सामाजिक मुद्दे
घिसी-पिटी और पॉलिटिकली करेक्ट लाइन से अलग और बेबाक बातें
उत्तराखंड की यूनिवर्सिटी में धरना: छात्र अभी भी पढ़ रहे शीत युद्ध, रूस उनके लिए है महाशक्ति
पिछले 22 दिनों से पिथौरागढ़ महाविद्यालय के छात्र पुस्तकों और शिक्षकों के लिए सड़क पर हैं। पोस्टर और बैनरों की मदद से अपनी बातें पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं। आम लोगों के जेहन में ये बात पहुँचाने की कोशिश की जा रही है कि एक आवाज बनकर ही बदलाव लाया जा सकता है।
मंदिर पर हमला, शिवलिंग पर पेशाब, मूर्तियों को तोड़ना, पत्थरबाजी: ये ‘डरे हुए लोग’ चाहते क्या हैं?
दिन में 5 बार लाउडस्पीकर से अजान देने वालों को मंदिर में 2 बार भजन बजाने से आपत्ति कैसे हो जाती है? ये किस तरह की सोच है कि तुम्हारे लाउडस्पीकर से आती आवाज़ इलाके का हर कान, चाहे या न चाहे सुनेगा ही, लेकिन दूसरे समुदाय ने भजन बजाया तो तुम मंदिर में घुस कर मूर्ति उखाड़ कर ले जाते हो!
मंदिर ध्वंस और इस्लामी हमलों पर हिन्दू आखिर चुप क्यों रह जाता है?
आज हमें सक्रिय लोगों की ज़रूरत है, जो इस सन्नाटे को तोड़ कर हिम्मत के साथ बोलें। हिन्दुओं को याद दिलाएँ कि वह गुलाम नहीं, बल्कि अपने भाग्य-विधाता थे।
असली दिक्कत ‘ध्वनि प्रदूषण’ नहीं, हिन्दू भक्त हैं: मंदिर ‘इकोसिस्टम’ ध्वस्त करने की साज़िश
'ज़िंदा कौमें पाँच साल इंतज़ार नहीं करतीं" अगर हिन्दू आत्मसात कर लें, अपना उद्धार खुद, और आज से ही, अपने जीते-जी करने की कमर कस लें तो बड़ी कृपा होगी।
जब स्वघोषित लिबरलों के फ़र्ज़ी नैरेटिव ने हत्याएँ करवाई, मंदिर तुड़वाए, दंगे भड़काए
अगर शिकार मुस्लिम या दलित है, तो अपराधी के नाम में पहचान ढूँढी जाती है। मजहब विशेष वालों ने एक-दूसरे को मारा, तो ये मुन्नी बेगम की ग़ज़लें गाने लगते हैं। दलित ने दलित को मारा, तो ये भारतीय नारी किस-किस से, कितनी बार, और कब-कब सेक्स करे, इस चर्चा में लीन हो जाते हैं।
हिन्दू करें कल्कि अवतार की प्रतीक्षा, क्योंकि जिनको चुना उनसे तो कुछ हो नहीं रहा
रीढ़हीन व्यक्ति के लिए तो मेडिकल साइंस ने सपोर्ट की व्यवस्था की है, लेकिन रीढ़हीन व्यक्तित्व के लिए किसी भी तरह का सपोर्ट बाजार में उपलब्ध नहीं है। रोने-गाने वालों की एक आभासी भीड़ का खून तीन सेंकेंड के लिए ऐसे ही उबल कर नीचे चला जाता है जैसे इंडक्शन चूल्हे पर स्टील के बर्तन में रखा दूध।
हिन्दू मंगरू की लिंचिंग पत्रकारिता के समुदाय विशेष के लिए उतनी ‘सेक्सी’ नहीं है
यह चुप्पी केवल आज की नहीं है, केवल मंगरू के मामले में नहीं है। यह हर उस मामले में ओढ़ा गया सन्नाटा है, जब 'डरा हुआ शांतिप्रिय' कोई अपराध करता है, और भुक्तभोगी कोई हिन्दू होता है।
कट्टरपंथियों ने दिल्ली में दुर्गा मंदिर तोड़ा: भाईचारा व एकता का उपदेश के पीछे छिपाई गई सच्चाई
मस्जिद परिसर में चीनी खाने के लिए घुसी चींटी को भी अल्पसंख्यकों की आस्था पर चोट के रूप में देखा जाता है..
मजहबी नारे चिल्लाती, मंदिर तोड़ती भीड़ को मजहब बताने में शर्म क्यों आती है?
जब भीड़ की एक निश्चित पहचान है, और तुम्हें पता है कि ये भीड़ एक खास कम्यूनिटी या समुदाय विशेष की है, तो फिर उसके नामकरण में समस्या क्यों?
मजहब के नाम पर जायरा ने सिर्फ़ खुद के सपनों को नहीं मारा, बल्कि दूसरी लड़कियों को भी गड्ढे में ढकेला है
रील वाली जायरा ने रियल में न जाने कितनी 'जायरा' को प्रभावित किया होगा, पर अफसोस! जायरा अपने फैसले से कितना आगे गईं, कितना पीछे, पता नहीं, लेकिन जिन्होंने जायरा के संघर्ष में खुद का भविष्य सोचा होगा, वो लड़कियाँ मानसिक तौर पर बहुत पीछे चली गई होंगी, यह पक्का है।