Friday, April 19, 2024

सामाजिक मुद्दे

बौद्ध, जैन, सिख, यहूदी, पारसी: इन्हें कभी ‘इनटॉलेरेंस’ की पीड़ा क्यों नहीं होती?

इस्लाम के समर्थकों और ईसाईयों को आत्म-विवेचन की जरूरत है- 'इनटॉलेरेंस' के लिए जिम्मेदार 'भगवाकरण' है, या हिन्दुओं को आक्रामकता अख्तियार करने के लिए मजबूर करने वाले उनके आचरण।

तबरेज अंसारी की भीड़ हत्या पर पूरा देश लज्जित नहीं है क्योंकि हमारे लिबरल खोखले और हिपोक्रिट हैं

अगर आपको तबरेज की हत्या पर समाज में दोष दिखता है, तो आपको विनय की भी हत्या पर विचलित होना पड़ेगा। अगर आपको किसी चोर की भीड़ हत्या पर संवेदनशील होने का मन करता है तो आपको जीटीबी नगर मेट्रो स्टेशन के बाहर इस्लामी भीड़ द्वारा लिंच किए गए ई-रिक्शा चालक की भी मौत का गम करना चाहिए।

दलित को पीड़ित दिखाना हो तब वह ‘दलित’ है और अपराधी दिखाना हो ‘हिन्दू’ बताया जाएगा

जब दलितों और मुस्लिमों में झड़प होती है, तो यही दलित हिन्दू हो जाते हैं। जब एएमयू SC-ST को आरक्षण नहीं देता, तब ये चूँ तक नहीं करते। लेकिन, जहाँ बात भारत को असहिष्णु साबित करें की आती है, 'दलितों और मुस्लिमों' पर अत्याचार की बात कर दलितों को हिन्दुओं से अलग दिखाने के प्रयास होते हैं।

भीड़ की हर कार्रवाई को ‘भगवा आतंक’ से जोड़ती मीडिया: जब पुलिस का ही न्याय से उठ गया था भरोसा!

अगर मारे गए किसी "समुदाय विशेष" के परिवार को मिले सरकारी मुआवजे को देखें और उसकी तुलना भीड़ द्वारा मार दिए गए डॉ नारंग, रिक्शाचालक रविन्द्र जैसी दिल्ली में हुई घटनाओं से करें तो ये अंतर खुलकर सामने आ जाता है।

मौत तो केवल आँकड़ा है: क्या एक बुरी घटना के कारण सारे अच्छे कार्यों को रोक दिया जाए?

मेरे देश में मौत महज एक आँकड़ा है, गणित है, अंक है। आइए, आपको गिनाता हूँ। मुजफ्फरपुर में भी मौतें हुईं। जहाँ बात निदान की होनी चाहिए, वहाँ सिर्फ़ एक व्यक्ति को ज़िम्मेदार ठहरा कर कोई निकल नहीं सकता। क्या एक बुरी घटना के लिए अच्छी चीजों पर भी विराम लगा दिया जाए?

असली गिद्ध कौन है? आपकी संवेदना बस एक नकली ब्यूटी फ़िल्टर है, और कुछ नहीं

वाक्य के आधे हिस्से में संवेदना दिखाते हुए, दूसरे हिस्से में जो आप सिनिकल हो जाते हैं उससे पता चलता है कि आपको बच्चों की मौत से कोई मतलब नहीं। आपको मुद्दा चाहिए ताकि आप आउटरेज करते हैं। आप चौबीस घंटे इसी मोड में रहते हैं, जैसे कि सत्ता के पक्ष में लिखने वाला चौबीस घंटे उसके बचाव में लगा रहता है।

बच्चों का नृत्य विचारोत्तेजक नहीं बल्कि उनकी क्षमता-शक्ति का परिचायक है, इसे सीमाओं में न बाँधें…

सुपर डांसर रियलिटी शो की दिपाली इसका उदाहरण है, जिसके डांस और एक्सप्रेशन के तालमेल ने उसे टीवी पर्दे पर लीड रोल दिलाया। मुमकिन है अगर इस जगह उसे दायरे में रहकर परफॉर्म करने की सलाह दी जाती, या फिर उसकी परवरिश विचारोत्तेजक नृत्य और उसकी उम्र के नृत्य में फर्क़ बताने में हुई होती तो ऐसा संभव नहीं हो पाता।

200 करोड़ रुपया गुप्ता का, ब्याह गुप्ता के लौंडे का और आपको पड़ी है बदरंग बुग्याळ और पहाड़ों की!

दो सौ से दो हजार तक साल लगते हैं उस परत को बनने में जिस भूरी और बेहद उपजाऊ मिट्टी के ऊपर जन्म लेती है 10 से 12 इंच मोती मखमली घास यानी बुग्याळ! और मात्र 200 करोड़ रुपए लगते हैं इन सभी तथ्यों को नकारकर अपने उपभोक्तावाद के आगे नतमस्तक होकर पूँजीपतियों के समक्ष समर्पण करने में।

लड़की पर पब्लिकली हस्तमैथुन कर फरार हुआ आदमी: मुफ्त मेट्रो से सुरक्षा नहीं मिलती

आप शायद 'सुरक्षा' के नाम पर महिलाओं को मेट्रो में मुफ्त यात्रा करा सकते हैं, लेकिन आप यह कैसे सुनिश्चित करेंगे कि महिलाएँ वहाँ सुरक्षित हैं?

फ़र्ज़ी समाजशास्त्र के बाद अब झोलाछाप अर्थशास्त्र भी पढ़ाएगा The Wire, मेट्रो पर बाँटा ज्ञान

यह लेख वायर ही नहीं, सभी वामपंथी-चरमपंथियों में बढ़ती हुई खीझ की नुमाईश है। इनका प्रोपेगैंडा धराशायी हो जाने से इनके दिमागों के फ्यूज़ बुरी तरह जल गए हैं।

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