विचार
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भीम-मीम का नया शिगूफा: जो विशेष मजहब खुद को हिंदुस्तानी नहीं मानते वे आंबेडकरवादी क्या बनेंगे
उदित ने खुद को मुस्लिम हितैशी साबित करते हुए कुछ आँसू अपनी हथेली पर गिराए और लिखा, "बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान से प्रताड़ित मुस्लिम भारत में नागरिकता नहीं ले सकते। बाकी शेष अन्य धर्म के लोगों के लिए भारतीय नागरिकता का दरवाजा खुला है। इससे दलित समाज भावुक रूप से आहत हुआ।"
Covid-19: मोदी की स्वास्थ्य नीति पर सवाल उठाने वाले लिबरल गिरोह की आँखें खोलने के लिए यह महामारी काफी है
यह दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि भारत जैसे विकासशील देशों में आज भी किसी बड़े पुनर्जागरण के लिए कई जिंदगियाँ दाँव पर लगानी होती हैं। स्वच्छता और बेहतर हाइजिन जैसे मुद्दों को हर गली-गाँव और अखबारों की हेडलाइन बनने तक चाइनीज वायरस कोरोना एक बड़े वर्ग को प्रभावित कर चुका था। लेकिन देर से ही सही, लोग इस ओर जागरूक हुए और शायद इसके बाद इन सब बातों का महत्व समझना शुरू कर देंगे।
‘द टेलिग्राफ’: जातिवाद, हिन्दू-घृणा, वामपंथी बकैती और नीचता को हेडलाइन बनाने वाला अखबार
आश्चर्य की बात यह कि ममता के बंगाल से छपने वाले इस अखबार में बंगाल के मजहबी दंगे दिखाई नहीं देते, बीजेपी और आरएसएस के कार्यकर्ताओं की आए दिन होती हत्याएँ नहीं दिखतीं, लेकिन दलितों को एक वायरस से तुलना करते हुए, राष्ट्रपति पर निशाना साधा जाता है, क्योंकि वो भाजपा-संघ से जुड़े हुए रहे हैं।
जिसे हर सरकार ने नकारा, उस पूर्वोत्तर में खोले विकास के नए द्वार: एक्ट ईस्ट पॉलिसी का दिखने लगा असर
उत्तर-पूर्व के रहवासियों की समृद्धि भारत के विकास की धुरी है। यह भारत की एकता, अखण्डता, शांति और सुरक्षा की आधारशिला है। विगत कुछ वर्षों से पूर्वोत्तर में बुनियादी अवसंरचना, समावेशी विकास और शान्ति-वार्ता के स्तर पर तीव्र परिवर्तन दिखाई दे रहा है।
टेलीग्राफ है? बकवास ही करेगा: हिन्दू-घृणा से बजबजाते अखबार ने दलितों को वायरस कहा
बंगाल से छपने वाला अखबार होने के बावजूद ममता के शासन में यह पेपर भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या, हर जिले में हो रहे मजहबी दंगों और तमाम अपराधों से जलते बंगाल पर चुप्पी साध लेता है। ऐसे तमाम मौकों पर इनकी बुद्धि घास चरने चली जाती है और बेहूदे हेडलाइन सुझाने वाले एडिटरों की रीढ़ की हड्डी गायब हो जाती है। इनका सारा ज्ञान हेडलाइन में अपनी जातिवादी घृणा, हिन्दुओं से धार्मिक घृणा आदि में ही बहता रहता है।
BJP और RSS ने ही दिल्ली में मुस्लिमों को मारा: ताहिर को बचाने के लिए पगलाए ‘स्क्रॉल’ ने याद किया बाबरी और गुजरात
इस लेख में सुप्रीम कोर्ट तक को नहीं बख़्शा गया है। संविधान की रट लगाने वाले राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और संसद द्वारा बनाए गए क़ानूनों की अवहेलना करने से भी बाज नहीं आते। सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस की और राम मंदिर के निर्माण का मार्ग क्यों प्रशस्त किया, इस पर आपत्ति जताई गई है। यानी कोर्ट भी अब वामपंथियों से पूछ कर फ़ैसले ले।
मायावती की BSP के सामने ‘रावण’ ने खड़ी की नई पार्टी: दलित-मुस्लिम वोट पर है नज़र, कई बसपा नेताओं ने थामा दामन
'रावण' के झंडे का रंग भी नीला ही है जैसा कि बसपा का। चंद्रशेखर उसी दलित जाति 'जाटव' से संबंधित हैं जिससे मायावती, और उन्हीं की तरह वेस्ट यूपी ही जिसकी जन्मभूमि और कर्मभूमि रही है। चंद्रशेखर की जातीय पृष्ठभूमि और कार्य क्षेत्र को देखते हुए ही मायावती और उनकी बसपा ने भीम आर्मी चीफ को शुरू से एक प्रतिद्वंदी के तौर पर देखा।
मानवता के हत्यारे वामपंथियों की जगह भारतीयता के अग्रदूत सावरकर के नाम JNU में मार्ग के मायने
nidhi11 -
आज JNU में एक मार्ग का नाम सावरकर जी के नाम पर रखा जाना निसंदेह एक दूरदर्शितापूर्ण कदम है। यह कदम उस स्थान पर अत्यावश्यक हो जाता है, जहाँ बैठकर स्वतन्त्रता उपरांत एक खास इतिहासकारों के वर्ग ने भारतीय मूल्यों को धूलि-धूसरित करने का कार्य करते हुए इतिहास की मनगंढ़त व्याख्या हमारे समक्ष रखी।
क्या आपने बहन-बीवी के लिए चाय बनाए हैं, बर्तन धोए हैं? नहीं… तो वेद के ये 4 श्लोक पढ़ डालिए अभी
वेदों में महिलाओं की स्थिति के विषय में जो मंत्र हैं, अगर आप उनको पढ़ेंगे तो महसूस करेंगे कि महिलाओं को वहाँ बहुत अधिक सम्मानजनक दर्जा प्राप्त है। वेद महिलाओं को इतना सशक्त, उदात्त और स्वीकार्य स्थान प्रदान करते हैं कि दुनिया की कोई भी तथाकथित आधुनिक और विकसित सभ्यताएँ उसके बारे में सोच भी नहीं सकती।
जब तक हिन्दू बहुमत में है तभी तक रहेगा लोकतंत्र: भारत की आत्मा में श्रीराम बसे हैं, बाबर नहीं
गुरु नानक ने स्वयं अपनी आँखों से देखे बाबर के अत्याचारों का ऐसा दर्दनाक वर्णन किया है कि आज भी उसको पढ़ कर किसी का भी दिल पसीजे बिना नहीं रह सकता। उस अत्याचारी बादशाह की जामिया मिलिया जैसे राष्ट्रीय संस्थान में जयंती मनाई गई थी।