केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की एफआईआर के बाद गिरफ्तारी और उसके बाद जमानत, लगभग सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा माना जा रहा था। लेकिन यह लोकतांत्रिक विमर्श के लिए खतरे की घंटी है।
'किसान आंदोलन' में सिखों को भड़का कर हिंसा करवाई गई। शाहीन बाग़ के उपद्रवियों को लंगर खिलाया गया। मोदी सरकार ने तालिबान से सिखों को बचाने में देर नहीं की।
केंद्र सरकार के फैसले का कॉन्ग्रेस, वामपंथियों और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग द्वारा विरोध उनके दशकों के प्रयास से गढ़े गए नैरेटिव के ध्वस्त होने की छटपटाहट है और उस छटपटाहट की तुलना में बहुत छोटी है जो दशकों तक हिंदुओं ने झेली है।