्त नेता के रूप में उभर कर आए हैं, जो अब नरेंद्र मोदी से लड़ने के लिए बिल्कुल तैयार हैं।
लोकसभा चुनावों को कुरूक्षेत्र की लड़ाई बताते हुए कॉन्ग्रेस लीडर ने कहा कि देश को बचाने के लिए साम्प्रदायिक ताक़तों को सत्ता से हटाना बेहद ज़रूरी है। उन्होंने आगामी आम चुनावों के लिए टिकट वितरण में देरी के ख़िलाफ़ राज्य के कॉन्ग्रेस नेताओं को आगाह किया। उन्होंने कहा- “निर्णय को ज़िला कमेटी द्वारा आना चाहिए, टिकट के चुनावों को लोकतांत्रिक तरह से किया जाना चाहिए, न कि कुछ लोगों द्वारा इसका फ़ैसला किया जाना चाहिए।”
एक तरफ़ जहाँ कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता दूसरी पार्टियों से हाथ मिलाना चाहते हैं, वहीं पर ऐसा लगता है जैसे दूसरी पार्टियाँ कॉन्ग्रेस से जुड़ने में असमंजस की स्थिति में हैं। अभी हाल ही में हमना देखा है कि किस तरह भाजपा को हराने के लिए उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा ने कॉन्ग्रेस को सरासर नज़रअंदाज़ करते हुए गठबंधन किया । इस तरह उपेक्षित होने पर कॉन्ग्रेस ने अकेले लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश की 80 सीटों पर लड़ने का निर्णय किया है।
अब देखना ये है कि कौन-सा गठबंधन मोदी को सत्ता से हटाने में सफल हो पाता है। क्योंकि, राजनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि एक शख़्स को हराने के लिए पूरा विपक्ष एक दूसरे से हाथ मिलाने को तैयार हो। साथ ही, इससे ज़्यादा कन्फ़्यूज़्ड गठबंधन कभी दिखा भी नहीं।