Tuesday, March 19, 2024
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वैलेण्टाइन से पहले और बाद के नेता: ‘प्यार’ में खाया धोखा, गली-गली भटक रहा मतदाता

प्रेम में धोखा खाई किशोरी प्रेमिका सरीखे नए मतदाता को घाघ मतदाता पुरानी विवाहिता की भाँति उसे समझाता है- सब एक से होते हैं, और एक समय के बाद वो पहले जैसे भी नहीं रहते। अत: इस प्रेम दिवस पर, हे नव-मतदाता, तुम अपना टेंट-टपरा समेटो और...

दिल्ली का चुनाव संपन्न हुआ। लोकतंत्र के इस महान यज्ञ के तमाम पुरोहित ‘स्वाहा’ के उच्चारण के साथ शांति काल में उतर गए। जनसेवक नेतागण अपने-अपने बाथरूमों में आगामी पाँच वर्षों के लिए पुनर्स्थापित हुए। ‘अभी पहुँचता हूँ’ का दुखदाई समय बीता और ‘साहब बाथरूम में हैं’ का मनोहारी युग पुन: लौट आया है।

अख़बारों में रंगीन पूर्ण पृष्ठ राजनैतिक विज्ञापन फिर लौटे और विजयी नेताजी के पूरे पेज के शपथग्रहण के निमंत्रण को देख कर जनमानस हर्षित हो आया। बुतों को फेंकने-उठाने के बाद फ़ैज़ साहब ने कॉन्ग्रेस के शून्य से शून्य के सफ़र को देख कर फ़रमाया कि फिर से इक बार हरेक चीज़ वही थी, जो है। विराट हिंदू और क़ौम के सिपाही लाठियाँ घर में रख कर फ़िक्स्ड कुश्तियों के अखाड़ों की ओर लौट गए हैं। पत्रकार वर्ग की कुर्सियों के नीचे लगे कंटक हट गए हैं, और आगामी कुछ महीने शांतिपूर्वक बैठे-बैठे वे गोबर की खाद से गमलों में गोभी उगा कर पूर्व वित्तमंत्री के समान करोड़पति बनने की विधि जनता को बता सकेंगे।

अंबेडकर, गाँधी, बिस्मिल और अश्फ़ाक के चित्र वापस संदूकों में लौटेंगे और संविधान के रक्षक विधायकों के होर्डिंग धन्यवाद ज्ञापन के साथ ट्रैफ़िक सिग्नलों पर लटकेंगे। पप्पू और मुन्ना, शकील और वकील भी नेताओं के नाम पर बधाई के चित्र टाँगेंगे ताकि ख़ास-ओ-आम को सनद रहे कि ‘चचा विधायक हैं हमारे’ और हम ही सत्ता और जनता के मध्य प्रॉपर चैनल हैं। ज़मीन-जायदाद, नौकरी, सिफ़ारिश आदि की जो समस्याएँ तांत्रिक बाबू बंगाली नहीं सुलझा सकते हैं, उनके लिए विधायक चचा के यह नवांकुरित भतीजे आशा का संदेश लाते हैं। इन्हीं का स्वर उस बाथरूम के भीतर पहुँचता है जहाँ के जब-जब वोट की हानि होती है, चुनाव समय में पार्टी की रक्षा करने हेतु नेता प्रकट होते हैं।

ऐसे समय पर, जब वसंत निकल रहा है, वैलेण्टाइन बाबा का सालाना उर्स आया है। घाघ मतदाता जहाँ अपना मुफ़्त पानी, बिजली प्राप्त करके मगन है, नए मतदाता इस तेज़ी से बदलते परिदृश्य से चकित हैं। घाघ मतदाता पर्यावरण या संविधान रक्षा के ठीक चुनाव के पूर्व उठे बवाल को समझता है और उहापोह के माहौल में पार्टियों के मैनिफ़ेस्टो में धीरे से मुफ़्त कलर टीवी से लेकर मुफ़्त मैनिक्योर तक घुसा देता है। नया मतदाता भावुक होता है और यह सोचता है कि भारत इस चुनाव के बाद हिंदू या मुस्लिम राष्ट्र बन जाएगा। नया मतदाता भावुक प्रेमी की भाँति उस प्रत्याशी की स्मृति में आँसू बहाता है जो अभी पिछले सप्ताह संविधान, समाज और संस्कृति की रक्षा करने का वायदा कर के लुप्त हो गया है। भावुक मतदाता कहता है कि हे संत वेलेण्टाइन, अभी तो मेरा प्रिय श्वेत धवल वस्त्रों में व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की बात करता था, हा रे वेलेण्टाइन, कहाँ गया वह मेरा छलिया। कहाँ छुप गया है वह निर्मोही, क्या वह अब मेरा न रहा?

प्रेम में धोखा खाई किशोरी प्रेमिका सरीखे नए मतदाता को घाघ मतदाता पुरानी विवाहिता की भाँति उसे समझाता है- सब एक से होते हैं, और एक समय के बाद वो पहले जैसे भी नहीं रहते। अत: इस प्रेम दिवस पर, हे नव-मतदाता, तुम अपना टेंट-टपरा समेटो और उस कार्य में लगो जिसके लिए विधाता ने तुम्हें बनाया है। नौकरी ढूँढो, लटकती हुई नंगी बिजली के तारों से बचकर, बसों में लटक कर, जीविका की तलाश में निकलो और सामाजिक सरोकारों से एक वोकसुलभ तटस्थता बनाए रखो। यही वोकत्व जो जानता कम है और महसूस अधिक करता है, तुम्हें आदर्श मतदाता बनाता है। तुम्हें इसकी रक्षा करनी है ताकि अगले चुनाव में भी तुम संविधान, धर्म और पर्यावरण की रक्षा जैसे महान विषयों की आड़ में अपना मूल्य प्रत्याशियों की दृष्टि में बनाए रख सकते हो।

जिस प्रकार टेडी बियर, गुलाबों की चकाचौंध के पीछे प्रियतमा के द्वारा पकाया हुआ आलू का पराठा, और जानूँ के द्वारा कराया गया मुफ़्त फ़ोन रिचार्ज ही वो शक्ति है जो प्रेमसंबंधो में माधुर्य बनाए रखता है, बड़े-बड़े नारों के पीछे मुफ़्त संसाधनों का वचन और अपने वालों को जात-धर्म के झंडे के नीचे बाँधकर भीड़ जमा करने का माद्दा ही नेता और मतदाता के मध्य प्रेम को बनाए रखता है। फ़ूलों एवं प्रेम-पत्रों का प्रेम में वही स्थान है जो भारतीय राजनीति में आदर्शों एवं विचारधारा का है। जो नेता यह समझ गया वही पार लगता है अन्यथा चुनाव के वक्त मतदाता भी चतुर सुंदरी की भाँति नेता को -‘मैंने तो तुम्हें इस दृष्टि से कभी देखा ही नहीं’ या ‘आई लाईक यू एज़ ए फ़्रेंड’ – जैसा कुछ कहकर निकल लेता है, और नेताजी उसी प्रकार आजीवन पोस्टर चिपकाने वाले प्रत्याशी बने रह जाते हैं, जैसे आदर्शवादी प्रेमी अंकलजी के स्कूटर बनवाता रह जाता है और बाद में प्रेमिका के विवाह में बारात पर इत्र छिड़कता देखा जाता है। इस वैलेण्टाइन संदेश को हृदय में रखते हुए आइए हम सब एक आदर्श मतदाता बनने का प्रण लें, ताकि चुनाव दर चुनाव हम अपने नेतृत्व के लिए आदर्श नेता प्राप्त कर सकें।

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Saket Suryesh
Saket Suryeshhttp://www.saketsuryesh.net
A technology worker, writer and poet, and a concerned Indian. Writer, Columnist, Satirist. Published Author of Collection of Hindi Short-stories 'Ek Swar, Sahasra Pratidhwaniyaan' and English translation of Autobiography of Noted Freedom Fighter, Ram Prasad Bismil, The Revolutionary. Interested in Current Affairs, Politics and History of Bharat.

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