Thursday, November 21, 2024

सामाजिक मुद्दे

लैंगिक समानता हिन्दू जीवन-दर्शन का अभिन्न अंग: अन्य धर्मों-सभ्यताओं से एक तुलनात्मक अध्ययन

इतिहास में क्या कहीं भी ऐसा वाक़या मिलता है, जहाँ महिलाओं ने किसी धर्म या संस्कृति की प्राथमिक पुस्तक का लेखन कार्य किया हो? भारत में महिलाओं ने वेद लिखे हैं

थ्रोबैक (बिकॉज़ व्हाई नॉट): जब कन्हैया कुमार ने भरा था लड़की से ‘अभद्र व्यवहार’ का जुर्माना

गिरोहों का सबसे पहला काम होता है कि अभियुक्त अगर अपने पक्ष का हो तो सामाजिक रूप से पीड़िता का ही चरित्रहनन करने में जुट जाओ।

राहुल गाँधी का इस्लाम और शांति: अक़बर और नरमुंडों का पहाड़ (भाग-1)

युद्ध के बाद दिल्ली में खोपड़ियों का एक इतना बड़ा टावर खड़ा किया गया जिसे पूरी दिल्ली देख सके। नरमुंडों का एक इतना विशाल ढेर, जिसे देख कर नृशंसता भी हज़ार बार काँपे।

परीक्षाओं के दौर में आत्महत्या की ख़बरें आएँगी और बतौर समाज हम कुछ नहीं करेंगे

प्रोफ़ेसर यशपाल की समिति की पतली-दुबली 25-30 पन्नों की रिपोर्ट धरी रह गई और छात्रों की आत्महत्या की घटनाएँ बढ़ती रही। हम आखिर कब ध्यान देंगे इसपर?

सागरिका जी, मोदी के साथ सेल्फ़ी लेने पर बॉलीवुड कलाकार ‘भक्त’ हो गए, फिर आप क्या हैं?

आपके इन सर्कास्टिक प्रयोगों से ऐसा लगता है कि अगर किसी के पास सोशल मीडिया पर उसके पाठक पहले से तैयार हों, तो वो भारी तादाद में नागरिकों को देश के प्रति भड़का और बरगला सकते हैं।

चंद कौड़ियों के लिए जब पादरी ने कर दिया था कैथोलिक लड़कियों का सौदा

बीस लड़कियों का ऐसा पहला दल 1963 में केरल से विदेशों में भेजा गया और 1972 से इनके साथ दुर्व्यवहार की कहानियां सुनाई देने लगीं।

उत्तिष्ठत जाग्रत: ज्ञान रूपी अस्त्र के हिमायती थे स्वामी विवेकानंद

हम information warfare में इतना पीछे हैं कि अपने एक राज्य जम्मू कश्मीर के बारे में भी सही सूचना देश को नहीं दे पाते।

बरखा जी, पीरियड्स को पाप और अपवित्रता से आप जोड़ रही हैं, सबरीमाला के अयप्पा नहीं!

चूँकि आप गोमांस खा सकती हैं, तो क्या कल आप संविधान के मौलिक अधिकारों का हवाला देकर किसी मंदिर के गर्भगृह में बैठकर गोमांस खाएँगी? क्योंकि आपके तर्क के अनुसार यह भी लिखा जा सकता है कि इक्कीसवीं सदी के भारत में मंदिरों में मन का भोजन खाने पर पाबंदी हैं।

सामाजिक न्याय को तरसते ‘दलित’ सिर्फ़ SC/ST में ही सीमित नहीं

अगर जातिगत आरक्षण से आपको समस्या नहीं है, तो फिर आर्थिक आरक्षण से तो बिलकुल ही नहीं होनी चाहिए क्योंकि जातिगत आरक्षण की जड़ में यही अवधारणा है कि इन जातियों के लोग ग़रीब और वंचित हैं।

आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्गों को आरक्षण सही मायने में ‘सबका साथ सबका विकास’

अब तक ये इसलिए ख़ारिज होता रहा है क्योंकि संविधान में इसका प्रावधान ही नहीं किया गया था। इस बार संविधान में इसका प्रावधान किया गया है, इसलिए यह संविधान सम्मत है।

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