Thursday, November 7, 2024
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महिलाधिकारों पर केरल सरकार का दोहरा रवैया; मस्जिद जा रही महिलाएँ गिरफ्तार

सबरीमाला मंदिर के मामले में महिलाधिकारों की रक्षा का दावा करने वाली केरल की वामपंथी सरकार का दोहरा रवैया सामने आया है। दरअसल, बात सबरीमाला मंदिर के पास ही स्थित वावर मस्जिद का है जहाँ पुलिस ने तीन महिलाओं को अंदर जाने से सिर्फ मना ही नहीं किया, वरन गिरफ़्तार भी कर लिया। ये तीनो महिलाऍं तमिलनाडु के संगठन ‘हिन्दू मक्कल काची’ से जुड़ी हुई है। द न्यूज़ मिनट में प्रकाशित एक खबर के अनुसार ये तीनो महिलाएँ सोमवार की शाम को मस्जिद में जाकर प्रार्थना करना चाहती थी जिसके कारण पुलिस ने इन्हे पहले ही गिरफ़्तार कर लिया।

गिरफ़्तार की गई तीनो महिलाऍं तमिलनाडु की है जिनके नाम हैं- रेवती, शुशीला देवी और गांधीमत्ती। सुशीला और रेवती तिरुप्पुर से है जबकि गांधीमत्ती तिरुनेलवेली की रहने वाली है। इन तीनो ने इस सप्ताह की शुरुआत में एक प्रेस कांफ्रेंस कर वावर मस्जिद में जाने का ऐलान किया था। इन तीनो ने सवाल पूछा था कि अगर महिलाएँ सबरीमाला मंदिर में जा सकती है तो फिर वावर मस्जिद में क्यों नहीं?

इस मामले में लोगों की तरफ से तीखी प्रतिक्रियाएँ आई है। सोशल मीडिया पर लोगों के केरल की वामपंथी सरकार और राज्य की पुलिस के दोहरे रवैये पर सवाल उठाये। लोगों ने सबरीमाला और वावर मस्जिद पर दोहरा रवैया अपनाने के लिए केरल सरकार को आड़े हाथों लिया।

राजनीतिक विश्लेषक सोनम महाजन ने ट्वीट कर महिला अधिकार की बात करने वालों की चुप्पी पर सवाल खड़े किये। सोनम ने कहा;

“सबरीमाला मंदिर के नजदीक स्थित वावर मस्जिद में प्रवेश करने की कोशिश करने के लिए केरल पुलिस द्वारा गिरफ्तार की गई तीनो महिलाओं पर आईपीसी की धारा 153A (धर्म के आधार पर दो समुदायों में विद्वेष को बढ़ावा देना) लगा दी गई है। सबरीमाला दर्शन के दौरान अधिकतर अयप्पा भक्त इस मस्जिद में आते हैं। फेमिनिस्ट कहाँ हैं?”

ख़बरों के अनुसार पुलिस ने उन महिलाओं के साथ-साथ उनको केरल तक पहुँचाने वाले एक अन्य व्यक्ति को भी गिरफ्तार किया गया है। यही नहीं, उन महिलाओं के ड्राइवर को भी गिरफ्तार कर लिया गया। ये करवाई स्थानीय पुलिस द्वारा की गई। अब इन सभी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जायेगा। Kozhinjambada की पुलिस ने इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए कहा;

“ये महिलाएँ सांप्रदायिक तनाव को जन्म देना चाहती थी। पुलिस को उनके पलक्कड़ पहुँचने की सूचना थी और जिले में स्थित सभी 7 चेक पोस्ट पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गयी थी। इस समूह को अंत में पलक्कड़ के ही वेला थावलम चेक पोस्ट पर गिरफ्तार कर लिया गया।”

लेखिका शेफाली वैद्य ने भी केरल के मुख्यमंत्री को लपेटे में लिया और बराबरी की बात करने के उनके दावों को खोखला बताया।

शेफाली ने अपने ट्वीट में कहा;

अगर महिलाएँ सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करना चाहती है तो यह बराबरी के हक़ की लड़ाई है लेकिन अगर वो वावर मस्जिद में प्रवेश करना चाहती है तो यह क़ानून व्यवस्था के लिए ख़तरा है और केरल पुलिस उन्हें गिरफ़्तार कर लेती है। क्या पिनाराई विजयन ऑड-इवन फार्मूला पर काम कर रहे हैं?”

वावर मस्जिद केरल की राजधानी से 5 किलोमीटर दूर 1000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और सबरीमाला मंदिर में दर्शन करने के लिए जाने वाले श्रद्धालु अक्सर यहाँ आया करते हैं। श्रद्धालु अक्सर इस मस्जिद की परिक्रमा करते हैं और जय वावर स्वामी के नारे भी लगाते रहे हैं। दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के अनुसार मुस्लिम बहुल इलाक़े में स्थित इस मस्जिद को मक्का-मदीना के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तीर्थ भी माना जाता है।

ऐसे में महिलाओं के साथ अपराधियों की तरह व्यवहार करने एवं सबरीमाला मंदिर और वावर मस्ज़िद को दो अलग-अलग चश्मे से देखने के लिए केरल की वामपंथी सरकार निशाने पर है। पहले ही केरल पुलिस हजारों की संख्या में सबरीमाला के श्रद्धालुओं को गिरफ्तार करने के लिए आलोचना का सामना कर रही है, ऊपर से वावर मस्जिद मामले ने आग में घी का काम किया है। भारतीय जनता पार्टी के सोशल मीडिया सेल के महिला विंग की राष्ट्रीय प्रभारी प्रीती गाँधी ने कहा कि केरल की सरकार अलग-अलग सम्प्रदायों के लिए अलग-अलग नियम अपना रही है।

प्रीती ने अपने ट्वीट में कहा;

“केरल के वावर मस्जिद में पुलिस ने तीन महिलाओं को गिरफ़्तार किया। ये वही राज्य है जहाँ की पुलिस ने मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के आदेश पर सबरीमाला मंदिर में महिला अराजकतावादियों को घुसाया था और अब वही पुलिस बोल रही है कि सांप्रदायिक तनाव पैदा हो रहा था। अलग-अलग समुदायों के लिए अलग-अलग क़ानून?”

नसीरुद्दीन शाह विवाद जनने की फैक्ट्री बनते जा रहे हैं

बॉलीवुड एक्टर नसीरुद्दीन शाह हाल ही में अपने कुछ विवादों के चलते लगातार घेरे में हैं। नसीर ने भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेले जा रहे टेस्ट मैच श्रृंखला के दौरान विराट कोहली की आक्रामकता की सराहना नहीं की और क्रिकेटर को ‘दुनिया का सबसे ख़राब व्यवहार वाला खिलाड़ी’ तक कह डाला। यहीं से शुरू होता है विवादों वो दौर जो अब तक संभलने का नाम नहीं ले रहा है।

विवादों के इस मंज़र में देखते ही देखते अभिनेता नसीरुद्दीन शाह को कोहली के ख़िलाफ़ दिये गए इस बयान के चलते कठोर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। ऐसी परिस्थितियों में, नसीरुद्दीन शाह बाहर आए और कहा कि वह आज के भारत में अपने बच्चों के जीवन के लिए डरे हुए हैं। अपेक्षित पंक्तियों के साथ, उनके इस विवादित बयान ने मुख्यधारा के मीडिया में काफी हलचल पैदा कर दी और विभिन्न समूहों द्वारा उनके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन शुरू करने के बाद उन्हें अजमेर साहित्य महोत्सव छोड़ना पड़ा

उसके बाद भी वो नहीं रुके और इसी विषय पर हाल ही में, एमनेस्टी इंटरनेशनल नामक एनजीओ के एक वीडियो में दिखे, जो कथित FCRA उल्लंघन के लिए जाँच के अधीन है। यहाँ उन्हें ‘शहरी नक़्सलियों’ (अर्बन नक्सल्स) का समर्थन करते हुए स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जिन्हें कोरेगाँव भीमा में हिंसा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक कथित हत्या की साज़िश के सिलसिले में ग़िरफ़्तार किया गया था।

नसीरुद्दीन शाह के ऐसे बयानों में नरेंद्र मोदी का विरोध स्पष्ट रूप से दिखता है। लेकिन, ऐसा भी लगता है कि नसीर अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए भी झूठ का सहारा लेते हैं। इंडिया टुडे के साक्षात्कार में नरेंद्र मोदी के बारे में उनकी राय पूछी गई, तो उन्होंने कहा, “यह बता पाना बहुत मुश्किल है,” फिर आगे उन्होंने कहा, “वर्ष 2014 में जब वह सत्ता में आए थे तो मुझे उनसे काफी उम्मीदें थी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मेरा विश्वास कहीं डगमगाया है। मैं अभी भी भविष्य के लिए सकारात्मक सोच रखता हूँ।”

निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि नसीरुद्दीन शाह के कारनामों, जिनमें विवादित बयानों की भरमार है, से ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता कि उन्हें वर्ष 2013 में नरेंद्र मोदी पर विश्वास था या उनसे किसी भी प्रकार की उम्मीदें थी। वास्तव में, उन्होंने 2013 में एक प्रायोजित तरीक़े का इस्तेमाल किया था,जिसकी मंशा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘बेनक़ाब’ करना था।

नसीरुद्दीन जब बोल रहे थे तो वे बहुत आश्वस्त दिखाई दे रहे थे। हालाँकि, इंटरनेट एक ऐसी व्यवस्था है जिसकी एक लंबी मेमोरी होती है और यह कभी भी कोई चीज नहीं भूलती है।

जब भी लोग उनके बयानों की आलोचना करते हैं तो अभिनेताओं के लिए यह कहना और ‘असहमति के लिए कोई स्थान नहीं है’ चिल्लाते रहना फ़िल्मी हस्तियों के लिए एक सामान्य विषय बन गया है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि बॉलीवुड की हस्तियाँ ये नहीं समझती कि वास्तव में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कैसे काम करती है। ज़रूरत है तो एक गहन विचार की कि आख़िर कब, कैसे और क्यों अपने विचारों को दुनिया के दृष्टिपटल पर रखा जाए।

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन राठौड़ ने ‘द प्रिंट’ के भ्रामक लेख का दिया करारा जवाब

‘द प्रिंट’ की स्थापना के बाद से शेखर गुप्ता को कई झूठ फैलाने के लिए जाना जाने लगा है। इस बार उन्होंने सूचना और प्रसारण मंत्रालय के बारे में फ़र्जी ख़बरें फैलाने का फ़ैसला किया है।

अपने नये लेख में, ‘द प्रिंट’ ने ज़ोर देकर यह रिपोर्ट किया है कि मंत्रालय विभिन्न आउटलेट्स पर ‘जासूसी’ करने के लिए निजी एजेंसियों को नियुक्त करने की योजना बना रहा है ताकि भाजपा के 2019 के अभियान को ‘मज़बूत’ किया जा सके।

‘द प्रिंट’ के लेख में यह कहा गया कि PIB (प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो) ने पिछले महीने “मीडिया एकत्रीकरण, विश्लेषण और फीडबैक सेवाओं के लिए बाहरी एजेंसियों से प्रस्ताव आमंत्रित किए”, जो प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, ऑनलाइन और सोशल मीडिया से संबंधित हैं।

लेख में यह भी कहा गया कि PIB निविदा BECIL निविदा के कुछ दिनों बाद आई जिसने निजी एजेंसियों को एक भावनात्मक विश्लेषण रिपोर्ट तैयार करने के लिए आमंत्रित किया। ‘द प्रिंट’ ने अपने ‘सूत्रों के हवाले’ से कहा कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और PIB ने इसी तरह के अस्थायी टेंडर जारी किए हैं, जो एजेंसियों के बीच तालमेल की कमी को दर्शाता है और इससे काम, प्रयासों और वित्त का दोहराव हो सकता है।”

इसके अलावा लेख के अनुसार, एजेंसी से हर दिन प्रेस क्लिपिंग पर एक फ़ाइल देने की अपेक्षा की जाएगी, विशेष रूप से प्रधानमंत्री कार्यालय से जुड़े नकारात्मक समाचारों पर। यह सोशल मीडिया पर भावनात्मक रिपोर्ट बनाने से संबंधित होगी। जानकारी के अनुसार, प्रिंट द्वारा इसे ‘कीपिंग टैब’ कहकर नेगेटिव बताने की कोशिश की गई है।

केंद्रीय सूचना और प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ द्वारा ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट किया गया जिसमें शेखर गुप्ता की ‘द प्रिंट’ द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट को दिखाया गया।

शेखर गुप्ता को संबोधित करते हुए, राठौड़ ने एक वीडियो शेयर किया जिसमें वो अपनी बात कह रहे हैं, “‘द प्रिंट’ ने 2019 के चुनावों को ध्यान में रखते हुए लोगों पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के ‘जासूसी’ पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक फ़र्जी कहानी प्रकाशित की है। प्रिंट का लेख ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ के रूप में अपने पोर्टल पर कैसे आया, यह देखते हुए कि यह एक सार्वजनिक निविदा थी जिसे सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा मँगाई गई थी और ऐसी सार्वजनिक निविदाएँ सार्वजनिक जानकारियाँ हैं।”

तब उन्होंने पूछा कि सार्वजनिक जानकारी एकत्र करने को ‘जासूसी’ कैसे कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि शेखर गुप्ता को पसंद हो या नहीं, सरकार अपना काम करती रहेगी।

राज्यमंत्री राज्यवर्धन राठौड़ ने कहा कि यह समझना सरकार का काम है कि उनकी नीतियाँ काम कर रही हैं या नहीं और लोग सरकार के बारे में क्या सोचते हैं। उन्होंने कहा कि यह निविदा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी एकत्र करने के लिए है ताकि सरकार लोगों की आवाज़ सुन सके।

उन्होंने कहा कि ‘सोशल मीडिया’ को जोड़ना मात्र एक पहलू है सोशल मीडिया के महत्व को देखते हुए, यह ज़रूरी है कि सरकार को सार्वजनिक भावनाओं को समझने के लिए सोशल मीडिया पर भी नज़र रखनी होती है। उन्होंने कहा, “जासूसी निजी जानकारी के लिए होती है, यह सारी जानकारी सार्वजनिक डोमेन पर है।”

राठौड़ ने शेखर गुप्ता पर भी कटाक्ष करते हुए कहा कि अगर सरकार नहीं सुनती है, तो उनके जैसे लोग इस बारे में शिक़ायत करते हैं और जब ऐसा होता है, तो वे कहते हैं कि सरकार ‘जासूसी’ कर रही है।

उन्होंने यह कहते हुए अपने वीडियो को समाप्त कर दिया, “आप सार्वजनिक रूप से ज्ञानवर्धन करने वाले हैं। यह लेख भ्रामक था, आपको इसका ध्यान रखना चाहिए। शुभकामनाएँ!” जब तक यह लेख प्रकाशित हुआ था, तब तक न तो शेखर गुप्ता ने राज्यवर्धन सिंह के वीडियो का जवाब दिया था और न ही ‘द प्रिंट’ ने।

घटिया ‘ट्रांस्लेशन’ के साथ ‘द टेलीग्राफ़’ ने लगाया स्मृति ईरानी पर बेहूदा इल्ज़ाम

‘द टेलीग्राफ’ ने दावा किया कि केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कॉन्ग्रेस सरकार के अध्यक्ष राहुल गांधी के ‘मैनहुड’ (Manhood) पर सवाल किए हैं। जबकि यदि हक़ीक़त पर गौर किया जाए, तो किन्हीं भी मायनों में स्मृति ईरानी ने ऐसी कोई भी बात नहीं कही।

दरअसल, किसी की कही बात को दूसरी दिशा दिखाकर अपने पाठकों को बरगलाना बेहद आसान होता है, लेकिन पूरी बात बताने से न जाने क्यों आजकल के मीडिया संस्थान कतराने लगे हैं। स्मृति ईरानी की जिस बात पर ‘द टेलीग्राफ़’ ने इतनी बड़ी बात कह दी, वो वास्तव में कुछ और ही थी। उन्होंने कहा था कि बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह अपने ‘पुरूषार्थ’ के दम पर पार्टी के अध्यक्ष पद तक पहुँचे हैं, जबकि राहुल गाँधी को पार्टी के अध्यक्ष होने का पद उनकी माँ की वज़ह से मिला है। अब इसमें स्मृति ईरानी की क्या गलती है, अगर ‘द टेलीग्राफ़’ जैसा अखबार अपने अनुवादकों की काबिलियत देखे बिना उन्हें ट्रांस्लेटर की पोस्ट दे देते हैं! या शायद हिन्दी की समझ इतनी बेकार है कि ‘पुरुष’ से बने शब्दों को वो लिंग से आगे सोच नहीं पाते!

‘द टेलीग्राफ’ की यह रिपोर्टिंग जिसमें उन्होंने ‘पुरूषार्थ’ की व्याख्या करते हुए  ‘मैनहुड’ शब्द का इस्तेमाल किया, न सिर्फ़ गलत है, बल्कि बेहद शर्मनाक भी।

हिन्दुत्व की कम से कम जानकारी रखने वाला व्यक्ति भी इस बात को बहुत बेहतरीन तरीके से जानता है, कि पुरूषार्थ का तात्पर्य व्यक्ति द्वारा किए गए सद्कर्म से है न कि पौरुष से। हिन्दू धर्म में 4 पुरूषार्थ हैं- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। स्मृति ईरानी ने इसी संदर्भ में कहा था कि अमित शाह पार्टी के अध्यक्ष अपने निजी आचरण और अपनी निष्ठा के कारण बने हैं जबकि राहुल का पद उन्हें वंशवाद की वज़ह से मिला है।

पुरूषार्थ को ‘मैनहुड’ बताने वाले एलिटिस्टों की इस गलती से साफ़ मालूम पड़ता है कि उन्हें हिन्दू धर्म और उससे जुड़े सांस्कृतिक शब्दों के बारे में इतनी भी जानकारी नहीं है कि वो ‘पुरूषार्थ’ जैसे प्रचलित शब्द का सही अर्थ खोज सकें। या, यह भी संभव है की अपने अंध-विरोध में वो जानबूझकर ऐसी भ्रामक बातें लिखते हैं। ‘द टेलीग्रॉफ़’ की इस हरकत से ऐसा लगता है, जैसे उदारवादियों के साथ मिलकर वो सिर्फ इधर-उधर की बेकार बातों पर ध्यान देते में ही अस्त-व्यस्त है।

‘पुरूषार्थ’ को ‘मैनहुड’ कहने वाले ऐसे ही लोग और संस्थान सबरीमाला जैसे संवेदनशील मामले को केवल माहवारी से जोड़ कर देख पा रहे हैं, इनके लिए सबरीमाला विवाद पर कोई और नज़रिए या तर्क खुल ही नहीं रहे हैं। ऐसे ही लोगों के लिए इलाहाबाद के प्रयागराज दोबारा कहे में दिक्कत है। ये मात्र एक गलती नहीं हैं जिसने किसी की छवि बिगाड़ने का प्रयास किया हो। आज ऐसे ही अनेकों किस्म के बयानों को अधूरा और गलत तरीके से पेश करना ही मीडिया के कई अन्य संस्थानों की पहचान होती जा रही हैं, इन लोगों के लिए मात्र सेक्शुएलिटी और यौन सम्बंधों पर बात करना उदारवादी होने का मापदंड है। बेहद शर्म की बात है कि ये उदारवादी लोग अपनी ही भाषा के सांस्कृतिक शब्दों का अर्थ समझने में असमर्थ हैं।

मणिशंकर अय्यर ने राम मंदिर पर दिया ‘मणिशंकरी’ बयान

दिल्ली में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया के बैनर तले एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का नाम ‘एक शाम बाबरी मस्जिद के नाम’ दिया गया। इस कार्यक्रम में बतौर वक्ता कांग्रेस पार्टी के नेता मणिशंकर अय्यर को आमंत्रित किया गया था। अय्यर ने कार्यक्रम के दौरान कहा, “राजा दशरथ के महल में दस हजार कमरे थे, राम किस कमरे में पैदा हुए थे?” अय्यर ने कार्यक्रम के दौरान यह भी कहा, “यदि आप मंदिर बनाना चाहते हैं तो ज़रूर बनाइए, लेकिन आप कैसे कह सकते हैं कि मंदिर वहीं बनाएँगे। राम यहीं पैदा हुए थे, यहाँ मस्जिद है इसलिए मंदिर यहीं बनाएँगे। पहले मस्जिद तोड़ेंगे और फिर मंदिर वहीं बनाएँगे। ऐसे में मैं कहता हूँ  कि क्या अल्लाह में भरोसा रखना हिंदुस्तानी के लिए गलत है।”

अय्यर के इस बयान से देश और विदेश में रहने वाले करोड़ों हिंदुओं के आस्था को ठेस पहुँची है। राम मंदिर का मसला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन होने के बावजूद अय्यर का यह बयान दुर्भाग्यपूर्ण है। अय्यर ने यह बयान देकर एक तरह से राम मंदिर पर एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। यही नहीं अय्यर के इस बयान में कॉन्ग्रेस पार्टी के उस छिपे हुए चेहरे को भी देखा जा सकता है, जो हिंदुओं के ख़िलाफ़ है।

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2014 में अय्यर के विवादास्पद बयान

मणिशंकर अय्यर ने पिछले कुछ समय से बेहूदे बयान देने के सिवाय काम की कोई बात की भी नहीं है। इसलिए, आजकल कोई ऐसी बहकी और बेतुकी बातें करता है तो लोग कह देते हैं कि मणिशंकर-टाइप मत बोलो। 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान भी अय्यर ने विवादास्पद बयान दिया था। इस बयान में अय्यर ने प्रधानमंत्री मोदी के लिए ‘नीच’ शब्द का इस्तेमाल किया था। इस बयान के बाद भाजपा ने कॉन्ग्रेस को बैकफ़ुट पर जाने के लिए मजबूर कर दिया था। यही नहीं, अय्यर को इस बयान के लिए कॉन्ग्रेस पार्टी के प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया था। हालाँकि, बाद में वरिष्ठ नेताओं ने उनकी सदस्यता दोबारा से बहाल कर दिया था।  

2017 में भी विवादास्पद बयान दे चुके हैं

2017 में एक बार फिर से अय्यर ने विवादास्पद बयान दिया था। इस बार फिर से उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को टार्गेट किया। इस बार उन्होंने मोदी को ‘चायवाला ’ कहकर उपहास उड़ाना चाहा। अय्यर के इस बयान के बाद भाजपा के नेताओं ने उनका घेराव करना शुरू कर दिया। इस बार भी कॉन्ग्रेस पार्टी ने अय्यर के विवादास्पद बयान से खुद को अलग कर लिया था।

कुम्भ 2019: व्यापक है सुरक्षा के इन्तज़ाम

कुम्भ: आस्था और विश्वास का अनूठा संगम है। कुम्भ का शाब्दिक अर्थ है कलश। कहते हैं कि समुद्र मन्थन से प्राप्त अमृत कलश, जब जयन्त प्रयाग से लेकर गुज़र रहा था तो इस पावन संगम पर अमृत की कुछ बूँदें छलक पड़ी थी। तब से ही ये धरा अति पावन है। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि कुम्भ के समय पवित्र नदी में स्नान, मात्र तीन डुबकी लगाने से ही सभी तरह के पाप धूल जाते हैं और मनुष्य मोक्ष को प्राप्त होता है।

विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन कुम्भ 15 जनवरी 2019 (मकर संक्रान्ति) से शुरू होकर 4 मार्च 2019 (महाशिवरात्रि) तक चलेगा।

इस मेले में दुनिया भर से तकरीबन पन्द्रह करोड़ श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। 32 हेक्टेयर और 20 सेक्टरों में बसाया जा रहा मेला क्षेत्र चारों दिशाओं से खुला है।

जहाँ करोड़ों लोगों का जमावड़ा हो वहाँ सुरक्षा सर्वोपरी हो जाती है। संगमनगरी प्रयागराज में लगने जा रहे कुम्भ मेले में इस बार सुरक्षा के बेहद सख़्त इन्तज़ाम किए गए हैं। सुरक्षा एजेंसियों के साथ ही केंद्र व यूपी सरकार मिलकर सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार है। कुम्भ मेले की सुरक्षा की कमान अब एटीएस के हाथों में सौंप दी गई है। पुलिस और पैरामिलिट्री फ़ोर्स के साथ एटीएस के कमांडोज़ भी मेले की निगहबानी के लिए तैनात कर दिए गए हैं।

कुम्भ मेले में एटीएस स्पेशल ऑपरेशन की 50-50 कमांडो की दो टीमों को तैनात कर दिया गया है। कुम्भ मेले के दौरान एटीएस के लिए लॉन्च पैड बनाये गए हैं और पूरे मेला क्षेत्र पर एटीएस की सख़्त नजर है। मेले में स्नान पर्वों की भीड़ में एटीएस कमांडो मोटर बाइक से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकें, इसके व्यापक इन्तज़ाम किए गए हैं।

एटीएस के ब्लैक कैट कमांडो कई अत्याधुनिक हथियारों से भी लैस किए गए हैं। एक यूनिट में 54 कमांडो रखे जाएंगे। एटीएस कमांडो एमपी-फाइव, एके-47, स्नाइपर और ग्लॉक-17 पिस्टल से लैस रहेंगे। इसके साथ ही हैण्ड ग्रेनेड और स्टन ग्रेनेड जैसे हथियारों के साथ एटीएस कमांडों किसी भी आतंकी मंसूबों का मुँहतोड़ जवाब देने में सक्षम हैं।

एटीएस की टीम ने कुम्भ के आयोजन से एक महीने पहले ही मेले में न सिर्फ डेरा जमा लिया है, बल्कि जगह-जगह मॉक ड्रिल कर अपनी तैयारियों का रिहर्सल भी कर रही है।

अफ़सरों के मुताबिक़, धार्मिक आयोजन व ज़्यादा भीड़ एकत्रित होने की वजह से कुम्भ का आयोजन बेहद संवेदनशील है। पिछले दिनों पकड़े गए कुछ आतंकियों से भी इस तरह के इनपुट मिले हैं। इसलिए, कुम्भ में काफी पहले से ही एटीएस की टीम भेज दी गई है।

आईजी यूपी एटीएस असीम अरुण के मुताबिक यूपी एटीएस ने पूर्व में आतंकियों के जो मॉड्यूल तोड़े थे, उनसे पूछताछ में इस बात का खुलासा हुआ कि आतंकी बड़े धार्मिक आयोजनों पर हमले की योजना बना रहे हैं। जिसके बाद यूपी एटीएस ने कुम्भ मेले में एनएसजी, यूपी पुलिस और दूसरी सुरक्षा एजेंसियों के साथ मिलकर काम शुरू कर दिया है।

उनके मुताबिक़ मेले के दौरान एटीएस की टीमें दो स्तरों पर काम कर रही है। पहला ये कि इंटेलिजेंस एजेंसियों की मदद से इनपुट मिलने पर किसी भी आतंकी मन्सूबे को पहले ही रोका जा सके। इसके अलावा किसी तरह का आतंकी हमला होने की सूरत में प्रशिक्षित एटीएस कमांडो क्विक एक्शन के जरिए ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए हर वक्त तैयार रहेंगे। इसके साथ ही कुम्भ मेला क्षेत्र में तैनात रहने वाली यूपी पुलिस को भी एटीएस ने प्रशिक्षण देकर किसी भी चुनौती से निबटने के लिए तैयार कर दिया है।

कुम्भ 2019 : देखिए कैसी हैं तैयारियाँ? कितने चाकचौबंद हैं सुरक्षा के इन्तज़ाम

यौन शोषण के आरोपित पत्रकार अविनाश दास ने फ़ेक न्यूज़ से योगी पर साधा निशाना

फिल्म डायरेक्टर और पत्रकार अविनाश दास विगत अक्टूबर माह में एक ऐसी ‘फोटोसॉप्ड’ तस्वीर फैलाते हुए पकड़े गए, जिसमें बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा का एक फ़र्ज़ी बयान दिया गया था। खुद संबित पात्रा द्वारा इस ख़बर के फ़ेक होने की पुष्टि करने के बावजूद भी दास ने माफ़ी माँगने से एकदम इनकार कर दिया। बजाय माफ़ी मांगने के,अविनाश दास इसे राजनितिक मोड़ देकर सही साबित करने का प्रयास करते रहे।

उसके बाद भी उनकी कारस्तानियों में बेहतरी नहीं दिखी बल्कि, एक नए काण्ड के साथ वो फिर से चर्चा में आ गए। इस बार अविनाश दास उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की एक फ़ेक तस्वीर लेकर सामने आए हैं। अविनाश दास योगी आदित्यनाथ की एक ऐसी तस्वीर लेकर आए हैं जो किसी हिंदी अखबार की कटिंग प्रतीत होती है। ख़बर की हेडलाइन में लिखा है, “योगी आदित्यनाथ का एक और ग़ैर जिम्मेदाराना बयान, कहा हमारा काम गाय बचाना है, लड़की नहीं।” जो कि निःसंदेह एक अपमानजनक और भड़काऊ बयान है। साथ ही कैप्शन लिखा था, “बोलो, इस आदमी को जूते पड़ने चाहिए या नहीं?”

लेकिन सच यह है कि योगी आदित्यनाथ ने कभी कोई ऐसा बयान नहीं दिया। जो ख़बर अविनाश दास ने ट्वीट की थी, वो पूरी तरह से फ़ेक थी और सोशल मीडिया पर भड़काऊ समूहों में फैलाई जाती रही है। इस क्लिप के फ़ेक होने का ख़ुलासा कुछ महीनों पहले ही कर दिया जा चुका था।

पिछले साल अप्रैल के महीने ‘दी लल्लन्टॉप’ नाम की एक वेबसाईट ने इस तस्वीर पर ही ‘फैक्ट चेक’ किया था, जो कि उस दौरान वायरल हो गया था। उन्होंने पाया कि यह वास्तव में एक व्यंग्य लेख था जो बहुत से लोगों द्वारा वास्तविक ख़बर समझ कर शेयर किया जा रहा था। मूलरूप से यह व्यंग्य वेबसाइट rhumortimes.com पर प्रकाशित किया गया था। यह ‘डोमेन’ अब वैधता समाप्त होने के कारण काम नहीं कर रहा है। इस वेबसाईट का ‘हमारे बारे में’ पेज पर स्पष्ट रूप से दिया गया है कि यह एक व्यंग्य वेबसाईट है, जिसका स्क्रीनशॉट ‘दी लल्लनटॉप’ द्वारा लिया गया था।


rhumortimes.com के मूल व्यंग्य का स्क्रीनशॉट

फ़ेक न्यूज़ फैलाने के अलावा अविनाश दास पर यौन उत्पीड़न और अन्य जुर्मों के लिए भी आरोप लगे हैं। पहले वो NDTV, दैनिक भाष्कर, प्रभात ख़बर, और कुछ अन्य मीडिया संगठनों के साथ काम कर चुके हैं। NDTV के साथ अविनाश दास आउटपुट एडिटर के रूप कई वर्षों तक काम कर चुके हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, NDTV के ब्रांड्स का इस्तेमाल अपने व्यक्तिगत हितों के लिए करने के कारण दास को संगठन से निकाल दिया गया था।

इसके बाद अविनाश दास ‘डीबी स्टार’ से बतौर एडिटर जुड़े, जो कि हिंदी दैनिक भाष्कर का टैबलॉयड है। वहाँ काम करते हुए जर्नलिज्म और मास क्मुनिकेशन की एक महिला विद्यार्थी ने उनके खिलाफ यौन शोषण की लिखित शिकायत की थी। अविनाश अतिथि शिक्षक के रूप में भोपाल की माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में पढ़ाने के लिए जाते थे। विश्वविद्यालय के एक दल द्वारा मामले की जाँच किए जाने पर आरोप सही पाए गए थे और अविनाश दास को दैनिक भाष्कर द्वारा उनकी नौकरी से निकाल दिया गया था।

इसके अलावा जर्नलिस्ट श्रीपाल सक्तावत ने भी दास के ख़िलाफ़ एक मानहानि का केस दायर किया था। इसमें दावा किया था कि दास ने सक्तावत के ब्लॉग पर उनके ख़िलाफ़ कई झूठे और आपत्तिजनक स्टेटमेंट पोस्ट किए थे।

बिहार में अगवा हुए बजरंग दल के नेता का शव बरामद

रविवार (6 जनवरी 2019) को बिहार के भगवतपुर ज़िले से बजरंग दल के नेता रोहन कुमार को अगवा किया था, जिनका शव आज सुबह समस्तीपुर शहर से बरामद हुआ। अपहरण के बवाल से अभी पुलिस सम्हल भी नहीं पाई थी कि सोमवार को रोहन का शव मिला। पुलिस ने उसे पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है।

रविवार की देर शाम 8 संदिग्ध लोगों द्वारा बजरंग दल के नेता रोहन का अपहरण किया गया था। ये अनजान लोग बाइक पर सवार होकर आए थे और रोहन को उस समय उठाया, जब वो शौच के लिए खेत की ओर जा रहा था।

इस घटना के बाद रोहन के घरवालों ने और बजरंग दल के कई कार्यकर्ताओं ने मुसरीघरारी चौराहा को जाम कर आने जाने के रास्ते को जाम कर दिया था। इस हड़कंप की सूचना मिलने पर सरायरंजन थाना के अध्यक्ष संजीव कुमार चौधरी पुलिस बल के साथ पहुँचे और अपहरण करने वाले अपराधियों की गिरफ्तारी जल्द से जल्द करने का भरोसा दिलाकर लगे जाम को तुरंत हटवाया।

ये पहली बार नहीं है कि बजरंग दल, RSS पर या फिर BJP कार्यकर्ताओं पर हमला हुआ हो। इससे पहले भी केरल राज्य में कई बार ऐसी घटनाएँ सामने आई हैं। 2017 में CPM के कार्यकर्ताओं को RSS के एक कार्यकर्ता बीजू को मारने के आरोप में ग़िरफ़्तार किया गया था।

2016 में लेफ़्ट की सरकार आने के बाद केरल में RSS पर हमला ज़्यादा होने लगा है, और आज 2019 के आते-आते भी स्थिति सुधरने की जगह और भी ज़्यादा बिगड़ने लगी है। 2016 से तमाम ऐसे केस हैं जिनमें BJP के कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया गया। 2016 की खबरों की यदि बात करें तो अमित शाह ने ही विष्णु नाम के BJP कार्यकर्ता की मौत की सूचना दी थी। जिसके बाद एक खबर की हलचल अभी शांत ही नहीं हुई थी कि रामिथ नाम के दूसरे BJP कार्यकर्ता की मौत की खबर केरल में सामने आ गई।

इसके अलावा लखनऊ में रहने वाले पत्रकार राजीव चतुर्वेदी की संदिग्ध मौत की घटना भी 2015 में सामने आई थी। उनकी मौत पुलिस थाने में हुई थी, जिसके बाद उनकी मौत का कारण हॉर्ट अटैक बताया गया था। ग़ौरतलब है कि उनसे जुड़े सोशल मीडिया पर लोगों ने उनकी मौत के पीछे एक कारण उनका भाजपा के प्रति झुकाव भी बताया था।

सुप्रीम कोर्ट ने पलटा केंद्र सरकार का निर्णय; आलोक वर्मा फिर से CBI डायरेक्टर बहाल

केंद्र सरकार द्वारा छुट्टी पर भेजे गए आलोक वर्मा को उच्चतम न्यायलय ने फिर से सीबीआई डायरेक्टर के रूप में बहाल कर दिया है। बता दें कि सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा और उनके डिप्टी राकेश अस्थाना के बीच हुए विवाद के बाद दोनों को ही उनके पद से हटा दिया गया था। बता दें कि 23 अक्टूबर की आधी रात को केंद्र सरकार ने सीबीआई के भीतर बढ़ते विवाद को लेकर आलोक वर्मा को उनके पद से मुक्त कर लम्बी छुट्टी पर भेज दिया था। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार के इस फैसले के लगभग ढाई महीने बाद इसे पलट दिया है।

हलाँकि अदालत ने ये भी साफ़ किया कि आलोक वर्मा अभी कोई बड़ा नीतिगत फैसला नहीं ले पाएंगे और उनके मामले को एक कमिटी देखेगी। अदालत ने कहा की जब तक केंद्रीय सतर्कता आयोग द्वारा वर्मा के खिलाफ की जा रही जाँच पूरी नहीं हो जाती तब तक वो कोई बड़ा नीतिगत निर्णय नहीं ले सकते। बता दें की वर्मा के खिलाफ भ्रस्टाचार के आरोप हैं जिनकी जाँच चल रही है। अदालत ने कहा कि इस मामले में आगे का फैसला चयन समिति करेगी। चयन समिति में प्रधानमंत्री के अलावे नेता प्रतिपक्ष और मुख़्य न्यायाधीश शामिल हैं। साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि हर हफ़्ते समिति की बैठक हो।

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई द्वारा लिखे गए निर्णय को पढ़ते हुए न्यायमूर्ति संजीव किशन कॉल और केएम जोसेफ की पीठ ने कहा कि बिना चयन समिति की इजाजत के सरकर द्वारा सीबीआई निदेशक को पद से हटाना ग़ैर कानूनी है। बता दें की मुख़्य न्यायाधीश रंजन गोगोई आज छुट्टी पर थे जिसके कारण ये फ़ैसला उनकी अनुपस्थिति में पढ़ा गया। अदालत ने 6 दिसंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

इसके अलावे अदालत ने केंद्र सरकार द्वारा एम नागेश्वर राय को सीबीआई का कार्यकारी निदेशक बनाने के फ़ैसले को भी निरस्त कर दिया। अदालत ने कहा कि कार्यकाल ख़त्म होने से पहले आलोक वर्मा को पद से नहीं हटाया जाना चाहिए थे। आलोक वर्मा 31 जनवरी को सीबीआई निदेशक के पद से सेवा-निवृत्त हो रहे हैं।

इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा;

“हम किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं। यह सरकार के लिए सबक है। आज आप कुछ लोगों पर दबाव बनाने के लिए इन एजेंसियों का इस्तेमाल करते हैं, कल कोई और करेगा, ऐसे में लोकतंत्र का क्या होगा?”

ज्ञात हो की इस मामले में आलोक वर्मा के अलावा एक एनजीओ कॉमन कॉज द्वारा भी सर्कार के फैसले के खिलाफ केस दर्ज किया गया था जिसकी तरफ से वकील प्रशांत भूषण जिरह कर रहे थे। इस फैसले के बाद भूषण ने कहा की कोर्ट ने आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने और उनकी शक्तियों छीनने वाले केंद्र सरकार के फैसले को अवैध ठहरा दिया। केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि इसे राजनितिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि भ्रष्टाचार के मामलों में सीवीसी ऐसे फैसले ले सकती है और सरकार को दोनों अधिकारीयों को छुट्टी पर भेजने का सलाह भी उसने ही दिया था।

उधर कॉन्ग्रेस पार्टी ने भी ट्वीट कर अदालत के इस निर्णय का स्वागत किया।

कॉन्ग्रेस पार्टी ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से लिखा;

“हम केंद्र सरकार की आलोचना करने वाले शीर्ष अदालत के इस निर्णय का स्वागत करते हैं।आलोक वर्मा राफेल स्कैम की जाँच कर रहे थे इसीलिए उन्हें अवैध रूप से और अलोकतांत्रिक रूप से उनके पद से हटा दिया गया। नरेंद्र मोदी अब कहाँ छिपेंगे क्योंकि अब उनका सारा सच सामने आ रहा है।”

KGF स्टार यश सहित सैंडलवुड से जुड़े कई लोगों के ठिकानों पर IT विभाग का छापा; मिली बड़ी सफलता

कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री पर इनकम टैक्स के छापे से आईटी विभाग को बड़ी कामयाबी मिली है। ख़बरों के अनुसार कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के ठिकानों पर छापेमारी से आईटी विभाग को कुल 109 करोड़ रुपये की काली कमाई का पता चला है जिसका कोई हिसाब-किताब नहीं है। इसके अलावे 25.3 किलो सोने के गहने भी बरामद किये गए। इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने बताया;

“इन छापों से कई मामलों से जुड़े सबूत बरामद हुए। छिपाई गई आय का आंकड़ा इस से कहीं ज्यादा होगा।”

आईटी अधिकारीयों के अनुसार उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों की 11 करोड़ की छिपाई गई संपत्ति जब्त की। बता दें की कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री को सैंडलवुड भी कहा जाता है। आयकर विभाग द्वारा की गई इस मैराथन छापेमारी में 180 अधिकारी शामिल थे जिन्होंने कुल 21 ठिकानों पर तालाशी ली और 5 जगह सर्वे भी किया। अधिकारीयों ने मीडिया को अधिक जानकारी देते हुए बताया कि उन्हें पता चला था की इंडस्ट्री के कुछ अभिनेताओं के साथ-साथ कैमरामैन और क्रू के कुछ सदस्य भी अपनी आय पर कर का भगतां नहीं कर रहे थे।

जिन अभिनेताओं के ठिकानों पर छापे पड़े उसमे हाल ही में आई सुपरहिट कन्नड़ फिल्म केजीेएफ के स्टार यश भी शामिल थे। इनके अलावे कन्नड़ दिवंगत कन्नड़ अभिनेता राजकुमार के पुत्र शिव राजकुमार, पुनीत कुमार और प्रसिद्ध अभिनेता सुदीप के ठिकानों पर भी छापेमारी की गई। इनके अलावा कुछ फिल्म निर्माताओं के ठिकानों पर भी छापे मारे गए जिनमे प्रमुख तौर पर रॉकलाइन वेंकटेश और सीआर मनोहर के नाम शामिल हैं। इन छापों के बाद आयकर विभाग ने एक अपील जारी करते हुए कहा कि सैंडलवुड के लोग एकाउंटिंग स्टैण्डर्ड का पालन करें।

अधिकारीयों ने बताया कि सभी जब्त संपत्ति को आगे जाँच के लिए सीनियर अधिकारीयों के पास भेजा जायेगा और अगर जरूरत पड़ी तो इस मामले में अभियोग भी फाइल किया जा सकता है और सम्बंधित लोगों को पूछताछ के लिए भी बुलाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि उन्हें फिल्म निर्माताओं के घरों से ऑडियो बिक्री, सैटेलाइट राइट्स, डिस्ट्रीब्यूशन से आने वाले अघोषित कैश की रसीदें सही कई ऐसी चीजें मिली है जो कि जाँच के दायरे में है। इसके अलावे अधिकारीयों ने कहा की आयकर विभाग के लोग जल्द ही सैंडलवुड के लोगों से मिलेंगे और उन्हें समझायेंगे कि आयकर फाइल करना आवश्यक है।

बता दें कि साल 2017-18 में आयकर विभाग ने अकेले कर्नाटक और गोवा क्षेत्र से 12,268 करोड़ रुपयों के गुप्त आय और संपत्ति को पकड़ा है जो कि अपने आप में एक बड़ी सफलता मानी जा रही है।