Sunday, June 4, 2023
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‘तुम सांघी लोग अब कैब भी चलाने लगा, तुम IT सेल का है न?’ – लिबरल अर्थशास्त्री, ड्राइवर और मोदी बुराई की कहानी

जब राइड का कन्फर्मेशन आया था तो सरनेम पढ़कर अर्थशास्त्री खुश हो गया था। खुश होते हुए मन ही मन खुद से बोला; पचास मिनट का रास्ता है। मोदी की बुराई के चक्कर में ये लंबे रास्ते से गया तो बुराई सत्रह मिनट और लंबी हो जाएगी।

कैब के चलने के बाद अर्थशास्त्री ने करीब ढाई मिनट इंतज़ार किया। उसका मन कह रहा था कि ड्राइवर अब बस बोल ही देगा। बोलेगा तो बात निकलेगी। बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी। दूर तलक जाती हुई नहीं दिखी तो मैं बात को पकड़ कर दूर तलक ले जाऊँगा। इतनी दूर तलक कि पंद्रह ट्वीट वाला एक ट्विटर थ्रेड ठेल सकूँ, यह साबित करने की कोशिश में कि कैसे मोदी ने भारत को बर्बाद कर दिया है, वह एक कैब ड्राइवर भी समझता है। पर यह क्या? ड्राइवर ने तीन मिनट तक कुछ नहीं कहा तो अर्थशास्त्री ये सोचते हुए अधीर हो गया कि; कम्बख्त बोल क्यों नहीं रहा? ऐसा सोचते हुए उसका मन धक से रह गया; कहीं ये गूँगा तो नहीं है? यह सोचते हुए उसने ऐप खोलकर ड्राइवर की प्रोफाइल चेक की और राहत की साँस लेते हुए मन ही मन बोला; थैंक मार्क्स, ये गूँगा नहीं है।

जब राइड का कन्फर्मेशन आया था तो सरनेम पढ़कर अर्थशास्त्री खुश हो गया था। खुश होते हुए मन ही मन खुद से बोला; पचास मिनट का रास्ता है। मोदी की बुराई के चक्कर में ये लंबे रास्ते से गया तो बुराई सत्रह मिनट और लंबी हो जाएगी।

अचानक मन ही मन अपने इष्टदेव का स्मरण करते हुए उसने कहा; हे मार्क्स, इसे लंबे रास्ते से जाने की सद्बुद्धि दें। फिर खुद को एश्योर करते हुए मन ही मन बोला; माने आज ड्राइवर से बात करने… सॉरी बात सुनने का मज़ा ही आ जाएगा। कि; कैसे डिमॉनेटाइजेशन से मोदी ने भारत को बर्बाद कर दिया, कि कैसे 2024 में मोदी की हार पक्की है, कि कैसे मोदी ने लाखों किसान मार दिए। कि कैसे राहुल गाँधी ही किसानों का भला कर सकते हैं। कि कैसे प्रियंका के झाड़ू लगाने की वजह से कॉन्ग्रेस यूपी में सरकार बनाने जा रही है।

इधर ड्राइवर जब पाँच मिनट तक कुछ नहीं बोला तो अर्थशास्त्री को चिंता सताने लगी; कहीं ये भक्त तो नहीं? फिर मन ही मन समझाते हुए खुद से बोला; ऐसा नहीं हो सकता। ड्राइवर भक्त नहीं हो सकता है। मैं अभागा हूँ लेकिन इतना बड़ा अभागा भी नहीं हूँ कि कैब ड्राइवर भक्त निकल जाए। भक्त केवल ट्विटर पर पाए जाते हैं। वे केवल ट्वीट करना जानते हैं। ट्वीट जिनके लिए उन्हें आई टी सेल से फी के रूप में हर ट्वीट के दो रूपए मिलते हैं। संघी हैं।

अंत में अपनी सोच पर बहुत जोर से ठप्पा लगाते हुए उसने मन ही मन खुद को ढाढ़स बँधाया और बोला; असंभव! इस सरनेम का ड्राइवर भक्त हो नहीं सकता।

जब ड्राइवर ने पाँच मिनट तक बात नहीं की तो अर्थशास्त्री को चिंता सताने लगी। उसने खुद से कहा; पचास मिनट का रास्ता था और इस बेवकूफ ने पाँच मिनट वैसे ही गँवा दिए। जब दो मिनट और बीत गए तो अर्थशास्त्री बोला; कुछ बोलो।

रास्ते पर नजर रखे कैब चलाते हुए ड्राइवर बोला; जी, आप मेरे बोलने का इंतज़ार कर रहे थे? वैसे आपको देखते हुए मैं यही सोच रहा था कि कुछ बोलूँ।

यह सुनकर अर्थशास्त्री की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने जल्दी-जल्दी कहा; बोलो बोलो, मैं सुनने के लिए बेताब हूँ।

कैब ड्राइवर ने कहा; सर, आप तो वही हैं न जो कभी सरकार के सलाहकार थे?

यह सुनकर अर्थशास्त्री की बाँछे खिल गई। यह सोचते हुए उसकी ख़ुशी दोगुनी हो गई कि आजकल कैब ड्राइवर भी अर्थशास्त्रियों को पहचानते हैं। उसने ड्राइवर से पूछा; तुम मुझे पहचानते हो! यह सुनकर मैं सरप्राइज्ड हूँ कि एक कैब ड्राइवर भी मुझे पहचानता है। हाँ, मैं ही हूँ जो सरकार का सलाहकार था।

उनकी बात सुनकर ड्राइवर बोला; और आप वही हैं न जो कोलकाता की लगभग गिर चुकी बिल्डिंग और गन्दी गलियों की फोटो में रोमांस और नास्टैल्जिया का खज़ाना खोजते हैं?

यह सुनकर तो अर्थशास्त्री अपनी सीट पर उछल पड़ा। उरी बाबा, तुमी तो आमार संपर्के ओनेक किछु जानो !

ड्राइवर बोला; आपने बांग्ला में मुझे गाली दी क्या?

अर्थशास्त्री बोला; आरे नेही, मैं कह रहा था कि तुम तो मेरा बारे में बहुत कुछ जानते हो। इये केतना आशचोरजो का बात है। लगता है तुम मेरे कॉलम पढ़े हो कभी। और क्या जानते हो मेरे बारे में?

ड्राइवर बोला; यही कि आप जब सरकार के सलाहकार थे तब देश में इन्फ्लेशन बहुत बढ़ गया था। पॉलिसी पैरालिसिस था। देश में एफ डी आई आना कम हो गया था। …….. अच्छा सर, वो फाइनेंस मिनिस्टर को रेट्रोस्पेक्टिव टैक्सेशन की सलाह आपने ही दी थी?

अर्थशास्त्री को काटो तो खून नहीं। अचानक चिल्लाया; तुम सांघी लोग अब कैब भी चलाने लगा? तुम आई टी सेल का है न? दिन में कैब चलाता है और रात में ट्वीट करता है। समझ गया मैं। तुम हमको ट्विटर पर भी ट्रोल करता होगा। व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से बाहर निकल कर देखो। असली ज्ञान बाहर है। तुम पहला कैब ड्राइवर है जो मोदी का आदमी निकला। तुमको कुछ पता नहीं है।

अचानक ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी। अर्थशास्त्री और जोर से चिल्लाया; कैब क्यों रोका?

ड्राइवर शांत होकर बोला; सर आपका डेस्टिनेशन आ गया है।

कैब ड्राइवर द्वारा मोदी की बुराई की कहानी ट्वीट करने का अर्थशास्त्री का प्लान चौपट हो चुका था। वो कैब से उतर कर अपने अपार्टमेंट की ओर चला जा रहा था।

पंद्रह दिन बाद कैब एग्रीगेटर कंपनी को एक मेल मिला। मेल एक भारतीय अर्थशास्त्री की ओर से लिखा गया था। कंपनी को सुझाव देते हुए उसने लिखा था; कंपनी से रिक्वेस्ट है कि ड्राइवर रखने से पहले उसकी प्रॉपर स्क्रीनिंग करके देख ले कि ड्राइवर कहीं संघी तो नहीं। ऐसे ड्राइवर मोदी की बुराई करने की जगह सवाल पूछने लगते हैं।

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