वह सरकार कितनी अनैतिक थी इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि जो डिप्टी सीएम बना था, उसने सीएम की पार्टी से बगावत कर ही चुनाव जीता था। वे सीएम के बेटे को ही हराकर विधानसभा पहुॅंचे थे।
शरद पवार 1978 में पार्टी तोड़ कर CM बने। 1988 में राजीव ने मुख्यमंत्री बनाया। 1990 में जोड़-तोड़ से सरकार बनाई। 1993 में तत्कालीन CM के इस्तीफे के बाद मुख्यमंत्री बने। उन्होंने जो लिगेसी सेट की है, भतीजा उसका ही अनुसरण कर रहा है। मिलें अजित प्रकरण के अन्य किरदारों से।
विचारधारा में अंतर न होते हुए भी जब 50-50 के फॉर्मूले पर शिवसेना ने भाजपा से गठबंधन तोड़कर एनसीपी और कॉन्ग्रेस जैसी पार्टियों संग विलय की जो उत्सुकता दिखाई, उसने जनता के सामने उसके सत्तालोलुप चरित्र को सामने लाकर रख दिया। शिवसेना ने हिंदुत्व से समझौता किया।
1978 में कॉन्ग्रेस पार्टी की वसंतदादा की सरकार से अलग होकर शरद पवार ने कॉन्ग्रेस तोड़ कर सोशलिस्ट कॉन्ग्रेस बना ली थी। कॉन्ग्रेस की सरकार गिरा कर खुद सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बन गए थे। उनके भतीजे अजीत पवार ने वही कड़वी दवा शरद पवार को पिला दी है।
अगर मामला सिर्फ विचारधारा के आधार पर किसी के समर्थन और किसी के विरोध का है, और जेएनयू एवं FTII जैसे संस्थानों के वाम मजहब के छात्र “शिक्षा का भगवाकरण” कहकर किसी नियुक्ति का विरोध कर सकते हैं, तो वही अधिकार आखिर BHU के छात्रों को क्यों नहीं मिलना चाहिए? समस्या की जड़ में यही दोमुँहापन है।
न्याय तलाशते वामपंथी बहुत पीछे जाते हैं तो 1528 में पहुँचते हैं जहाँ रहमदिल, आलमपनाह बाबर, जिसके माता और पिता पक्ष पर करोड़ों हत्याओं का रक्त है, कंधे पर पत्थर उठा कर एक जंगल-झाड़ में, छेनी-हथौड़ा से कूटते हुए मस्जिद बनाता दिखता है।
पुलवामा और उरी के हमले अगर इंदिरा सरकार के समय में हुए होते, तो भी पाकिस्तान को कमोबेश वैसा ही जवाब मिलता, जैसे मोदी ने दिया। लेकिन वही 26/11 के बाद, बनारस, दिल्ली से लेकर मुंबई, हैदराबाद और दंतेवाड़ा अनेकों बम धमाकों के बाद भी यूपीए सरकार ने लचर रुख अख्तियार किया।
जेएनयू छात्रों की हड़ताल में जर्मन कोर्स की एक छात्रा शामिल नहीं होना चाहती थी, इसलिए वह क्लास करने के लिए जर्मन फैकल्टी की ओर बढ़ी। उसका नाम था मेनका गाँधी- संजय गाँधी की पत्नी और इंदिरा गाँधी की बहू।
लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट में माना गया है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में ही हुआ था। इस रिपोर्ट में हिन्दू धर्म ग्रन्थ रामायण के आधार पर कमीशन ने राम और अयोध्या दोनों के अस्तित्व को स्वीकार किया है। ऐसे में इन वामपंथी इतिहासकारों से पूछा जाना चाहिए कि...
"शरदराव पवार समझ जाते हैं कि हवा का रुख किस तरफ है। शरदराव एक चतुर राजनेता हैं, जिन्होंने बदली परिस्थितियों को भाँप लिया है। वह कभी भी ऐसी किसी चीज में शामिल नहीं होते, जो उन्हें या उनके परिवार को नुकसान पहुँचाए।"