Friday, May 10, 2024

विचार

BHU: लिबरलो, वामपंथियो, मीठे हिन्दुओ, धिम्मियो… यज्ञ की विधि गैर हिन्दू नहीं सिखाएगा

सहिष्णुता, प्लूरलिज्म आदि अपने मूल को बचाते हुए, दूसरों को ससम्मान उनके मूल को बचाने में सहयोग देना है। इसका मतलब ये बिलकुल भी नहीं है कि चूँकि उसे पता है कि मंदिर में घंटी बजाना होता है तो वो मंदिर की घंटी तक न पहुँचे तो हम उसे अपने सामने शिवलिंग पर लात रख कर घंटी तक पहुँचते देखते रहें, और कुछ न करें।

जब वामपंथियों और कॉन्ग्रेसियों ने महामना के BHU संविधान को मोलेस्ट कर ‘सेक्युलर’ बनाया

जब मुस्लिम और ईसाई एक तरफ अल्पसंख्यक होने के नाम पर अपना मजहब और उसकी शुद्धता बनाए रखेंगे और दूसरी तरफ भजन, गीत, संगीत के आभूषणों के साथ संस्कृत भाषा सीखकर आपके हिन्दू धर्म, सनातन मूल्यों, वैदिक साहित्य और अनुष्ठानों की अपने तरह की व्याख्या करेंगे। तब आप सर्वधर्म समभाव का झुनझुना बजाते रहिएगा।

अमेरिका में बैठ भारतीय युवाओं को भड़काने वाले रवीश जी, मॉलिक्यूल नाक की जगह कहीं और भी धँस सकता है

एनडीटीवी की टीआरपी पाताल में धँसते जा रही है और रवीश नाक में धँसने वाला मॉलिक्यूल बनाने की बात कर रहे हैं। उनका मीडिया संस्थान कंगाल होने की ओर अग्रसर है और वो युवाओं को बौद्धिक रूप से कंगाल बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

मैकाले-मैक्समूलर के जले हिन्दू को ‘फिरोज खान’ फूँक-फूँक कर पीना चाहिए

अगर किसी फिरोज खान को हिंदू धर्म की शिक्षा देने की जिम्मेदारी दी जा रही है तो क्या यह पूछा नहीं जाना चाहिए कि मालवीय जी के आदेश का क्या होगा? फिरोज खान जिस धर्म से ताल्लुक रखते हैं वो हिंदुओं को काफिर और वाजिबुल कत्ल मानता है। अगर वो इससे सहमत नहीं हैं तो घर वापसी कर लें।

SVDV में फिरोज क्यों: हम नहीं चाहते कि सनातन धर्म की इस्लामी और ईसाई चश्मे से व्याख्या हो

वेद, व्याकरण, ज्योतिष, वैदिक दर्शन, धर्मागम, धर्मशास्त्र मीमांसा, जैन-बौद्ध दर्शन के साथ-साथ इन सबसे जुड़ा साहित्य। क्या ये विषय महज साहित्य हैं? क्या आप चाहेंगें कि इन विषयों को वो लोग पढ़ाएँ जिनका इनके मर्म और मूल्यों से कोई वास्ता ही न हो? क्या आप चाहेंगे कि इनकी इस्लामी और ईसाइयत मिश्रित व्याख्या हो......

JNU बहुत कुछ है… देश का सबसे बेहतर शोध संस्थान जो रैंकिंग में फिसड्डी और राजनीति का अड्डा है

सामान्य जन को JNU के नाम पर न तो समर्थन और न ही विरोध में हाइप क्रिएट करना चाहिए। JNU वो नहीं रहा जिसके लिए उसे 1969 में बनाया गया था। इससे खुद को दूर रखें, आसपास की बेहतरी को देखें तो हमारे आपके अलावा देश के लिए भी बेहतर होगा।

सीताराम! नक्सली आतंकियों के नाजायज बापों को राम से इतनी एलर्जी क्यों है…

न्याय तलाशते वामपंथी बहुत पीछे जाते हैं तो 1528 में पहुँचते हैं जहाँ रहमदिल, आलमपनाह बाबर, जिसके माता और पिता पक्ष पर करोड़ों हत्याओं का रक्त है, कंधे पर पत्थर उठा कर एक जंगल-झाड़ में, छेनी-हथौड़ा से कूटते हुए मस्जिद बनाता दिखता है।

हिन्दू धर्म के प्रति निष्ठावान थी इंदिरा गाँधी: वो 6 बातें, जिनसे आज के कॉन्ग्रेस को सीखने की ज़रूरत है

पुलवामा और उरी के हमले अगर इंदिरा सरकार के समय में हुए होते, तो भी पाकिस्तान को कमोबेश वैसा ही जवाब मिलता, जैसे मोदी ने दिया। लेकिन वही 26/11 के बाद, बनारस, दिल्ली से लेकर मुंबई, हैदराबाद और दंतेवाड़ा अनेकों बम धमाकों के बाद भी यूपीए सरकार ने लचर रुख अख्तियार किया।

जब इंदिरा गाँधी ने JNU की गुंडागर्दी पर लगा दिया था ताला: धरी रह गई थी नारेबाजी और बैनर की राजनीति

जेएनयू छात्रों की हड़ताल में जर्मन कोर्स की एक छात्रा शामिल नहीं होना चाहती थी, इसलिए वह क्लास करने के लिए जर्मन फैकल्टी की ओर बढ़ी। उसका नाम था मेनका गाँधी- संजय गाँधी की पत्नी और इंदिरा गाँधी की बहू।

हम साथी हैं… हमें साथ चलना है… फिर स्त्रीवाद के इस दौर में पुरुष हीन क्यों?

क्या वाक़ई पुरुष इतना भावना-हीन है कि उसे किसी भी तकलीफ पर दर्द नहीं होता। वह रो नहीं सकता। या वह इतना संबल है कि हर परेशानी को सँभाल सकता है। नहीं, यह भी सदियों से चली आ रही है परिपाटी की तरह पूर्वाग्रह से ग्रसित एक धारणा है।

ताज़ा ख़बरें

प्रचलित ख़बरें