Friday, November 29, 2024

राजनैतिक मुद्दे

प्रजासुखे सुखं राज्ञः… तबलीगी और मजदूरों की समस्या के बीच आपदा में राजा का धर्म क्या

सभी ग्रंथों की उक्तियों का एक ही निचोड़ है कि राजा को जनता का उसी तरह ध्यान रखना चाहिए जिस तरह एक पिता अपने पुत्र की देखभाल करता है।

चुनाव से पहले फिर ‘विशेष राज्य’ के दर्जे का शिगूफा, आखिर इस राजनीतिक जुमले से कब बाहर निकलेगा बिहार

बिहार के नेता और राजनीतिक दल कब तक विशेष राज्य का दर्जा माँगते रहेंगे, जबकि वे जानते हैं कि यह मिलना नहीं है और इसके बिना भी विकास संभव है।

‘चीन, पाक, इस्लामिक जिहादी ताकतें हो या नक्सली कम्युनिस्ट गैंग, सबको एहसास है भारत को अभी न रोक पाए, तो नहीं रोक पाएँगे’

मोदी 2.0 का प्रथम वर्ष पूरा हुआ। क्या शानदार एक साल, शायद स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे ज्यादा अदभुत और ऐतिहासिक साल। इस शानदार एक वर्ष की बधाई, अगले चार साल अद्भुत होंगे। आइए इस यात्रा में उत्साह और संकल्प के साथ बढ़ते रहें।

थम गया रा’फेल’ का राग, नहीं चला ‘न्याय’ का लालच: जब बिल में घुसे ‘इंडिया शाइनिंग’ का तंज कसने वाले

मोदी सरकार 2019 में फिर से चुन कर सत्ता में वापस आई। उससे पहले क्या थे समीकरण और क्या सोच रही थी आम जनता? पढ़िए 1 साल पूर्व हुए महाचुनाव का विश्लेषण।

मोदी 2.0: सत्ता में ना रहने की फिरौती दंगों के रूप में लेने वाले विरोधियों के बीच एक साल

मोदी की जीत, उनका समर्थन और भारत की जनता का किसी नेता पर अभूतपूर्व विश्वास सिर्फ और सिर्फ यही संदेश देते हैं कि मतदाता अब अपना निर्णय लेना जानते हैं और वो उसी के साथ न्याय करेंगे, जो उनके साथ न्याय करेगा।

स्व-घोषित बुद्धिजीवियों और अर्थशास्त्रियों ने सरकार को ऐसे सुझाव दिए हैं जो मेरे भतीजे का हाई स्कूल ग्रुप भी दे सकता है

सरकार को सभी तरफ से आने वाली सहायता को मना कर देना चाहिए और जिन लोगों ने पत्र पर दस्तखत किए हैं, उनकी संपत्ति को सार्वजनिक संपत्ति मानकर इस्तेमाल करना चाहिए।

…जब जेल में महात्मा गाँधी का बेटा और नाथूराम गोडसे की हुई मुलाकात, और फिर लिखना पड़ा उन्हें एक पत्र

"महात्मा गाँधी के बेटे देवदास शायद इस उम्मीद में नाथूराम गोडसे से मिलने गए कि कोई डरावनी शक्ल वाला, खून का प्यासा कातिल दिखेगा, लेकिन..."

कोरोना संकट में भी सरकार का साथ देती नजर आई जनता, विपक्ष उलझा रहा राजनीति में

जनता ने इस महामारी से निपटने में जितनी समझदारी, संयम और सहयोग दिया है, विपक्षी राजनीतिक दलों की ओर से उतना ही असहयोगी रूख रहा है।

कोर्ट में बैठी जनता अगर न्याय करती तो गोडसे निर्दोष घोषित होते: याचिका की सुनवाई करने वाले जज खोसला

"गोडसे सिरफिरे इन्सान बिल्कुल भी नहीं थे। वो पुणे में रहते थे जहाँ देश विभाजन का कोई असर नहीं हुआ था। वो फिर भी गाँधी को मारने गए क्योंकि..."

मोदी जी के बीस लाख करोड़: फेसबुक-ट्विटर के भविष्यवेत्ताओं और तत्वज्ञानियों के नाम

लक्ष्य दिल्ली-मुंबई में बैठे स्टॉक एक्सचेंज के खिलाड़ियों और आर्थिक बीट पर काम करने वाले पत्रकारों तक अपनी बात पहुँचाने का नहीं है, बल्कि उन्हें भी संबल देना है जो खाली पाँव, दहकते कंक्रीट पर, फफोलों के साथ निकल चुके हैं।

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