Tuesday, October 1, 2024
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मकर संक्रान्ति: देश एक, परम्परा व उत्सव के रूप अनेक

मकर संक्रान्ति का त्योहार आज पूरा देश बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मना रहा है। इस त्योहार को मनाने के पीछे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक पक्ष तो शामिल हैं ही, इनके अलावा वैज्ञानिक पक्ष भी शामिल है।

शास्त्रीय मत के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोड़ने वाले व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता जबकि अँधकार में मृत्यु को प्राप्त करने वाले का पुनर्जन्म होता है। यहाँ प्रकाश और अंधकार का मतलब सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से है। सूर्य के उत्तरायण के इस वैज्ञानिक महत्व के कारण ही भीष्म ने अपने प्राण तब तक नहीं छोड़े थे, जब तक मकर संक्रान्ति यानि सूर्य की उत्तरायन स्थिति नहीं आ गई थी। इसके अलावा सूर्य के उत्तरायण की स्थिति के महत्व के बारे में छांदोग्य उपनिषद में भी वर्णन किया गया है।

मकर संक्रान्ति का महत्व हम भारतवासियों के लिए बहुत है और इसके मनाने का तरीका विविध। वैज्ञानिक महत्व को जानने के बाद आइए अब हम आपको बताते हैं कि यह त्योहार देश के अलग-अलग हिस्सों में किस नाम से और कैसे मनाया जाता है।

पंजाब की लोहड़ी

पंजाब में रहने वालों के लिए मकर संक्रान्ति या लोहड़ी सर्दियों के आख़िरी दिन का प्रतीक होता है। इसके अलावा यह फसलों से संबंधित एक त्योहार होता है, जिसे पंजाब के लोग बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। महिलाएँ एक दिन पहले ही ‘सरसों दा साग’, ‘खिचड़ी’ और ‘गन्ने के रस से बनी खीर’ बनाना शुरू कर देती हैं। यही इनके अगले दिन का भोजन होता है।

एक दिन पहले बनने वाली ये सभी खाद्य सामग्री ही त्योहार के पूरे दिन खाते हैं। सुबह गुरुद्वारा में जाने के अलावा, दावत खाने का भरपूर आनंद लिया जाता है और फिर परिवार के साथ समय बिताया जाता है। रात में एक अलाव (आग) का आयोजन होता है, जो वास्तव में पारंपरिक लोहड़ी है। इस अलाव में कुछ पके हुए चावल, तिल के बीज, लड्डू, गुड़, मक्के का लावा (पॉपकॉर्न) के साथ अपनी सर्वश्रेष्ठ फसल अग्नि देव को समर्पित की जाती है और आग के चारों ओर घूमकर खुशहाल और समृद्ध खेती की प्रार्थना की जाती है। इस त्योहार की समाप्ति अपने पसंदीदा भाँगड़ा नाच, ताश खेलने, ‘साग’ और ‘मक्के दी रोटी’ के साथ ‘गुड़’ और ‘घी’ खाने के साथ होती है।

गुजरात की पतंग वाली संक्रान्ति

गुजरात में भी मकर संक्रान्ति का काफी महत्व है। सूर्य की उत्तरायण स्थिति गुजरात के लोगों के लिए और पूरे राज्य के गुजराती परिवारों के एक साथ मिल जाने जैसा होता है। इस ख़ास दिन की तैयारी लोग एक महीने पहले से ही शुरू कर देते हैं। दरअसल यहाँ के लोग यह योजना बनाते हैं कि वे अपने दिन को विशेष कैसे बनाएंगे क्योंकि यह पूरे सप्ताह मनाया जाता है।

हर साल गुजरात में इस ख़ास दिन पर अलग-अलग छटा बिखरी देखी जा सकती है। यहाँ आपको विभिन्न प्रकार की पतंगें, भोजन और अद्भुत सामान देखने को मिलेंगे। पतंग उड़ाने के लिए लोग दुकानदार के पास खड़े होते हैं, जब वे उनके लिए धागा (मांझा) बुन रहे होते हैं। भोजन का मेन्यू हमेशा पहले से तय कर लिया जाता है। त्योहार के लिए ‘जलेबी के साथ तिल गुड़ चिक्की,  उधिंयू पुरी (Undhiyu Puri) और फ़रसाण (Farsaan)’ यहाँ के लोगों की पसंदीदा खाद्य सामग्री होती है। युवा वर्ग महीने की शुरुआत से ही पतंग उड़ाना शुरू कर देते हैं। महिलाएँ विभिन्न भोजन-पकवान बनाना शुरू कर देती हैं।

रात में, परिवार और दोस्त अलाव के लिए इकट्ठे होते हैं। म्यूजिक स्पीकर्स या डीजे की व्यवस्था छत पर की जाती है और विभिन्न प्रकार के खेल खेले जाते हैं। चायनीज़ लालटेन (उच्च न्यायालय द्वारा प्रतिबंधित किए जाने से पहले) को आकाश में उड़ाया जाता था, जिसके बाद आसमान का नज़ारा देखते ही बनता था।

बिहार का तिलकुट

बिहार में मकर संक्रान्ति का त्योहार काफ़ी मायने रखता है। इसमें दान आदि किए जाने का भी विशेष महत्व होता है। मकर संक्रान्ति के दिन, सभी सुबह जल्दी उठकर स्नान (नहाए बिना बिहार में कुछ भी खाने की परम्परा नहीं इस दिन) करते हैं। फिर मंदिर के पंडितों को और कुछ ज़रूरतमंदों को भोजन व अन्य चीजें दान की जाती हैं। उसके बाद, दिन की ‘पूजा’ में शामिल होने की परंपरा है।

‘तिलकुट’ (तिल के साथ चीनी या गुड़ से बना) खाने के साथ दिन की शुरुआत की जाती है। दिन का मुख्य भोजन दही, दूध और गुड़ के साथ ‘चूड़ा’ (चिड़वा – जिससे पोहा बनता है) ही होता है। इसके साथ पारंपरिक सब्ज़ियों के साथ आलू, गाजर, मटर और फूलगोभी वाली तरकारी खाई जाती है। मुख्य रूप से केवल यही एक खाद्य सामग्री होती है, जिसे दिन भर खाया जाता है। दिन के समय घर में और कोई खाना नहीं बनता। यहाँ ‘पतंग उड़ाना’ इस त्योहार का सबसे मनोरंजक पहलू है। पूरा आसमान ढेरों रंग-बिरंगी पतंगों से सज जाता है। शाम तक, घर की महिलाएँ खिचड़ी तैयार करना शुरू कर देती हैं, जिसे चोखे (मैश किए हुए आलू), टमाटर की चटनी, बैंगन का भर्ता और पापड़ के साथ रात के खाने में परोसा जाता है।

ओडिशा-झारखण्ड-बंगाल में टुसू

मकर संक्रान्ति को टुसू पर्व के रूप में भी मनाए जाने की परंपरा है। टुसू पर्व ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों में मनाया जाने वाला फसलों से संबंधित एक उत्सव है। लोग देवी टुसू की मूर्तियाँ बनाते हैं और उनकी पूजा करते हैं। एक महीने तक चलने वाला यह मेला मकर संक्रान्ति के दिन टुसू देवी की मूर्तियों के विसर्जन के साथ समाप्त हो जाता है। महिलाएँ चमकीले रंग के कपड़े पहनती हैं और कलाकृतियों और कपड़ों से सजे बाँस के फ्रेम को उठाकर देवी से प्रार्थना करती हैं और टूसू गीत गाते हुए नदी तक जाती हैं।

यह फसल से संबंधित एक उत्सव है, इसलिए युवा लड़कियाँ अपनी प्रजनन क्षमता और अच्छे पति की भी प्रार्थना करती हैं। पूरा नदी तट एक ऐसी जगह में बदल जाता है, जहाँ लड़के अपने समुदाय की समृद्धियों की कामना करते हैं, उसे और विकसित करने की प्रार्थना करते हैं।

पश्चिम बंगाल में इस दिन परंपरागत रूप से लोग स्नान करते थे और सूर्य देव की प्रार्थना के लिए गंगा तट पर जाते थे, लेकिन अब यह प्रक्रिया अपने घरों में ही की जाती है। धार्मिक समारोहों के बाद, लोग ‘दही और चूरा’ (चिड़वा, जिससे पोहा बनता है) के साथ ‘पेठा’ (चावल, नारियल और दूध से बने) खाते हैं। इस दिन घर आए लोगों का स्वागत पेठा खिलाकर किया जाता है।

पश्चिम बंगाल के बोलपुर में शांतिनिकेतन रोड में, पौष मेला (मेला) आयोजित किया जाता है, जिसमें बहुत सारे लोग आते हैं। बड़ी संख्या में लोग हर साल इस मेले में शिरक़त करते हैं, जिसे रंग-बिरंगे तरीक़े से सजाया जाता है। यहाँ हस्तनिर्मित उत्पादों जिनमें खाद्य, बैग, आभूषणों की काफ़ी क़िस्में देखने को मिलती है। यह सभी वस्तुएँ ज़्यादातर स्थानीय कारीगरों और निवासियों द्वारा बनाई जाती हैं।

तमिलनाडु में पोंगल

तमिलनाडु में पोंगल नाम से विख्यात त्योहार असल में मकर संक्रान्ति का ही रूप है। पोंगल तमिलनाडु के लोगों के लिए चार दिन तक मनाया जाने वाला त्योहार है। चार दिन तक मनाए जाने वाले इस त्योहार को वो एक उत्सव की तरह मनाते हैं। पहला दिन, ‘भोगी पोंगल’ मनाए जाने का होता है, जिसमें पुराना सामान जलाने की परंपरा है। दूसरे दिन, पोंगल का वास्तविक त्योहार ‘सककारई पोंगल’ होता है, जिसे घर पर ही मनाया जाता है।

इस दूसरे दिन मीठे ‘पोंगल’ को सात या नौ सब्ज़ियों से बनी कढ़ी के साथ परोसा जाता है। तमिलवासी इस दिन सूर्य देव को धन्यवाद देते हैं और उन्हें ये खाद्य सामग्री प्रसाद स्वरूप भेंट करते हैं।

तीसरे दिन ‘मट्टू (गाय) पोंगल’ का होता है। चूंकि इस त्योहार का संबंध फसलों से होता है, तो किसानों को जिन उपयोगी उपकरणों की मदद से अच्छी फसल प्राप्त होती है, उनका भी विशेष महत्व होता है। अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए गायों के योगदान को भी नहीं भूला जा सकता। इसलिए इस दिन गायों के सींग को रंगा जाता है। मुख्य द्वार पर सजे हुए तोरण लगाए जाते हैं। गाड़ियों के पहिए सजाए जाते हैं और गाँव में जल्लीकट्टू व अन्य खेल आयोजित किए जाते हैं।

फिर चौथे दिन, ‘कन्नम (देखते हुए) पोंगल’ का होता है। परंपरागत रूप से इस दिन लोग अपने परिवार के साथ पर्यटन स्थलों का भ्रमण करते हैं।

जाधवपुर यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर ने वर्जिन लड़कियों को बताया ‘सील्ड बोतल’

जाधवपुर यूनिवर्सिटी एक बार फिर सुर्ख़ियों में है। दरअसल, यहाँ के एक प्रोफ़ेसर ने लड़कियों की वर्जिनिटी को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की है जिसके बाद सोशल मीडिया पर उनका विरोध हो रहा है। यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल रिलेशन्स के प्राध्यापक कनक सरकार ने लड़कियों की तुलना कोल्ड ड्रिंक की बोतल और बिस्किट के पैकेट से की है। उन्होंने लड़कों को ‘वर्जिनिटी का महत्त्व’ समझाते हुए अपने फ़ेसबुक पोस्ट में कहा कि क्या आप टूटी सील के साथ कोल्ड ड्रिंक की बोतल या बिस्किट के पैकेट खरीदना चाहेंगे? बाद में तीखी आलोचना का सामना करने के बाद उन्होंने ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ का रोना शुरू कर दिया।

अपने आपत्तिजनक फ़ेसबुक पोस्ट में प्रोफ़ेसर कनक सरकार ने ‘वैल्यू बेस्ड काउन्सलिंग फ़ॉर एडुकेटेड यूथ’ के अंतर्गत लिखा:

“कई लड़के मूर्ख ही रह जाते हैं। वो पत्नी के रूप में वर्जिन लड़की को लेकर जागरूक नहीं होते। वर्जिन लड़कियाँ सील्ड बोतल या बंद पैकेट की तरह होती हैं। क्या आप कोल्ड ड्रिंक या बिस्किट के पैकेट को टूटे सील के साथ ख़रीदना चाहेंगे? आपकी पत्नी के मामले में भी यही होता है। एक लड़की जन्म से ही बायोलॉजिकली सील्ड होती है जब तक कि उसका सील खोला नहीं जाए। एक वर्जिन लड़की का अर्थ हुआ आप उसके साथ बहुत कुछ पा रहे हैं, जैसे महत्व, संस्कृति और सेक्सुअल हाइजीन। अधिकतर लड़कों के मामले में वर्जिन लड़की एक परी की तरह होती है।”

प्रोफेसर का आपत्तिजनक फ़ेसबुक पोस्ट जिसे उन्होंने डिलीट कर दिया (फोटो साभार: एनबीटी)

प्रोफ़ेसर के इस आपत्तिजनक बयान के बाद उन्हें काफ़ी विरोध का सामना करना पड़ा। लोगों के विरोध को देखते हुए उन्होंने अपने फ़ेसबुक पोस्ट को डिलीट कर दिया। इसके बाद माफ़ी माँगने की बजाए वो अपने पोस्ट के बचाव में उतर आए। अपने पूर्व के पोस्ट का बचाव करते हुए उन्होंने अभिव्यक्ति की आज़ादी की दुहाई देते हुए एक दूसरा पोस्ट लिखा। दूसरे फ़ेसबुक पोस्ट में प्रोफ़ेसर कनक ने इसे अपनी व्यक्तिगत राय बताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 66 ए को निरस्त कर दिया है और सोशल मीडिया में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है।

साथ ही उन्होंने बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन का ज़िक्र करते हुए कहा कि जब उन्होंने एक धर्म विशेष के ख़िलाफ़ लिखा तब उनका समर्थन किया गया। उन्होंने कहा कि हम हिन्दू देवी-देवताओं के बारे में लिखने वाले बंगाली कवि श्रीजातो का भी समर्थन कर रहे हैं। अपने आपत्तिजनक बयान का बचाव करते हुए प्रोफ़ेसर सरकार ने लिखा:


पूर्व के पोस्ट का बचाव करते हुए नई पोस्ट

“अपने विचारों को व्यक्त करना हर किसी का अधिकार है। मैंने किसी भी व्यक्ति,या किसी के खिलाफ बिना किसी सबूत या सबूत या किसी संदर्भ के कुछ भी नहीं लिखा है। मैं सोसाइटी के अच्छे और भलाई के लिए सामाजिक शोध और लेखन कर रहा हूं।”

बाद में उन्होने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बताया कि ये उनका व्यक्तिगत विचार है और जाधवपुर यूनिवर्सिटी का इस से कुछ भी लेना-देना नहीं है। बता दें कि प्रोफ़ेसर कनक सरकार कई वर्षों से जाधवपुर यूनिवर्सिटी में शैक्षणिक कार्य कर रहे हैं। टीचर्स एसोसिएशन ने भी उनके इस पोस्ट से ख़ुद को अलग कर लिया है। राज्य की महिला आयोग ने भी उनके इस बयान के लिए उनकी निंदा की है

वैसे ये पहली बार नहीं है जब जाधवपुर यूनिवर्सिटी गलत कारणों से सुर्ख़ियों में आया हो। इस से पहले भी कई विवादित वजहों से जाधवपुर यूनिवर्सिटी ख़बरों में आता रहा है। पिछले वर्ष जनवरी में यूनिवर्सिटी कैंपस के अंदर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की एक फोटो में उनके चेहरे को विकृत कर दिया गया था। उसके बाद यूनिवर्सिटी के कुलपति ने इस घटना की निंदा की थी। सत्तर के दशक में यूनिवर्सिटी कैंपस के अंदर ही तत्कालीन कुलपति को मार डाला गया था। ऐसा इसीलिए, क्योंकि उन्होंने लेफ़्ट संगठन के छात्रों द्वारा परीक्षा बहिष्कार के ख़िलाफ़ स्टैंड लिया था।

मुलायम के समधी के बाग़ी तेवर; कहा ‘अखिलेश ने माया के सामने घुटने टेके’

समाजवादी पार्टी के विधायक हरिओम यादव ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर मायावती के सामने घुटने टेकने का आरोप लगाया है। साथ ही, उन्होंने सपा-बसपा गठबंधन का भी विरोध किया है। यादव ने चेतावनी दी है कि फ़िरोज़ाबाद में ये गठबंधन नहीं चलेगा। सिरसागंज से तीसरी बार विधायक बने हरिओम यादव ने कहा कि जब तक अखिलेश यादव बसपा सुप्रीमो मायावती के सामने घुटने टेकते रहेंगे तभी तक ये गठबंधन चलेगा। सिरसागंज उत्तरप्रदेश के फ़िरोज़ाबाद ज़िले में स्थित विधानसभा क्षेत्र है। हरिओम यादव ने रविवार (जनवरी 13, 2019) को एक प्रेस वार्ता में महागठबंधन का विरोध करते हुए कहा:

“सपा-बसपा गठबंधन फ़िरोज़ाबाद में नहीं चल पाएगा। ये यहाँ नहीं सफल होगा। ये गठबंधन तभी तक चल सकता है जब तक हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष (अखिलेश यादव) जी ‘बहन जी’ (मायावती) की हाँ में हाँ मिलाते रहेंगे और घुटने टेकते रहेंगे।”

बता दें कि हरिओम यादव फ़िरोज़ाबाद लोकसभा क्षेत्र से आने वाले एकमात्र सपा विधायक हैं। सिरसागंज के अलावे फ़िरोज़ाबाद के बाक़ी चारों विधानसभा क्षेत्रों पर भारतीय जनता पार्टी का कब्ज़ा है। ऐसे में यादव के बागी तेवर से उस क्षेत्र में सपा-बसपा की मुश्किलें बढ़ सकती है। यही नहीं, उन्होंने 22 जनवरी को शिकोहाबाद में पोल-खोलो सम्मलेन भी बुलाया है जिसमे वो सपा कार्यकर्ताओं को ये बताएंगे कि कैसे पार्टी ने उन सब के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया है।

इसके साथ ही यादव ने सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव और उनके बेटे अक्षय यादव पर भाजपा से मिले होने का आरोप लगाया। रामगोपाल राज्यसभा में समाजवादी पार्टी संसदीय दल के नेता हैं जबकि अक्षय यादव फ़िरोज़ाबाद से संसद हैं। महागठबंधन के खिलाफ बोलते हुए हरिओम यादव ने आगे कहा:

“नेताजी (मुलायम सिंह यादव) जैसे विशाल हृदय वाले व्यक्ति के साथ गठबंधन नहीं चला तो इनके साथ कैसे चलेगा?”

हरिओम यादव ने कहा कि उन्होंने अखिलेश यादव के सहयोग से अपने विधानसभा क्षेत्र का ख़ूब विकास कराया लेकिन सांसद (अक्षय यादव) और उनके पिता क्षेत्र की जनता को गुमराह कर रहे हैं। रामगोपाल यादव पर आरोपों की बौछाड़ करते हुए हरिओम कहा कि वो उनके बेटे विजय प्रताप के ख़िलाफ़ साज़िश रच रहे हैं। उन्होंने कहा कि अबकी फ़िरोज़ाबाद लोकसभा क्षेत्र से शिवपाल सिंह यादव चुनाव लड़ेंगे और अगर ऐसा नहीं होता है तो जनता जो फ़ैसला लेगी वही होगा।

बता दें कि हरिओम यादव के बेटे विजय प्रताप यादव उर्फ़ छोटू को सपा से पहले ही निष्काषित किया जा चुका है। फ़िरोज़ाबाद के जिला पंचायत अध्यक्ष रहे विजय ने अपने निष्कासन के पीछे भी प्रोफ़ेसर रामगोपाल का हाथ बताया था। दोनों पिता-पुत्र के ख़िलाफ़ 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती की सरकार ने हिस्ट्रीशीट खोली थी और उन पर कई मुक़दमे दर्ज हुए थे लेकिन सपा की सरकार बदलते ही पास पलट गया था। दोनों पर तत्कालीन अधिकारियों से साँठ-गाँठ कर हिस्ट्रीशीट को नष्ट करवाने का भी आरोप है।

गुजरात ने रचा इतिहास: सामान्य वर्ग के लिए 10% आरक्षण लागू करने वाला पहला राज्य

सामान्य वर्ग (आर्थिक रूप से कमजोर) आरक्षण बिल के तहत शिक्षा और रोज़गार के क्षेत्र में मिलने वाले आरक्षण को गुजरात सरकार ने लागू कर दिया है। इस फैसले के साथ ही गुजरात देश का पहला राज्य बन गया है, जहाँ पर सामान्य वर्ग आरक्षण बिल को सबसे पहले लागू किया गया हो।

राज्य के मुख्यमंत्री विजय रुपानी ने रविवार (जनवरी 13, 2019) को ट्वीट के जरिए इस बात की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था कि 14 जनवरी 2019 को मकर संक्रांति के अवसर पर आर्थिक रूप से कमज़ोर सामान्य वर्ग के लोगों के लिए लाए गए आरक्षण बिल को सभी सरकारी नौकरियों में और उच्च शिक्षा में लागू कर दिया जाएगा।

सीएम रूपानी ने कहा है कि आने वाली सभी सरकारी नियुक्तियों में और शिक्षा के क्षेत्र में 10 प्रतिशत आरक्षण को लेकर फायदा उठाया जा सकेगा।

आरक्षण की नई व्यवस्था उन दाखिलों और नौकरियों पर भी लागू की जाएगी, जिनका विज्ञापन 14 जनवरी से पहले जारी तो हुआ हो, लेकिन उसकी वास्तविक प्रक्रिया शुरू नहीं हुई हो। जिन मामलों में वास्तविक प्रक्रिया (परीक्षा के अलावा) शुरू हो चुकी होगी, वहाँ पर दाखिला प्रक्रिया और नौकरियों के लिए दोबारा से घोषणा की जाएगी।

सीएम द्वारा दी गई इस जानकारी के बाद राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष दिनेश दास ने ट्वीट के ज़रिए बताया कि इस घोषणा के बाद 20 जनवरी को होने वाली प्रारंभिक परीक्षाओं को आगे बढ़ा दिया गया है। नए आरक्षण मापदंडों को जल्द ही गुजरात राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा सूचित किया जाएगा।

बता दें कि आर्थिक रूप से कमज़ोर सामान्य वर्ग की सूची में आने वाले लोगों के लिए आरक्षण पर केंद्रीय मंत्रीमंडल ने 7 जनवरी को मुहर लगाई गई थी। लोकसभा व राज्यसभा में चली लंबी बहस के बाद यह विधेयक दोनों सदनों में बहुमत से पास हुआ। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के हस्ताक्षर के बाद यह अब कानून बन गया है।

संक्रान्ति उत्सव पर पतंगबाजी हैदराबाद में बैन, पुलिस ने दिया ‘सुरक्षा’ कारणों का हवाला

पूरे देश में जहाँ 14-15 जनवरी को मकर संक्रान्ति का पर्व खुशियाँ लेकर आया, वहीं हैदराबाद की पुलिस ने पतंग-प्रेमियों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। ‘सुरक्षा’ कारणों का हवाला देते हुए शहर स्थित धार्मिक स्थलों के आस-पास और आने-जाने वाली सड़कों पर पतंग उड़ाने पर प्रतिबंध लगा दिया है।

पुलिस आयुक्त अंजनी कुमार ने लोगों को पतंग न उड़ाने का आदेश दिया। आदेश के साथ उन्होंने लोगों को सलाह भी दी कि वे अपने बच्चों को पतंगों को इकट्ठा करने के लिए सड़कों पर दौड़ने से या बिजली के खंभों पर चढ़ने की अनुमति न दें।

अपने आदेश में पुलिस आयुक्त ने कहा, “कानून और व्यवस्था के लिए, शांति बनाए रखने के लिए और शांति भंग करने लायक घटनाओं को रोकने के लिए, हैदराबाद में 14-15 जनवरी को संक्रांति त्योहार के दौरान पतंगबाजी को रेगुलेट (स्थान विशेष पर प्रतिबंधित) किया जाएगा।”

पुलिस आयुक्त ने हालाँकि एक अच्छी सलाह यह भी दी कि माता-पिता अपने बच्चों को उन छतों से पतंग न उड़ाने दें, जिनके छज्जे बिना घेरे वाले हैं ताकि किसी प्रकार की अनहोनी न हो।

पुलिस का नागरिक हितों में सलाह देना एक आम प्रशासनिक प्रक्रिया है। लेकिन ऐसे तमाम ‘सलाह’ समय-समय पर सिर्फ और सिर्फ हिन्दू प्रतीकों को ही टारगेट कर दिए जाते हैं। आपको याद होगा कैसे होली पर – वॉटरलेस होली – शब्द गढ़ लिया जाता है। दिवाली पर प्रदूषण का आलम कुछ ऐसा होता है कि क्रैकरलेस दिवाली के लिए पूरा ‘तंत्र’ काम करने लगता है – बाकी के दिनों में आसमान नीला दिखता है। मूर्ति-विसर्जन से प्रदूषित होती नदियों को बचाने के लिए लोग लंबे-लंबे लेख लिख मारते हैं और ‘तंत्र’ उनके साथ जी-जान से इसे लागू करवाता है। दही-हाँडी पर लोगों को चोट लगने की ‘फ़िक्र’ पूरे देश की भावना में बदल जाती है।

लेकिन-लेकिन-लेकिन… ये तमाम फ़िक्र तब धुआं-धुआं हो जाता है जब हर हफ़्ते शुक्रवार की नमाज़ के लिए देश के लगभग हर जिले में कहीं-न-कहीं, कोई-न-कोई सड़क जाम कर दी जाती है। दही-हाँडी पर मगरमच्छी आँसू बहाने वाले मुहर्रम पर चाकू-तलवारों से पीठ-सीना छलनी करने वाली प्रथा पर मुँह में लेमनचूस डाल लेते हैं। शब-ए-बरात पर बाइक से स्टंट करते लड़के जब ट्रैफिक पुलिस के लिए आफ़त बन जाते हैं, तब यही तंत्र और इनका ‘प्रशासन’ धार्मिक सौहार्द्र की चादर ताने सोया रहता है। 

झारखण्ड के श्रीराम आश्रम में मजहबी भीड़ का उत्पात: दिव्यांगों, कुष्ठ रोगियों समेत 100 से ज़्यादा लोगों का पलायन

कुछ समय पहले झारखण्ड के श्रीराम आश्रम बस्ती से खबरें आई कि एक मजहबी भीड़ ने वहाँ पर आतंक मचा रखा है। वहाँ के लोगों का कहना था कि समुदाय विशेष का एक गिरोह उनकी बेबसी और लाचारी (इस आश्रम में ज्यादातर लोग दिव्यांग व कुष्ठ रोगी) का फ़ायदा उठाते हैं और उन पर अत्याचार करते हैं।

इस्लामी भीड़ के इस आतंक की वज़ह से पिछले दिनों 43 परिवार (100 से ज़्यादा लोग, जिनमें अधिकतर दिव्यांग या कुष्ठ रोगी हैं) अपने घरों को छोड़ भाग खड़े हुए थे। ऐसे में आश्रम में जाकर पनाह लेने वाले लोगों के घरों की सुरक्षा का पुलिस ने पूरा इंतज़ाम किया था। लेकिन आतंक मचा रहे इस गिरोह पर कोई खासा फ़र्क़ पड़ता नहीं दिखा। रिपोर्ट के मुताबिक समुदाय विशेष के ही एक व्यक्ति ने तो लोगों को यह कहकर धमकाया कि पुलिस के जाने के बाद वो एक-एक को मार डालेगा।

इंसानियत को शर्मसार करने वाले इस मामले पर बर्मामाइंस पुलिस का रवैया भी शक़ के घेरे में है। इस थाना के अंतर्गत आने वाली श्रीराम बस्ती में पुलिस के पहरे के बाद भी चोरों ने चार घरों के ताले और खिड़की को तोड़कर हज़ारों रुपए का सामान चुरा लिया। बता दें कि इस मजहबी भीड़ के डर से भाग खड़े हुए स्थानीय लोगों के घर में ताला लगा हुआ था, जिन्हें तोड़कर उत्पातियों ने इस वारदात को अंजाम दिया है।

भीड़ के आतंक से परेशान लोगों की परेशानी उस समय और भी ज्यादा बढ़ गई, जब इन घटनाओं की सूचना बर्मामाइंस के थाना प्रभारी को दी गई। मदद करने की जगह जनाब ने लोगों को नसीहत दी कि जब आप लोग अपने घरों में ही नहीं रहेंगे तो क्या होगा? थाना प्रभारी की बात सुनने के बाद लोगों में गुस्सा उमड़ आया, जो कि बेहद स्वभाविक भी है।

आपको बता दें कि दैनिक जागरण की ख़बर के अनुसार इस्लामी भीड़ ने इन आश्रम में रह रहे जिन परिवारों पर हमला करना शुरू किया, उस परिवार में कुछ दिव्यांग लोगों के साथ कुष्ठ रोगी भी रहते थे।

गाँव की एक लड़की रश्मि महतो का कहना है, “हम लोग अपंग हैं, इसलिए हम पर इन लोगों द्वारा (मुस्लिमों) हमला किया जाता है। ये लोग हमारी लाचारी का फायदा उठाते हैं और हम पर अत्याचार करते हैं। ये हम पर हावी होते हैं और हमें मारते-पीटते हैं। जिसकी वजह से 8-10 महिलाएँ भी घायल हुईं हैं। पुलिस सुरक्षा के बावजूद भी ये लोग हमें मारने की धमकी देते हैं। ये कहते हैं कि पुलिस तुम लोगों को सिर्फ कुछ दिन तक ही बचा पाएगी, बाद में हम तुम्हें तुम्हारे घर में घुसकर मारेंगे।”

इस साम्प्रायदिक झगड़े की शुरुआत उस समय हुई, जब वहाँ से एक बच्चा समुदाय विशेष की बस्ती में अपनी पतंग लेने गया। हालाँकि, उस समय ये बात शांत हो गई। लेकिन, इस घटना ने कुछ दिन बाद ख़तरनाक हिंसात्मक रूप ले लिया और वहाँ पत्थरबाज़ी शुरू हो गई।

इस घटना के बाद श्रीराम सेवाश्रम के निवासी पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराने पहुँचे। जिसमें उन्होंने पुलिस को बताया कि वो लोग किस तरह बस्ती में आकर उन लोगों का शोषण करते हैं।

आश्रम में रह रही महिला ने बताया कि वो लोग आकर अभद्र भाषा का इस्तेमाल करके उन्हें ज़लील करते हैंं। वो अपनी ताकत का बख़ान करते हैं और कहते हैं कि कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। वो मंदिरों पर पत्थरबाज़ी करते हैं और फिर घरों पर भी पत्थर फेंकने से नहीं चूकते हैं।

अपने आतंक से लोगों को बेघर करके भी उन्हें शांति नहीं मिली है। अब ये लोग घरों में चोरी करने पर आमादा हो चुके हैं। अपने घर में चोरी की खबर सुनने के बाद वहाँ सालमी बोयपाई नाम की एक महिला बेहोश होकर गिर गई। वह इस घटना से इतनी आहत हुई कि ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने और रोने लगी। आखिर किसी को भी दुख क्यों नहीं होगा, इंसान अपनी मेहनत से जमा-पूंजी संचय करता है और कोई उसे लूट ले जाता है। सालमी ने अपने घर में छिपाकर पायल, कान की बालियाँ, मेडल और रुपए रखे थे, जो सब चोरी हो गए। सालमी को इस बात का इतना झटका लगा कि उसे फौरन अस्पताल ले जाया गया।

गांव में हुई इस चोरी में सालमी के साथ रायबारी दास, बुचिया देवी तथा सोमवारी सोरेन के घरों को भी चोरों ने अपना निशाना बनाकर लूटा। इस घटना के बाद सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि बस्ती के नीचे की ओर पुलिस का अस्थायी कैंप है। जिसकी वजह से इस घटना पर काफ़ी सवाल खड़े होते हैं।

ऑपइंडिया के फ़ैक्ट-चेक के बाद बिज़नेस स्टैण्डर्ड ने हटाया अपना आर्टिकल

ऑपइंडिया ने रविवार (जनवरी 13, 2019) को एक फ़ैक्ट-चेक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि कैसे बिज़नेस स्टैण्डर्ड (BS) ने गूगल ट्रेंड्स डेटा को गलत तरीके से इस्तेमाल कर राहुल गाँधी को नरेंद्र मोदी से आगे दिखा दिया। अपनी रिपोर्ट में बिज़नेस स्टैण्डर्ड ने गूगल ट्रेंड्स के आधार पर ये दावा किया था कि राहुल गाँधी, मोदी से ज्यादा लोकप्रिय हैं। लेकिन, अभिषेक बनर्जी ने 1 जनवरी 2018 से 6 जनवरी तक के डाटा को खँगालते हुए गूगल पर नरेंद्र मोदी और राहुल गाँधी की लोकप्रियता की तुलना की। इसके बाद ये पता चला कि BS ने गूगल ट्रेंड्स डेटा को गलत तरीके से पेश किया था।

ऑपइंडिया द्वारा फ़ैक्ट-चेक प्रकाशित करने के बाद BS ने अपने उस आर्टिकल को हटा दिया है। उस लिंक पर अब ‘स्टोरी विथड्रॉन (Story Withdrawn)’ का एक मैसेज भी दिखाया जा रहा है। साथ ही ये कारण बताया जा रहा है कि आख़िर क्यों इस स्टोरी को हटा दिया गया। BS ने अपना आर्टिकल हटाने के पीछे का कारण बताते हुए लिखा है:

“यह आर्टिकल हटा दिया गया है क्योंकि ‘सबसे अधिक खोजे जाने वाले राजनेता’ की खोज करने के विभिन्न तरीके हैं और कुछ अन्य तरीकों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राहुल गाँधी से आगे हैं।”

ऑपइंडिया के फ़ैक्ट-चेक के बाद बिज़नेस स्टैण्डर्ड ने हटाई अपनी स्टोरी।

ऑपइंडिया के फ़ैक्ट-चेक रिपोर्ट में सबसे पहले Modi और Rahul कीवर्ड्स डाल कर पिछले एक वर्ष के गूगल ट्रेंड्स डाटा को खँगाला गया जिसमे ये पता चला कि पूरे साल मोदी लोकप्रियता के मामले में राहुल से काफ़ी आगे रहे।

Modi और Rahul कीवर्ड्स की तुलना।

BS के लेख को करीब से देखने पर ये पता चल रहा था कि उन्होंने नरेंद्र मोदी और राहुल गाँधी के पूरे नाम की गूगल ट्रेंड्स में तुलना की थी। ऑपइंडिया ने भी इसी अवधि में Narendra Modi और Rahul Gandhi नामक कीवर्ड्स डाल कर डेटा को समझने की कोशिश की। इस से मिले परिणामों में राहुल गाँधी कहीं भी नरेंद्र मोदी के सामने नहीं ठहरते। हाँ, 9 दिसंबर से 15 दिसंबर तक की अवधि में राहुल गाँधी ज्यादा सर्च किए गए। ऐसा इसीलिए हुआ क्योंकि उस दौरान पाँच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम आए थे और कॉन्ग्रेस तीन राज्यों में सरकार बनाने में सफल रही थी।

Narendra Modi और Rahul Gandhi कीवर्ड्स की तुलना।

इसके अलावे ऑपइंडिया के इस लेख में टर्म सर्च (Term Searches) और टॉपिक सर्च (Topic Search) के बीच का अंतर भी बताया गया है। टर्म सर्च अनिश्चित परिणाम देते हैं जबकि टॉपिक सर्च निश्चित (Precise) परिणाम देते हैं।

न्यूज़ सेक्शन में भी नरेंद्र मोदी राहुल गांधी से काफ़ी आगे हैं।

जब टॉपिक सर्च के डाटा को खंगाला गया तो उसमे भी नरेंद्र मोदी राहुल गाँधी से काफ़ी आगे दिखे। फिर केटेगरी के अंतर्गत न्यूज़ (News) वाला सेक्शन चुना गया। इस सेक्शन में भी नरेंद्र मोदी साफ़-साफ़ आगे दिखे। जबकि BS ने दावा किया था कि न्यूज़ सेक्शन में राहुल गाँधी आगे हैं।

फ़िलहाल BS द्वारा इस लेख को हटाए जाने के बाद ट्विटर पर लोगों ने ऑपइंडिया की तारीफ़ की है और ऑपइंडिया को इस बृहद रिसर्च के लिए धन्यवाद दिया है। इस से पहले BBC को भी हमारे फ़ैक्ट-चेक के बाद अपनी रिपोर्ट एडिट करनी पड़ी थी। एक अलग मामले में ‘द वायर’ को भी हमारे फ़ैक्ट-चेक रिपोर्ट के बाद अपनी स्टोरी को एडिट करना पड़ा था।

इस से पहले जनवरी 3, 2019 को प्रकाशित एक लेख में भी ऑपइंडिया ने ऑनलाइन सर्च डाटा के आधार पर दिखाया था कि भारतीयों की राहुल गाँधी में कोई रूचि नहीं है। इस लेख में ये भी बताया गया था की ख़ासकर उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी काफ़ी लोकप्रिय हैं और राहुल गाँधी उनके सामने कहीं नहीं ठहरते। यूपी क्षेत्र के गूगल ट्रेंड्स को खंगालने पर पता चला था कि वहाँ मोदी की लोकप्रियता 93% है तो राहुल की सिर्फ 7% ही है।

मकर संक्रांति: जीवन के विज्ञान और महात्म्य का उत्सव

आज मकर संक्रांति है। कल ही तो लोहड़ी बीती है। भारत की सांस्कृतिक विरासत यूँ ही इतनी विविधताओं से भरी नहीं है। यहाँ हर कार्य से पहले उसके सफलतापूर्वक सम्पन्न होने की मंगल कामना और पूरा होने के बाद उत्सवों का दौर। जीवन आनन्द का भोग, तत्पश्चात अगले कार्य की तैयारी फिर उत्सव। मेहनत पहले और आनंद बाद में। इस तरह ख़ुशहाली और कर्म का चक्र चलता रहता है।

भक्काटे बचपन की याद , उड़ी पतंग मन हुआ मलंग

ख़ासतौर से उत्तर भारत में 14 जनवरी को मनाया जाने वाले ‘मकर संक्रांति’ का त्यौहार दही-चूड़ा, लाई, गुड़ और तिल की मिठाइयों और पतंगबाजी के भक्काटे के शोर के लिए मशहूर है। हो सकता है, आप खो गए हों कि आख़िरी बार कब आपने लम्बे नख से किसी की पतंग काटी थी। कटी पतंग के साथ भक्काटे का शोर बच्चों के लिए तो महादेव की डमरू से गूँजा अनहद नाद ही है।

क्या मकर संक्रांति का मतलब इतना ही है? चलिए इसी बहाने भारतीय त्यौहारों के पीछे छिपे गहरे महत्त्व पर प्रकाश डालता हूँ। किस तरह मकर संक्रांति का पर्व ब्रह्मांडीय और मानव ज्यामिति की एक गहरी समझ पर आधारित है। बताता चलूँ कि मकर संक्रांति फ़सल काटने का भी त्यौहार है। मकर संक्रांति को फ़सलों से जुड़े त्यौहार या पर्व के रूप में भी जाना व पहचाना जाता है।

दरअसल, यही वह समय है, जब फ़सल तैयार हो चुकी है और हम उसी की ख़ुशी व उत्सव मना रहे हैं। इस दिन हम हर उस चीज के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं, जिसने खेती करने व फ़सल उगाने में मदद की है। कृषि से जुड़े संसाधनों व पशुओं का भी जिनका खेती में बड़ा योगदान होता है। मगर, इस त्यौहार का खगोलीय और आध्यात्मिक महत्व ज़्यादा है।

‘मकर’ का अर्थ है शीतकालीन समय अर्थात ऐसा समय जब सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे नीचे होता है। और ‘संक्रांति’ का अर्थ है गति। इतना ही नहीं, मकर संक्रांति के दिन राशिचक्र में एक बड़ा बदलाव भी आता है। इस खगोलीय परिवर्तन से जो नए बदलाव होते हैं उन्हें हम धरती पर देख और महसूस कर सकते हैं। ये समय आध्यात्मिक साधना के लिए भी महत्वपूर्ण है। तमाम योगी, साधक एवं श्रद्धालु इस अवसर का उपयोग अपनी आत्मिक उन्नति के लिए करते हैं। महाकुम्भ, कुम्भ, अर्ध कुम्भ और मकर संक्रांति के स्नान का भी बड़ा महात्म्य है।

वैसे तो साल भर में 12 संक्रान्तियाँ होती हैं। पर इनमें से दो संक्रातियों का विशेष महत्व है। पहली मकर संक्रांति और दूसरी, इससे बिल्कुल उलट, जून महीने में होने वाली मेष संक्रांति। इन दोनों के बीच में कई और संक्रान्तियाँ होती हैं। हर बार जब-जब राशि चक्र बदलता है तो उसे संक्रांति कहते हैं।

संक्रांति शब्द का मतलब हमें पृथ्वी की गतिशीलता के बारे में याद दिलाना है, और यह एहसास कराना है कि हमारा जीवन इसी गतिशीलता की देन है और इसी से पोषित भी। कभी सोचा है आपने अगर यह गति रुक जाए तो क्या होगा? अगर ऐसा हुआ तो जीवन संचालन से जुड़ा सब कुछ ठहर जाएगा।

हर 22 दिसंबर को अयनांत (Solstice) होता है। सूर्य के संदर्भ में अगर कहूँ तो इस दिन पृथ्वी का झुकाव सूर्य की तरफ़ सबसे ज़्यादा होता है। फिर इस दिन के बाद से गति उत्तर की ओर बढ़ने लगती है। फलस्वरूप, धरती पर भौगोलिक परिवर्तन बढ़ जाता है। हर चीज़ बदलनी शुरू हो जाती है।

यह गतिशीलता ही है, जो जीवन का आधार बनी। जीवन की प्रक्रिया, आदि और अंत भी। इसके साथ ही महादेव ‘शंकर’ शब्द आपको याद दिलाता है कि इस चराचर ब्रह्माण्ड के पीछे जो है, वह है शिव। शिव अर्थात वह जो नहीं है। जो नहीं है, वही पूर्ण अचल है। निश्चलता ही गति का आधार और मूल भी है।

जब कोई इंसान अपने भीतर की स्थिरता से संबंध बना लेता है, तभी वह गतिशीलता का आनंद ले सकता है। अन्यथा मनुष्य, जीवन की गतिशीलता से डर जाता है। मनुष्य के जीवन में आने वाला हर बदलाव या किसी भी तरह का परिवर्तन उसके लिए अक्सर दुःख या पीड़ा का कारण होता है।

आज इस भागती-दौड़ती दुनिया का तथाकथित आधुनिक जीवन ही ऐसा है। जिसके हर बदलाव में पीड़ित होना तय है। आज बचपन एक तनाव बन चुका है, किशोरावस्था या युवावस्था उससे भी बड़ा दुख। प्रौढ़ावस्था असहनीय है। बुढ़ापा डरा और सकुचा-सहमा हुआ और मृत्यु या जीवन का अंत किसी घोर आतंक या ख़ौफ़ से कम नहीं। आज पैदा होने से लेकर मृत्यु तक जीवन के हर स्तर या चरण पर कुछ न कुछ समस्या है।

वह इसलिए है, क्योंकि इंसान को हर बदलाव से दिक्कत है। दरअसल, इन्सान यह स्वीकार करने को ही तैयार नहीं कि जीवन की असली प्रकृति ही बदलाव है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। आप गतिशीलता का तभी आनंद ले पाएँगे या उत्सव मना पाएँगे, जब आपका एक पैर स्थिरता में दृढ़ता से जमा होगा। और दूसरा गतिशील। मकर संक्रांति का पर्व इस बात का भी उद्घोष है कि गतिशीलता का उत्सव मनाना तभी संभव है, जब आपको अपने भीतर स्थिरता का एहसास हो।

मकर संक्रांति के बाद से सर्दी धीरे-धारे कम होने लगती है। इस तथ्य से तो आप परिचित ही हैं कि हम सभी सौर ऊर्जा से संचालित हैं। तो मकर संक्रांति का महत्व ये समझने में भी है कि हमारे जीवन का स्रोत कहाँ है? इस ग्रह पर व्याप्त हर एक पौधा, पेड़, कीट, पतंगा, कीड़ा, जानवर, पशु-पक्षी, पुरुष, महिला, बच्चा, हर प्राणी सौर ऊर्जा से संचालित होता है। सौर ऊर्जा कोई नई तकनीक नहीं है। हम सभी सौर ऊर्जा से ही संचालित हैं, सौर ऊर्जा धरती पर जीवन के आरम्भ और उत्कर्ष का आधार भी है।

भारतीय संस्कृति में हम साल के इस नए पड़ाव का, जब हमारे पास सर्वाधिक सौर ऊर्जा होती है, हम इसे ‘मकर संक्रांति’ के रूप में मनाते हैं। इसलिए हम सूरज का स्वागत करते हैं। जैसे-जैसे हम हिमालय से दूर जाते हैं। उन जगहों पर आज से ही सूर्य की प्रचंडता बढ़ने लगती है। लोग ग्रीष्म ऋतु के आगमन की आहट पा परेशान होने लगते हैं। उनकी बढ़ती परेशानी की वज़ह ग्लोबल वार्मिंग भी है। आने वाली पीढ़ियों के लिए ज़रूरत है एक ऐसा माहौल बनाने की, जहाँ हम अपने जीवन के स्रोत का अधिकतम लाभ उठा सकें। ये त्यौहार हमें ये भी याद दिलाते हैं कि हमें अपने वर्तमान और भविष्य को पूरी चैतन्यता और जागरूकता के साथ गढ़ने की ज़रूरत है।

यदि आप चाहते हैं कि इस देश की भावी पीढ़ियाँ आने वाली गर्मी का स्वागत करने एवं आनंद लेने के लिए पर्याप्त रूप से सक्षम हो, तो यह तभी संभव है जब हम प्रकृति के साथ एक अनुकूलन पैदा करें। धरती, वनस्पतियों, जल संसाधनों से समृद्ध और मिट्टी में पानी को सोखने में सक्षम हो। तभी हम सही मायने में मकर संक्रांति का जश्न मना सकते हैं।

ऑपइंडिया टीम की तरफ़ से, आप सभी को मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ।

थप्पड़ से ही डर लगता है साहेब, प्यार तो राशन कार्ड से भी मिल जाता है!

ख़बर आई है कि परमसम्माननीय, भारत की राजनीति में बदलाव का बवंडर लाने वाले, युवा दिलों की धड़कन, टेलिब्रांड्स के वज़न बढ़ाने वाली दवाओं के बिफ़ोर-आफ़्टर के अघोषित ब्रांड अंबेसेडर, चेहरे पर इंक से लेकर, अंडा, टमाटर और लाल मिर्च पाउडर तक फिंकवाने वाले (ताकि आमलेट में सिर्फ प्याज का खर्चा आए), श्री अरविन्द केजरीवाल जी ने बनारस की पावन नगरी से चुनाव नहीं लड़ने का फ़ैसला दिल पर पत्थर रखकर ले लिया है।

भक्तों में इस कारण से शोक की लहर फैल गई है। और भक्तों से तात्पर्य आम आदमी कार्यकर्ताओं से है? दुःख इसलिए हो रहा है कि बनारस जाते तो माला पहनकर दो-चार थप्पड़ ही खा लेते! इस बार गाल पर मांस भी तो ज़्यादा है! इससे पहले की मुझे ‘बॉडी शेमिंग’ करनेवाला कह दिया जाए, मैं ध्यान दिलाना चाहूँगा कि गाल पर ज़्यादा मांस से मतलब यह है कि पार्टी के लिए थप्पड़ खा लेंगे तो इस पर चोट कम लगेगी।

थप्पड़ खाकर मुँह फूल जाता है लोगों का, यहाँ पहले से ही फूला हुआ है। थप्पड़ का ज़िक्र बार-बार करते हुए मैं भटककर भूल ही गया कि आख़िर आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं में शोक की लहर क्यों है? दिल्ली के मालिक, दिल्ली राष्ट्र के सुप्रीम लीडर, दिल्ली की तीनों सेनाओं को चीफ़ कमांडर और राष्ट्रपति श्री अरविंद केजरीवाल जी पार्टी को पूरी तरह से समर्पित व्यक्ति रहे हैं। इसमें आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं को कोई संदेह नहीं है। 

ख़ासकर उन कार्यकर्ताओं को तो बिलकुल नहीं जिन पर हर ‘दुर्घटना’ के बाद भाजपा का होने का आरोप लगता है, और पता चलता है कि थप्पड़ मारने से लेकर, इंक फेंकने से लेकर, मिर्ची पाउडर फेंकने तक होते वो आम आदमी पार्टी के ही हैं। जब किसी पार्टी को यह पता चल जाए कि ट्रैफ़िक कैसे बढ़ता है, तो वो ज़ाहिर-सी बात है कि तमाम वैसे काम, बार-बार करेंगे।

थप्पड़ खाने के बाद आम आदमी पार्टी के साइट पर चंदा देने वालों की भरमार लग जाती है। आधिकारिक सूत्रों के हवाले से मैं ये कह सकता हूँ कि जब-जब केजरीवाल जी ने पार्टी की खातिर अपने चेहरे को आगे किया है, पार्टी के खाते में पैसे बढ़े हैं। आप एक थप्पड़ मारिए, लोग 85 लाख रुपया दान कर देते हैं। अब आलम यह है कि सोने का अंडा देने वाले केजरीवाल ने यह फ़ैसला ले लिया कि वो बनारस से मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव नहीं लड़ेंगे, तो उनके भक्तों में ग़मगीनी छाई हुई है।

लेकिन, मैं भी सोचता हूँ कि आदमी की अपनी तो थोड़ी-बहुत इज़्ज़त होती ही है चाहे वो आम आदमी पार्टी से ही क्यों न जुड़ा हो। आदमी घर तो जाता ही होगा। घर का गेटकीपर ही कहीं पूछ दे कि ‘सर, आजकल कोई विडियो नहीं आ रहा?’ तो आदमी को कितना बुरा फ़ील होगा। 

अब जब सरकार के लोग, विधायक आदि पार्टी फ़ंड जुटाने के लिए राशन कार्ड आदि के माध्यम से, चुनाव के टिकटों के माध्यम से पार्टी के लिए चंदा इकट्ठा कर ही रहे हों तो किसी मुख्यमंत्री का माला पहनकर ‘चट देनी मार देली खींच के तमाचा’ खाना सही थोड़े ही लगता है!

वैसे भी शास्त्रों में कहा गया है कि बुद्धिमान इन्सान वो है जो अपनी ग़लतियों से सीखता है। फ़िल्म रीव्यू किया, लेकिन कोई पैसा नहीं मिला, तो वो भी छोड़ दिया आदमी ने। मोदी को सायकोपाथ कहा, सुबह उठकर ताँबे वाले लोटे से पानी पिया और ट्वीट कर बताया कि उनकी कब्जियत से लेकर उनके मुख्यमंत्री होते हुए विभूतिनारायण मिश्रा टाइप के नल्लेपन का ज़िम्मेदार मोदी है, लेकिन बाद में सीधा गरियाना बंद कर दिया। ये सब बताता है कि आदमी उम्र के साथ समझदार हो जाता है। 

माननीय केजरीवाल जी ने काफ़ी अनुनय-विनय के बाद एक पोर्टफ़ोलियो अपने पास रखा

बाहरहाल, अब पता चला है कि माननीय मुख्यमंत्री जी दिल्ली की समस्याओं पर ही ध्यान देंगे। दिल्ली की प्रमुख समस्याओं में से एक है उनका ख़ाली होना। दूसरी समस्या है उन्हीं के कुछ विधायकों का ख़ाली होना जो आए दिन किसी बुजुर्ग को थप्पड़ मार देते हैं, तो किसी का राशन कार्ड बनाने लगते हैं, कभी किसी महिला से छेड़छाड़ करते हैं, तो कभी चीफ़ सेक्रेटरी से मारपीट करते हैं। ये सब अच्छा थोड़े ही लगता है!

अब आप कहेंगे कि ये सब तो बस आरोप हैं, इससे क्या साबित हो जाता है? फिर मैं कहूँगा कि साबित कुछ हो न हो, आदमी पेपर लहराकर ये कहता है कि उसके पास 370 पन्नों का सबूत है शीला दीक्षित के ख़िलाफ़ तो लोग उसे मुख्यमंत्री चुनते हैं। बाद में उसके 370 पन्ने टॉयलेट रोल के ख़त्म होने के कारण पार्टी ऑफ़िस में इस्तेमाल हो जाते हैं और शीला दीक्षित पर एक भी केस फ़ाइल नहीं हो पाता। और हद तो तब हो जाती है जब वो भाजपा के लोगों से शीला दीक्षित के ख़िलाफ़ सबूत माँगने लगता है! 

ख़ैर, हमारा क्या है, हम तो चंदा भी नहीं देते और ये वाला विडियो देखकर खुश रहते हैं। आप भी देखिए:

चुनाव न लड़ने का एक कारण ऐसे वीडियो का इंटरनेट पर होना भी माना जा रहा है

सबरीमाला मुद्दे पर राहुल गाँधी का U-टर्न

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर चल रहे विवाद पर राहुल गाँधी ने अब पलटी मारी है। पहले राहुल गाँधी सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की पैरवी करते रहे हैं। अब उन्होंने अपने रुख में बदलाव करते हुए कहा है कि वह इस मुद्दे पर कोई ‘स्पष्ट’ रुख अख़्तियार नहीं कर सकते क्योंकि दोनों पक्षों के तर्कों में दम है। राहुल गाँधी ने हाल ही में दुबई में इस बारे में बयान देते हुए इस मुद्दे को काफ़ी जटिल बताया और कहा कि इस बारे में केरल की जनता ही निर्णय करेगी।

राहुल गाँधी ने ये भी स्वीकार किया है कि सबरीमाला मंदिर पर उनकी शुरुआती राय भिन्न थी। एक प्रेस मीटिंग में राहुल ने कहा:

“मैं इस तर्क में वैधता देख सकता हूं कि परंपरा को संरक्षित करने की आवश्यकता है और मैं इस तर्क में भी वैधता देख सकता हूं कि महिलाओं को समान अधिकार होना चाहिए। इसीलिए मैं इस मुद्दे को लेकर कोई सपाट बात नहीं कह सकता कि यही होना चाहिए। मैं इसे केरल के लोगों पर छोड़ता हूँ।”

राहुल गाँधी ने कहा कि उन्हें इस मुद्दे की जटिलता का एहसास तब हुआ, जब उन्होंने कॉन्ग्रेस पार्टी की केरल इकाई से इस बारे में जानकारी माँगी और इस मुद्दे को समझा। इस से पहले राहुल गाँधी इस मामले में महिलाओं के सबरीमाला में प्रवेश की पैरवी करते रहे हैं और उनका रुख श्रद्धालुओं के विरोध में रहा है। अक्टूबर में इस बारे में बयान देते हुए राहुल ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा था कि उनकी राय उनकी पार्टी की केरल इकाई से भिन्न है और वो सबरीमाला में महिलाओं को प्रवेश देने की पैरवी करते हैं।

कुल मिला कर देखा जाए तो सबरीमाला मंदिर विवाद पर कॉन्ग्रेस पार्टी, राहुल गाँधी और कॉन्ग्रेस की केरल इकाई- इन तीनों के विरोधाभासी विचार हैं। केरल कॉन्ग्रेस इस मुद्दे पर शुरुआत से ही श्रद्धालुओं के साथ है और राहुल गाँधी इस मुद्दे पर अपनी राय बार-बार बदलते रहे हैं। वहीं भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर पार्टी की राज्य इकाई से अलग रुख अख़्तियार किया हुआ है। अब राहुल के ताजा बयानों के बाद ये कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या कॉन्ग्रेस पार्टी सबरीमाला विवाद में श्रद्धालुओं का साथ देगी?

ज्ञात हो कि पिछले वर्ष सितम्बर में उच्चतम न्यायलय ने अपने निर्णय में कहा था कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश न देना संविधान के ख़िलाफ़ है। साथ ही अदालत ने महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दे दी थी जिसके बाद केरल में हिंसा भड़क गई थी। इस निर्णय के बाद केरल में वामपंथी संगठन और श्रद्धालु आमने-सामने हैं और उनके बीच लगातार टकराव की स्थिति बनती रही है।