अगर राज्य स्वयं ही गुंडों को पाले, उनसे पूरा का पूरा बूथ मैनेज करवाए, उनके नेता यह आदेश देते पाए जाएँ कि सुरक्षाबलों को घेर कर मारो, उनके गुंडे इतने बदनाम हों कि वहाँ आनेवाला अधिकारी ईवीएम ही उन्हें सौंप दे, तो फिर इसमें चुनाव सही तरीके से कैसे हो पाएगा?
चाहे बात रिपब्लिक टीवी के पत्रकारों पर हमले की हो, या मणिशंकर 'नीच' अय्यर जैसे व्यक्ति द्वारा पत्रकार को 'फ़क ऑफ़' कहने की, गुप्ता जी के लड़के के एडिटर्स गिल्ड को साँप सूँघ जाता है। इसलिए कि ‘दुधारू गाय की लात सहनी पड़ती है।’
जब ट्वॉयलेट पेपर खत्म हो जाता है तो आप ढूँढते हैं कि वो कहाँ रखा हुआ है। इसी क्रम में जब स्क्रॉल वेबसाइट पर यह देखने पहुँचा कि क्या इन्होंने ममता बनर्जी के बंगाल में हो रहे चुनावी हिंसा पर कुछ लिखा है? तो, कुछ नहीं मिला।
ममता सरकार की इस बड़ी कार्रवाई में बिना किसी क़ानूनी प्रक्रिया का अनुसरण किए और बिना किसी चार्ज के कई भाजपा नेताओं को उठा लिया गया। बंगाल में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रैली के लिए देश के कई क्षेत्रों से भाजपा नेता कोलकाता में जाकर ठहरे हुए थे।
गैर-मुस्लिम मर्द के साथ प्रेम करना सलमा को बहुत भारी पड़ा। अपने ही दो भाइयों के जान से मारने की कोशिश (गला घोंटने और एसिड डालने) के बाद वो अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल तो रही है लेकिन बार-बार अपनी अम्मी (माँ) को खोज रही है। वो उस माँ को खोज रही है, जो अस्पताल में अपनी तड़पती बेटी को छोड़कर अचानक से भाग गई।
मीडिया गिरोह या अधिकांश विरोधियों की टिप्पणी ऐसे छद्म विशेषज्ञों की बेवकूफी का प्रमाण है। बादल विभिन्न तरीकों से रडार प्रणाली के कई पहलुओं को प्रभावित करते हैं और एक कुत्ते के साथ एक तस्वीर को ट्वीट करने से तथ्य बदलने वाला नहीं है।
ये लड़ाई हवसी मानसिकता को सुधारने की है, लड़कियों को समाज में भोग की वस्तु के बजाय सशक्त बनाने की है... शरिया के लागू होने का सुझाव सिर्फ़ आक्रोश में उचित लग सकता है, लेकिन एक सभ्य समाज में हर अपराध पर ऐसे कानून की बात करना अनुचित है।
बिहार में जाति के आधार पर कैसे खेल खेला जाता है, इसे उम्मीदवारों के दाँव-पेंच के साथ इस उदाहरण द्वारा समझिए, ये आपको कहीं भी नहीं पता चलेगा, इस पूरी प्रक्रिया को समझने के लिए आपको बिहार की राजनीति, समाज और सोच में घुली-मिली पूरी व्यवस्था को समझना पड़ेगा।
आज हम समय के उसी मोड़ पर खड़े हैं जहाँ इस्लामी आक्रांताओं ने एक बार फिर रूप बदल लिया है, और गायों का झुंड हमारी तरफ छोड़ दिया है क्योंकि वो जानते हैं कि वाजपेयी जी की भाजपा इन गायों को प्रणाम कर के, उनके सींगों में झुनझुने बाँधने में व्यस्त हो जाती।