Sunday, April 28, 2024

विचार

हिन्दू धर्म के प्रति निष्ठावान थी इंदिरा गाँधी: वो 6 बातें, जिनसे आज के कॉन्ग्रेस को सीखने की ज़रूरत है

पुलवामा और उरी के हमले अगर इंदिरा सरकार के समय में हुए होते, तो भी पाकिस्तान को कमोबेश वैसा ही जवाब मिलता, जैसे मोदी ने दिया। लेकिन वही 26/11 के बाद, बनारस, दिल्ली से लेकर मुंबई, हैदराबाद और दंतेवाड़ा अनेकों बम धमाकों के बाद भी यूपीए सरकार ने लचर रुख अख्तियार किया।

जब इंदिरा गाँधी ने JNU की गुंडागर्दी पर लगा दिया था ताला: धरी रह गई थी नारेबाजी और बैनर की राजनीति

जेएनयू छात्रों की हड़ताल में जर्मन कोर्स की एक छात्रा शामिल नहीं होना चाहती थी, इसलिए वह क्लास करने के लिए जर्मन फैकल्टी की ओर बढ़ी। उसका नाम था मेनका गाँधी- संजय गाँधी की पत्नी और इंदिरा गाँधी की बहू।

हम साथी हैं… हमें साथ चलना है… फिर स्त्रीवाद के इस दौर में पुरुष हीन क्यों?

क्या वाक़ई पुरुष इतना भावना-हीन है कि उसे किसी भी तकलीफ पर दर्द नहीं होता। वह रो नहीं सकता। या वह इतना संबल है कि हर परेशानी को सँभाल सकता है। नहीं, यह भी सदियों से चली आ रही है परिपाटी की तरह पूर्वाग्रह से ग्रसित एक धारणा है।

जब ‘संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय’ में वैदिक मंगलाचरण की जगह कुरान-हदीस की आयतें गूँजेगी तो ‘हम’ याद आएँगे

आज से 20 साल बाद जब 'संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय' में वैदिक मंगलाचरण की जगह कुरान और हदीस की आयतें गूँजेगी, विश्व हिन्दू पंचांग की जगह कुरान और बाइबिल का प्रकाशन होगा, तो बुढ़ापे में आप इस कुण्ठा से जरूर गुजरेंगे कि जब मालवीय मूल्यों और हिन्दू सनातन धर्म और संस्कृति के रक्षार्थ कुछ छात्र लड़ रहे थे तो आप मौन थे......

BHU के हिन्दू धर्म फैकल्टी में आज फिरोज खान घुसे हैं, कल विश्वनाथ मंदिर से ‘मजहबी गान’ भी बजेगा

जिसकी परवरिश एक तय तरीके से हुई है, वो अचानक से उस संकाय में प्रोफेसर बना दिया जाए जो पूरे विश्व में हिन्दू धर्म और आस्था पर उठते सवालों या शंकाओं का निवारण करता है? आप मुझे एक उदाहरण दिखा दीजिए कि किसी इस्लामी संस्थान में हिन्दू प्रोफेसर शरीयत पढ़ाकर मौलवी तैयार कर रहा हो!

जिन्होंने 40 साल पहले इलाज के लिए चंदा जुटाया, उनकी ही सरकार ने मरने के बाद सड़क पर छोड़ दिया

पटना यूनिवर्सिटी में उनके लिए वो पागलपन था कि छात्र उन्हें छूने के लिए मारामारी करते थे। अमेरिका ने उन्हें 'जीनियसों का जीनियस' कहा था। जिसके निधन के बाद राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने शोक जताया, उनका पार्थिव शरीर 2 घंटे सड़क पर धूल फाँकता रहा। वशिष्ठ बाबू, काश आप भारत लौटते ही नहीं!

हिन्दू धर्मांतरण क्यों नहीं करते? कलमा क्यों नहीं पढ़ लेते? क्योंकि वो काल को जीतने वाले राम के उपासक हैं

अपने अंतर्मन में हर हिन्दू यह बात जानता था कि श्री राम व राम का नाम हिन्दू धर्म की आत्मा है। राम गए तो हिन्दू धर्म नहीं बचेगा। वह आस्था, वह श्रद्धा जो हमारे रक्त और हमारी हड्डियों में समाई हुई है। राम का ‘तत्व’ ही वह शाश्वत धारा है जिसने हिन्दू समाज को विषम-से-विषम परिस्थिति में भी स्पंदित व जीवित रखा है, तथा सदैव रखेगी।

प्रिय असुरनियों, तुम चाहे जितना चिंघाड़ो, सबरीमाला देवता का मुद्दा ही रहेगा, न कि पीरियड्स और पब्लिक प्लेस का

सागरिका को मंदिर और सार्वजनिक फुटपाथ में अंतर नहीं पता, इसलिए उन्हें तो मूर्ख माना जा सकता है। लेकिन बरखा दत्त मंदिर का नाम स्पष्ट तौर पर लेतीं हैं और इसके बाद भी कहती हैं कि उन्हें सबरीमाला में जबरन प्रवेश चाहिए। यह मूर्खता नहीं, दुर्भावना वाली आसुरिक वृत्ति है।

वामपंथियों का खोखलापन, लिब्रहान रिपोर्ट की इन बातों पर साध लेते हैं चुप्पी

लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट में माना गया है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में ही हुआ था। इस रिपोर्ट में हिन्दू धर्म ग्रन्थ रामायण के आधार पर कमीशन ने राम और अयोध्या दोनों के अस्तित्व को स्वीकार किया है। ऐसे में इन वामपंथी इतिहासकारों से पूछा जाना चाहिए कि...

जेएनयू: जहाँ 10 रुपए महीने पर कमरा उपलब्ध है, ‘अंकल-आंटियों’ को चट्टानों पर रात में भी जाना होता है

गरीबों के बच्चों की बात करने वाले ये भी बताएँ कि वहाँ दो बार MA, फिर एम फिल, फिर PhD के नाम पर बेकार के शोध करने वालों ने क्या दूसरे बच्चों का रास्ता नहीं रोक रखा है? हॉस्टल को ससुराल समझने वाले बताएँ कि JNU CD कांड के बाद भी एक-दूसरे के हॉस्टल में लड़के-लड़कियों को क्यों जाना है?

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