Wednesday, April 24, 2024
Homeविविध विषयकला-साहित्यअन्ना हजारे का आंदोलन कॉन्ग्रेस की मदद के लिए था... रास्ता भटक गया और...

अन्ना हजारे का आंदोलन कॉन्ग्रेस की मदद के लिए था… रास्ता भटक गया और केजरीवाल सारी मलाई चाप गए?

जन लोकपाल बिल के लिए किया गया आंदोलन ऊपरी सतह पर ऐसा था, मानो कॉन्ग्रेस को आहत करेगा, लेकिन शुरुआती मंशा कुछ और थी। 'Sanghi Who Never Went To A Shakha' किताब में...

यह अंश राहुल रोशन के द्वारा लिखी गई किताब “Sanghi Who Never Went To A Shakha” के अध्याय “Hindutva vs the Ecosystem” से लिया गया है।

नेहरू-गाँधी परिवार के विरुद्ध ‘इकोसिस्टम’ की चुप्पी को भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के समय भी देखा गया था। अन्ना हजारे की तत्कालीन टीम में किसी भी प्रभावशाली नेता, खासकर अरविंद केजरीवाल ने, एक भ्रष्ट नेता के तौर पर सोनिया गाँधी का नाम नहीं लिया था।

अगर अन्ना हजारे का धरना एक अलग तरीके से समाप्त हुआ होता, (कॉन्ग्रेस द्वारा अन्ना के इस आंदोलन पर हमला किए जाने और आंदोलन को आरएसएस की साजिश बताए जाने के बिना) तो इस आंदोलन ने कॉन्ग्रेस की सिर्फ सहायता ही की होती। इसका एक अंत यह भी हो सकता था कि राहुल गाँधी लोकपाल की नियुक्ति का वादा करते और अपने हाथों से संतरे का जूस पिलाकर अन्ना हजारे का आमरण अनशन समाप्त करते। इसे लगातार टीवी पर चलाया जाता।

2014 में यूपीए के तीसरे कार्यकाल में राहुल गाँधी जब प्रधानमंत्री बनते तो एक नैरेटिव चला कर 2जी, कॉमनवेल्थ और कोयला घोटालों का दोष मनमोहन सिंह पर डाल दिया जाता।

2014 के लोकसभा चुनावों से कुछ समय पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यह भरोसा जताया था कि इतिहास उनके साथ दयालु रहेगा। यह उनका विदाई वक्तव्य ही था क्योंकि उन्हें भी यह पता था कि चुनावों का परिणाम चाहे जो भी हो, वो दोबारा प्रधानमंत्री नहीं बनाए जाएँगे।

यदि कॉन्ग्रेस चुनाव जीत जाती… और कॉन्ग्रेस के चुनाव जीतने की उम्मीदें भी बहुत ज्यादा होतीं, यदि अन्ना हजारे का आंदोलन मेरे द्वारा बताए गए उक्त तरीके से समाप्त होता… तो इतिहास मनमोहन के प्रति बिल्कुल भी दयालु नहीं होता। ऐसा इसलिए क्योंकि राहुल गाँधी को हीरो बनाने के लिए ‘दरबारी’ इतिहासकारों द्वारा मनमोहन सिंह को विलेन बना दिया जाता। इस योजना की एक रिहर्सल सितंबर 2013 में तब हुई थी, जब राहुल गाँधी ने अपनी ही सरकार का एक अध्यादेश सार्वजनिक रूप से फाड़ दिया था।

मेरे पास अपने कुछ कारण हैं, जिनसे मुझे विश्वास है कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन, कॉन्ग्रेस की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए शुरू नहीं हुआ था। अन्ना हजारे की टीम के मुख्य सदस्य स्वामी अग्निवेश को कथित तौर पर फोन से कॉन्ग्रेस नेता कपिल सिब्बल (हालाँकि स्वामी अग्निवेश ने बाद में कहा था कि वो किसी और कपिल से बात कर रहे थे) से बात करते हुए सुना गया था, जहाँ उन्होंने अपने साथियों (आंदोलनकारियों) की तुलना पागल हाथी से की थी।

अग्निवेश को यह कहते सुना गया था कि अन्ना हजारे की टीम अपना रास्ता भटक चुकी है और एक पागल हाथी की तरह व्यवहार कर रही है, जो अपने नियत उद्देश्य पर रुकने को तैयार नहीं है। तो, क्या इसका मतलब यही था कि अन्ना हजारे की टीम को एक सीमित तरीके में ही अपना आंदोलन बनाए रखना था और एक नियत समय के बाद उसे समाप्त करना था?

संभवतः ऐसा था भी! क्योंकि ‘इकोसिस्टम’ द्वारा सुनियोजित सीमित समय का आंदोलन कॉन्ग्रेस की ही सहायता करता। इसकी सहायता से ‘राजनैतिक वर्ग’ के भ्रष्ट होने का वातावरण निर्मित किया जाता, जिसमें कॉन्ग्रेस और भाजपा दोनों को भ्रष्टाचार रूपी एक ही सिक्के के दो पहलू दिखाए जाते। इससे जाहिर है भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा को कोई लाभ नहीं होता- जैसे 2009 के लोकसभा चुनावों के दौरान हुआ था, जब घरेलू सुरक्षा के मुद्दे पर शासन में बैठे दल के स्थान पर सम्पूर्ण राजनैतिक वर्ग के विरुद्ध वातावरण बनाया गया था। अन्ना हजारे के आंदोलन की इकोसिस्टम की रणनीति सफल होती लेकिन पता नहीं कैसे, इसे कॉन्ग्रेस के कम्फर्ट से आगे खींचने का निर्णय लिया गया।

ऐसा लगता है कि इसके लिए कई वैश्विक कारक जिम्मेदार हो सकते हैं। इनमें 2010-12 की ‘अरब स्प्रिंग’ को महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए। इस दौरान मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के कई देशों में सत्ता परिवर्तन हुआ। यहीं से भारत के ‘इकोसिस्टम’ को झूठी बँधी कि वह भी भारत में कॉन्ग्रेस के सहयोग के बिना भी सीधा शासन कर सकता है। इसी झूठी आशा के कारण वे, स्वामी अग्निवेश के शब्दों में, ‘पागल हाथी’ की तरह अपने लक्ष्य से भटक गए।

इस दौरान टीवी पत्रकार राजदीप सरदेसाई का 2012 का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वो मराठी में कहते हुए पाए गए कि उन्होंने अरविंद केजरीवाल को उस आंदोलन के साथ भारत में ‘तहरीर स्क्वायर’ जैसा कुछ करने की सलाह दी थी। (राजदीप सरदेसाई ने इस वीडियो की सत्यता स्वयं प्रमाणित की, जब उन्होंने अपनी किताब ‘2014 : The Election that Changed India, Penguin Books, New Delhi, 2014 में वही बात लिखी, जिसका जिक्र वीडियो क्लिप में किया गया था) 

तहरीर स्क्वायर, मिस्त्र की राजधानी काइरो में है, जहाँ फरवरी 2011 में एक बड़ा जन आंदोलन हुआ था, जो ‘अरब स्प्रिंग’ की एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में जाना जाता है। इस आंदोलन के कारण वहाँ के राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक को सत्ता छोड़नी पड़ी थी। आंदोलन के पहले उन्होंने लगातार 30 वर्षों तक शासन किया था। 

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ‘इकोसिस्टम’ ने सोचा था कि भारत में भी ‘अरब स्प्रिंग’ की तरह ही कोई क्रांति हो सकती है। यदि ऐसा था, तो वे सीधे सत्ता हासिल करने का प्रयास कर रहे थे, बजाय इसके कि कॉन्ग्रेस उन्हें सत्ता का एक छोटा सा हिस्सा दे। उनकी योजना उन अपराधियों या स्थानीय गुंडों के समान थी, जो किसी अन्य प्रत्याशी को समर्थन देने के स्थान पर खुद ही चुनाव लड़ने की सोचते हैं।

यदि ऐसी कोई योजना थी तो वह सफल नहीं हो सकी क्योंकि अन्ना हजारे के आंदोलन को वैसा जन सहयोग प्राप्त नहीं हो सका, जैसा अरब देशों में हुए आंदोलनों को मिला था। अन्ना हजारे की टीम दिल्ली से बाहर समर्थन प्राप्त करने में असफल रही। मुंबई में भी कुछ आंदोलन शुरू हुए थे लेकिन उन्हें भी पर्याप्त सहयोग प्राप्त नहीं हो सका था और दिल्ली में भी आंदोलन कमजोर होता जा रहा था। देश के अन्य हिस्सों में भी स्थानीय प्रदर्शनों के आह्वान को कोई खास सहयोग नहीं मिला। हालाँकि आंदोलन की जो प्रमुख टीम थी, उसमें ऊर्जा बनी हुई थी और वो समय-समय पर सोशल मीडिया के मंचों में दिखाई देती थी।

‘इकोसिस्टम’ को बहुत जल्द यह आभास हो गया कि उसके द्वारा कॉन्ग्रेस को सत्ता से हटाकर सीधे शासन करने का जो सपना देखा जा रहा है, वो व्यावहारिक नहीं है। हालाँकि उन्होंने उम्मीद नहीं खोई थी और कॉन्ग्रेस को दरकिनार करने की उनकी अभिलाषा ‘आम आदमी पार्टी (AAP)’ के रूप में अस्तित्व में आई, जिसने दिसंबर 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में बढ़िया प्रदर्शन किया। इस सफलता से उन्हें एक और आशा मिली कि 2014 के लोकसभा चुनावों में भी प्रभाव डाल पाएँगे, मगर अंत में उन्हें पता चल गया कि मोदी उनकी सोच से कहीं आगे की चीज हैं।

[Sanghi Who Never Went To A Shakha’रूपा पब्लिकेशन के द्वारा प्रकाशित (मार्च 2021) की गई है। इस पुस्तक के लेखक राहुल रोशन हैं जो एक सफल आंत्रप्रेन्योर, मीडिया प्रोफेशनल और वर्तमान में OpIndia डिजिटल समूह के सीईओ हैं]

इस लेख को आप इसके ऑरिजनल रूप में यहाँ पढ़ सकते हैं, जिसका अनुवाद ओम ने किया है।

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

Rahul Roushan
Rahul Roushanhttp://www.rahulroushan.com
A well known expert on nothing. Opinions totally personal. RTs, sometimes even my own tweets, not endorsement. #Sarcasm. As unbiased as any popular journalist.

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘नरेंद्र मोदी ने गुजरात CM रहते मुस्लिमों को OBC सूची में जोड़ा’: आधा-अधूरा वीडियो शेयर कर झूठ फैला रहे कॉन्ग्रेसी हैंडल्स, सच सहन नहीं...

कॉन्ग्रेस के शासनकाल में ही कलाल मुस्लिमों को OBC का दर्जा दे दिया गया था, लेकिन इसी जाति के हिन्दुओं को इस सूची में स्थान पाने के लिए नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री बनने तक का इंतज़ार करना पड़ा।

‘खुद को भगवान राम से भी बड़ा समझती है कॉन्ग्रेस, उसके राज में बढ़ी माओवादी हिंसा’: छत्तीसगढ़ के महासमुंद और जांजगीर-चांपा में बोले PM...

PM नरेंद्र मोदी ने आरोप लगाया कि कॉन्ग्रेस खुद को भगवान राम से भी बड़ा मानती है। उन्होंने कहा कि जब तक भाजपा सरकार है, तब तक आपके हक का पैसा सीधे आपके खाते में पहुँचता रहेगा।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
417,000SubscribersSubscribe